इब्राहीम जैसा विश्वास रखिए!
“जो विश्वास करनेवाले हैं, वे ही इब्राहीम की सन्तान हैं।” —गलतियों 3:7.
1. अब्राम ने कनान में आयी एक नयी परीक्षा का सामना कैसे किया?
अब्राम ने यहोवा की आज्ञा मानकर ऊर की ऐशो-आराम की ज़िंदगी छोड़ दी। इसके बाद के सालों में उसने जो तकलीफें सहीं, वह तो मानो बस शुरूआत थी। मिस्र में उसके विश्वास की इससे भी बड़ी परीक्षा होनेवाली थी। बाइबल का वृत्तांत कहता है: “देश में अकाल पड़ा।” ऐसे में अब्राम के मन में कितनी आसानी से कड़वाहट की भावना पैदा हो सकती थी! मगर बैठकर कुढ़ने के बजाय, उसने अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी करने के लिए कुछ कदम उठाए। “अब्राम मिस्र देश को चला गया कि वहां परदेशी होकर रहे—क्योंकि देश में भयंकर अकाल पड़ा था।” अब्राम का इतना बड़ा घराना मिस्र के लोगों की नज़रों से बच नहीं सकता था। क्या यहोवा अपने वादे को पूरा करता और अब्राम को मुसीबत से बचाता?—उत्पत्ति 12:10; निर्गमन 16:2,3.
2, 3. (क) अब्राम ने अपनी पत्नी की असलियत को क्यों छिपाया? (ख) इस स्थिति से निपटते वक्त, अब्राम अपनी पत्नी के साथ कैसे पेश आया?
2 हम उत्पत्ति 12:11-13 (NHT) में पढ़ते हैं: “फिर ऐसा हुआ कि जब वह मिस्र के निकट पहुंचा, तो उसने अपनी पत्नी सारै से कहा, ‘देख, मैं जानता हूं कि तू एक सुन्दर स्त्री है; और जब मिस्री तुझे देखेंगे तो कहेंगे, “यह उसकी पत्नी है,” तब वे मुझे तो मार डालेंगे परन्तु तुझे जीवित रखेंगे। इसलिए कृपया यह कहना, “मैं उसकी बहन हूं,” जिससे कि तेरे कारण मेरा भला हो और मैं तेरे कारण जीवित रह सकूं।’” हालाँकि सारै की उम्र 65 से ज़्यादा थी, फिर भी वह गज़ब की खूबसूरत थी। इस वजह से अब्राम की ज़िंदगी खतरे में पड़ गयी।a (उत्पत्ति 12:4,5; 17:17) लेकिन इससे भी अहम बात यह थी कि यहोवा का उद्देश्य बाज़ी पर लगा हुआ था, क्योंकि उसने कहा था कि अब्राम के वंश से ही सारी पृथ्वी की जातियाँ आशीष पाएँगी। (उत्पत्ति 12:2,3,7) अब्राम की अब तक कोई संतान नहीं हुई थी, इसलिए उसका ज़िंदा रहना बेहद ज़रूरी था।
3 अब्राम ने अपनी पत्नी को एक ऐसी युक्ति पर चलने के लिए कहा, जिसके बारे में उन्होंने पहले ही सबकुछ तय कर लिया था, यानी उसे खुद को अब्राम की बहन बताना था। गौर कीजिए कि अब्राम अपने घराने का मुखिया था और इस हैसियत से उसके पास अधिकार था, मगर उसने अपने अधिकार का इस्तेमाल कठोरता से नहीं किया, बल्कि सारै से साथ देने की गुज़ारिश की और उससे मदद माँगी। (उत्पत्ति 12:11-13; 20:13) ऐसा करके, अब्राम ने पतियों के लिए एक बढ़िया मिसाल कायम की कि वे अपने मुखियापन की ज़िम्मेदारी को प्यार से निभाएँ। और सारै ने अधीनता दिखाकर, आज की पत्नियों के लिए एक अच्छी मिसाल कायम की।—इफिसियों 5:23-28; कुलुस्सियों 4:6.
