आओ हम मिलकर यहोवा के नाम की स्तुति करें
“मेरे साथ यहोवा की बड़ाई करो, और आओ हम मिलकर उसके नाम की स्तुति करें!”—भजन 34:3.
1. यीशु ने धरती पर अपनी सेवा के दौरान क्या बढ़िया मिसाल रखी?
सामान्य युग 33 के निसान 14 की रात थी। यीशु और उसके प्रेरित यरूशलेम में एक घर के ऊपरी कमरे में इकट्ठा थे। वहाँ उन्होंने साथ मिलकर यहोवा की स्तुति में गीत गाए। (मत्ती 26:30) यीशु की इंसानी ज़िंदगी में यह आखिरी बार था जब उसने अपने प्रेरितों के साथ मिलकर यहोवा की स्तुति की। यह वाकई कितना सही था कि उसने इस मुलाकात को यहोवा की स्तुति में गीत गाकर खत्म किया। यीशु ने धरती पर अपनी सेवा की शुरूआत से लेकर आखिर तक, अपने पिता की स्तुति की और पूरे जोश के साथ उसके नाम के बारे में दूसरों को बताया। (मत्ती 4:10; 6:9; 22:37, 38; यूहन्ना 12:28; 17:6) ऐसा करके उसने मानो भजनहार की आवाज़-में-आवाज़ मिलाते हुए लोगों को प्यार से यह न्यौता दिया: “मेरे साथ यहोवा की बड़ाई करो, और आओ हम मिलकर उसके नाम की स्तुति करें!” (भजन 34:3) सचमुच, यीशु हमारे लिए क्या ही बढ़िया मिसाल है!
2, 3. (क) हम कैसे जानते हैं कि भजन 34 में लिखी बातें दरअसल भविष्यवाणियाँ हैं? (ख) हम इस लेख में और अगले लेख में किन बातों पर गौर करेंगे?
2 यीशु के साथ गीत गानेवाले प्रेरितों में से एक था, यूहन्ना। इस वाकये के कुछ घंटों बाद यूहन्ना ने एक अजब घटना घटते देखी। उसने देखा कि उसके स्वामी यीशु को दो अपराधियों के साथ काठ पर लटकाकर मार डाला गया। रोमी सैनिकों ने आकर उन दो अपराधियों के पैरों की हड्डियाँ तोड़ीं, ताकि वे जल्दी मर जाएँ। मगर यूहन्ना बताता है कि उन्होंने यीशु के पैरों की हड्डियाँ नहीं तोड़ीं, क्योंकि जब वे उसके पास आए तो देखा कि वह मर चुका था। यूहन्ना ने सुसमाचार की अपनी किताब में ज़ाहिर किया कि इस वाकये से भजन 34 में दर्ज़ एक और भविष्यवाणी पूरी हुई: “उस की कोई हड्डी तोड़ी न जाएगी।”—यूहन्ना 19:32-36; भजन 34:20, सेप्टुआजेंट।
3 भजन 34 में ऐसी कई बातें दर्ज़ हैं जो हम मसीहियों के लिए गौर करने लायक हैं। इसलिए हम इस लेख में और अगले लेख में देखेंगे कि दाऊद ने इस भजन को किन हालात में लिखा था। साथ ही, हम इसमें दर्ज़ उन बातों पर भी गौर करेंगे जिनसे हमारा हौसला बढ़ सकता है।
दाऊद, शाऊल से जान बचाकर भागता है
4. (क) इस्राएल का अगला राजा होने के लिए दाऊद का क्यों अभिषेक किया गया था? (ख) शाऊल, दाऊद से क्यों “बहुत प्रीति करने लगा”?
