मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
7-13 नवंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | भजन 27-31
“बाइबल बताती है कि भली पत्नी कैसी होती है”
इंसाइट-2 पेज 1183 पै 6
पत्नी
भली पत्नी। नीतिवचन अध्याय 31 में बताया गया है कि एक वफादार पत्नी कौन-कौन-से काम करती है और किस तरह खुश रहती है। इसमें बताया गया है कि उसके पति के लिए वह मूँगों से भी बढ़कर है। वह उस पर भरोसा कर सकता है। वह बहुत मेहनती है, बुनाई करती है, अपने परिवार के लिए कपड़े सिलती है, घर की ज़रूरतों के हिसाब से खरीददारी करती है, दाख की बारी में काम करती है, घरबार के साथ नौकरों का भी ध्यान रखती है, ज़रूरतमंदों की मदद करती है, अपने परिवार को सुंदर कपड़े पहनाती है, अपने हाथों से काम करके कुछ पैसे जोड़ती है ताकि भविष्य में ज़रूरत के वक्त वे पैसे काम आएँ, वह प्यार-भरी और समझदारी की बातें करती है, यहोवा का भय रखती है और भले काम करती है जिस वजह से उसका पति और उसके बेटे उसकी तारीफ करते हैं और उनका भी लोगों के बीच अच्छा नाम होता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि जिसने भली पत्नी पा ली है, उसने कुछ अनमोल पा लिया है और यहोवा की भी आशीष उस पर होती है।—नीत 18:22.
ढूँढ़े अनमोल रत्न
प्र11 8/1 पेज 29 पै 2, अँग्रेज़ी
आशा और बहुत-सी उम्मीदों का दिन
दूसरा, भाई मॉरिस ने नीतिवचन 27:21 पढ़ा, “जैसे चाँदी के लिये कुठाली और सोने के लिये भट्टी हैं, वैसे ही मनुष्य के लिये उसकी प्रशंसा है।” उन्होंने समझाया कि जैसे सोने और चाँदी को शुद्ध करने की ज़रूरत पड़ती है, उसी तरह हम भी तारीफ किए जाने पर शुद्ध हो सकते हैं। वह कैसे? हम असल में कैसे इंसान हैं, यह हमारी तारीफ करके पता लगाया जा सकता है। तारीफ किए जाने पर एक इंसान घमंडी हो सकता है, यहाँ तक कि यहोवा के साथ उसका रिश्ता कमज़ोर भी हो सकता है। वहीं दूसरी तरफ, इससे उसे यह एहसास हो सकता है कि आज वह जो कुछ है यहोवा की बदौलत ही है। साथ ही, यहोवा के स्तरों पर चलते रहने का उसका इरादा और भी पक्का हो सकता है। भाई मॉरिस ने विद्यार्थियों से कहा कि जब भी कोई उनकी तारीफ करे, तो वे उस तारीफ से फूले न समाएँ, बल्कि उस मौके पर यह जताएँ कि वे सही मायने में “यहोवा का भय” रखते हैं।
14-20 नवंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | सभोपदेशक 1-6
“मेहनत के सब कामों से खुशी पाइए”
प्र15 2/1 पेज 4-6, अँग्रेज़ी
अपनी मेहनत से खुशी कैसे पाएँ?
“यह भी परमेश्वर का दान है कि मनुष्य खाए-पीए और अपने सब परिश्रम में सुखी रहे।” (सभोपदेशक 3:13) अगर परमेश्वर चाहता है कि हम अपने काम से खुशी पाएँ, तो क्या उसे ही हमें नहीं बताना चाहिए कि हम यह खुशी कैसे पा सकते हैं? (यशायाह 48:17) उसने ऐसा किया है। अपने वचन बाइबल में उसने हमें यह बताया है। आइए, बाइबल में दी सलाह पर ध्यान दें कि हम अपने काम से कैसे खुशी पा सकते हैं।
काम के बारे में सही नज़रिया रखिए
शायद आपको अपने काम में बहुत दिमाग लगाना पड़े या शारीरिक मेहनत करनी पड़े या फिर कुछ हद तक दोनों ही करना पड़े, पर एक बात सच है कि “परिश्रम से सदा लाभ होता है।” (नीतिवचन 14:23) किस तरह का लाभ या फायदा? एक फायदा यह है कि इससे आप अपनी ज़रूरतें पूरी कर पाते हैं। यह सच है कि परमेश्वर ने हमसे वादा किया है कि वह हमारी ज़रूरतें पूरी करेगा जब हम उसकी सेवा पूरे दिल से करेंगे। (मत्ती 6:31, 32) लेकिन वह हमसे उम्मीद करता है कि हम भी अपनी तरफ से कमाने के लिए थोड़ी मेहनत करें।—2 थिस्सलुनीकियों 3:10.
