स्वास्थ्यकर शिक्षा को अपनी जीवन-शैली बनाइए
“ईश्वरीय भक्ति सब बातों के लिए लाभदायक है।”— १ तीमुथियुस ४:८, NW.
१, २. किस हद तक लोग अपने स्वास्थ्य के लिए चिन्ता दिखाते हैं, और परिणाम क्या होता है?
अधिकतर लोग सहज ही यह स्वीकार कर लेंगे कि अच्छा स्वास्थ्य जीवन की एक सबसे अनमोल सम्पत्ति है। अपने आप को शारीरिक रूप से स्वस्थ रखने और यह निश्चित करने के लिए कि ज़रूरत पड़ने पर उन्हें सही चिकित्सीय देखरेख मिले, लोग बड़ी मात्रा में समय और पैसा ख़र्च करते हैं। उदाहरण के लिए, अमरीका में हाल ही के एक वर्ष में वार्षिक स्वास्थ्य-देखरेख पर $९ खरब से भी ज़्यादा ख़र्च किया गया। इसका अर्थ हुआ कि उस देश में एक वर्ष में प्रत्येक पुरुष, स्त्री, और बच्चे पर $३,००० से ज़्यादा ख़र्च होता है। और अन्य विकसित राष्ट्रों में भी प्रति व्यक्ति ख़र्च लगभग उतना ही है।
२ इतने समय, शक्ति, और पैसे के ख़र्च से क्या मिला है? निश्चय ही कोई भी व्यक्ति इनकार नहीं करेगा कि कुल मिलाकर देखा जाए, तो आज हमारे पास इतने अधिक विकसित चिकित्सीय साधन और प्रबन्ध हैं जितने कि इतिहास में पहले कभी नहीं थे। फिर भी, यह अपने आप ही स्वास्थ्यकर जीवन में परिणित नहीं होता है। वास्तव में, अमरीका के लिए प्रस्तावित स्वास्थ्य-देखरेख कार्यक्रम की रूपरेखा देते हुए एक भाषण में वहाँ के राष्ट्रपति ने बताया कि, “इस देश में हिंसा की अत्यधिक क़ीमत” के अतिरिक्त, अमरीका के निवासियों में किसी अन्य विकसित राष्ट्र के मुक़ाबले “एडस्, धूम्रपान और अत्यधिक मद्यपान, किशोर गर्भावस्था, [और] कम वज़न के बच्चों के जन्म की दर ऊँची है।” उसका निष्कर्ष? “यदि हमें सचमुच स्वस्थ रहना है तो हमें अपने तौर तरीक़े बदलने होंगे।”—गलतियों ६:७, ८.
स्वास्थ्यकर जीवन-शैली
३. प्राचीन यूनानी संस्कृति को देखते हुए पौलुस ने क्या सलाह पेश की?
३ पहली शताब्दी में, यूनानी लोग शारीरिक स्वास्थ्य और शक्ति को बढ़ाने, कसरत, और खेल-कूद स्पर्धाओं के प्रति अपने समर्पण के लिए मशहूर थे। इस पृष्ठभूमि के होते हुए, प्रेरित पौलुस युवा पुरुष तीमुथियुस को यह लिखने के लिए प्रेरित हुआ: “देह की साधना से कम लाभ होता है, पर [ईश्वरीय, NW] भक्ति सब बातों के लिए लाभदायक है, क्योंकि इस समय के और आनेवाले जीवन की भी प्रतिज्ञा इसी के लिए है।” (१ तीमुथियुस ४:८) अतः, पौलुस उस बात की ओर संकेत कर रहा था जिसे लोग आज स्वीकार कर रहे हैं, अर्थात्, चिकित्सीय या शारीरिक प्रबन्ध एक सचमुच स्वास्थ्यकर जीवन-शैली की गारंटी नहीं देते हैं। लेकिन, पौलुस हमें आश्वस्त करता है, कि आध्यात्मिक स्वास्थ्य और ईश्वरीय भक्ति विकसित करना अनिवार्य है।
४. ईश्वरीय भक्ति के क्या लाभ हैं?