4. आज परमेश्वर के वफादार सेवक, अपने भाइयों की जान खतरे में देखकर क्या करते हैं?
4 सारै का यह कहना गलत नहीं था कि वह अब्राम की बहन है, क्योंकि वह वाकई अब्राम की दूसरी माँ की बेटी थी। (उत्पत्ति 20:12) और फिर, अब्राम को लोगों को ऐसी कोई जानकारी देने की ज़रूरत नहीं थी जिसे जानने का उन्हें कोई हक नहीं था। (मत्ती 7:6) आज के ज़माने में भी परमेश्वर के वफादार सेवक, ईमानदार होने की बाइबल की आज्ञा का पालन करते हैं। (इब्रानियों 13:18) मिसाल के तौर पर, वे सच बोलने की शपथ खाकर अदालत में कभी झूठ नहीं बोलेंगे। मगर दूसरी तरफ, जब उन्हें सताया जाता है या जब देश में गड़बड़ी का माहौल होता है, तब अगर उनके भाइयों को शारीरिक या आध्यात्मिक तरीके से खतरा हो, तो वे यीशु की इस सलाह पर चलते हैं कि “सांपों की नाईं बुद्धिमान और कबूतरों की नाईं भोले बनो।”—मत्ती 10:16; प्रहरीदुर्ग, नवंबर 1,1996 का पेज 18, पैराग्राफ 19 देखिए।
5. सारै, अब्राम की गुज़ारिश के मुताबिक काम करने के लिए क्यों तैयार थी?
5 सारै ने अब्राम की गुज़ारिश का क्या जवाब दिया? प्रेरित पतरस ने बताया कि वह उन स्त्रियों में से थी जो “परमेश्वर पर आशा रखती थीं।” तो ज़ाहिर है कि सारै समझ पायी होगी कि इस स्थिति के साथ कौन-कौन-से आध्यात्मिक मसले जुड़े हुए हैं। इसके अलावा, वह अपने पति से प्यार करती थी और उसका आदर करती थी। इसलिए सारै ने “अपने पति के आधीन” रहने का चुनाव किया और यह बात छिपाए रखी कि वह ब्याहता स्त्री है। (1 पतरस 3:5) बेशक, ऐसा करने से वह खुद खतरे में पड़ गयी। “जब अब्राम मिस्र में आया, तब मिस्रियों ने उसकी पत्नी को देखा कि यह अति सुन्दर है। और फ़िरौन के हाकिमों ने उसको देखकर फ़िरौन के साम्हने उसकी प्रशंसा की: सो वह स्त्री फ़िरौन के घर में रखी गई।”—उत्पत्ति 12:14,15.
यहोवा की तरफ से बचाव
6, 7. अब्राम और सारै को किन मुश्किल हालात का सामना करना पड़ा, और यहोवा ने सारै को कैसे बचाया?
6 अब्राम और सारै के लिए इन हालात से गुज़रना कितना मुश्किल रहा होगा! ऐसा लग रहा था कि सारै की इज़्ज़त अब लुट जाएगी। और-तो-और, फिरौन इस बात से बेखबर कि सारै शादी-शुदा है, अब्राम को ढेरों तोहफे दे रहा था और इसलिए “उसको भेड़-बकरी, गाय-बैल, दास-दासियां, गदहे-गदहियां, और ऊंट मिले।”b (उत्पत्ति 12:16) अब्राम को इन तोहफों से कैसी घिन आयी होगी! लेकिन हालात चाहे कितने ही बदतर क्यों न नज़र आ रहे हों, यहोवा ने अब्राम को अकेला नहीं छोड़ा।
7 “तब यहोवा ने फ़िरौन और उसके घराने पर, अब्राम की पत्नी सारै के कारण बड़ी बड़ी विपत्तियां डालीं।” (उत्पत्ति 12:17) यह बताया नहीं गया कि किस तरीके से, मगर फिरौन पर यह प्रकट किया गया कि इन ‘विपत्तियों’ की असली वजह क्या है। उसने तुरंत कार्यवाही की: “सो फ़िरौन ने अब्राम को बुलवाकर कहा, तू ने मुझ से क्या किया है? तू ने मुझे क्यों नहीं बताया कि वह तेरी पत्नी है? तू ने क्यों कहा, कि वह तेरी बहिन है? मैं ने उसे अपनी ही पत्नी बनाने के लिये लिया; परन्तु अब अपनी पत्नी को लेकर यहां से चला जा। और फ़िरौन ने अपने आदमियों को उसके विषय में आज्ञा दी और उन्हों ने उसको और उसकी पत्नी को, सब सम्पत्ति समेत जो उसका था, विदा कर दिया।”—उत्पत्ति 12:18-20; भजन 105:14,15.
