मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
5-11 अगस्त
पाएँ बाइबल का खज़ाना | 2 तीमुथियुस 1-4
“परमेश्वर ने हमें कायरता का रुझान नहीं दिया”
जवानो—अपनी तरक्की ज़ाहिर कीजिए
9 तीमुथियुस की मदद करने के लिए आगे चलकर पौलुस ने उसे याद दिलाया: “परमेश्वर ने हमें जो मन का रुझान दिया है वह कायरता का नहीं, बल्कि शक्ति का और प्यार का और स्वस्थ मन रखने का रुझान है।” (2 तीमु 1:7) “स्वस्थ मन” रखने का मतलब है, सोचने-समझने और समझदारी से काम करने की काबिलीयत। इसमें यह भी शामिल है कि आप हर हालात का सामना करें, भले ही हालात वैसे न हों जैसे आपने चाहे थे। कुछ जवान तनाव से बचने के लिए अपना पूरा समय सोने या टी.वी. देखने में बिता देते हैं। तो कुछ ड्रग्स या शराब का सहारा लेते हैं, या अकसर पार्टियों में मज़े करते या अनैतिक काम करते हैं। ऐसा करके वे दिखाते हैं कि वे कायर हैं और उनमें हालात का सामना करने की हिम्मत नहीं। मगर मसीहियों को साफ बताया गया है कि वे “ऐसे चालचलन को त्याग दें जो परमेश्वर की मरज़ी के खिलाफ है और दुनियावी ख्वाहिशों को त्याग दें और मौजूदा दुनिया की व्यवस्था में स्वस्थ मन से और परमेश्वर के स्तरों पर चलते हुए और उसकी भक्ति करते हुए जीवन बिताएँ।”—तीतु. 2:12.
‘दृढ़ और साहसी हो!’
7 पौलुस ने तीमुथियुस को लिखते हुए कहा: “परमेश्वर ने हमें भय की नहीं पर सामर्थ, . . . की आत्मा दी है। इसलिये हमारे प्रभु की गवाही से, . . . लज्जित न हो।” (2 तीमुथियुस 1:7, 8; मरकुस 8:38) इन शब्दों को पढ़ने के बाद हम खुद से पूछ सकते हैं: ‘क्या मैं अपने धर्म के विश्वासों से लज्जित हूँ, या मैं हिम्मतवाला हूँ? नौकरी की जगह पर (या स्कूल में) क्या मैं सभी को बताता हूँ कि मैं यहोवा का एक साक्षी हूँ, या अपनी इस पहचान को छिपाने की कोशिश करता हूँ? क्या मैं इस बात से शर्मिंदा हूँ कि मैं दूसरों से अलग हूँ, या मुझे इस बात का गर्व है कि यहोवा के साथ मेरे रिश्ते की वजह से मैं दूसरों से अलग नज़र आता हूँ?’ अगर कोई सुसमाचार सुनाने में या फिर अपने किसी ऐसे विश्वास के बारे में बताने से डरता है जिसे ज़्यादातर लोग पसंद नहीं करते, तो उसे यहोशू को दी गयी यहोवा की सलाह याद करनी चाहिए: “तुम्हें दृढ़ और साहसी होना चाहिये!” यह कभी मत भूलिए कि यह बात अहम नहीं कि हमारे साथ काम करनेवाले या साथ पढ़नेवाले हमारे बारे में क्या सोचते हैं, बल्कि यह बात अहमियत रखती है कि यहोवा और यीशु मसीह की हमारे बारे में क्या राय है।—गलतियों 1:10.