हमें अपने काम के बारे में यह सोच रखनी चाहिए कि इससे हमारी ज़रूरतें पूरी होती हैं। और काम करके अपनी ज़रूरतें पूरी करना ही सही है। पच्चीस साल का जॉशुआ कहता है, “अपनी ज़रूरतें खुद पूरी करना आपके लिए ऐसा है मानो आपने कुछ पा लिया हो। अगर आप अपना खर्च खुद उठा पाते हैं, तो इसका मतलब है कि आपका काम करना सही है।”
इसके अलावा काम करने से हमारा आत्म-सम्मान बढ़ता है क्योंकि इसमें कड़ी मेहनत लगती है। जब हम मेहनत करते वक्त खुद के साथ थोड़ी सख्ती बरतते हैं, फिर चाहे हमारा काम हमें कितना भी उबाऊ या मुश्किल क्यों न लगे, तब हमें इस बात की खुशी होती है कि हमने वह काम करने के लिए जी नहीं चुराया, बल्कि मेहनत की। (नीतिवचन 26:14) इस तरह काम करने से हमें मन की संतुष्टि मिलती है। ऐरन कहता है, “पूरा दिन काम करने के बाद मुझे बहुत खुशी होती है। कई बार मैं थका हुआ होता हूँ और शायद किसी ने मेरी मेहनत पर ध्यान भी नहीं दिया होता है, फिर भी मुझे लगता है कि जैसे मैंने कुछ पा लिया है।”
पूरी लगन से काम कीजिए
बाइबल में ऐसे आदमी की तारीफ की गयी है, जो “कामकाज में निपुण” होता है और ऐसी स्त्री की जो “अपने हाथों से प्रसन्नता के साथ काम करती है।” (नीतिवचन 22:29; 31:13) लेकिन एक इंसान खुद-ब-खुद किसी काम में निपुण नहीं होता। इसके अलावा ज़्यादातर लोगों को ऐसा काम करना पसंद नहीं, जो उन्हें अच्छे से नहीं आता। इन्हीं वजह से कुछ लोग खुशी से काम नहीं कर पाते। हो सकता है कि उन्होंने वह काम अच्छे से करने के लिए पूरी कोशिश ही न की हो।
एक इंसान किसी भी काम को करने में खुशी पा सकता है, बशर्ते वह सही नज़रिया रखे, यानी अगर वह उस काम को अच्छी तरह करना सीखे। चौबीस साल का विलियम कहता है, “जब आप किसी काम को करने में अपना भरसक करते हैं और उससे होनेवाले फायदे देखते हैं, तो बहुत खुशी होती है। अगर आप काम सिर्फ ऊपरी तौर पर ही करें या उसे बस किसी तरह पूरा कर दें, तो आपको वह खुशी कभी भी नहीं मिलेगी।”
सोचिए कि आपके काम से दूसरों को कैसे फायदा होता है
अपना ध्यान सिर्फ इस बात पर मत लगाइए कि आप कितना पैसा कमाते हैं। इसके बजाय खुद से पूछिए, ‘यह काम मेरे लिए इतना ज़रूरी क्यों है? अगर यह काम पूरा न हो या अच्छे से न हो, तो क्या होगा? मेरे काम से दूसरों को कैसे फायदा होता है?’
