बाइबल वास्तव में जो है उसे उसी रूप में स्वीकार कीजिए
“हम भी परमेश्वर का धन्यवाद निरन्तर करते हैं; कि जब हमारे द्वारा परमेश्वर के सुसमाचार का वचन तुम्हारे पास पहुंचा, तो तुम ने उसे मनुष्यों का नहीं, परन्तु परमेश्वर का वचन समझकर (और सचमुच यह ऐसा ही है) ग्रहण किया: और वह तुम में जो विश्वास रखते हो, प्रभावशाली है।”—१ थिस्सलुनीकियों २:१३.
१. बाइबल में किस प्रकार की जानकारी उस पुस्तक को सचमुच उत्कृष्ट बनाती है?
पवित्र बाइबल संसार में सबसे बड़े पैमाने पर अनुवादित और व्यापक रूप से वितरित पुस्तक है। यह सहज ही साहित्य की श्रेष्ठ रचनाओं में से एक मानी जाती है। लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण, बाइबल वह मार्गदर्शन प्रदान करती है जिसकी अत्यावश्यक ज़रूरत हर जाति और हर राष्ट्र के लोगों को है, चाहे उनका कोई भी पेशा या जीवन में कोई भी पद क्यों न हो। (प्रकाशितवाक्य १४:६, ७) एक ऐसे तरीक़े से जो दोनों मन और हृदय को संतुष्ट करता है, बाइबल ऐसे प्रश्नों का उत्तर देती है जैसे: मानव जीवन का उद्देश्य क्या है? (उत्पत्ति १:२८; प्रकाशितवाक्य ४:११) मानवजाति की सरकारें स्थायी शांति और सुरक्षा लाने में समर्थ क्यों नहीं हुई हैं? (यिर्मयाह १०:२३; प्रकाशितवाक्य १३:१, २) लोग मरते क्यों हैं? (उत्पत्ति २:१५-१७; ३:१-६; रोमियों ५:१२) इस अशांत संसार के बीच, हम कैसे जीवन की समस्याओं का सफलतापूर्वक सामना कर सकते हैं? (भजन ११९:१०५; नीतिवचन ३:५, ६) भविष्य में हमारे लिए क्या रखा है?—दानिय्येल २:४४; प्रकाशितवाक्य २१:३-५.
२. बाइबल हमारे प्रश्नों के पूर्णतया विश्वसनीय उत्तर क्यों प्रदान करती है?
२ बाइबल ऐसे प्रश्नों का उत्तर अधिकार से क्यों देती है? क्योंकि यह परमेश्वर का वचन है। परमेश्वर ने इसे लिखने के लिए मनुष्यों का इस्तेमाल किया, लेकिन जैसे २ तीमुथियुस ३:१६ में स्पष्ट रूप से कहा गया है, “हर एक पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है।” यह मानवी घटनाओं की निजी व्याख्या का उत्पादन नहीं है। “भविष्यद्वाणी [आनेवाली घटनाओं की घोषणाएँ, ईश्वरीय आदेश, बाइबल के नैतिक स्तर] मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई पर भक्त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्वर की ओर से बोलते थे।”—२ पतरस १:२१.
३. (क) उदाहरण दीजिए जो दिखाते हैं कि विभिन्न देशों में लोगों ने बाइबल को कितना अधिक महत्त्व दिया है? (ख) शास्त्र को पढ़ने के लिए अनेक व्यक्ति क्यों अपनी जान को जोखिम में डालने के इच्छुक थे?
