अपने विवाह को स्थायी बंधन बनाइए
“जिसे परमेश्वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग न करे।”—मत्ती १९:६.
१. आज सच्चे मसीहियों के मध्य वैवाहिक सफलता का आधार क्या है?
यहोवा के लोगों के मध्य आज हज़ारों लोग संतोषजनक और स्थायी विवाह का आनन्द ले रहे हैं। लेकिन, इतनी व्यापक सफलता कोई संयोग नहीं है। मसीही विवाह तब सफल होते हैं जब दोनों साथी (१) विवाह बंधन के बारे में परमेश्वर के दृष्टिकोण का आदर करते हैं और (२) उसके वचन के सिद्धान्तों के द्वारा जीने का प्रयास करते हैं। आख़िरकार, स्वयं परमेश्वर ने ही वैवाहिक प्रबन्ध स्थापित किया था। उसी से “पृथ्वी पर, हर एक घराने का नाम रखा जाता है।” (इफिसियों ३:१४, १५) क्योंकि यहोवा जानता है कि एक सफल विवाह के लिए क्या ज़रूरी है, उसके मार्गदर्शन पर चलने से हम स्वयं को लाभ पहुँचाते हैं।—यशायाह ४८:१७.
२. विवाह में बाइबल सिद्धान्तों पर अमल करने से चूकने के परिणाम क्या हैं?
२ इसके विपरीत, बाइबल सिद्धान्तों पर अमल करने से चूकने का परिणाम वैवाहिक दुःख हो सकता है। कुछ विशेषज्ञ विश्वास करते हैं कि अमरीका में आज विवाह करनेवालों में से दो-तिहाई लोग आख़िरकार तलाक़ लेंगे। मसीही भी इस “कठिन समय” के तनावों और खिंचावों से मुक्त नहीं हैं। (२ तीमुथियुस ३:१) आर्थिक चिन्ताओं और कार्यस्थल के दबावों का किसी भी विवाह पर हानिकर प्रभाव हो सकता है। कुछ मसीही इसलिए भी अत्यधिक निराश हुए हैं क्योंकि उनके विवाह-साथी बाइबल सिद्धान्तों पर अमल करने से चूके हैं। “मैं यहोवा से प्रेम करती हूँ,” एक मसीही पत्नी कहती है, “लेकिन मेरा विवाह २० वर्षों से समस्याओं से भरा हुआ है। मेरा पति स्वार्थी है और कोई भी परिवर्तन नहीं करना चाहता। मुझे लगता है मैं फँस गयी हूँ।” अनेक मसीही पतियों या पत्नियों ने ऐसे ही मनोभाव व्यक्त किए हैं। क्या ग़लत हो जाता है? और क्या चीज़ विवाह को भावशून्य उदासीनता या स्पष्ट शत्रुता में बदलने से रोक सकती है?
विवाह का स्थायित्व
३, ४. (क) विवाह के लिए परमेश्वर का स्तर क्या है? (ख) विवाह का स्थायित्व उचित और लाभकारी क्यों है?
३ सर्वोत्तम परिस्थितियों में भी विवाह अपरिपूर्ण व्यक्तियों का बंधन है। (व्यवस्थाविवरण ३२:५) अतः प्रेरित पौलुस ने कहा कि “ऐसों [विवाह करनेवालों] को शारीरिक दुख होगा।” (१ कुरिन्थियों ७:२८) कुछ नितांत परिस्थितियों का परिणाम अलगाव या तलाक़ भी हो सकता है। (मत्ती १९:९; १ कुरिन्थियों ७:१२-१५) लेकिन, अधिकांश मामलों में मसीही लोग पौलुस की सलाह पर अमल करते हैं: “पत्नी अपने पति से अलग न हो . . . और न पति अपनी पत्नी को छोड़े।” (१ कुरिन्थियों ७:१०, ११) सचमुच, विवाह को एक स्थायी बंधन होना था, क्योंकि यीशु मसीह ने कहा: “जिसे परमेश्वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग न करे।”—मत्ती १९:६.
