परमेश्वर और कैसर
“तो जो कैसर का है, वह कैसर को दो और जो परमेश्वर का है, वह परमेश्वर को दो।”—लूका २०:२५.
१. (क) यहोवा का ऊँचा पद क्या है? (ख) हम यहोवा को क्या देने के लिए बाध्य हैं जो हम कैसर को कभी नहीं दे सकते?
जब यीशु मसीह ने यह हिदायत दी, तब उसके मन में कोई संदेह नहीं था कि जो माँगें परमेश्वर अपने सेवकों से करता है वे उस किसी भी माँग से प्राथमिकता पाती हैं जो शायद कैसर, अथवा सरकार द्वारा कीं जाएँ। भजनहार की यहोवा से की गई प्रार्थना की सच्चाई को यीशु किसी भी व्यक्ति से ज़्यादा अच्छी तरह समझता था: “तेरा राज्य युग युग का और तेरी प्रभुता [सर्वसत्ता]a सब पीढ़ियों तक बनी रहेगी।” (भजन १४५:१३) जब इब्लीस ने यीशु के सामने पूरी पृथ्वी के सभी राज्यों पर अधिकार का प्रस्ताव रखा, तब यीशु ने जवाब दिया: “लिखा है; कि तू प्रभु अपने परमेश्वर को प्रणाम कर; और केवल उसी की उपासना कर।” (लूका ४:५-८) उपासना कभी-भी “कैसर,” को नहीं दी जा सकती थी, चाहे कैसर रोमी सम्राट हो, कोई अन्य मानवी शासक हो, अथवा स्वयं सरकार ही क्यों न हो।
२. (क) इस संसार के सम्बन्ध में शैतान का क्या पद है? (ख) किस की अनुमति से शैतान इस पद पर है?
२ यीशु ने इससे इनकार नहीं किया कि संसार के राज्य शैतान के थे। बाद में, उसने शैतान को “इस जगत का सरदार” कहा। (यूहन्ना १२:३१; १६:११) सामान्य युग पहली शताब्दी के अन्त के निकट, प्रेरित यूहन्ना ने लिखा: “हम जानते हैं, कि हम परमेश्वर से हैं, और सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है।” (१ यूहन्ना ५:१९) इसका अर्थ यह नहीं है कि यहोवा ने पृथ्वी के ऊपर अपनी सर्वसत्ता को त्याग दिया है। याद कीजिए कि शैतान ने यीशु को राजनैतिक राज्यों पर शासन का प्रस्ताव रखते समय कहा था: “मैं यह सब अधिकार . . . तुझे दूंगा, क्योंकि वह मुझे सौंपा गया है।” (लूका ४:६) शैतान इस संसार के राज्यों पर केवल परमेश्वर की अनुमति के द्वारा अधिकार चलाता है।
३. (क) राष्ट्रों की सरकारों का यहोवा के सामने क्या पद है? (ख) हम यह कैसे कह सकते हैं कि इस संसार की सरकारों के प्रति आधीनता का अर्थ ख़ुद को शैतान के आधीन करना नहीं है, जो कि इस संसार का ईश्वर है?
३ इसी प्रकार, सरकार अपना अधिकार केवल इसीलिए चलाती है क्योंकि सर्वसत्ताधारी शासक के रूप में परमेश्वर उसे ऐसा करने की अनुमति देता है। (यूहन्ना १९:११) अतः, कहा जाता है कि “जो अधिकार हैं, वे [“अपने अपने सापेक्षिक पदों पर,” NW] परमेश्वर के ठहराए हुए हैं।” यहोवा के सर्वोच्च अधिकार की तुलना में, सरकार का अधिकार निश्चित ही निम्नतर अधिकार है। फिर भी, वे इस बात में ‘परमेश्वर के सेवक,’ “परमेश्वर के जन सेवक,” हैं कि वे आवश्यक सेवाएँ प्रदान करते हैं, क़ानून और व्यवस्था बनाए रखते हैं, और बुरे काम करनेवालों को सज़ा देते हैं। (रोमियों १३:१, ४, ६, NW) सो मसीहियों को यह समझने की ज़रूरत है कि जबकि शैतान इस संसार का, अथवा इस व्यवस्था का अदृश्य शासक है, वे अपने आपको उसके आधीन नहीं करते हैं जब वे सरकार के प्रति अपनी सापेक्षिक आधीनता को स्वीकार करते हैं। वे परमेश्वर की आज्ञा मान रहे होते हैं। इस वर्ष १९९६ में, राजनैतिक सरकार अब भी “परमेश्वर की विधि” का एक हिस्सा है, एक ऐसा अस्थायी प्रबन्ध जिसे परमेश्वर अस्तित्व में रहने देता है और इसे यहोवा के पार्थिव सेवकों द्वारा इसी रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए।—रोमियों १३:२.