सबसे आखिर में जो सवाल है, उस पर सोचना बहुत ज़रूरी है क्योंकि हमें अपने काम से तभी संतुष्टि मिलेगी जब हम यह देख पाएँगे कि इससे दूसरे लोगों को कैसे फायदा होता है। यीशु ने कहा था, “लेने से ज़्यादा खुशी देने में है।” (प्रेषितों 20:35) ग्राहकों और हमारे मालिक को तो हमारे काम से सीधे-सीधे फायदा होता ही है, लेकिन और भी लोग हैं जिन्हें हमारी मेहनत से फायदा होता है। वे हैं, हमारे परिवार के सदस्य और कुछ ज़रूरतमंद लोग।
परिवार के सदस्य। जब परिवार का मुखिया अपने परिवार के सदस्यों की ज़रूरतें पूरी करने के लिए मेहनत करता है, तो इससे वह उन्हें कम-से-कम दो तरीकों से फायदा दे रहा होता है। एक, वह इस बात का खयाल रखता है कि जीने के लिए जो ज़रूरी चीज़ें हैं जैसे रोटी, कपड़ा और मकान, वे उन्हें मिलें। इस तरह वह परमेश्वर से मिली अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करता है कि एक मुखिया को ‘अपनों की देखभाल करनी’ चाहिए। (1 तीमुथियुस 5:8) दूसरा, वह अपनी मिसाल से अपने घरवालों को सिखाता है कि कैसे कड़ी मेहनत करके रोटी कमाई जाती है। शेन कहता है, “मेरे पिता अच्छी तरह काम करने के मामले में एक अच्छी मिसाल हैं। वे एक ईमानदार इंसान हैं और उन्होंने अपनी ज़िंदगी के ज़्यादातर साल बढ़ई के तौर पर काम करने में लगाए। उनसे मैंने सीखा कि जब हम खुद अपने हाथ से काम करते हैं, तो हम ऐसी चीज़ें बना सकते हैं जो दूसरों के काम आती हैं।”
ज़रूरतमंद लोग। प्रेषित पौलुस ने मसीहियों को सलाह दी कि वे ‘कड़ी मेहनत करें, ताकि किसी ज़रूरतमंद को देने के लिए उनके पास कुछ हो।’ (इफिसियों 4:28) जब हम अपने और अपने परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, तब हम ज़रूरतमंदों की भी मदद कर पाते हैं। (नीतिवचन 3:27) इस तरह मेहनत करने से हमें वह खुशी मिल सकती है, जो दूसरों को देने से मिलती है।
जितना काम दिया गया है, उससे ज़्यादा कीजिए
यीशु ने पहाड़ी उपदेश में कहा, “अगर कोई अधिकारी तुझे जबरन सेवा में एक मील ले जाए, तो तू उसके साथ दो मील चला जा।” (मत्ती 5:41) आप इस उपदेश में दिया सिद्धांत अपने काम पर कैसे लागू कर सकते हैं? जितना ज़रूरी है सिर्फ उतना करने के बजाय, सोचिए कि आप और क्या कर सकते हैं। अपने लिए कुछ लक्ष्य रखिए। अपना काम और अच्छी तरह या और जल्दी करने की कोशिश कीजिए। छोटे-से-छोटा काम भी खुशी से कीजिए।
जब आप अपनी मरज़ी से ज़्यादा काम करते हैं, तब आप और भी खुशी से काम कर पाते हैं क्योंकि आप खुद वह काम करना चाहते हैं, न कि कोई आपसे ज़बरदस्ती वह काम करवा रहा है। (फिलेमोन 14) इस बारे में नीतिवचन 12:24 में दिए सिद्धांत पर ध्यान दीजिए, “कामकाजी लोग प्रभुता करते हैं, परन्तु आलसी बेगार में पकड़े जाते हैं।” यह बात सच है कि आज हममें से शायद ही कोई बँधुआ मज़दूर या गुलामों की तरह काम करता हो। लेकिन एक इंसान जब सिर्फ ऊपरी तौर पर काम करता है, तो उसे लगता है कि वह बँध-सा गया है और उसे हमेशा दूसरों की माँगे पूरी करनी पड़ती हैं। लेकिन जब एक व्यक्ति अपनी मरज़ी से ज़्यादा करता है, तो उसे लगता है कि उसकी ज़िंदगी उसके बस में है किसी और के नहीं। कौन-सा काम कब करना है, यह बात वह खुद तय कर पाता है या यूँ कहें कि वह अपनी मरज़ी का मालिक बन पाता है।