४ जो व्यक्ति एक शत्रुतापूर्ण या प्रेमरहित विवाह में फँसा हुआ महसूस करता है उसे शायद यहोवा का स्तर कठोर और अनुचित लगे। लेकिन यह वैसा नहीं है। वैवाहिक बंधन का स्थायित्व परमेश्वर का भय-माननेवाले दम्पति को संकट का पहला चिह्न दिखते ही जल्दबाज़ी में अपनी बाध्यताओं को त्यागने के बजाय उसका सामना करने और अपनी समस्याओं का हल ढूँढने के लिए प्रेरित करता है। बीस से भी अधिक वर्षों से विवाहित एक पुरुष ने इस प्रकार व्यक्त किया: “आप संकट के समयों से नहीं बच सकते। आप हर समय एक दूसरे के साथ ख़ुश नहीं होंगे। उसी समय वचनबद्धता वास्तव में महत्त्वपूर्ण है।” निःसंदेह, मसीही विवाहित दम्पति विवाह के आरंभक, यहोवा परमेश्वर के प्रति एक मुख्य बाध्यता महसूस करते हैं।—सभोपदेशक ५:४ से तुलना कीजिए।
मुखियापन और अधीनता
५. पतियों और पत्नियों के लिए पौलुस की कुछ सलाह क्या है?
५ इसलिए, जब समस्याएँ उठती हैं तो यह मुक्ति ढूँढने का नहीं, बल्कि परमेश्वर के वचन की सलाह पर अमल करने का एक बेहतर तरीक़ा ढूँढने का समय है। उदाहरण के लिए, पौलुस के इन शब्दों पर विचार कीजिए जो इफिसियों ५:२२-२५, २८, २९ में मिलते हैं: “हे पत्नियो, अपने अपने पति के ऐसे आधीन रहो, जैसे प्रभु के। क्योंकि पति पत्नी का सिर है जैसे कि मसीह कलीसिया का सिर है; और आप ही देह का उद्धारकर्त्ता है। पर जैसे कलीसिया मसीह के आधीन है, वैसे ही पत्नियां भी हर बात में अपने अपने पति के आधीन रहें। हे पतियो, अपनी अपनी पत्नी से प्रेम रखो, जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम करके अपने आप को उसके लिये दे दिया। इसी प्रकार उचित है, कि पति अपनी अपनी पत्नी से अपनी देह के समान प्रेम रखे, जो अपनी पत्नी से प्रेम रखता है, वह अपने आप से प्रेम रखता है। क्योंकि किसी ने कभी अपने शरीर से बैर नहीं रखा बरन उसका पालन-पोषण करता है, जैसा मसीह भी कलीसिया के साथ करता है।”
६. किस प्रकार मसीही पतियों को संसार के पुरुषों से भिन्न होना है?
६ पुरुषों ने अकसर अपने पति-योग्य अधिकार का दुरुपयोग किया है और अपनी अपनी पत्नियों पर प्रभुता की है। (उत्पत्ति ३:१६) लेकिन, पौलुस ने मसीही पतियों से संसार के पुरुषों से भिन्न होने का आग्रह किया। उन्हें मसीह-समान होना था, न कि ऐसे तानाशाह जो अपनी पत्नियों के अस्तित्व की हर बात पर नियंत्रण रखें। निश्चित ही, मनुष्य यीशु मसीह कभी कठोर या निरंकुश नहीं था। उसने अपने अनुयायियों के साथ सम्मान और आदर से व्यवहार किया, उसने कहा: “हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं।”—मत्ती ११:२८, २९.
७. जब एक पत्नी को नौकरी करनी पड़ती है तो पुरुष उसका आदर कैसे कर सकता है?
७ एक मसीही पति अपनी पत्नी को निर्बल पात्र जानकर उसका आदर करता है। (१ पतरस ३:७) उदाहरण के लिए, मानो उसको नौकरी करनी पड़ती है। वह इसे ध्यान में रखेगा, और यथासंभव सहायक और विचारशील होगा। स्त्रियों द्वारा तलाक़ देने का एक मुख्य कारण यह रहा है कि उनके पति बच्चों या घर के प्रति लापरवाह रहे हैं। इसलिए, एक मसीही पति ऐसे अर्थपूर्ण तरीक़ों से पत्नी की मदद करने की कोशिश करता है जिनसे पूरे परिवार को लाभ पहुँचता है।
८. मसीही पत्नियों के लिए अधीनता में क्या सम्मिलित है?
