मसीहियों को एक-दूसरे की ज़रूरत है
“हम आपस में एक दूसरे के अंग हैं।”—इफिसियों 4:25.
1. इंसान के शरीर के बारे में एक इनसाइक्लोपीडिया क्या कहती है?
इंसान का शरीर, परमेश्वर के हाथ का एक करिश्मा है! द वर्ल्ड बुक इनसाइक्लोपीडिया कहती है: “लोग अकसर कहते हैं कि इंसान का शरीर एक मशीन है—आज तक बनायी गयी सबसे लाजवाब मशीन। यह सच है कि इंसान का शरीर सचमुच की एक मशीन नहीं है। मगर इसमें और एक मशीन में कई बातें मिलती-जुलती हैं। जैसे मशीन के अलग-अलग पुरज़े होते हैं, उसी तरह शरीर के भी बहुत-से भाग हैं। और जैसे मशीन के एक-एक पुरज़े के कुछ खास काम होते हैं, वैसे ही शरीर के हर भाग के भी कुछ खास काम होते हैं। फिर भी सभी भाग साथ मिलकर काम करते हैं इसलिए शरीर या मशीन, बिना किसी रुकावट के आराम से अपना काम करते हैं।”
2. इंसान के शरीर और मसीही कलीसिया में क्या बात मिलती-जुलती है?
2 जी हाँ, इंसान के शरीर में बहुत-से हिस्से या अंग हैं और हरेक का कुछ-न-कुछ ज़रूरी काम है, चाहे वह एक नस हो या मांस-पेशी या कोई अंग। उनमें से एक भी बेकार नहीं है। उसी तरह, मसीही कलीसिया का हर सदस्य कलीसिया को आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ और खूबसूरत बनाए रखने के लिए अपनी तरफ से ज़रूर कुछ कर सकता है। (1 कुरिन्थियों 12:14-26) हालाँकि कलीसिया के किसी भी सदस्य को यह नहीं समझना चाहिए कि वह दूसरों से बड़ा है, मगर उसे खुद को बेकार भी नहीं समझना चाहिए।—रोमियों 12:3.
3. इफिसियों 4:25 कैसे बताता है कि मसीहियों को एक-दूसरे की ज़रूरत है?
3 जैसे इंसान के शरीर के अंग एक-दूसरे पर निर्भर हैं, ठीक वैसे ही मसीही भी एक-दूसरे पर निर्भर हैं। प्रेरित पौलुस ने अपने आत्मा से अभिषिक्त मसीही भाई-बहनों से कहा: “झूठ बोलना छोड़कर हर एक अपने पड़ोसी से सच बोले, क्योंकि हम आपस में एक दूसरे के अंग हैं।” (इफिसियों 4:25) “मसीह की देह” यानी आत्मिक इस्राएल के सदस्य “एक दूसरे के अंग हैं” इसलिए वे एक-दूसरे से सच बोलते हैं और मिल-जुलकर काम करते हैं। जी हाँ, उन सभी का एक-दूसरे से गहरा नाता है। (इफिसियों 4:11-13) और उनके साथ धरती पर जीने की आशा रखनेवाले मसीही भी एकता से रहते हैं। वे भी सच बोलते और एक-दूसरे को सहयोग देते हैं।
4. किन तरीकों से नए लोगों की मदद की जा सकती है?
4 हर साल, ऐसे हज़ारों लोग बपतिस्मा ले रहे हैं जो धरती पर फिरदौस में जीने की आशा रखते हैं। कलीसिया के बाकी लोग खुशी-खुशी उनकी मदद करते हैं ताकि वे “सिद्धता की ओर आगे बढ़ते जाएं।” (इब्रानियों 6:1-3) इन नए लोगों को हम बाइबल से जुड़े सवालों के जवाब पाने या प्रचार करने की कुशलता बढ़ाने में मदद दे सकते हैं। और हम मसीही सभाओं में लगातार हिस्सा लेकर उनके लिए एक बढ़िया मिसाल रख सकते हैं। जब उन पर कोई मुसीबत आती है, तो हम उनकी हिम्मत बँधा सकते हैं या फिर उनको सांत्वना दे सकते हैं। (1 थिस्सलुनीकियों 5:14, 15) हमें ऐसे तरीकों की खोज करनी चाहिए जिनसे हम “सत्य पर चलते” रहने में दूसरों की मदद कर सकें। (3 यूहन्ना 4) हम चाहे उम्र में छोटे हों या बड़े, सच्चाई में नए हों या काफी सालों से हों, हम सभी अपने मसीही भाई-बहनों को आध्यात्मिक तरक्की करने में मदद दे सकते हैं। उन्हें वाकई हमारी ज़रूरत है।
उन्होंने ज़रूरत पड़ने पर मदद की
5. अक्विला और प्रिस्किल्ला ने पौलुस की कैसे मदद की?
