यहोवा की भेड़ों की देखभाल करनेवाले ‘मनुष्यों में दान’
‘वह ऊंचे पर चढ़ा, और बन्धुओं को बान्ध ले गया, और मनुष्यों में दान दिए।’ — इफिसियों ४:८.
१. एक मसीही बहन ने अपनी कलीसिया के प्राचीनों के बारे में क्या लिखा?
“हमारी देखभाल करने के लिए आपका लाख-लाख शुक्रिया। आपकी हर मुस्कान से प्यार झलकता है। आप हमें दिल से प्यार करते हैं, दिल से हमारी चिंता करते हैं। हमारी बातें सुनने के लिए और बाइबल के वचनों से हमारा हौसला बढ़ाने के लिए आप हमेशा तैयार रहते हैं। इसलिए मेरी यही दुआ है कि मैं हमेशा आपकी एहसानमंद रहूँ।” एक मसीही बहन ने अपनी कलीसिया के प्राचीनों को एक खत में ऐसा लिखा। इस बहन की बातों से यही ज़ाहिर होता है कि उसकी कलीसिया के मसीही चरवाहे अपने भाई-बहनों से बहुत प्यार करते थे, उनकी देखभाल करते थे और इसी बात ने उस बहन के दिल को छू लिया था।—१ पतरस ५:२, ३.
२, ३. (क) यशायाह ३२:१, २ के मुताबिक, प्राचीनों को यहोवा की भेड़ों की देखभाल कैसे करनी है? (ख) प्राचीन कब एक दान साबित हो सकता है?
२ यहोवा ने अपनी भेड़ों की देखभाल करने के लिए प्राचीनों का इंतज़ाम किया है। (लूका १२:३२; यूहन्ना १०:१६) हम जानते हैं कि यहोवा को अपनी भेड़ें बहुत प्यारी हैं। इसीलिए उसने अपने प्यारे बेटे यीशु के लहू से उन्हें मोल लिया है। सो जब प्राचीन यहोवा के झुंड के साथ कोमलता से पेश आते हैं तब यहोवा को बहुत खुशी होती है। (प्रेरितों २०:२८, २९) ध्यान दीजिए कि इन प्राचीनों या ‘राजकुमारों’ के बारे में भविष्यवाणी क्या कहती है: “हर एक मानो आंधी से छिपने का स्थान, और बौछार से आड़ होगा; या निर्जल देश में जल के झरने, व तप्त भूमि में बड़ी चट्टान की छाया।” (यशायाह ३२:१, २) जी हाँ, इस वचन के मुताबिक प्राचीनों को यहोवा की भेड़ों की रक्षा करनी है, उन्हें ताज़गी देनी है और आराम पहुँचाना है। सो, जब प्राचीन दया और करुणा के साथ झुंड की रखवाली करते हैं, तो वे वही करने की कोशिश करते हैं जिसकी यहोवा उनसे उम्मीद करता है।
३ ऐसे प्राचीनों को बाइबल में ‘मनुष्यों में दान’ कहा गया है। (इफिसियों ४:८) जब आप किसी को दान या तोहफा देते हैं, तो आप कोई ऐसी चीज़ देते हैं जिससे उसकी ज़रूरत पूरी होती है या उसे खुशी मिलती है। ठीक इसी तरह, एक प्राचीन भी कलीसिया के लिए एक दान साबित हो सकता है जब वह ज़रूरत के वक्त मदद करने और झुंड की खुशियाँ बढ़ाने के लिए अपनी काबिलीयत का इस्तेमाल करता है। लेकिन, प्राचीन ऐसा कैसे कर सकता है? इसका जवाब हमें पौलुस के शब्दों में इफिसियों ४:७-१६ में मिलता है। इन आयतों से हमें साफ-साफ पता चलता है कि यहोवा अपनी भेड़ों से कितना प्यार करता है और उनकी कितनी चिंता करता है।
‘मनुष्यों में दान’—ये कहाँ से आए हैं?
४. भजन ६८:१८ की भविष्यवाणी के मुताबिक, किस अर्थ में यहोवा “ऊंचे पर चढ़ा” और ‘मनुष्यों में भेंट’ कौन थे?