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13 तीमुथियुस एक ऐसा इंसान था जिसमें मज़बूत विश्वास था। पौलुस ने उसे ‘मसीह यीशु का एक बढ़िया सैनिक’ कहा और उसे यह सलाह दी, “कोई भी सैनिक खुद को दुनिया के कारोबार में नहीं लगाता ताकि वह उसे खुश कर सके जिसने उसे सेना में भरती किया है” (2 तीमु. 2:3, 4) आज यीशु के सभी चेले जिनमें 10 लाख से भी ज़्यादा पूरे समय के सेवक शामिल हैं, पौलुस की इस सलाह को मानने की कोशिश करते हैं। यह लालची दुनिया तरह-तरह के विज्ञापनों से उन्हें लुभाने की कोशिश करती है लेकिन वे इन्हें ठुकरा देते हैं। वे यह सिद्धांत याद रखते हैं, “उधार लेनेवाला, उधार देनेवाले का गुलाम होता है।” (नीति. 22:7) शैतान चाहता है कि हम अपना सारा समय और मेहनत दुनिया में पैसा कमाने और चीज़ें बटोरने में लगा दें। कभी-कभी कुछ लोग ऊँची शिक्षा, गाड़ी, घर यहाँ तक कि शादी के लिए बड़े-बड़े कर्ज़ लेते हैं। अगर हम सावधान न रहें तो हम ऐसे कर्ज़ में पड़ सकते हैं जिसे चुकाने में सालों लग जाएँ। जब हम सादगी-भरा जीवन जीते हैं, कर्ज़ नहीं लेते और कम पैसे खर्च करते हैं तो हम होशियारी से काम ले रहे होते हैं। इस तरह हम शैतान की इस लालची दुनिया के गुलाम नहीं बनते बल्कि यहोवा की सेवा करने के लिए आज़ाद रहते हैं।—1 तीमु. 6:10.
यहोवा के लोग “बुराई को त्याग” देते हैं
10 आज हमें मंडली में सच्चे मसीही धर्म के खिलाफ बगावत करनेवाले लोग आम तौर पर नज़र नहीं आते। लेकिन फिर भी हमारा सामना ऐसी शिक्षाओं से हो सकता है, जो बाइबल के खिलाफ हैं। ये शिक्षाएँ चाहे कहीं से भी हों, हमें उन्हें ठुकराने की ठान लेनी चाहिए। बुद्धिमानी इसी में होगी कि हम सच्चे मसीही धर्म के खिलाफ बगावत करनेवालों से कोई बातचीत न करें, न तो आमने-सामने, न इंटरनेट पर, और न ही किसी और तरीके से। हो सकता है हम ऐसे व्यक्ति की मदद करने के इरादे से उससे बातचीत करें, लेकिन ऐसा करके हम परमेश्वर की आज्ञा तोड़ रहे होंगे। परमेश्वर हमें आज्ञा देता है कि हम इस तरह की शिक्षाओं को ठुकराएँ, जी हाँ, उनसे पूरी तरह दूर रहें।
12-18 अगस्त
पाएँ बाइबल का खज़ाना | तीतुस 1–फिलेमोन
“तू प्राचीनों को नियुक्त कर”
आपने पूछा
हालाँकि शास्त्र इस बारे में बारीकी से नहीं समझाता कि पहली सदी में भाइयों को ज़िम्मेदारी के पद पर कैसे ठहराया जाता था, लेकिन कुछ आयतों में हमें इस बात का इशारा ज़रूर मिलता है कि यह कैसे किया जाता था। मिसाल के लिए, जब पौलुस और बरनबास अपने पहले मिशनरी दौरे के बाद घर लौट रहे थे, तो इस बारे में बाइबल बताती है: “पौलुस और बरनबास ने हर मंडली में उनके लिए बुज़ुर्ग [या “प्राचीन,” फुटनोट] ठहराए। उन्होंने इन बुज़ुर्गों को प्रार्थना और उपवास कर यहोवा के हाथ सौंपा जिस पर वे विश्वास लाए थे।” (प्रेषि. 14:23) इसके कई साल बाद, पौलुस ने अपने सफरी साथी तीतुस को लिखा: “मैं इस वजह से तुझे क्रेते में छोड़ आया था कि तू वहाँ के बिगड़े हुए हालात को सुधार सके और जैसे मैंने आदेश दिया था, तू शहर-शहर प्राचीनों को ठहरा सके।” (तीतु. 1:5) उसी तरह, ऐसा मालूम होता है कि कुछ इसी तरह का अधिकार तीमुथियुस को भी दिया गया था, जिसने प्रेषित पौलुस के साथ कई दौरे किए थे। (1 तीमु. 5:22) तो इससे साफ पता चलता है कि भाइयों को ज़िम्मेदारी के पद पर ठहराने का काम यरूशलेम में प्रेषित और बुज़ुर्ग नहीं, बल्कि सफरी निगरान किया करते थे।