४ ऐसा मार्ग “इस समय के . . . जीवन” के लिए लाभदायक है क्योंकि यह उन सभी हानिकर चीज़ों से बचाव करता है जो अधर्मी लोग, या ‘भक्ति का भेष [या, दिखावा करनेवाले] धरनेवाले’ अपने ऊपर लाते हैं। (२ तीमुथियुस ३:५; नीतिवचन २३:२९, ३०; लूका १५:११-१६; १ कुरिन्थियों ६:१८; १ तीमुथियुस ६:९, १०) जो लोग ईश्वरीय भक्ति को अपना जीवन ढालने देते हैं वे परमेश्वर के नियमों और माँगों के लिए स्वास्थ्यकर आदर रखते हैं, और यह उन्हें परमेश्वर की स्वास्थ्यकर शिक्षा को अपनी जीवन-शैली बनाने के लिए प्रेरित करता है। ऐसा मार्ग उनके लिए आध्यात्मिक और शारीरिक स्वास्थ्य, संतुष्टि, और ख़ुशी लाता है। और वे अपने ‘आगे के लिये एक अच्छी नेव डाल रहे हैं, कि सत्य जीवन को वश में कर लें।’—१ तीमुथियुस ६:१९.
५. तीतुस को लिखी अपनी पत्री के दूसरे अध्याय में पौलुस ने क्या निर्देशन दिए?
५ क्योंकि परमेश्वर की स्वास्थ्यकर शिक्षा द्वारा मार्गदर्शित जीवन ऐसी आशिषें अभी और भविष्य में लाता है, हमें व्यावहारिक रूप से यह जानने की ज़रूरत है कि हम किस प्रकार परमेश्वर की स्वास्थ्यकर शिक्षा को अपनी जीवन-शैली बना सकते हैं। प्रेरित पौलुस ने तीतुस को लिखी अपनी पत्री में उत्तर दिया। हम उस पुस्तक के दूसरे अध्याय पर ख़ास ध्यान देंगे, जहाँ उसने तीतुस को निर्देशन दिया कि ‘ऐसी बातें कहा करे, जो खरे उपदेश [स्वास्थ्यकर शिक्षा, NW] के योग्य हैं।’ जवान और बूढ़े, स्त्री और पुरुष, निश्चित ही हम सभी ऐसी “स्वास्थ्यकर शिक्षा” से लाभ उठा सकते हैं।—तीतुस १:४, ५; २:१.
वृद्ध पुरुषों के लिए सलाह
६. ‘बूढ़े पुरुषों’ के लिए पौलुस ने क्या सलाह पेश की, और ऐसा करना उसकी ओर से कृपा का कार्य क्यों था?
६ पहले, पौलुस ने कलीसिया में वृद्ध पुरुषों के लिए कुछ सलाह दी। कृपया तीतुस २:२ पढ़िए। एक वर्ग के रूप में, ‘बूढ़े पुरुषों’ का सम्मान किया जाता है और उन्हें विश्वास और निष्ठा के उदाहरणों के रूप में देखा जाता है। (लैव्यव्यवस्था १९:३२; नीतिवचन १६:३१) इस कारण, अन्य लोग शायद ऐसे मामलों में जो अत्यधिक गंभीर नहीं हैं, वृद्ध पुरुषों को सलाह या सुझाव देने में हिचकिचाएँ। (अय्यूब ३२:६, ७; १ तीमुथियुस ५:१) इसलिए, यह पौलुस की ओर से एक कृपा का कार्य था कि उसने पहले वृद्ध पुरुषों को सम्बोधित किया, और उनके लिए भला होगा कि वे पौलुस के शब्दों को हृदय से ग्रहण करें और निश्चित करें कि वे भी पौलुस के समान अनुकरण के योग्य हैं।—१ कुरिन्थियों ११:१; फिलिप्पियों ३:१७.