यहोवा के प्राचीन सेवक और सरकार
४. यहोवा ने यूसुफ को मिस्र की सरकार में प्रमुख क्यों बनने दिया?
४ मसीही-पूर्व समय में, यहोवा ने अपने कुछ सेवकों को राज्य की सरकारों में प्रमुख पद ग्रहण करने की अनुमति दी। उदाहरण के लिए, सा.यु.पू. १८वीं शताब्दी में, यूसुफ मिस्र का प्रधानमंत्री बना, वह पद में मात्र सत्तारूढ़ फिरौन से नीचे था। (उत्पत्ति ४१:३९-४३) बाद की घटनाओं ने इस बात को स्पष्ट किया कि यहोवा ने अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए, यह युक्ति की ताकि यूसुफ ‘इब्राहीम के वंश’ उसके वंशजों को सुरक्षित रखने में एक साधन के तौर पर काम कर सके। निःसंदेह, यह मन में रखा जाना चाहिए कि यूसुफ को मिस्र में दासता के लिए बेच दिया गया था, और वह एक ऐसे समय में जीवित था जब परमेश्वर के सेवकों के पास न तो मूसा की व्यवस्था थी और न ही “मसीह की व्यवस्था।”—उत्पत्ति १५:५-७; ५०:१९-२१; गलतियों ६:२.
५. यहूदी निर्वासितों को बाबुल के “कुशल का यत्न” करने की आज्ञा क्यों दी गयी थी?
५ शताब्दियों बाद वफ़ादार भविष्यवक्ता यिर्मयाह, यहोवा द्वारा यहूदी निर्वासितों को यह बताने के लिए प्रेरित हुआ कि बाबुल में निर्वासन में रहते समय शासकों के आधीन रहें और यहाँ तक कि उस नगर की शान्ति के लिए प्रार्थना करें। उनके नाम अपने पत्र में, उसने लिखा: ‘जितने बंधुआ हैं, उन सभों से इस्राएल का परमेश्वर सेनाओं का यहोवा यों कहता है: जिस नगर में मैं ने तुम को बंधुआ कराके भेज दिया है, उसके कुशल का यत्न किया करो, और उसके हित के लिये यहोवा से प्रार्थना किया करो। क्योंकि उसके कुशल से तुम भी कुशल के साथ रहोगे।’ (यिर्मयाह २९:४, ७) हमेशा यहोवा के लोगों को अपने लिए और जिन देशों में वे रहते हैं ‘मेल मिलाप को ढूंढने, के कारण हैं ताकि उन्हें यहोवा की उपासना करने की स्वतंत्रता हो।’—१ पतरस ३:११.
६. हालाँकि उन्हें उच्च सरकारी पद दिए गए थे, किन तरीक़ों से दानिय्येल और उसके तीन साथियों ने यहोवा की व्यवस्था के सम्बन्ध में समझौता करने से इनकार किया?
६ बाबुलीय निर्वासन के दौरान, दानिय्येल और तीन अन्य वफ़ादार यहूदियों ने, जो कि बाबुल के दासत्व में बंदी थे, सरकार से प्रशिक्षण स्वीकार किया और बाबेलोनिया में उच्च-पदधारी सरकारी सेवक बन गए। (दानिय्येल १:३-७; २:४८, ४९) फिर भी, अपने प्रशिक्षण के दौरान भी उन्होंने आहार-सम्बन्धी मामलों में दृढ़ स्थिति अपनायी जो उनको उस व्यवस्था के उल्लंघन की ओर ले जा सकता था जिसे उनके परमेश्वर, यहोवा ने मूसा द्वारा दिया था। इसके लिए उन्हें आशीष दी गई। (दानिय्येल १:८-१७) जब राजा नबूकदनेस्सर ने एक सरकारी प्रतिमा खड़ी करवाई, दानिय्येल के तीन इब्रानी साथियों को प्रत्यक्षतः उस समारोह में अपने संगी सरकारी अधिकारियों के साथ उपस्थित होने के लिए विवश किया गया। फिर भी, उन्होंने उस सरकारी मूर्ति को “गिरकर दण्डवत्” करने से इनकार कर दिया। दोबारा, यहोवा ने उनकी खराई का प्रतिफल दिया। (दानिय्येल ३:१-६, १३-२८) उसी प्रकार आज भी, यहोवा के साक्षी जिस देश में रहते हैं उसके ध्वज का आदर करते हैं, लेकिन वे उसके प्रति उपासना का कोई भी कृत्य नहीं करेंगे।—निर्गमन २०:४, ५; १ यूहन्ना ५:२१.
