क्या बात ज़िंदगी को सच्चा मकसद देती है?
“परमेश्वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर।”—सभो. 12:13.
1, 2. सभोपदेशक किताब का अध्ययन करने से हमें क्या फायदा हो सकता है?
एक ऐसे शख्स की कल्पना कीजिए, जिसके पास सबकुछ है। वह एक जाना-माना शासक है, दुनिया का सबसे दौलतमंद और अपनी पीढ़ी का सबसे बुद्धिमान इंसान है। अपनी ज़िंदगी में सबकुछ हासिल करने के बाद भी वह खुद से पूछता है, ‘क्या बात ज़िंदगी को सच्चा मकसद देती है?’
2 ऐसा ही एक शख्स आज से करीब 3,000 साल पहले जीया था। उसका नाम था, सुलैमान। सभोपदेशक नाम की उसकी किताब में हम पढ़ते हैं कि वह सच्चे सुकून की तलाश में था। (सभो. 1:13) उसने इस किताब में वे सब बातें दर्ज़ कीं, जो उसने अनुभव की थीं और आज हम उनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं। दरअसल इस किताब में दी बुद्धि-भरी बातें हमें ऐसे लक्ष्य रखने में मदद दे सकती हैं, जिससे हमारी ज़िंदगी को सच्चा मकसद मिलेगा।
‘वायु को पकड़ना’
3. ज़िंदगी की किस हकीकत का हम सबको सामना करना होता है?
3 सुलैमान समझाता है कि परमेश्वर ने धरती पर बेशुमार खूबसूरत चीज़ों की रचना की। ये बेमिसाल रचनाएँ हमें हैरत में डाल देती हैं और इनका मज़ा लेते हम थकते नहीं। मगर परमेश्वर की सृष्टि को पूरी तरह जानना हमारे लिए मुमकिन नहीं, क्योंकि हमारी ज़िंदगी बहुत छोटी है। (सभो. 3:11; 8:17) जैसे बाइबल कहती है, हमारे दिन बहुत थोड़े हैं और जल्दी बीत जाते हैं। (अय्यू. 14:1, 2; सभो. 6:12) इस हकीकत को ध्यान में रखते हुए हमें अपनी ज़िंदगी का सोच-समझकर इस्तेमाल करना चाहिए। मगर ऐसा करना हरगिज़ आसान नहीं, क्योंकि शैतान की दुनिया हमें गलत राह अपनाने के लिए बहका सकती है।
4. (क) शब्द “व्यर्थ” का क्या मतलब है? (ख) हम ज़िंदगी के किन लक्ष्यों के बारे में गौर करेंगे?
4 अपनी ज़िंदगी को सोच-समझकर इस्तेमाल न करना व्यर्थ है, इस बात को उजागर करने के लिए सुलैमान ने सभोपदेशक की किताब में 38 बार शब्द “व्यर्थ” का इस्तेमाल किया। जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद “व्यर्थ” किया गया है उसका मतलब है, बेकार, बेमतलब का, खोखला, या किसी मोल का नहीं। (सभो. 1:2, 3) कुछ आयतों में सुलैमान ने शब्द “व्यर्थ” को “वायु को पकड़ने” के समान बताया। (सभो. 1:14; 2:11) ज़ाहिर-सी बात है कि हवा को पकड़ने की कोशिश करना व्यर्थ है। और जो ऐसा करने की कोशिश करता है, उसके हाथ कुछ नहीं लगता। उसी तरह सही लक्ष्य न रखने से निराशा ही हाथ लगती है। एक तो हमारी ज़िंदगी पल-दो-पल की है, उस पर अगर हम उसे उन कामों में लगा दें, जिनसे हमें कुछ नहीं मिलनेवाला, तो इससे बड़ी नासमझी और क्या होगी! हम यह गलती न करें, इसके लिए आइए सुलैमान की बातों पर ध्यान दें। उसने कुछ ऐसे लक्ष्यों के बारे में बताया जिनका आम तौर पर लोग पीछा करते हैं। सबसे पहले हम सुख-विलास और ऐशो-आराम की चीज़ों पर ध्यान देंगे। इसके बाद, हम देखेंगे कि कौन-सा काम परमेश्वर को खुश करता है।
क्या सुख-विलास के पीछे भागने से हमें खुशी मिल सकती है?
