अपने कामों से दिखाइए कि आपका प्यार सच्चा है
“हमें सिर्फ बातों या ज़बान से नहीं बल्कि अपने कामों से दिखाना चाहिए कि हम सच्चे दिल से प्यार करते हैं।”—1 यूह. 3:18.
1. सबसे उम्दा किस्म का प्यार कौन-सा है और इसमें क्या शामिल है? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
बाइबल में सबसे उम्दा किस्म का प्यार है अघापि। यह प्यार सिद्धांतों पर आधारित होता है। यहोवा इस प्यार का सोता है। (1 यूह. 4:7) अघापि में किसी के लिए गहरा लगाव और भावनाएँ शामिल होती हैं। मगर यह सिर्फ भावनाओं तक सीमित नहीं होता। यह प्यार एक इंसान को उभारता है कि वह दूसरों की खातिर भले काम करे और बदले में कुछ पाने की उम्मीद न करे। इस प्यार से हमें खुशी और जीने का मकसद मिलता है।
2, 3. यहोवा ने कैसे दिखाया कि वह इंसानों से निस्वार्थ प्यार करता है?
2 आदम और हव्वा को बनाने से पहले ही यहोवा ने दिखाया कि वह इंसानों से कितना प्यार करता है। उसने धरती को इस तरह बनाया कि इंसानों के रहने के लिए यहाँ सबकुछ हो। वह चाहता था कि वे ज़िंदगी का पूरा मज़ा लें। इसमें यहोवा का कोई स्वार्थ नहीं था। उसने उनकी खुशी के लिए यह सब किया था। धरती को तैयार करने के बाद ही उसने इंसानों की सृष्टि की। फिर उसने उन्हें खूबसूरत धरती पर हमेशा तक जीने की आशा दी।
3 जब आदम और हव्वा ने बगावत की, तब यहोवा ने अपने निस्वार्थ प्यार का सबसे बड़ा सबूत दिया। उसे पूरा यकीन था कि आदम-हव्वा के बच्चों में से कुछ ज़रूर उससे प्यार करेंगे। उन्हें बचाने के लिए उसने अपने बेटे की कुरबानी देने का इंतज़ाम किया। (उत्प. 3:15; 1 यूह. 4:10) जब यहोवा ने फिरौती का वादा किया, तो उसकी नज़र में उसी वक्त फिरौती बलिदान दिया जा चुका था। फिर 4,000 साल बाद, यहोवा ने अपने इकलौते बेटे को इंसानों की खातिर कुरबान होने दिया। (यूह. 3:16) हम यहोवा के इस प्यार के लिए बहुत एहसानमंद हैं!
4. हम कैसे जानते हैं कि अपरिपूर्ण इंसान निस्वार्थ प्यार कर सकते हैं?
4 हम इंसान अपरिपूर्ण हैं तो क्या हमारे लिए निस्वार्थ प्यार करना मुमकिन है? बिलकुल है। यहोवा ने हमें अपनी छवि में बनाया है यानी हम उसके जैसा प्यार ज़ाहिर कर सकते हैं। माना कि निस्वार्थ प्यार करना हमेशा आसान नहीं होता मगर यह नामुमकिन नहीं। हाबिल ने अपनी सबसे बढ़िया चीज़ देकर दिखाया कि उसे परमेश्वर से प्यार है। (उत्प. 4:3, 4) नूह ने भी दिखाया कि उसका प्यार निस्वार्थ है। उसने कई सालों तक लोगों को परमेश्वर का संदेश सुनाया जबकि उन्होंने उसकी एक न सुनी। (2 पत. 2:5) अब्राहम भी खुशी-खुशी अपने बेटे को कुरबान करने के लिए तैयार था। इस तरह उसने दिखाया कि उसे सबसे ज़्यादा परमेश्वर से प्यार है। (याकू. 2:21) इन वफादार सेवकों की तरह हम भी अपने प्यार का सबूत देना चाहते हैं, फिर चाहे ऐसा करना मुश्किल क्यों न हो।
सच्चा प्यार क्या होता है?
5. हम किस तरह दिखा सकते हैं कि हमारा प्यार सच्चा है?