बाइबल में दिए इस नमूने को ध्यान में रखते हुए, यहोवा के साक्षियों के शासी निकाय ने प्राचीन और सहायक सेवक ठहराने के तरीके में फेरबदल की है। एक सितंबर, 2014 से भाइयों को ज़िम्मेदारी के पद पर इस तरह ठहराया जा रहा है: हर सर्किट निगरान अपने सर्किट में की जा रही सिफारिशों की ध्यान से जाँच करता है। मंडली का दौरा करते वक्त, वह सिफारिश किए गए भाइयों को जानने की कोशिश करेगा, मुमकिन हो तो उनके साथ प्रचार में भी काम करेगा। सिफारिश किए गए भाइयों के बारे में प्राचीनों के निकाय के साथ चर्चा करने के बाद, यह सर्किट निगरान की ज़िम्मेदारी है कि वह अपने सर्किट की मंडलियों में प्राचीनों और सहायक सेवकों को ठहराए। इस तरह, अब भाइयों को ज़िम्मेदारी के पद पर ठहराने का इंतज़ाम पहली सदी के नमूने से ज़्यादा मेल खाता है।
तो फिर इस इंतज़ाम में कौन-कौन भूमिका निभाता है? हमेशा की तरह, घर के कर्मचारियों के लिए आध्यात्मिक भोजन का इंतज़ाम करने की खास ज़िम्मेदारी ‘विश्वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाले दास’ की है। (मत्ती 24:45-47) यह दास पवित्र शक्ति की मदद से शास्त्र में खोजबीन करता है, ताकि वह बाइबल सिद्धांतों को कारगर तरीके से लागू करने के लिए निर्देश दे सके। ये निर्देश दुनिया-भर की सभी मंडलियों को सही तरीके से काम करने में मदद देते हैं। विश्वासयोग्य दास सर्किट निगरानों और शाखा-समिति के सदस्यों को भी नियुक्त करता है। और शाखा दफ्तर उनकी निगरानी में आनेवाली मंडलियों को शासी निकाय के ज़रिए दिए गए निर्देश लागू करने में कारगर मदद देता है। प्राचीनों के सभी निकायों पर गंभीर ज़िम्मेदारी है कि वे भाइयों को परमेश्वर की मंडली में ज़िम्मेदारी के पद पर ठहराने की सिफारिश करते वक्त, उनकी शास्त्र पर आधारित योग्यताओं की अच्छी तरह जाँच करें। और हर सर्किट निगरान की गंभीर ज़िम्मेदारी है कि वह प्राचीनों के ज़रिए की गयी सिफारिशों की ध्यान से जाँच करे और इस बारे में प्रार्थना करे, और फिर जो भाई बाइबल में बतायी माँगों पर खरे उतर रहे हैं, उन्हें ज़िम्मेदारी के पद पर नियुक्त करे।
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प्र89 5/15 पेज 31 पै 5 (अँग्रेज़ी)
पाठकों के प्रश्न
क्रेते के लोगों की पूरी जाति के बारे में जो अपमानजनक बातें कही जाती थीं, उनसे पौलुस सहमत नहीं था। हम यह बात यकीन के साथ इसलिए कह सकते हैं क्योंकि पौलुस जानता था कि क्रेते में ऐसे मसीही भी थे जिनसे यहोवा खुश था और जिन्हें उसकी पवित्र शक्ति से अभिषिक्त किया गया था। (प्रेषितों 2:5, 11, 33) वहाँ इतने सारे मसीही थे कि “शहर-शहर” में मंडलियाँ थीं। यह सच है कि ये मसीही परिपूर्ण नहीं थे, फिर भी हम पक्के तौर पर कह सकते हैं कि वे झूठे, आलसी और पेटू नहीं थे। वरना उन पर यहोवा की आशीष नहीं होती। (फिलिप्पियों 3:18, 19; प्रकाशितवाक्य 21:8) क्रेते में ऐसे कई नेकदिल लोग रहे होंगे जो वहाँ की बदचलनी देखकर बहुत दुखी थे और मसीहियों का संदेश सुनने के लिए तैयार थे। इस तरह के नेक लोग आज भी सभी देशों में पाए जाते हैं।—यहेजकेल 9:4; कृपया प्रेषितों 13:48 से तुलना करें।
तीतुस, फिलेमोन और इब्रानियों को लिखी पत्रियों की झलकियाँ
15, 16—पौलुस ने फिलेमोन से यह क्यों नहीं कहा कि वह अपने गुलाम उनेसिमुस को आज़ाद कर दे? पौलुस अपना पूरा ध्यान अपने काम पर लगाना चाहता था। और उसका काम था, ‘परमेश्वर के राज्य का प्रचार करना और प्रभु यीशु मसीह की बातें सिखाना।’ इसलिए उसने खुद को सामाजिक समस्याओं में नहीं उलझाया, जैसे गुलामी बंद करो।—प्रेरि. 28:31.