३ बाइबल के महत्त्व को समझते हुए, अनेक लोगों ने इसे प्राप्त करने और पढ़ने के लिए क़ैद, यहाँ तक कि मृत्यु का जोखिम भी उठाया है। अतीत में कैथोलिक स्पेन में यह सच था, जहाँ पादरियों को डर था कि यदि लोग अपनी भाषा में बाइबल को पढ़ेंगे, तो उनका प्रभाव कमज़ोर पड़ जाएगा; यह अल्बेनिया में भी सच था, जहाँ नास्तिकवादी शासन के अधीन सारे धार्मिक प्रभाव को ख़त्म करने के लिए सख़्त कार्यवाही की गयी। फिर भी, परमेश्वर का भय माननेवाले व्यक्तियों ने शास्त्र की प्रतियों को सँजोकर रखा, उन्हें पढ़ा, और उन्हें एक दूसरे के साथ बाँटा। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान, ज़ाकसनहाउज़न नज़रबन्दी शिविर में, एक बाइबल एक क़ैदखाने से दूसरे क़ैदखाने तक सावधानीपूर्वक पार की जाती थी (हालाँकि यह वर्जित था), और जिनके लिए यह सुलभ थी, उन्होंने दूसरों के साथ बाँटने के लिए कुछ भागों को कन्ठस्थ कर लिया। १९५० के दशक के दौरान पूर्व जर्मनी में, जो तब साम्यवादी था, यहोवा के साक्षियों ने, जिन्हें अपने विश्वास के कारण क़ैद किया गया था, लम्बी कालकोठरी की सज़ा का ख़तरा उठाया जब उन्होंने रात को पढ़ने के लिए एक क़ैदी से दूसरे क़ैदी तक बाइबल के छोटे भागों को पहुँचाया। उन्होंने ऐसा क्यों किया? क्योंकि उन्होंने पहचाना कि बाइबल परमेश्वर का वचन है, और वे जानते थे कि “मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं” बल्कि “जो जो वचन यहोवा के मुंह से निकलते हैं उन ही से वह जीवित रहता है।” (व्यवस्थाविवरण ८:३) जबकि उन साक्षियों पर अविश्वसनीय क्रूरता की जा रही थी, बाइबल में अभिलिखित इन अभिव्यक्तियों ने उन्हें आध्यात्मिक रूप से जीवित रहने के लिए समर्थ किया।
४. हमारे जीवन में बाइबल का क्या स्थान होना चाहिए?
४ बाइबल कभी-कभार परामर्श लेने के लिए मात्र शेल्फ़ पर रखी जानेवाली एक पुस्तक नहीं है, ना ही वह केवल उस वक़्त इस्तेमाल करने के लिए है जब संगी विश्वासी उपासना के लिए इकट्ठे होते हैं। जिन परिस्थितियों का हम सामना करते हैं, उन पर प्रकाश डालने और चलने के लिए हमें सही मार्ग दिखाने के लिए हर रोज़ इसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए।—भजन २५:४, ५.
पढ़ने और समझने के लिए
५. (क) यदि यह संभव है, तो हम सभी के पास क्या होना चाहिए? (ख) प्राचीन इस्राएल में, लोग कैसे पता लगाते थे कि शास्त्र में क्या था? (ग) बाइबल पठन के प्रति आपकी मनोवृत्ति को भजन १९:७-११ कैसे प्रभावित करता है?
५ हमारे समय में, बाइबल की प्रतियाँ अधिकांश जगहों में सहज ही उपलब्ध हैं, और हम प्रहरीदुर्ग के हर पाठक से एक प्रति प्राप्त करने का आग्रह करते हैं। उस समय के दौरान जब बाइबल लिखी जा रही थी, कोई मुद्रण यन्त्र नहीं थे। सामान्यतः लोगों के पास वैयक्तिक प्रतियाँ नहीं थीं। लेकिन यहोवा ने प्रबन्ध किया था कि उसके सेवक लिखी गयी बातों को सुनें। अतः, निर्गमन २४:७ (NHT) रिपोर्ट करता है, यहोवा ने जो आदेश दिया था, मूसा के उसे लिख लिया। उसके बाद, उसने “वाचा की पुस्तक हाथ में ली, और लोगों को पढ़कर सुनाई।” (तिरछे टाइप हमारे) वे सीनै पर्वत पर अलौकिक प्रदर्शनों के दर्शक रहे थे, इसकी वजह से उन्होंने पहचाना कि मूसा ने जो उन्हें पढ़कर सुनाया था वह परमेश्वर की ओर से था और कि उन्हें इस जानकारी को जानने की ज़रूरत थी। (निर्गमन १९:९, १६-१९; २०:२२) हमें यह भी जानने की ज़रूरत है कि परमेश्वर के वचन में क्या अभिलिखित है।—भजन १९:७-११.
६. (क) इस्राएल की जाति के प्रतिज्ञात देश में प्रवेश करने से पहले, मूसा ने क्या किया? (ख) हम मूसा के उदाहरण का अनुकरण कैसे कर सकते हैं?
