लाइबेरिया—युद्ध के बावजूद राज्य काम में बढ़ोतरी
लाइबेरिया में दस से भी ज़्यादा सालों से गृह-युद्ध ज़ोरों पर है। और करीब जून 2003 में विद्रोही दल, लड़ते-लड़ते लाइबेरिया की राजधानी, मनरोवीया तक पहुँच गए। बहुत-से यहोवा के साक्षियों को मजबूरन, एक नहीं बल्कि कई दफे अपना घर-बार छोड़कर भागना पड़ा। कई बार लोगों के सामान लूटे गए।
अफसोस की बात है कि जब राजधानी में लड़ाई हुई, तब हज़ारों लोगों की जानें गयीं। उनमें एक साक्षी भाई और एक बहन भी शामिल थे। दूसरे भाइयों ने इस मुश्किल दौर का सामना किस तरह किया और उनकी मदद करने के लिए क्या कदम उठाए गए थे?
ज़रूरतमंदों के लिए मदद
जब से मुसीबतों का दौर शुरू हुआ है, तभी से लाइबेरिया में यहोवा के साक्षियों के शाखा दफ्तर ने ज़रूरतमंद भाई-बहनों तक राहत-सामग्री पहुँचाने का अच्छा इंतज़ाम किया है। उन तक खाना, ज़रूरी घरेलू सामान, और दवाइयाँ पहुँचायी गयी हैं। जब लाइबेरिया के बंदरगाह के इलाकों पर विद्रोहियों ने कब्ज़ा कर लिया, तो उस वक्त खाने का सामान मिलना बहुत मुश्किल हो गया था। शाखा दफ्तर जानता था कि ऐसा कुछ होगा, इसलिए उसने पहले से ही उन दो हज़ार साक्षियों के लिए खाने का ज़रूरी सामान जमा कर लिया था, जिन्होंने भागकर शहर के अलग-अलग किंगडम हॉल में पनाह ली थी। भाई-बहनों को खाना राशन पर दिया जाता था ताकि बंदरगाह के दोबारा खुलने तक खाना कम न पड़े। बेलजियम और सिएरा लिओन की शाखाओं ने हवाई-जहाज़ से दवाइयाँ भेजीं, साथ ही ब्रिटेन और फ्रांस की शाखाओं ने जहाज़ से कपड़े भेजे।
हालात बद-से-बदतर होने के बावजूद हमारे भाइयों ने अपना दिल छोटा नहीं किया और हमेशा खुश रहे। एक भाई को तीन बार अपने घर से भागना पड़ा, फिर भी वह कहता है: “आखिर हम इन्हीं हालातों के बारे में ही तो प्रचार करते हैं; इसमें शक नहीं कि यही अंतिम दिन है।” दूसरे भाई-बहन भी कुछ ऐसा ही महसूस करते हैं।
सुसमाचार के मुताबिक कदम उठाना
पूरे देश में खलबली मचने के बावजूद साक्षियों को प्रचार काम में अच्छे नतीजे मिल रहे हैं। जनवरी 2003 में 3,879 राज्य प्रचारकों ने रिपोर्ट की जो अब तक की सबसे बड़ी संख्या है और फरवरी में उन्होंने 15,227 लोगों के साथ बाइबल अध्ययन किए।
यहाँ के लोग सुसमाचार सुनकर फौरन उसके मुताबिक कदम उठाते हैं। इसकी एक मिसाल हमें इस देश के दक्षिणपूर्व के एक गाँव से मिलती है। एक कलीसिया ने तय किया कि वह मसीह की मौत का स्मारक एक बड़े गाँव, ब्वान में मनाएगी। आम तौर पर सभा के लिए भाई-बहन जिस जगह पर इकट्ठे होते थे, वहाँ से ब्वान गाँव तक पैदल जाने के लिए पाँच घंटे लगते हैं। गाँव जाकर वहाँ के लोगों को स्मारक का न्यौता देने से पहले, भाइयों ने वहाँ के मेयर को न्यौता दिया। न्यौता मिलने पर मेयर ने अपनी बाइबल ली और गाँववालों के पास गया। उसने बाइबल से वह आयत पढ़कर सुनायी जो पर्ची पर दी गयी थी और सभी को स्मारक में आने का बढ़ावा दिया। इसलिए जब प्रचारक गाँववालों को न्यौता देने के लिए पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि उनका काम तो पहले से किसी ने कर दिया है! मेयर अपनी दो बीवियों और बच्चों के साथ स्मारक में आया। कुल मिलाकर, 27 लोग हाज़िर हुए। तब से वह मेयर मेथोडिस्ट चर्च छोड़कर साक्षियों के साथ बाइबल का अध्ययन करने लगा, और किंगडम हॉल बनाने के लिए ज़मीन देने की पेशकश भी की।