5 मसीही पति-पत्नी भी, अपने भाई-बहनों की मदद करने में बहुत खुशी पाते हैं। मिसाल के लिए, अक्विला और उसकी पत्नी प्रिस्किल्ला (प्रिसका) ने पौलुस की मदद की थी। उन्होंने पौलुस को अपने घर पर ठहराया, उसके साथ मिलकर तंबू बनाने का काम किया और कुरिन्थ की नयी कलीसिया को मज़बूत करने में पौलुस की मदद की। (प्रेरितों 18:1-4) उन्होंने पौलुस की खातिर अपनी जान भी जोखिम में डाल दी थी। उन्होंने यह कैसे किया इसके बारे में बाइबल नहीं बताती। जब वे रोम में थे तब पौलुस ने वहाँ के मसीहियों को खत में लिखा: “प्रिसका और अक्विला को जो यीशु में मेरे सहकर्मी हैं, नमस्कार। उन्हों ने मेरे प्राण के लिये अपना ही सिर दे रखा था और केवल मैं ही नहीं, बरन अन्यजातियों की सारी कलीसियाएं भी उन का धन्यवाद करती हैं।” (रोमियों 16:3, 4) अक्विला और प्रिस्किल्ला की तरह, आज भी कुछ मसीही, कलीसियाओं को मज़बूत करते और दूसरे कई तरीकों से अपने भाई-बहनों की मदद करते हैं। कभी-कभी तो वे परमेश्वर के सेवकों की खातिर जान की बाज़ी तक लगा देते हैं ताकि वे उन्हें विरोधियों के हाथों अत्याचार सहने या घात किए जाने से बचा सकें।
6. अप्पुलोस ने कैसी मदद पायी?
6 अक्विला और प्रिस्किल्ला ने अपुल्लोस नाम के एक मसीही की भी मदद की, जो बोलने में निपुण था। अप्पुलोस, इफिसुस के निवासियों को यीशु मसीह के बारे में सिखाया करता था। लेकिन उस वक्त वह सिर्फ यूहन्ना के ज़रिए दिए गए बपतिस्मे से वाकिफ था, जो व्यवस्था वाचा के खिलाफ किए पापों से पश्चाताप करने की निशानी थी। जब अक्विला और प्रिस्किल्ला ने देखा कि अपुल्लोस को मदद की ज़रूरत है तो उन्होंने “परमेश्वर का मार्ग उस को और भी ठीक ठीक बताया।” उन्होंने शायद अप्पुलोस को मसीही बपतिस्मे के बारे में समझाया होगा कि इसके तहत एक इंसान पानी में डुबकी लेकर बपतिस्मा लेता है और फिर पवित्र आत्मा पाता है। अप्पुलोस ने उनसे जो सीखा, उसे अमल किया। बाद में जब वह अखाया में था, तब उसने “उन लोगों की बड़ी सहायता की जिन्हों ने अनुग्रह के कारण विश्वास किया था। क्योंकि वह पवित्र शास्त्र से प्रमाण दे देकर, कि यीशु ही मसीह है; बड़ी प्रबलता से यहूदियों को सब के साम्हने निरुत्तर करता रहा।” (प्रेरितों 18:24-28) आज भी जब हमारे भाई-बहन, परमेश्वर के वचन के बारे में समझाते हैं तो उसके बारे में हमारी समझ और गहरी होती है। इस तरीके से मदद पाने के लिए भी हमें एक-दूसरे की ज़रूरत है।
आर्थिक मदद देना
7. जब फिलिप्पियों को खबर मिली कि उनके मसीही भाई-बहन तंगी में हैं तो उन्होंने क्या किया?