19-25 अगस्त
पाएँ बाइबल का खज़ाना | इब्रानियों 1-3
“नेकी से प्यार कीजिए और बुराई से नफरत कीजिए”
महान राजा, मसीह की महिमा कीजिए!
8 भजन 45:6 (एन.डब्ल्यू.) पढ़िए। सन् 1914 में यहोवा ने अपने बेटे को स्वर्ग में मसीहाई राज का राजा ठहराया। ‘यीशु के राज का राजदंड सीधाई का राजदंड है,’ इसलिए हम यकीन रख सकते हैं कि उसके राज में कभी कोई पक्षपात नहीं होगा और वह हमेशा यहोवा के स्तरों के मुताबिक न्याय करेगा। उसे राजा बनने का पूरा हक है क्योंकि ‘परमेश्वर उसकी राजगद्दी है,’ यानी यहोवा ने उसे राजा ठहराया है। और-तो-और, यीशु की राजगद्दी “सदा सर्वदा” बनी रहेगी। यहोवा के ठहराए राजा के अधीन रहकर उसकी सेवा करना हमारे लिए क्या ही गर्व की बात है!
महान राजा, मसीह की महिमा कीजिए!
7 भजन 45:7 पढ़िए। यीशु नेकी से बहुत प्यार करता था और ऐसी हर बात से नफरत करता था, जिससे उसके पिता का अनादर हो, इसलिए यहोवा ने मसीहाई राज के राजा के तौर पर उसका अभिषेक किया। परमेश्वर ने यीशु के “साथियों” से, यानी दाविद के वंश से आए यहूदा के बाकी राजाओं से कहीं बढ़कर, यीशु का “हर्ष के तेल” से अभिषेक किया। वह कैसे? पहला, यीशु का अभिषेक खुद यहोवा ने किया था। दूसरा, यहोवा ने उसका अभिषेक राजा और महायाजक, दोनों के तौर पर किया था। (भज. 2:2; इब्रा. 5:5, 6) तीसरा, यीशु का अभिषेक तेल से नहीं, बल्कि पवित्र शक्ति से किया गया था। साथ ही, यीशु धरती से नहीं मगर स्वर्ग से राज करता है।
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इंसाइट-1 पेज 1185 पै 1
छवि
क्या यीशु शुरू से ही अपने पिता की हू-ब-हू छवि रहा है?
परमेश्वर का पहलौठा बेटा, जो बाद में यीशु कहलाया, अपने पिता की छवि है। (2कुर 4:4) परमेश्वर ने इंसानों की सृष्टि करते वक्त ज़रूर यीशु से ही यह बात कही होगी, ‘आओ हम इंसान को अपनी छवि में बनाएँ।’ (उत 1:26; यूह 1:1-3; कुल 1:15, 16) जब इस बेटे की सृष्टि हुई थी, तब से वह अपने पिता की छवि रहा था। जब वह धरती पर एक परिपूर्ण इंसान बनकर आया, तो उसके गुण और उसका स्वभाव बिलकुल अपने पिता की तरह था। एक इंसान के नाते वह जिस हद तक अपने पिता के गुण दर्शा सकता था, उस हद तक उसने दर्शाया। इसलिए वह कह सका, “जिसने मुझे देखा है उसने पिता को भी देखा है।” (यूह 14:9; 5:17, 19, 30, 36; 8:28, 38, 42) फिर जब यीशु को दोबारा ज़िंदा करके स्वर्ग में एक अदृश्य शरीर दिया गया और उसके पिता ने उसे “स्वर्ग में और धरती पर सारा अधिकार” दिया, तो वह पहले से ज़्यादा अपने पिता की छवि बन गया। (1पत 3:18; मत 28:18) उस समय परमेश्वर ने यीशु को “पहले से भी ऊँचा पद देकर” महान किया। इस वजह से अब वह पहले से कहीं ज़्यादा परमेश्वर की महिमा झलकाता है। धरती पर आने से पहले जितनी महिमा झलकाता था, उससे कहीं ज़्यादा। (फिल 2:9; इब्र 2:9) इसलिए हम कह सकते हैं कि आज वह “परमेश्वर की हू-ब-हू छवि है।”—इब्र 1:2-4.