काम के अलावा और भी चीज़ों पर ध्यान दीजिए
कड़ी मेहनत तारीफ के काबिल है, लेकिन हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारी ज़िंदगी में काम के अलावा और भी बहुत सारी चीज़ें हैं। बाइबल हमें मेहनती बनने के लिए कहती है। (नीतिवचन 13:4) लेकिन वह यह नहीं कहती कि हमें रात-दिन सिर्फ काम ही करते रहना है। सभोपदेशक 4:6 में लिखा है, “चैन के साथ एक मुट्ठी उन दो मुट्ठियों से अच्छा है, जिनके साथ परिश्रम और मन का कुढ़ना हो।” इस आयत का क्या मतलब है? रात-दिन काम करनेवाले व्यक्ति को अपने काम से कभी खुशी नहीं मिलेगी, अगर उसकी पूरी ताकत और उसका समय वह काम करने में लग जाए। दरअसल उसका काम ऐसे होगा, जैसे हवा के पीछे भागना।
बाइबल हमें सिखाती है कि हम काम के बारे में सही नज़रिया रखें। इसमें लिखा है कि हमें काम करना चाहिए, लेकिन इसमें यह सलाह भी दी गयी है कि हम पहचानें कि “ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातें क्या हैं।” (फिलिप्पियों 1:10) ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातें क्या हैं? अपने परिवार और दोस्तों के साथ वक्त बिताना और इससे भी ज़रूरी परमेश्वर की उपासना से जुड़े काम करना, जैसे बाइबल पढ़ना और उस पर मनन करना।
जो अपने काम और बाकी चीज़ों के बीच संतुलन रखते हैं, वे अपने काम से और भी खुशी पाते हैं। विलियम, जिसका ज़िक्र पहले हुआ था, कहता है, ‘एक व्यक्ति जो पहले मेरे साथ काम करता था, संतुलित तरह से काम करने में एक अच्छी मिसाल है। वह कड़ी मेहनत करता है और उसका अपने ग्राहकों में अच्छा नाम है क्योंकि उसका काम अच्छा होता है। लेकिन शाम को समय होने पर वह अपना काम रोक देता है और अपने परिवार और उपासना पर ध्यान देता है। और पता है आपको, वह हमेशा खुश रहता है।’
[पेज 5 पर दिया बक्स]
वे अपनी कड़ी मेहनत को किस नज़र से देखते हैं
“जब मैं पूरे दिन काम करने के बाद थक जाता हूँ, तो मुझे लगता है कि मैंने कुछ पा लिया है और मुझे खुशी होती है। उस दिन मैंने सच में कड़ी मेहनत की होती है।”—निक।
“कड़ी मेहनत करना काम करने का सबसे अच्छा तरीका है। अगर आप सच में अच्छा काम करना चाहते हैं, तो सही तरीके से कीजिए।”—क्रिस्चियन।
“इंसान का शरीर ऐसे काम कर सकता है, जो हम सोच भी नहीं सकते। कड़ी मेहनत और दूसरों की मदद करके मुझे अपनी ज़िंदगी के लिए कदर दिखाना अच्छा लगता है।”—डेविड।
प्र15 2/1 पेज 6 पै 3-5, अँग्रेज़ी
अपनी मेहनत से खुशी कैसे पाएँ?
