परमेश्वर हमसे क्या माँग करता है?
“परमेश्वर का प्रेम यह है, कि हम उस की आज्ञाओं को मानें; और उस की आज्ञाएं कठिन नहीं।”—१ यूहन्ना ५:३.
१, २. यह आश्चर्य की बात क्यों नहीं कि परमेश्वर की उनके लिए कुछ माँगें हैं जो स्वीकार्य रूप से उसकी उपासना करना चाहते हैं?
“मेरा धर्म मेरे लिए सही है!” क्या लोग अकसर यह नहीं कहते? लेकिन, असल में प्रश्न यह होना चाहिए, “क्या मेरा धर्म परमेश्वर को प्रसन्न करता है?” जी हाँ, परमेश्वर की उनके लिए कुछ माँगें हैं जो स्वीकार्य रूप से उसकी उपासना करना चाहते हैं। क्या हमें इससे चकित होना चाहिए? असल में नहीं। मान लीजिए कि आप एक ऐसे सुन्दर घर के मालिक हैं, जिसकी आपने हाल ही में बड़ी क़ीमत देकर मरम्मत करायी है। क्या आप यूँ ही किसी को भी उसमें रहने देंगे? निश्चित ही नहीं! किसी भी आनेवाले किरायेदार को आपकी माँगें पूरी करनी होंगी।
२ उसी तरह, यहोवा परमेश्वर ने मानव परिवार के लिए यह पार्थिव घर दिया है। उसके राज्य शासन के अधीन, पृथ्वी की जल्द ही “मरम्मत” की जाएगी—उसे एक सुन्दर परादीस में बदल दिया जाएगा। यहोवा इसे पूरा करेगा। स्वयं एक बड़ी क़ीमत पर, उसने अपना एकलौता पुत्र दिया ताकि यह संभव हो। निश्चित ही, जो वहाँ रहेंगे उनके लिए परमेश्वर की कुछ माँगें होंगी!—भजन ११५:१६; मत्ती ६:९, १०; यूहन्ना ३:१६.
३. परमेश्वर हमसे जो अपेक्षा करता है उसका सारांश सुलैमान ने कैसे दिया?
३ हम कैसे पता लगा सकते हैं कि परमेश्वर की माँगें क्या हैं? सारांश में यह बताने के लिए कि वह हमसे क्या अपेक्षा करता है, यहोवा ने बुद्धिमान राजा सुलैमान को उत्प्रेरित किया। उन सभी लक्ष्यों पर विचार करने के बाद जो उसने साधे थे—जिनमें धन, निर्माण परियोजनाएँ, संगीत रुचि, और रोमानी प्रेम सम्मिलित था—सुलैमान इस निष्कर्ष पर पहुँचा: “सब कुछ सुना गया; अन्त की बात यह है कि परमेश्वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर; क्योंकि मनुष्य का सम्पूर्ण कर्त्तव्य यही है।” (तिरछे टाइप हमारे।)—सभोपदेशक १२:१३.
“उस की आज्ञाएं कठिन नहीं”
४-६. (क) “कठिन” अनुवादित यूनानी शब्द का आक्षरिक अर्थ क्या है? (ख) हम क्यों कह सकते हैं कि परमेश्वर की आज्ञाएँ कठिन नहीं हैं?
४ “उसकी आज्ञाओं का पालन कर।” मूलतः, परमेश्वर हमसे यही अपेक्षा करता है। क्या यह माँग कर वह ज़्यादती कर रहा है? बिलकुल नहीं। प्रेरित यूहन्ना हमें परमेश्वर की आज्ञाओं, या माँगों के बारे में बहुत ही आश्वासन देनेवाली कुछ बात बताता है। उसने लिखा: “परमेश्वर का प्रेम यह है, कि हम उस की आज्ञाओं को मानें; और उस की आज्ञाएं कठिन नहीं।” (तिरछे टाइप हमारे।)—१ यूहन्ना ५:३.