5 बाइबल बताती है कि हमें “बातों या ज़बान से नहीं बल्कि अपने कामों से दिखाना चाहिए कि हम सच्चे दिल से प्यार करते हैं।” (1 यूह. 3:18) तो क्या इसका मतलब है कि हम अपनी बातों से प्यार ज़ाहिर नहीं कर सकते? बिलकुल कर सकते हैं। (1 थिस्स. 4:18) मगर किसी से सिर्फ यह कहना काफी नहीं कि हम उससे प्यार करते हैं बल्कि हमें यह प्यार कामों से भी दिखाना चाहिए। मिसाल के लिए, अगर किसी भाई या बहन के पास कपड़े और खाने को न हो, तो ऐसे में प्यार के दो शब्द कहने से बात नहीं बनेगी। हमें उसकी मदद भी करनी होगी। (याकू. 2:15, 16) उसी तरह, अगर हमें यहोवा और लोगों से प्यार है, तो हम सिर्फ बिनती नहीं करेंगे कि यहोवा “कटाई के लिए और मज़दूर भेजे” बल्कि हम खुद भी प्रचार में कड़ी मेहनत करेंगे।—मत्ती 9:38.
6, 7. (क) प्यार में “कपट न हो,” इसका क्या मतलब है? (ख) झूठे प्यार की कुछ मिसालें दीजिए।
6 प्रेषित यूहन्ना ने यह भी लिखा कि हमें “सच्चे दिल से” प्यार करना है, यानी हमारे प्यार में ‘कपट नहीं होना’ चाहिए या हमें “बिना कपट प्यार” करना चाहिए। (रोमि. 12:9; 2 कुरिं. 6:6) अगर एक इंसान प्यार करने का ढोंग करे, तो क्या यह कहा जा सकता है कि उसका प्यार सच्चा है और उसके इरादे में कोई खोट नहीं? ज़ाहिर है कि जिस प्यार में कपट होता है वह प्यार झूठा होता है और इससे किसी को फायदा नहीं होता।
7 आइए झूठे प्यार की कुछ मिसालों पर गौर करें। अदन के बाग में शैतान ने अपनी बातों से जताया कि वह हव्वा का भला चाहता है। लेकिन अपने कामों से उसने दिखाया कि उसे हव्वा की फिक्र नहीं थी बल्कि वह अपना स्वार्थ पूरा करना चाहता था। (उत्प. 3:4, 5) अहीतोपेल का प्यार भी झूठा था। वह दाविद का करीबी दोस्त था मगर उसने अपने फायदे के लिए उसे धोखा दिया। (2 शमू. 15:31) आज कुछ लोग ऐसे हैं जो मंडली में फूट पैदा करना चाहते हैं और कुछ परमेश्वर के खिलाफ बगावत करनेवाले हैं। वे भाई-बहनों से चिकनी-चुपड़ी बातें कहकर और उनकी तारीफ करके जताते हैं कि वे उनकी फिक्र करते हैं। (रोमि. 16:17, 18) लेकिन सच्चाई तो यह है कि वे अपना स्वार्थ पूरा करना चाहते हैं।
8. हमें खुद से क्या सवाल करने चाहिए?
8 जब हमारा प्यार झूठा होता है तो असल में हम दूसरों को धोखा दे रहे होते हैं। परमेश्वर की नज़र में यह बड़ी शर्मनाक बात है। याद रखिए, हम इंसानों की आँखों में धूल झोंक सकते हैं लेकिन यहोवा की नहीं। यीशु ने बताया था कि कपटी लोगों को “कड़ी-से-कड़ी सज़ा” दी जाएगी। (मत्ती 24:51) यहोवा के सेवक होने के नाते हम कभी-भी कपटी नहीं बनना चाहेंगे। इसलिए हमें खुद से पूछना चाहिए, ‘क्या मैं दूसरों से सच्चा प्यार करता हूँ? या अपना मतलब पूरा करने के लिए प्यार का ढोंग करता हूँ?’ आइए नौ तरीकों पर ध्यान दें जिनसे हम दिखा सकते हैं कि हमारे प्यार में कोई कपट नहीं।
हम कैसे दिखा सकते हैं कि हमारा प्यार सच्चा है?
9. सच्चा प्यार क्या करने के लिए उभारता है?
