अध्ययन लेख 2
गीत 19 प्रभु का संध्या-भोज
क्या आप साल के सबसे खास दिन के लिए तैयार हैं?
“मेरी याद में ऐसा ही किया करना।”—लूका 22:19.
क्या सीखेंगे?
स्मारक क्यों हमारे लिए इतना खास है, हम इसके लिए कैसे तैयारी कर सकते हैं और इसमें हाज़िर होने के लिए कैसे दूसरों की मदद कर सकते हैं?
1. स्मारक का दिन, साल का सबसे खास दिन क्यों होता है? (लूका 22:19, 20)
यहोवा के लोग हर साल यीशु की कुरबानी याद करते हैं। इसे स्मारक भी कहा जाता है। यही एक ऐसी घटना थी जिसे याद करने की आज्ञा यीशु ने अपने चेलों को दी थी। यह हमारे लिए साल का सबसे खास दिन होता है। (लूका 22:19, 20 पढ़िए।) हम सबको इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार रहता है। आइए इसकी कुछ वजहों पर ध्यान दें।
2. हमें क्यों स्मारक का बेसब्री से इंतज़ार रहता है?
2 स्मारक की वजह से हम इस बात पर ध्यान दे पाते हैं कि फिरौती बलिदान हमारे लिए कितना अनमोल है और इससे कितने फायदे हो सकते हैं। हम इस बारे में भी सोच पाते हैं कि हम कैसे यीशु के बलिदान के लिए अपनी कदर ज़ाहिर कर सकते हैं। (2 कुरिं. 5:14, 15) हमें ‘एक-दूसरे का हौसला बढ़ाने’ का भी मौका मिलता है। (रोमि. 1:12) हर साल ऐसे बहुत-से भाई-बहन स्मारक में आते हैं, जो कुछ समय से सभाओं में नहीं आ रहे हैं। उनमें से कुछ तो यहोवा के पास लौट आते हैं, क्योंकि इस मौके पर भाई-बहन बहुत प्यार से उनका स्वागत करते हैं। और दिलचस्पी रखनेवाले कई लोग जब स्मारक में आते हैं, तो वे वहाँ जो देखते और सुनते हैं, उस वजह से वे बाइबल अध्ययन करना शुरू कर देते हैं और जीवन की राह पर चलने लगते हैं। इस सब की वजह से स्मारक का दिन हमारे लिए बहुत खास है!
3. स्मारक की वजह से पूरी दुनिया में यहोवा के लोगों के बीच एकता का बंधन कैसे मज़बूत होता है? (तसवीर भी देखें।)
3 हमें इसलिए भी स्मारक का बेसब्री से इंतज़ार रहता है, क्योंकि इससे हमारे बीच एकता का बंधन मज़बूत हो जाता है। जैसे-जैसे दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में सूरज ढलता है, यहोवा के लोग स्मारक मनाने के लिए इकट्ठा होते हैं। हम सब एक ही विषय पर भाषण सुनते हैं, जिसमें समझाया जाता है कि फिरौती बलिदान हमारे लिए क्यों इतना मायने रखता है। हम यहोवा की महिमा करने के लिए दो गीत गाते हैं और लोगों में रोटी और दाख-मदिरा फिरायी जाती है। इस मौके पर जो चार प्रार्थनाएँ की जाती हैं, उनके आखिर में हम दिल से “आमीन” कहते हैं। 24 घंटे के अंदर पूरी दुनिया में सभी मंडलियाँ एक ही तरीके से स्मारक मनाती हैं। तो सोचिए, जब यहोवा और यीशु स्वर्ग से देखते होंगे कि हम सब किस तरह एक होकर उनके लिए अपनी कदर ज़ाहिर कर रहे हैं, तो उन्हें कितनी खुशी होती होगी!
4. इस लेख में हम क्या जानेंगे?
4 इस लेख में हम तीन सवालों के जवाब जानेंगे: हम स्मारक के लिए अपना दिल कैसे तैयार कर सकते हैं? इससे फायदा पाने के लिए हम दूसरों की कैसे मदद कर सकते हैं? और जो भाई-बहन कुछ समय से सभाओं में नहीं आ रहे हैं, उनकी हम कैसे मदद कर सकते हैं? इन सवालों के जवाब जानने से हम उस खास दिन के लिए तैयार हो पाएँगे।
स्मारक के लिए अपना दिल तैयार कीजिए
5. (क) हमें क्यों इस बारे में सोचना चाहिए कि फिरौती बलिदान हमारे लिए कितना अनमोल है? (भजन 49:7, 8) (ख) यीशु क्यों मरा? वीडियो से आपने क्या सीखा?