५ “कठिन” अनुवादित यूनानी शब्द का आक्षरिक अर्थ है “भारी।” यह ऐसी बात को सूचित कर सकता है जिसके अनुसार चलना या जिसे पूरा करना मुश्किल हो। मत्ती २३:४ में, इसे “भारी बोझ,” (तिरछे टाइप हमारे।) मनुष्य के बनाए हुए नियमों और परम्पराओं का वर्णन करने के लिए प्रयोग किया गया है, जो शास्त्रियों और फरीसियों ने लोगों पर लादे थे। क्या आपको वृद्ध प्रेरित यूहन्ना के निष्कर्ष का अर्थ समझ आ रहा है? परमेश्वर की आज्ञाएँ एक भारी बोझ नहीं हैं, न ही वे इतनी कठिन हैं कि हम उनका पालन नहीं कर सकते। (व्यवस्थाविवरण ३०:११, NHT से तुलना कीजिए।) इसके विपरीत, जब हम परमेश्वर से प्रेम करते हैं, तब उसकी माँगों को पूरा करना हमें ख़ुशी देता है। यह हमें यहोवा के लिए अपना प्रेम प्रदर्शित करने का एक अनमोल अवसर देता है।
६ परमेश्वर के प्रति अपना प्रेम दिखाने के लिए, हमें सुस्पष्ट रूप से यह जानने की ज़रूरत है कि वह हमसे क्या अपेक्षा करता है। आइए अब परमेश्वर की पाँच माँगों पर चर्चा करें। जब हम ऐसा करते हैं, तब ध्यान में रखिए कि यूहन्ना ने क्या लिखा: ‘परमेश्वर की आज्ञाएं कठिन नहीं।’
परमेश्वर का ज्ञान लीजिए
७. हमारा उद्धार किस बात पर निर्भर है?
७ पहली माँग है परमेश्वर का ज्ञान लेना। यूहन्ना अध्याय १७ में अभिलिखित यीशु के शब्दों पर विचार कीजिए। समय था एक मनुष्य के रूप में यीशु के जीवन की अंतिम रात। यीशु ने शाम का अधिकतर समय अपने प्रेरितों को अपने प्रस्थान के लिए तैयार करने में बिताया था। वह उनके भविष्य, उनके अनन्त भविष्य के बारे में चिन्तित था। अपनी आँखें स्वर्ग की ओर उठाकर उसने उनके लिए प्रार्थना की। आयत ३ में हम पढ़ते हैं: “अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें [“का ज्ञान लें,” NW]।” जी हाँ, उनका उद्धार उनके द्वारा परमेश्वर का और मसीह का भी ‘ज्ञान लेने’ पर निर्भर था। यह हम पर भी लागू होता है। उद्धार पाने के लिए, हमें ऐसा ज्ञान लेना ज़रूरी है।
८. परमेश्वर का ‘ज्ञान लेने’ का क्या अर्थ है?
८ परमेश्वर का ‘ज्ञान लेने’ का क्या अर्थ है? यहाँ ‘ज्ञान लेना’ अनुवादित यूनानी शब्द “जानने, पहचानने लगना,” या “पूरी तरह से समझना” सूचित करता है। इस पर भी ध्यान दीजिए कि अनुवाद ‘ज्ञान लेना’ यह सूचित करता है कि यह एक जारी प्रक्रिया है। अतः परमेश्वर का ज्ञान लेने का अर्थ है उसे सतही रूप से नहीं परन्तु आत्मीय रूप से जानना, उसके साथ एक सहज मित्रता बनाना। परमेश्वर के साथ एक जारी सम्बन्ध रखने से उसका सदा-बढ़ता ज्ञान मिलता है। यह प्रक्रिया सर्वदा चलती रह सकती है, क्योंकि हम कभी यहोवा के बारे में सबकुछ नहीं सीख पाएँगे।—रोमियों ११:३३.
९. सृष्टि की पुस्तक से हम यहोवा के बारे में क्या सीख सकते हैं?