७, ८. (क) “आदतों में संतुलित” होना क्या सम्मिलित करता है? (ख) क्यों “गंभीर” होने को “संयमी” होने से संतुलित किया जाना चाहिए?
७ सबसे पहले, वृद्ध मसीही पुरुषों को “आदतों में संतुलित” (NW) होना चाहिए। जबकि मूल शब्द पीने की आदत (“अमत्त,” किंग्डम इंटरलीनियर) को सूचित कर सकता है, इसका अर्थ सावधान रहना, सुबुद्ध होना, या सचेत रहना भी है। (२ तीमुथियुस ४:५; १ पतरस १:१३) अतः, चाहे पीने के बारे में या अन्य चीज़ों में, वृद्ध पुरुषों को संतुलित होना चाहिए, असंयम या अतिरेक की ओर प्रवृत्त नहीं होना चाहिए।
८ और, उन्हें “गंभीर” और “संयमी” भी होना चाहिए। गंभीर, या गौरवपूर्ण होना, आदरणीय, और आदर के योग्य होना सामान्यतः उम्र के साथ आता है। लेकिन, कुछ लोग अत्यधिक गंभीर होने के लिए प्रवृत्त हो सकते हैं, और युवाओं के ओजस्वी तौर तरीक़ों के प्रति असहनशील बन जाते हैं। (नीतिवचन २०:२९) इसीलिए “गंभीर” को “संयमी” से संतुलित किया गया है। वृद्ध पुरुषों को ऐसी गंभीरता बनाए रखने की ज़रूरत है जो उनकी उम्र के लिए उचित है, साथ ही साथ उन्हें संतुलित भी होना चाहिए, अपनी भावनाओं और आवेगों पर पूरा नियंत्रण रखना चाहिए।
९. क्यों वृद्ध पुरुषों को विश्वास और प्रेम और ख़ासकर धीरज में स्वस्थ होना चाहिए?
९ अन्त में, वृद्ध पुरुषों का “विश्वास और प्रेम और धीरज पक्का [स्वस्थ, NW]” होना चाहिए। अपने लेखन में पौलुस ने अनेक बार विश्वास और प्रेम को आशा के साथ सूचीबद्ध किया। (१ कुरिन्थियों १३:१३; १ थिस्सलुनीकियों १:३; ५:८) यहाँ उसने “आशा” के बदले “धीरज” का प्रयोग किया। शायद इसलिए कि बढ़ती उम्र के साथ वश्यता की भावना आसानी से बैठ सकती है। (सभोपदेशक १२:१) लेकिन, जैसा यीशु ने बताया “जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा, उसी का उद्धार होगा।” (मत्ती २४:१३) इसके अतिरिक्त, वृद्ध लोग बाक़ी लोगों के लिए योग्य उदाहरण हैं सिर्फ़ उनकी उम्र या अनुभव के कारण ही नहीं बल्कि उनके स्वस्थ आध्यात्मिक गुणों के कारण—विश्वास, प्रेम, और धीरज।
वृद्ध स्त्रियों के लिए
१०. कलीसिया में “बूढ़ी स्त्रियों” के लिए पौलुस क्या सलाह देता है?
१० इसके बाद पौलुस ने अपना ध्यान कलीसिया में वृद्ध स्त्रियों पर लगाया। कृपया तीतुस २:३ पढ़िए। कलीसिया में स्त्रियों के मध्य ‘बूढ़ी स्त्रियाँ’ वरिष्ठ सदस्य हैं, जिनमें ‘बूढ़े पुरुषों’ की पत्नियाँ और अन्य सदस्यों की माताएँ और नानी-दादियाँ सम्मिलित हैं। इस कारण, उनका काफ़ी प्रभाव हो सकता है, अच्छाई के लिए या बुराई के लिए। इसीलिए पौलुस ने अपने शब्द “इसी प्रकार” कहकर शुरू किए, जिसका अर्थ है कि “बूढ़ी स्त्रियों” को भी कुछ ज़िम्मेदारियों को पूरा करना है ताकि कलीसिया में अपनी भूमिका निभा सकें।
११. पवित्र लोगों का सा चाल चलन क्या है?