5 स्मारक के लिए अपना दिल तैयार करने के कई तरीके हैं। एक अहम तरीका है, इस बारे में सोचना कि फिरौती बलिदान हमारे लिए कितना अनमोल है और इससे कितना कुछ मुमकिन हो पाया है। देखा जाए तो पाप और मौत से छुटकारा पाने के लिए हम खुद कुछ नहीं कर सकते थे। (भजन 49:7, 8 पढ़िए; यीशु क्यों मरा? वीडियो भी देखें।)a इसलिए यहोवा और यीशु ने हमारी खातिर बहुत भारी कीमत चुकायी। यहोवा ने हमें छुड़ाने के लिए अपने बेटे का बलिदान दिया। (रोमि. 6:23) सोचिए यहोवा और यीशु ने हमारे लिए कितना कुछ सहा! जितना ज़्यादा हम इस बारे में सोचेंगे, उतना ही फिरौती के लिए हमारी कदर बढ़ती जाएगी। यहोवा और यीशु ने हमारी खातिर जो-जो त्याग किए हैं, आइए उनमें से कुछ पर ध्यान दें। लेकिन पहले हम फिरौती के इंतज़ाम पर एक नज़र डालेंगे।
6. फिरौती का क्या मतलब है और यीशु ने क्यों अपना जीवन फिरौती के तौर पर दिया?
6 फिरौती वह कीमत होती है जो किसी को छुड़ाने या वापस पाने के लिए दी जाती है। जब पहले पुरुष आदम को बनाया गया, तो वह परिपूर्ण था और हमेशा-हमेशा के लिए जी सकता था। लेकिन फिर उसने पाप किया और हमेशा जीने का मौका गँवा दिया। यह मौका उसके बच्चों के हाथ से भी निकल गया। आदम ने जो खोया था, उसे वापस पाने के लिए यीशु ने अपना परिपूर्ण जीवन बलिदान किया। जब तक यीशु धरती पर था, “उसने कोई पाप नहीं किया, न ही उसके मुँह से छल की बातें निकलीं।” (1 पत. 2:22) तो जब उसकी मौत हुई, वह परिपूर्ण था, ठीक जैसे आदम पाप करने से पहले परिपूर्ण था। इसलिए अपना परिपूर्ण जीवन बलिदान करके यीशु ने फिरौती का बराबर दाम चुकाया।—1 कुरिं. 15:45; 1 तीमु. 2:6.
7. जब यीशु धरती पर था, तो उसने किन मुश्किलों का सामना किया?
7 जब यीशु धरती पर था तो उसने कई मुश्किलों का सामना किया, फिर भी उसने हमेशा अपने पिता यहोवा की आज्ञा मानी। जब यीशु छोटा था तो उसे अपने अपरिपूर्ण माता-पिता के अधीन रहना था, जबकि वह परिपूर्ण था। (लूका 2:51) और जब वह एक नौजवान था, तो उस पर यह दबाव आया होगा कि वह अपने मम्मी-पापा का कहना ना माने या यहोवा का वफादार ना रहे। फिर जब वह बड़ा हुआ, तो शैतान ने उसे फुसलाने की कोशिश की, यहाँ तक कि उसने यीशु पर सीधे-सीधे यहोवा से गद्दारी करने का दबाव डाला। (मत्ती 4:1-11) शैतान ने मानो कसम खा ली थी कि वह यीशु से पाप करवाकर ही रहेगा, ताकि वह फिरौती का दाम ना चुका सके।
8. यीशु को और किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा?
8 जब यीशु ने धरती पर अपनी सेवा शुरू की, तो उसे कुछ और मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उसके दुश्मनों ने उसे सताया, यहाँ तक कि उसे मार डालने की कोशिश की। (लूका 4:28, 29; 13:31) उसे अपने चेलों की कमज़ोरियाँ भी सहनी पड़ीं। (मर. 9:33, 34) फिर जब उस पर मुकदमा चलाया गया, तो लोगों ने उसका मज़ाक उड़ाया और उसे बहुत तड़पाया। उस पर एक अपराधी की तरह बेरहमी से ज़ुल्म किए गए। (इब्रा. 12:1-3) अपनी ज़िंदगी के आखिरी पलों में वह जिस दर्द और पीड़ा से गुज़रा, वह उसे खुद ही सहनी पड़ी, क्योंकि उस वक्त यहोवा का साया उस पर नहीं था।b (मत्ती 27:46) इस सबके बाद आखिर में उसने दम तोड़ दिया।
9. यीशु ने हमारे लिए जो बलिदान दिया, उसके बारे में सोचकर हमें कैसा लगता है? (1 पतरस 1:8)
9 फिरौती देने के लिए यीशु ने सच में एक भारी कीमत चुकायी! जब हम इस बारे में सोचते हैं कि यीशु ने हमारी खातिर कितना कुछ सहा, तो हमारा दिल उसके लिए प्यार और कदरदानी से भर जाता है।—1 पतरस 1:8 पढ़िए।
10. फिरौती की कीमत चुकाने के लिए यहोवा ने क्या कुछ सहा?