5. सुलैमान ने किन बातों से सुकून पाने की कोशिश की?
5 आज के बहुत-से लोगों की तरह, सुलैमान ने भी सुख-विलास की ज़िंदगी जीकर सच्चा सुकून पाने की कोशिश की थी। उसने कहा: “मैं ने अपना मन किसी प्रकार का आनन्द भोगने से न रोका।” (सभो. 2:10) उसने किन बातों से सुकून पाने की कोशिश की? सभोपदेशक अध्याय 2 के मुताबिक, उसने ‘दाखमधु से अपना जी बहलाया,’ मगर एक हद में रहकर। इसके अलावा, उसने इन कामों से भी सुख पाने की कोशिश की जैसे, बागबानी करना, महल बनवाना, संगीत सुनना, लज़ीज़ और ज़ायकेदार खाने का मज़ा लेना।
6. (क) ज़िंदगी में अच्छी चीज़ों का मज़ा लेना क्यों गलत नहीं? (ख) मनोरंजन के बारे में हमें क्या सही नज़रिया रखना चाहिए?
6 क्या बाइबल दोस्तों के साथ मौज-मस्ती करने को गलत बताती है? बिलकुल नहीं। ध्यान दीजिए, सुलैमान ने कहा कि सुबह से शाम तक खटने के बाद इत्मीनान से बैठकर खाना खाना परमेश्वर की तरफ से एक वरदान है। (सभोपदेशक 2:24; 3:12, 13 पढ़िए।) इसके अलावा, खुद यहोवा, जवानों से कहता है कि वे ‘आनन्द करें और मगन रहें।’ (सभो. 11:9) जी हाँ, हम इंसानों को मन-बहलाव और मनोरंजन की ज़रूरत है। (मरकुस 6:31 की तुलना कीजिए।) लेकिन यह हमारी ज़िंदगी की सबसे बड़ी ज़रूरत नहीं बन जानी चाहिए। मनोरंजन कुछ हद तक मिठाई की तरह है, जो खाना खाने के बाद ली जाती है, ना कि पेट भरने के लिए। आप इस बात से सहमत होंगे कि चाहे आपको मिठाई का कितना ही शौक क्यों न हो, लेकिन अगर आपको खाने को सिर्फ मीठा दिया जाए, तो आप बहुत जल्द उकता जाएँगे। और यह आपकी सेहत के लिए भी अच्छा नहीं होगा। उसी तरह, सुलैमान ने जाना कि सिर्फ सुख-विलास के लिए जीना मानो “वायु को पकड़ना” है।—सभो. 2:10, 11.
7. हमें क्यों सोच-समझकर मन-बहलाव के तरीकों का चुनाव करना चाहिए?
7 इसके अलावा, मन बहलाने का हर तरीका फायदेमंद नहीं होता। कई तरीके तो हमें बहुत नुकसान पहुँचा सकते हैं जैसे, यहोवा के साथ हमारे रिश्ते को तबाह कर सकते हैं और हमें अनैतिकता के दलदल में ढकेल सकते हैं। आज लाखों लोग ‘ज़िंदगी का पूरा-पूरा मज़ा लूटने’ के लिए ड्रग्स लेते हैं, छककर शराब पीते हैं या जुआ खेलते हैं। लेकिन ये सब करने पर उन्हें क्या मिलता है? ज़िंदगी में दुःख के सिवाय और कुछ नहीं। यहोवा हमसे प्यार करता है, इसलिए वह हमें खबरदार करता है कि अगर हम अपने मन और अपनी आँखों की लालसाओं को पूरा करने में लग जाएँ, तो इसके बुरे अंजाम से हम नहीं बच सकते।—गल. 6:7.
