हमारी पवित्र सभाओं के लिए आदर दिखाना
‘मैं उनको अपने पवित्र पर्वत पर ले आकर अपने प्रार्थना के भवन में आनन्दित करूंगा।’—यशायाह 56:7.
1. बाइबल से बताइए कि हम क्यों सभाओं के लिए सही आदर दिखाते हैं?
यहोवा ने अपने लोगों यानी अभिषिक्त मसीहियों और उनके साथियों को अपने “पवित्र पर्वत” पर इकट्ठा किया है ताकि वे उसकी उपासना कर सकें। वह “प्रार्थना के भवन” यानी अपने आत्मिक मंदिर में उन्हें आनंदित कर रहा है, जो कि “सब जातियों के लिये प्रार्थना का घर” है। (यशायाह 56:7; मरकुस 11:17) यहोवा का अपने लोगों को इस तरह इकट्ठा करना दिखाता है कि उसकी उपासना पवित्र, शुद्ध और सर्वश्रेष्ठ है। इसलिए जब हम सभाओं के लिए सही आदर दिखाते हैं, जहाँ बाइबल का अध्ययन और परमेश्वर की उपासना की जाती है, तब हम ज़ाहिर करते हैं कि हम पवित्र चीज़ों के बारे में यहोवा का नज़रिया रखते हैं।
2. क्या बात दिखाती है कि यहोवा ने उपासना के लिए जिस जगह को चुना था, उसे वह पवित्र समझता था, और यीशु ने कैसे दिखाया कि वह भी यहोवा का नज़रिया रखता था?
2 प्राचीन इस्राएल में यहोवा ने अपनी उपासना के लिए जिस जगह को चुना था, उसे पवित्र माना जाता था। निवासस्थान और उसकी सजावट की चीज़ों और उपासना में इस्तेमाल होनेवाले पात्रों का अभिषेक किया जाना और उन्हें पवित्र किया जाना था “जिस से वे परमपवित्र ठहरें।” (निर्गमन 30:26-29) निवासस्थान में दो भाग हुआ करते थे। एक को “पवित्र स्थान” और दूसरे को “परम पवित्र स्थान” कहा जाता था। (इब्रानियों 9:2, 3) बाद में, निवासस्थान की जगह यरूशलेम में बने मंदिर ने ले ली। तब से यरूशलेम, यहोवा की उपासना की खास जगह बन गयी और उसे “पवित्र नगर” कहा जाने लगा। (नहेमायाह 11:1; मत्ती 27:53) जब यीशु धरती पर था, तब खुद उसने भी मंदिर के लिए आदर दिखाया। एक मौके पर, यह देखकर उसका खून खौल उठा कि लोग किस तरह मंदिर का घोर अपमान कर रहे थे। उन्होंने मंदिर के आँगन को व्यापार का अड्डा और आने-जाने का रास्ता बना रखा था।—मरकुस 11:15, 16.
3. किस बात से पता चलता है कि इस्राएलियों की सभाएँ पवित्र थीं?
3 इस्राएली, नियमित तौर पर यहोवा की उपासना करने और व्यवस्था की बातें सुनने के लिए इकट्ठे होते हैं जो लेवी उन्हें पढ़कर सुनाते थे। उनके पर्वों के कुछ दिनों को पवित्र सभा या महासभा कहा जाता था। यह दिखाता है कि उनकी ये सभाएँ पवित्र थीं। (लैव्यव्यवस्था 23:2, 3, 36, 37) एज्रा और नहेमायाह के दिनों में ऐसा ही एक सम्मेलन हुआ था। लेवी, ‘लोगों को व्यवस्था समझा रहे थे।’ जब ‘सब लोग व्यवस्था के वचन को सुनकर रोने लगे,’ तब लेवियों ने “सब लोगों को यह कहकर चुप करा दिया, कि चुप रहो क्योंकि आज का दिन पवित्र है।” इसके बाद, इस्राएलियों ने सात दिन के झोपड़ियों का पर्व ‘बड़े आनन्द’ के साथ मनाया। इस दौरान, “पहिले दिन से पिछले दिन तक एज्रा ने प्रतिदिन परमेश्वर की व्यवस्था की पुस्तक में से पढ़ पढ़कर सुनाया। यों वे सात दिन तक पर्व को मानते रहे, और आठवें दिन नियम के अनुसार महासभा हुई।” (नहेमायाह 8:7-11, 17, 18) ये मौके सचमुच पवित्र थे और इनमें हाज़िर होनेवाले सभी को ध्यान लगाकर और आदर के साथ व्यवस्था की बातों को सुनना था।
हमारी सभाएँ भी पवित्र हैं
4, 5. हमारी सभाओं के किन पहलुओं से साबित होता है कि ऐसी सभाएँ पवित्र होती हैं?