4 जब दाऊद जवान था, तो उस वक्त शाऊल इस्राएल का राजा था। लेकिन शाऊल ने यहोवा की आज्ञा माननी छोड़ दी। नतीजा, वह यहोवा का अनुग्रह खो बैठा। इसलिए शमूएल नबी ने उससे कहा: “आज यहोवा ने इस्राएल के राज्य को फाड़कर तुझ से छीन लिया, और तेरे एक पड़ोसी को जो तुझ से अच्छा है दे दिया है।” (1 शमूएल 15:28) बाद में, यहोवा ने शमूएल को हिदायत दी कि इस्राएल का अगला राजा होने के लिए वह यिशै के सबसे छोटे बेटे, दाऊद का अभिषेक करे। इस बीच, शाऊल बहुत चिड़चिड़ा हो गया था, क्योंकि परमेश्वर ने उस पर से अपनी आत्मा हटा ली थी। इसलिए शाऊल के मन को शांत करने के लिए, गिबा नगर से दाऊद को बुलाया गया जो बहुत अच्छी वीणा बजाता था। दाऊद के संगीत से शाऊल के बेचैन मन को थोड़ी राहत मिलती थी, और इस वजह से वह दाऊद से “बहुत प्रीति करने लगा।”—1 शमूएल 16:11, 13, 21, 23.
5. दाऊद की तरफ शाऊल का रवैया क्यों बदल गया, और दाऊद को मजबूरन क्या करना पड़ा?
5 जैसे-जैसे वक्त गुज़रता गया, यहोवा साबित करता गया कि वह दाऊद के साथ है। उसने दाऊद को पलिश्तियों के सूरमा, गोलियत पर जीत दिलायी और उसे लड़ाई में महारत हासिल करने में मदद दी। इस वजह से सभी इस्राएली उसका सम्मान करने लगे। मगर दाऊद पर यहोवा की आशीष देखकर शाऊल जलन के मारे कुढ़ने लगा और वह उससे नफरत करने लगा। दो मौकों पर जब दाऊद वीणा बजा रहा था, तो शाऊल ने उस पर भाला फेंककर उसे मारने की कोशिश की। मगर दोनों ही बार दाऊद किसी तरह बच गया। जब शाऊल ने तीसरी बार उसे खत्म करने की कोशिश की, तो उसे अपनी जान बचाकर वहाँ से भागना पड़ा। आखिरकार, जब शाऊल हाथ धोकर उसकी जान के पीछे पड़ गया, तो उसने मजबूर होकर इस्राएल के इलाके के बाहर पनाह लेने का फैसला किया।—1 शमूएल 18:11; 19:9, 10.
6. शाऊल ने नोब नगर के रहनेवालों को मरवा डालने का हुक्म क्यों दिया?
6 जब दाऊद इस्राएल की सरहद की तरफ जा रहा था, तो वह रास्ते में नोब नगर में रुका, जहाँ यहोवा का निवासस्थान था। ज़ाहिर है कि दाऊद हिफाज़त के लिए अपने साथ कुछ जवान आदमियों को भी ले गया होगा। इसलिए उसने नोब नगर में महायाजक के पास जाकर अपने और अपने आदमियों के लिए खाने-पीने की चीज़ों की गुज़ारिश की। बाद में, शाऊल को यह खबर मिली कि महायाजक ने दाऊद और उसके आदमियों को खाना दिया है और वह तलवार भी दी है जिसे दाऊद ने गोलियत को मारकर हासिल की थी। यह सुनकर शाऊल भड़क उठा और उसने नोब के सभी रहनेवालों को, यहाँ तक कि 85 याजकों को भी मरवा डाला।—1 शमूएल 21:1, 2; 22:12, 13, 18, 19; मत्ती 12:3, 4.
एक बार फिर मौत के मुँह में जाने से बाल-बाल बचा
7. दाऊद के लिए, गत नगर क्यों छिपने की एक सही जगह नहीं थी?
