माता-पिताओ और बच्चो—प्यार से बातचीत कीजिए
“मेरे प्यारे भाइयो, यह बात जान लो। हर इंसान सुनने में फुर्ती करे, बोलने में सब्र करे, और क्रोध करने में धीमा हो।”—याकू. 1:19.
1, 2. आम तौर पर माता-पिता और बच्चे एक-दूसरे के बारे में कैसा महसूस करते हैं? मगर कई बार वे किस मुश्किल का सामना करते हैं?
“अगर आपको किसी तरह पता चले कि कल आपके माता-पिता की मौत होनेवाली है, तो आज आप उनसे कौन-सी एक बात कहना चाहेंगे?” यह सवाल अमरीका में रहनेवाले सैकड़ों बच्चों से किया गया। अपने माता-पिता के साथ हुई किसी अनबन या समस्या का ज़िक्र करने के बजाय, करीब 95 प्रतिशत बच्चों ने कहा कि वे अपने माता-पिता से कहना चाहेंगे, “मुझे माफ कर दीजिए” और “मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ।”—शॉन्टी फेल्डहान और लीसा राइस की किताब सिर्फ माता-पिताओं के लिए (अँग्रेज़ी)।
2 आम तौर पर, बच्चे अपने माता-पिता से प्यार करते हैं और माता-पिता अपने बच्चों से। यह बात खासकर मसीही परिवारों में देखी जा सकती है। हालाँकि माता-पिता और बच्चे एक-दूसरे के साथ करीबी रिश्ता बनाए रखना चाहते हैं, लेकिन कई बार उनके लिए आपस में बात करना मुश्किल हो जाता है। अगर वे आपस में खुलकर बात करते भी हैं, तब भी ऐसे कुछ विषय होते हैं, जिन पर कोई बात नहीं छेड़ता। ऐसा क्यों होता है? अच्छी बातचीत में क्या रुकावटें आ सकती हैं? और उन्हें कैसे पार किया जा सकता है?
बातचीत के लिए वक्त ‘खरीदिए’
3. (क) बहुत-से परिवारों में एक-दूसरे से खुलकर बातचीत क्यों नहीं हो पाती? (ख) पुराने ज़माने में इसराएली परिवारों के लिए एक-दूसरे के साथ वक्त बिताना क्यों मुश्किल नहीं था?
3 आज ऐसे बहुत-से परिवार हैं, जिन्हें एक-दूसरे से खुलकर बात करने के लिए ज़्यादा वक्त नहीं मिल पाता। लेकिन ऐसा हमेशा से नहीं था। मूसा ने इसराएली पिताओं को यह हिदायत दी थी, “तू [परमेश्वर की आज्ञाएँ] अपने बालबच्चों को समझाकर सिखाया करना, और घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते, उठते, इनकी चर्चा किया करना।” (व्यव. 6:6, 7) उस समय, बच्चे पूरे दिन अपनी माँ के साथ घर पर होते थे या फिर अपने पिता के साथ खेत में या उसके काम की जगह पर। इसलिए बच्चों और माता-पिताओं के पास एक-साथ वक्त बिताने और बातचीत करने के लिए काफी समय होता था। नतीजा, माता-पिताओं के लिए अपने बच्चों की ज़रूरतें, ख्वाहिशें, और उनके स्वभाव को जानना आसान होता था। उसी तरह, बच्चों के पास भी अपने माता-पिता को अच्छी तरह जानने के लिए बहुत-से मौके होते थे।
4. आज बहुत-से परिवारों में बातचीत क्यों नहीं हो पाती?