10 अब ज़रा ध्यान दीजिए कि यहोवा को क्या सहना पड़ा ताकि यीशु फिरौती की कीमत चुका सके। एक पिता और बेटे का रिश्ता बहुत मज़बूत होता है। तो कल्पना कीजिए कि यहोवा और यीशु का रिश्ता कितना मज़बूत रहा होगा! (नीति. 8:30) ज़रा सोचिए, जब यहोवा ने देखा होगा कि यीशु धरती पर कितनी मुश्किलें सह रहा है तो उस पर क्या बीती होगी! जब उसने देखा होगा कि लोग कैसे उसके बेटे को सता रहे हैं, उसे ठुकरा रहे हैं और उस पर ज़ुल्म कर रहे हैं, तो उसका कलेजा छलनी हो गया होगा!
11. समझाइए कि जब यीशु को मार डाला गया, तो यहोवा को कैसा लगा होगा।
11 जिस माँ-बाप के बच्चे की मौत हो गयी है, वह अच्छी तरह जानता है कि एक बच्चे को खोने का गम क्या होता है। वैसे तो हमें पूरा विश्वास है कि जो अब नहीं रहे, उन्हें यहोवा एक दिन ज़िंदा कर देगा, फिर भी अपनों की मौत का दर्द सहना बरदाश्त से बाहर होता है। तो सोचिए, ईसवी सन् 33 में नीसान 14 को जब यहोवा ने देखा होगा कि किस तरह उसके प्यारे बेटे को तड़पा-तड़पाकर मार डाला गया, तब उसे कितना दर्द हुआ होगा!c—मत्ती 3:17.
12. हम स्मारक के लिए अपना दिल कैसे तैयार कर सकते हैं?
12 स्मारक आने तक क्यों ना अपने निजी अध्ययन में या पारिवारिक उपासना में फिरौती के बारे में और अच्छी तरह अध्ययन करें? आप चाहें तो यहोवा के साक्षियों के लिए खोजबीन गाइड या दूसरे प्रकाशनों की मदद से इस विषय पर खोजबीन कर सकते हैं ताकि आप इसे और अच्छी तरह समझ सकें।d इसके अलावा हमारी मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा-पुस्तिका में स्मारक की बाइबल पढ़ाई का जो शेड्यूल दिया गया है, उसके मुताबिक बाइबल पढ़िए। और स्मारक के दिन ‘सुबह की उपासना’ का जो खास कार्यक्रम आएगा, उसे भी ज़रूर देखिए। जब हम इस तरह स्मारक के लिए अपना दिल तैयार करेंगे, तो हम स्मारक से फायदा पाने में दूसरों की भी मदद कर पाएँगे।—एज्रा 7:10.
स्मारक से फायदा पाने में दूसरों की मदद कीजिए
13. लोगों को स्मारक से फायदा हो, इसके लिए हमें सबसे पहले क्या करना होगा?
13 स्मारक से फायदा पाने के लिए हम दूसरों की कैसे मदद कर सकते हैं? सबसे पहले तो हमें लोगों को इसके लिए न्यौता देना होगा। हम प्रचार करके तो लोगों को न्यौता देंगे ही, पर हम कुछ और लोगों के नाम भी लिख सकते हैं, जिन्हें हम बुलाना चाहते हैं। जैसे, हमारे रिश्तेदार, साथ काम करनेवाले, साथ पढ़नेवाले और दूसरे लोग। अगर हमारे पास छपे हुए ज़्यादा न्यौते ना हों, तो हम अपने फोन या टैबलेट से लोगों को न्यौता भेज सकते हैं। आइए हम ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को न्यौता दें, क्या पता कौन आ जाए!—सभो. 11:6.