८ जब मसीही पत्नियों के साथ आदर से व्यवहार किया जाता है तो यह उनके लिए अपने पतियों की अधीनता में रहना आसान बना देता है। लेकिन, इसका अर्थ दयनीय दासत्व नहीं है। परमेश्वर ने आदेश दिया था कि पत्नी को एक दास नहीं, बल्कि एक “सहायक” (“पूरक,” फुटनोट NW) होना था। यह पुरुष के लिए किसी उपयुक्त चीज़ को सूचित करता है। (उत्पत्ति २:१८) मलाकी २:१४ में पत्नी को पुरुष की “संगिनी” कहा गया है। बाइबल समय में पत्नियों को काफ़ी स्वतंत्रता और छूट थी। “भली पत्नी” के बारे में बाइबल कहती है: “उसके पति के मन में उसके प्रति विश्वास है।” सचमुच, उसे घराने का सामान्य प्रबन्ध, भोजन की ख़रीदारी का निरीक्षण, भूसम्पत्ति का सौदा करना, और एक छोटा-सा व्यापार करना जैसे मामले सौंपे गए थे।—नीतिवचन ३१:१०-३१.
९. (क) बाइबल समय में परमेश्वर का भय-माननेवाली स्त्रियों ने किस प्रकार सच्ची अधीनता दिखायी? (ख) क्या बात अधीन रहने में आज एक मसीही पत्नी की मदद कर सकती है?
९ फिर भी, परमेश्वर का भय-माननेवाली पत्नी ने अपने पति के अधिकार को स्वीकार किया। उदाहरण के लिए, शिष्ट औपचारिकता के लिए नहीं, बल्कि अपनी निष्कपट अधीनता प्रतिबिंबित करने के लिए सारा “इब्राहीम की आज्ञा में रहती और उसे स्वामी कहती थी।” (१ पतरस ३:६; उत्पत्ति १८:१२) अपने पति के साथ तम्बुओं में रहने के लिए उसने स्वेच्छा से ऊर शहर में अपना आरामदेह घर भी छोड़ दिया। (इब्रानियों ११:८, ९) लेकिन अधीनता का यह अर्थ नहीं था कि एक पत्नी ज़रूरत पड़ने पर ज़िम्मेदार कार्यवाही नहीं कर सकती थी। जब मूसा खतना के बारे में परमेश्वर के नियम को पूरा करने से चूक गया, तो उसकी पत्नी, सिप्पोरा ने निर्णायक रूप से कार्य करने के द्वारा घोर विपत्ति को रोका। (निर्गमन ४:२४-२६) एक अपरिपूर्ण पुरुष को प्रसन्न करने से ज़्यादा कुछ सम्मिलित है। पत्नियों को ‘अपने अपने पतियों के ऐसे आधीन रहना है, जैसे प्रभु के।’ (इफिसियों ५:२२) जब एक मसीही पत्नी परमेश्वर के साथ अपने सम्बन्ध को ध्यान में रखती है, तो यह उसे अपने पति में छोटी-छोटी त्रुटियों और कमियों को नज़रअंदाज़ करने में मदद करता है, और पति को भी उसके साथ व्यवहार करते समय ऐसा ही करने की ज़रूरत है।
संचार—विवाह की प्राण-शक्ति
१०. एक विवाह के लिए संचार कितना महत्त्वपूर्ण है?
१० यह पूछे जाने पर कि दम्पतियों के अलग होने का एक सबसे बड़ा कारण क्या है, एक तलाक़ अटार्नी ने उत्तर दिया: “ईमानदारी से एक दूसरे के साथ बात करने, अपने अंतरतम विचारों को प्रकट करने और एक दूसरे को अपना सबसे अच्छा मित्र समझने की असमर्थता।” जी हाँ, संचार एक मज़बूत विवाह की प्राण-शक्ति है। जैसा बाइबल कहती है, “बिना सम्मति [अंतरंग वार्तालाप, NW] की कल्पनाएं निष्फल हुआ करती हैं।” (नीतिवचन १५:२२) पतियों और पत्नियों को ‘अंतरंग मित्र’ होना चाहिए। उन्हें एक स्नेही, घनिष्ठ सम्बन्ध का आनन्द लेना चाहिए। (नीतिवचन २:१७) लेकिन, अनेक दम्पति संचार करना कठिन पाते हैं, और इस प्रकार नाराज़गी बढ़ती जाती है जब तक कि विनाशक क्रोध न फूट पड़े। या विवाह-साथी शायद कृत्रिम शिष्टाचार के पतले परदे के पीछे छिप जाते हैं, और अपने आपको भावात्मक रूप से एक दूसरे से दूर कर लेते हैं।
११. किस प्रकार पति-पत्नी के बीच संचार बेहतर बनाया जा सकता है?