४ ‘मनुष्यों में दान,’ इन शब्दों को पौलुस ने राजा दाऊद के भजन से लिया था। राजा दाऊद ने इस भजन को यहोवा पर लागू करते हुए कहा: “तू ऊंचे पर चढ़ा, तू लोगों को बन्धुआई में ले गया; तू ने [अपने लिए] मनुष्यों . . . [में] भेंटें लीं।” (भजन ६८:१८) इस्राएलियों के वादा किए हुए देश में बसने के कुछ साल बाद यहोवा एक लाक्षणिक अर्थ में सिय्योन पहाड़ पर “चढ़ा,” और उसने यरूशलेम को इस्राएल के राज्य की राजधानी बनायी और दाऊद को उसका राजा। लेकिन ये ‘मनुष्यों में भेंट’ या दान कौन थे? ये वे पुरुष थे जिन्हें बंधुआ बना लिया गया था जब वादा किए हुए देश पर जीत हासिल की गयी थी। बाद में इनमें से कुछ बंधुओं को लेवियों को सौंप दिया गया, ताकि वे निवासस्थान के काम-काज में उनका हाथ बटाएँ।—एज्रा ८:२०.
५. (क) पौलुस कैसे बताता है कि भजन ६८:१८ के शब्दों की बड़ी पूर्ति मसीही कलीसिया पर होती है? (ख) यीशु किस तरह “ऊंचे पर चढ़ा”?
५ पौलुस ने इफिसियों को लिखी अपनी पत्री में बताया कि भजनहार दाऊद के इन शब्दों की बड़ी पूर्ति मसीही कलीसिया पर होती है। भजन ६८:१८ में लिखे दाऊद के शब्दों को समझाते हुए पौलुस कहता है: “हम में से हर एक को मसीह के दान के परिमाण से अनुग्रह मिला है। इसलिये वह कहता है, कि वह ऊंचे पर चढ़ा, और बन्धुवाई [बन्धुओं] को बान्ध ले गया, और मनुष्यों को [में] दान दिए।” (इफिसियों ४:७, ८) यहाँ पौलुस इस भजन को परमेश्वर द्वारा भेजे गए यीशु पर लागू करता है। यीशु ने मरते दम तक वफादार रहकर इस “संसार को जीत लिया” था। (यूहन्ना १६:३३) उसने मृत्यु पर और शैतान पर भी जीत हासिल की थी, क्योंकि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जी उठाया था। (प्रेरितों २:२४; इब्रानियों २:१४) इसलिए, यीशु सा.यु. ३३ में पुनरुत्थान पाकर “ऊंचे पर चढ़ा,” यानी ‘सारे आकाश से ऊपर चढ़’ गया, और उसे बाकी सभी स्वर्गदूतों से ऊँचा पद दिया गया। (इफिसियों ४:९, १०; फिलिप्पियों २:९-११) जीत हासिल करके यीशु अपने शत्रुओं में से कुछ लोगों को ‘बंधुआ’ बनाकर ले गया। वह कैसे?
६. स्वर्ग में पहुँचने के बाद, यीशु ने सा.यु. ३३ के पिन्तेकुस्त से शैतान के घर को किस तरह लूटना शुरू कर दिया, और उसने उन ‘बन्धुओं’ का क्या किया?
