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  • परमेश्‍वर के भवन में सदाबहार जैतून
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2000
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  • खुरदरा जैतून
  • “जैतून के पौधों के समान”
  • ‘वृक्ष की भी आशा रहती है।’
  • लाक्षणिक जैतून पेड़
  • तेल से मलना
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2000
w00 5/15 पेज 25-29

परमेश्‍वर के भवन में सदाबहार जैतून

इस्राएल देश में एक ऐसा पेड़ है जो कभी मरता नहीं। उसे काट देने पर भी उसकी जड़ों से कोंपले निकलने लगती हैं। जब उसमें फल लगते हैं तो उसके मालिक को बहुत फायदा होता है। उसके फलों से ढेर सारा तेल निकाला जाता है जो पकाने, बत्ती जलाने, साफ-सफाई करने और कॉसमेटिक बनाने के काम आता है।

बाइबल की न्यायियों किताब में एक कहानी दी गई है कि “किसी समय [सारे] वृक्ष किसी को अपना राजा अभिषिक्‍त करने चले।” उन्होंने राजा बनने के लिए सबसे पहले किसको पूछा? जी हाँ, उसी दमदार और फलदार पेड़ को जिसका नाम है, जैतून।—न्यायियों 9:8, NHT.

करीब 3,500 से भी ज़्यादा साल पहले, भविष्यवक्‍ता मूसा ने इस्राएल देश का वर्णन करते हुए कहा कि वह ‘एक उत्तम देश है, जैतून-तेल का देश है।’ (व्यवस्थाविवरण 8:7, 8, NHT) आज भी उत्तर में हेर्मोन पर्वत के निचले हिस्से से लेकर दक्षिण में बेर्शेबा की सीमाओं तक का इलाका इन्हीं पेड़ों से ढका हुआ है। इतना ही नहीं, इन पेड़ों ने शारोन के मैदान, सामरिया की पथरीली ढलानों और गलील की उपजाऊ वादियों की खूबसूरती में भी चार चाँद लगा दिए हैं।

बाइबल में परमेश्‍वर की दया, पुनरुत्थान का वादा और सुखी परिवार जैसे कई बातों को समझाने के लिए जैतून पेड़ की मिसाल दी गई है। बाइबल की इन बातों को समझने के लिए हमें इस पेड़ के बारे में कुछ ज़्यादा जानकारी लेनी ज़रूरी है। इससे हमें जैतून पेड़ की खूबियाँ भी जानने में मदद मिलेगी जो सारी सृष्टि के साथ मिलकर अपने बनानेवाले की स्तुति करता है।—भजन 148:7, 9.

खुरदरा जैतून

जैतून पेड़ दिखने में इतना सुंदर नहीं होता। यह लबानोन के विशाल देवदार जैसा गगन-चुंबी नहीं होता, न ही इसकी लकड़ी सनोवर की लकड़ी जैसी कीमती होती है। और इसके फूलों में वह खूबसूरती नहीं होती जो बादाम के पेड़ के फूलों में होती है। (श्रेष्ठगीत 1:17; आमोस 2:9) मगर जैतून के पेड़ में एक ऐसी खूबी है जो ऊपर से दिखाई नहीं देती। वह है दूर-दूर तक फैली इसकी जड़ें। इसकी जड़ें ज़मीन से 6 मीटर गहरी होती हैं और इससे भी ज़्यादा मीटर की दूरी तक फैली होती हैं। यही इस पेड़ की मज़बूती और लंबी उम्र का राज़ है।

ऐसी मज़बूत जड़ों के कारण जैतून पेड़ पथरीली ढलानों पर भी अच्छी तरह फलते हैं और इन पर सूखे का कोई असर नहीं होता जबकि बाकी पेड़ पानी की कमी होने पर मर जाते हैं। अपनी जड़ों की वज़ह से जैतून पेड़ सदियों तक फलता-फूलता है, हालाँकि इसका गाँठदार तना देखने में सिर्फ चूल्हे में जलाने के लायक लगता है। इस झुर्रीदार पेड़ को बढ़ने के लिए काफी जगह और मिट्टी चाहिए। इससे पेड़ को अच्छी तरह हवा मिलेगी और इसके आस-पास खरपतवार या और कोई पौधा न होने पर कीड़े-मकौड़ों से राहत मिलेगी। अगर जैतून पेड़ को ऐसा माहौल मिले तो यह अच्छी तरह फलता है और एक पेड़ से साल में करीब 57 लीटर तेल मिल सकता है।