7 दाऊद, नोब नगर से 40 किलोमीटर दूर पश्चिम की तरफ पलिश्तियों के इलाके में भाग गया। वहाँ उसने गोलियत के नगर गत में, राजा आकीश के पास जाकर पनाह ली। उसने शायद सोचा होगा कि यह नगर शाऊल से छिपने की सबसे बढ़िया जगह है क्योंकि वह उसे यहाँ ढूँढ़ने की कभी सोच भी नहीं सकता। मगर जल्द ही राजा आकीश के सेवकों ने दाऊद को पहचान लिया। जब दाऊद ने उन्हें यह बातें करते सुना कि उन्होंने उसे पहचान लिया है, तो वह “गत के राजा आकीश से अत्यन्त डर गया।”—1 शमूएल 21:10-12.
8. (क) गत नगर में दाऊद के साथ जो हुआ, उस बारे में भजन 56 में क्या बताया गया है? (ख) दाऊद कैसे मौत के मुँह में जाने से बाल-बाल बचा?
8 इसके बाद, पलिश्तियों ने दाऊद को धर दबोचा। दाऊद ने इसी दौरान दिल को छू लेनेवाले इस भजन की रचना की होगी, जिसमें उसने यहोवा से फरियाद की: “तू मेरे आंसुओं को अपनी कुप्पी में रख ले!” (भजन 56:8 और उपरिलेख) इस तरह दाऊद ने यह भरोसा ज़ाहिर किया कि यहोवा उसके मन की पीड़ा को कभी नहीं भूलेगा बल्कि हर पल उसकी प्यार से देखभाल और हिफाज़त करेगा। यही नहीं, उसने पलिश्ती राजा को धोखा देने के लिए एक तरकीब भी निकाली। उसने पागल होने का ढोंग किया। यह देखकर राजा आकीश अपने सेवकों पर झुँझला उठा और उसने उनसे कहा कि वे क्यों इस ‘बावले’ को उसके पास ले आए हैं। इससे साफ पता चलता है कि यहोवा ने दाऊद को उसकी तरकीब में कामयाबी दी थी। इसके बाद, दाऊद को नगर से बाहर खदेड़ दिया गया। इस तरह दाऊद एक बार फिर मौत के मुँह में जाने से बाल-बाल बचा।—1 शमूएल 21:13-15.
9, 10. दाऊद ने भजन 34 की रचना क्यों की, और उसने शायद किन लोगों को मन में रखकर इस भजन की रचना की होगी?
9 बाइबल यह नहीं बताती कि जब दाऊद गत नगर में भाग गया था, तब उसके आदमी भी उसके साथ गए थे, या फिर वे उसकी हिफाज़त के लिए पास के इस्राएली गाँवों में रहकर पहरा दे रहे थे। जो भी हो, मगर जब दाऊद ने वहाँ से लौटने पर उन्हें बताया होगा कि यहोवा ने कैसे एक बार फिर उसे बचाया, तो उन्होंने ज़रूर यह सुनकर खुशी मनायी होगी। इसी वाकये ने दाऊद को भजन 34 रचने के लिए उभारा था, जैसा कि इसका उपरिलेख भी बताता है। इसकी पहली सात आयतों में दाऊद छुटकारा दिलाए जाने के लिए परमेश्वर की स्तुति करता है। इसके अलावा, वह अपने साथियों को न्यौता देता है कि वे भी उसके साथ मिलकर यहोवा की स्तुति करें, क्योंकि वह अपने लोगों का बचानेवाला महान परमेश्वर है।—भजन 34:3, 4, 7.
10 इसके बाद, दाऊद और उसके आदमी इस्राएल के पहाड़ी इलाके में अदुल्लाम की गुफा में जा छिपे, जो गत से करीब 15 किलोमीटर पूर्व में थी। उस दौरान, बहुत-से इस्राएली दाऊद के साथ हो लिए, क्योंकि राजा शाऊल की हुकूमत में हालात अच्छे नहीं थे और वे इससे बहुत तंग आ चुके थे। (1 शमूएल 22:1, 2) इन्हीं इस्राएलियों को मन में रखकर दाऊद ने भजन 34:8-22 के बोल लिखे होंगे। इन आयतों में दी चितौनियाँ आज हमारे लिए भी बहुत मायने रखती हैं। इस खूबसूरत भजन की एक-एक आयत पर बारीकी से चर्चा करने पर यकीनन हमें फायदा होगा।
क्या आपकी सबसे बड़ी ख्वाहिश भी वही है जो दाऊद की थी?