9 खुशी-खुशी सेवा कीजिए, तब भी जब कोई आपका काम नहीं देख रहा हो। जब हम किसी की मदद करते हैं तो हमें इस तरह करनी चाहिए कि दूसरों को पता न चले। (मत्ती 6:1-4 पढ़िए।) हनन्याह और सफीरा ऐसा करने से चूक गए। वे चाहते थे कि दूसरों को यह मालूम हो कि वे दान दे रहे हैं। उन्होंने झूठ बोला कि वे पूरे पैसे दान कर रहे हैं। इस वजह से उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। (प्रेषि. 5:1-10) अगर हम अपने भाइयों से सच्चा प्यार करते हैं तो हम खुशी-खुशी उनकी भलाई के लिए काम करेंगे और इसका ढिंढोरा नहीं पीटेंगे। इस मामले में शासी निकाय के साथ काम करनेवाले भाई हमारे लिए बढ़िया मिसाल हैं। वे बाइबल पर आधारित प्रकाशन तैयार करने में शासी निकाय की मदद करते हैं। लेकिन वे कभी लोगों का ध्यान अपनी तरफ नहीं खींचते, न ही किसी को बताते हैं कि उन्होंने क्या-क्या काम किए हैं।
10. हम दूसरों का आदर कैसे कर सकते हैं?
10 दूसरों का आदर कीजिए। (रोमियों 12:10 पढ़िए।) यीशु ने अपने प्रेषितों के पैर धोकर उनका आदर किया। (यूह. 13:3-5, 12-15) वह उन्हें यह सीख देना चाहता था कि उन्हें नम्र होना चाहिए और दूसरों की सेवा करनी चाहिए। यह बात उसके प्रेषित तब पूरी तरह समझ पाए जब उन्हें पवित्र शक्ति मिली। (यूह. 13:7) यीशु की तरह हम दूसरों का आदर कैसे कर सकते हैं? हो सकता है, हम दूसरों से ज़्यादा पढ़े-लिखे हों, हमारे पास धन-दौलत हो या परमेश्वर की सेवा में हमारे पास कुछ खास ज़िम्मेदारियाँ हों। ऐसे में हम खुद को दूसरों से बढ़कर नहीं समझेंगे। (रोमि. 12:3) यही नहीं, जब किसी काम के लिए दूसरों की तारीफ की जाती है तो हम उनसे जलेंगे नहीं और यह नहीं सोचेंगे कि मैंने भी इस काम में हाथ बँटाया था तो मेरी तारीफ क्यों नहीं की गयी? इसके बजाय हम उनके लिए खुश होंगे।
11. हमें क्यों दिल से दूसरों की सराहना करनी चाहिए?
11 सच्चे दिल से दूसरों की सराहना कीजिए। दूसरों की सराहना करने के मौके ढूँढ़िए। इससे उनकी ‘हिम्मत बँधती है।’ (इफि. 4:29) लेकिन अगर हम सच्चे दिल से ऐसा न करें, तो हम उनकी झूठी तारीफ कर रहे होंगे या सुधार के लिए उन्हें जो सलाह चाहिए, वह नहीं दे रहे होंगे। (नीति. 29:5) जब हम किसी के मुँह पर उसकी तारीफ करते हैं, मगर पीठ पीछे उसकी बुराई करते हैं तो हम कपटी ठहरते हैं। प्रेषित पौलुस ने कहा कि हमारा प्यार सच्चा होना चाहिए। कुरिंथ के मसीहियों को चिट्ठी लिखते वक्त उसने कई बातों के लिए उनकी तारीफ की। (1 कुरिं. 11:2) लेकिन जिन बातों में उन्हें सुधार करना था, उस बारे में उसने प्यार से मगर साफ-साफ सलाह दी।—1 कुरिं. 11:20-22.
12. मेहमान-नवाज़ी करके हम कैसे दिखा सकते हैं कि हमारा प्यार सच्चा है?