६ जब यीशु इस ज़मीन पर था, तब उसने दुष्टात्माओं के वश से लोगों को छुड़ाया और इस तरह दिखाया कि उसके पास शैतान से ज़्यादा ताकत है। यह मानो ऐसा था कि यीशु ने शैतान के ही घर में घुसकर उसे बाँध दिया और उसका माल लूट लिया। (मत्ती १२:२२-२९) पुनरुत्थान पाने के बाद यीशु को “स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार” दिया गया। सो ज़रा कल्पना कीजिए कि ये सारा अधिकार पाने के बाद यीशु शैतान से और कितना कुछ लूट सकता है! (मत्ती २८:१८) यीशु ने स्वर्ग पहुँचकर सा. यु. ३३ के पिन्तेकुस्त से ऐसा ही किया। उसने परमेश्वर की तरफ से शैतान के घर में घुसकर उसे लूटना शुरू कर दिया और ‘बन्धुओं को ले गया।’ ये ‘बंधुए’ ऐसे पुरुष थे जो काफी समय से पाप और मृत्यु की गुलामी में थे और शैतान के वश में थे, लेकिन अब वे “मसीह के दासों की नाईं मन से परमेश्वर की इच्छा पर” चलने के लिए राज़ी हो गए थे। (इफिसियों ६:६) असल में, यीशु ने इन बंधुओं को शैतान के वश से छुड़ा लिया और यहोवा की तरफ से कलीसिया को दे दिया, ताकि वे कलीसिया के लिये ‘मनुष्यों में दान’ हों। शैतान की बेबसी और क्रोध की कल्पना कीजिए जब उसकी आँखों के सामने इन पुरुषों को उससे छीन लिया गया और वह कुछ भी न कर सका!
७. (क) आज कलीसिया में ये ‘मनुष्यों में दान’ कौन हैं और वे क्या-क्या करते हैं? (ख) यहोवा ने हर प्राचीन को क्या साबित करने का बढ़िया मौका दिया है?
७ क्या आज भी कलीसिया में ‘मनुष्यों में दान’ हैं? हाँ, ज़रूर हैं! ये लोग ऐसे प्राचीन हैं, जो आज दुनिया भर में परमेश्वर के लोगों की ८७,००० से ज़्यादा कलीसियाओं में सेवा करते हैं। ये प्राचीन ‘सुसमाचार सुनाने, रखवाली करने और उपदेश देने’ के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। (इफिसियों ४:११) लेकिन सोचिए कि अगर ये प्राचीन झुंड के रक्षक होने के बजाय उसके भक्षक बन जाएँ तो शैतान को कितनी खुशी होगी। दरअसल शैतान तो बस यही चाहता है! लेकिन, परमेश्वर ने यीशु द्वारा उन्हें इसलिए नहीं दिया है कि वे कलीसिया को सताएँ। इसके बजाय, उसने इन पुरुषों को इसीलिए ठहराया है ताकि वे कलीसिया की देखभाल करें। और जो भेड़ें उन्हें सौंपी गयी हैं, उनके लिए उन्हें यहोवा को लेखा भी देना होगा। (इब्रानियों १३:१७) सो, अगर आप एक प्राचीन हैं, तो यहोवा ने आपको यह साबित करने का एक बहुत ही बढ़िया मौका दिया है कि आप अपने भाइयों के लिए सचमुच दान हैं, एक आशीष हैं। और आप चार ज़रूरी ज़िम्मेदारियों को पूरा करके सचमुच ऐसा दान या आशीष साबित हो सकते हैं।
जब किसी ‘सुधार’ की ज़रूरत हो
८. हमें कई बार किन-किन बातों में सुधार करनी पड़ती है?
८ पहली ज़िम्मेदारी। जैसे पौलुस कहता है कि ‘मनुष्यों में दान’ को इसलिए दिया गया है ताकि “पवित्र लोग सिद्ध हो [सुधारे] जाएं।” (इफिसियों ४:१२) यहाँ पर जिस यूनानी संज्ञा का अनुवाद “सिद्ध” किया गया है, उसका मतलब है किसी चीज़ को “सुधारना और सही-सही बिठाना।” असिद्ध होने की वज़ह से हम सभी को कई बार अपने सोच-विचार, अपनी मनोवृत्ति या अपने चालचलन को “सुधारना” पड़ता है और उसे परमेश्वर के सोच-विचार और उसके उद्देश्यों के अनुसार “सही-सही बिठाना” पड़ता है। और हमारे लिए प्रेम की खातिर यहोवा ने हमें ‘मनुष्यों में दान’ दिए हैं जो ऐसा करने में हमारी मदद करते हैं। मगर, वे हमारी मदद कैसे करते हैं?
९. एक प्राचीन गलती करनेवाले व्यक्ति को सुधरने में कैसे मदद कर सकता है?