7 फिलिप्पी की कलीसिया के मसीही भाई-बहन, पौलुस को बहुत प्यार करते थे इसलिए जब वह थिस्सलुनीके में ठहरा था, तो उन्होंने उसकी ज़रूरतें पूरी करने के लिए उसे कुछ चीज़ें भेजीं। (फिलिप्पियों 4:15, 16) यही नहीं, जब यरूशलेम के भाइयों को तंगी उठानी पड़ी, तो फिलिप्पी के भाई-बहनों ने अपनी हैसियत से बढ़कर उन्हें दान दिया। पौलुस, उनकी दरियादिली के लिए इतना एहसानमंद था कि उसने दूसरी जगह के मसीहियों को लिखी पत्री में कहा कि फिलिप्पी के मसीही एक अच्छी मिसाल हैं।—2 कुरिन्थियों 8:1-6.
8. इपफ्रुदीतुस ने कैसी भावना दिखायी?
8 जब पौलुस कैद में था, तब फिलिप्पियों ने उसे न सिर्फ कुछ चीज़ें तोहफे में भेजीं बल्कि कलीसिया की तरफ से पौलुस की मदद करने के लिए इपफ्रुदीतुस को उसके पास भेजा। पौलुस ने कहा: “[इपफ्रुदीतुस] मसीह के काम के लिये अपने प्राणों पर जोखिम उठाकर मरने के निकट हो गया था, ताकि जो घटी तुम्हारी ओर से मेरी सेवा में हुई, उसे पूरा करे।” (फिलिप्पियों 2:25-30; 4:18) बाइबल यह नहीं बताती कि इपफ्रुदीतुस प्राचीन या सहायक सेवक था। मगर यह ज़ाहिर है कि उसमें त्याग की भावना और दूसरों की मदद करने की इच्छा थी और पौलुस को सचमुच उसकी ज़रूरत थी। क्या आपकी कलीसिया में इपफ्रुदीतुस जैसा कोई है?
वे “प्रोत्साहन का कारण” रहे
9. अरिस्तर्खुस ने हमारे लिए क्या मिसाल रखी?
9 अक्विला, प्रिस्किल्ला और इपफ्रुदीतुस जैसे प्यार करनेवाले भाई-बहन जिस कलीसिया में भी हों, वहाँ उनकी बहुत कदर की जाती है। आज हमारे कुछ भाई-बहन भी कई बातों में शायद पहली सदी के मसीही, अरिस्तर्खुस जैसे हों। वह और दूसरे मसीही, पौलुस के लिए “प्रोत्साहन का कारण” रहे थे। उन्होंने शायद पौलुस को सांत्वना दी या दूसरे तरीकों से उसकी मदद की थी। (कुलुस्सियों 4:10,11, NHT) अरिस्तर्खुस ने ज़रूरत की घड़ी में पौलुस की मदद करके खुद को एक सच्चा दोस्त साबित किया। वह ठीक वैसा ही इंसान था जैसे नीतिवचन 17:17 में बताया गया है: “मित्र सब समयों में प्रेम रखता है, और विपत्ति के दिन भाई बन जाता है।” क्या हम सभी को अपने मसीही भाई-बहनों के लिए “प्रोत्साहन का कारण” नहीं होना चाहिए? खासकर हमें उन लोगों को थाम लेना चाहिए जो तकलीफों से गुज़र रहे हैं।
10. पतरस ने मसीही प्राचीनों के लिए क्या मिसाल रखी?