12 मेहमान-नवाज़ी कीजिए। यहोवा हमें आज्ञा देता है कि हम दरियादिल हों। (1 यूहन्ना 3:17 पढ़िए।) लेकिन हमें सही इरादे से ऐसा करना चाहिए। हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘क्या मैं सिर्फ अपने करीबी दोस्तों या मंडली के खास-खास लोगों को घर पर बुलाता हूँ? क्या मैं सिर्फ उन लोगों की मेहमान-नवाज़ी करता हूँ जो बदले में मेरे लिए कुछ कर सकते हैं? या मैं उन भाई-बहनों को भी दरियादिली दिखाता हूँ जिन्हें मैं अच्छी तरह नहीं जानता या जो बदले में मुझे कुछ नहीं दे सकते?’ (लूका 14:12-14) या मान लीजिए, एक भाई अपने किसी गलत फैसले की वजह से मुश्किल में पड़ जाता है और उसे मदद की ज़रूरत है। ऐसे में हम क्या करेंगे? या अगर हम किसी को अपने घर बुलाते हैं और वह हमारा शुक्रिया अदा नहीं करता, तब हम क्या करेंगे? यहोवा हमसे कहता है, “बिना कुड़कुड़ाए एक-दूसरे की मेहमान-नवाज़ी किया करो।” (1 पत. 4:9) जी हाँ, जब हम सही इरादे से दूसरों के लिए कुछ करते हैं, तो हमें खुशी मिलती है।—प्रेषि. 20:35.
13. (क) हमें क्यों सब्र रखना पड़ सकता है? (ख) हम कमज़ोरों की कैसे मदद कर सकते हैं?
13 कमज़ोरों की मदद कीजिए। बाइबल हमें आज्ञा देती है, “कमज़ोरों को सहारा दो और सबके साथ सब्र से पेश आओ।” (1 थिस्स. 5:14) लेकिन अगर हममें सच्चा प्यार नहीं होगा, तो हम यह आज्ञा नहीं मान पाएँगे। कई भाई जो पहले विश्वास में कमज़ोर थे आगे चलकर मज़बूत बन गए। लेकिन कुछ ऐसे हैं जिनके साथ हमें और भी सब्र रखना पड़ सकता है और प्यार से मदद करनी पड़ सकती है। हम यह कैसे कर सकते हैं? हम बाइबल से उनकी हिम्मत बढ़ा सकते हैं, उनके साथ प्रचार में जा सकते हैं या उनकी बात ध्यान से सुन सकते हैं। यह सोचने के बजाय कि फलाँ भाई “कमज़ोर” है या “मज़बूत,” हमें कबूल करना चाहिए कि हम सबमें खूबियाँ और खामियाँ दोनों हैं। प्रेषित पौलुस ने भी यह कबूल किया कि उसमें कुछ कमज़ोरियाँ थीं। (2 कुरिं. 12:9, 10) सच, हम सबको एक-दूसरे की मदद और हौसले की ज़रूरत है।
14. भाइयों के साथ शांति कायम करने के लिए हमें किस हद तक जाना चाहिए?
14 शांति कायम कीजिए। भाइयों के बीच जो शांति है वह अनमोल है। हमें हर हाल में शांति बनाए रखनी चाहिए, तब भी जब हमें लगता है कि हमें गलत समझा गया है या हमारे साथ बुरा सलूक हुआ है। (रोमियों 12:17, 18 पढ़िए।) अगर हमने किसी को ठेस पहुँचायी है, तो हमें माफी माँगनी चाहिए। लेकिन हमें दिल से ऐसा करना चाहिए। मिसाल के लिए, यह कहने के बजाय कि “अगर आपको लगता है मुझसे भूल हुई है तो मैं माफी चाहता हूँ,” हम यह कहेंगे, “मैंने आपका दिल दुखाया है, मुझे माफ कर दीजिए।” शादीशुदा ज़िंदगी में शांति कायम करना बहुत ज़रूरी होता है। एक पति-पत्नी के लिए यह दिखावा करना गलत होगा कि उनके बीच बहुत प्यार है जबकि अकेले में वे एक-दूसरे से बात तक नहीं करते और अगर करते भी हैं तो सिर्फ चुभनेवाली बातें कहते हैं, और-तो-और वे एक-दूसरे पर हाथ उठाते हैं।
15. हम कैसे दिखा सकते हैं कि हमने सच्चे दिल से माफ किया है?