९ अगर कभी किसी प्राचीन से कहा जाए कि वह एक ऐसे व्यक्ति की मदद करे जिसने कोई गलती की है, और अनजाने में किसी ‘अपराध में पड़’ गया है, तो वह उसकी मदद कैसे कर सकता है? गलतियों ६:१ (नयी हिन्दी बाइबल) कहता है कि ऐसे व्यक्ति को “नम्रतापूर्वक सुधारो।” सो, जब प्राचीन ऐसे व्यक्ति को सुधारने के लिए कोई सलाह देता है, तो उसे डाँटना नहीं चाहिए या कठोर शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। उसे सलाह देकर व्यक्ति को ‘डराना’ नहीं चाहिए, इसके बजाय उसका हौसला बढ़ाना चाहिए। (२ कुरिन्थियों १०:९. अय्यूब ३३:७ से तुलना कीजिए।) हो सकता है कि गलती करके वह व्यक्ति पहले से ही बहुत शर्मिंदा हो, इसलिए प्रेमी चरवाहे को उसे और दुखी नहीं करना चाहिए। और जब गलती करनेवाला व्यक्ति जानता है कि प्राचीन उसे इसीलिए सलाह या ताड़ना दे रहा है क्योंकि वह उससे प्यार करता है तो इसकी ज़्यादा गुंजाइश है कि वह अपने सोच-विचार या चाल-चलन को सुधारेगा और संभल जाएगा। इसलिए प्राचीनों को ऐसी सलाह या ताड़ना प्यार की खातिर और प्यार से देनी चाहिए।—२ तीमुथियुस ४:२.
१०. दूसरों को सुधारने में क्या-क्या शामिल है?
१० जब यहोवा ने हमें सुधारने के लिए ‘मनुष्यों में दान’ दिए, तो वह चाहता था कि प्राचीन कलीसिया को आध्यात्मिकता में मज़बूत करें और कलीसिया में एक अच्छी मिसाल बन कर रहें। (१ कुरिन्थियों १६:१७, १८; फिलिप्पियों ३:१७) लेकिन दूसरों को सुधारने का मतलब सिर्फ इतना ही नहीं है कि गुमराह हो रहे व्यक्ति को सही राह दिखाना, बल्कि उन्हें वफादार मसीहियों की भी मदद करनी चाहिए ताकि वे सही राह पर चलते रहें।a आज वफादार मसीहियों की ज़िंदगी में इतनी सारी मुसीबतें और परेशानियाँ आती हैं कि कई मसीही बिलकुल निराश हो जाते हैं। इसलिए उन्हें सही रास्ते पर चलते रहने के लिए हौसले और हिम्मत की ज़रूरत है। दूसरों को यह समझने के लिए प्यार-भरी मदद की ज़रूरत हो कि परमेश्वर उनके बारे में क्या सोचता है। उदाहरण के लिए, शायद कुछ वफादार मसीहियों के दिल में ऐसे विचार घर कर गए हों कि वे किसी लायक नहीं हैं, किसी को उनकी ज़रूरत नहीं है। ऐसे “हताश” लोगों को लगे कि यहोवा उन्हें फिर कभी प्यार नहीं कर सकता और चाहे परमेश्वर की सेवा में वे जितनी भी मेहनत करें, वह उसे कभी कबूल नहीं करेगा, कभी पसंद नहीं करेगा। (१ थिस्सलुनीकियों ५:१४, NW) लेकिन, ऐसे “हताश” लोगों को यह समझना होगा कि परमेश्वर अपने उपासकों के बारे में ऐसा बिलकुल भी नहीं सोचता।
११. प्राचीन ऐसे लोगों की मदद करने के लिए क्या कर सकते हैं जिन्हें लगता है कि किसी को उनकी ज़रूरत नहीं है?