११ प्रतीयमानतः इस समस्या का एक भाग यह है कि अकसर पुरुषों और स्त्रियों की संचार-शैली भिन्न होती है। ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकांश स्त्रियाँ आसानी से भावनाओं की चर्चा कर लेती हैं, जबकि सामान्य रूप से पुरुष तथ्यों की चर्चा करना पसन्द करते हैं। स्त्रियाँ समानुभूति दिखाने और भावात्मक समर्थन देने के लिए ज़्यादा प्रवृत्त होती हैं, जबकि पुरुष समाधान ढूँढने और प्रस्तुत करने के लिए प्रवृत्त होते हैं। फिर भी, जहाँ दोनों साथी ‘सुनने के लिये तत्पर और बोलने में धीरे और क्रोध में धीमे’ होने के लिए दृढ़-संकल्प होते हैं, वहाँ अच्छे संचार की संभावना होती है। (याकूब १:१९) एक दूसरे की आँखों में देखिए और वास्तव में ध्यान से सुनिए। विचारशील प्रश्नों द्वारा एक दूसरे के मन की बातें निकलवाइए। (१ शमूएल १:८; नीतिवचन २०:५ से तुलना कीजिए।) जब आपका साथी एक समस्या बताता है तो एक शीघ्र समाधान प्रस्तुत करने की कोशिश करने के बजाय, ध्यान से सुनिए और मामलों को सुलझाने के लिए कार्य कीजिए। और ईश्वरीय मार्गदर्शन पाने के लिए नम्रता से एक साथ प्रार्थना कीजिए।—भजन ६५:२; रोमियों १२:१२.
१२. किस प्रकार मसीही साथी एक दूसरे के लिए समय निकाल सकते हैं?
१२ कभी-कभी जीवन के तनावों और खिंचावों के कारण लगता है कि विवाह-साथियों के पास अर्थपूर्ण वार्तालाप के लिए समय या शक्ति नहीं रहती। लेकिन, यदि मसीहियों को अपना विवाह आदरणीय रखना है और उसे कलंक से बचाना है, तो उन्हें एक दूसरे के क़रीब रहना है। उन्हें अपने बंधन को प्रिय और मूल्यवान समझना चाहिए, और इसके लिए तथा एक दूसरे के लिए समय निकालना चाहिए। (कुलुस्सियों ४:५ से तुलना कीजिए।) कुछ लोगों के लिए, हितकर वार्तालाप करने के लिए समय निकालने का सरल समाधान सिर्फ़ टी.वी. बंद करना हो सकता है। नियमित रूप से एक साथ बैठकर एक प्याला चाय या कॉफ़ी पीना विवाह-साथियों को भावात्मक रूप से संचार करते रहने में मदद कर सकता है। ऐसे अवसरों पर वे विभिन्न पारिवारिक मामलों पर “सम्मति” कर सकते हैं। (नीतिवचन १३:१०) और इससे पहले कि छोटी चिड़चिड़ाहटें और ग़लतफ़हमियाँ तनाव का मुख्य स्रोत बन जाएँ उन पर बात कर लेने की आदत विकसित करना कितनी बुद्धिमानी है!—मत्ती ५:२३, २४; इफिसियों ४:२६ से तुलना कीजिए।
१३. (क) खुलकर और ईमानदारी से बात करने में यीशु ने क्या उदाहरण रखा? (ख) कौन-से कुछ तरीक़ों से विवाह-साथी एक दूसरे के क़रीब आ सकते हैं?
१३ एक पुरुष ने स्वीकार किया: “असल में अपने विचार व्यक्त करना और जैसा मैं महसूस करता हूँ, उसे असल में ठीक वैसा ही [अपनी पत्नी को] बताना मेरे लिए अकसर कठिन होता है।” लेकिन, आत्म-प्रकटन घनिष्ठता विकसित करने की एक महत्त्वपूर्ण कुँजी है। नोट कीजिए कि यीशु ने अपने दुल्हन वर्ग के भावी सदस्यों के साथ कितना खुलकर और ईमानदारी से बात की। उसने कहा: “अब से मैं तुम्हें दास न कहूंगा, क्योंकि दास नहीं जानता, कि उसका स्वामी क्या करता है: परन्तु मैं ने तुम्हें मित्र कहा है, क्योंकि मैं ने जो बातें अपने पिता से सुनीं, वे सब तुम्हें बता दीं।” (यूहन्ना १५:१५) सो अपने विवाह-साथी को एक मित्र समझिए। अपने साथी पर भरोसे के साथ अपनी भावनाएँ व्यक्त कीजिए। “प्रेम की” सरल, निष्कपट “अभिव्यक्तियाँ” करने का प्रयास कीजिए। (श्रेष्ठगीत १:२, NW) कभी-कभी खुला संचार अजीब लग सकता है, लेकिन जब दोनों विवाह-साथी पर्याप्त प्रयास करते हैं, उनके विवाह को एक स्थायी बंधन बनाने की ओर काफ़ी कुछ निष्पन्न होगा।
मतभेदों से निपटना
१४, १५. झगड़ों से किस प्रकार दूर रहा जा सकता है?