११ पहले, “बूढ़ी स्त्रियों का चाल चलन पवित्र लोगों का सा हो,” पौलुस ने कहा। “चाल चलन” एक व्यक्ति की आन्तरिक मनोवृत्ति और व्यक्तित्व की बाहरी अभिव्यक्ति है, जो आचरण और रूप दोनों में ही प्रतिबिंबित होता है। (मत्ती १२:३४, ३५) तो फिर, एक बूढ़ी मसीही स्त्री की मनोवृत्ति या व्यक्तित्व को कैसा होना चाहिए? संक्षिप्त में, “पवित्र लोगों सा।” यह एक यूनानी शब्द से अनुवाद किया गया है जिसका अर्थ है “वह जो परमेश्वर को समर्पित लोगों, कार्यों या चीज़ों के लिए उचित है।” अन्य लोगों पर, ख़ासकर कलीसिया में जवान स्त्रियों पर उनके प्रभाव को देखते हुए यह निश्चित ही उपयुक्त सलाह है।—१ तीमुथियुस २:९, १०.
१२. सभी को ज़बान के कौनसे दुरुपयोग से बचना चाहिए?
१२ उसके बाद दो नकारात्मक विशेषताएँ आती हैं: “दोष लगानेवाली और पियक्कड़ नहीं।” यह दिलचस्पी की बात है कि इन दोनों को एक साथ वर्गीकृत किया गया है। “प्राचीन समयों में, जब दाखमधु एकमात्र पेय था,” प्रोफ़ेसर ई. एफ़. स्कॉट कहता है, “अपनी छोटी दाखमधु-पार्टियों में वृद्ध स्त्रियाँ अपने पड़ोसियों के बारे में हानिकर गपशप किया करती थीं।” स्त्रियाँ सामान्य रूप से लोगों के बारे में पुरुषों से अधिक चिन्ता करती हैं, जो कि सराहनीय है। फिर भी, चिन्ता गपशप और यहाँ तक कि हानिकर गपशप में अवनत हो सकती है, ख़ासकर पीने के बाद जब ज़बान पर लगाम नहीं रहती। (नीतिवचन २३:३३) निश्चित ही, वे सभी जो एक स्वास्थ्यकर जीवन-शैली का अनुसरण कर रहे हैं, पुरुषों और स्त्रियों दोनों के लिए ही भला होगा कि इस फंदे से सतर्क रहें।
१३. किन तरीक़ों से वृद्ध स्त्रियाँ सिखानेवाली हो सकती हैं?
१३ उपलब्ध समय को एक रचनात्मक तरीक़े से उपयोग करने के लिए वृद्ध स्त्रियों को प्रोत्साहन दिया गया है कि “अच्छी बातें सिखानेवाली हों।” दूसरी जगह पर पौलुस ने स्पष्ट निर्देशन दिया कि स्त्रियों को कलीसिया में सिखाने का कार्य नहीं करना चाहिए। (१ कुरिन्थियों १४:३४; १ तीमुथियुस २:१२) लेकिन यह उन्हें अपने घराने में और जनता को परमेश्वर का बहुमूल्य ज्ञान देने से नहीं रोकता। (२ तीमुथियुस १:५; ३:१४, १५) वे कलीसिया में जवान स्त्रियों के लिए मसीही उदाहरण होने के द्वारा भी काफ़ी भला निष्पन्न कर सकती हैं, जैसे निम्नलिखित आयतें दिखाती हैं।
युवा स्त्रियों के लिए
१४. किस प्रकार जवान मसीही स्त्रियाँ अपने कर्तव्यों को निभाने में संतुलन दिखा सकती हैं?