६ जब इस्राएल की जाति प्रतिज्ञात देश में प्रवेश करने के लिए यरदन नदी पार करने की तैयारी कर रही थी, और इस प्रकार वीराने में अपने खानाबदोश जीवन को पीछे छोड़ रही थी, तब यह उनके लिए उचित था कि वे यहोवा की व्यवस्था और उनके साथ उसके व्यवहार पर पुनर्विचार करें। परमेश्वर की आत्मा द्वारा प्रेरित, मूसा ने उनके साथ व्यवस्था पर पुनर्विचार किया। उसने उन्हें व्यवस्था के विवरणों की याद दिलायी, और उसने उन अन्तर्निहित सिद्धान्तों और मनोवृत्तियों को भी विशिष्ट किया जो यहोवा के साथ उनके सम्बन्ध को प्रभावित करते। (व्यवस्थाविवरण ४:९, ३५; ७:७, ८; ८:१०-१४; १०:१२, १३) आज जब हम नयी नियुक्तियाँ लेते हैं या जीवन में नयी स्थितियों का सामना करते हैं, तो इस पर विचार करना हमारे लिए भी अच्छा होगा कि हम जो कर रहे हैं उस पर शास्त्र की सलाह का क्या प्रभाव होना चाहिए।
७. इस्राएलियों द्वारा यरदन को पार करने के थोड़े समय पश्चात्, उनके मन और हृदय में यहोवा की व्यवस्था को बिठाने के लिए क्या किया गया था?
७ इस्राएल का यरदन नदी को पार करने के थोड़े समय पश्चात्, मूसा के ज़रिए यहोवा ने उनसे जो कहा था उस पर पुनर्विचार करने के लिए लोग फिर से इकट्ठे हुए। यह जाति यरूशलेम से तक़रीबन ५० किलोमीटर उत्तर की ओर एकत्रित हुई। आधे गोत्र एबाल पर्वत के सामने, और आधे गिरिज्जीम पर्वत के सामने थे। वहाँ यहोशू ने “आशीष और शाप की व्यवस्था के सारे वचन . . . पढ़कर सुना दिए।” अतः, परदेशी लोगों के साथ पुरुष, स्त्रियाँ, और बाल-बच्चों ने उन नियमों के बारे में एक समयोचित पुनःकथन सुना जो उनके आचरण को निर्धारित करता जिसका परिणाम यहोवा का अस्वीकरण या यदि वे यहोवा की आज्ञा मानते तो प्राप्त होनेवाली आशिष होता। (यहोशू ८:३४, ३५) उन्हें यहोवा के दृष्टिकोण से क्या अच्छा था और क्या बुरा था इसे स्पष्ट रूप से मन में रखने की ज़रूरत थी। इसके अतिरिक्त, उन्हें अपने हृदय में अच्छाई के प्रति प्रेम और बुराई के प्रति घृणा को बिठाने की ज़रूरत थी, जैसा कि हम में से प्रत्येक जन को आज करना है।—भजन ९७:१०; ११९:१०३, १०४; आमोस ५:१५.
८. इस्राएल में निश्चित राष्ट्रीय सम्मेलनों में परमेश्वर के वचन के नियतकालिक पठन का क्या लाभ था?
८ उन ऐतिहासिक अवसरों पर व्यवस्था के पठन के अतिरिक्त, व्यवस्थाविवरण ३१:१०-१२ में परमेश्वर के वचन के नियमित पठन के लिए एक प्रबन्ध दिया गया था। हर सातवें साल परमेश्वर के वचन का पठन सुनने के लिए सम्पूर्ण जाति को इकट्ठा होना था। इससे उन्हें आध्यात्मिक भोजन प्रदान किया गया। इस बात ने उनके मन और हृदय में वंश के बारे में की गयी प्रतिज्ञाएँ सजीव रखीं और इस प्रकार विश्वासी जनों को मसीहा तक निर्दिष्ट करने का कार्य किया। आध्यात्मिक पोषण के ये प्रबन्ध, जो तब स्थापित किए गए थे जब इस्राएल वीराने में था, उस समय बन्द नहीं हुए जब उन्होंने प्रतिज्ञात देश में प्रवेश किया। (१ कुरिन्थियों १०:३, ४) इसके बजाय, परमेश्वर का वचन भविष्यवक्ताओं के अतिरिक्त प्रकटीकरणों के सम्मिलित होने से अधिक अर्थपूर्ण बन गया था।
९. (क) क्या इस्राएली सिर्फ़ तभी शास्त्र पढ़ते थे जब वे बड़े समूहों में इकट्ठे होते थे? समझाइए। (ख) वैयक्तिक परिवारों में शास्त्र से उपदेश कैसे दिए जाते थे, और किस मक़सद से?