११ सो प्राचीनो, ऐसे लोगों की मदद करने के लिए आप क्या कर सकते हैं जिन्हें लगता है कि वे किसी लायक नहीं हैं, किसी को उनकी ज़रूरत नहीं है? उनकी मदद करने के लिए शास्त्रवचनों से उन्हें समझाइए कि यहोवा अपने हर सेवक की चिंता करता है, और इसका मतलब यही है कि यहोवा उनसे भी बेहद प्यार करता है और उनकी बहुत परवाह करता है। (लूका १२:६, ७, २४) उन्हें यह भी समझने में मदद कीजिए कि खुद यहोवा ने उन्हें अपनी ओर ‘खींचा’ है ताकि वे उसकी सेवा करें। सो यह साफ है कि यहोवा ने ज़रूर उनमें कुछ अच्छा देखा है, और वह उन्हें बहुत अनमोल समझता है। (यूहन्ना ६:४४) उन्हें बताइए कि यहोवा के पहले के कई वफादार सेवक उनकी तरह ही महसूस करते थे। जैसे भविष्यवक्ता एलिय्याह एक बार इतना हताश हो गया था कि वह मर जाना चाहता था। (१ राजा १९:१-४) और पहली सदी के कुछ अभिषिक्त मसीहियों का ‘मन उन्हें दोष’ देता था। (१ यूहन्ना ३:१९, २०) सो, इन लोगों को यह जानकर भी तसल्ली मिलेगी कि बाइबल के ज़माने के वफादार सेवक भी ‘हमारे ही जैसी भावना रखनेवाले’ मनुष्य थे। (याकूब ५:१७, NW) आप इन हताश लोगों के साथ प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! के कुछ खास लेखों की चर्चा करके इनका हौसला बढ़ा सकते हैं। इस तरह, जब आप प्यार से इनका हौसला बढ़ाने के लिए मेहनत करते हैं, तब परमेश्वर आपको इसका फल ज़रूर देगा, क्योंकि उसी ने आपको ‘मनुष्यों में दान’ ठहराया है।—इब्रानियों ६:१०.
झुंड की ‘उन्नति करना’
१२. “मसीह की देह उन्नति पाए” इन शब्दों का मतलब क्या है, और झुंड की उन्नति करने का राज़ क्या है?
१२ ‘मनुष्यों में दान’ की दूसरी ज़िम्मेदारी है यह देखना कि “मसीह की देह उन्नति पाए।” (इफिसियों ४:१२) यहाँ पर पौलुस “उन्नति” के लिए जिस यूनानी शब्द का इस्तेमाल करता है, वह निर्माण-कार्य से जुड़ा हुआ शब्द है, और “मसीह की देह” का मतलब है अभिषिक्त मसीही कलीसिया के सदस्य। (१ कुरिन्थियों १२:२७; इफिसियों ५:२३, २९, ३०) सो प्राचीनों को अपने भाइयों की मदद करनी चाहिए ताकि वे आध्यात्मिकता में बढ़ते जाएँ और मज़बूत होते जाएँ। उनका उद्देश्य है झुंड को ‘बनाना, न कि बिगाड़ना।’ (२ कुरिन्थियों १०:८) और उन्नति का राज़ है प्रेम, क्योंकि “प्रेम से उन्नति होती है।”—१ कुरिन्थियों ८:१.
१३. हमदर्दी दिखाने का मतलब क्या है, और प्राचीनों को हमदर्दी जताना इतना ज़रूरी क्यों है?
१३ झुंड की उन्नति के लिए प्राचीनों को जो प्रेम दिखाने की ज़रूरत है उसमें हमदर्दी भी होनी चाहिए। हमदर्दी दिखाने का मतलब है दूसरों के दुःखों में सहभागी होना, यानी उनकी तरह सोचना, उनकी भावनाओं को अपने दिल में महसूस करना और उनकी कमज़ोरियों को ध्यान में रखना। (१ पतरस ३:८) मगर प्राचीनों को हमदर्दी जताना इतना ज़रूरी क्यों है? सबसे पहली और सबसे बड़ी वज़ह तो यह है कि खुद यहोवा, जो ‘मनुष्यों में दान’ देता है, हमदर्दी जतानेवाला परमेश्वर है। जब उसके सेवक दुःख उठाते या तकलीफ में होते हैं, तो उसे भी दुःख होता है। (निर्गमन ३:७; यशायाह ६३:९) और वह अपने सेवकों की कमियों को बहुत अच्छी तरह जानता और समझता है। (भजन १०३:१४) तो फिर, प्राचीन हमदर्दी कैसे दिखा सकते हैं?