काम के अलावा और भी चीज़ों पर ध्यान दीजिए
कड़ी मेहनत तारीफ के काबिल है, लेकिन हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारी ज़िंदगी में काम के अलावा और भी बहुत सारी चीज़ें हैं। बाइबल हमें मेहनती बनने के लिए कहती है। (नीतिवचन 13:4) लेकिन वह यह नहीं कहती कि हमें रात-दिन सिर्फ काम ही करते रहना है। सभोपदेशक 4:6 में लिखा है, “चैन के साथ एक मुट्ठी उन दो मुट्ठियों से अच्छा है, जिनके साथ परिश्रम और मन का कुढ़ना हो।” इस आयत का क्या मतलब है? रात-दिन काम करनेवाले व्यक्ति को अपने काम से कभी खुशी नहीं मिलेगी, अगर उसकी पूरी ताकत और उसका समय वह काम करने में लग जाए। दरअसल उसका काम ऐसे होगा, जैसे हवा के पीछे भागना।
बाइबल हमें सिखाती है कि हम काम के बारे में सही नज़रिया रखें। इसमें लिखा है कि हमें काम करना चाहिए, लेकिन इसमें यह सलाह भी दी गयी है कि हम पहचानें कि “ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातें क्या हैं।” (फिलिप्पियों 1:10) ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातें क्या हैं? अपने परिवार और दोस्तों के साथ वक्त बिताना और इससे भी ज़रूरी परमेश्वर की उपासना से जुड़े काम करना, जैसे बाइबल पढ़ना और उस पर मनन करना।
जो अपने काम और बाकी चीज़ों के बीच संतुलन रखते हैं, वे अपने काम से और भी खुशी पाते हैं। विलियम, जिसका ज़िक्र पहले हुआ था, कहता है, ‘एक व्यक्ति जो पहले मेरे साथ काम करता था, संतुलित तरह से काम करने में एक अच्छी मिसाल है। वह कड़ी मेहनत करता है और उसका अपने ग्राहकों में अच्छा नाम है क्योंकि उसका काम अच्छा होता है। लेकिन शाम को समय होने पर वह अपना काम रोक देता है और अपने परिवार और उपासना पर ध्यान देता है। और पता है आपको, वह हमेशा खुश रहता है।’
21-27 नवंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | सभोपदेशक 7-12
“अपनी जवानी के दिनों में अपने सृजनहार को स्मरण रख”
प्र11 11/1 पेज 21 पै 1-6, अँग्रेज़ी
परमेश्वर के करीब आइए
परमेश्वर के प्रति अपने कर्तव्य को पूरा करना
क्या आपने कभी सोचा है, ‘ज़िंदगी का मकसद क्या है?’ यहोवा ने न सिर्फ हमें ऐसे सवाल करने की काबिलीयत दी है, बल्कि इनके जवाबों को जानने की गहरी इच्छा भी दी है। खुशी की बात है कि हमसे प्यार करनेवाले परमेश्वर ने हमें अँधेरे में नहीं रखा है। इस सवाल का जवाब उसने हमें अपने वचन बाइबल में दिया है। सभोपदेशक 12:13 में राजा सुलैमान के शब्दों पर ध्यान दीजिए।
ज़िंदगी से जुड़े सवालों के बारे में समझाने के लिए सुलैमान एकदम सही व्यक्ति था। वह बता सकता था कि सच्ची खुशी और ज़िंदगी का मकसद कैसे पाया जा सकता है। उसे परमेश्वर की तरफ से आम इंसानों से बढ़कर बुद्धि, ढेर सारा धन-दौलत और राजा का पद मिला था। इस वजह से वह इंसान की ज़िंदगी के बारे में बहुत कुछ समझ पाया। एक इंसान अपनी ज़िंदगी में जो कुछ हासिल करने की कोशिश करता है जैसे धन-दौलत पाना या अपना नाम ऊँचा करना, इस बारे में उसने ध्यान से खोजबीन की। (सभोपदेशक 2:4-9; 4:4) फिर परमेश्वर की पवित्र शक्ति की मदद से उसने यह जानकारी दी, “सब कुछ सुना गया; अन्त की बात यह है कि परमेश्वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर; क्योंकि मनुष्य का सम्पूर्ण कर्त्तव्य यही है।” इन शब्दों से पता चलता है कि इंसानों के लिए सबसे भला और खुशी और संतुष्टि देनेवाला काम कौन-सा है।
