आत्म-विश्वास कैसे बढ़ाएँ?
एक नया जन्मा बच्चा दुनिया में सबसे लाचार होता है। वह पूरी तरह अपने माता-पिता पर निर्भर होता है। जब वह चलना सीखता है, तो अपने सामने अनजान लोगों को देखकर डर जाता है। लेकिन जैसे ही वह अपने माता-पिता को देखता है और उनका हाथ थामता है, तो फिर से हँसने-मुसकराने लगता है।
जैसे-जैसे वह थोड़ा बड़ा होता है, वह अपने माता-पिता का प्यार समझने लगता है। जब माता-पिता उसकी किसी छोटे-से काम के लिए तारीफ करते हैं, तो उसका खुद पर यकीन बढ़ जाता है और उसको और भी अच्छे काम करने का मन करता है।
जब वह थोड़ा और बड़ा होता है, तो वह कुछ अच्छे दोस्त बना लेता है। जब वह उनके साथ होता है, तो उसे किसी भी बात की फिक्र नहीं होती और स्कूल में इतना डर नहीं लगता।
अफसोस कि हर किसी का बचपन इस तरह नहीं गुज़रता। कुछ नौजवानों के दोस्त नहीं होते और बहुत-से बच्चों को अपने माता-पिता से प्यार नहीं मिलता। महिमाa नाम की एक लड़की कहती है, “जब कभी मैं किसी परिवार की तसवीर देखती हूँ जो साथ मिलकर कुछ कर रहे हैं, तो मैं सोचती हूँ ‘काश! जब मैं छोटी थी, तो मेरा परिवार भी ऐसा ही होता।’” क्या आपको भी ऐसा ही लगता है?
जब बचपन में माता-पिता से प्यार से न मिले
जब आप छोटे रहे हों, तो शायद आपमें आत्म-विश्वास की कमी थी। हो सकता है कि आपके माता-पिता ने आपसे प्यार न किया हो और न ही किसी अच्छे काम के लिए आपकी तारीफ की हो। शायद वे आपस में हमेशा लड़ते-झगड़ते रहते थे, जिस वजह से उनकी शादी टूट गयी और इसके लिए आप खुद को कसूरवार ठहराते आए हों। या फिर इससे भी बदतर, हो सकता है कि आपके माता या पिता आप पर चीखते-चिल्लाते हों, आपको मारते-पीटते हों, या फिर उनमें से किसी ने आपके साथ दुर्व्यवहार किया हो।
ऐसे में कुछ बच्चे क्या करते हैं? वे ड्रग्स लेने लगते हैं या फिर शराबी बन जाते हैं, तो कुछ यह सोचकर किसी गिरोह में शामिल हो जाते हैं कि शायद वहाँ उन्हें अपनापन मिले। प्यार पाने के लिए कुछ छोटी-सी उम्र में ही रोमानी रिश्ता रखते हैं। लेकिन इस तरह के रिश्ते ज़्यादा समय तक नहीं चल पाते और जब ये रिश्ते टूटते हैं, तो बच्चे और भी अकेले हो जाते हैं।
जो नौजवान ऐसा कोई कदम नहीं उठाते, वे भी कई बार सोचते हैं कि वे किसी लायक नहीं। अंकिता नाम की एक लड़की कहती है, “मेरी माँ जब देखो तब मुझसे यही बोलती थीं कि मैं किसी काम की नहीं और मुझे भी ऐसा ही लगने लगा था। मुझे ऐसा एक भी पल याद नहीं, जब उन्होंने मेरी तारीफ की हो या मुझसे प्यार से बात की हो।”
लोगों की जिस तरह परवरिश हुई है, उसके अलावा और भी कई कारणों से उनमें आत्म-विश्वास की कमी हो जाती है। कुछ लोग तलाक हो जाने पर, बुढ़ापे के कारण या फिर अपने रंग-रूप की वजह से अपना आत्म-विश्वास खो बैठते हैं। चाहे जो भी वजह हो, जब ऐसा होता है, तो वह दूसरों के साथ अच्छा रिश्ता नहीं बना पाता। ऐसे में वह क्या कर सकता है?