७. (क) बाबुल के सरकारी ढाँचे में ऊँचा पद होने के बावजूद, दानिय्येल ने कौन-सी उत्तम स्थिति अपनायी? (ख) मसीही समय में क्या परिवर्तन हुए?
७ नव-बाबुलीय राजवंश के पतन के बाद, दानिय्येल को नए मादी-फ़ारसी राज्य के आधीन, जिसने बाबुल में उस पराजित राजवंश की जगह ली थी, एक उच्च-पदधारी सरकारी पद दिया गया। (दानिय्येल ५:३०, ३१; ६:१-३) लेकिन उसने अपने ऊँचे पद को अपनी खराई के आड़े नहीं आने दिया। जब एक सरकारी क़ानून द्वारा माँग की गई कि वह यहोवा के बजाय राजा दारा की उपासना करे, तब उसने इनकार कर दिया। इसके लिए उसे शेरों के बीच फेंक दिया गया, लेकिन यहोवा ने उसको बचा लिया। (दानिय्येल ६:४-२४) निश्चित ही, यह मसीही-पूर्व समय में हुआ। मसीही कलीसिया की स्थापना के बाद, परमेश्वर के सेवक “मसीह की व्यवस्था के आधीन” आ गए। जिस तरीक़े से यहोवा अब अपने लोगों के साथ व्यवहार कर रहा था, उस पर आधारित, ऐसी अनेक बातों को, जिनकी अनुमति यहूदी व्यवस्था के आधीन दी गई थी, भिन्न दृष्टिकोण से देखा जाना था।—१ कुरिन्थियों ९:२१; मत्ती ५:३१, ३२; १९:३-९.
सरकार के प्रति यीशु की मनोवृत्ति
८. कौन-सी घटना दिखाती है कि यीशु राजनैतिक उलझाव से बचने के लिए दृढ़संकल्प था?
८ जब यीशु मसीह पृथ्वी पर था, उसने अपने अनुयायियों के लिए उच्चतर स्तर बनाए, और उसने राजनैतिक अथवा सैन्य मामलों में किसी भी तरह शामिल होने से इनकार किया। कुछ रोटियों और दो छोटी मछलियों से यीशु के चमत्कारिक रूप से कई हज़ार लोगों को खिलाए जाने के बाद, यहूदी पुरुष उसे पकड़ कर एक राजनैतिक राजा बनाना चाहते थे। लेकिन यीशु जल्दी से पहाड़ों की ओर जाने के द्वारा उनसे दूर रहा। (यूहन्ना ६:५-१५) इस घटना के बारे में, नए नियम पर नई अन्तरराष्ट्रीय टीका-टिप्पणी, (अंग्रेज़ी) कहती है: “उस समय के यहूदियों के बीच प्रचण्ड राष्ट्रवादी भावनाएँ थीं, और निःसंदेह जिन्होंने यह चमत्कार देखा था उनमें से अनेक ने महसूस किया कि वह एक ईश्वरीय रूप से ठहराया गया अगुवा था, जो रोमियों के विरुद्ध उनका नेतृत्व करने के लिए बिलकुल सही व्यक्ति था। सो उन्होंने उसे राजा बनाने का दृढ़-निश्चय किया।” यह आगे कहती है कि यीशु ने राजनैतिक नेतृत्व के इस प्रस्ताव को “निश्चयात्मक रूप से ठुकराया।” मसीह ने रोमी सत्ता के विरुद्ध यहूदियों के किसी भी विद्रोह को समर्थन नहीं दिया। सचमुच, उसने पूर्व-बताया कि उसकी मृत्यु के पश्चात् होनेवाले विद्रोह का क्या परिणाम होता—यरूशलेम में रहनेवाले लोगों पर अनगिनित विपत्तियाँ और उस नगर का विनाश।—लूका २१:२०-२४.
९. (क) यीशु ने संसार के साथ अपने राज्य के सम्बन्ध की व्याख्या कैसे की? (ख) इस संसार की सरकारों के साथ उनके व्यवहार के सम्बन्ध में यीशु ने अपने अनुयायियों को कौन-सा मार्गदर्शन दिया?