१४ वृद्ध स्त्रियों को “अच्छी बातें सिखानेवाली” होने का प्रोत्साहन देते समय पौलुस ने ख़ासकर जवान स्त्रियों का ज़िक्र किया। कृपया तीतुस २:४, ५ पढ़िए। जबकि अधिकांश निर्देशन घरेलू मामलों पर केंद्रित होता है, जवान मसीही स्त्रियों को आत्यंतिक नहीं होना चाहिए, भौतिक चिन्ताओं को अपने जीवन पर प्रभुत्व नहीं करने देना चाहिए। इसके बजाय, उन्हें “संयमी, पतिव्रता, . . . भली” होना चाहिए, और सबसे बढ़कर, मसीही मुखियापन के प्रबन्ध का समर्थन करने के लिए तैयार रहना चाहिए, “ताकि परमेश्वर के वचन की निन्दा न होने पाए।”
१५. कलीसिया में अनेक जवान स्त्रियों की सराहना क्यों की जानी चाहिए?
१५ जैसा पौलुस के दिनों में था उससे आज पारिवारिक दृश्य काफ़ी बदल चुका है। अनेक परिवार धर्म के बारे में विभाजित हैं, और अन्य लोगों के पास केवल एक जनक है। यहाँ तक कि तथाकथित पारंपरिक परिवारों में भी यह बढ़ती संख्या में असाधारण होता जा रहा है कि पत्नी या माता पूरे-समय की गृहिणी है। यह सब युवा मसीही स्त्रियों पर अत्यधिक दबाव और ज़िम्मेदारी डालता है, लेकिन यह उन्हें उनकी शास्त्रीय बाध्यताओं से मुक्त नहीं करता। इसलिए, अनेक वफ़ादार युवा स्त्रियों को उनके अनेक कर्तव्यों को संतुलित करने के लिए कठिन परिश्रम करते और फिर भी राज्य हितों को पहला स्थान देते हुए देखना बहुत सुखद है। इनमें से कुछ तो सहयोगी या नियमित पायनियरों के रूप में पूर्ण-समय की सेवकाई में भी हैं। (मत्ती ६:३३) उनकी सचमुच सराहना की जानी चाहिए!
युवा पुरुषों के लिए
१६. जवान पुरुषों के लिए पौलुस ने क्या सलाह दी, और यह समयोचित क्यों है?
१६ फिर पौलुस ने जवान पुरुषों के बारे में कहा, जिसमें तीतुस सम्मिलित था। कृपया तीतुस २:६-८ पढ़िए। आज के अनेक युवाओं के ग़ैर-ज़िम्मेदार और विनाशक तौर तरीक़ों को देखते हुए—धूम्रपान, नशीले पदार्थों और शराब का दुष्प्रयोग, अनुचित सेक्स, और अन्य सांसारिक लक्ष्य, जैसे कि जंगली खेल-कूद और अपभ्रष्ट संगीत और मनोरंजन—यह सचमुच उन मसीही युवाओं के लिए समयोचित सलाह है जो एक स्वास्थ्यकर और संतोषजनक जीवन-शैली का अनुसरण करना चाहते हैं।
१७. किस प्रकार एक जवान पुरुष “संयमी” और “भले कामों का नमूना” बन सकता है?
१७ संसार के युवाओं की विषमता में, एक युवा मसीही पुरुष को “संयमी” और “भले कामों का नमूना” होना चाहिए। पौलुस ने समझाया कि एक संयमी और परिपक्व मन को वे लोग प्राप्त नहीं करते जो मात्र अध्ययन करते हैं, लेकिन वे प्राप्त करते हैं “जिन के ज्ञानेन्द्रिय अभ्यास करते करते, भले बुरे में भेद करने के लिए पक्के हो गए हैं।” (इब्रानियों ५:१४) अपनी जवानी की शक्ति को स्वार्थी लक्ष्यों पर बरबाद करने के बजाय, मसीही कलीसिया के अनेक कार्यों में पूरा भाग लेने के लिए स्वेच्छापूर्वक अपना समय और शक्ति देते हुए युवा लोगों को देखना कितना अच्छा लगता है! ऐसा करने से वे तीतुस के समान मसीही कलीसिया में “भले कामों” के नमूने बन सकते हैं।—१ तीमुथियुस ४:१२.