4 यह सच है कि आज धरती पर यहोवा का कोई पवित्र नगर नहीं है जहाँ उसने अपनी उपासना के लिए कोई खास मंदिर खड़ा किया हो। फिर भी, हमें एक बात कभी नहीं भूलनी चाहिए कि हमारी सभाएँ पवित्र हैं, जहाँ हम यहोवा की उपासना करने के लिए इकट्ठे होते हैं। बाइबल को पढ़ने और उसका अध्ययन करने के लिए हफ्ते में तीन बार सभाएँ रखी जाती हैं। इनमें यहोवा के वचन की “व्याख्या” की जाती है और नहेमायाह के दिनों की तरह, ‘उसका अभिप्राय: क्या है, इसे खोलकर समझाया’ जाता है। (नहेमायाह 8:8, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) हमारी सारी सभाएँ प्रार्थना से शुरू और खत्म होती हैं। और ज़्यादातर सभाओं में हम यहोवा की स्तुति में गीत भी गाते हैं। (भजन 26:12) कलीसिया की सभाएँ वाकई हमारी उपासना का एक ज़रूरी हिस्सा हैं, इसलिए इनके लिए हममें भक्ति की भावना होनी चाहिए और सभा के दौरान हमें पूरे आदर के साथ और ध्यान लगाकर कार्यक्रम सुनना चाहिए।
5 जब यहोवा के लोग उसकी उपासना करने, उसके वचन का अध्ययन करने और भाई-बहनों की बढ़िया संगति का आनंद लेने के लिए इकट्ठे होते हैं, तो यहोवा उन्हें आशीष देता है। इसलिए जब कोई सभा रखी जाती है, तो हम यकीन रख सकते हैं कि ‘यहोवा की आशीष’ उस सभा पर ‘ठहरती है।’ (भजन 133:1, 3) और अगर हम उसमें हाज़िर होते हैं और आध्यात्मिक कार्यक्रम को ध्यान से सुनते हैं, तो हमें भी वह आशीष मिलती है। इतना ही नहीं, यीशु ने कहा था: “जहां दो या तीन मेरे नाम पर इकट्ठे होते हैं, वहां मैं उन के बीच में होता हूं।” यह आयत मसीही प्राचीनों पर लागू होती है, जब वे दो लोगों के आपस की गंभीर समस्या को सुलझाने के लिए बैठक बुलाते हैं। मगर इस आयत को हमारी सभाओं पर भी लागू किया जाता है। (मत्ती 18:20) ज़रा सोचिए, अगर मसीही भाई-बहन यीशु के नाम पर इकट्ठे होते हैं और वह पवित्र आत्मा के ज़रिए उनके बीच मौजूद होता है, तो क्या इन सभाओं को पवित्र नहीं समझा जाना चाहिए?
6. सभा के लिए इस्तेमाल की जानेवाली छोटी और बड़ी जगहों के बारे में क्या कहा जा सकता है?