इसमें कोई शक नहीं कि इस्राएली लोग इसके तेल की वज़ह से ही इसे बहुत पसंद करते थे। जैतून तेल से जलनेवाली बत्तियाँ उनके घरों को रौशन करती थीं। (लैव्यव्यवस्था 24:2) खाना पकाने में तो जैतून तेल बेहद ज़रूरी होता था। जैतून तेल त्वचा को धूप से बचाने और साबुन बनाने के काम आता था। इस्राएल में खासकर धान, अँगूर और जैतून की खेती होती थी। इसलिए जब जैतून की फसल बरबाद होती तो इस्राएली परिवारों में पैसे की तंगी हो जाती थी।—व्यवस्थाविवरण 7:13; हबक्कूक 3:17.

इस्राएलियों के पास आम-तौर पर जैतून तेल का भंडार होता था। वादा किए हुए देश में सबसे ज़्यादा जैतून पेड़ लगे हुए थे इसलिए मूसा ने उस देश को ‘जैतून-तेल का देश’ कहा। पेड़-पौधों का अध्ययन करनेवाले उन्‍नीसवीं सदी के एक वैज्ञानिक, एच. बी. ट्रिस्ट्रॉम ने कहा कि जैतून “उस देश की एक खासियत थी।” भूमध्य सागर के पास के सभी देशों में जैतून तेल इतनी मात्रा में मिलता था और इतना कीमती होता था, कि दूसरे देशों से लेन-देन के लिए सिक्कों की जगह जैतून तेल का भी इस्तेमाल किया जाता था। यीशु मसीह ने भी एक दृष्टांत में एक कर्ज़ का ज़िक्र किया जिसकी कीमत “सौ मन [जैतून] तेल” थी।—लूका 16:5, 6.

“जैतून के पौधों के समान”

यहोवा से मिलनेवाली आशीषों की तुलना जैतून पेड़ से करना बिलकुल सही है क्योंकि इस पेड़ के इतने फायदे जो हैं। परमेश्‍वर का भय मानकर चलनेवाले इंसान को जो आशीषें मिलती हैं, उनका ज़िक्र भजनहार ने यूँ किया: “तेरी पत्नी तेरे घर के भीतर फलवन्त दाखलता के समान, और तेरे बच्चे तेरी मेज़ के चारों ओर जैतून के पौधों के समान होंगे।” (भजन 128:3, NHT) ये ‘जैतून के पौधे’ क्या हैं और भजनहार ने बच्चों की तुलना उन पौधों से क्यों की?

जैतून पेड़ की एक खासियत यह है कि इसके तने से हमेशा कोंपले निकलती रहती हैं।a और जब पेड़ बहुत बूढ़ा हो जाता है तो किसान इन कोंपलों को बढ़ने देता है, ताकि वे बढ़कर नया तना बन जाएँ। समय आने पर इस पेड़ को घेरे तीन-चार मज़बूत तने नज़र आते हैं, ठीक जैसे मेज़ के चारों ओर बालक होते हैं। ये पौधे एक ही जड़ से निकलते हैं और वे मिलकर ढेर सारे फल लाते हैं।

जैतून पेड़ की यह खासियत इस बात की एक मिसाल है कि अगर माता-पिता का परमेश्‍वर पर विश्‍वास मज़बूत होगा, तो उनके बच्चों का विश्‍वास भी मज़बूत हो सकता है। और जब ये बच्चे बड़े होते हैं तो वे भी अपने माता-पिता की तरह अच्छे फल लाते हैं और माता-पिता की देखभाल करते हैं। और माता-पिता को यह देखकर कितनी खुशी होगी कि उनके बच्चे भी उनके साथ मिलकर यहोवा की सेवा कर रहे हैं।—नीतिवचन 15:20.

‘वृक्ष की भी आशा रहती है।’

जिस परिवार में पिता और बच्चे मिलकर परमेश्‍वर के मार्ग पर चलते हैं, वह परिवार कितना खुश रहता है। लेकिन जब समय बीतने पर पिता बूढ़ा हो जाता है और “लोक की रीति पर” मरकर बच्चों से जुदा हो जाता है, तो बच्चों की खुशी आँसू में बदल जाती है। (1 राजा 2:2) लेकिन इस दुःख को सहने के लिए बाइबल हमें सांत्वना देती है कि वक्‍त आने पर मरे हुए दोबारा ज़िंदा हो जाएँगे।—यूहन्‍ना 5:28, 29; 11:25.