१८. उपदेश में साफ़, कार्य में गंभीर, और बोली में हितकर होने का क्या अर्थ है?
१८ जवान पुरुषों को याद दिलाया गया है कि उन्हें ‘[अपने] उपदेश में सफाई, गम्भीरता, और ऐसी खराई [हितकर बोली, NW] दिखानी चाहिए, कि कोई उसे बुरा न कह सके।’ वह शिक्षा जो ‘साफ़’ है उसे ठोस रूप से परमेश्वर के वचन पर आधारित होना चाहिए; अतः, जवान पुरुषों को बाइबल का अध्यवसायी विद्यार्थी होना चाहिए। वृद्ध पुरुषों के समान, जवान पुरुषों को भी गंभीर होना चाहिए। उन्हें यह स्वीकार करने की ज़रूरत है कि परमेश्वर के वचन का सेवक होना एक गंभीर ज़िम्मेदारी है, और इसलिए उनका “चालचलन मसीह के सुसमाचार के योग्य” होना चाहिए। (फिलिप्पियों १:२७) उसी प्रकार उनकी बोली “हितकर” और ऐसी होनी चाहिए कि उसे ‘बुरा न कहा जा सके,’ ताकि वे विरोधियों को शिकायत का कोई कारण न दें।—२ कुरिन्थियों ६:३; १ पतरस २:१२, १५.
दासों और सेवकों के लिए
१९, २०. कैसे वे लोग जो दूसरों के लिए नौकरी करते हैं “हमारे उद्धारकर्त्ता परमेश्वर के उपदेश को शोभा” दे सकते हैं?
१९ अन्त में, पौलुस ने उनके बारे में कहा जो दूसरों के अधीन नौकरी करते हैं। कृपया तीतुस २:९, १० पढ़िए। आज हम में से अनेक लोग दास या सेवक नहीं हैं, लेकिन अनेक लोग कर्मचारी या श्रमिक हैं जो दूसरों को सेवा देते हैं। अतः, पौलुस द्वारा बताए गए सिद्धान्त आज भी उतने ही लागू होते हैं।
२० ‘सब बातों में अपने स्वामियों के अधीन रहने’ (NW) का अर्थ है कि मसीही कर्मचारियों को अपने मालिकों और निरीक्षकों के प्रति सच्चा आदर दिखाना चाहिए। (कुलुस्सियों ३:२२) ईमानदार श्रमिक होने के लिए भी उनका नाम होना चाहिए, अपने मालिक को पूरे दिन का कार्य देना चाहिए। और उन्हें अपने कार्यस्थल पर मसीही आचरण का उच्च स्तर बनाए रखना चाहिए चाहे वहाँ अन्य लोगों का व्यवहार कैसा भी क्यों न हो। यह सब इसलिए “कि वे सब बातों में हमारे उद्धारकर्त्ता परमेश्वर के उपदेश को शोभा दें।” हम कितनी बार अच्छे परिणामों के बारे में सुनते हैं जब निष्कपट प्रेक्षक उनके गवाह सहकर्मियों या कर्मचारियों के उत्तम आचरण के कारण सच्चाई के प्रति प्रतिक्रिया दिखाते हैं! यह एक प्रतिफल है जो यहोवा उनको देता है जो अपने कार्यस्थल पर भी उसकी स्वास्थ्यकर शिक्षा का अनुसरण करते हैं।—इफिसियों ६:७, ८.