९ हम परमेश्वर का ज्ञान कैसे लें? दो पुस्तकें हैं जो हमारी मदद कर सकती हैं। एक है सृष्टि की पुस्तक। जो वस्तुएँ यहोवा ने सृजी हैं—सजीव और निर्जीव दोनों—हमें इस बारे में कुछ अंतर्दृष्टि देती हैं कि वह किस क़िस्म का व्यक्ति है। (रोमियों १:२०) कुछ उदाहरणों पर विचार कीजिए। प्रतापी झरने की गूँज, तूफ़ान के समय लहरों की हिलोरें, खुली रात को आकाश में तारों का नज़ारा—क्या ऐसी बातें हमें यह नहीं सिखातीं कि यहोवा “अत्यन्त बली” परमेश्वर है? (यशायाह ४०:२६) एक पिल्ले को अपनी दुम का पीछा करते या एक बिलौटे को ऊन के गोले से खेलते देखकर बच्चे का हँसना—क्या यह नहीं सुझाता कि “आनन्दित परमेश्वर,” यहोवा में हास्य-वृत्ति है? (१ तीमुथियुस १:११, NW) स्वादिष्ट भोजन का स्वाद, बाग़ में फूलों की मनभावन सुगन्ध, नाज़ुक तितली के चटकीले रंग, वसन्त में पक्षियों के सुरीले गीत, प्रियजन का स्नेही आलिंगन—क्या हम ऐसी बातों से नहीं समझते कि हमारा सृष्टिकर्ता प्रेम का परमेश्वर है, जो चाहता है कि हम जीवन का आनन्द लें?—१ यूहन्ना ४:८.
१०, ११. (क) यहोवा और उसके उद्देश्यों के बारे में कौन-सी बातें हम सृष्टि की पुस्तक से नहीं सीख सकते? (ख) किन प्रश्नों के उत्तर केवल बाइबल में मिलते हैं?
१० लेकिन, सृष्टि की पुस्तक से हम यहोवा के बारे में जो सीख सकते हैं उसकी एक सीमा है। उदाहरण के लिए: परमेश्वर का क्या नाम है? उसने पृथ्वी की सृष्टि करके उस पर मानवजाति को क्यों रखा? परमेश्वर दुष्टता को अनुमति क्यों देता है? भविष्य में हमारे लिए क्या है? ऐसे प्रश्नों के उत्तर के लिए, हमें दूसरी पुस्तक की ओर जाना ज़रूरी है जो परमेश्वर का ज्ञान देती है—बाइबल। उसके पन्नों पर, यहोवा अपने बारे में बातें प्रकट करता है, जिसमें उसका नाम, उसका व्यक्तित्व, और उसके उद्देश्य सम्मिलित हैं—ऐसी जानकारी जो हम किसी दूसरे स्रोत से प्राप्त नहीं कर सकते।—निर्गमन ३४:६, ७; भजन ८३:१८; आमोस ३:७.
११ शास्त्र में, यहोवा ऐसे दूसरे व्यक्तियों के बारे में भी अत्यावश्यक ज्ञान प्रदान करता है जिनके बारे में हमें जानने की ज़रूरत है। उदाहरण के लिए, यीशु मसीह कौन है, और यहोवा के उद्देश्यों की पूर्ति में वह क्या भूमिका निभाता है? (प्रेरितों ४:१२) शैतान अर्थात् इब्लीस कौन है? किन तरीक़ों से वह लोगों को बहकाता है? हम उसके बहकावे में आने से कैसे बच सकते हैं? (१ पतरस ५:८) इन प्रश्नों के जीवन-रक्षक उत्तर केवल बाइबल में मिलते हैं।
१२. आप कैसे समझाएँगे कि परमेश्वर और उसके उद्देश्यों का ज्ञान लेना क्यों एक भार नहीं है?
