अध्याय 15
“उन्हें देखकर तड़प उठा”
1-3. (क) जब दो भिखारी यीशु से मदद के लिए गुज़ारिश करते हैं, तो यीशु क्या करता है? (ख) “तड़प उठा,” इन शब्दों का क्या मतलब है? (फुटनोट देखिए।)
दो अंधे आदमी यरीहो शहर के बाहर सड़क के किनारे बैठे हैं। वे हर दिन वहाँ आते हैं और जिस जगह से ज़्यादातर लोग गुज़रते हैं, वहाँ बैठ जाते और भीख माँगते हैं। लेकिन आज उनके साथ कुछ ऐसा होनेवाला है, जिससे उनकी ज़िंदगी की कायापलट हो जाएगी।
2 अचानक वे भिखारी शोरगुल सुनते हैं। वे देख नहीं सकते कि क्या हो रहा है, इसलिए उनमें से एक लोगों से पूछता है कि आखिर बात क्या है। लोग उसे बताते हैं कि “यीशु नासरी यहाँ से गुज़र रहा है!” यीशु आखिरी बार यरूशलेम जा रहा है। लेकिन वह अकेला नहीं है। उसके पीछे भारी तादाद में लोग भी चले आ रहे हैं। जब भिखारियों को पता चलता है कि यीशु वहाँ से गुज़र रहा है, तो वे चिल्लाने लगते हैं: “हे प्रभु, दाविद के वंशज, हम पर दया कर!” लोग उन पर गुस्सा करते हैं और उनसे चुप रहने को कहते हैं, मगर भिखारी चुप नहीं होते। वे किसी भी तरह यीशु के पास जाना चाहते हैं।
3 यीशु भीड़ के शोरगुल में भी उन भिखारियों की पुकार सुन लेता है। वह क्या करेगा? क्या वह उन पर ध्यान देगा? उसे कई बातों की चिंता खाए जा रही है। धरती पर उसका जीवन बस खत्म होनेवाला है, करीब एक हफ्ता ही बचा है। वह जानता है कि यरूशलेम में उसे बुरी तरह तड़पाया जाएगा और बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया जाएगा। इन सब चिंताओं के बावजूद वह उन भिखारियों की निरंतर पुकार को अनसुना नहीं करता। वह रुक जाता है और उन भिखारियों को उसके पास लाने के लिए कहता है। पास आने पर भिखारी उससे मिन्नत करते हैं: “प्रभु, हमारी आँखें ठीक हो जाएँ।” उन्हें ‘देखकर यीशु तड़प उठता है,’ वह उनकी आँखें छूता है और वे देखने लगते हैं।a बिना देर किए वे भिखारी उसके पीछे हो लेते हैं।—लूका 18:35-43; मत्ती 20:29-34.
4. यीशु ने यह भविष्यवाणी कैसे पूरी की कि वह “कंगाल . . . पर तरस खाएगा”?
4 यह पहली या अकेली घटना नहीं थी, जब यीशु ने करुणा दिखायी। यीशु ने और भी कई मौकों पर और अलग-अलग हालात में करुणा दिखायी। बाइबल में भविष्यवाणी की गयी थी कि वह “कंगाल . . . पर तरस खाएगा।” (भजन 72:13) यीशु ने इन शब्दों को सच साबित किया। वह दूसरों की भावनाओं को समझता था। वह लोगों की मदद करने के लिए पहल करता था। करुणा की भावना ही उसे उभारती थी कि वह लोगों को प्रचार करे। आइए देखें कि खुशखबरी की किताबों से कैसे पता चलता है कि यीशु की बातों और कामों से कोमल करुणा साफ झलकती थी और गौर करें कि हम कैसे उसके जैसी करुणा दिखा सकते हैं।
दूसरों की भावनाओं का खयाल रखना
5, 6. कौन-से उदाहरण दिखाते हैं कि यीशु को दूसरों से हमदर्दी थी?
5 यीशु को दूसरों से हमदर्दी थी। वह लोगों की तकलीफ समझता था और उनसे पूरी सहानुभूति रखता था। हालाँकि वह उनके जैसे हालात से नहीं गुज़रा, लेकिन वह उनका दर्द अपने दिल में महसूस कर सकता था। (इब्रानियों 4:15) जब उसने एक ऐसी स्त्री को चंगा किया, जिसे 12 साल से खून बहने की बीमारी थी, तो उसने उसकी बीमारी को “दर्दनाक बीमारी” कहा। इस तरह उसने माना कि बीमारी की वजह से वह स्त्री बहुत पीड़ा और परेशानी से गुज़र रही है। (मरकुस 5:25-34) लाज़र की मौत पर जब यीशु ने मरियम और उसके साथ दूसरे लोगों को रोते देखा, तो उनका दुख देखकर उसका दिल भर आया। वह जानता था कि वह लाज़र को ज़िंदा करनेवाला है, लेकिन वह खुद को रोक नहीं सका और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।—यूहन्ना 11:33, 35.