10 खासकर मसीही प्राचीनों को, अपने आध्यात्मिक भाई-बहनों के लिए प्रोत्साहन का कारण होना चाहिए। मसीह ने प्रेरित पतरस से कहा था: “अपने भाइयों को मज़बूत करना।” (लूका 22:32, हिन्दुस्तानी बाइबल) पतरस इसलिए भाइयों को मज़बूत कर सका क्योंकि उसने चट्टान जैसे मज़बूत गुण दिखाए, खासकर यीशु के पुनरुत्थान के बाद। प्राचीनो, आप भी खुशी-खुशी अपने भाई-बहनों को मज़बूत करने और उनके साथ प्यार से पेश आने की पूरी कोशिश कीजिए क्योंकि उन्हें आपकी ज़रूरत है।—प्रेरितों 20:28-30; 1 पतरस 5:2, 3.
11. तीमुथियुस की भावनाओं पर गौर करने से हम क्या सीख सकते हैं?
11 पौलुस का सफरी साथी, तीमुथियुस एक ऐसा प्राचीन था जिसे दूसरे मसीहियों के लिए गहरी चिंता थी। हालाँकि तीमुथियुस बीमार रहता था, फिर भी उसने मज़बूत विश्वास दिखाया और ‘सुसमाचार के फैलाने में पौलुस के साथ परिश्रम किया।’ इसलिए उसके बारे में पौलुस, फिलिप्पियों से कह सका: “दूसरा कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसकी भावनाएँ मेरे जैसी हों और जो तुम्हारे कल्याण के लिये सच्चे मन से चिंतित हो।” (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) (फिलिप्पियों 2:20, 22; 1 तीमुथियुस 5:23; 2 तीमुथियुस 1:5) अगर हम भी तीमुथियुस की तरह अपने मसीही भाई-बहनों के लिए परवाह दिखाएँ, तो हम उनके लिए एक आशीष साबित होंगे। माना कि हमें अपनी कमज़ोरियों और कई तरह की परीक्षाओं से संघर्ष करना पड़ता है, लेकिन हम भी मज़बूत विश्वास दिखा सकते हैं और अपने आध्यात्मिक भाई-बहनों की परवाह कर सकते हैं। और हमें ऐसा करना भी चाहिए। हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि उन्हें हमारी ज़रूरत है।
दूसरों की परवाह करनेवाली स्त्रियाँ
12. हम दोरकास की मिसाल से क्या सीख सकते हैं?
12 परमेश्वर का भय माननेवाली कई स्त्रियों ने भी दूसरों की परवाह की और उनमें से एक थी, दोरकास। जब उसकी मौत हो गयी, तो चेलों ने पतरस को बुलवाया और उसे एक ऊपरी कोठरी में ले गए। वहाँ “सब विधवाएं रोती हुई उसके पास आ खड़ी हुईं: और जो कुरते और कपड़े दोरकास ने उन के साथ रहते हुए बनाए थे, दिखाने लगीं।” तब दोरकास को दोबारा ज़िंदा किया गया और बेशक बाद में भी उसने “बहुतेरे भले भले काम और दान” किए होंगे। आज भी मसीही कलीसियाओं में दोरकास जैसी कई स्त्रियाँ हैं। वे शायद ज़रूरतमंद लोगों के लिए कपड़े बनातीं या उन्हें कुछ और मदद देती हैं। इसमें शक नहीं कि वे खासकर राज्य के काम को बढ़ावा देतीं हैं और चेला बनाने के काम को अहमियत देती हैं।—प्रेरितों 9:36-42; मत्ती 6:33; 28:19, 20.
13. लुदिया ने कैसे दूसरे मसीहियों के लिए परवाह दिखायी?