8. आज यहोवा, मसीहियों को किस तरह की सुरक्षा देने का वादा करता है?
8 आज यहोवा हमें मौत, अपराध, अकाल या प्राकृतिक विपत्तियों से होनेवाली तबाही से बचाने का वादा तो नहीं करता। लेकिन यहोवा वादा करता है कि वह हमेशा ऐसी चीज़ों से हमारा बचाव करेगा जिनसे हमारी आध्यात्मिकता को या उसके साथ हमारे रिश्ते को खतरा हो। (भजन 91:1-4) खास तौर पर वह अपने वचन और “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए वक्त पर चेतावनियाँ देकर ऐसा करता है। (मत्ती 24:45) अगर परमेश्वर का काम करते वक्त हमें मौत के खतरे का सामना करना पड़े तब? हो सकता है कि परमेश्वर के कुछेक सेवक मारे जाएँ, मगर यहोवा के लोगों के तौर पर वह हम सभी का पूरी तरह नामो-निशान नहीं मिटने देगा। (भजन 116:15) और अगर कुछ वफादार जनों की मौत हो भी जाए, तो हम यकीन रख सकते हैं कि वे पुनरुत्थान पाकर फिर ज़िंदा हो जाएँगे।—यूहन्ना 5:28,29.
शांति बनाए रखने के लिए त्याग करना
9. किस बात से पता लगता है कि अब्राम कनान में एक जगह से दूसरी जगह घूमता रहा?
9 कनान में अब अकाल खत्म हो चुका था, इसलिए “अब्राम अपनी पत्नी, और अपनी सारी सम्पत्ति लेकर, लूत को भी संग लिये हुए, मिस्र को छोड़कर कनान के दक्खिन देश [“नेगेव,” (NHT) यहूदा के पहाड़ों के दक्षिण में लगभग बंजर इलाके] में आया। अब्राम भेड़-बकरी, गाय-बैल, और सोने-रूपे का बड़ा धनी था।” (उत्पत्ति 13:1,2) इसीलिए वहाँ के निवासी उसे एक बड़ा प्रधान मानते थे, जिसके पास ताकत थी और जिसका दबदबा था। (उत्पत्ति 23:6) अब्राम कनान देश में किसी एक जगह बसना नहीं चाहता था न ही कनानियों की राजनीति में हिस्सा लेने की उसकी कोई मनसा थी। “फिर वह दक्खिन देश से चलकर, बेतेल के पास, उसी स्थान को पहुंचा, जहां उसका तम्बू पहले पड़ा था, जो बेतेल और ऐ के बीच में है।” हमेशा की तरह, अब्राम जहाँ कहीं गया वहाँ उसने यहोवा की उपासना को पहला स्थान दिया।—उत्पत्ति 13:3,4.
10. अब्राम और लूत के चरवाहों के बीच क्या समस्या पैदा हो गयी और इसे जल्द-से-जल्द सुलझाना क्यों ज़रूरी था?