4 लेकिन आज के ज़माने में ज़िंदगी कितनी बदल गयी है। कुछ देशों में बच्चे बहुत छोटी उम्र में, कई तो दो साल की उम्र में ही स्कूल जाना शुरू कर देते हैं। और बहुत-से माता-पिता भी काम पर चले जाते हैं। और जो थोड़ा-बहुत समय वे साथ होते भी हैं, वह भी टीवी-कंप्यूटर या फोन पर चला जाता है। बहुत-से परिवारों में, बच्चे और माता-पिता अजनबियों की तरह अपनी-अपनी ज़िंदगी जीते हैं। उनके बीच ज़रा-भी बातचीत नहीं होती।
5, 6. अपने बच्चों के साथ ज़्यादा वक्त बिताने के लिए कुछ माता-पिताओं ने क्या किया है?
5 क्या आप दूसरे कामों से वक्त “खरीद” सकते हैं, ताकि आप अपने परिवार के साथ ज़्यादा वक्त बिता सकें? (इफिसियों 5:15, 16 पढ़िए।) बहुत-से परिवारों ने फैसला किया है कि वे टीवी देखने या फिर कंप्यूटर का इस्तेमाल करने का समय कम कर देंगे। दूसरे कुछ परिवार पूरी कोशिश करते हैं कि वे दिन में कम-से-कम एक वक्त का खाना साथ खाएँगे। और पारिवारिक उपासना क्या ही बढ़िया इंतज़ाम है, जिसमें माता-पिता और बच्चे इत्मीनान से बाइबल का अध्ययन और चर्चा करके एक-दूसरे के करीब आ सकते हैं। पारिवारिक उपासना के लिए हर हफ्ते करीब एक घंटा निकालना अच्छी बात है, लेकिन एक-दूसरे से दिल खोलकर बात करने के लिए सिर्फ इतना समय काफी नहीं। इसके लिए ज़रूरी है कि आप हर दिन बच्चों से बात करने के लिए वक्त निकालें। उदाहरण के लिए, इससे पहले कि आपका बच्चा स्कूल जाए, आप उससे हौसला बढ़ानेवाले कुछ शब्द कह सकते हैं, रोज़ाना बाइबल वचनों पर चर्चा कर सकते हैं, या उसके साथ प्रार्थना कर सकते हैं। ऐसा करने से आपके बच्चे को वाकई बहुत मदद मिलेगी।
6 बच्चों के साथ ज़्यादा वक्त बिताने के लिए, कुछ माता-पिताओं ने अपने जीने के तौर-तरीके में कुछ बदलाव किए हैं। मिसाल के लिए, लताa नाम की एक माँ ने, जिसके दो छोटे बच्चे हैं, अपने बच्चों के साथ ज़्यादा वक्त बिताने के लिए पूरे समय की नौकरी छोड़ दी। वह कहती है, “सुबह-सुबह हम सभी को काम पर या स्कूल जाने की जल्दी होती थी। जब मैं शाम को घर लौटती, तो आया बच्चों को सुला चुकी होती थी। नौकरी छोड़ने की वजह से अब हमें कम पैसों में गुज़ारा चलाना होता है, लेकिन अब मैं जान पाती हूँ कि मेरे बच्चों के मन में क्या चल रहा है और वे किन परेशानियों से गुज़र रहे हैं। मैं सुन पाती हूँ कि वे प्रार्थना में क्या कह रहे हैं, उन्हें सही राह दिखा पाती हूँ, उनका हौसला बढ़ा पाती हूँ और उन्हें सिखा पाती हूँ।”
‘सुनने में फुर्ती करें’
7. माता-पिता और बच्चे एक-दूसरे के बारे में कौन-सी एक आम शिकायत करते हैं?
7 बातचीत में रुकावट की एक और वजह हो सकती है। बहुत-से नौजवानों का इंटरव्यू लेने के बाद, सिर्फ माता-पिताओं के लिए किताब के लेखक बताते हैं: “बच्चों की अपने माता-पिताओं के बारे में की गयी आम शिकायतों में से सबसे बड़ी शिकायत यह थी कि ‘वे सुनते नहीं हैं।’” लेकिन यह शिकायत एक-तरफा नहीं है। माता-पिताओं को भी अकसर अपने बच्चों से यही शिकायत रहती है। परिवार में बातचीत का माहौल बनाए रखने के लिए ज़रूरी है कि सभी एक-दूसरे की बात बहुत ध्यान से सुनें।—याकूब 1:19 पढ़िए।
8. माता-पिता किस तरह अपने बच्चों की ध्यान से सुन सकते हैं?