परमेश्वर हमसे प्यार करता है
आपको यह जानकर खुशी होगी कि कोई है जो आपके आत्म-विश्वास को बढ़ाने में आपकी मदद कर सकता है और वह ऐसा करना चाहता भी है। वह कौन है? और कोई नहीं, बल्कि हमारा बनानेवाला परमेश्वर यहोवा।
परमेश्वर ने पवित्र शास्त्र में हमारे लिए यह बात लिखवायी है, “इधर उधर मत ताक, क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर हूँ; मैं तुझे दृढ़ करूँगा और तेरी सहायता करूँगा, अपने धर्ममय दाहिने हाथ से मैं तुझे सम्भाले रहूँगा।” (यशायाह 41:10, 13) यह जानकर कितना सुकून मिलता है कि परमेश्वर हमारा दाहिना हाथ पकड़कर हमें सँभालना चाहता है! तो फिर हमें चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है।
पवित्र शास्त्र में परमेश्वर के ऐसे कुछ सेवकों के बारे में बताया गया है, जिन्हें लगता था कि वे किसी लायक नहीं हैं। लेकिन बाद में चलकर उन्होंने परमेश्वर का हाथ थामा। जैसे हन्ना नाम की स्त्री को लीजिए। वह बाँझ थी, इसलिए लोग अकसर उसका मज़ाक उड़ाते थे। वह बहुत दुखी थी और सोचती थी कि वह किसी लायक नहीं है। उसने खाना छोड़ दिया और हरदम रोया करती थी। (1 शमूएल 1:6, 8) लेकिन जब उसने परमेश्वर को अपने दिल की बात बतायी, तो उसका दिल हलका हुआ और आगे चलकर उसे एक बेटा पैदा हुआ, जिसका नाम उसने शमूएल रखा।—1 शमूएल 1:18.
दाविद नाम के एक व्यक्ति की ज़िंदगी में भी एक ऐसा दौर आया, जब वह बहुत निराश हो गया था। कई सालों तक राजा शाऊल उसकी जान के पीछे पड़ा था, लेकिन किसी तरह दाविद अपनी जान बचाकर छिपता फिर रहा था। उस दौरान कई बार उसे लगा कि अब बस, वह और बरदाश्त नहीं कर सकता। (भजन 55:3-5; 69:1) इसके बावजूद उसने लिखा, “मैं शान्ति से लेट जाऊँगा और सो जाऊँगा; क्योंकि, हे यहोवा, केवल तू ही मुझ को एकान्त में निश्चिन्त रहने देता है।”—भजन 4:8.
हन्ना और दाविद ने यहोवा से प्रार्थना की और अपनी सारी परेशानियाँ उसे बतायीं और यहोवा ने भी उन्हें सँभाला। (भजन 55:22) आज हम अपना बोझ कैसे हलका कर सकते हैं?
तीन तरीके जिनसे हमारा आत्म-विश्वास बढ़ सकता है
1. यहोवा को अपना पिता मानिए।
जब यीशु धरती पर था, तो उसने अपने शिष्यों से कहा कि वे उसके पिता, यानी “एकमात्र सच्चे परमेश्वर,” यहोवा को जानें। (यूहन्ना 17:3) उसके एक शिष्य पौलुस ने हमें इस बात का यकीन दिलाया “कि वह हममें से किसी से भी दूर नहीं है।” (प्रेषितों 17:27) उसके एक और शिष्य ने कहा, “परमेश्वर के करीब आओ और वह तुम्हारे करीब आएगा।”—याकूब 4:8.
जब हमें चिंताएँ सताती हैं, तो ऐसे में हम याद कर सकते हैं कि हमारा पिता परमेश्वर यहोवा हमसे प्यार करता है। इससे हमें बहुत सुकून मिलेगा। बेशक, इस बात पर भरोसा करने में वक्त लग सकता है। लेकिन अगर हम ऐसा करें, तो हमें वाकई बहुत राहत मिलेगी। कई लोगों ने इस बात का अनुभव किया है। चित्रा कहती है, “जब मैंने यहोवा को एक पिता की तरह जाना, तो मुझे लगा कि कोई तो है, जिसे मैं अपने दिल की बात बता सकती हूँ। इससे मेरा मन बहुत हलका हुआ!”
रिया बीते समय को याद करते हुए कहती है, “जब मेरे माता-पिता मुझे छोड़कर काम करने के लिए दूसरे देश चले गए, तब मैं बिलकुल अकेली पड़ गयी। उस वक्त यहोवा ने ही मुझे सँभाला। मैं उसे अपनी समस्याएँ बताती थी और उसने उन्हें सुलझाने में मेरी मदद भी की।”b
2. परमेश्वर से प्यार करनेवालों को अपना परिवार मानिए।
यीशु ने अपने शिष्यों को सिखाया कि वे एक-दूसरे को अपना भाई-बहन समझें। उसने कहा, “तुम सब भाई हो।” (मत्ती 23:8) वह चाहता था कि उसके शिष्य एक-दूसरे से प्यार करें और एक परिवार की तरह मिलकर रहें।—मत्ती 12:48-50; यूहन्ना 13:35.