8. हमें अपनी ज़िंदगी को किस तरह इस्तेमाल करना चाहिए, इस बारे में सोचना क्यों बुद्धिमानी है?
8 एक और बात पर गौर कीजिए। अगर हम मौज-मस्ती करने में ही डूब जाएँ, तो हम ज़िंदगी की ज़रूरी बातों पर ध्यान नहीं दे पाएँगे। याद रखिए, हमारी ज़िंदगी देखते-ही-देखते गुज़र जाती है और इस बात की कोई गारंटी नहीं कि इस छोटी-सी ज़िंदगी में हम हमेशा सेहतमंद रहेंगे और हमें कोई मुश्किलें नहीं आएँगी। इसलिए जैसे सुलैमान ने कहा, “आनन्द करनेवालों के घर” में जाने से अच्छा है कि हम मैयत के घर जाएँ, खासकर जब किसी वफादार मसीही भाई या बहन की मौत हो जाती है। (सभोपदेशक 7:2, 4 पढ़िए।) हमें ऐसा क्यों करना चाहिए? क्योंकि जब हम उस मसीही की मैयत पर दिया जानेवाला भाषण सुनते हैं और उसकी ज़िंदगी पर गहराई से सोचते हैं, तो हम खुद की जाँच करने के लिए उभारे जाते हैं कि हम अपनी ज़िंदगी को किस तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। और शायद हम इस नतीजे पर पहुँचे कि हमें अपने लक्ष्य को बदलना है, ताकि हम अपनी बची-खुची ज़िंदगी को बुद्धिमानी से इस्तेमाल कर सकें।—सभो. 12:1.
क्या दौलत और ऐशो-आराम की चीज़ें हमें सुकून दे सकती हैं?
9. सुलैमान ने ऐशो-आराम की चीज़ों के बारे में क्या सीखा?
9 सुलैमान ने जब सभोपदेशक की किताब लिखी, उस समय वह दुनिया का सबसे रईस आदमी था। (2 इति. 9:22) उसके पास इतनी दौलत थी कि वह अपनी हर ख्वाहिश पूरी कर सकता था। उसने लिखा: “जितनी वस्तुओं के देखने की मैं ने लालसा की, उन सभों को देखने से मैं न रुका।” (सभो. 2:10) इसके बावजूद, सुलैमान ने सीखा कि ऐशो-आराम की चीज़ें ज़िंदगी में खुशी नहीं ला सकतीं। वह इस नतीजे पर पहुँचा कि “जो रुपये से प्रीति रखता है वह रुपये से तृप्त न होगा; और न जो बहुत धन से प्रीति रखता है, लाभ से।”—सभो. 5:10.
10. हम सच्चा सुकून और सच्ची दौलत कैसे पा सकते हैं?
10 दौलत और ऐशो-आराम की चीज़ों का कोई भरोसा नहीं, आज हैं तो कल नहीं। इसके बावजूद, कई लोगों में धन-दौलत को पाने की ज़बरदस्त चाहत होती है। हाल ही में, जब अमरीका के एक यूनिवर्सिटी में पहले साल के विद्यार्थियों से पूछा गया कि उनकी ज़िंदगी का खास लक्ष्य क्या है, तो उनमें से 75 प्रतिशत ने कहा कि वे “बहुत अमीर बनना” चाहते हैं। अगर वे अपने इस लक्ष्य को हासिल कर भी लेते हैं, तो क्या उन्हें सच्ची खुशी मिलेगी? इसकी कोई गारंटी नहीं। खोजकर्ताओं ने गौर किया है कि एक इंसान धन-दौलत के बल पर खुशी पाने की जितनी कोशिश करता है, वह उससे उतनी ही दूर भागती है। यह बात सुलैमान ने बरसों पहले कह दी थी। उसने लिखा था: ‘मैं ने चान्दी और सोना और राजाओं के बहुमूल्य पदार्थों का भी संग्रह किया; और देखा कि सब कुछ व्यर्थ और वायु को पकड़ना है।’a (सभो. 2:8, 11) इसके उलट, अगर हम तन-मन से यहोवा की सेवा में अपनी ज़िंदगी लगा दें, तो हमें उसकी आशीषें मिलेंगी और हम सही मायनों में अमीर बन पाएँगे।—नीतिवचन 10:22 पढ़िए।
कौन-सा काम सच्ची खुशी देता है?