8 माता-पिताओ, क्या आप वाकई अपने बच्चों की ध्यान से सुनते हैं? यह आपके लिए तब मुश्किल हो सकता है जब आप थके हुए हों या जब बच्चे की बात आपको मामूली-सी लगे। लेकिन जो बात आपके लिए मामूली हो, वही बात आपके बच्चे के लिए बहुत बड़ी हो सकती है। “सुनने में फुर्ती” करने का मतलब है, न सिर्फ इस बात पर ध्यान देना कि आपका बच्चा क्या कहता है, बल्कि इस बात पर भी कि वह उसे कैसे कहता है। बच्चे के बोलने के लहज़े और उसके हाव-भाव से भी आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि वह फँला मामले के बारे में कैसा महसूस करता है। इसके अलावा, सवाल पूछना भी ज़रूरी है। “मनुष्य के मन में विचार अथाह जल के समान हैं; पर मनुष्य की [अंदरूनी] समझ उनको वहां से निकाल लेती है।” (नीति. 20:5, हिंदी—कॉमन लैंग्वेज) बच्चों से बात करते वक्त आपको अंदरूनी समझ दिखानी चाहिए, यानी आपको यह पता लगाना चाहिए कि वे असल में कैसा महसूस करते हैं। यह खासकर तब ज़रूरी है जब आप उनसे किसी ऐसे विषय पर बात कर रहे हों, जिस पर बात करने से वे कतराते हैं।
9. बच्चों को अपने माता-पिता की क्यों सुननी चाहिए?
9 बच्चो, क्या आप अपने माता-पिता का कहना मानते हैं? परमेश्वर का वचन कहता है, “हे मेरे पुत्र, अपने पिता की शिक्षा पर कान लगा, और अपनी माता की शिक्षा को न तज।” (नीति. 1:8) याद रखिए, आपके माता-पिता आपसे प्यार करते हैं और आपका भला चाहते हैं। इसलिए बुद्धिमानी इसी में होगी कि आप उनकी बात सुनें और उनकी आज्ञा मानें। (इफि. 6:1) उनकी आज्ञा मानना आपके लिए तब आसान हो जाएगा, जब आपके और मम्मी-पापा के बीच खुलकर बातचीत हो और आप याद रखें कि वे आपसे प्यार करते हैं। इसलिए आप जो सोचते हैं, अपने मम्मी-पापा को खुलकर बताइए। इससे वे आपको समझ पाएँगे। बेशक, आपको भी उन्हें समझने की कोशिश करनी चाहिए।
10. रहूबियाम के उदाहरण से हम क्या सीखते हैं?
10 जब अपनी उम्र के साथियों से सलाह लेने की बात आती है, तब बच्चो, आपको सावधान होने की ज़रूरत है। हो सकता है आपको उनकी सलाह अच्छी लगे, क्योंकि वे शायद आपको वही बताएँ जो आप सुनना चाहते हैं। मगर याद रखिए, यह ज़रूरी नहीं कि वह सलाह आपके लिए फायदेमंद हो। उनकी सलाह आपको नुकसान भी पहुँचा सकती है। जवानों को बड़े-बुज़ुर्गों की तरह समझ और ज़िंदगी का तजुरबा नहीं होता। कई नौजवान यह नहीं सोचते कि वे आज जो फैसले लेते हैं, आगे चलकर उससे उन्हें नुकसान पहुँच सकता है। राजा सुलैमान के बेटे रहूबियाम का उदाहरण याद कीजिए। जब वह इसराएल का राजा बना, तो उसे बुज़ुर्गों की सलाह माननी चाहिए थी। लेकिन ऐसा करने के बजाय, उसने उन जवानों की सलाह मानी जिनके साथ वह बड़ा हुआ था। उनकी मूर्ख सलाह पर चलने का यह नतीजा हुआ कि रहूबियाम की प्रजा के ज़्यादातर लोगों ने उसका साथ नहीं दिया। (1 राजा 12:1-17) रहूबियाम की बुरी मिसाल पर चलने के बजाय, अपने माता-पिता के साथ बातचीत बनाए रखने की पूरी कोशिश कीजिए। उन्हें अपने विचार और अपनी भावनाएँ खुलकर बताइए। उनकी सलाह मानकर फायदा पाइए और उनके तजुरबे से सीखिए।—नीति. 13:20.