१४. प्राचीन हमदर्दी कैसे दिखा सकते हैं?
१४ जब कोई हताश व्यक्ति प्राचीनों के पास आकर बात करता है, तो वे उसकी बातों को ध्यान से सुनते हैं और उसकी भावनाओं को समझने की कोशिश करते हैं। वे यह भी समझने की कोशिश करते हैं कि उस भाई की परवरिश कौन-से हालात में हुई थी, उसके अभी के हालात कैसे हैं, उसका स्वभाव और व्यक्तित्व कैसा है। जब प्राचीन इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए उस व्यक्ति का बाइबल से हौसला बढ़ाएँगे और उसकी मदद करेंगे, तो वह बड़ी आसानी से इसे कबूल करेगा क्योंकि उसे एहसास होगा कि वे ऐसे चरवाहे हैं जो उसे सचमुच अच्छी तरह समझते हैं और दिल से उसकी चिंता करते हैं। (नीतिवचन १६:२३) हमदर्दी की वज़ह से प्राचीन अपने भाइयों की कमियों को और कमियों की वज़ह से पैदा होनेवाली भावनाओं को समझने की कोशिश करेगा। मिसाल के तौर पर, कुछ वफादार और जोशीले मसीही शायद खुद को बहुत कोसते होंगे क्योंकि वे परमेश्वर की उतनी सेवा नहीं कर पाते जितनी वे करना चाहते हैं। हो सकता है कि अब उनकी उम्र ढल गयी हो या उनकी सेहत अच्छी नहीं हो। या फिर किसी को अपनी सेवकाई को और भी बेहतर करने के लिए थोड़ी-बहुत मदद की ज़रूरत हो। (इब्रानियों ५:१२; ६:१) सो अगर हमदर्दी है तो प्राचीन ‘मनभावने शब्दों’ से उनका हौसला बढ़ा सकते हैं और उनकी उन्नति कर सकते हैं। (सभोपदेशक १२:१०) इस तरह, जब यहोवा की भेड़ों का हौसला बढ़ाया जाता है और उनकी उन्नति की जाती है, तो यहोवा के लिए उनका प्रेम उन्हें उकसाएगा कि वे पूरे दिल से और उनसे जितनी हो सके उतनी उसकी सेवा करें!
एकता बढ़ानेवाले पुरुष
१५. ‘विश्वास में एक’ का मतलब क्या है?
१५ अब उनकी तीसरी ज़िम्मेदारी। ‘मनुष्यों में दान’ इसीलिए दिए गए हैं ताकि “हम सब के सब विश्वास में, और परमेश्वर के पुत्र के पूर्ण ज्ञान में एक . . . हो जाएं।” (इफिसियों ४:१३, NHT) ‘विश्वास में एक’ का मतलब सिर्फ समान विश्वास ही नहीं है, बल्कि विश्वास करनेवालों के बीच एकता भी है। सो, परमेश्वर ने हमें ‘मनुष्यों में दान’ इसलिए भी दिए हैं ताकि वे परमेश्वर के लोगों के बीच एकता बढ़ाएँ और उसे कायम रखें। लेकिन, वे यह कैसे करते हैं?
१६. यह क्यों ज़रूरी है कि खुद प्राचीनों में एकता हो?
१६ सबसे पहले तो खुद प्राचीनों में एकता होनी चाहिए। अगर चरवाहों में ही फूट पड़ी हो, तो भेड़ों की तरफ कौन ध्यान देगा? और जो कीमती समय झुंड की देखभाल करने में बिताया जा सकता है, वही समय छोटी-मोटी बातों पर बहस करने में और प्राचीनों की लंबी-चौड़ी मीटिंगों में नाहक बरबाद होगा। (१ तीमुथियुस २:८) फिर भी, हमेशा ऐसा नहीं हो सकता कि सभी प्राचीन हर बात पर सहमत हों, क्योंकि हरेक प्राचीन का अलग-अलग व्यक्तित्व होता है। हर प्राचीन अपनी-अपनी राय रख सकता है और जब किसी बात पर खुलकर चर्चा की जाती है तो अपनी राय को सही और उचित तरीके से ज़ाहिर कर सकता है। मगर, प्राचीनों में एकता तब बनी रहती है जब वे आदर के साथ एक-दूसरे की राय को सुनते हैं और किसी के बारे में पहले से ही राय कायम नहीं करते। सो, अगर किसी मामले में बाइबल का कोई सिद्धांत नहीं तोड़ा जा रहा, तो हर प्राचीन को सभी प्राचीनों द्वारा लिए गए फैसले को कबूल करने के लिए और उनका साथ देने के लिए तैयार रहना चाहिए। इस तरह वे दिखाएँगे कि उनके पास वह “ज्ञान” है जो “ऊपर से आता है,” और जो “मिलनसार, कोमल” है।—याकूब ३:१७, १८.