जिस तरह परिवार के सदस्य एक-दूसरे की प्यार से देखभाल करते हैं, उसी तरह यहोवा के साक्षी भी आपस में एक-दूसरे से प्यार करते हैं और जब कोई नया व्यक्ति उनसे मिलता है, तो उसे भी वही अपनापन महसूस होता है। (इब्रानियों 10:24, 25) जब लोग उनकी सभाओं में जाते हैं, तो अपने सारे गम भूल जाते हैं।
ईशा उस समय के बारे में बताती है, जब वह एक मुश्किल दौर से गुज़र रही थी। वह कहती है, “हमारे इलाके में यहोवा की एक साक्षी मेरी बहुत अच्छी दोस्त थी। वह मेरा दर्द समझती थी। जब मैं उसे अपने दिल का हाल सुनाती थी, तो वह मेरी सुनती थी। उसने मुझे बाइबल से आयतें पढ़कर सुनायीं और मेरे साथ कई बार प्रार्थना की। और इस बात का पूरा ध्यान रखा कि मैं कभी अकेली न रहूँ। वह अकसर मुझसे इस तरह बात करती थी, जिससे मैं अपने मन की बात उसे बताऊँ और मेरा मन हलका हो जाए। उसका साथ था, इसलिए मैं खुद को सँभाल पायी।” रिया कहती है, “यहोवा के साक्षियों के बीच मुझे नए माता-पिता मिल गए। उन्होंने मुझसे बहुत प्यार किया। अब मुझे लगता है कि मैं अकेली नहीं हूँ।”
3. दूसरों से प्यार कीजिए और उनकी मदद कीजिए।
जब हम दूसरों से प्यार करते हैं और उनकी मदद करते हैं, तो हम अपने लिए ज़िंदगी-भर के दोस्त बना लेते हैं। यीशु ने कहा था, “लेने से ज़्यादा खुशी देने में है।” (प्रेषितों 20:35) इसमें कोई दो राय नहीं कि हम दूसरों से जितना प्यार करेंगे, बदले में उतना ही प्यार हमें भी मिलेगा। यीशु ने अपने शिष्यों से कहा था, “दिया करो, और लोग तुम्हें भी देंगे।”—लूका 6:38.
पवित्र शास्त्र में यह भी लिखा है, “प्यार कभी नहीं मिटता।” (1 कुरिंथियों 13:8) प्यार करने और प्यार पाने से हमारा खुद पर यकीन बढ़ेगा और हमारे मन में अपने बारे में बुरे खयाल नहीं आएँगे। मेघा कहती है, “मैं जानती हूँ कि मैं अपने बारे में ऐसी कई बातें सोचती हूँ, जो सही नहीं हैं।” फिर वह कहती है, “अपनी परेशानियों से अपना ध्यान हटाने के लिए मैं दूसरों की मदद करने की कोशिश करती हूँ और ऐसा करने से मुझे बहुत अच्छा लगता है।”
ऐसा वक्त जब कोई दुखी नहीं रहेगा
ऊपर बताए तरीके अपनाने से कोई चमत्कार नहीं हो जाएगा। आपकी समस्याएँ तुरंत खत्म नहीं हो जाएँगी, लेकिन आप इनका सामना ज़रूर कर पाएँगे। चित्रा कबूल करती है, “मैं अब भी कई बार निराश हो जाती हूँ। लेकिन अब मैं पहले की तरह ऐसा नहीं सोचती कि मैं किसी के प्यार के लायक नहीं हूँ। मैं जानती हूँ कि परमेश्वर मुझसे प्यार करता है और मेरे कई अच्छे दोस्त हैं, जो मुझसे बहुत प्यार करते हैं।” रिया को भी ऐसा ही लगता है। वह कहती है, “कभी-कभी मैं बहुत अकेली और दुखी हो जाती हूँ। लेकिन जब मैं अपने दोस्तों से बात करती हूँ, जो यहोवा के साक्षी हैं, तो मुझे बहुत तसल्ली मिलती है। और सबसे बढ़कर मुझे परमेश्वर से हर रोज़ प्रार्थना करने से बहुत मदद मिलती है।”
पवित्र शास्त्र में आनेवाले समय के बारे में बताया है, जब सभी सुरक्षित रहेंगे
पवित्र शास्त्र में बताया है कि बहुत जल्द एक ऐसा वक्त आनेवाला है, जब “वे अपनी अपनी दाखलता और अंजीर के वृक्ष तले बैठा करेंगे, और कोई उनको न डराएगा।” (मीका 4:4) उस समय हमें किसी से डर नहीं लगेगा और कोई हमारा नुकसान नहीं करेगा। बीते समय की कड़वी यादें हमें फिर कभी नहीं सताएँगी। (यशायाह 65:17, 25) सभी लोग परमेश्वर और उसके बेटे यीशु मसीह के ठहराए स्तरों पर चलेंगे, जिस वजह से सभी शांति से और सुरक्षित रहेंगे।—यशायाह 32:17. ▪ (w16-E No.1)
a सभी नाम बदल दिए गए हैं।
b जो परमेश्वर के बारे में और जानना चाहते हैं, उन्हें यहोवा के साक्षी मुफ्त में पवित्र शास्त्र से सिखाते हैं।