11. अगर बच्चे माता-पिता से बेझिझक बात नहीं कर पाते, तो क्या हो सकता है?
11 माता-पिताओ, अगर आप चाहते हैं कि आपके बच्चे सलाह के लिए अपने साथियों के पास न जाएँ, तो खुद को ऐसा इंसान बनाइए कि वे बेझिझक आपके पास आ सकें और आसानी से आपसे बात कर सकें। एक नौजवान बहन ने लिखा: “मैंने किसी लड़के का नाम लिया नहीं कि मम्मी-पापा घबरा जाते हैं। फिर मैं भी झिझक महसूस करने लगती हूँ और आगे कुछ बोल नहीं पाती।” एक और जवान बहन ने लिखा: “बहुत-से नौजवान अपने माता-पिता से सलाह लेना चाहते हैं। लेकिन अगर उनके माता-पिता उनकी बात हल्के में उड़ा दें, तो बच्चे किसी और के पास जाएँगे जो उनकी बात गंभीरता से लेंगे, फिर भले ही उनके पास इतना तजुरबा न हो।” अगर आप बच्चों की बात ध्यान से सुनें, फिर चाहे वे किसी भी विषय पर बात क्यों न कर रहे हों, और उन्हें समझने की कोशिश करें, तो आप पाएँगे कि वे दिल खोलकर आपसे बात करेंगे और आपकी सलाह मानने के लिए तैयार रहेंगे।
‘बोलने में सब्र करें’
12. जिस तरह माता-पिता पेश आते हैं, उससे बातचीत में कैसे रुकावट आ सकती है?
12 बच्चों के कुछ कहने पर जिस तरह माता-पिता पेश आते हैं, उससे भी बातचीत में रुकावट आ सकती है। हो सकता है बच्चों की बात का वे बुरा मान जाएँ और उन पर बरस पड़ें। इन “आखिरी दिनों” में कदम-कदम पर खतरे हैं, इसलिए लाज़मी है कि मसीही माता-पिता अपने बच्चों की हर तरह से हिफाज़त करना चाहते हैं। (2 तीमु. 3:1-5) लेकिन जिसे माता-पिता हिफाज़त समझते हैं, वही बच्चों को ज़्यादती लग सकती है।
13. माता-पिताओं को क्यों ध्यान रखना चाहिए कि वे तुरंत अपनी राय न दें?
13 माता-पिताओं को ध्यान रखना चाहिए कि वे तुरंत अपनी राय न दें। यह सच है कि जब बच्चे किसी बात को लेकर परेशान होते हैं और आपको कुछ बताते हैं जिससे आपको दुख पहुँचता है, तो ऐसे में चुप रहना मुश्किल होता है। मगर ज़रूरी है कि कुछ भी कहने से पहले, आप अपने बच्चों की बात ध्यान से सुनें। बुद्धिमान राजा सुलैमान ने लिखा: “जो बिना बात सुने उत्तर देता है, वह मूढ़ ठहरता, और उसका अनादर होता है।” (नीति. 18:13) अगर आप शांत रहें, तो आपको बच्चों से और भी सुनने का मौका मिल सकता है। उसे मदद देने के लिए ज़रूरी है कि पहले आप पूरी बात जानें। हो सकता है बच्चा इसलिए ‘उतावली से बात’ कर रहा हो क्योंकि अंदर-ही-अदंर उसे कोई बात खाए जा रही है। (अय्यू. 6:1-3) प्यार करनेवाले माता-पिता होने के नाते, अपने बच्चों की बातों पर कान दीजिए और उन्हें समझने की कोशिश कीजिए, ताकि आप अपने शब्दों से उनके ज़ख्मों पर मरहम लगा सकें।
14. बच्चों को बोलने में सब्र क्यों करना चाहिए?