१७. प्राचीन कलीसिया की एकता को बनाए रखने में कैसे मदद कर सकते हैं?
१७ प्राचीन इस बात की तरफ भी ध्यान देते हैं कि वे कलीसिया में एकता को बढ़ावा दें। जब कोई व्यक्ति गपशप करके, या किसी की नीयत पर शक करके, या किसी से दुश्मनी लेकर कलीसिया में फूट डालने की कोशिश करता है और कलीसिया की शांति के लिए खतरा पैदा करता है, तो प्राचीन फौरन सलाह देकर उसकी मदद करते हैं। (फिलिप्पियों २:२, ३) मिसाल के तौर पर, प्राचीन कलीसिया में ऐसे लोगों के बारे में जानते होंगे जो हद से ज़्यादा निंदा करते हैं या जिन्हें दूसरों के मामलों में टाँग अड़ाने की आदत-सी होती है, और जो दखलअंदाज़ी करते हैं। (१ तीमुथियुस ५:१३; १ पतरस ४:१५) तो, प्राचीन ऐसे लोगों को यह समझाने की कोशिश करेंगे कि वे जो कुछ कर रहे हैं, परमेश्वर की शिक्षाओं के खिलाफ कर रहे हैं, और उन्हें सिर्फ ‘अपना ही बोझ उठाना’ चाहिए। (गलतियों ६:५, ७; १ थिस्सलुनीकियों ४:९-१२) वे बाइबल से उन्हें समझाएँगे कि यहोवा कई बातों का फैसला हम पर छोड़ देता है, सो हममें से किसी को भी दूसरों द्वारा लिए गए फैसलों की निंदा नहीं करनी चाहिए। (मत्ती ७:१, २; याकूब ४:१०-१२) सो, अगर पूरी कलीसिया में एकता होनी है तो भाइयों को एकदूसरे पर भरोसा करना चाहिए और आदर करना चाहिए। इस तरह, ज़रूरत पड़ने पर शास्त्रों से सलाह देकर ‘मनुष्यों में दान’ पूरी कलीसिया की शांति और एकता को बनाए रखने में हमारी मदद करते हैं।—रोमियों १४:१९.
झुंड की रक्षा करना
१८, १९. (क) ‘मनुष्यों में दान’ किससे हमारी रक्षा करते हैं? (ख) और किन खतरों से भेड़ों की रक्षा करने की ज़रूरत है, और उनकी रक्षा करने के लिए प्राचीन क्या करते हैं?
१८ अब उनकी चौथी ज़िम्मेदारी। यहोवा ने ‘मनुष्यों में दान’ इसलिए दिए हैं ताकि वे हमें “मनुष्यों की ठग-विद्या और चतुराई से [और] उन के भ्रम की युक्तियों की, और उपदेश की, हर एक बयार से उछाले” जाने से बचाएँ। (इफिसियों ४:१४) “ठग-विद्या” के लिए जिस यूनानी शब्द का इस्तेमाल किया गया था, उसका असल में मतलब है “पाँसा फेंकते वक्त धोखाधड़ी करना” या “पाँसे को अपनी मर्ज़ी के मुताबिक पलटने की चाल।” क्या इससे हमें यह नहीं पता चलता कि सच्ची मसीहियत से विद्रोह करनेवाले धर्मत्यागी कितनी चालाकी से काम करते हैं? वे सच्चे मसीहियों को विश्वास से भटकाने के लिए बड़ी चिकनी-चुपड़ी बातों का इस्तेमाल करते हैं और शास्त्रवचनों का गलत मतलब निकालते हैं। सो, प्राचीनों को हमेशा सतर्क और होशियार रहना चाहिए कि कहीं ऐसे “फाड़नेवाले भेड़िए” कलीसिया में न आ जाएँ!—प्रेरितों २०:२९, ३०.