15 दिल खोलकर माफ कीजिए। जब कोई हमें ठेस पहुँचाता है, तो हम उसे माफ करते हैं और उससे नाराज़ नहीं रहते। हमें तब भी ऐसा करना चाहिए जब सामनेवाले को एहसास भी नहीं कि उसने हमें ठेस पहुँचायी है। बाइबल बताती है, “प्यार से एक-दूसरे की सहते रहो, अपने बीच शांति बनाए रखने की पूरी कोशिश करो जो तुम्हें एकता के उस बंधन में बाँधे रखती है जिसे तुम पवित्र शक्ति से हासिल करते हो।” (इफि. 4:2, 3) किसी को दिल से माफ करने का मतलब है कि हम यह सोचते न रहें कि उसने किस तरह हमारा दिल दुखाया है। प्यार “चोट का हिसाब नहीं रखता।” (1 कुरिं. 13:4, 5) दरअसल किसी भाई से नाराज़ रहने से उसके साथ और यहोवा के साथ हमारा रिश्ता खतरे में पड़ सकता है। (मत्ती 6:14, 15) जब हम किसी को सच्चे दिल से माफ करते हैं तो हम यहोवा से उसके लिए प्रार्थना भी करेंगे।—लूका 6:27, 28.
16. कोई खास ज़िम्मेदारी मिलने पर आपको क्या करना चाहिए?
16 अपने फायदे की मत सोचिए। जब हमें यहोवा की सेवा में कोई खास ज़िम्मेदारी मिलती है, तब हम दिखा सकते हैं कि हमारा प्यार सच्चा है। कैसे? हम ‘अपने फायदे की नहीं बल्कि दूसरे के फायदे की सोचेंगे।’ (1 कुरिं. 10:24) मिसाल के लिए, सम्मेलनों और अधिवेशनों में मददगार भाई सबसे पहले हॉल में जाते हैं। शायद उनका मन करे कि वे अपने और अपने परिवार के लिए सबसे बढ़िया सीट रख लें। ऐसा करने के बजाय, कई मददगार भाई ऐसी जगह बैठते हैं जहाँ ज़्यादातर लोगों को बैठना पसंद नहीं। इस तरह वे दिखाते हैं कि उनमें निस्वार्थ प्यार है। आप उनकी अच्छी मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?
17. जब एक मसीही गंभीर पाप कर बैठता है, तो सच्चा प्यार उसे क्या करने के लिए उभारेगा?
17 छिपे हुए पाप कबूल कीजिए और उन्हें दोहराइए मत। कुछ मसीहियों ने गंभीर पाप किए हैं और उन्हें छिपाए रखने की कोशिश की है। उन्हें शायद यह डर था कि कहीं उन्हें शर्मिंदा न होना पड़े या कहीं उनके पाप से दूसरों को दुख न पहुँचे। (नीति. 28:13) लेकिन पाप को छिपाए रखने से एक व्यक्ति दिखाता है कि उसमें प्यार नहीं है। ऐसा करके वह खुद को और दूसरों को नुकसान पहुँचाता है। कैसे? हो सकता है, यहोवा की पवित्र शक्ति मंडली पर काम करना बंद कर दे और मंडली की शांति खतरे में पड़ जाए। (इफि. 4:30) इसलिए अगर एक मसीही गंभीर पाप करता है, तो सच्चा प्यार उसे उभारेगा कि वह प्राचीनों को जाकर इस बारे में बताए और उनसे मदद ले।—याकू. 5:14, 15.
18. सच्चा प्यार क्या अहमियत रखता है?
18 प्यार सब गुणों में सबसे बड़ा है। (1 कुरिं. 13:13) इससे लोग पहचान सकते हैं कि यीशु के सच्चे चेले कौन हैं और कौन सचमुच यहोवा की मिसाल पर चलते हैं, जो प्यार का सोता है। (इफि. 5:1, 2) पौलुस ने कहा था कि अगर “मुझमें प्यार नहीं तो मैं कुछ भी नहीं।” (1 कुरिं. 13:2) तो फिर आइए हम सिर्फ “बातों” से नहीं बल्कि ‘अपने कामों से भी दिखाते रहें कि हम सच्चे दिल से प्यार करते हैं।’