१२ परमेश्वर और उसके उद्देश्यों के बारे में ऐसा ज्ञान लेना क्या एक भार है? निश्चित ही नहीं! क्या आपको याद है कि जब पहली बार आपने सीखा था कि परमेश्वर का नाम यहोवा है, कि उसका राज्य इस पृथ्वी पर परादीस पुनःस्थापित करेगा, कि उसने अपने प्रिय पुत्र को हमारे पापों के लिए छुड़ौती के रूप में दिया, साथ ही दूसरी अनमोल सच्चाइयाँ सीखीं, तब आपको कैसा लगा था? क्या यह ऐसा नहीं था मानो अज्ञानता का पट हटाकर पहली बार बातों को स्पष्ट रूप से देखा हो? परमेश्वर का ज्ञान लेना एक भार नहीं है। यह तो प्रसन्नता की बात है!—भजन १:१-३; ११९:९७.
परमेश्वर के स्तरों पर पूरा उतरना
१३, १४. (क) जैसे-जैसे हम परमेश्वर का ज्ञान लेते हैं, हमें अपने जीवन में कौन-से बदलाव करने की ज़रूरत है? (ख) परमेश्वर माँग करता है कि हम किन अशुद्ध अभ्यासों से दूर रहें?
१३ जैसे-जैसे हम परमेश्वर का ज्ञान लेते हैं, हमें समझ आ जाता है कि हमें अपने जीवन में बदलाव करने की ज़रूरत है। यह हमें दूसरी माँग की ओर लाता है। हमें सही आचरण के बारे में परमेश्वर के स्तरों पर पूरा उतरना है और उसका सत्य स्वीकार करना है। सत्य क्या है? क्या असल में परमेश्वर को इससे फ़र्क पड़ता है कि हम क्या मानते हैं और क्या करते हैं? लगता है कि आज अनेक लोग ऐसा नहीं सोचते। चर्च ऑफ़ इंग्लैंड द्वारा १९९५ में प्रकाशित एक रिपोर्ट ने सुझाया कि विवाह किए बिना एकसाथ रहने को पाप नहीं समझा जाना चाहिए। “अभिव्यक्ति ‘पाप में रहना’ कलंक का टीका लगाती है और सहायक नहीं है,” एक चर्च बिशप ने कहा।
१४ तो फिर, क्या “पाप में रहना” अब पाप नहीं है? यहोवा हमें स्पष्ट शब्दों में बताता है कि वह ऐसे आचरण के बारे में कैसा महसूस करता है। उसका वचन, बाइबल कहती है: “विवाह सब में आदर की बात समझी जाए, और बिछौना निष्कलंक रहे; क्योंकि परमेश्वर व्यभिचारियों, और परस्त्रीगामियों का न्याय करेगा।” (इब्रानियों १३:४) विवाह से पहले यौन सम्बन्ध रखना स्वेच्छाचारी पादरियों और गिरजा जानेवालों के विचार से शायद पाप न हो, लेकिन परमेश्वर की दृष्टि में यह एक गंभीर पाप है! और वैसे ही परस्त्रीगमन, कौटुम्बिक व्यभिचार, और समलिंगता भी हैं। (लैव्यव्यवस्था १८:६; १ कुरिन्थियों ६:९, १०) परमेश्वर माँग करता है कि हम ऐसे अभ्यासों से दूर रहें, जिन्हें वह अशुद्ध समझता है।
१५. परमेश्वर की माँगों में ये दोनों बातें कैसे सम्मिलित हैं कि हम दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं और हम क्या विश्वास करते हैं?
१५ लेकिन, उन अभ्यासों से दूर रहना ही काफ़ी नहीं है जिन्हें परमेश्वर पापमय समझता है। परमेश्वर की माँगों में यह भी सम्मिलित है कि हम दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं। परिवार में, वह अपेक्षा करता है कि पति-पत्नी एक दूसरे को प्रेम करें और आदर दें। परमेश्वर माँग करता है कि माता-पिता अपने बच्चों की भौतिक, आध्यात्मिक, और भावात्मक ज़रूरतों को पूरा करें। वह बच्चों को कहता है कि अपने माता-पिता की आज्ञा मानें। (नीतिवचन २२:६; कुलुस्सियों ३:१८-२१) और हमारे विश्वासों के बारे में क्या? यहोवा परमेश्वर चाहता है कि हम उन विश्वासों और रिवाज़ों से दूर रहें जो झूठी उपासना से आते हैं या जो बाइबल में सिखाए गए निर्मल सत्य के विपरीत हैं।—व्यवस्थाविवरण १८:९-१३; २ कुरिन्थियों ६:१४-१७.