6 यह सच है कि यहोवा, इंसानों के बनाए मंदिरों में नहीं बसता। इसके बावजूद हमारे राज्य घर, सच्ची उपासना का स्थान हैं। (प्रेरितों 7:48; 17:24) यहाँ हम यहोवा के वचन का अध्ययन करने, उससे प्रार्थना करने और उसकी स्तुति में गीत गाने के लिए मिलते हैं। राज्य घर की तरह हमारे सम्मेलन भवन भी उपासना की जगह हैं। इसके अलावा, जब अधिवेशन जैसी बड़ी सभाओं के लिए हॉल या स्टेडियम किराए पर लिए जाते हैं, तो ये भी अधिवेशन के दौरान उपासना का स्थान बन जाते हैं। हमें उपासना के इन मौकों के लिए आदर दिखाना चाहिए, फिर चाहे इनमें मुट्ठी-भर लोग मौजूद हों या हज़ारों लोग। और यह आदर हम अपने रवैए और व्यवहार से दिखा सकते हैं।
हमारी सभाओं के लिए आदर दिखाने के तरीके
7. हम किस तरीके से अपनी सभाओं के लिए आदर दिखा सकते हैं?
7 हम कई तरीकों से अपनी सभाओं के लिए आदर दिखा सकते हैं। एक तरीका है, सभाओं में राज्य गीत गाने के लिए मौजूद होना। इनमें से कई गीत असल में प्रार्थनाएँ हैं और इसलिए उन्हें पूरी श्रद्धा के साथ गाया जाना चाहिए। प्रेरित पौलुस ने भजन 22 में दी भविष्यवाणी का हवाला दिया, जिसमें यीशु ने कहा: “मैं तेरा नाम अपने भाइयों को सुनाऊंगा, सभा के बीच में मैं तेरा भजन गाऊंगा।” (इब्रानियों 2:12) इसलिए हमें ठान लेना चाहिए कि इससे पहले कि चेयरमैन गीत का नंबर बताए, हम अपनी जगह पर बैठ जाएँगे और फिर गीत गाते वक्त उसके मतलब पर पूरा ध्यान देंगे। आइए हम उसी जज़्बे से गीत गाएँ, जिस जज़्बे से भजनहार ने गया था: “मैं सीधे लोगों की गोष्ठी में और मण्डली में भी सम्पूर्ण मन से यहोवा का धन्यवाद करूंगा।” (भजन 111:1) जी हाँ, सभाओं में जल्दी आने और आखिर तक रहने की एक बढ़िया वजह यह है कि हम यहोवा की स्तुति में गीत गाना चाहते हैं।
8. बाइबल की कौन-सी मिसाल दिखाती है कि हमें सभाओं में की जानेवाली प्रार्थनाओं को ध्यान से सुनकर उनके लिए आदर दिखाना चाहिए?
8 राज्य गीत के अलावा, हाज़िर लोगों की तरफ से की गयी दिली प्रार्थनाएँ भी हमारी सभाओं की आध्यात्मिक शोभा बढ़ाती हैं। पहली सदी में, एक मौके पर यरूशलेम के मसीही आपस में मिलें और उन्होंने “एक चित्त होकर ऊंचे शब्द से परमेश्वर से” गिड़गिड़ाकर प्रार्थना की। नतीजा यह हुआ है कि वे ज़ुल्मों के दौर में भी “परमेश्वर का वचन हियाव से सुनाते रहे।” (प्रेरितों 4:24-31) ज़रा सोचिए, क्या उस सभा में मौजूद किसी भी मसीही ने प्रार्थना के दौरान अपना ध्यान भटकने दिया होगा? जी नहीं, बाइबल कहती है कि उन्होंने “एक चित्त होकर” प्रार्थना की थी। सभा में की जानेवाली प्रार्थनाएँ, हाज़िर सभी लोगों की भावनाओं को ज़ाहिर करती हैं। इसलिए हमें उन प्रार्थनाओं को ध्यान से सुनकर उनके लिए आदर दिखाना चाहिए।
9. हम अपने पहनावे और चालचलन से पवित्र सभाओं के लिए आदर कैसे दिखा सकते हैं?