11, 12. यहोवा की निरंतर स्तुति करने के लिए हमारे पास क्या वजह हैं?
11 “मैं हर समय यहोवा को धन्य कहा करूंगा; उसकी स्तुति निरन्तर मेरे मुख से होती रहेगी।” (भजन 34:1) एक भगोड़े की ज़िंदगी बिताते वक्त, दाऊद को बेशक खाने-पहनने की ज़रूरतों की चिंता रही होगी। मगर जैसा यह आयत बताती है, उसने रोज़मर्रा की इन चिंताओं को खुद पर हावी नहीं होने दिया, जिससे यहोवा की स्तुति करने का उसका इरादा कमज़ोर पड़ जाता। वाकई, मुश्किलों के बावजूद यहोवा की स्तुति करते रहने में दाऊद ने हमारे लिए क्या ही बढ़िया मिसाल कायम की! चाहे हम स्कूल में हों या काम की जगह पर, अपने मसीही भाई-बहनों के साथ हों या प्रचार में, हमारी सबसे बड़ी ख्वाहिश यही होनी चाहिए कि हम यहोवा की स्तुति करें। ज़रा गौर कीजिए कि ऐसा करने की हमारे पास कितनी अनगिनत वजह हैं! मिसाल के लिए, यहोवा की शानदार सृष्टि के बारे में सीखने का कोई अंत नहीं। हम उसकी सृष्टि के अजूबों के बारे में जितनी ज़्यादा खोजबीन करते हैं, हमें उतनी नयी-नयी बातें सीखने को मिलती हैं और उतना ही ज़्यादा हमें आनंद भी मिलता है। अब ज़रा इस बारे में भी सोचिए, यहोवा ने अपने संगठन के ज़रिए धरती पर कितने बड़े-बड़े काम किए हैं! आज हमारे ज़माने में, यहोवा ने अपने वफादार सेवकों का बड़े ही ज़बरदस्त तरीके से इस्तेमाल किया है, इसके बावजूद कि वे असिद्ध हैं। क्या परमेश्वर के इन सारे कामों की बराबरी दुनिया की उन जानी-मानी हस्तियों के कामों से की जा सकती है जिन्हें लोग देवता मानकर पूजते हैं? तो क्या आप दाऊद की लिखी इस बात से सहमत नहीं होंगे: “हे प्रभु [यहोवा] देवताओं में से कोई भी तेरे तुल्य नहीं, और न किसी के काम तेरे कामों के बराबर हैं”?—भजन 86:8.
12 दाऊद की तरह, हम भी यहोवा के बेजोड़ कामों के लिए उसकी निरंतर स्तुति करने से खुद को रोक नहीं पाते। इतना ही नहीं, हम यह जानकर रोमांचित हो उठते हैं कि आज परमेश्वर के राज्य की बागडोर दाऊद के सनातन वारिस, यीशु मसीह के हाथों में है। (प्रकाशितवाक्य 11:15) इसका मतलब है कि इस दुनिया का अंत बहुत करीब है। छः अरब से भी ज़्यादा लोगों का भविष्य दाँव पर लगा हुआ है। इसलिए आज यह पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी हो गया है कि हम लोगों को परमेश्वर के राज्य के बारे में बताएँ और यह भी कि वह बहुत जल्द इंसानों के लिए क्या करनेवाला है। इसके अलावा, उन्हें हमारे साथ मिलकर यहोवा की स्तुति करने में भी मदद देने की ज़रूरत है। इसलिए जिस बात को हमें अपने जीवन में सबसे पहली जगह देनी चाहिए, वह है, हर मौके का फायदा उठाकर दूसरों को “सुसमाचार” कबूल करने का बढ़ावा देना, इससे पहले कि देर हो जाए।—मत्ती 24:14.
