शिक्षण—इसे यहोवा की स्तुति करने के लिए इस्तेमाल कीजिए
“जो अपनी ओर से कुछ कहता है, वह अपनी ही बड़ाई चाहता है; परन्तु जो अपने भेजनेवाले की बड़ाई चाहता है वही सच्चा है।”—यूहन्ना ७:१८.
१. कब और कैसे शिक्षण की प्रक्रिया का आरम्भ हुआ?
शिक्षण का आरम्भ बहुत-बहुत समय पहले हुआ। महान प्रशिक्षक और उपदेशक, यहोवा परमेश्वर के अपने पहिलौठे पुत्र की सृष्टि करने के फ़ौरन् बाद शिक्षण की प्रक्रिया का आरम्भ हुआ। (यशायाह ३०:२०; कुलुस्सियों १:१५) अब एक ऐसा व्यक्ति था जो स्वयं महान प्रशिक्षक से सीख सकता था! पिता की घनिष्ठ संगति में असंख्य सहस्राब्दियों के दौरान, उस पुत्र ने—जो यीशु मसीह के नाम से जाना गया—यहोवा परमेश्वर के गुणों, कार्यों, और उद्देश्यों के बारे में अनमोल शिक्षण प्राप्त किया। बाद में, पृथ्वी पर एक मनुष्य की हैसियत से, यीशु कह सका: “मैं . . . अपने आप से कुछ नहीं करता, परन्तु जैसे मेरे पिता ने मुझे सिखाया, वैसे ही ये बातें कहता हूं।” (तिरछे टाइप हमारे।)—यूहन्ना ८:२८.
२-४. (क) यूहन्ना अध्याय ७ के अनुसार, सा.यु. ३२ में मण्डपों के पर्ब्ब के समय यीशु की उपस्थिति के आस-पास की परिस्थिति क्या थी? (ख) यहूदी यीशु की शिक्षण योग्यता के बारे में उलझन में क्यों थे?
२ यीशु ने उस शिक्षण का इस्तेमाल कैसे किया जिसे उसने प्राप्त किया था? उसने जो सीखा था उसे साढ़े तीन साल की अपनी पार्थिव सेवकाई के दौरान अथक रूप से दूसरे लोगों के साथ बाँटा। लेकिन, यह एक मूल उद्देश्य को पूरा करने के लिए किया गया था। और वह क्या था? आइए हम, यूहन्ना अध्याय ७ में यीशु के शब्दों को जाँचें, जहाँ उसने अपनी शिक्षण के उद्गम और उद्देश्य, दोनों को समझाया।
३ सेटिंग पर ग़ौर कीजिए। यह सा.यु. ३२ का पतझड़ था, यीशु के बपतिस्मे के क़रीब तीन साल बाद का समय। मण्डपों के पर्ब्ब के लिए यहूदी यरूशलेम में इकट्ठा हुए थे। पर्ब्ब के पहले कुछ दिनों के दौरान यीशु के बारे में यहाँ-वहाँ काफ़ी चर्चा हो चुकी थी। जब पर्ब्ब आधा समाप्त हो चुका था, यीशु मन्दिर गया और सिखाने लगा। (यूहन्ना ७:२, १०-१४) हमेशा की तरह, उसने ख़ुद को एक महान शिक्षक साबित किया।—मत्ती १३:५४; लूका ४:२२.
४ यूहन्ना अध्याय ७ की आयत १५ कहती है: “तब यहूदियों ने अचम्भा करके कहा, कि इसे बिन पढ़े विद्या कैसे आ गई?” क्या आप समझ सकते हैं कि वे उलझन में क्यों पड़ गए थे? यीशु ने किसी भी रब्बीनी स्कूल में विद्या हासिल नहीं की थी, सो उनकी राय में वह अशिक्षित था! फिर भी, यीशु आसानी से पवित्र लेखों के भागों को ढूँढ़ कर पढ़ सकता था। (लूका ४:१६-२१) इस गलीली बढ़ई ने उन्हें मूसा की व्यवस्था में शिक्षण भी दिया! (यूहन्ना ७:१९-२३) यह कैसे मुमकिन हुआ?
५, ६. (क) यीशु ने अपने शिक्षण के स्रोत की व्याख्या कैसे दी? (ख) किस तरीक़े से यीशु ने अपने शिक्षण का इस्तेमाल किया?