9 इसके अलावा, हम अपनी पवित्र सभाओं के लिए एक और तरीके से आदर दिखा सकते हैं। वह है, अपने पहनावे से। हम जिस तरह के कपड़े पहनते और बाल बनाते हैं, उनसे हम सभाओं की शोभा बढ़ा सकते हैं। प्रेरित पौलुस ने यह सलाह दी: “मैं चाहता हूं, कि हर जगह पुरुष बिना क्रोध और विवाद के पवित्र हाथों को उठाकर प्रार्थना किया करें। वैसे ही स्त्रियां भी संकोच और संयम के साथ सुहावने वस्त्रों से अपने आप को संवारे; न कि बाल गूंथने, और सोने, और मोतियों, और बहुमोल कपड़ों से, . . . क्योंकि परमेश्वर की भक्ति ग्रहण करनेवाली स्त्रियों को यही उचित भी है।” (1 तीमुथियुस 2:8-10) जब खुले स्टेडियम में बड़े-बड़े अधिवेशन रखे जाते हैं, तो चाहे मौसम कितना भी गरम क्यों न हो, हम फिर भी शालीन कपड़े पहनने का ध्यान रखेंगे। इसके अलावा, अगर हम अधिवेशनों और सम्मेलनों की दिल से इज़्ज़त करते हैं, तो हम कार्यक्रम के दौरान चुइंगम या दूसरी चीज़ें नहीं खाएँगे। इन सभाओं में सलीकेदार कपड़े पहनने और अच्छा चालचलन बनाए रखने से हम यहोवा परमेश्वर, उसकी उपासना और अपने भाई-बहनों के लिए आदर और सम्मान दिखाते हैं।
चालचलन जो परमेश्वर की कलीसिया को शोभा देता है
10. प्रेरित पौलुस ने कैसे दिखाया कि हमें अपनी मसीही सभाओं को उस तरीके से चलाना चाहिए जो यहोवा की कलीसिया को शोभा दे?
10 मसीही सभाओं को कैसे चलाया जाना चाहिए, इस बारे में प्रेरित पौलुस ने हमें पहले कुरिन्थियों के अध्याय 14 में बुद्धि-भरी सलाह दी है। अपनी सलाह के आखिर में उसने कहा: “सारी बातें सभ्यता और क्रमानुसार की जाएं।” (1 कुरिन्थियों 14:40) हमारी सभाएँ, मसीही कलीसिया के कामों का एक अहम हिस्सा हैं। इसलिए हमें इन सभाओं को उस तरीके से चलाना चाहिए जो यहोवा की कलीसिया को शोभा दे।
11, 12. (क) हमारी सभाओं में आनेवाले बच्चों के मन में क्या बात बैठ जानी चाहिए? (ख) सभाओं में बच्चे अपने विश्वास को ज़ाहिर करना कैसे सीख सकते हैं?
11 खासकर बच्चों को यह सिखाए जाने की ज़रूरत है कि सभाओं में उन्हें कैसे बर्ताव करना चाहिए। मसीही माता-पिताओं को अपने बच्चों को समझाना चाहिए कि राज्य घर और कलीसिया पुस्तक अध्ययन की जगह, उनके खेलने की जगह नहीं हैं। इसके बजाय, इन जगहों पर हम यहोवा की उपासना और उसके वचन का अध्ययन करते हैं। प्राचीन समय के बुद्धिमान राजा, सुलैमान ने लिखा: “जब तू परमेश्वर के भवन में जाए, तब सावधानी से चलना; सुनने के लिये समीप जाना।” (सभोपदेशक 5:1) मूसा ने इस्राएल जाति के सभी बड़ों और ‘बालकों’ को इकट्ठा होने की हिदायत दी थी। उसने कहा: “सब लोगों को इकट्ठा करना कि वे सुनकर सीखें, और तुम्हारे परमेश्वर यहोवा का भय मानकर, इस व्यवस्था के सारे वचनों के पालन करने में चौकसी करें, और उनके लड़केबाले जिन्हों ने ये बातें नहीं सुनीं वे भी सुनकर सीखें, कि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा का भय . . . मानते रहें।”—व्यवस्थाविवरण 31:12, 13.