13. (क) दाऊद ने किस पर घमंड किया, और इसका किस तरह के लोगों पर अच्छा असर हुआ? (ख) आज नम्र लोग कैसे मसीही कलीसिया की तरफ खिंचे चले आ रहे हैं?
13 “मैं यहोवा पर घमण्ड करूंगा; नम्र लोग यह सुनकर आनन्दित होंगे।” (भजन 34:2) इस आयत में दाऊद अपनी किसी कामयाबी पर घमंड नहीं कर रहा था। उदाहरण के लिए, उसने इस बात के लिए डींग नहीं मारी कि उसने किस तरह गत के राजा की आँखों में धूल झोंकी थी। दाऊद को एहसास था कि गत में यहोवा ने ही उसकी हिफाज़त की और उसकी मदद की बदौलत ही उसकी जान बची थी। (नीतिवचन 21:1) इस तरह, दाऊद ने खुद पर नहीं बल्कि यहोवा पर घमंड किया। उसने यहोवा की बड़ाई की, इसलिए नम्र लोग यहोवा की तरफ खिंचे चले आए। उसी तरह, यीशु ने भी हमेशा यहोवा के नाम की बड़ाई की, और इस वजह से नम्र और सीखने के लिए तैयार लोग यहोवा के करीब आए। आज भी, सभी जातियों के नम्र लोग आत्मा से अभिषिक्त मसीहियों की उस अंतर्राष्ट्रीय कलीसिया की तरफ खिंचे चले आ रहे हैं, जिसका मुखिया यीशु है। (कुलुस्सियों 1:18) जब ये नम्र लोग, परमेश्वर के दीन सेवकों को उसके नाम की महिमा करते और बाइबल का संदेश देते हुए सुनते हैं और परमेश्वर की आत्मा उन्हें यह संदेश समझने में मदद देती है, तो यह सब उनके दिल को छू जाता है।—यूहन्ना 6:44; प्रेरितों 16:14.
सभाएँ हमारा विश्वास मज़बूत करती हैं
14. (क) क्या दाऊद सिर्फ अकेले में यहोवा की स्तुति करने से संतुष्ट था? (ख) यीशु ने उपासना के लिए इकट्ठा होने के बारे में क्या मिसाल कायम की?
14 “मेरे साथ यहोवा की बड़ाई करो, और आओ हम मिलकर उसके नाम की स्तुति करें!” (भजन 34:3) दाऊद सिर्फ अकेले में यहोवा की महिमा करने से संतुष्ट नहीं था। उसने अपने साथियों को प्यार से न्यौता दिया कि वे भी उसके साथ मिलकर परमेश्वर के नाम की स्तुति करें। ठीक उसी तरह, महान दाऊद यीशु मसीह को भी सरेआम यहोवा की स्तुति करने में खुशी मिलती थी। वह आराधनालयों में, पर्वों के वक्त यरूशलेम जाकर परमेश्वर के मंदिर में और अपने चेलों के साथ मिलकर यहोवा की स्तुति करता था। (लूका 2:49; 4:16-19; 10:21; यूहन्ना 18:20) यीशु की मिसाल पर चलते हुए, हमें भी अपने मसीही भाई-बहनों के साथ इकट्ठा होकर हर मुमकिन अवसर पर यहोवा की स्तुति करने का क्या ही बढ़िया मौका मिला है, खासकर आज जब हम यहोवा के “उस दिन को निकट आते” देख रहे हैं!—इब्रानियों 10:24, 25.
15. (क) दाऊद के अनुभव से उसके आदमियों पर क्या असर हुआ? (ख) सभाओं में हाज़िर होने से हमें क्या फायदा होता है?