९ परमेश्वर के वचन की सलाह पर पुनर्विचार सिर्फ़ उन समयों तक ही सीमित नहीं होना था जब लोग एक बड़े समूह में इकट्ठे होते। परमेश्वर के वचन के भाग और उसमें सम्मिलित सिद्धान्तों की चर्चा हर रोज़ करनी थी। (व्यवस्थाविवरण ६:४-९) आज अधिकांश जगहों में, युवा लोगों के पास बाइबल की एक निजी प्रति होना संभव है और ऐसा करना उनके लिए बहुत लाभदायक है। लेकिन प्राचीन इस्राएल में, ऐसा नहीं था। उस वक़्त, जब माता-पिता परमेश्वर के वचन से उपदेश देते थे, तब उन्होंने जो कन्ठस्थ किया था और उन्होंने जो सच्चाइयाँ अपने हृदय में सँजोए रखी थीं, साथ ही व्यक्तिगत रूप से उन्होंने जो कुछ छोटे उद्धरण शायद लिखे हों, उन पर निर्भर होना था। बार-बार दोहराने के द्वारा, वे अपने बच्चों में यहोवा और उसके मार्गों के लिए प्रेम विकसित करने का प्रयास करते। उनका मक़सद सिर्फ़ ज्ञान से भरा एक दिमाग़ का होना नहीं था बल्कि परिवार के प्रत्येक सदस्य को एक ऐसे तरीक़े से जीने के लिए मदद करना था जिससे यहोवा और उसके वचन के लिए प्रेम प्रकट हो।—व्यवस्थाविवरण ११:१८, १९, २२, २३.
आराधनालय में शास्त्र पठन
१०, ११. आराधनालयों में शास्त्र पठन का कौन-से कार्यक्रम का पालन किया जाता था, और इन अवसरों को यीशु ने किस दृष्टिकोण से देखा?
१० यहूदियों का बाबुल में निर्वासन में ले जाए जाने के कुछ समय बाद, उपासना के स्थानों के तौर पर आराधनालय स्थापित किए गए। इन सभा स्थानों में परमेश्वर के वचन के पढ़े जाने और चर्चा किए जाने के लिए, शास्त्र की और प्रतियाँ बनायी गयीं। कुछ ६,००० प्राचीन हस्तलिखित प्रतियों का, जिनमें इब्रानी शास्त्र के भाग थे, आज तक बने रहने का यह एक कारण था।
११ आराधनालय उपासना का एक महत्त्वपूर्ण भाग था तोराह का पठन, जो आधुनिक-दिन बाइबल की पहली पाँच पुस्तकों के तुल्य है। प्रेरितों १५:२१ कहता है कि सा.यु. पहली शताब्दी में, ऐसा पठन हर सब्त के दिन किया जाता था, और मिश्नाह दिखाता है कि दूसरी शताब्दी तक, सप्ताह के दूसरे और पाँचवे दिन पर भी तोराह पठन होते थे। अनेक व्यक्ति नियुक्त भागों को एक के बाद एक पढ़ने में हिस्सा लेते थे। बाबुल में रहनेवाले यहूदियों का रिवाज़ था सम्पूर्ण तोराह को एक साल में पढ़ना; पैलस्टाइन में पठन को तीन साल की अवधि में पूरा करने का रिवाज़ था। भविष्यवक्ताओं की पुस्तकों से एक भाग भी पढ़ा और समझाया जाता था। यीशु जहाँ रहता था उस स्थान में सब्त बाइबल-पठन कार्यक्रमों के लिए उपस्थित होना उसका रिवाज़ था।—लूका ४:१६-२१.