12 आज भी, बच्चे अपने माता-पिता के साथ सभाओं में सुनने और सीखने के लिए आते हैं। जब बच्चे सभाओं में ध्यान लगाकर सुनने और बाइबल की बुनियादी सच्चाइयों को समझने के काबिल हो जाते हैं, तो वे सभाओं में जवाब देकर अपने विश्वास का “अंगीकार” कर सकते हैं। (रोमियों 10:10) एक बच्चा शुरू-शुरू में एक आसान-से सवाल का कम शब्दों में जवाब दे सकता है। शायद उसे पढ़कर जवाब देना पड़े, मगर धीरे-धीरे वह अपने शब्दों में जवाब देने की कोशिश कर सकता है। ऐसा करना बच्चे के लिए फायदेमंद होता है और उसे जवाब देने में मज़ा भी आता है। इतना ही नहीं, जब सभा में हाज़िर बड़े-बुज़ुर्ग इन नन्हे-मुन्नों को अपने शब्दों में अपना विश्वास ज़ाहिर करते सुनते हैं, तो उनका दिल खुशी से उमड़ पड़ता है। बेशक, सभाओं में जवाब देने में सबसे पहले, माता-पिताओं को अपने बच्चों के लिए एक अच्छी मिसाल रखनी चाहिए। अगर मुमकिन हो, तो उन्हें बच्चों को अपनी-अपनी बाइबल, गीत-पुस्तक और अध्ययन की जानेवाली किताब या पत्रिका भी देनी चाहिए। उन्हें बच्चों को सिखाना चाहिए कि वे इन साहित्य के लिए आदर दिखाएँ। यह सब करने से, बच्चों के मन में यह बात अच्छी तरह बैठ जाएगी कि हमारी सभाएँ पवित्र हैं।
13. जो लोग पहली बार हमारी सभाओं में आते हैं, उनसे हम क्या उम्मीद करते हैं?
13 बेशक, हम हरगिज़ नहीं चाहते कि हमारी सभाएँ, ईसाईजगत के चर्चों की सभाओं जैसी हों। एक तरफ, ऐसी सभाएँ दिखावटी होती हैं और उनमें स्नेह और जोश जैसी भावनाओं की कमी होती हैं, तो दूसरी तरफ उनमें इतना शोरगुल होता है मानो कोई सभा नहीं बल्कि रॉक संगीत का प्रोग्राम चल रहा हो। हम अपनी सभाओं में सबका स्वागत करते हैं और लोगों से घुल-मिलकर बातें करते हैं। लेकिन हम इतनी भी ढिलाई नहीं बरततें कि ऐसा लगे मानो हम किसी क्लब में हो। सभाओं में आने का हमारा मकसद होता है, यहोवा की उपासना करना। इसलिए इनमें हमेशा हमें गरिमा बनाए रखनी चाहिए। हम चाहते हैं कि जो लोग पहली बार हमारी सभा में आते हैं, वे कार्यक्रम सुनने, हमारा और हमारे बच्चों का व्यवहार देखने के बाद यह कहें: “सचमुच परमेश्वर तुम्हारे बीच में है।”—1 कुरिन्थियों 14:25.
इकट्ठा होना, हमेशा हमारी उपासना का एक हिस्सा रहेगा
14, 15. (क) हम “परमेश्वर के भवन की उपेक्षा” करने से कैसे दूर रह सकते हैं? (ख) यशायाह 66:23 की भविष्यवाणी आज कैसे पूरी हो रही है?
14 जैसा कि इस लेख की शुरूआत में बताया गया है, यहोवा अपने लोगों को “प्रार्थना के भवन” यानी अपने आत्मिक मंदिर में इकट्ठा कर रहा है और उन्हें आनंदित कर रहा है। (यशायाह 56:7) यहोवा के वफादार सेवक, नहेमायाह ने अपने यहूदी भाइयों को याद दिलाया था कि उन्हें यरूशलेम के मंदिर के रख-रखाव के लिए दान देकर उपासना की उस जगह के लिए सही आदर दिखाना चाहिए। उसने उनसे कहा: “हम परमेश्वर के भवन की उपेक्षा नहीं करेंगे।” (नहेमायाह 10:39, नयी हिन्दी बाइबिल) आज, जब यहोवा हमें “प्रार्थना के भवन” में उसकी उपासना करने के लिए बुलाता है, तो हमें भी उसके न्यौते की उपेक्षा या निरादर नहीं करना चाहिए।
15 यहोवा की उपासना करने के लिए, नियमित तौर पर इकट्ठा होना ज़रूरी है। इसी बात पर ज़ोर देने के लिए यशायाह ने यह भविष्यवाणी की थी: “ऐसा होगा कि एक नये चांद से दूसरे नये चांद के दिन तक और एक विश्राम दिन से दूसरे विश्राम दिन तक समस्त प्राणी मेरे साम्हने दण्डवत् करने को आया करेंगे; यहोवा का यही वचन है।” (यशायाह 66:23) आज यह भविष्यवाणी पूरी हो रही है। समर्पित मसीही नियमित रूप से हर महीने के हर हफ्ते यहोवा की उपासना करने के लिए इकट्ठे होते हैं। वे उसकी उपासना कई तरीकों से करते हैं जैसे, मसीही सभाओं में हाज़िर होकर और घर-घर का प्रचार करके। क्या आप भी उन लोगों में से एक हैं, जो नियमित रूप से ‘यहोवा के साम्हने दण्डवत् करने को आते’ हैं?