१९ यहोवा की भेड़ों की, दूसरे खतरों से भी रक्षा करने की ज़रूरत है। इसकी एक अच्छी मिसाल है पुराने ज़माने का चरवाहा दाऊद जिसने निडरता के साथ जंगली जानवरों से अपने पिता के झुंड की रक्षा की। (१ शमूएल १७:३४-३६) उसी तरह, आज भी कभी-कभी इन वफादार मसीही चरवाहों को निडरता के साथ झुंड की रक्षा करनी होगी ताकि वे झुंड को ऐसे व्यक्ति से बचाए रखें जो शायद यहोवा की भेड़ों को, और खासकर कमज़ोर भेड़ों को सताने या उनसे बदसलूकी करने की कोशिश करे। ऐसा करने के लिए, प्राचीन जानबूझकर पाप करनेवालों को, यानी उन लोगों को जो दुष्ट और मक्कार हैं, धोखाधड़ी करते हैं, और साजीश करते हैं, कलीसिया से बाहर निकालने के लिए फौरन कदम उठाएँगे।b—१ कुरिन्थियों ५:९-१३. भजन १०१:७ से तुलना कीजिए।
२०. ‘मनुष्यों में दान’ के पंखों तले हम क्यों सुरक्षित महसूस कर सकते हैं?
२० हम ‘मनुष्यों में दान’ के लिए कितने शुक्रगुज़ार हैं! वे प्यार से हमारी चिंता करते हैं और हम उनके पंखों तले सुरक्षित महसूस करते हैं, क्योंकि वे हमें कोमलता से सुधारते हैं, बड़े प्यार से हमारा हौसला बढ़ाते हैं, हमारी एकता को कायम रखने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं और निडरता से हमारी रक्षा करते हैं। मगर इन ‘मनुष्यों में दान’ को कलीसिया की अपनी ज़िम्मेदारियों को किस नज़र से देखना चाहिए? और हम उनकी कदर कैसे कर सकते हैं? इन सवालों की चर्चा हम अगले लेख में करेंगे।
[फुटनोट]
a ‘सुधार’ शब्द के लिए जो यूनानी क्रिया इस्तेमाल की गयी है, वही क्रिया यूनानी सेप्टुआजेंट वर्शन में भजन १७[१६]:५ में भी इस्तेमाल की गयी है। दाऊद हालाँकि यहोवा के पथों पर वफादारी से चल रहा था, फिर भी वह इस भजन में प्रार्थना करता है कि यहोवा अपने पथों पर उसके पाँव स्थिर करे।
b इनकी मिसाल के लिए, नवंबर १५, १९७९ की द वॉचटावर, पेज ३१-२ का “पाठकों के प्रश्न,” और जनवरी १, १९९७ की प्रहरीदुर्ग के पेज २६-९ के लेख “आइए हम बुराई से घृणा करें” देखिए।
क्या आपको याद है?
◻ ‘मनुष्यों में दान’ कौन हैं, और परमेश्वर ने उन्हें यीशु के द्वारा कलीसिया को क्यों दिया है?
◻ प्राचीन झुंड को सुधारने की अपनी ज़िम्मेदारी को कैसे पूरा करते हैं?
◻ प्राचीन अपने संगी विश्वासियों की उन्नति करने के लिए क्या कर सकते हैं?
◻ प्राचीन कलीसिया की एकता को कैसे कायम रख सकते हैं?
[पेज 10 पर तसवीर]
प्राचीनों की हमदर्दी उन्हें निराश लोगों का हौसला बढ़ाने के लिए उकसाती है
[पेज 10 पर तसवीर]
जब खुद प्राचीनों में एकता होगी, तो कलीसिया में भी एकता होगी