व्यक्तिगत प्रतिक्रिया और अनुप्रयोग
१२. (क) जब मूसा ने लोगों को व्यवस्था पढ़कर सुनाई, तो लोगों को कैसे लाभ हुआ? (ख) लोगों ने कैसे प्रतिक्रिया दिखाई?
१२ उत्प्रेरित शास्त्र का पठन मात्र औपचारिकता के लिए नहीं था। यह मात्र लोगों की जिज्ञासा को संतुष्ट करने के लिए नहीं किया जाता था। जब मूसा ने सीनै पर्वत के सामनेवाले मैदान पर इस्राएल को “वाचा की पुस्तक” पढ़कर सुनायी, तब उसने ऐसा इसलिए किया कि वे परमेश्वर के सामने अपनी ज़िम्मेदारियों को जानते और इन्हें पूरा करते। क्या वे ऐसा करते? पठन ने प्रतिक्रिया की माँग की। लोगों ने उसे समझा, और वे बोल उठे। उन्होंने कहा: “जो कुछ यहोवा ने कहा है उस सब को हम करेंगे, और उसकी आज्ञा मानेंगे।”—निर्गमन २४:७. साथ ही निर्गमन १९:८ और २४:३ से तुलना कीजिए।
१३. जब यहोशू अवज्ञाकारिता के लिए शापों को पढ़ रहा था, तब लोगों को क्या करना था, और किस उद्देश्य से?
१३ बाद में, जब यहोशू ने जाति को प्रतिज्ञात आशिषें और शाप, या अभिशाप, पढ़कर सुनाए, तो प्रतिक्रिया की माँग की गयी। प्रत्येक अभिशाप के बाद, यह आदेश दिया गया था: “तब सब लोग कहें, आमीन।” (व्यवस्थाविवरण २७:४-२६) इस प्रकार, प्रत्येक विशिष्ट विचाराधीन मुद्दे पर, उन्होंने उद्धृत ग़लतियों पर यहोवा की दण्डाज्ञा से अपनी सहमति व्यक्त की। वह क्या ही प्रभावशाली घटना रही होगी जब सम्पूर्ण जाति अपनी सहमति से गूँज उठी!
१४. नहेमायाह के दिनों में, व्यवस्था का सार्वजनिक पठन विशेषकर लाभदायक क्यों साबित हुआ?
१४ नहेमायाह के दिनों में, जब सब लोग यरूशलेम में व्यवस्था को सुनने के लिए इकट्ठे हुए थे, तो उन्होंने देखा कि वे वहाँ लिखे गए आदेशों का पूरी तरह से पालन नहीं कर रहे थे। उस अवसर पर, उन्होंने जो सीखा, उन्होंने उसे तत्परता से लागू किया। परिणाम क्या था? “बहुत बड़ा आनन्द।” (नहेमायाह ८:१३-१७) पर्व के दौरान एक सप्ताह दैनिक बाइबल पठन करने के बाद, वे समझ गए कि अब भी काफ़ी कुछ करने की आवश्यकता थी। उन्होंने प्रार्थनापूर्वक इब्राहीम के दिनों से अपने लोगों के साथ यहोवा के व्यवहार के इतिहास पर पुनर्विचार किया। इन सब बातों ने उन्हें व्यवस्था की माँगों को पूरा करने, परदेशियों के साथ अन्तर्विवाह से दूर रहने, और मन्दिर और उसकी सेवा को बनाए रखने की बाध्यता को स्वीकारने के लिए शपथ खाने को प्रेरित किया।—नहेमायाह, अध्याय ८-१०.
१५. व्यवस्थाविवरण ६:६-९ में दिए गए आदेश कैसे दिखाते हैं कि परिवारों में, परमेश्वर के वचन से उपदेश को मात्र औपचारिक नहीं होना था?