शुद्ध किए गए लोग
२१. यहोवा ने स्वास्थ्यकर शिक्षा क्यों प्रदान की है, और हमें कैसे प्रतिक्रिया दिखानी चाहिए?
२१ पौलुस ने जिस स्वास्थ्यकर शिक्षा की व्याख्या की वह सिर्फ़ नीतिशास्त्रीय सिद्धान्तों या नैतिक मूल्यों की एक नियमावली नहीं है जिसका परामर्श हम जब इच्छा हो तब ले सकते हैं। पौलुस ने आगे उसका उद्देश्य समझाया। कृपया तीतुस २:११, १२ पढ़िए। हमारे लिए उसके प्रेम और अपात्र अनुग्रह के कारण यहोवा परमेश्वर ने स्वास्थ्यकर शिक्षा प्रदान की है ताकि हम इस कठिन और ख़तरनाक समय में एक उद्देश्यपूर्ण और संतोषजनक जीवन जीना सीख सकें। क्या आप स्वास्थ्यकर शिक्षा को स्वीकार करने और उसे अपनी जीवन-शैली बनाने के लिए तत्पर हैं? ऐसा करने का अर्थ होगा आपका उद्धार।
२२, २३. स्वास्थ्यकर शिक्षा को अपनी जीवन-शैली बनाने से हम कौन-सी आशिषें काटते हैं?
२२ उससे भी अधिक, स्वास्थ्यकर शिक्षा को अपनी जीवन-शैली बनाने से हमें अभी एक अनोखा विशेषाधिकार मिलता है और भविष्य के लिए एक आनन्दित आशा मिलती है। कृपया तीतुस २:१३, १४ पढ़िए। सचमुच, स्वास्थ्यकर शिक्षा को अपनी जीवन-शैली बनाना हमें शुद्ध किए गए लोगों के रूप में भ्रष्ट और मरणासन्न संसार से अलग करता है। पौलुस के शब्द सीनै पर इस्राएल के पुत्रों को दिए गए मूसा के अनुस्मारकों के समान्तर हैं: “यहोवा . . . अपनी बनाई हुई सब जातियों से अधिक प्रशंसा, नाम, और शोभा के विषय में तुझ को प्रतिष्ठित करे, और तू उसके वचन के अनुसार अपने परमेश्वर यहोवा की पवित्र प्रजा बना रहे।”—व्यवस्थाविवरण २६:१८, १९.
२३ ऐसा हो कि स्वास्थ्यकर शिक्षा को अपनी जीवन-शैली बनाने के द्वारा हम हमेशा यहोवा के शुद्ध किए गए लोग होने के विशेषाधिकार को बहुमूल्य समझें! किसी भी क़िस्म की अधार्मिकता और सांसारिक अभिलाषाओं को अस्वीकार करने के लिए हमेशा सतर्क रहिए, और इस प्रकार उस महान कार्य में यहोवा द्वारा प्रयोग किए जाने के लिए शुद्ध और स्वस्थ रहिए जिसे आज वह करवा रहा है।—कुलुस्सियों १:१०.
क्या आपको याद है?
▫ क्यों ईश्वरीय भक्ति सब बातों के लिए लाभदायक है?
▫ किस प्रकार वृद्ध मसीही पुरुष और स्त्रियाँ स्वास्थ्यकर शिक्षा का एक जीवन-शैली के रूप में अनुसरण कर सकते हैं?
▫ कलीसिया में जवान पुरुषों और स्त्रियों के लिए पौलुस ने क्या स्वास्थ्यकर शिक्षा दी?
▫ यदि हम स्वास्थ्यकर शिक्षा को अपनी जीवन-शैली बनाते हैं तो क्या विशेषाधिकार और आशिष हमारे हो सकते हैं?
[पेज 25 पर तसवीरें]
आज अनेक लोग तीतुस २:२-४ में दी गई सलाह को लागू कर रहे हैं