10 “लूत के पास भी, जो अब्राम के साथ चलता था, भेड़-बकरी, गाय-बैल, और तम्बू थे। सो उस देश में उन दोनों की समाई न हो सकी कि वे इकट्ठे रहें: क्योंकि उनके पास बहुत धन था इसलिये वे इकट्ठे न रह सके। सो अब्राम, और लूत की भेड़-बकरी, और गाय-बैल के चरवाहों में झगड़ा हुआ: और उस समय कनानी, और परिज्जी लोग, उस देश में रहते थे।” (उत्पत्ति 13:5-7) उस देश में इतना पानी और चारा नहीं था कि अब्राम और लूत दोनों के मवेशियों का पेट भर सके। इसलिए उन दोनों के चरवाहों में बैर-भाव और नाराज़गी पैदा हो गयी। इस तरह की कलह सच्चे परमेश्वर के सेवकों को सोहती नहीं थी। अगर झगड़ा बढ़ता जाता तो हो सकता था कि दोनों के बीच के रिश्ते में हमेशा के लिए दरार पड़ जाती। तो फिर अब्राम इस स्थिति से कैसे निपटता? उसने लूत को उसके पिता की मौत के बाद, गोद लिया था। और अब्राम ने उसे अपने बेटे की तरह पाला-पोसा होगा। और क्योंकि उम्र में अब्राम लूत से बड़ा था तो क्या उसका यह हक नहीं बनता था कि वह अपने रहने के लिए सबसे अच्छा इलाका चुन ले?
11, 12. अब्राम ने बड़ी उदारता से लूत के सामने क्या पेशकश रखी, और लूत का फैसला सही क्यों नहीं था?
11 लेकिन “अब्राम लूत से कहने लगा, मेरे और तेरे बीच, और मेरे और तेरे चरवाहों के बीच में झगड़ा न होने पाए; क्योंकि हम लोग भाई बन्धु हैं। क्या सारा देश तेरे साम्हने नहीं? सो मुझ से अलग हो, यदि तू बाईं ओर जाए तो मैं दहिनी ओर जाऊंगा; और यदि तू दहिनी ओर जाए, तो मैं बाईं ओर जाऊंगा।” बेतेल के पास एक ऐसी जगह है जहाँ से कहा जाता है कि “पैलिस्टाइन का बहुत बढ़िया नज़ारा देखा जा सकता है।” शायद इसी जगह से “लूत ने आंख उठाकर, यरदन नदी के पास वाली सारी तराई को देखा, कि वह सब सिंची हुई है। जब तक यहोवा ने सदोम और अमोरा को नाश न किया था, तब तक सोअर के मार्ग तक वह तराई यहोवा की बाटिका, और मिस्र देश के समान उपजाऊ थी।”—उत्पत्ति 13:8-10.
12 हालाँकि बाइबल लूत को “धर्मी” कहती है, फिर भी किसी वजह से लूत ने इस मामले में अब्राम की मरज़ी का लिहाज़ नहीं किया, और ऐसा लगता है कि उसने अपने इस बुज़ुर्ग से इस बारे में कोई सलाह भी नहीं माँगी। (2 पतरस 2:7) “लूत अपने लिये यरदन की सारी तराई को चुन के पूर्व की ओर चला, और वे एक दूसरे से अलग हो गए। अब्राम तो कनान देश में रहा, पर लूत उस तराई के नगरों में रहने लगा; और अपना तम्बू सदोम के निकट खड़ा किया।” (उत्पत्ति 13:11,12) सदोम नगर बहुत ही समृद्ध था और उसमें सुख-सुविधा की बहुत-सी चीज़ें मौजूद थीं। (यहेजकेल 16:49,50) जबकि धन-दौलत कमाने के हिसाब से लगा होगा कि लूत ने बड़ी समझदारी से फैसला किया है, मगर आध्यात्मिक मायनों में यह फैसला सही नहीं था। क्यों? क्योंकि उत्पत्ति 13:13 कहता है, “सदोम के लोग यहोवा के लेखे में बड़े दुष्ट और पापी थे।” लूत के इस फैसले से, आगे चलकर उसके परिवार को बहुत दुःख झेलने पड़े।
13. अब्राम की मिसाल उन मसीहियों को कैसे मदद देती है जिनमें शायद पैसों को लेकर कोई झगड़ा हो जाए?