१४ समय-समय पर सच्चे मतभेद निश्चित ही उठेंगे। लेकिन आपके घर को ‘झगड़ों रगड़ों से भरे घर’ में विकृत होने की ज़रूरत नहीं। (नीतिवचन १७:१) ध्यान रखिए कि नाज़ुक मामलों पर उस समय चर्चा न करें जब शायद बच्चे सुन सकते हैं, और अपने साथी की भावनाओं का लिहाज़ कीजिए। जब राहेल ने अपनी बाँझ अवस्था पर शोक व्यक्त किया और याकूब से उसे सन्तान देने को कहा, तो उसने क्रोधित होकर प्रतिक्रिया दिखायी: “क्या मैं परमेश्वर हूं? तेरी कोख तो उसी ने बन्द कर रखी है।” (उत्पत्ति ३०:१, २) यदि घरेलू मुश्किलें खड़ी होती हैं, तो व्यक्ति की कटु समालोचना करने के बजाय समस्या का समाधान करने के लिए कार्य कीजिए। एक व्यक्तिगत चर्चा के दौरान, ‘बिना सोच-विचार के बोलने’ या अकारण एक दूसरे को टोकने से दूर रहिए।—नीतिवचन १२:१८.
१५ यह सच है कि अपने दृष्टिकोण के बारे में आपकी तीव्र भावनाएँ हो सकती हैं, लेकिन इन्हें “कड़वाहट और प्रकोप और क्रोध, और कलह, और निन्दा” के बिना व्यक्त किया जा सकता है। (इफिसियों ४:३१) एक पति कहता है, “अपनी समस्याओं की चर्चा सामान्य आवाज़ में कीजिए। यदि आप में से एक क्रोध के कारण ऊँची आवाज़ में बोलने लगता है, तो चर्चा को रोक दीजिए। थोड़े समय बाद लौटिए। फिर से शुरू कीजिए।” नीतिवचन १७:१४ यह अच्छी सलाह देता है: “झगड़ा बढ़ने से पहिले उसको छोड़ देना उचित है।” जब आप दोनों शान्त हो गए हों तो फिर से बातों पर चर्चा करने की कोशिश कीजिए।
एक दूसरे के प्रति वफ़ादार रहिए
१६. परस्त्रीगमन एक इतनी गंभीर बात क्यों है?
१६ इब्रानियों १३:४ कहता है: “विवाह सब में आदर की बात समझी जाए, और बिछौना निष्कलंक रहे; क्योंकि परमेश्वर व्यभिचारियों, और परस्त्रीगामियों का न्याय करेगा।” परस्त्रीगमन परमेश्वर के विरुद्ध पाप है। यह विवाह को भी हानि पहुँचाता है। (उत्पत्ति ३९:९) एक विवाह सलाहकार लिखती है: “परस्त्रीगमन का पता चल जाने के बाद यह पूरे परिवार पर एक भारी तूफ़ान की तरह आ जाता है, घरानों को नष्ट कर देता है, भरोसा और आत्म-सम्मान चूर-चूर कर देता है, [और] बच्चों को हानि पहुँचाता है।” इसके परिणामस्वरूप गर्भावस्था या लैंगिक रूप से फैलनेवाली बीमारी भी हो सकती है।
१७. किस प्रकार व्यभिचारी प्रवृत्तियों से दूर रहा जा सकता है या उन्हें ठुकराया जा सकता है?