14. एक उदाहरण देकर समझाइए कि जब हम किसी जान-पहचानवाले को अलग से न्यौता देते हैं, तो क्या फायदा हो सकता है।
14 जब हम किसी जान-पहचानवाले को न्यौता देते हैं और उससे कहते हैं कि यह खासकर आपके लिए है, तो शायद यह बात उसके दिल को छू जाए और उसे स्मारक में आने का मन करे। ज़रा ध्यान दीजिए कि एक बहन के साथ क्या हुआ। उनके पति सच्चाई में नहीं हैं। एक दिन उनके पति ने खुशी-खुशी उनसे कहा कि वह स्मारक में उनके साथ चलेंगे। यह सुनकर बहन हैरान रह गयीं। वह इसलिए कि उन्होंने पहले भी कई बार अपने पति को स्मारक के लिए बुलाया था, पर वे कभी नहीं आए। तो इस बार ऐसा क्या हुआ? उनके पति ने उनसे कहा, “मुझे अलग से एक न्यौता मिला है।” उन्होंने बताया कि मंडली के एक प्राचीन ने, जिनकी उनसे अच्छी जान-पहचान है, उन्हें खासकर इसके लिए न्यौता दिया है। बहन के पति उस साल स्मारक में गए और फिर कई सालों तक स्मारक में जाते रहे।
15. जब हम लोगों को स्मारक के लिए बुलाते हैं, तो हम क्या ध्यान में रख सकते हैं?
15 एक और बात: ध्यान रखिए कि जब हम किसी को स्मारक के लिए बुलाते हैं, तो शायद उसके मन में कुछ सवाल हों, खासकर अगर वह कभी हमारी सभाओं में नहीं आया है। तो पहले से सोचिए कि लोग क्या-क्या सवाल कर सकते हैं और आप उनका कैसे जवाब देंगे। (कुलु. 4:6) जैसे, शायद कुछ लोगों के मन में ये सवाल हों, ‘इस कार्यक्रम में क्या होगा?’ ‘यह कितनी देर तक चलेगा?’ ‘कैसे कपड़े पहनकर आने होंगे?’ ‘क्या इसमें हाज़िर होने के लिए पैसे देने होंगे?’ ‘क्या वहाँ पर कुछ चंदा माँगा जाएगा?’ तो जब आप किसी को स्मारक के लिए बुलाते हैं तो आप उनसे पूछ सकते हैं, “क्या आप इस बारे में और कुछ जानना चाहते हैं?” और फिर उनके मन में जो भी सवाल हैं, उनका जवाब दे सकते हैं। आप उन्हें यीशु के बलिदान को याद कीजिए और राज-घरों में क्या होता है? वीडियो भी दिखा सकते हैं। इससे वे समझ पाएँगे कि हमारी सभाएँ कैसे चलायी जाती हैं। इसके अलावा आप उन्हें खुशी से जीएँ हमेशा के लिए! किताब के पाठ 28 में बतायी कुछ बातें भी बता सकते हैं।
16. जो लोग स्मारक में आएँगे, शायद उनके मन में और कौन-से सवाल आएँ?
16 जो नए लोग स्मारक में आएँगे, शायद उनके मन में और भी कुछ सवाल आएँ। हो सकता है, वे जानना चाहें कि किसी ने रोटी या दाख-मदिरा क्यों नहीं ली या सिर्फ कुछ लोगों ने ही क्यों ली। या शायद वे यह जानना चाहें कि हम कब-कब स्मारक मनाते हैं या फिर यह कि क्या हमारी सारी सभाएँ इसी तरीके से होती हैं। वैसे तो इनमें से कुछ बातों के बारे में स्मारक के भाषण में बताया जाता है, लेकिन शायद नए लोगों को इस बारे में और अच्छी तरह समझाना पड़े। इस तरह के कुछ सवालों के जवाब jw.org पर दिए लेख “यहोवा के साक्षी यीशु की मौत की यादगार अलग तरीके से क्यों मनाते हैं?” में दिए गए हैं। आप इस लेख से भी उन्हें समझा सकते हैं। हम चाहते हैं कि ‘अच्छा मन रखनेवाले’ लोग स्मारक से पूरा फायदा पाएँ, इसलिए हम स्मारक से पहले, उसके दौरान और उसके बाद भी उनकी मदद करने की पूरी कोशिश करेंगे।—प्रेषि. 13:48.