अय्यूब के कई बच्चे थे। उसे यह अच्छी तरह मालूम था कि इंसान की उम्र पल-दो-पल की होती है। उसने कहा कि हमारी ज़िंदगी एक फूल की तरह होती है जो खिलता है और बाद में मुरझा जाता है। (अय्यूब 1:2; 14:1, 2) जब अय्यूब को भारी वेदना से गुज़रना पड़ा तो उसने मर जाना चाहा ताकि उसे दुःख-तकलीफों से राहत मिल सके। वह जानता था कि कब्र एक ऐसी जगह है जहाँ से दोबारा ज़िंदा होने का मौका मिल सकता है। अय्यूब ने सवाल किया: “यदि मनुष्य मर जाए तो क्या वह फिर जीवित होगा?” फिर उसने पूरे भरोसे के साथ यह जवाब दिया: “जब तक मेरा छुटकारा न होता तब तक मैं अपनी कठिन सेवा के सारे दिन आशा लगाए रहता। तू [यहोवा] मुझे बुलाता, और मैं बोलता; तुझे अपने हाथ के बनाए हुए काम की अभिलाषा होती।”—अय्यूब 14:13-15.

अय्यूब ने कब्र से दोबारा ज़िंदा किए जाने की तुलना किस चीज़ से की? एक पेड़ से। और पेड़ का जिस तरीके से उसने वर्णन किया उससे पता चलता है कि वह जैतून पेड़ की ही बात कर रहा था। अय्यूब ने कहा: “वृक्ष की तो आशा रहती है, कि चाहे वह काट डाला भी जाए, तौभी फिर पनपेगा।” (अय्यूब 14:7) जैतून पेड़ को अगर काट भी दें तो वह मर नहीं जाता। उसे जड़ से उखाड़ने पर ही वह मरता है। जब तक उसकी जड़ें रहती हैं, तब तक उसके दोबारा पनपने की गुंजाइश बनी रहती है।

अगर बहुत समय तक सूखा पड़े तो जैतून पेड़ पूरी तरह सूख जाता है और उसका ठूँठ कुम्हला जाता है मगर फिर भी उसमें दोबारा जान आ सकती है। अय्यूब ने कहा: “चाहे उसकी जड़ भूमि में पुरानी भी हो जाए, और उसकी ठूंठ मिट्टी में सूख भी जाए, तौभी वर्षा की गन्ध पाकर वह फिर पनपेगा, और पौधे की नाईं उस से शाखाएं फूटेंगी।” (अय्यूब 14:8, 9) अय्यूब का घर एक रेगिस्तानी इलाके में था, इसलिए उसने ज़रूर देखा होगा कि गर्मी के मौसम में कुछ जैतून के पेड़ बिलकुल सूखे और बेजान से हो जाते हैं। लेकिन जब बरसात होती है तो उन ‘बेजान’ पेड़ों में दोबारा जान आ जाती है और उनकी जड़ों में से नए ठूँठ निकल आते हैं, जिन्हें देखकर लगता है मानो “नए पौधे” निकल रहे हैं। जैतून की यह खूबी देखकर टुनीशिया के एक वनस्पति वैज्ञानिक ने कहा, “जैतून पेड़ को एक अमर पेड़ कहना गलत नहीं होगा।”

जिस तरह एक किसान अपने सूखे जैतून पेड़ों के दोबारा बढ़ने का बेसब्री से इंतज़ार करता है, उसी तरह जब यहोवा के वफादार सेवक मर जाते हैं, तो उन्हें भी वह दोबारा ज़िंदा करने के लिए बहुत उत्सुक रहता है। वह भी उस वक्‍त का इंतज़ार कर रहा है जब वह इब्राहीम और सारा, इसहाक और रिबका और ऐसे ही कई वफादार लोगों को दोबारा ज़िंदा करेगा। (मत्ती 22:31, 32) मरे हुओं को ज़िंदा होते हुए और फिर से ज़िंदगी की खुशियाँ पाते हुए देखना सचमुच कितना अच्छा लगेगा!

लाक्षणिक जैतून पेड़

परमेश्‍वर ने पुनरुत्थान का जो इंतज़ाम किया है, उससे पता चलता है कि वह कितना दयालु है। साथ ही उसकी दया हम इस बात से देख सकते हैं कि वह किसी का पक्ष नहीं करता। परमेश्‍वर की दया को समझाने के लिए पौलुस ने जैतून पेड़ की मिसाल दी। उसने बताया कि यहोवा न सिर्फ यहूदियों पर बल्कि हर जाति और भाषा के लोगों पर दया करता है। कई सदियों तक यहूदी लोग इस बात पर घमंड करते थे कि वे ही “इब्राहीम के वंश” यानी परमेश्‍वर के चुने हुए लोग हैं।—यूहन्‍ना 8:33; लूका 3:8.