13 अब्राम को यहोवा के वादे पर विश्वास था कि आखिरकार इस सारे देश पर उसके वंश का अधिकार होगा; इसलिए उसने देश के छोटे-से हिस्से को लेकर लूत के साथ झगड़ा नहीं किया। उदारता दिखाते हुए वह उसी सिद्धांत पर चला जो बाद में 1 कुरिन्थियों 10:24 में लिखा गया: “कोई अपनी ही भलाई को न ढूंढ़े, बरन औरों की।” यह उन लोगों के लिए अच्छा सबक है जिनका शायद अपने संगी विश्वासियों के साथ पैसे को लेकर झगड़ा हो जाए। क्योंकि मत्ती 18:15-17 में दी गयी सलाह पर अमल करने के बजाय, कुछ लोग अपने भाइयों को अदालत तक खींचकर ले गए हैं। (1 कुरिन्थियों 6:1,7) ऐसे लोगों के लिए अब्राम की मिसाल दिखाती है कि यहोवा के नाम की बदनामी करने से या मसीही कलीसिया की शांति को भंग करने से तो अच्छा है कि वे खुद नुकसान उठा लें।—याकूब 3:18.
14. अब्राम को उसकी उदारता के लिए कैसे आशीष मिलनी थी?
14 अब्राम को उसकी इस उदारता के लिए आशीष भी मिलनी थी। परमेश्वर ने कहा: “मैं तेरे वंश को पृथ्वी की धूल के किनकों की नाईं बहुत करूंगा, यहां तक कि जो कोई पृथ्वी की धूल के किनकों को गिन सकेगा वही तेरा वंश भी गिन सकेगा।” इस नयी बात को सुनकर, अब्राम को कितनी हिम्मत मिली होगी, क्योंकि अब तक तो उसकी कोई संतान पैदा नहीं हुई थी! इसके बाद, परमेश्वर ने उसे आज्ञा दी: “उठ, इस देश की लम्बाई और चौड़ाई में चल फिर; क्योंकि मैं उसे तुझी को दूंगा।” (उत्पत्ति 13:16,17) जी हाँ, अब्राम को किसी एक नगर में बसकर, आराम की ज़िंदगी नहीं जीनी थी। उसे कनानियों से अलग रहना था। उसी तरह आज मसीहियों को भी इस दुनिया से अलग रहना चाहिए। हालाँकि वे खुद को दूसरों से श्रेष्ठ नहीं समझते, मगर वे ऐसे लोगों से संगति नहीं रखते जो उन्हें बाइबल के खिलाफ गलत आचरण में फँसा सकते हैं।—1 पतरस 4:3,4.
15. (क) अब्राम के एक जगह से दूसरी जगह घूमने का शायद क्या मतलब था? (ख) अब्राम ने आज के मसीही परिवारों के लिए क्या मिसाल रखी?
15 बाइबल के ज़माने में, ज़मीन खरीदने से पहले एक व्यक्ति को हक था कि वह उसका मुआयना करे। इसलिए उस देश में अब्राम का एक जगह से दूसरी जगह घूमना, उसे बार-बार याद दिलाता होगा कि एक दिन यह ज़मीन उसकी संतान की होगी। आज्ञा का पालन करते हुए, “अब्राम अपना तम्बू उखाड़कर, मम्रे के बांजों के बीच जो हेब्रोन में थे जाकर रहने लगा, और वहां भी यहोवा की एक वेदी बनाई।” (उत्पत्ति 13:18) अब्राम ने फिर एक बार दिखाया कि उसकी ज़िंदगी में उपासना की कितनी ज़्यादा अहमियत है। क्या आपके परिवार में पारिवारिक अध्ययन, मिलकर प्रार्थना करने और सभाओं में हाज़िर होने को सबसे ज़्यादा अहमियत दी जाती है?