जो भाई-बहन सभाओं में नहीं आ रहे, उनकी मदद कीजिए
17. प्राचीन उन लोगों की कैसे मदद कर सकते हैं, जो कुछ समय से सभाओं में नहीं आ रहे हैं? (यहेजकेल 34:12, 16)
17 स्मारक के आस-पास के महीनों में प्राचीन उन भाई-बहनों की कैसे मदद कर सकते हैं, जो कुछ समय से सभाओं में नहीं आ रहे हैं? आप उन्हें एहसास दिला सकते हैं कि आपको उनकी परवाह है। (यहेजकेल 34:12, 16 पढ़िए।) स्मारक से पहले इस तरह के ज़्यादा-से-ज़्यादा भाई-बहनों से बात करने की कोशिश कीजिए। उन्हें यकीन दिलाइए कि आप उनसे प्यार करते हैं और हर तरह से उनकी मदद करने के लिए तैयार हैं। उन्हें स्मारक के लिए बुलाइए। और अगर वे आएँ, तो प्यार से उनका स्वागत कीजिए। स्मारक के बाद भी इन प्यारे भाई-बहनों से बात करते रहिए और उनसे मिलते रहिए। यहोवा के पास लौट आने के लिए उन्हें जो भी मदद चाहिए, वह दीजिए।—1 पत. 2:25.
18. हम सब उन भाई-बहनों की मदद कैसे कर सकते हैं, जो कुछ समय से सभाओं में नहीं आ रहे हैं? (रोमियों 12:10)
18 जब स्मारक में ऐसे भाई-बहन आएँगे जो कुछ समय से सभाओं में नहीं आ रहे हैं, तो मंडली में हर कोई उनकी मदद कर सकता है। वह कैसे? प्यार से उनका स्वागत कीजिए, उनके साथ अच्छी तरह पेश आइए, उनका आदर कीजिए। (रोमियों 12:10 पढ़िए।) सोचिए कि सभा में आने के लिए वे कितना झिझक रहे होंगे। शायद उनके मन में चल रहा होगा कि भाई-बहन उनके बारे में क्या सोचेंगे, उन्हें देखकर क्या कहेंगे।e इसलिए उनसे ऐसा कुछ मत कहिए, ना ही ऐसी कोई बात पूछिए जिससे वे शर्मिंदा हो जाएँ या उन्हें बुरा लगे। (1 थिस्स. 5:11) याद रखिए कि ये सब हमारे भाई-बहन हैं, यहोवा की अनमोल भेड़ें हैं। इनके साथ मिलकर एक बार फिर यहोवा की उपासना करके हमें बहुत खुशी होगी!—भज. 119:176; प्रेषि. 20:35.
19. यीशु की कुरबानी याद करने से कौन-से फायदे होते हैं?
19 हम कितने एहसानमंद हैं कि यीशु ने हमसे कहा कि हम हर साल उसकी कुरबानी याद करें। जब हम ऐसा करते हैं, तो इससे हमें भी फायदा होता है और हम दूसरों की भी मदद कर पाते हैं। (यशा. 48:17, 18) हम यहोवा और यीशु से और भी प्यार करने लगते हैं और हमें यह ज़ाहिर करने का मौका मिलता है कि यहोवा और यीशु ने हमारे लिए जो किया है, हम उसकी बहुत कदर करते हैं। भाई-बहनों के साथ भी हमारा रिश्ता मज़बूत हो जाता है। और हमें शायद दूसरों को भी यह सिखाने का मौका मिले कि वे भी फिरौती बलिदान से ढेरों आशीषें पा सकते हैं। तो आइए पूरे जतन से स्मारक के लिए तैयारी करें, आखिर यह साल का सबसे खास दिन जो है!
आपका जवाब क्या होगा?
हम स्मारक के लिए अपना दिल कैसे तैयार कर सकते हैं?
हम स्मारक से फायदा पाने के लिए दूसरों की कैसे मदद कर सकते हैं?
हम उन भाई-बहनों की कैसे मदद कर सकते हैं जो कुछ समय से सभाओं में नहीं आ रहे हैं?
गीत 18 फिरौती के लिए एहसानमंद
a इस लेख में जिन वीडियो और लेखों का ज़िक्र किया गया है, उन्हें देखने के लिए jw.org पर खोजिए बक्स में उनका नाम टाइप करें।
d “खोजबीन के लिए कुछ सुझाव” नाम का बक्स पढ़ें।
e “भाई-बहन कैसे पेश आए?” नाम का बक्स और तसवीरें देखें। एक भाई कुछ समय से सभाओं में नहीं आ रहा था। वह राज-घर में जाने से झिझक रहा है, पर वह हिम्मत करके अंदर जाता है। वहाँ सब लोग बहुत प्यार से उसका स्वागत करते हैं और सबसे मिलकर उसे बहुत अच्छा लगता है।
f तसवीर के बारे में: दुनिया के एक हिस्से में यहोवा के साक्षी स्मारक मना रहे हैं और दूसरे देशों में भाई-बहन यह खास समारोह मनाने की तैयारी कर रहे हैं।