15 “मैंने यहोवा से मांगा और उसने मुझे उत्तर दिया और मेरे सब भय से मुझे छुटकारा दिया।” (भजन 34:4, NHT) दाऊद का यह तजुरबा उसके लिए बहुत मायने रखता था। इसलिए उसने आगे कहा: “इस दीन जन ने पुकारा तब यहोवा ने सुन लिया, और उसको उसके सब कष्टों से छुड़ा लिया।” (भजन 34:6) जब हम अपने मसीही भाई-बहनों के साथ सभाओं में इकट्ठे होते हैं, तो हमें अपने अनुभव बताने के कई मौके मिलते हैं कि यहोवा ने कैसे मुश्किल हालात को सहने में हमारी मदद की। इससे हमारे भाइयों का विश्वास मज़बूत होता है, ठीक जैसे दाऊद के अनुभव सुनने पर उसके साथियों का विश्वास मज़बूत हुआ था। दाऊद के साथियों ने “[यहोवा की] ओर दृष्टि की, उन्हों ने ज्योति पाई; और उनका मुंह कभी काला [“लज्जित,” नयी हिन्दी बाइबिल] न होने पाया।” (भजन 34:5) हालाँकि दाऊद के आदमी, राजा शाऊल से भाग रहे थे, मगर उन्होंने कभी लज्जा या शर्म महसूस नहीं की। उन्हें पूरा यकीन था कि परमेश्वर, दाऊद के साथ है और इसी वजह से उनके चेहरों पर ज्योति या रौनक थी। उसी तरह, आज दिलचस्पी दिखानेवाले नए लोग और लंबे समय से यहोवा की सेवा करनेवाले, दोनों मदद के लिए उस पर आस लगाते हैं। क्योंकि उन्होंने खुद अपनी ज़िंदगी में यहोवा की मदद को महसूस किया है, इसलिए उनके दमकते चेहरों से साफ झलकता है कि उन्होंने यहोवा के वफादार बने रहने की ठान ली है।
स्वर्गदूतों से मिलनेवाली मदद के लिए एहसानमंद रहिए
16. यहोवा ने हमारे बचाव के लिए स्वर्गदूतों का कैसे इस्तेमाल किया है?
16 “यहोवा का भय माननेवालों के चारों ओर उसका दूत छावनी डालकर उन्हें बचाता है।” (भजन 34:7, NHT) दाऊद ने ऐसा कभी नहीं सोचा कि यहोवा सिर्फ उसी को बचाता है, क्योंकि वह उसका अभिषिक्त जन और इस्राएल का अगला राजा है। इसके बजाय, वह जानता था कि यहोवा अपने स्वर्गदूतों के ज़रिए अपने सभी वफादार सेवकों की हिफाज़त करता है, फिर चाहे ये सेवक किसी खास ज़िम्मेदारी के पद पर हों या कोई मामूली इंसान। आज हमारे जमाने में भी, यहोवा के सच्चे उपासकों ने परमेश्वर से मिलनेवाली हिफाज़त को महसूस किया है। नात्ज़ी जर्मनी, अंगोला, मलावी, मोज़म्बिक और दूसरे कई देशों में सरकारी अधिकारियों ने यहोवा के साक्षियों का वजूद मिटा देने के लिए बहुत-से अभियान छेड़े थे। मगर उनकी सारी कोशिशें धरी-की-धरी रह गयीं। इसके बजाय, इन देशों में यहोवा के लोग आज भी एक साथ मिलकर यहोवा के नाम की स्तुति कर रहे हैं और उनकी गिनती दिन-दूनी रात-चौगुनी बढ़ती जा रही है। यह कैसे मुमकिन होता है? इसकी वजह यह है कि यहोवा अपने पवित्र स्वर्गदूतों के ज़रिए अपने लोगों की हिफाज़त कर रहा है और उन्हें मार्गदर्शन दे रहा है।—इब्रानियों 1:14.
17. परमेश्वर के स्वर्गदूत किन-किन तरीकों से हमारी मदद करते हैं?