6 एक दूसरे मौके पर, एक कोढ़ी यीशु के पास आया और गिड़गिड़ाने लगा: “अगर तू चाहे तो मुझे शुद्ध कर सकता है।” यीशु एक सिद्ध इंसान था, वह कभी बीमार नहीं हुआ था। क्या वह उस कोढ़ी का दर्द समझ सकता था? हाँ, बाइबल बताती है कि वह उसे देखकर “तड़प उठा।” (मरकुस 1:40-42) फिर उसने एक अनोखा काम किया। वह जानता था कि कानून के मुताबिक कोढ़ियों को अशुद्ध माना जाता है और उन्हें दूसरों के साथ घुलने-मिलने की इजाज़त नहीं है। (लैव्यव्यवस्था 13:45, 46) यीशु बिना छुए भी इस आदमी को ठीक कर सकता था। (मत्ती 8:5-13) फिर भी उसने अपना हाथ बढ़ाया और कोढ़ी को छूकर कहा: “मैं चाहता हूँ। शुद्ध हो जा।” तुरंत ही कोढ़ी की बीमारी ठीक हो गयी। यीशु ने कितने बेहतरीन ढंग से प्यार और हमदर्दी दिखायी!
7. क्या बात हमें हमदर्दी पैदा करने में मदद कर सकती है? हम यह गुण कैसे दिखा सकते हैं?
7 मसीहियों के नाते, हमसे कहा गया है कि हमदर्दी दिखाने में हम यीशु की मिसाल पर चलें। बाइबल हमसे गुज़ारिश करती है, “एक-दूसरे का दर्द महसूस करो।”b (1 पतरस 3:8) जो लोग लंबे समय से किसी बीमारी या निराशा का शिकार हैं, उनकी भावनाओं को समझ पाना आसान नहीं होता। खास तौर पर तब जब हम इस तरह की बीमारी से न गुज़रे हों। लेकिन याद रखिए, ऐसा नहीं कि हम किसी से हमदर्दी तभी रख सकते हैं, जब हम उसके जैसे हालात से गुज़रे हों। यीशु ने बीमार लोगों के लिए हमदर्दी दिखायी, जबकि वह खुद कभी बीमार नहीं हुआ था। तो फिर हम कैसे हमदर्दी पैदा कर सकते हैं? जब पीड़ा से गुज़र रहे लोग आपको अपने दिल की बातें और भावनाओं के बारे में बताते हैं, तो सब्र के साथ उनकी बात सुनिए। हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘अगर मैं उनकी जगह होता, तो मैं कैसा महसूस करता?’ (1 कुरिंथियों 12:26) अगर हम दूसरों का दर्द समझने की अपनी काबिलीयत बढ़ाएँ, तो हम “जो मायूस हैं, उन्हें अपनी बातों से तसल्ली” दे पाएँगे। (1 थिस्सलुनीकियों 5:14) कभी-कभी हमदर्दी सिर्फ बातों से ही नहीं, आँसुओं से भी ज़ाहिर की जा सकती है। रोमियों 12:15 कहता है: “रोनेवालों के साथ रोओ।”
8, 9. यीशु ने कैसे दिखाया कि वह दूसरों की भावनाओं का खयाल रखता है?
8 यीशु हमेशा दूसरों का खयाल रखता था और वह हमेशा उनके साथ इस तरह पेश आता था जिससे उनकी भावनाओं को ठेस न पहुँचे। ज़रा उस घटना को याद कीजिए जब यीशु के पास एक ऐसे आदमी को लाया गया जो बहरा था और ठीक से बोल नहीं पाता था। शायद यीशु ने भाँप लिया कि यह आदमी भीड़ के सामने थोड़ा हिचकिचा रहा है। इसलिए उसने एक ऐसा काम किया जो वह दूसरों को चंगा करते वक्त नहीं करता था। “यीशु उस आदमी को भीड़ से दूर, अलग ले गया।” वहाँ अकेले में और लोगों की घूरती निगाहों से दूर यीशु ने उस आदमी को ठीक किया।—मरकुस 7:31-35.