५ जैसे हम आयत १६ और १७ में पढ़ते हैं, यीशु ने समझाया: “मेरा उपदेश मेरा नहीं, परन्तु मेरे भेजनेवाले का है। यदि कोई उस की इच्छा पर चलना चाहे, तो वह इस उपदेश के विषय में जान जाएगा कि वह परमेश्वर की ओर से है, या मैं अपनी ओर से कहता हूं।” वे जानना चाहते थे कि किसने यीशु को शिक्षण दिया, और उसने उन्हें साफ़-साफ़ कहा कि उसका शिक्षण परमेश्वर की ओर से था!—यूहन्ना १२:४९; १४:१०.
६ यीशु ने अपने शिक्षण का इस्तेमाल कैसे किया? जैसे यूहन्ना ७:१८ में अभिलिखित है, यीशु ने कहा: “जो अपनी ओर से कुछ कहता है, वह अपनी ही बड़ाई चाहता है; परन्तु जो अपने भेजनेवाले की बड़ाई चाहता है वही सच्चा है, और उस में अधर्म नहीं।” (तिरछे टाइप हमारे।) यह कितना उपयुक्त है कि यीशु ने अपना शिक्षण “सिद्ध ज्ञानी,” यहोवा को महिमा लाने के लिए इस्तेमाल किया!—अय्यूब ३७:१६, NHT.
७, ८. (क) शिक्षण को कैसे इस्तेमाल में लाया जाना चाहिए? (ख) संतुलित शिक्षण के चार मूल उद्देश्य कौन-से हैं?
७ इस तरह हम यीशु से एक मूल्यवान सबक़ सीखते हैं—शिक्षण को अपनी ख़ुद की महिमा करने के लिए नहीं, बल्कि यहोवा की स्तुति करने के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए। शिक्षण को इस्तेमाल करने का इससे बेहतर तरीक़ा और कोई नहीं है। तब कैसे, आप शिक्षण को यहोवा की स्तुति करने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं?
८ शिक्षण देने का अर्थ है ‘ख़ासकर एक कौशल, व्यवसाय, या पेशे में औपचारिक निर्देशन और निरीक्षित अभ्यास के द्वारा प्रशिक्षित करना।’ आइए अब हम संतुलित शिक्षण के चार मूलभूत उद्देश्यों पर ग़ौर करें और देखें कि कैसे प्रत्येक लक्ष्य का यहोवा की स्तुति करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। संतुलित शिक्षण को हमें (१) अच्छी तरह पढ़ने, (२) स्पष्ट रूप से लिखने, (३) मानसिक और नैतिक रूप से विकसित होने, और (४) रोज़मर्रा जीवन के लिए ज़रूरी व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त करने में मदद करनी चाहिए।
अच्छी तरह पढ़ना सीखना
९. अच्छी तरह पढ़नेवाले होना महत्त्वपूर्ण क्यों है?
९ सूचि में पहला है अच्छी तरह पढ़ना सीखना। एक अच्छा पाठक होना इतना महत्त्वपूर्ण क्यों है? द वर्ल्ड बुक एनसाइक्लोपीडिया समझाती है: “पढ़ना . . . सीखने के लिए मौलिक है और रोज़मर्रा जीवन में एक सबसे महत्त्वपूर्ण कौशल है। . . . कुशल पाठक एक समृद्ध, उत्पादक समाज बनाने में योग देते हैं। साथ ही, वे ख़ुद ज़्यादा भरपूर, अधिक संतोषप्रद जीवन का आनन्द लेते हैं।”
१०. कैसे परमेश्वर के वचन को पढ़ना हमें ज़्यादा भरपूर, अधिक संतोषप्रद जीवन का आनन्द लेने में मदद करता है?