11. काम की अहमियत के बारे में बाइबल क्या कहती है?
11 यीशु ने कहा था, “मेरा पिता अब तक काम करता है, और मैं भी काम करता हूं।” (यूह. 5:17) इसमें कोई दो राय नहीं कि यहोवा और यीशु को अपने काम से खुशी मिलती है। बाइबल बताती है कि जब यहोवा ने सृष्टि का काम पूरा किया, तो इससे वह बहुत खुश हुआ। उसके बारे में हम पढ़ते हैं, “परमेश्वर ने जो कुछ बनाया था, सब को देखा, तो क्या देखा, कि वह बहुत ही अच्छा है।” (उत्प. 1:31) और जब स्वर्गदूतों ने उसके काम को देखा, तो वे भी मारे खुशी के “जयजयकार” करने लगे। (अय्यू. 38:4-7) उसी तरह, सुलैमान ने भी इस बात को समझा कि जिस काम के पीछे एक ज़रूरी मकसद होता है, उस काम से सच्ची खुशी मिलती है।—सभो. 3:13.
12, 13. (क) मेहनत करने से मिलनेवाली खुशी के बारे में दो व्यक्तियों ने क्या कहा? (ख) लोग अपने काम से कभी-कभी निराश क्यों हो जाते हैं?
12 कई लोग इस बात से इनकार नहीं करते कि मेहनत करने से कामयाबी का एहसास होता है। होसे की मिसाल लीजिए, जो एक कामयाब चित्रकार है। वह कहता है, “जब मेरे मन में कोई तसवीर आती है और मैं उसे कोरे कैनवस पर उतार पाता हूँ, तो मुझे ऐसी खुशी मिलती है कि क्या बताऊँ। मुझे लगता है जैसे मैंने कोई बड़ी फतह हासिल की है।” मीगेलb नाम का एक बिज़नसमैन कहता है, “मुझे अपने काम से बेहद खुशी मिलती है, क्योंकि मैं अपने परिवार की ज़रूरतों को पूरा कर पाता हूँ। इससे मुझे कामयाबी का एहसास भी होता है।”
13 लेकिन हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। देखा जाए, तो कई नौकरियाँ बड़ी ऊबाऊ होती हैं और लोग अपने हुनर का पूरा-पूरा इस्तेमाल नहीं कर पाते। कभी-कभी तो लोग अपनी नौकरी से निराश हो जाते हैं, यहाँ तक कि उनके साथ नाइंसाफी भी होती है। सुलैमान ने कहा था कि एक आलसी आदमी शायद अपनी पहुँच का इस्तेमाल करके किसी मेहनती आदमी का हक मार ले। (सभो. 2:21) दूसरी बातें भी निराशा का कारण बन सकती हैं। हो सकता है, एक व्यक्ति का कारोबार शुरू-शुरू में बहुत मुनाफा कमाए, मगर समय और संयोग की वजह से या देश की आर्थिक व्यवस्था लड़खड़ाने से उसका पूरा कारोबार चौपट हो जाए। (सभोपदेशक 9:11 पढ़िए।) कई बार एक इंसान कामयाबी की बुलंदियाँ छूने के लिए कोल्हू के बैल की तरह काम करता है। लेकिन आखिर में वह मायूस हो जाता है, क्योंकि उसे एहसास होता है कि “उसने व्यर्थ परिश्रम किया है।”—सभो. 5:16, बुल्के बाइबिल।
14. कौन-सा काम हमें सच्ची खुशी दे सकता है?