9 यीशु ने ऐसी ही परवाह तब भी दिखायी जब लोग उसके पास एक अंधे आदमी को लाए और उससे गुज़ारिश की कि वह उसे ठीक कर दे। यीशु ने “उस अंधे आदमी का हाथ पकड़ा और उसे गाँव के बाहर ले गया।” फिर उसने धीरे-धीरे उस आदमी को चंगा किया। ऐसा करने की वजह से शायद उस आदमी का दिमाग और आँखें सूरज की रौशनी में आस-पास की एक-से-बढ़कर-एक चीज़ों को देखने के लिए आहिस्ता-आहिस्ता ढल सकीं। (मरकुस 8:22-26) सचमुच, यीशु को लोगों का कितना खयाल था!
10. हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम दूसरों की भावनाओं का खयाल रखते हैं?
10 यीशु के चेले होने के नाते हमारी ज़िम्मेदारी बनती है कि हम दूसरों की भावनाओं का खयाल रखें। इसलिए हम सोच-समझकर बोलते हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि बिना सोचे-समझे ज़बान का इस्तेमाल करने से दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुँच सकती है। (नीतिवचन 12:18; 18:21) मसीही हमेशा दूसरों की भावनाओं का खयाल रखते हैं। इसलिए कड़वे बोल बोलना, दूसरों की बुराई करना, चोट पहुँचानेवाली बातें कहना उन्हें शोभा नहीं देता। (इफिसियों 4:31) प्राचीनो, आप कैसे दिखा सकते हैं कि आप दूसरों की भावनाओं का खयाल रखते हैं? जब आप किसी को सलाह देते हैं, तो हमेशा दया दिखाइए। इस तरह आप उसकी गरिमा बनाए रखेंगे। (गलातियों 6:1) माता-पिताओ, आप अपने बच्चों की भावनाओं का कैसे खयाल रख सकते हैं? उन्हें कभी भी ऐसे ताड़ना मत दीजिए जिससे उन्हें दूसरों के सामने शर्मिंदा होना पड़े।—कुलुस्सियों 3:21.
दूसरों की मदद करने में पहल कीजिए
11, 12. बाइबल की कौन-सी घटनाएँ दिखाती हैं कि यीशु सिर्फ तभी करुणा नहीं दिखाता था, जब लोग उससे मदद माँगते थे?
11 यीशु सिर्फ तभी करुणा नहीं दिखाता था, जब लोग उससे मदद माँगते थे। करुणा ऐसा गुण नहीं, जो सिर्फ दिल में होता है, यह कामों से दिखाया जाता है और दूसरों की मदद करने के लिए उकसाता है। यीशु में कोमल करुणा थी, इसी वजह से वह लोगों की मदद करने के लिए पहल करता था। उदाहरण के लिए, जब बहुत बड़ी भीड़ तीन दिन तक यीशु के साथ रही और उनके पास खाने को कुछ भी नहीं था, तो किसी को यीशु से यह कहने की ज़रूरत नहीं पड़ी कि लोग भूखे हैं या वह लोगों की भूख मिटाने के लिए कुछ करे। बाइबल बताती है: “यीशु ने अपने चेलों को पास बुलाया और कहा: ‘इस भीड़ को देखकर मुझे तरस आता है, क्योंकि इन्हें मेरे साथ रहते हुए तीन दिन बीत चुके हैं और इनके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं है। मैं इन्हें भूखा नहीं भेजना चाहता। कहीं वे रास्ते में ही पस्त न हो जाएँ।’” फिर उसने अपनी मरज़ी से चमत्कार करके भीड़ को खाना खिलाया।—मत्ती 15:32-38.