१७ सेक्स के बारे में संसार का भ्रष्ट दृष्टिकोण पुस्तकों, टेलीविज़न, और फ़िल्मों में प्रस्तुत किया जाता है, और इसे आत्मसात् करने के द्वारा कुछ लोग व्यभिचारी प्रवृत्तियों को विकसित करते हैं। (गलतियों ६:८) लेकिन, अनुसंधायक कहते हैं कि सामान्यतः परस्त्रीगमन मात्र सेक्स की अभिलाषा के कारण नहीं बल्कि व्यक्ति की इस कल्पना के कारण परिणित होता है कि उसे यह साबित करने की ज़रूरत है कि वह अभी तक आकर्षक है या इसलिए कि वह ज़्यादा प्यार पाने की अभिलाषा करता है। (नीतिवचन ७:१८ से तुलना कीजिए।) कारण चाहे जो भी हो, एक मसीही को अनैतिक अभिकल्पनाएँ ठुकरानी चाहिए। अपने साथी के साथ ईमानदारी से अपनी भावनाओं की चर्चा कीजिए। ज़रूरत हो तो कलीसिया के प्राचीनों की मदद माँगिए। ऐसा करना पाप में गिरने से बचा सकता है। इसके अतिरिक्त, मसीहियों को विपरीत लिंग के व्यक्तियों के साथ व्यवहार करते समय सावधानी बरतने की ज़रूरत है। यह शास्त्रीय सिद्धान्तों के विरुद्ध होगा कि एक व्यक्ति के साथ विवाहित हों लेकिन दूसरे को वासना की दृष्टि से देखें। (अय्यूब ३१:१; मत्ती ५:२८) मसीहियों को सहकर्मियों के साथ भावात्मक लगाव विकसित करने के बारे में ख़ासकर सतर्क रहना चाहिए। ऐसे सम्बन्धों को मैत्रीपूर्ण लेकिन उद्देश्यपूर्ण रखिए।
१८. एक विवाह में लैंगिक समस्याओं के मूल में अकसर क्या होता है, और इन्हें कैसे सुलझाया जा सकता है?
१८ एक और भी बड़ा बचाव है अपने साथी के साथ एक स्नेही, खुला सम्बन्ध। अनेक अनुसंधायक कहते हैं कि विवाह में लैंगिक समस्याएँ शायद ही कभी शारीरिक क़िस्म की होती हैं लेकिन वे सामान्यतः अल्प संचार का उपफल होती हैं। जब एक दम्पति खुलकर संचार करता है और वैवाहिक धर्म को एक कर्तव्य के रूप में निभाने के बजाय प्रेम की अभिव्यक्ति के रूप में निभाता है, तो इस क़िस्म की समस्याएँ शायद ही कभी होती हैं।a ऐसी उचित परिस्थितियों में घनिष्ठ सम्बन्ध विवाह बंधन को और मज़बूत बनाने में मदद कर सकता है।—१ कुरिन्थियों ७:२-५; १०:२४.
१९. “सिद्धता का कटिबन्ध” क्या है, और इसका एक विवाह पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?
१९ मसीही कलीसिया में प्रेम “सिद्धता का कटिबन्ध” है। प्रेम विकसित करने के द्वारा परमेश्वर का भय माननेवाला एक विवाहित दम्पति ‘एक दूसरे की सह सकता है, और एक दूसरे के अपराध क्षमा कर सकता है।’ (कुलुस्सियों ३:१३, १४) सैद्धान्तिक प्रेम दूसरों का हित चाहता है। (१ कुरिन्थियों १३:४-८) ऐसा प्रेम विकसित कीजिए। यह आपको आपके विवाह बंधन को मज़बूत बनाने में मदद करेगा। अपने वैवाहिक जीवन में बाइबल सिद्धान्तों पर अमल कीजिए। यदि आप ऐसा करते हैं, तो आपका विवाह एक स्थायी बंधन साबित होगा और यहोवा परमेश्वर को स्तुति और महिमा लाएगा।
[फुटनोट]
a अगस्त १, १९९३ की द वॉचटावर में छपे लेख “संचार—मात्र वार्तालाप से अधिक” ने दिखाया कि इस क्षेत्र में दम्पति किस प्रकार समस्याओं को पार कर सकते हैं।
आप कैसे उत्तर देंगे?
▫ विवाह को एक स्थायी बंधन क्यों होना चाहिए?
▫ मुखियापन और अधीनता के बारे में बाइबलीय दृष्टिकोण क्या है?
▫ किस प्रकार विवाहित दम्पति संचार को बेहतर बना सकते हैं?
▫ किस प्रकार दम्पति मसीही तरीक़े से मतभेदों को निपटा सकते हैं?
▫ विवाह बंधन को मज़बूत बनाने में कौन-सी बात मदद करेगी?
[पेज 25 पर तसवीरें]
यदि पत्नी को नौकरी करने की ज़रूरत है, तो एक मसीही पति अपनी पत्नी पर अत्यधिक भार नहीं पड़ने देगा