९ उसकी मृत्यु से कुछ ही समय पहले, यीशु ने यहूदिया में रोमी सम्राट के ख़ास प्रतिनिधि को बताया: “मेरा राज्य इस जगत का नहीं, यदि मेरा राज्य इस जगत का होता, तो मेरे सेवक लड़ते, कि मैं यहूदियों के हाथ सौंपा न जाता: परन्तु अब मेरा राज्य यहां का नहीं।” (यूहन्ना १८:३६) जब तक कि उसका राज्य इन राजनैतिक सरकारों के शासन का अन्त नहीं करता, मसीह के शिष्य उसके उदाहरण पर चलते हैं। वे उन स्थापित अधिकारियों का आज्ञापालन करते हैं, लेकिन उनके राजनैतिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करते। (दानिय्येल २:४४; मत्ती ४:८-१०) यीशु ने यह कहते हुए अपने शिष्यों के लिए मार्गदर्शन दिया: “जो कैसर का है, वह कैसर को; और जो परमेश्वर का है, वह परमेश्वर को दो।” (मत्ती २२:२१) इससे पहले, अपने पहाड़ी उपदेश में यीशु ने कहा था: “यदि कोई अधिकारी तुझे बेगार सेवा में एक मील ले जाए तो, उसके साथ दो मील चला जा।” (मत्ती ५:४१, NW) इस उपदेश के संदर्भ में, यीशु जायज़ माँगों के प्रति स्वैच्छिक आधीनता के सिद्धान्त को सचित्रित कर रहा था, चाहे वह मानव सम्बन्धों में हो अथवा उन सरकारी माँगों में हो जो परमेश्वर के नियम के सामंजस्य में हैं।—लूका ६:२७-३१; यूहन्ना १७:१४, १५.
मसीही और कैसर
१०. एक इतिहासकार के अनुसार, कैसर के सम्बन्ध में प्रारम्भिक मसीहियों ने कौन-सी कर्त्तव्यनिष्ठ स्थिति रखी?
१० ये संक्षिप्त मार्गदर्शन मसीहियों और सरकार के बीच सम्बन्ध को नियंत्रित करने के लिए थे। अपनी पुस्तक मसीहियत का उत्थान (अंग्रेज़ी) में, इतिहासकार इ. डब्ल्यू. बार्न्ज़ ने लिखा: “जब कभी, आनेवाली शताब्दियों में, एक मसीही सरकार के प्रति अपने कर्त्तव्य के बारे में संदेह में होता था, तो वह मसीह की अधिकारपूर्ण शिक्षा की ओर जाता था। वह कर देता: लगाए गए कर शायद भारी होते—पश्चिमी साम्राज्य के गिरने से पूर्व वे बर्दाशस्त से बाहर हो गए—लेकिन मसीही उन्हें सहते। इसी प्रकार वह अपनी अन्य सभी बाध्यताओं को स्वीकार करता, बशर्ते उसे उन चीज़ों को जो परमेश्वर की हैं कैसर को देने के लिए न कहा जाता।”
११. सांसारिक शासकों के साथ व्यवहार करने के लिए पौलुस ने मसीहियों को किस प्रकार सलाह दी?
११ यह इसी के सामंजस्य में था कि, मसीह की मृत्यु से कुछ २० से ज़्यादा साल बाद, प्रेरित पौलुस ने रोम के मसीहियों से कहा: “हर एक व्यक्ति प्रधान अधिकारियों के आधीन रहे।” (रोमियों १३:१) लगभग दस साल के बाद, अपनी दूसरी गिरत्नतारी और रोम में अपने मृत्युदण्ड से कुछ समय पहले, पौलुस ने तीतुस को लिखा: “लोगों को [क्रेते के मसीहियों को] सुधि दिला, कि हाकिमों और अधिकारियों के आधीन रहें, और उन की आज्ञा मानें, और हर एक अच्छे काम के लिये तैयार रहें। किसी को बदनाम न करें; झगड़ालू न हों; पर कोमल स्वभाव के हों, और सब मनुष्यों के साथ बड़ी नम्रता के साथ रहें।”—तीतुस ३:१, २.
“प्रधान अधिकारियों” के बारे में क्रमिक समझ
१२. (क) सरकारी अधिकारियों के सम्बन्ध में एक मसीही की उचित स्थिति के बारे में चार्ल्स टेज़ रस्सल की क्या समझ थी? (ख) सेना में काम करने के बारे में, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अभिषिक्त मसीहियों ने कौन-सी भिन्न स्थितियाँ अपनायीं?