13 परमेश्वर का भय माननेवाली एक स्त्री, लुदिया ने भी दूसरों की सेवा की। वह दरअसल थुआथीरा की रहनेवाली थी मगर सा.यु. 50 के आस-पास वह फिलिप्पी में रहती थी और उसी दौरान पौलुस ने वहाँ प्रचार किया था। लुदिया ने शायद अपना धर्म छोड़कर, यहूदी धर्म अपना लिया था लेकिन फिलिप्पी में बहुत कम यहूदी रहे होंगे और शायद एक भी आराधनालय नहीं था। इसलिए वह और दूसरी भक्त स्त्रियाँ, एक नदी के किनारे उपासना के लिए इकट्ठी हुई थीं और तभी प्रेरित पौलुस ने उनको सुसमाचार सुनाया। उनके बारे में वृत्तांत कहता है: “प्रभु ने [लुदिया का] मन खोला, ताकि पौलुस की बातों पर चित्त लगाए। और जब उस ने अपने घराने समेत बपतिस्मा लिया, तो उस ने बिनती की, कि यदि तुम मुझे प्रभु की विश्वासिनी समझते हो, तो चलकर मेरे घर में रहो; और वह हमें मनाकर ले गई।” (प्रेरितों 16:12-15) लुदिया में दूसरों की खातिर भले काम करने की इच्छा थी, इसलिए उसने पौलुस और उसके साथियों को अपने घर पर ठहरने के लिए मनवा लिया। उसी तरह आज जब मसीही भाई-बहन प्यार से हमारी मेहमाननवाज़ी करते हैं, तो हम उनके कितने शुक्रगुज़ार होते हैं!—रोमियों 12:13; 1 पतरस 4:9.
बच्चो, हमें आपकी भी ज़रूरत है
14. यीशु मसीह, बच्चों के साथ कैसे पेश आया?
14 मसीही कलीसिया की शुरूआत, परमेश्वर के बेटे यीशु मसीह ने की। वह दूसरों की भलाई करनेवाला और स्नेही इंसान था। लोगों को उसकी संगति बहुत अच्छी लगती थी क्योंकि वह दूसरों के साथ प्यार और दया से पेश आता था। एक बार जब कुछ लोग अपने नन्हे-मुन्नों को यीशु के पास लाने लगे, तो उसके चेले उन्हें और बच्चों को यीशु से दूर करने लगे। मगर यीशु ने कहा: “बालकों को मेरे पास आने दो और उन्हें मना न करो, क्योंकि परमेश्वर का राज्य ऐसों ही का है। मैं तुम से सच कहता हूं, कि जो कोई परमेश्वर के राज्य को बालक की नाईं ग्रहण न करे, वह उस में कभी प्रवेश करने न पाएगा।” (मरकुस 10:13-15) राज्य की आशीषें पाने के लिए हमें बच्चों की तरह नम्र और दूसरों से सीखने के लिए तैयार होना चाहिए। यीशु ने छोटे बच्चों के लिए प्यार दिखाते हुए उन्हें अपनी बाहों में ले लिया और आशीष दी। (मरकुस 10:16) आज मसीही कलीसिया के आप बच्चों के बारे में क्या? आप यकीन रख सकते हैं कि कलीसिया के भाई-बहन आपसे प्यार करते हैं और उन्हें आपकी ज़रूरत है।
15. लूका 2:40-52 में यीशु की ज़िंदगी की कौन-सी घटनाएँ दर्ज़ हैं और उसने बच्चों के लिए क्या नमूना रखा?
15 यीशु ने बचपन से ही परमेश्वर और शास्त्र के लिए अपना प्रेम दिखाया। जब वह 12 साल का था, तब उसने फसह का पर्व मनाने के लिए अपने माता-पिता, यूसुफ और मरियम के साथ, अपने गृह-नगर नासरत से यरूशलेम तक यात्रा की। पर्व के बाद घर लौटते वक्त, यीशु के माता-पिता ने देखा कि वह यात्रियों की टोली में नहीं है। फिर वे उसकी तलाश करने निकले और आखिर में उन्होंने उसे मंदिर के एक सभागृह में बैठे देखा। वह यहूदी उपदेशकों की बातें सुन रहा था और उनसे सवाल कर रहा था। यीशु को यह जानकर हैरानी हुई कि यूसुफ और मरियम को पता नहीं था कि वह उन्हें कहाँ मिलेगा। इसलिए उसने उनसे पूछा: “क्या नहीं जानते थे, कि मुझे अपने पिता के भवन में होना अवश्य है?” फिर वह अपने माता-पिता के साथ घर लौट गया और हमेशा की तरह उनके अधीन रहा। वह बुद्धि और डील-डौल में बढ़ता गया। (लूका 2:40-52) यीशु ने हमारे बच्चों के लिए कितना अच्छा नमूना रखा! बेशक, उन्हें भी अपने माता-पिता का कहना मानना चाहिए और आध्यात्मिक बातें सीखने में दिलचस्पी लेनी चाहिए।—व्यवस्थाविवरण 5:16; इफिसियों 6:1-3.