16. हमें सभाओं में बिना नागा हाज़िर होने की अभी से आदत क्यों डाल लेनी चाहिए?
16 यशायाह 66:23 की भविष्यवाणी, सही मायनों में नयी दुनिया में पूरी होगी। उस वक्त, “समस्त प्राणी” सचमुच में हफ्ते-दर-हफ्ते और महीने-दर-महीने यहोवा के “साम्हने दण्डवत् करने” आएँगे यानी सदा तक उसकी उपासना करेंगे। यह दिखाता है कि यहोवा की उपासना करने के लिए इकट्ठा होना, नयी दुनिया में भी हमेशा हमारी मसीही ज़िंदगी का हिस्सा रहेगा। इसलिए क्या हमें इन पवित्र सभाओं में बिना नागा हाज़िर होने की अभी से आदत नहीं डाल लेनी चाहिए?
17. ‘ज्यों ज्यों हम उस दिन को निकट आते देखते हैं,’ हमें सभाओं में हाज़िर रहने की ज़रूरत क्यों है?
17 अंत का समय बहुत करीब आ पहुँचा है, इसलिए हमें अपने इरादे में और भी बुलंद हो जाना चाहिए कि हम मसीही सभाओं में इकट्ठा होना नहीं छोड़ेंगे। हम इन पवित्र सभाओं के लिए आदर दिखाते हैं, इसलिए नियमित तौर पर अपने भाई-बहनों के साथ इकट्ठा होने के लिए हम अपनी नौकरी को, स्कूल के होमवर्क या शाम की क्लासों को आड़े आने नहीं देते। इस वक्त में हमें हिम्मत की ज़रूरत है, जो हमें भाई-बहनों की संगति से मिलती है। कलीसिया की सभाओं से हमें एक-दूसरे को जानने, हौसला बढ़ाने, साथ ही ‘प्रेम और भले काम’ के लिए उकसाने का मौका मिलता है। “ज्यों ज्यों उस दिन को [हम] निकट आते” देखते हैं, हमें ऐसा करने की “और भी अधिक” ज़रूरत है। (इब्रानियों 10:24, 25) इसलिए, आइए हम नियमित रूप से हाज़िर होने, सलीकेदार कपड़े पहनने और अच्छे चालचलन से अपनी पवित्र सभाओं के लिए हमेशा आदर दिखाएँ। ऐसा करने से, हम दिखाएँगे कि हम पवित्र चीज़ों के बारे में यहोवा का नज़रिया रखते हैं। (w06 11/01)
दोहराने के लिए
• क्या बात दिखाती है कि यहोवा के लोगों की सभाओं को पवित्र माना जाना चाहिए?
• हमारी सभाओं के किन पहलुओं से साबित होता है कि ऐसी सभाएँ पवित्र हैं?
• बच्चे कैसे दिखा सकते हैं कि वे सभाओं को पवित्र मानते हैं और उनका आदर करते हैं?
• हमें सभाओं में बिना नागा हाज़िर होने की अभी से आदत क्यों डाल लेनी चाहिए?
[पेज 30 पर तसवीरें]
यहोवा की उपासना करने के लिए हम जहाँ भी इकट्ठा होते हैं, वे सभाएँ पवित्र होती हैं