लेकिन वे यह भूल बैठे थे कि परमेश्‍वर की आशीष पाने के लिए सिर्फ यहूदी होना काफी नहीं है। बेशक शुरू में जो यीशु के शिष्य बने वे सभी यहूदी थे और वे ही सबसे पहले इब्राहीम का वंश होने के लिए परमेश्‍वर द्वारा चुने गए थे। (उत्पत्ति 22:18; गलतियों 3:29) इन यहूदी शिष्यों की तुलना पौलुस ने जैतून की डालियों से की।

मगर यहूदी जाति में से ज़्यादातर लोगों ने यीशु को ठुकरा दिया था। इसलिए वे “छोटे झुण्ड” यानी “परमेश्‍वर के इस्राएल” का भाग नहीं हो सके। (लूका 12:32; गलतियों 6:16) इस तरह वे जैतून की बेकार डालियों के समान ठहरे जिन्हें काट दिया जाता है। अब उनकी जगह किन लोगों को चुना गया? सा.यु. 36 से उनकी जगह गैर-यहूदियों को चुना जाने लगा। यह ऐसा था मानो यहोवा ने अच्छे जैतून पेड़ में जंगली जैतून की डालियों को साट दिया हो। अब वादा किए गए इब्राहीम के वंश का भाग होने का मौका वफादार यहूदियों के अलावा दूसरी जातियों को भी मिल सका। इस तरह गैर-यहूदी मसीही अब ‘जैतून वृक्ष की जड़ के उत्तम रस के भागी’ हो सकते थे।—रोमियों 11:17, NHT.

लेकिन एक अच्छे जैतून पेड़ पर जंगली जैतून की डाली का साटा जाना, यह एक किसान को सुनने में भी शायद अटपटा लगे क्योंकि यह “स्वभाव के विरुद्ध” है। (रोमियों 11:24) द लैंड एंड द बुक के मुताबिक अरबी लोगों का कहना है कि अगर एक जंगली जैतून पेड़ पर अच्छे जैतून की डाली को साटा जाए तो वह अच्छे फल ला सकता है लेकिन अगर एक अच्छे पेड़ पर जंगली जैतून की डाली को साटा जाए तो वह कभी अच्छे फल नहीं ला सकता। इसलिए जब यहोवा ने ‘पहिले पहिल अन्यजातियों पर कृपादृष्टि की ताकि उन में से अपने नाम के लिये एक लोग बना ले,’ तो यहूदी मसीहियों को बड़ी हैरानी हुई। (प्रेरितों 10:44-48; 15:14) लेकिन इससे यह साबित हुआ कि परमेश्‍वर अपना मकसद पूरा करने के लिए सिर्फ इस्राएल जाति पर निर्भर नहीं है। मगर “हर जाति में जो उस से डरता और धर्म के काम करता है, वह उसे भाता है।”—प्रेरितों 10:35.

पौलुस ने मसीहियों को बताया कि जिस तरह परमेश्‍वर के वफादार न रहनेवाले यहूदियों को जैतून की बेकार डालियों की तरह छाँट दिया गया था, उसी तरह अगर मसीही भी घमंडी होकर परमेश्‍वर के खिलाफ काम करने लगें तो उन्हें भी यहोवा ठुकरा देगा। (रोमियों 11:19, 20) इससे यह साफ ज़ाहिर होता है कि परमेश्‍वर की दया को एक मामूली बात नहीं समझनी चाहिए।—2 कुरिन्थियों 6:1.

तेल से मलना

बाइबल में बताया गया है कि जैतून के तेल का लोग कैसे इस्तेमाल करते थे। किसी को चोट लगने या कट जाने पर चोट को ‘तेल लगाकर नरमाया’ जाता था, ताकि चोट जल्दी ठीक हो जाए। (यशायाह 1:6) यीशु ने अपने एक दृष्टांत में कहा कि जब अच्छे सामरी ने यरीहो के रास्ते में एक घायल आदमी को देखा तो उसने उसके घावों पर जैतून का तेल और दाखरस लगाया।—लूका 10:34.