16. (क) जब यीशु मंदिर में गवाही दे रहा था, तब कुछ लड़कों ने क्या कहकर पुकारा? (ख) आज, मसीही बच्चों को क्या सुअवसर मिला है?
16 शायद आप बच्चे स्कूल में और अपने माता-पिता के साथ घर-घर जाकर यहोवा के बारे में साक्षी देते होंगे। (यशायाह 43:10-12; प्रेरितों 20:20, 21) जब यीशु अपनी मौत से कुछ ही समय पहले मंदिर में गवाही दे रहा था और बीमारों को चंगा कर रहा था, तब कुछ लड़के यह कहकर पुकारने लगे: “दाऊद के सन्तान को होशाना”! यह देखकर मुख्य याजक और शास्त्री भड़क उठे और यीशु से कहने लगे: “क्या तू सुनता है कि ये क्या कहते हैं?” यीशु ने उन्हें जवाब दिया: “हां; क्या तुम ने यह कभी नहीं पढ़ा, कि बालकों और दूध पीते बच्चों के मुंह से तू ने स्तुति सिद्ध कराई?” (मत्ती 21:15-17) कलीसिया के बच्चो, आपको भी उन बच्चों की तरह परमेश्वर और उसके बेटे का गुणगान करने का सुअवसर मिला है। तो हम चाहते हैं कि राज्य का प्रचार करने में आप भी हमारे साथ हो लें, हमें आपकी ज़रूरत है।
जब मुसीबत टूट पड़ती है
17, 18. (क) पौलुस ने यहूदिया के मसीहियों की खातिर क्यों चंदा जमा करवाया? (ख) जब अन्यजाति के मसीहियों ने यहूदिया के विश्वासियों के लिए खुशी-खुशी चंदा दिया, तो इसका नतीजा क्या हुआ?
17 हमारे हालात चाहे जैसे भी हों, अपने भाई-बहनों के लिए प्यार हमें उकसाता है कि ज़रूरत के वक्त हम उनकी मदद करें। (यूहन्ना 13:34, 35; याकूब 2:14-17) जब यहूदिया के भाई-बहन तकलीफ में थे, तब उनके लिए प्यार ने ही पौलुस को उकसाया कि वह उनकी खातिर अखाया, गलतिया, मकिदुनिया और एशिया के ज़िले की कलीसियाओं में चंदा इकट्ठा करने का इंतज़ाम करे। यरूशलेम के मसीहियों पर ज़ुल्म ढाए गए, और उन्हें दंगे-फसाद और अकाल का सामना करना पड़ा था। शायद इसी वजह से, जैसे पौलुस ने लिखा उन्हें “दुखों” और “क्लेश” से गुज़रना पड़ा और उनकी ‘संपत्ति लुट गयी।’ (इब्रानियों 10:32-34; प्रेरितों 11:27–12:1) इसलिए पौलुस ने यहूदिया के गरीब मसीहियों के लिए चंदा जमा करने का इंतज़ाम किया।—1 कुरिन्थियों 16:1-3; 2 कुरिन्थियों 8:1-4, 13-15; 9:1, 2, 7.
18 जब यहोवा की उपासना करनेवाले अन्यजाति के लोगों ने यहूदिया के पवित्र जनों के लिए खुशी से दान दिया, तो उससे यह साबित हुआ कि उनके और यहूदी उपासकों के बीच प्यार का बंधन कायम था। अन्यजाति के मसीहियों ने चंदा देकर, यहूदी मसीहियों के लिए अपना एहसान भी ज़ाहिर किया क्योंकि उन यहूदी मसीहियों से उन्हें आध्यात्मिक धन या ज्ञान का भंडार मिला था। इस तरह यहूदी और अन्यजाति के मसीहियों ने अपने भौतिक और आध्यात्मिक धन को भी आपस में मिल-बाँटकर उसका आनंद लिया। (रोमियों 15:26, 27) आज भी मसीही अपने ज़रूरतमंद भाई-बहनों के लिए प्यार होने की वजह से खुशी-खुशी दान देते हैं। (मरकुस 12:28-31) इस मायने में भी हमें एक-दूसरे की ज़रूरत है ताकि बराबरी हो और ‘जो थोड़ा बटोरते हैं उनके पास कुछ कम न हो।’—2 कुरिन्थियों 8:15.