17 इसके अलावा, यहोवा के स्वर्गदूत दूसरे तरीकों से भी हमारी मदद करते हैं। अगर यहोवा के लोगों में से कोई शख्स दूसरों को ठोकर खिलाता है, तो स्वर्गदूत घटनाओं का रुख इस तरह मोड़ सकते हैं कि वह शख्स उनके बीच से बाहर निकाल दिया जाता है। (मत्ती 13:41; 18:6, 10) यहाँ तक कि कभी-कभी हमारे जाने बगैर, स्वर्गदूत उन रुकावटों को हटा देते हैं जो परमेश्वर की सेवा में हमारे आड़े आ सकती हैं। वे हमें ऐसे खतरों से भी बचाते हैं जिनसे यहोवा के साथ हमारा रिश्ता टूट सकता है। सबसे अहम बात तो यह है कि वे दुनिया के कोने-कोने तक “सनातन सुसमाचार” पहुँचाने में हमारी अगुवाई करते हैं, यहाँ तक कि ऐसे इलाकों में भी जहाँ प्रचार का काम बहुत ही खतरनाक माहौल में किया जा रहा है। (प्रकाशितवाक्य 14:6) यहोवा के साक्षियों के ज़रिए प्रकाशित बाइबल साहित्य में अकसर ऐसे अनुभव छपते हैं जिनमें बताया जाता है कि स्वर्गदूत किस तरह प्रचार काम में मदद दे रहे हैं।a इस तरह के अनुभव इतने बेशुमार हैं कि इन्हें महज़ एक इत्तफाक समझकर नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
18. (क) स्वर्गदूतों से मदद पाने के लिए हमें क्या करने की ज़रूरत है? (ख) अगले लेख में किन सवालों पर चर्चा की जाएगी?
18 अगर हम चाहते हैं कि स्वर्गदूत हमेशा हमारा मार्गदर्शन और हमारी हिफाज़त करें, तो हमें लगातार, विरोध के बावजूद भी यहोवा के नाम की स्तुति करनी चाहिए। याद रखिए, परमेश्वर का स्वर्गदूत सिर्फ “यहोवा का भय माननेवालों के चारों ओर” छावनी डालता है। इन शब्दों का क्या मतलब है? परमेश्वर का भय क्या है, और यह हम कैसे पैदा कर सकते हैं? प्यार करनेवाला परमेश्वर क्यों चाहता है कि हम उसका भय मानें? इन सवालों पर अगले लेख में चर्चा की जाएगी। (w07 3/1)
[फुटनोट]
a किताब यहोवा के साक्षी—परमेश्वर के राज्य की घोषणा करनेवाले (अँग्रेज़ी), पेज 550; सन् 2005 की यहोवा के साक्षियों की इयरबुक (अँग्रेज़ी), पेज 53-54; प्रहरीदुर्ग के ये अंक: मार्च 1, 2000, पेज 5-6; जनवरी 1, 1991, पेज 27 (अँग्रेज़ी); और फरवरी 15, 1991, पेज 26 (अँग्रेज़ी) देखिए।
आप क्या जवाब देंगे?
• दाऊद ने अपनी जवानी में किन-किन मुश्किलों का सामना किया था?
• दाऊद की तरह, हमारी सबसे बड़ी ख्वाहिश क्या है?
• मसीही सभाओं के बारे में हम क्या नज़रिया रखते हैं?
• हमारी मदद करने के लिए यहोवा अपने स्वर्गदूतों का कैसे इस्तेमाल करता है?
[पेज 25 पर नक्शा]
(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)
रामा
गत
सिकलग
गिबा
नोब
यरूशलेम
बेतलेहेम
अदुल्लाम
कीला
हेब्रोन
जीप
होरेश
कर्मेल
माओन
एनगदी
खारा ताल
[चित्र का श्रेय]
नक्शा: Based on maps copyrighted by Pictorial Archive (Near Eastern History) Est. and Survey of Israel
[पेज 25 पर तसवीर]
एक भगोड़े की ज़िंदगी बिताते वक्त भी, दाऊद ने यहोवा के नाम की स्तुति की