दुश्मन हमला करता है
16. (क) उत्पत्ति 14:1 के इन शब्दों, “के दिनों में ऐसा हुआ” से खतरे का एहसास क्यों मिलता है? (ख) पूर्व से आए चार राजाओं ने चढ़ाई क्यों की?
16 “शिनार के राजा अम्रापेल, और एल्लासार के राजा अर्योक, और एलामc के राजा कदोर्लाओमेर, और गोयीम के राजा तिदाल के दिनों में ऐसा हुआ, कि उन्हों ने . . . युद्ध किया।” मूल इब्रानी भाषा में, शब्द (“. . . के दिनों में ऐसा हुआ”) आनेवाले किसी खतरे का एहसास देते हैं, और ये “एक ऐसे दौर की ओर” इशारा करते हैं “जिसमें परीक्षाएँ आती हैं, मगर आखिर में आशीषें मिलती हैं।” (उत्पत्ति 14:1,2; NW, फुटनोट) यह परीक्षा तब शुरू हुई जब पूर्व से ये चार राजा अपनी फौजों के साथ कनान देश पर कहर ढाते हुए चढ़ाई करने लगे। उनका मकसद क्या था? वे सदोम, अमोरा, अदमा, सबोयीम और बेला के पाँच नगरों में उठनेवाली बगावत को कुचलना चाहते थे। पाँचों नगरों ने उनका मुकाबला किया, मगर उनके सामने टिक न सके। और उन्होंने “सिद्दीम नाम तराई में, जो खारे ताल के पास है, एका किया।” वहीं पास में लूत और उसका परिवार रहता था।—उत्पत्ति 14:3-7.
17. लूत के बंधुआ बनाए जाने से, अब्राम के विश्वास की परीक्षा क्यों हुई?
17 कनान के राजाओं ने चढ़ाई करनेवाले इन राजाओं का डटकर मुकाबला किया, मगर वे बहुत बुरी तरह हार गए। “तब वे सदोम और अमोरा के सारे धन और भोजन वस्तुओं को लूट लाट कर चले गए। और अब्राम का भतीजा लूत, जो सदोम में रहता था, उसको भी धन समेत वे लेकर चले गए।” इस तबाही की खबर जल्द ही अब्राम तक पहुँचती है: “तब एक भागे हुए व्यक्ति ने इब्री अब्राम को जाकर समाचार दिया। उस समय वह एमोरी मम्रे के बांजवृक्षों के समीप रहता था, वह एश्कोल और आनेर का भाई था। इन लोगों की अब्राम के साथ सन्धि थी। . . . अब्राम ने सुना कि मेरा भतीजा पकड़ लिया गया है।” (NHT) (उत्पत्ति 14:8-14) विश्वास की कितनी बड़ी परीक्षा! क्या अब्राम अपने भतीजे से नाराज़ होकर बैठा रहता कि उसने अपने लिए देश का सबसे बढ़िया भाग क्यों चुन लिया था? यह भी ध्यान दीजिए कि चढ़ाई करनेवाले ये राजा अब्राम के अपने वतन, शिनार से आए थे। उनसे लड़ना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना होता क्योंकि उनसे लड़ाई मोल लेकर वह फिर कभी अपने देश नहीं लौट सकता था। और फिर जिस फौज का कनान की सारी फौजें मिलकर कुछ नहीं बिगाड़ पायीं, उस फौज के खिलाफ भला अब्राम क्या कर सकता था?
18, 19. (क) अब्राम लूत को कैसे आज़ाद करवा पाया? (ख) इस जीत का श्रेय किसको मिला?