19, 20. उदाहरण देकर बताइए कि यहोवा के लोग मुसीबत के वक्त, कैसे एक-दूसरे की मदद करते हैं?
19 हम जानते हैं कि मसीहियों को एक-दूसरे की ज़रूरत है, इसलिए हम अपने विश्वासी भाई-बहनों की मदद करने के लिए फौरन कदम उठाते हैं। मिसाल के लिए, ध्यान दीजिए कि सन् 2001 की शुरूआत में जब ऐल सैल्वाडोर में भीषण भूकंप आए और भू-स्खलन हुआ, तो हमारे भाइयों ने क्या किया। इस बारे में एक रिपोर्ट ने कहा: “ऐल सैल्वाडोर के सभी भागों में रहनेवाले भाइयों ने राहत काम में हिस्सा लिया। ग्वाटेमाला, अमरीका और कनाडा से आए भाइयों के समूहों ने भी हमारी मदद की। . . . थोड़े ही समय के अंदर 500 से ज़्यादा घर और 3 सुंदर राज्यगृह बनाए गए। इन भाइयों ने त्याग की भावना दिखाते हुए जो कड़ी मेहनत की और एक-दूसरे को सहयोग दिया, उससे बाहरवालों को बढ़िया तरीके से गवाही मिली।”
20 दक्षिण अफ्रीका से मिली एक रिपोर्ट ने कहा: “मोज़म्बिक के बहुत-से हिस्सों में आयी भयंकर बाढ़ की वजह से, हमारे कई मसीही भाइयों को भी तकलीफ झेलनी पड़ी। उन भाइयों की ज़्यादातर ज़रूरतें पूरी करने का इंतज़ाम मोज़म्बिक के शाखा दफ्तर ने किया। मगर उस शाखा के भाइयों ने हमसे गुज़ारिश की कि हम वहाँ के ज़रूरतमंद भाइयों के लिए ऐसे कपड़े भेजें जिनका इस्तेमाल किया गया है मगर फिर भी वे अच्छी हालत में हैं। उन ज़रूरतमंद भाइयों के लिए हमने इतने सारे कपड़े जमा किए कि उन्हें हमने 12 मीटर के एक बड़े बक्स में भरा।” जी हाँ, ऐसे वक्त पर मदद करने के लिए भी हमें एक-दूसरे की ज़रूरत है।
21. अगले लेख में क्या चर्चा की जाएगी?
21 जैसे शुरू में बताया गया है, शरीर के सभी भाग अहमियत रखते हैं। और यही बात मसीही कलीसिया के बारे में भी पूरी तरह सच है। कलीसिया के सभी सदस्यों को एक-दूसरे की ज़रूरत है। साथ ही, उन्हें हमेशा एकता में रहकर सेवा करनी चाहिए। अगले लेख में चंद ऐसी बातों पर चर्चा की जाएगी जिनकी वजह से वे एकता में रहकर सेवा कर पाते हैं।
आप क्या जवाब देंगे
• इंसान के शरीर और मसीही कलीसिया में क्या समानता है?
• शुरू के कुछ मसीहियों को जब पता चला कि उनके मसीही भाई-बहनों को मदद की ज़रूरत है तो उन्होंने क्या किया?
• बाइबल में दिए कौन-से चंद उदाहरण दिखाते हैं कि मसीहियों को एक-दूसरे की ज़रूरत है और वे एक-दूसरे की मदद करते हैं?
[पेज 10 पर तसवीर]
अक्विला और प्रिस्किल्ला ने दूसरों की परवाह की
[पेज 12 पर तसवीरें]
यहोवा के लोग मुसीबत की घड़ी में एक-दूसरे की और दुनिया के लोगों की मदद करते हैं