बाइबल में जैतून तेल का ज़िक्र लाक्षणिक तौर पर भी किया गया है। दूसरों से मिलनेवाली सलाह से हमें जो फायदा होता है उसकी तुलना जैतून के तेल से की गई है क्योंकि इस तेल को सर पर लगाने से बहुत ही ठंडक और ताज़गी महसूस होती है। (भजन 141:5) कलीसिया में किसी के आध्यात्मिक रूप से बीमार पड़ने पर प्राचीन “प्रभु के नाम से उस पर तेल मल कर उसके लिये प्रार्थना” करते हैं। (याकूब 5:14) प्राचीन, बाइबल के ज़रिए प्यार से जो सलाह देते हैं और दिल से प्रार्थना करते हैं, उसकी तुलना जैतून के तेल से की गई है। और दिलचस्पी की बात है कि इब्रानी भाषा में एक भले इंसान की तुलना “शुद्ध जैतून तेल” से की जाती है।

‘परमेश्‍वर के भवन में सदाबहार जैतून’

जब जैतून में इतनी सारी खूबियाँ हैं, तो यह ताज्जुब की बात नहीं कि परमेश्‍वर के सेवकों की तुलना जैतून के पेड़ से की गई है। दाऊद ने कहा कि वह “परमेश्‍वर के भवन में जैतून के हरे-भरे वृक्ष के समान” बना रहना चाहता है। (भजन 52:8, NHT) जिस तरह इस्राएली लोग अपने घर के चारों तरफ जैतून के पेड़ लगाया करते थे, उसी तरह दाऊद भी यहोवा के करीब रहकर उसकी स्तुति के फल पैदा करना चाहता था।—भजन 52:9.

दो गोत्रवाले, यहूदा राज्य के लोग जब तक यहोवा के वफादार रहे, तब तक वे उसकी नज़रों में ‘मनोहर, फलवन्त और हरे-भरे जैतून’ के समान थे। (यिर्मयाह 11:15, 16, NHT) लेकिन जब उन्होंने ‘यहोवा के वचन सुनने से इनकार कर दिया और दूसरे देवताओं के पीछे चलने लगे’ तो यहोवा ने उनको ठुकरा दिया।—यिर्मयाह 11:10.

यहोवा के भवन में सदाबहार जैतून पेड़ की तरह बनने के लिए हमें यहोवा की आज्ञा माननी चाहिए और जब भी वह हमें ताड़ना देता है, तो नम्रता से उसकी सुननी चाहिए। क्योंकि जब वह हमें ताड़ना देता है, तो वह हमारे बुरे गुणों को छाँट देता है ताकि हम ज़्यादा-से-ज़्यादा अच्छे गुण पैदा कर सकें। (इब्रानियों 12:5, 6) साथ ही, जिस तरह जैतून की जड़ें मज़बूत होने की वज़ह से वह सूखे का भी सामना कर पाता है, उसी तरह अगर हम सच्चाई में मज़बूत बने रहें, तो हम हर मुश्‍किल और विरोध का सामना कर पाएँगे।—मत्ती 13:21; कुलुस्सियों 2:6, 7.

वफादार मसीही सचमुच जैतून पेड़ की तरह हैं। संसार भले ही उन्हें न पहचानता हो मगर परमेश्‍वर उन्हें बखूबी जानता है। इसलिए अगर वे मर भी जाएँ तो नई दुनिया में दोबारा ज़िंदा किए जाएँगे।—2 कुरिन्थियों 6:9; 2 पतरस 3:13.

जैतून का पेड़ सचमुच सदाबहार और अविनाशी है। इस पेड़ से हमें यहोवा के इस वादे की याद आती है: “मेरी प्रजा की आयु वृक्षों की सी होगी, और मेरे चुने हुए अपने कामों का पूरा लाभ उठाएंगे।” (यशायाह 65:22) परमेश्‍वर का यह वादा उसकी नई दुनिया में ज़रूर पूरा होगा।—2 पतरस 3:13.

[फुटनोट]

a आम-तौर पर, इन कोंपलों को हर साल छाँट दिया जाता है ताकि पेड़ को मिलनेवाली ताकत उनको न मिले।

[पेज 25 पर तसवीर]

स्पेन में जाकेया के एलिसेंट इलाके में एक पुराने जैतून का ठूँठ

[पेज 26 पर तसवीर]

स्पेन के ग्रानाडा इलाके में जैतून के बाग

[पेज 26 पर तसवीर]

यरूशलेम की दीवारों के बाहर एक पुराना जैतून पेड़

[पेज 26 पर तसवीर]

बाइबल में अच्छे जैतून पर जंगली डालियों को साटने का ज़िक्र है

[पेज 26 पर तसवीर]

इस पुराने जैतून के चारों तरफ छोटे-छोटे पौधे

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
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