१० अगर आम पठन हमें “ज़्यादा भरपूर, अधिक संतोषप्रद जीवन” का आनन्द लेने में मदद कर सकता है, तो यह परमेश्वर के वचन को पढ़ने के बारे में कितना अधिक सच होगा! ऐसा पठन यहोवा के विचारों और उद्देश्यों के प्रति हमारे मन और हृदय को खोल देता है, और इन्हें स्पष्ट रूप से समझना हमारे जीवन को अर्थ देता है। इसके अतिरिक्त, इब्रानियों ४:१२ कहती है, “परमेश्वर का वचन जीवित, और प्रबल . . . है।” जैसे-जैसे हम परमेश्वर का वचन पढ़ते हैं और उस पर मनन करते हैं, हम इसके लेखक की ओर खिंचते हैं, और अपने जीवन में परिवर्तन करने के लिए हम प्रेरित होते हैं ताकि हम उसे अधिक प्रसन्न करें। (गलतियों ५:२२, २३; इफिसियों ४:२२-२४) जिन बहुमूल्य सच्चाइयों को हम पढ़ते हैं उन्हें दूसरों के संग बाँटने के लिए भी हम विवश होते हैं। यह सब महान प्रशिक्षक, यहोवा परमेश्वर को स्तुति लाता है। निश्चित ही, पढ़ने के हमारे कौशल को इस्तेमाल करने का इससे बेहतर तरीक़ा और कोई नहीं है!
११. व्यक्तिगत अध्ययन के संतुलित कार्यक्रम में क्या शामिल किया जाना चाहिए?
११ चाहे जवान हों या वृद्ध, हमें अच्छी तरह पढ़ना सीखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, क्योंकि पढ़ना हमारे मसीही जीवन में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। परमेश्वर के वचन के नियमित पठन के अलावा, व्यक्तिगत अध्ययन के एक संतुलित कार्यक्रम प्रतिदिन शास्त्रवचनों की जाँच करना से बाइबल पाठ पर विचार करना, प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! पढ़ना, और मसीही सभाओं के लिए तैयारी करना शामिल करेगा। और मसीही सेवकाई के बारे में क्या? स्पष्टतः, सार्वजनिक रूप से प्रचार करना, दिलचस्पी रखनेवालों के पास पुनःभेंट करना, और गृह बाइबल अध्ययन संचालित करना, यह सभी पढ़ने के अच्छे कौशल की माँग करते हैं।
स्पष्ट रूप से लिखना सीखना
१२. (क) स्पष्ट रूप से लिखना सीखना क्यों महत्त्वपूर्ण है? (ख) अब तक लिखा गया सबसे महान लेखन कार्य कौन-सा था?
१२ दूसरा उद्देश्य यह है कि संतुलित शिक्षण से हमें स्पष्ट रूप से लिखना सीखने में मदद प्राप्त होनी चाहिए। लिखना दूसरों तक हमारे शब्दों और विचारों को ही नहीं पहुँचाता, बल्कि यह उन्हें सुरक्षित भी रखता है। अनेकों अनेक सदियों पहले, कुछ ४० यहूदी पुरुषों ने पपीरस या चर्मपत्री पर वे शब्द लिखे जिससे उत्प्रेरित शास्त्र बना। (२ तीमुथियुस ३:१६) निश्चित ही यह कभी-भी किया गया सबसे महान लेखन कार्य था! बेशक सदियों के दौरान यहोवा ने इन पवित्र शब्दों की प्रतियों और प्रतिलिपियों के बनाने को मार्गदर्शित किया जिससे वे हम तक विश्वसनीय स्वरूप में पहुँचे हैं। क्या हम शुक्रगुज़ार नहीं हैं कि यहोवा ने मौखिक संचारण पर निर्भर रहने के बजाय अपने शब्दों को लिपिबद्ध कराया?—निर्गमन ३४:२७, २८ से तुलना कीजिए।
१३. क्या सूचित करता है कि इस्राएली लिखना जानते थे?
१३ प्राचीन समय में, केवल कुछ विशेष-सुविधा प्राप्त वर्ग ही शिक्षित थे, जैसे मसोपोटामिया और मिस्र के शास्त्री। इन जातियों की स्पष्ट विषमता में, इस्राएल में हरेक व्यक्ति को शिक्षित होने का प्रोत्साहन दिया जाता था। व्यवस्थाविवरण ६:८, ९ में इस्राएलियों को अपने घर की चौखट की बाजुओं पर लिखने के आदेश ने, हालाँकि प्रतीयमानतः लाक्षणिक था, सूचित किया कि वे लिखना जानते थे। बाल अवस्था से ही, बच्चों को लिखना सिखाया जाता था। प्राचीन इब्रानी लेखन के एक सबसे पुराने उदाहरण, गेज़र कैलॆंडर को कुछ विद्वान इसे एक स्कूली बच्चे का स्मरण अभ्यास समझते हैं।
१४, १५. लिखने की योग्यता को इस्तेमाल करने के कुछ हितकर और साकारात्मक तरीक़े कौन-से हैं?