१५ समान रीति से, परिवार के अन्दर, शास्त्र को सिखाना मात्र औपचारिकता नहीं थी। जैसे पहले देखा जा चुका है, व्यवस्थाविवरण ६:६-९ में लाक्षणिक शैली में, लोगों से ‘परमेश्वर के शब्दों को अपने हाथ पर चिन्हानी करके बान्धने’ के लिए कहा गया था—इस प्रकार यहोवा के मार्गों के लिए अपने प्रेम को उदाहरण और कार्यों द्वारा प्रदर्शित करना था। और उन्हें परमेश्वर के शब्दों को ‘अपनी आँखों के बीच टीके’ के तौर पर रखना था—इस प्रकार शास्त्र में सम्मिलित सिद्धान्तों को निरंतर ध्यान में रखना था और अपने निर्णयों के लिए इन्हें आधार के तौर पर इस्तेमाल करना था। (निर्गमन १३:९, १४-१६ में इस्तेमाल की गयी भाषा से तुलना कीजिए।) उनको “इन्हें अपने अपने घर के चौखट की बाजुओं और अपने फाटकों पर लिखना” था—इस प्रकार अपने घर और अपने समुदायों की पहचान ऐसे स्थानों के तौर पर करानी थी जहाँ परमेश्वर का वचन सम्मानित था और लागू किया जाता था। दूसरे शब्दों में, अपनी जीवन-शैली के द्वारा उन्हें इस बात का बहुतायत में सबूत देना था कि वे यहोवा के धार्मिक नियमों से प्रेम करते और उन्हें लागू करते थे। यह कितना लाभदायक हो सकता है! क्या हमारे घराने के रोज़मर्रा जीवन में परमेश्वर के वचन को उस क़िस्म की प्रमुखता दी जाती है? अफ़सोस की बात है, यहूदियों ने इन सब को मात्र औपचारिकता में बदल दिया, शास्त्रवचन की डिब्बियों को ऐसे पहनते थे मानो वे तावीज़ हों। उनकी उपासना हृदय से निकलना बन्द हो गयी और यहोवा द्वारा अस्वीकार की गयी।—यशायाह २९:१३, १४; मत्ती १५:७-९.
उन लोगों की ज़िम्मेदारी जो निरीक्षण के पद पर हैं
१६. यहोशू के लिए नियमित शास्त्र पठन क्यों महत्त्वपूर्ण था?
१६ शास्त्र पठन के सम्बन्ध में, उन लोगों पर ख़ास ध्यान दिया जाता था जो जाति के अध्यक्ष थे। यहोशू से यहोवा ने कहा: ‘जो व्यवस्था में दिया गया है उन सब के अनुसार करने में चौकसी करना।’ अपनी उस ज़िम्मेदारी को पूरा करने हेतु, उससे कहा गया: “इसी में दिन रात ध्यान दिए रहना, . . . क्योंकि ऐसा ही करने से तेरे सब काम सुफल होंगे, और तू प्रभावशाली होगा।” (यहोशू १:७, ८) जैसा कि आज किसी भी मसीही ओवरसियर के बारे में सच है, यहोशू द्वारा शास्त्र का नियमित पठन उसे यहोवा के उन विशिष्ट आदेशों को स्पष्ट रूप से मन में रखने में मदद करता जो उसने अपने लोगों को दिए थे। यहोशू को यह भी समझने की ज़रूरत थी कि यहोवा ने विभिन्न परिस्थितियों में अपने सेवकों के साथ कैसे व्यवहार किया था। जैसे-जैसे वह परमेश्वर के उद्देश्य के कथन पढ़ता गया, उसके लिए यह महत्त्वपूर्ण था कि वह उस उद्देश्य के सम्बन्ध में अपनी ज़िम्मेदारी के बारे में सोचे।
१७. (क) राजाओं को यहोवा द्वारा बताए गए शास्त्र पठन के तरीक़े से लाभ प्राप्त करने के लिए, अपने पठन के साथ-साथ किस बात की ज़रूरत थी? (ख) मसीही प्राचीनों के लिए नियमित बाइबल पठन और मनन क्यों बहुत महत्त्वपूर्ण है?