१२ वर्ष १८८६ में ही, चार्ल्स टेज़ रस्सल ने पुस्तक युगों के लिए ईश्वरीय योजना (अंग्रेज़ी) में लिखा: “न यीशु ने और न ही प्रेरितों ने पार्थिव शासकों के साथ किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप किया। . . . उन्होंने चर्च को नियमों का पालन करना, और जो अधिकार में हैं उनके पद के कारण उनका आदर करना, . . . अपने निर्धारित कर चुकाना, और उसे छोड़कर जहाँ वे परमेश्वर के नियमों से टकराते थे (प्रेरितों ४:१९; ५:२९) किसी भी स्थापित नियम का कोई विरोध नहीं करना सिखाया। (रोमि. १३:१-७; मत्ती २२:२१) यीशु और प्रेरित और प्रारंभिक गिरजे सभी विधि-पालक थे, हालाँकि वे इस संसार की सरकारों से अलग थे, और उस में कोई हिस्सा नहीं लेते थे।” इस पुस्तक ने प्रेरित पौलुस द्वारा मानवी सरकारी अधिकार के रूप में उल्लिखित “उच्चतर शक्तियों,” अथवा “प्रधान अधिकारियों” की सही तौर पर पहचान दी। (रोमियों १३:१, किंग जेम्स वर्शन) वर्ष १९०४ में पुस्तक नई सृष्टि (अंग्रेज़ी) ने कहा कि सच्चे मसीहियों को “वर्तमान समय के सबसे विधि-पालक लोगों में पाया जाना चाहिए—उपद्रवी नहीं, झगड़ालू नहीं, दोष निकालनेवाले नहीं।” कुछ लोगों ने इस का यह अर्थ समझा कि पूरी तरह सरकारी शक्तियों के आधीन होना है, इस हद तक कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सेना में काम करना स्वीकार करें। लेकिन, दूसरों ने समझा कि यह यीशु के कथन के विरोध में है: “जो तलवार चलाते हैं, वे सब तलवार से नाश किए जाएंगे।” (मत्ती २६:५२) स्पष्टतः, प्रधान अधिकारियों के प्रति मसीही आधीनता के बारे में एक ज़्यादा स्पष्ट समझ की ज़रूरत थी।
१३. उच्चतर शक्तियों की पहचान की समझ के विषय में कौन-सा परिवर्तन १९२९ में प्रस्तुत किया गया, और यह कैसे लाभदायक सिद्ध हुआ?
१३ वर्ष १९२९ में, ऐसे समय पर जब विभिन्न सरकारों के नियम उन बातों को निषेध करना शुरू कर रहे थे जिनकी परमेश्वर आज्ञा देता है, अथवा उन बातों की माँग कर रहे थे जिन्हें परमेश्वर का नियम निषेध करता है, ऐसा माना गया कि उच्चतर शक्तियाँ ज़रूर यहोवा परमेश्वर और यीशु मसीह होंगे।b द्वितीय विश्वयुद्ध के संकटकालीन समय से पहले और उसके दौरान यहोवा के सेवकों की यह समझ थी। ऐसा शीत युद्ध तक, और उसके आतंक के संतुलन और उसकी सैनिक तैयारी के समय में भी था। पीछे देखने से यह स्पष्ट होता है कि बातों के इस दृष्टिकोण ने, जिसने यहोवा और उसके मसीह की प्रधानता को ऊँचा उठाया, परमेश्वर के लोगों को इस पूरे कठिन समय के दौरान बिना समझौता किए तटस्थ स्थिति बनाए रखने में मदद दी।
सापेक्षिक आधीनता
१४. कैसे १९६२ में रोमियों १३:१, २ और सम्बन्धित शास्त्रवचनों पर और अधिक प्रकाश डाला गया?