18 अब्राम ने फिर एक बार यहोवा पर अपना अटल भरोसा ज़ाहिर किया। “अब्राम ने अपने तीन सौ अठारह शिक्षित, युद्ध कौशल में निपुण दासों को लेकर जो उसके कुटुम्ब में उत्पन्न हुए थे, अस्त्र शस्त्र धारण करके दान तक उनका पीछा किया। और अपने दासों के अलग अलग दल बान्धकर रात को उन पर चढ़ाई करके उनको मार लिया और होबा तक, जो दमिश्क की उत्तर ओर है, उनका पीछा किया। और वह सारे धन को, और अपने भतीजे लूत, और उसके धन को, और स्त्रियों को, और सब बन्धुओं को, लौटा ले आया।” (उत्पत्ति 14:14-16) यहोवा पर मज़बूत विश्वास दिखाकर, अब्राम ने अपनी छोटी-सी फौज को जीत दिलायी साथ ही लूत और उसके परिवार को आज़ाद करवाया। लौटते वक्त अब्राम की मुलाकात शालेम के राजा और याजक मेल्कीसेदेक से हुई। “तब शालेम का राजा मेल्कीसेदेक, जो परमप्रधान ईश्वर का याजक था, रोटी और दाखमधु ले आया। और उस ने अब्राम को यह आशीर्वाद दिया, कि परमप्रधान ईश्वर की ओर से, जो आकाश और पृथ्वी का अधिकारी है, तू धन्य हो। और धन्य है परमप्रधान ईश्वर, जिस ने तेरे द्रोहियों को तेरे वश में कर दिया है। तब अब्राम ने उसको सब का दशमांश दिया।”—उत्पत्ति 14:18-20.
19 जी हाँ, जीत यहोवा ही दिलाता है। अपने विश्वास के कारण, अब्राम फिर एक बार यहोवा की ओर से मिलनेवाले छुटकारे को देख सका। परमेश्वर के लोग आज हथियार लेकर युद्ध नहीं करते, मगर उन्हें भी कई परीक्षाओं और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। हमारा अगला लेख दिखाएगा कि अब्राम की मिसाल, इन परीक्षाओं को पार करने में कैसे हमारी मदद कर सकती है।
[फुटनोट]
a इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स् (यहोवा के साक्षियों द्वारा प्रकाशित) किताब के मुताबिक, “एक प्राचीन लिपि बताती है कि एक फिरौन ने अपने हथियारबंद आदमियों से कहकर एक सुंदर स्त्री को अगवा कर लिया था और उसके पति को मार डाला था।” इसलिए अब्राम का डर बेबुनियाद नहीं था।
b हाजिरा, जो बाद में अब्राम की रखैल बनी, वह भी इस वक्त अब्राम को मिले दास-दासियों में शायद शामिल थी।—उत्पत्ति 16:1.
c बाइबल के आलोचक, एक वक्त पर दावा करते थे कि शिनार के इलाके में एलाम का इतना दबदबा कभी था ही नहीं और इसलिए कदोर्लाओमेर की चढ़ाई का वृत्तांत एक मनगढ़ंत कहानी है। बाइबल के इस वृत्तांत की सच्चाई के बारे में पुरातत्वविज्ञान से मिले सबूतों की चर्चा के लिए, प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी), जुलाई 1,1989, पेज 4-7 देखिए।
क्या आपने ध्यान दिया?
• कनान देश में अकाल पड़ने से अब्राम के विश्वास की परीक्षा कैसे हुई?
• अब्राम और सारै दोनों ने, आज के पतियों और पत्नियों के लिए कैसे एक अच्छी मिसाल रखी?
• अपने और लूत के सेवकों के बीच के झगड़े को मिटाने के लिए अब्राम ने जो किया उससे हम क्या सीख सकते हैं?
[पेज 22 पर तसवीर]
अब्राम ने अपना हक नहीं जताया बल्कि लूत के हित को अपने हित के आगे रखा
[पेज 24 पर तसवीर]
अब्राम ने अपने भतीजे लूत को आज़ाद करवाने के लिए यहोवा पर अपना भरोसा दिखाया