इंसाइट-1 पेज 1063 पै 7
स्वर्ग
हालाँकि भजन 102:25, 26 के शब्द यहोवा परमेश्वर पर लागू होते हैं, लेकिन प्रेषित पौलुस ने ये शब्द यीशु मसीह पर लागू किए। वह इसलिए क्योंकि परमेश्वर के इस इकलौते बेटे ने उसके साथ मिलकर आकाश और धरती बनायी थी। पौलुस ने कहा कि आकाश और धरती भले ही मिट जाएँ, मगर यीशु सदा कायम रहेगा। परमेश्वर चाहे तो आकाश और धरती को ‘ऐसे लपेटकर रख सकता है जैसे एक चोगे को’ रख दिया जाता है।—इब्र 1:1, 2, 8, 10-12; कृपया 1पत 2:3, फुटनोट से तुलना कीजिए।
26 अगस्त–1 सितंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | इब्रानियों 4-6
“परमेश्वर के विश्राम में दाखिल होने के लिए अपना भरसक कीजिए”
परमेश्वर का विश्राम—इसका मतलब क्या है?
3 दो सबूतों के आधार पर हम इस नतीजे पर पहुँच सकते हैं कि सातवाँ दिन पहली सदी तक जारी रहा। पहले हम यीशु के उन शब्दों पर गौर करेंगे जो उसने उन विरोधियों से कहे थे, जिन्होंने सब्त के दिन चंगाई करने के लिए यीशु की निंदा की थी। उनके हिसाब से चंगाई करना एक काम था। प्रभु यीशु ने उनसे कहा: “मेरा पिता अब तक काम करता आ रहा है और मैं भी काम करता रहता हूँ।” (यूह. 5:16, 17) यीशु क्या कहना चाह रहा था? यीशु पर सब्त के दिन भी काम करने का जो इलज़ाम लगाया गया, उसका उसने इस तरह जवाब दिया: “मेरा पिता अब तक काम करता आ रहा है।” दूसरे शब्दों में यीशु उनसे यह कह रहा था: ‘मैं और मेरा पिता दोनों एक ही तरह का काम कर रहे हैं। अगर मेरा पिता हज़ारों सालों के लंबे सब्त के दौरान काम कर रहा है तो मेरे सब्त के दिन काम करने में क्या बुराई है।’ इस तरह यीशु ने दिखाया कि धरती के मामले में परमेश्वर का महान विश्राम दिन यानी सातवाँ दिन यीशु के दिनों में खत्म नहीं हुआ था।
4 दूसरा सबूत हमें प्रेषित पौलुस से मिलता है। उसने परमेश्वर के विश्राम के बारे में उत्पत्ति 2:2 का हवाला दिया और फिर लिखा: “हमने विश्वास दिखाया है और इसलिए उस विश्राम में दाखिल होते हैं।” (इब्रा. 4:3, 4, 6, 9) इससे पता चलता है कि सातवाँ दिन पौलुस के दिन तक चल रहा था। वह दिन और कितना लंबा होता?
5 इस सवाल का जवाब जानने से पहले हमें सातवें दिन के मकसद को याद रखना होगा। उत्पत्ति 2:3 में वह मकसद बताया गया है: “परमेश्वर ने सातवें दिन को आशीष दी और पवित्र ठहराया।” उस दिन को “पवित्र ठहराया” गया यानी यहोवा के ज़रिए शुद्ध किया गया या अलग रखा गया ताकि उसका मकसद पूरा किया जा सके। यह मकसद था कि आज्ञाकारी स्त्री-पुरुष धरती की देखभाल करेंगे और इस पर हमेशा-हमेशा के लिए जीएँगे। (उत्प. 1:28) इसी मकसद को पूरा करने के लिए यहोवा परमेश्वर और “सब्त के दिन का प्रभु” यीशु मसीह दोनों ‘अब तक काम करते आ रहे हैं।’ (मत्ती 12:8) जब तक मसीह के हज़ार साल के शासन में यह मकसद पूरा नहीं हो जाता तब तक परमेश्वर का विश्राम दिन चलता रहेगा।
परमेश्वर का विश्राम—इसका मतलब क्या है?