१४ लेकिन हम लिखने के कौशल को सकारात्मक और हितकर तरीक़े से कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं? निश्चित ही मसीही सभाओं, सम्मेलनों, और अधिवेशनों में नोट्स लेने के द्वारा। एक ख़त, चाहे “संक्षेप में” ही क्यों न लिखा गया हो, एक बीमार व्यक्ति को प्रोत्साहन दे सकता है या एक आध्यात्मिक भाई या बहन को धन्यवाद कह सकता है जो हमारे प्रति कृपापूर्ण या सत्कारशील थे। (१ पतरस ५:१२) अगर कलीसिया के किसी व्यक्ति ने किसी प्रिय-जन को मृत्यु में खोया है, तो एक संक्षिप्त ख़त या कार्ड उस व्यक्ति से हमारी तरफ़ से ‘सांत्वनापूर्वक बोल’ सकता है। (१ थिस्सलुनीकियों ५:१४, NW) एक मसीही बहन ने, जिसने अपनी माँ को कैंसर के कारण खो दिया, समझाया: “एक सहेली ने मुझे एक बहुत अच्छा ख़त लिखा। इससे सचमुच मुझे मदद मिली क्योंकि मैं इसे बार-बार पढ़ सकती थी।”
१५ यहोवा को स्तुति लाने के लिए लिखने के कौशल को इस्तेमाल करने का एक बेहतरीन तरीक़ा है राज्य गवाही देने के लिए एक ख़त लिखना। कभी-कभी पृथक क्षेत्रों में रहनेवाले नयी-नयी दिलचस्पी दिखानेवाले लोगों से संपर्क बनाए रखना शायद आवश्यक हो। बीमारी घर-घर जाना आपके लिए अस्थायी रूप से शायद कठिन बना सकती है। शायद एक ख़त लिखित रूप से वो बात कह सकता है जो आम तौर पर आप व्यक्तिगत रूप से कहते।
१६, १७. (क) कौन-सा अनुभव राज्य गवाही देने के लिए पत्र लिखने के मूल्य को प्रदर्शित करता है? (ख) क्या आप एक ऐसा अनुभव बता सकते हैं?
१६ एक अनुभव पर ग़ौर कीजिए। कई साल पहले, एक साक्षी ने एक ऐसे पुरुष की विधवा को राज्य गवाही देते हुए एक ख़त लिखा जिसकी मौत की घोषणा स्थानीय अख़बार में की गयी थी। कोई जवाब नहीं आया। बाद में, नवम्बर १९९४ में, क़रीब २१ साल बाद इस साक्षी को उस स्त्री की बेटी का एक ख़त मिला। बेटी ने लिखा:
१७ “अप्रैल १९७३ में, आपने मेरी माँ को मेरे पिता की मौत के बाद सांत्वना देने के लिए एक ख़त लिखा। मैं उस समय नौ साल की थी। मेरी माँ ने बाइबल का अध्ययन तो किया, लेकिन अब तक वो यहोवा की एक सेवक नहीं हैं। बहरहाल, उनका अध्ययन आख़िरकार सच्चाई के साथ मेरी संगति की ओर ले गया। १९८८ में, मैंने अपना बाइबल अध्ययन आरम्भ किया—आपका ख़त मिलने के १५ साल बाद। मार्च ९, १९९० में मैंने बपतिस्मा लिया। कई सालों पहले के आपके ख़त के लिए मैं बहुत शुक्रगुज़ार हूँ और आपको यह बताने में कितनी ख़ुश हूँ कि आपने जो बीज बोए थे, वो यहोवा की मदद से बड़े हुए। मेरी माँ ने मुझे आपका ख़त रखने के लिए दिया, और मैं जानना चाहूँगी कि आप कौन हैं। मैं आशा करती हूँ कि यह ख़त आप तक पहुँच जाएगा।” उस बेटी का ख़त जिसमें उसका पता और फ़ोन नंबर लिखा था, वाक़ई उस बहन के पास पहुँचा जिसने कई सालों पहले वह ख़त लिखा था। उस युवती के आश्चर्य की कल्पना कीजिए जब उसे इस साक्षी का फ़ोन कॉल आया—जो दूसरों के साथ राज्य आशा बाँटने के लिए अब भी ख़त लिखती है!