14 क्या ऐसा कोई काम है जिससे हमें कभी निराशा नहीं होगी? होसे, जिसका ज़िक्र पहले किया गया है, वह कहता है, “समय के चलते पेंटिंग गुम हो सकती हैं या खराब हो सकती हैं। लेकिन परमेश्वर की सेवा में हम जो अच्छे काम करते हैं, वे हमेशा बने रहते हैं। मैंने यहोवा के सहकर्मी के नाते सुसमाचार का प्रचार किया और कई लोगों को परमेश्वर का भय माननेवाले मसीही बनने में मदद दी। मेरे लिए ये लोग सबसे बड़ा खज़ाना हैं।” (1 कुरि. 3:9-11) उसी तरह मीगेल बताता है कि उसे अपने बिज़नस से उतना सुकून नहीं मिलता जितना कि उसे राज्य का प्रचार करने से मिलता है। वह कहता है, “जब मैं किसी को बाइबल की सच्चाई के बारे में बताता हूँ और वह बात उसके दिल को छू जाती है, तो मुझे बड़ी खुशी होती है। दूसरी कोई खुशी इसकी जगह नहीं ले सकती।”
“अपनी रोटी जल के ऊपर डाल दे”
15. क्या बात ज़िंदगी को सच्चा मकसद देती है?
15 तो फिर, क्या बात ज़िंदगी को सच्चा मकसद देती है? यही कि हम अपनी चार दिन की ज़िंदगी यहोवा को खुश करने और भले काम करने में लगाएँ। हम परमेश्वर के साथ एक करीबी रिश्ता बना सकते हैं, अपने बच्चों को बाइबल के स्तरों पर चलना सिखा सकते हैं और यहोवा को जानने में दूसरों की मदद कर सकते हैं। यही नहीं, हम अपने मसीही भाई-बहनों के साथ गहरी दोस्ती कर सकते हैं। (गल. 6:10) इन सारे कामों की अहमियत कभी कम नहीं होगी और ऐसे काम करनेवालों को ढेरों आशीषें मिलेंगी। सुलैमान ने भले काम की अहमियत बताने के लिए इसकी तुलना रोटी से की। उसने कहा, “अपनी रोटी जल के ऊपर डाल दे, क्योंकि बहुत दिन के बाद तू उसे फिर पाएगा।” (सभो. 11:1) यीशु ने भी अपने चेलों को उकसाया, “दिया करो, तो तुम्हें भी दिया जाएगा।” (लूका 6:38) इसके अलावा, यहोवा वादा करता है कि वह उन लोगों को इनाम देगा, जो दूसरों की खातिर भले काम करते हैं।—नीति. 19:17. इब्रानियों 6:10 पढ़िए।
16. हमें अपनी ज़िंदगी के बारे में कब सोचना चाहिए?
16 बाइबल बढ़ावा देती है कि जब हम जवान होते हैं, तभी हमें बुद्धिमानी से फैसला करना चाहिए कि हम अपनी ज़िंदगी को कैसे इस्तेमाल करेंगे। इस तरह हम आगे चलकर मायूस होने से बच सकते हैं। (सभो. 12:1) सच, यह कितने दुःख की बात होगी अगर हम दुनिया की चमक-दमक और दौलत के पीछे अपनी ज़िंदगी के बेहतरीन साल गँवा दें और बाद में हमें एहसास हों कि यह सब तो बेमानी है और हवा को पकड़ने जैसा है।
17. सबसे बेहतरीन ज़िंदगी चुनने में क्या बात आपकी मदद करेगी?
17 एक प्यार करनेवाले पिता की तरह यहोवा चाहता है कि आप ज़िंदगी का पूरा मज़ा लें, अच्छे काम करें और खुद को दुःख पहुँचाने से बचे रहें। (सभो. 11:9, 10) ऐसा करने में क्या बात आपकी मदद करेगी? आध्यात्मिक लक्ष्य रखिए और उसे पाने की जी-तोड़ कोशिश कीजिए। बीस साल पहले कावयर नाम के एक मसीही के आगे डॉक्टर बनने का बहुत ही सुनहरा मौका था। लेकिन उसने पूरे समय की सेवा करने का फैसला किया। वह कहता है, “मैं इस बात से इनकार नहीं करता कि एक डॉक्टर को अपने काम से संतोष मिलता है। लेकिन मुझे कई लोगों को सच्चाई सिखाने में जो बेइंतिहा खुशी मिली है, वह शायद ही एक डॉक्टर बनकर मुझे मिलती। पूरे समय की सेवा करने से मैं ज़िंदगी का पूरा-पूरा मज़ा ले पाया हूँ। पछतावा तो सिर्फ इस बात का है कि काश, मैंने यह सेवा पहले शुरू की होती!”