6 आदम और हव्वा को परमेश्वर का मकसद अच्छी तरह समझाया गया था मगर फिर भी उन्होंने उसकी बात नहीं मानी। बेशक आदम और हव्वा वे पहले इंसान थे, जिन्होंने परमेश्वर की आज्ञा तोड़ी मगर उनके बाद लाखों लोगों ने वैसा ही किया। यहाँ तक कि चुना हुआ इसराएल राष्ट्र भी उनके नक्शे-कदम पर चला। और पौलुस ने पहली सदी के मसीहियों को चिताया कि वे भी उन इसराएलियों की तरह बन सकते हैं। उसने लिखा: “इसलिए आओ हम उस विश्राम में दाखिल होने के लिए अपना भरसक करें, कहीं ऐसा न हो कि हममें से कोई पाप करने लगे और आज्ञा न मानने के उनके ढर्रे में पड़ जाए।” (इब्रा. 4:11) गौर कीजिए पौलुस ने आज्ञा न मानने की बात को परमेश्वर के विश्राम दिन में प्रवेश करने से जोड़ा। इसका हमारे लिए क्या मतलब है? क्या इसका मतलब यह है कि अगर हम परमेश्वर के मकसद के खिलाफ काम करें तो हम उसके विश्राम दिन में प्रवेश नहीं कर पाएँगे? इस सवाल का जवाब जानना हमारे लिए बेहद ज़रूरी है, जिसके बारे में हम आगे सीखेंगे। आइए अब हम देखें कि इसराएलियों के बुरे उदाहरण से हम परमेश्वर के विश्राम दिन में प्रवेश करने के बारे में और क्या सीख सकते हैं।
परमेश्वर का विश्राम—इसका मतलब क्या है?
16 बेशक, आज उद्धार पाने के लिए कोई भी मसीही मूसा का कोई नियम मानने की ज़िद्द नहीं करेगा। पौलुस ने परमेश्वर की प्रेरणा से इफिसुस के मसीहियों को साफ-साफ लिखा: “तुम्हारा उद्धार इसी महा-कृपा की वजह से, विश्वास के ज़रिए किया गया है। और यह इंतज़ाम तुम्हारी अपनी वजह से नहीं है, बल्कि यह परमेश्वर का तोहफा है। नहीं! यह उद्धार तुम्हारे कामों की वजह से नहीं है, जिससे किसी भी इंसान के पास शेखी मारने की कोई वजह न हो।” (इफि. 2:8, 9) तो फिर मसीहियों का परमेश्वर के विश्राम में दाखिल होने का क्या मतलब है? यहोवा ने सातवाँ दिन यानी अपना विश्राम दिन धरती के लिए अपना शानदार मकसद पूरा करने के लिए अलग रखा था। आज यहोवा अपने संगठन के ज़रिए अपना मकसद ज़ाहिर करता है, अगर हम उसके मुताबिक काम करें तो हम परमेश्वर के विश्राम में दाखिल हो सकेंगे।
17 लेकिन अगर हम बाइबल की उन सलाहों को कम आँकेंगे, जो हमें विश्वासयोग्य दास के ज़रिए मिलती हैं और अपनी ही इच्छा के मुताबिक चलेंगे, तो हम यहोवा के मकसद के खिलाफ जा रहे होंगे। इससे यहोवा के साथ हमारे रिश्ते में दरार पड़ सकती है। अगले लेख में हम कुछ ऐसे हालात पर गौर करेंगे जिनका असर परमेश्वर के लोगों पर होता है और चर्चा करेंगे कि इन मामलों में हम जो फैसले करते हैं उनसे कैसे ज़ाहिर होगा कि हम वाकई परमेश्वर के विश्राम में दाखिल हुए हैं या नहीं।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
आपने पूछा
इब्रानियों 4:12 में बताया “परमेश्वर का वचन” क्या है जो “जीवित है और ज़बरदस्त ताकत रखता है”?