१४ वर्ष १९६१ में पवित्र शास्त्र का नया संसार अनुवाद (अंग्रेज़ी) पूरा हो गया। इसकी तैयारी में शास्त्र की मूल भाषा के एक गहन अध्ययन की ज़रूरत पड़ी। न केवल रोमियों अध्याय १३ में बल्कि तीतुस ३:१, २ और १ पतरस २:१३, १७ जैसे कुछ परिच्छेदों में भी इस्तेमाल किए गए शब्दों के सही अनुवाद ने इस बात को स्पष्ट कर दिया कि “प्रधान अधिकारियों” (तिरछे टाइप हमारे।) अभिव्यक्ति सर्वोच्च अधिकारी यहोवा, और उसके पुत्र यीशु, को नहीं बल्कि मानवी सरकारी अधिकारियों को सूचित करती है। १९६२ के अंतिम भाग में, प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी) में ऐसे लेख प्रकाशित हुए जिन्होंने रोमियों अध्याय १३ की यथार्थ व्याख्या दी और साथ ही सी. टी. रस्सल के समय की समझ से अधिक स्पष्ट समझ भी प्रदान की। इन लेखों ने बताया कि अधिकार के प्रति मसीही आधीनता सम्पूर्ण नहीं हो सकती। यह सापेक्षिक होगी, इस बात पर अवलंबित कि परमेश्वर के सेवकों को परमेश्वर के नियमों के विरोध में न लाए। प्रहरीदुर्ग के अन्य लेखों ने इस महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर ज़ोर दिया है।c
१५, १६. (क) रोमियों १३ की नई समझ का ज़्यादा संतुलित दृष्टिकोण किस बात की ओर ले गया? (ख) कौन-से सवालों का जवाब देना बाक़ी है?
१५ रोमियों अध्याय १३ की सही समझ की इस कुंजी ने यहोवा के लोगों को राजनैतिक अधिकारियों के प्रति उचित आदर को अतिमहत्त्वपूर्ण शास्त्रीय सिद्धान्तों पर एक समझौता न करनेवाली स्थिति के साथ संतुलित करने में समर्थ किया है। (भजन ९७:११; यिर्मयाह ३:१५) इसने उन्हें परमेश्वर के साथ उनके सम्बन्ध की और सरकार के साथ उनके व्यवहारों की सही समझ रखने का मौक़ा दिया है। इसने यह सुनिश्चित किया है कि जबकि वे कैसर की चीज़ें कैसर को देते हैं, वे परमेश्वर की चीज़ों को परमेश्वर को देने की उपेक्षा नहीं करते।
१६ लेकिन कुल मिलाकर कैसर की चीज़ें हैं क्या? कौन-सी जायज़ माँगें सरकार एक मसीही से कर सकती है? इन सवालों पर अगले लेख में चर्चा की जाएगी।
[फुटनोट]
a भजन १०३:२२, NW फुटनोट देखिए।
b जून १ और १५, १९२९ की प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी)।
c नवम्बर १, और १५, दिसम्बर १, १९६२, की प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी), जून १, १९९१; मई १, १९९३; जुलाई १, १९९४, की प्रहरीदुर्ग देखिए।
दिलचस्पी की बात है कि रोमियों अध्याय १३ पर अपनी टीका-टिप्पणी में, प्रोफ़ॆसर एफ़. एफ़. ब्रूस लिखता है: “इस संदर्भ से यह बिलकुल साफ़ है, जैसा कि प्रेरितिक लेखों के सामान्य संदर्भ से होता है कि सरकार केवल उन उद्देश्यों की सीमाओं में उचित रूप से आज्ञाकारिता की माँग कर सकती है जिसके लिए उसे ईश्वरीय रूप से ठहराया गया है—ख़ास तौर पर, सरकार का केवल शायद ही नहीं बल्कि ज़रूर विरोध किया जाना चाहिए जब वह उस स्वामीशभक्ति की माँग करती है जो केवल परमेश्वर को दी जानी है।”
क्या आप समझा सकते हैं?
◻ प्रधान अधिकारियों के प्रति आधीनता का अर्थ शैतान के प्रति आधीनता क्यों नहीं है?
◻ अपने समय की राजनीति के प्रति यीशु की क्या मनोवृत्ति थी?
◻ कैसर के साथ उनके व्यवहार के सम्बन्ध में यीशु ने अपने अनुयायियों को कौन-सी सलाह दी?
◻ राष्ट्रों के शासकों के साथ व्यवहार करने के बारे में पौलुस ने मसीहियों को किस प्रकार सलाह दी?
◻ सालों के दौरान प्रधान अधिकारियों की पहचान के सम्बन्ध में समझ कैसे बढ़ी है?
[पेज 10 पर तसवीरें]
जब शैतान ने उसे राजनैतिक शक्ति प्रस्तुत की यीशु ने उसे ठुकरा दिया
[पेज 13 पर तसवीरें]
रस्सल ने लिखा कि सच्चे मसीहियों को “वर्तमान समय के सबसे विधि-पालक लोगों में पाया जाना चाहिए”