मानसिक, नैतिक और आध्यात्मिक रूप से विकसित होना
१८. बाइबल समय में, माता-पिता अपने बच्चों के मानसिक और नैतिक शिक्षण की देखभाल कैसे करते थे?
१८ तीसरा उद्देश्य यह है कि संतुलित शिक्षण को हमें मानसिक और नैतिक रूप से विकसित होने में मदद करनी चाहिए। बाइबल समय में, बच्चों का मानसिक और नैतिक शिक्षण माता-पिता की एक प्राथमिक ज़िम्मेदारी समझी जाती थी। बच्चों को केवल पढ़ना-लिखना ही नहीं, बल्कि अधिक महत्त्वपूर्ण, उन्हें परमेश्वर की व्यवस्था में शिक्षित किया जाता था, जिसमें उनके जीवन की सारी गतिविधियाँ शामिल थीं। अतः, शिक्षण में उनकी धार्मिक बाध्यताओं, और विवाह, पारिवारिक रिश्ते, और लैंगिक नैतिकता, को निर्देशित करनेवाले सिद्धान्त और साथ ही साथ अपने संगी मनुष्यों के प्रति उनकी बाध्यताओं के बारे में उपदेश शामिल था। ऐसे शिक्षण ने उन्हें केवल मानसिक और नैतिक रूप से ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी विकसित होने में मदद की।—व्यवस्थाविवरण ६:४-९, २०, २१; ११:१८-२१.
१९. हमें ऐसा शिक्षण कहाँ मिल सकता है जो हमें जीने के लिए सर्वोत्तम नैतिक मूल्य दिखाता है और जो हमें आध्यात्मिक रूप से विकसित होने में मदद करता है?
१९ आज के बारे में क्या? अच्छा लौकिक शिक्षण महत्त्वपूर्ण है। यह हमें मानसिक रूप से विकसित होने में मदद करता है। लेकिन हमें ऐसा शिक्षण कहाँ मिल सकता है जो हमें जीने के लिए सर्वोत्तम नैतिक मूल्य सिखाएगा और हमें आध्यात्मिक रूप से विकसित होने में मदद करेगा? मसीही कलीसिया में ही, हमें एक ईश्वरशासित शिक्षण का कार्यक्रम उपलब्ध है जो पृथ्वी पर और कहीं उपलब्ध नहीं है। बाइबल और बाइबल-आधारित प्रकाशनों के हमारे व्यक्तिगत अध्ययन से, साथ ही कलीसिया सभाओं, सम्मेलनों, और अधिवेशनों में दिए गए निर्देशन से, हम यह बेशक़ीमती, जारी शिक्षण—ईश्वरीय शिक्षण—मुफ़्त में प्राप्त कर सकते हैं। यह हमें क्या सिखाता है?
२०. ईश्वरीय शिक्षण हमें क्या सिखाता है, और इसके क्या परिणाम होते हैं?
२० जब हम बाइबल का अध्ययन करना आरम्भ करते हैं, तब हम मूलभूत शास्त्रीय शिक्षाओं, ‘प्रारम्भिक शिक्षाओं’ को सीखते हैं। (इब्रानियों ६:१, NHT) जैसे-जैसे हम इसे जारी रखते हैं, हम “ठोस भोजन”—अर्थात्, गहरी सच्चाइयाँ लेते हैं। (इब्रानियों ५:१४, NHT) लेकिन, इससे भी ज़्यादा, हम उन ईश्वरीय सिद्धान्तों को सीखते हैं जो हमें वैसे जीना सिखाते हैं जैसे परमेश्वर चाहता है कि हम जीएँ। उदाहरण के लिए, हम उन आदतों और अभ्यासों से दूर रहना सीखते हैं जो ‘शरीर को मलिन’ करते हैं और अधिकार तथा दूसरे की जान और माल का आदर करना सीखते हैं। (२ कुरिन्थियों ७:१; तीतुस ३:१, २; इब्रानियों १३:४) इसके अलावा, हम अपने काम में ईमानदार और मेहनती होने के महत्त्व की और लैंगिक नैतिकता पर बाइबल आदेशों के अनुरूप जीने के मूल्य की क़दर करने लगते हैं। (१ कुरिन्थियों ६:९, १०; इफिसियों ४:२८) जैसे-जैसे हम अपने जीवन में इन सिद्धान्तों को लागू करने में प्रगति करते हैं, हम आध्यात्मिक रूप से बढ़ते हैं, और परमेश्वर के साथ हमारा रिश्ता गहराता है। इसके अलावा, चाहे हम कहीं भी रहें, हमारा ईश्वरीय चालचलन हमें अच्छा नागरिक बनाता है। और शायद ऐसा करना दूसरों को ईश्वरीय शिक्षण के स्रोत—यहोवा परमेश्वर—को स्तुति देने के लिए प्रेरित करे।—१ पतरस २:१२.