▪ आस-पास की आयतें दिखाती हैं कि प्रेषित पौलुस बाइबल में दिए परमेश्वर के संदेश या उसके मकसद की बात कर रहा था।
हमारी किताबों-पत्रिकाओं में अकसर इब्रानियों 4:12 का हवाला यह बताने के लिए दिया जाता है कि परमेश्वर का वचन बाइबल है, जिसमें लोगों की ज़िंदगी बदलने की ताकत है। और इस आयत को इस तरह समझाना सही भी है। लेकिन आस-पास की आयतों से पता चलता है कि “परमेश्वर का वचन” बाइबल नहीं बल्कि परमेश्वर का मकसद है। पौलुस इब्रानी मसीहियों को बढ़ावा दे रहा था कि वे परमेश्वर के मकसदों के मुताबिक काम करें। इनमें से कई मकसद पवित्र शास्त्र में दिए गए हैं। पौलुस ने उन इसराएलियों की मिसाल दी जिन्हें मिस्र की गुलामी से छुड़ाया गया था। उनके पास वादा किए गए देश में जाने की बढ़िया आशा थी जिसमें “दूध और मधु की धारा बहती है।” वहाँ वे सही मायनों में विश्राम पा सकते थे।—निर्ग. 3:8; व्यव. 12:9, 10.
यह था परमेश्वर का मकसद। मगर बाद में इसराएलियों ने अपने दिल कठोर कर लिए और उन्होंने परमेश्वर पर विश्वास नहीं किया। इसलिए उनमें से ज़्यादातर इस विश्राम में दाखिल नहीं हो पाए। (गिन. 14:30; यहो. 14:6-10) मगर पौलुस ने आगे कहा कि “परमेश्वर के विश्राम में दाखिल होने का वादा” अब तक बना हुआ है। (इब्रा. 3:16-19; 4:1) वह “वादा” परमेश्वर के मकसद का भाग है। इब्रानी मसीहियों की तरह हम भी उस मकसद के बारे में सीख सकते हैं और उसके मुताबिक काम कर सकते हैं। यह वादा शास्त्र पर आधारित है, इस बात पर ज़ोर देने के लिए पौलुस ने उत्पत्ति 2:2 और भजन 95:11 में से कुछ बातें बतायीं।
क्या यह बात हमारे दिल को नहीं छू जाती कि “परमेश्वर के विश्राम में दाखिल होने का वादा अब तक है”? हमें बाइबल की इस आशा पर यकीन है कि हम परमेश्वर के विश्राम में दाखिल हो सकते हैं और हमने इसके लिए कदम भी उठाए हैं। ये कदम क्या हैं? ये कदम मूसा के कानून का पालन करना या कोई और काम करके यहोवा की मंज़ूरी पाना नहीं हैं। इसके बजाय, परमेश्वर ने अपने मकसद के बारे में जो बताया है, उसके मुताबिक हमने पूरे विश्वास के साथ काम किया है और आगे भी करते रहेंगे। इसके अलावा, जैसा इस लेख में पहले बताया गया है कि पूरी दुनिया में हज़ारों लोग बाइबल का अध्ययन कर रहे हैं और परमेश्वर के मकसद के बारे में सीख रहे हैं। इसका कइयों पर इतना असर हुआ है कि उन्होंने अपनी ज़िंदगी में बदलाव किया है, विश्वास किया है और वे बपतिस्मा लेकर मसीही बन गए हैं। यह बात साफ दिखाती है कि “परमेश्वर का वचन जीवित है और ज़बरदस्त ताकत रखता है।” बाइबल में बताए परमेश्वर के मकसद का हमारी ज़िंदगी पर पहले से ही असर हुआ है और आगे भी होता रहेगा।
इंसाइट-1 पेज 1139 पै 2
आशा
इंसानों को हमेशा की ज़िंदगी की आशा मिली है। और जिन लोगों को ‘स्वर्ग का बुलावा’ मिला है, उन्हें अनश्वरता भी पाने की आशा मिली है। (इब्र 3:1) यह आशा बिलकुल पक्की है और दो बातों की वजह से इस पर पूरा यकीन किया जा सकता है। इन दो बातों के बारे में परमेश्वर का झूठ बोलना नामुमकिन है। ये दो बातें हैं, परमेश्वर का वादा और उसकी शपथ। यह आशा मसीह की वजह से मुमकिन है, जो अब स्वर्ग में अमर जीवन पा चुका है। इसलिए कहा गया है कि यह आशा “हमारी ज़िंदगी के लिए एक लंगर है, जो पक्की और मज़बूत है। और यह आशा हमें परदे के उस पार ले जाती है [ठीक जैसे प्रायश्चित के दिन महायाजक परम-पवित्र भाग के अंदर जाता था], जहाँ हमारा अगुवा यीशु हमारी खातिर दाखिल हो चुका है। वह हमेशा के लिए एक महायाजक बना ताकि वह मेल्कीसेदेक जैसा याजक हो।”—इब्र 6:17-20.