१६. समझाइए कि सही आचरण के बारे में परमेश्वर के स्तरों पर पूरा उतरना और उसके सत्य को स्वीकार करना क्यों एक भार नहीं है।
१६ क्या सही आचरण के बारे में परमेश्वर के स्तरों पर पूरा उतरना और उसके सत्य को स्वीकार करना हमारे लिए एक भार है? तब नहीं, जब हम लाभों पर विचार करते हैं—वह विवाह जिसमें पति-पत्नी एक दूसरे से प्रेम करते और एक दूसरे पर भरोसा रखते हैं उस विवाह के बजाय जो विश्वासघात के कारण टूट जाता है; वह घर जहाँ बच्चों को लगता है कि उनके माता-पिता उनसे प्रेम करते और उन्हें चाहते हैं उस परिवार के बजाय जहाँ बच्चों को लगता है कि उनसे प्रेम नहीं किया जाता, उनकी परवाह नहीं की जाती, और उनकी ज़रूरत नहीं है; एक शुद्ध अंतःकरण और अच्छा स्वास्थ्य, दोष भावनाओं और एक ऐसे शरीर के बजाय जो एडस् या किसी दूसरी लैंगिक रूप से फैलनेवाली बीमारी से ग्रस्त हो। निश्चित ही, यहोवा की माँगें हमें किसी ऐसी बात से वंचित नहीं करतीं जिनकी हमें जीवन का आनन्द लेने के लिए ज़रूरत है!—व्यवस्थाविवरण १०:१२, १३.
जीवन और लहू के लिए आदर दिखाइए
१७. यहोवा जीवन और लहू को किस दृष्टि से देखता है?
१७ जैसे-जैसे आप अपने जीवन को परमेश्वर के स्तरों के सामंजस्य में लाते हैं, आप यह समझने लगते हैं कि सचमुच जीवन कितना अनमोल है। आइए अब परमेश्वर की तीसरी माँग पर चर्चा करें। हमें जीवन और लहू के लिए आदर दिखाना है। जीवन यहोवा के लिए पवित्र है। होना ही चाहिए क्योंकि वह जीवन का सोता है। (भजन ३६:९) अपनी माँ के गर्भ में एक अजन्मे बच्चे का जीवन भी यहोवा के लिए अनमोल है! (निर्गमन २१:२२, २३) लहू जीवन को चित्रित करता है। इसलिए, लहू भी परमेश्वर की दृष्टि में पवित्र है। (लैव्यव्यवस्था १७:१४) तो फिर यह आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए कि परमेश्वर हमसे जीवन और लहू को वैसा ही समझने की अपेक्षा करता है जैसा वह समझता है।
१८. जीवन और लहू के बारे में यहोवा का दृष्टिकोण हमसे क्या माँग करता है?
१८ जीवन और लहू के लिए आदर हमसे क्या माँग करता है? मसीही होने के नाते, हम बस रोमांच के लिए अपने जीवन को अनावश्यक जोख़िम में नहीं डालते। हम सुरक्षा का ध्यान रखते हैं और इसलिए यह निश्चित करते हैं कि हमारी गाड़ियाँ और घर सुरक्षित हैं। (व्यवस्थाविवरण २२:८) हम तम्बाकू का प्रयोग नहीं करते, सुपारी नहीं चबाते, या मज़े के लिए व्यसनकारी अथवा मति-भ्रष्ट करनेवाली दवाएँ नहीं लेते। (२ कुरिन्थियों ७:१) क्योंकि जब परमेश्वर कहता है ‘लोहू से परे रहो’ हम उसकी सुनते हैं, इसलिए हम अपने शरीर में लहू नहीं चढ़ाने देते। (प्रेरितों १५:२८, २९) हालाँकि हमें जीवन प्यारा है, हम परमेश्वर के नियम तोड़कर अपने वर्तमान जीवन को बचाने की कोशिश नहीं करेंगे, और इस प्रकार अपने अनन्त जीवन की प्रत्याशा को जोख़िम में नहीं डालेंगे!—मत्ती १६:२५.