रोज़मर्रा के जीवन के लिए व्यावहारिक प्रशिक्षण
२१. बाइबल समय में बच्चे कौन-सा व्यावहारिक प्रशिक्षण पाते थे?
२१ संतुलित शिक्षण का चौथा लक्ष्य है एक व्यक्ति को रोज़मर्रा के जीवन के लिए ज़रूरी व्यावहारिक प्रशिक्षण देना। बाइबल समय के जनकीय शिक्षण में व्यावहारिक प्रशिक्षण शामिल था। लड़कियों को घर-गृहस्थी के कौशल सिखाए जाते थे। नीतिवचन का आख़िरी अध्याय दिखाता है कि ये कौशल अनेक और विविध रहे होंगे। अतः लड़कियाँ सूत कातने, बुनाई करने, और खाना पकाने, तथा सामान्य गृहप्रबन्ध करने, व्यवसाय करने, साथ ही भू-सम्पत्ति सौदे सम्भालने के लिए सज्जित हो जाती थीं। लड़कों को सामान्य तौर पर उनके पिता का लौकिक पेशा सिखाया जाता था, या तो खेती-बाड़ी या कोई व्यापार अथवा कला। यीशु ने अपने दत्तक पिता, यूसुफ से बढ़ई का काम सीखा; अतः उसे केवल “बढ़ई का बेटा” ही नहीं बल्कि, “बढ़ई” भी कहा गया।—मत्ती १३:५५; मरकुस ६:३.
२२, २३. (क) किस बात के लिए शिक्षण को बच्चों को तैयार करना चाहिए? (ख) जब ऐसा करना शायद आवश्यक जान पड़े तो अतिरिक्त शिक्षण प्राप्त करने में हमारा क्या उद्देश्य होना चाहिए?
२२ आज भी एक संतुलित शिक्षण भविष्य में एक परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने की तैयारी को शामिल करता है। प्रेरित पौलुस के १ तीमुथियुस ५:८ में पाए जानेवाले शब्द सूचित करते हैं कि अपने परिवार के लिए प्रबन्ध करना एक पवित्र बाध्यता है। उसने लिखा: “पर यदि कोई अपनों की और निज करके अपने घराने की चिन्ता न करे, तो वह विश्वास से मुकर गया है, और अविश्वासी से भी बुरा बन गया है।” तो शिक्षण को, बच्चों को उन ज़िम्मेदारियों को उठाने के लिए तैयार करना चाहिए जो वे जीवन में उठाएँगे। साथ ही साथ इसे समाज के मेहनती सदस्य बनने में उन्हें योग्य बनाना चाहिए।
२३ कितना लौकिक शिक्षण हमें प्राप्त करना चाहिए? यह देश-देश में भिन्न हो सकता है। लेकिन यदि रोज़ग़ार बाज़ार न्यूनतम क़ानूनी माँग के अतिरिक्त प्रशिक्षण की माँग करता है तो यह माता-पिता पर निर्भर करता है कि वे अपने बच्चों को अतिरिक्त शिक्षण या प्रशिक्षण के बारे में निर्णय लेने के लिए मार्गदर्शित करें। उन्हें ऐसे अतिरिक्त शिक्षण के संभव फ़ायदों और नुकसानों के बारे में जाँच करना है। लेकिन एक व्यक्ति का अतिरिक्त शिक्षण पाने का क्या उद्देश्य होना चाहिए जब ऐसा करना ज़रूरी जान पड़ता हो? निश्चित रूप से धन, आत्म-महिमा, या तारीफ़ नहीं होना चाहिए। (नीतिवचन १५:२५; १ तीमुथियुस ६:१७) यीशु के उदाहरण से सीखा हुआ सबक़ याद रखिए—शिक्षण का इस्तेमाल यहोवा की स्तुति करने के लिये किया जाना चाहिए। अगर हम अतिरिक्त शिक्षण प्राप्त करने का चुनाव करते हैं तो हमें अपने आपको आर्थिक रूप से ठीक ढंग से सम्भालने की अभिलाषा से प्रेरित होना चाहिए ताकि हम मसीही सेवकाई में यहोवा की सेवा यथासंभव पूर्ण रूप से कर सकें।—कुलुस्सियों ३:२३, २४.