14 बच्चो, आपको भी “बोलने में सब्र” करना चाहिए। याद रखिए, परमेश्वर ने आपके माता-पिता को यह ज़िम्मेदारी सौंपी है कि वे आपको तालीम दें। इसलिए उनकी बातों को तुरंत मत ठुकराइए। (नीति. 22:6) हो सकता है, वे भी उन हालात से गुज़रे हों, जिनसे आप आज गुज़र रहे हैं। उन्हें बचपन में की गयी अपनी गलतियों पर अफसोस है, और वे नहीं चाहते कि आप भी वही गलतियाँ दोहराएँ। इसलिए अपने माता-पिता को अपना दोस्त समझिए, दुश्मन नहीं। वे आपको चोट नहीं पहुँचाना चाहते, बल्कि आपकी मदद करना चाहते हैं। (नीतिवचन 1:5 पढ़िए।) ‘अपने पिता और अपनी माँ का आदर कीजिए’ और उन्हें यकीन दिलाइए कि आप भी उनसे उतना ही प्यार करते हैं, जितना कि वे आपसे। इससे उनके लिए ‘यहोवा की तरफ से आनेवाला अनुशासन देते हुए और उसी की सोच के मुताबिक आपके मन को ढालते हुए आपकी परवरिश करना’ आसान हो जाएगा।—इफि. 6:2, 4.
‘क्रोध करने में धीमे हों’
15. क्या बात हमारी मदद करेगी कि हम तनाव-भरे हालात में भी अपने अज़ीज़ों के साथ शांति बनाए रखें और सब्र से पेश आएँ?
15 हम कई बार उनके साथ सब्र से पेश नहीं आते जिनसे हम प्यार करते हैं। प्रेषित पौलुस ने “कुलुस्से के पवित्र जनों को और विश्वासयोग्य भाइयों को जो मसीह के साथ एकता में हैं” लिखा: “हे पतियो, अपनी-अपनी पत्नी से प्यार करते रहो और उन पर गुस्से से आग-बबूला मत हो। हे पिताओ, अपने बच्चों को खीझ न दिलाओ, कहीं ऐसा न हो कि वे हिम्मत हार बैठें।” (कुलु. 1:1, 2; 3:19, 21) पौलुस ने इफिसियों को बढ़ावा दिया: “हर तरह की जलन-कुढ़न, गुस्सा, क्रोध, चीखना-चिल्लाना और गाली-गलौज . . . खुद से दूर करो।” (इफि. 4:31) अगर हम अपने अंदर सहनशीलता, कोमलता, और संयम के गुण बढ़ाएँ, जो कि पवित्र शक्ति के फल के पहलू हैं, तो हम तनाव-भरे हालात में भी शांत रह पाएँगे।—गला. 5:22, 23.
16. यीशु ने अपने चेलों की सोच कैसे सुधारी? यीशु का इस तरह पेश आना क्यों गौर करने लायक है?