१९. समझाइए कि जीवन और लहू के लिए आदर दिखाने से हम कैसे लाभ उठाते हैं।
१९ क्या जीवन और लहू को पवित्र समझना हमारे लिए एक भार है? निश्चित ही नहीं! इसके बारे में सोचिए। क्या तम्बाकू पीने के कारण होनेवाले फेफड़ों के कैंसर से बचना एक भार है? क्या हानिकर दवाओं के मानसिक और शारीरिक व्यसन से बचना एक भार है? क्या रक्ताधान के कारण एडस्, यकृत-शोथ, या कोई और बीमारी लगने से बचना एक भार है? स्पष्टतया, हमारा हानिकर आदतों और अभ्यासों से दूर रहना हमारे हित में है।—यशायाह ४८:१७.
२०. जीवन के बारे में परमेश्वर का दृष्टिकोण रखने से एक परिवार को कैसे लाभ हुआ?
२० इस अनुभव पर विचार कीजिए। कुछ साल पहले, एक साक्षी स्त्री को, जिसे क़रीब साढ़े तीन महीने का गर्भ था, एक शाम रक्तस्राव होने लगा और उसे जल्दी से अस्पताल ले जाया गया। एक डॉक्टर द्वारा उसकी जाँच किए जाने के बाद, उसने डॉक्टर को एक नर्स से यह कहते सुना कि उन्हें गर्भ गिराना पड़ेगा। यह जानते हुए कि यहोवा अजन्मे बच्चे के जीवन को किस दृष्टि से देखता है, उसने गर्भपात कराने के लिए दृढ़ता से मना कर दिया, और डॉक्टर से कहा: “यदि वह जीवित है, तो उसे वहीं रहने दीजिए!” उसे कभी-कभी कुछ रक्तस्राव होता रहा, लेकिन कई महीने बाद उसने समयपूर्व एक स्वस्थ लड़के को जन्म दिया जो अब १७ साल का है। उसने समझाया: “हमारे पुत्र को यह सब बताया गया, और उसने कहा कि वह ख़ुश है कि उसे कचरे में नहीं फेंक दिया गया। वह जानता है कि हमारा यहोवा की सेवा करना वह एकमात्र कारण है कि वह जीवित भी है।” निश्चित ही, जीवन के प्रति परमेश्वर का दृष्टिकोण रखना इस परिवार के लिए कोई भार नहीं था!
यहोवा के संगठित लोगों के साथ मिलकर सेवा करना
२१, २२. (क) यहोवा हमसे किसके साथ उसकी सेवा करने की अपेक्षा करता है? (ख) परमेश्वर के संगठित लोगों को कैसे पहचाना जा सकता है?
२१ अपने जीवन को परमेश्वर के स्तरों के सामंजस्य में लाने के लिए ज़रूरी बदलाव करनेवाले हम अकेले नहीं हैं। इस पृथ्वी पर यहोवा के एक लोग हैं, और वह अपेक्षा करता है कि हम उनके साथ मिलकर उसकी सेवा करें। यह हमें चौथी माँग की ओर लाता है। हमें यहोवा के आत्मा-निर्देशित संगठन के साथ उसकी सेवा करनी है।
२२ लेकिन, परमेश्वर के संगठित लोगों को कैसे पहचाना जा सकता है? शास्त्र में दिए गए स्तरों के अनुसार, वे अपने बीच सच्चा प्रेम रखते हैं, उन्हें बाइबल के लिए गहरा आदर है, वे परमेश्वर के नाम का सम्मान करते हैं, वे उसके राज्य के बारे में प्रचार करते हैं, और वे इस दुष्ट संसार का भाग नहीं हैं। (मत्ती ६:९; २४:१४; यूहन्ना १३:३४, ३५; १७:१६, १७) इस पृथ्वी पर केवल एक धार्मिक संगठन है जिसके पास सच्ची मसीहियत के ये सभी चिन्ह हैं—यहोवा के साक्षी!