२४. यीशु से सीखे कौन-से सबक़ को हमें कभी नहीं भूलना चाहिए?
२४ अतः, आइए हम संतुलित लौकिक शिक्षण प्राप्त करने के हमारे प्रयासों में मेहनती हों। आइए हम ईश्वरीय शिक्षण के जारी कार्यक्रम का पूरा-पूरा फ़ायदा उठाएँ जो यहोवा के संगठन में प्रदान किया जाता है। और ऐसा हो कि हम उस मूल्यवान सबक़ को कभी न भूलें जो हम ने इस पृथ्वी पर कभी जीवित रहे सर्वोत्तम-शिक्षित व्यक्ति, यीशु मसीह से सीखा है—शिक्षण को अपनी ख़ुद की महिमा करने के लिए नहीं, बल्कि सबसे महान प्रशिक्षक, यहोवा परमेश्वर की स्तुति करने के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए!
आपका जवाब क्या है?
◻ यीशु ने अपने शिक्षण का कैसे इस्तेमाल किया?
◻ अच्छी तरह पढ़ना सीखना ज़रूरी क्यों है?
◻ लिखने की योग्यता को हमें यहोवा की स्तुति करने के लिए कैसे इस्तेमाल करना चाहिए?
◻ ईश्वरीय शिक्षण दोनों नैतिक और आध्यात्मिक रूप से प्रगति करने में कैसे मदद करता है?
◻ संतुलित शिक्षण में कौन-सा व्यवहारिक प्रशिक्षण शामिल होना चाहिए?
[पेज 13 पर बक्स]
प्रशिक्षकों के लिए व्यावहारिक सहायता
१९९५/९६ के दौरान “आनन्दित स्तुतिकर्ता” ज़िला अधिवेशनों में वॉच टावर सोसाइटी ने यहोवा के साक्षी और शिक्षा नामक एक नया ब्रोशर रिलीज़ किया। यह ३२-पृष्ठवाला, रंगीन ब्रोशर ख़ासकर प्रशिक्षकों के लिए प्रकाशित किया गया है। अब तक इसका ५८ भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है।
प्रशिक्षकों के लिए एक ब्रोशर क्यों? ऐसे विद्यार्थियों के विश्वासों को और बेहतर समझने में सहायता देने के लिए जो यहोवा के साक्षियों के बच्चे हैं। इस ब्रोशर में क्या है? तर्कसंगत, स्पष्टवादी शैली में यह ऐसे मामलों में हमारे दृष्टकोण को समझाता है जैसे अतिरिक्त शिक्षण, जन्मदिनों और बड़े-दिन, और झंडे की सलामी। यह ब्रोशर प्रशिक्षकों को आश्वस्त भी करता है कि हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे अपने स्कूल की शिक्षा का पूरा लाभ उठाएँ और कि हम अपने बच्चों के शिक्षण में एक सक्रिय दिलचस्पी लेने के द्वारा प्रशिक्षकों को वास्तव में सहयोग देना चाहते हैं।
शिक्षा ब्रोशर कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है? चूँकि यह प्रशिक्षकों के लिए तैयार किया गया था, आइए हम इसे शिक्षकों, प्रधानाचार्यों और अन्य स्कूल अधिकारियों के साथ बाँटें। ऐसा हो कि यह ब्रोशर ऐसे सब प्रशिक्षकों को हमारे दृष्टिकोण और विश्वासों को समझने में तथा यह समझने में भी मदद प्रदान करे कि कभी-कभी हम अलग होने के हक़ का दावा क्यों करते हैं। माता-पिता को अपने बच्चों के प्रशिक्षकों के साथ व्यक्तिगत चर्चा करने के लिए इस ब्रोशर को आधार के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
[पेज 10 पर तसवीरें]
प्राचीन इस्राएल में शिक्षण को ऊँचा दर्जा दिया जाता था