16 माता-पिताओ, यीशु की मिसाल पर गौर कीजिए। ज़रा सोचिए, अपने प्रेषितों के साथ आखिरी बार शाम का खाना खाते वक्त वह कितने भारी तनाव से गुज़र रहा होगा। यीशु जानता था कि कुछ ही घंटों में वह धीरे-धीरे एक दर्दनाक मौत मरेगा। और वह यह भी जानता था कि उसके वफादार बने रहने से ही उसके पिता का नाम पवित्र होगा और इंसानों का उद्धार हो पाएगा। लेकिन उसी शाम खाने की मेज़ पर, “[प्रेषितों के] बीच इस बात पर गरमा-गरम बहस छिड़ गयी कि उनमें सबसे बड़ा किसे समझा जाए।” इस पर यीशु न तो उन पर झल्लाया और न ही उसने उन्हें कुछ बुरा-भला कहा। इसके बजाय, उसने शांत रहकर प्रेषितों की सोच सुधारी। यीशु ने उन्हें याद दिलाया कि उन्होंने परीक्षाओं के दौरान हमेशा उसका साथ दिया था। हालाँकि शैतान उन्हें गेहूँ की तरह फटकने और छानने की माँग कर रहा था, यानी उनकी परीक्षा लेनेवाला था, मगर यीशु ने कहा कि उसे यकीन है कि वे अपना विश्वास बनाए रखेंगे। उसने उनके साथ एक करार भी किया।—लूका 22:24-32.
17. क्या बात बच्चों को शांत रहने में मदद देगी?
17 बच्चों को भी शांत रहने की ज़रूरत है। अगर आप किशोर हैं और आपके मम्मी-पापा आपको कोई हिदायत देते हैं, तो हो सकता है आपको लगे कि वे आप पर भरोसा नहीं करते। लेकिन याद रखिए कि वे आपसे प्यार करते हैं, तभी तो आपकी चिंता करते हैं। अगर आप शांत रहकर उनकी बात सुनें और उनका कहा मानें, तो वे आपकी इज़्ज़त करेंगे और आप उनकी नज़रों में एक ज़िम्मेदार इंसान बन पाएँगे। और हो सकता है मम्मी-पापा आपको पहले से ज़्यादा आज़ादी दें। बाइबल बताती है कि जो इंसान शांत रहता है, वह बुद्धिमान है। यह कहती है: “मूर्ख अपने सारे मन की बात खोल देता है, परन्तु बुद्धिमान अपने मन को रोकता, और शान्त कर देता है।”—नीति. 29:11.
18. प्यार दिखाने से कैसे परिवार में अच्छी तरह बातचीत हो पाती है?
18 इसलिए प्यारे माता-पिताओ और बच्चो, अगर आपके परिवार में एक-दूसरे के बीच बातचीत उतनी खुलकर नहीं होती जितनी आप चाहते हैं, तो निराश मत होइए। बात करने की कोशिश करते रहिए और सच्चाई की राह पर चलते रहिए। (3 यूह. 4) नयी दुनिया में जब सभी सिद्ध हो जाएँगे, तब हम बिना किसी गलतफहमी या बहस के एक-दूसरे से बात कर पाएँगे। लेकिन आज हम सभी से कोई-न-कोई गलती हो जाती है, जिसका हमें बाद में पछतावा होता है। इसलिए बिना किसी हिचकिचाहट के माफी माँगिए। और दिल खोलकर माफ कीजिए। ‘पूरे तालमेल के साथ प्यार में एक-दूसरे से जुड़े रहिए।’ (कुलु. 2:2) प्यार में बहुत ताकत होती है। ‘प्यार सहनशील और कृपा करनेवाला होता है। प्यार भड़क नहीं उठता। यह चोट का हिसाब नहीं रखता। यह सबकुछ बरदाश्त कर लेता है, सब बातों पर यकीन करता है, सब बातों की आशा रखता है, सबकुछ धीरज के साथ सह लेता है।’ (1 कुरिं. 13:4-7) अगर आप प्यार दिखाते रहें, तो समय के साथ-साथ आपके परिवार में और भी अच्छी तरह बातचीत हो पाएगी। इससे आपके परिवार में खुशियाँ आएँगी और यहोवा की महिमा होगी।
a नाम बदल दिया गया है।