२३, २४. हम कैसे सचित्रित कर सकते हैं कि यहोवा के संगठित लोगों के साथ मिलकर उसकी सेवा करना एक भार नहीं है?
२३ क्या यहोवा के संगठित लोगों के साथ मिलकर उसकी सेवा करना एक भार है? जी नहीं, बिलकुल नहीं! इसके विपरीत, मसीही भाई-बहनों के एक विश्वव्यापी परिवार का प्रेम और सहारा पाना एक अनमोल विशेषाधिकार है। (१ पतरस २:१७) कल्पना कीजिए कि एक जहाज़ के डूबने पर आप बच गए हैं, और अब डूबने से बचने के लिए अपने आपको पानी में हाथ-पैर मारते हुए पाते हैं। जब आपको लगता है कि अब आपके बस की नहीं, तभी एक रक्षानौका में से एक हाथ आपकी ओर बढ़ता है। जी हाँ, दूसरे लोग भी बचे हैं! रक्षानौका में, आप और दूसरे बारी-बारी से चप्पू चलाते हुए, रास्ते में दूसरे उत्तरजीवियों को साथ लेते हुए, किनारे की ओर बढ़ते हैं।
२४ क्या हम समान स्थिति में नहीं हैं? हमें इस दुष्ट संसार के ख़तरनाक “पानी” में से निकालकर यहोवा के पार्थिव संगठन की “रक्षानौका” में लाया गया है। इसमें, हम कन्धे से कन्धा मिलाकर काम करते हैं, जैसे-जैसे हम एक धर्मी नए संसार के “किनारे” की ओर बढ़ते हैं। यदि रास्ते में जीवन के दबाव हमें थका दें, तो हम सच्चे मसीही साथियों की सहायता और सांत्वना के लिए कितने शुक्रगुज़ार हैं!—नीतिवचन १७:१७.
२५. (क) हमारी उनके प्रति क्या बाध्यता है जो अभी भी इस दुष्ट संसार के “पानी” में हैं? (ख) अगले लेख में परमेश्वर की कौन-सी माँग पर चर्चा की जाएगी?
२५ दूसरों के बारे में क्या—सत्हृदयी लोग जो अभी भी “पानी” में हैं? हम पर यह बाध्यता है कि उन्हें यहोवा के संगठन में आने के लिए मदद दें, है कि नहीं? (१ तीमुथियुस २:३, ४) उन्हें परमेश्वर की माँगों के बारे में सीखने के लिए मदद की ज़रूरत है। यह हमें परमेश्वर की पाँचवीं माँग की ओर लाता है। हमें परमेश्वर के राज्य के निष्ठावान उद्घोषक होना है। इसमें क्या सम्मिलित है उसकी चर्चा अगले लेख में की जाएगी।
क्या आपको याद है?
◻ परमेश्वर की आज्ञाएँ क्यों कठिन नहीं हैं?
◻ हम परमेश्वर का ज्ञान कैसे लें?
◻ सही आचरण के बारे में परमेश्वर के स्तरों पर पूरा उतरना और उसका सत्य स्वीकार करना क्यों एक भार नहीं है?
◻ जीवन और लहू के बारे में परमेश्वर का दृष्टिकोण हमसे क्या माँग करता है?
◻ परमेश्वर हमसे किसके साथ उसकी सेवा करने की अपेक्षा करता है, और उन्हें कैसे पहचाना जा सकता है?
[पेज 18 पर तसवीरें]
हम यहोवा के बारे में सृष्टि की पुस्तक से और बाइबल से सीखते हैं
[चित्रों का श्रेय]
मगरमच्छ: By courtesy of Australian International Public Relations; भालू: Safari-Zoo of Ramat-Gan, Tel Aviv