18. धरती पर यीशु की ज़िंदगी क्यों मकसद-भरी थी?
18 तो फिर, हमें किस बेशकीमती चीज़ को पाने में कड़ी मेहनत करनी चाहिए? सभोपदेशक की किताब कहती है, “अच्छा नाम अनमोल इत्र से और मृत्यु का दिन जन्म के दिन से उत्तम है।” (सभो. 7:1) यीशु की ज़िंदगी इस बात की जीती-जागती मिसाल है। उसने यहोवा की नज़रों में एक बेहतरीन नाम कमाया था। उसने मरते दम तक अपने पिता का वफादार रहकर उसकी हुकूमत बुलंद की। साथ ही, उसने छुड़ौती के तौर पर अपना जीवन बलिदान किया, ताकि हमारे लिए उद्धार पाने का रास्ता खुल जाए। (मत्ती 20:28) धरती पर चंद साल जीने के दौरान यीशु ने दिखाया कि एक मकसद-भरी ज़िंदगी क्या होती है। और हमें उसकी बढ़िया मिसाल पर चलने की भरसक कोशिश करनी चाहिए।—1 कुरि. 11:1; 1 पत. 2:21.
19. सुलैमान ने कौन-सी बुद्धि-भरी सलाह दी?
19 हम भी यहोवा की नज़रों में एक अच्छा नाम कमा सकते हैं। और यह नाम हमारे लिए धन-दौलत से कहीं ज़्यादा अनमोल है। (मत्ती 6:19-21 पढ़िए।) हर दिन हमें ऐसे कई मौके मिलते हैं, जब हम यहोवा की नज़रों में अच्छे काम कर सकते हैं। और अपनी ज़िंदगी को खुशनुमा बना सकते हैं। जैसे, हम दूसरों को सुसमाचार सुना सकते हैं, अपने जीवन-साथी और परिवार के साथ अपना रिश्ता मज़बूत कर सकते हैं। इसके अलावा, हम निजी अध्ययन करने और सभाओं में हाज़िर होने के ज़रिए परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते को और भी गहरा कर सकते हैं। (सभो. 11:6; इब्रा. 13:16) तो फिर, क्या आप एक मकसद-भरी ज़िंदगी का लुत्फ उठाना चाहते हैं? अगर हाँ, तो सुलैमान की इस सलाह पर चलते रहिए, “परमेश्वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर; क्योंकि मनुष्य का सम्पूर्ण कर्त्तव्य यही है।”—सभो. 12:13.
[फुटनोट]
a सुलैमान के खज़ाने में हर साल 666 किक्कार (22, 000 किलो से भी ज़्यादा) सोना आता था।—2 इति. 9:13.
b नाम बदल दिया गया है।
आप क्या जवाब देंगे?
• किस हकीकत को याद रखने से हम अपने लक्ष्यों के बारे में गंभीरता से सोचेंगे?
• सुख-विलास के पीछे भागने और ऐशो-आराम की चीज़ें बटोरने के बारे में हमारा क्या नज़रिया होना चाहिए?
• कौन-सा काम हमें सच्ची खुशी देता है?
• हमें किस बेशकीमती चीज़ को पाने में कड़ी मेहनत करनी चाहिए?
[पेज 23 पर तसवीर]
हमारी ज़िंदगी में मनोरंजन की क्या जगह होनी चाहिए?
[पेज 24 पर तसवीर]
क्या बात हमें प्रचार काम में सच्ची खुशी देती है?