१७ यहोवा ने आदेश दिया कि जो भी व्यक्ति उसके लोगों पर राजा के तौर पर कार्य करेगा, उसे अपने शासन की शुरूआत में, परमेश्वर की व्यवस्था की एक नक़ल बनानी थी और उसे उस प्रतिलिपि पर आधारित होना था जिसे याजक रखते थे। फिर उसे ‘अपने जीवन भर उसको पढ़ना’ था। इसका उद्देश्य मात्र उसकी अन्तर्वस्तुओं को कन्ठस्थ करना नहीं था। बल्कि, इसका उद्देश्य था कि ‘वह अपने परमेश्वर यहोवा का भय मानना सीखे,’ और कि “वह अपने मन में घमण्ड करके अपने भाइयों को तुच्छ न जाने।” (व्यवस्थाविवरण १७:१८-२०) इसके लिए ज़रूरी था कि जो वह पढ़ता था उस पर वह गहन रूप से मनन करे। प्रत्यक्षतः, कुछ राजाओं ने सोचा कि वे प्रशासनिक कार्यों में काफ़ी व्यस्त हैं जिसकी वजह से ऐसा नहीं कर सकते, और उनकी लापरवाही के परिणामस्वरूप पूरी जाति ने दुःख उठाया। मसीही कलीसिया में प्राचीनों की भूमिका निश्चय ही राजाओं जैसी नहीं है। फिर भी, जैसे राजाओं के बारे में सच था, यह अनिवार्य है कि प्राचीन परमेश्वर के वचन को पढ़ें और उस पर मनन करें। उनका ऐसा करना उन्हें अपनी देखरेख में सौंपे गए लोगों के बारे में उचित दृष्टिकोण बनाए रखने में मदद करेगा। यह उन्हें शिक्षकों के तौर पर अपनी ज़िम्मेदारी को एक ऐसे तरीक़े से पूरा करने के लिए भी समर्थ करेगा जो सचमुच परमेश्वर की महिमा करता है और संगी मसीहियों को आध्यात्मिक रीति से मज़बूत करता है।—तीतुस १:९. यूहन्ना ७:१६-१८ से तुलना कीजिए; १ तीमुथियुस १:६, ७ से विषमता कीजिए।
१८. प्रेरित पौलुस द्वारा रखे गए कौन-से उदाहरण का अनुकरण करने के लिए बाइबल का नियमित पठन और अध्ययन हमारी मदद करेगा?
१८ प्रेरित पौलुस, पहली-शताब्दी का मसीही अध्यक्ष, एक ऐसा व्यक्ति था जो उत्प्रेरित शास्त्र को भली-भाँति जानता था। जब उसने प्राचीन थिस्सलुनीके के लोगों को गवाही दी, तो वह उनके साथ शास्त्र से प्रभावकारी रीति से तर्क करने और अर्थ समझने में उनकी मदद करने में समर्थ हुआ। (प्रेरितों १७:१-४) वह निष्कपट श्रोताओं के हृदयों तक पहुँचा। अतः, उसे सुननेवाले अनेक लोग विश्वासी बन गए। (१ थिस्सलुनीकियों २:१३) बाइबल पठन और अध्ययन के आपके कार्यक्रम के परिणामस्वरूप, क्या आप शास्त्र से प्रभावकारी रीति से तर्क करने में समर्थ हैं? आपके जीवन में बाइबल पठन ने जो स्थान लिया है और जिस तरीक़े से आप इसे करते हैं क्या वह प्रमाण देता है कि आप इस बात का सचमुच मूल्यांकन करते हैं कि परमेश्वर के वचन को अपने पास रखने का क्या अर्थ है? अगले लेख में, हम इस बात पर ग़ौर करेंगे कि कैसे उन व्यक्तियों के द्वारा भी, जो काफ़ी व्यस्त हैं, इन प्रश्नों का सकारात्मक उत्तर दिया जा सकता है।
आप कैसे उत्तर देंगे?
◻ बाइबल को पढ़ने के लिए लोग क्यों अपने जीवन और अपनी स्वतंत्रता को जोखिम में डालने के इच्छुक रहे हैं?
◻ परमेश्वर के वचन को सुनने के प्राचीन इस्राएल के लिए बनाए गए प्रबन्धों पर पुनर्विचार करने से, हम कैसे लाभान्वित होते हैं?
◻ बाइबल में जो हम पढ़ते हैं उसका हमें क्या करना चाहिए?
◻ मसीही प्राचीनों के लिए बाइबल पठन और मनन ख़ासकर महत्त्वपूर्ण क्यों है?
[पेज 9 पर तसवीरें]
यहोवा ने यहोशू से कहा: “इसी में दिन रात ध्यान दिए रहना।”