मन बदल गया
हमारे भाइयों के चालचलन का भी दूसरों पर इतना अच्छा असर पड़ा है कि कुछ विरोधियों ने सच्चाई के बारे में अपनी राय ही बदल दी। ओपोकु नाम के एक आदमी की मिसाल लीजिए। एक स्पेशल पायनियर भाई जब घर-घर का प्रचार कर रहा था, तब उसकी मुलाकात ओपोकु से हुई और उसने उसे एक प्रहरीदुर्ग पत्रिका पेश की। ओपोकु पत्रिका का एक लेख पढ़ना चाहता था, मगर उसे खरीदने के लिए उसके पास पैसे नहीं थे। भाई ने उसे समझाया कि पत्रिका के लिए कोई दाम नहीं लिया जाता है और उसे वह पत्रिका देकर दोबारा मिलने का इंतज़ाम किया। वापसी-भेंट के दौरान ओपोकु ने पायनियर भाई से पूछा: “क्या आप जानते हैं, मैं कौन हूँ? हार्पर नगर में लगभग आपके सभी लोग मुझे पहचानते हैं। मैं वही शख्स हूँ जो साक्षियों के बच्चों को स्कूल से निकाल दिया करता था!” फिर उसने बताया कि जब वह उस नगर के एक हाई स्कूल में प्रिंसीपल था, तो वह यहोवा के साक्षियों के बच्चों को कैसे सताता था, क्योंकि वे झंडे को सलामी नहीं देते थे।
लेकिन जब ओपोकु ने यहोवा के साक्षियों के मसीही प्रेम की तीन मिसालें देखीं, तो वह साक्षियों के बारे में अपने रवैए की दोबारा जाँच करने पर मजबूर हो गया। पहली बार उसने देखा कि साक्षी अपने एक बहुत ही बीमार आध्यात्मिक भाई की देखभाल कर रहे हैं। यहाँ तक कि उन्होंने पड़ोसी देश में उसका इलाज करवाने का भी इंतज़ाम किया। ओपोकु ने सोचा कि वह बीमार इंसान ज़रूर साक्षियों में कोई “बड़ा आदमी” होगा, मगर बाद में उसने जाना कि वह एक मामूली साक्षी था। साक्षियों के मसीही प्रेम की दूसरी मिसाल उसने सन् 1990 के दशक में देखी, जब वह कोत दिवॉर में एक शरणार्थी था। एक दिन जब उसे प्यास लगी, तो वह एक लड़के से पानी खरीदने गया। ओपोकु के पास बड़ी रकम का सिर्फ एक नोट था और उस लड़के के पास खुले पैसे नहीं थे, तो उसने ओपोकु को मुफ्त में पानी दे दिया। फिर उसने ओपोकु से पूछा: “आपको क्या लगता है, क्या कभी ऐसा समय आएगा जब आपकी और मेरी तरह लोग बिना पैसा लिए एक-दूसरे को चीज़ें देंगे?” ओपोकु समझ गया कि यह लड़का ज़रूर यहोवा का एक साक्षी होगा और उसके पूछने पर लड़के ने हाँ कहा। उस साक्षी की दरियादिली और प्यार ने उसके दिल पर गहरी छाप छोड़ी। मसीही प्रेम की आखिरी मिसाल इस स्पेशल पायनियर ने दी जब उसने खुशी से, बिना दाम के ओपोकु को पत्रिका दे दी। अब ओपोकु को पूरा यकीन हो गया कि साक्षियों के बारे में उसकी राय बिलकुल गलत थी और उनके बारे में उसे अपना रवैया बदलना होगा। ओपोकु आध्यात्मिक रूप से तरक्की करता गया और आज वह एक बपतिस्मा-रहित प्रचारक है।
लाइबेरिया में अब भी हमारे भाई-बहन बहुत-सी मुश्किलों से गुज़र रहे हैं, फिर भी वे परमेश्वर पर भरोसा रखते हैं और पूरी वफादारी से यह खुशखबरी सुनाते हैं कि परमेश्वर के राज्य में हालात अच्छे होंगे। यहोवा उनकी मेहनत और उस प्रेम को कभी नहीं भूलेगा जो वे उसके नाम के लिए दिखाते हैं।—इब्रानियों 6:10.
[पेज 30 पर नक्शे]
(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)
मनरोवीया
[पेज 31 पर तसवीरें]
मुसीबतों के दौरान, यहोवा के लोग ज़रूरतमंदों की आध्यात्मिक और दूसरे तरीकों से मदद करते हैं