“परमेश्वर का भय मान।” ये शब्द पहली बार पढ़ने या सुनने में शायद हमें अच्छे नहीं लगें। लेकिन यहाँ भय मानने का मतलब है कि दिल में परमेश्वर के लिए सही तरह का डर पैदा करना। इस तरह का डर होने से हम उस गुलाम की तरह नहीं होंगे जो एक बहुत ही कठोर मालिक के गुस्सा हो जाने से डरता है, बल्कि ऐसे बच्चे की तरह होंगे जो अपने प्यार करनेवाले पिता को खुश करना चाहता है। परमेश्वर का भय मानने के बारे में समझाते हुए एक जगह ऐसा लिखा गया है, “परमेश्वर के सेवकों में उसके लिए विस्मय और श्रद्धा होना क्योंकि वे उससे प्यार करते हैं और उसकी महानता और शक्ति की कदर करते हैं।” जब हम इस तरह का भय रखते हैं, तो हम दिल से परमेश्वर की मरज़ी पूरी कर पाते हैं क्योंकि हम उससे प्यार करते हैं और यह जानते हैं कि वह भी हमसे प्यार करता है। ऐसा भय रखना सिर्फ दिल की एक भावना नहीं है, बल्कि अपने कामों से जताना है कि हम उसका भय रखते हैं। वह कैसे?
“उसकी आज्ञाओं का पालन कर।” परमेश्वर का भय होने से हम उसकी आज्ञा का पालन मन से करते हैं। हमें यह एहसास होता है कि यहोवा की आज्ञा पूरी करना ही हमारे लिए सही है। हमारा सृष्टिकर्ता होने के नाते उसे पता है कि हमारे जीने के लिए सबसे अच्छा तरीका क्या है। ठीक उस तरह जिस तरह कोई चीज़ बनानेवाली कंपनी या इंसान को पता होता है कि उस चीज़ का सही तरीके से इस्तेमाल कैसे करना चाहिए। इसके अलावा यहोवा हमारा भला चाहता है। वह हमें खुश देखना चाहता है और उसकी आज्ञाएँ हमारे भले के लिए ही हैं। (यशायाह 48:17) इस बारे में प्रेषित यूहन्ना ने कुछ इस तरह से बताया, “परमेश्वर से प्यार करने का मतलब यही है कि हम उसकी आज्ञाओं पर चलें; और उसकी आज्ञाएँ हम पर बोझ नहीं हैं।” (1 यूहन्ना 5:3) जब हम उसकी आज्ञाएँ मानते हैं, तो इससे पता चलता है कि हम उससे प्यार करते हैं। इसके अलावा हम भी उसका प्यार उसकी आज्ञाओं में देख पाते हैं।
“मनुष्य का सम्पूर्ण कर्त्तव्य यही है।” इन शब्दों से साफ हो जाता है कि परमेश्वर का भय मानने और उसकी आज्ञाओं का पालन करने की सबसे ज़रूरी वजह कौन-सी होनी चाहिए। वह है हमारा फर्ज़ यानी यह हमारा कर्तव्य है कि हम उसका भय मानें और आज्ञाओं का पालन करें। यहोवा हमारा सृष्टिकर्ता है, इसलिए हम अपनी ज़िंदगी के लिए उसके कर्ज़दार हैं। (भजन 36:9) इस वजह से हमें उसकी आज्ञाएँ मानना चाहिए। जब हम उसकी मरज़ी के मुताबिक ज़िंदगी जीते हैं, तो हम अपना कर्तव्य पूरा कर रहे होते हैं।
आखिर में हम क्या कहेंगे कि ज़िंदगी का मकसद क्या है? सरल शब्दों में कहें, तो परमेश्वर की इच्छा पूरी करना। अपनी ज़िंदगी को सही मकसद देने का इससे अच्छा तरीका नहीं है। क्यों न आप यहोवा की मरज़ी के बारे में और जानने की कोशिश करें और यह भी कि कैसे आप अपनी ज़िंदगी को उसके मुताबिक ढाल सकते हैं? यहोवा के साक्षियों को इस बारे में आपको बताने में खुशी होगी।