12 एक और वाकये पर गौर कीजिए। ईसवी सन् 31 का समय था, यीशु नाईन शहर की तरफ जा रहा था कि उसने एक दर्दनाक मंज़र देखा। शहर से एक मैयत निकल रही थी, जो शायद पास की पहाड़ियों पर बनी कब्रों की तरफ जा रही थी। लोग ‘एक विधवा के इकलौते बेटे को’ दफनाने जा रहे थे। क्या आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि उस वक्त उस माँ के दिल पर क्या बीत रही होगी? वह अपने इकलौते बेटे को दफनाने जा रही थी। वह अपने पति को पहले ही खो चुकी थी। अब उसका अपना कोई नहीं था, जिसके साथ वह अपना गम बाँट सकती। मैयत में काफी सारे लोग थे, लेकिन यीशु “की नज़र” उस विधवा पर पड़ी, जिसका इकलौता बेटा मर गया था। उसे देखकर यीशु का दिल दुखी हो गया, जी हाँ “वह तड़प उठा।” किसी को उससे कुछ कहने की ज़रूरत नहीं पड़ी। उसके दिल में जो करुणा थी, उसने उसे आगे बढ़कर मदद करने के लिए उकसाया। इसलिए “उसने पास आकर अर्थी को छूआ” और उस लड़के को दोबारा ज़िंदा कर दिया। फिर क्या हुआ? यीशु ने उस लड़के से यह नहीं कहा कि वह उसके पीछे चल रही भीड़ में शामिल हो जाए। इसके बजाय, यीशु ने “उसे उसकी माँ को सौंप दिया” और दोबारा एक परिवार बना दिया। इस तरह यीशु ने खयाल रखा कि वह विधवा बेसहारा न हो जाए।—लूका 7:11-15.
13. दूसरों की मदद करने में पहल करने के मामले में हम यीशु की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?
13 हम यीशु की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं? यह सच है कि हम चमत्कार करके लोगों को खाना नहीं दे सकते, न ही मरे हुओं को दोबारा ज़िंदा कर सकते हैं। लेकिन हम यीशु की मिसाल पर चलकर ज़रूरतमंद लोगों की मदद करने की पहल ज़रूर कर सकते हैं। शायद हमारे किसी संगी विश्वासी को पैसे का भारी नुकसान हुआ हो या उसकी नौकरी छूट गयी हो। (1 यूहन्ना 3:17) हो सकता है किसी विधवा बहन के मकान में कुछ ज़रूरी मरम्मत करनी हो। (याकूब 1:27) शायद किसी परिवार में एक जन की मौत हो गयी हो और उन्हें दिलासा देने या कुछ मदद की ज़रूरत हो। (1 थिस्सलुनीकियों 5:11) जो सचमुच ज़रूरत में हैं, उनकी मदद करने के लिए हमें इंतज़ार नहीं करना चाहिए कि जब कोई आकर हमसे कहेगा तभी हम कुछ करेंगे। (नीतिवचन 3:27) हममें जो करुणा है, वह हमें उकसाएगी कि अपने हालात के मुताबिक हमसे जितना हो सके हम दूसरों की मदद करें। हम यह कभी न भूलें कि एक छोटी-सी मदद या दिल से बोले दिलासा के दो मीठे शब्दों से भी ज़ाहिर होता है कि हमारे दिल में दूसरों के लिए करुणा है।—कुलुस्सियों 3:12.
करुणा ने उसे प्रचार करने के लिए उभारा
14. यीशु ने खुशखबरी का प्रचार करने के काम को इतनी अहमियत क्यों दी?
14 जैसा कि हमने इस किताब के भाग 2 में देखा था, यीशु ने खुशखबरी का प्रचार करने में एक उम्दा मिसाल रखी। उसने कहा: “मुझे . . . परमेश्वर के राज की खुशखबरी सुनानी है, क्योंकि मुझे इसीलिए भेजा गया है।” (लूका 4:43) उसने इस काम को इतनी अहमियत क्यों दी? सबसे बड़ी वजह यह थी कि उसे परमेश्वर से प्यार था। लेकिन इसकी एक और वजह भी थी। उसके दिल में लोगों के लिए करुणा थी, इसलिए उसने उनकी आध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कदम उठाया। देखा जाए तो उसने कई तरीकों से करुणा दिखायी, लेकिन सबसे बड़ा तरीका था लोगों की आध्यात्मिक भूख मिटाना। आइए दो घटनाओं पर गौर करें जो दिखाती हैं कि यीशु जिन लोगों को प्रचार करता था, उन्हें वह किस नज़र से देखता था। इससे हमें यह जाँचने में मदद मिलेगी कि हम क्यों प्रचार काम में हिस्सा लेते हैं।
15, 16. उन दो घटनाओं के बारे में बताइए जिनसे पता चलता है कि यीशु उन लोगों को किस नज़र से देखता था, जिन्हें वह प्रचार करता था।
15 यीशु को प्रचार काम करते करीब दो साल हो गए थे, वह इस काम में जी-जान से लगा हुआ था। ईसवी सन् 31 में उसने प्रचार काम को और बढ़ाया, वह गलील के “सब शहरों और गाँवों का दौरा करने निकला।” लोगों की हालत देखकर उसका दिल रो पड़ा। इस बारे में प्रेषित मत्ती ने लिखा: “जब उसने भीड़ को देखा तो वह तड़प उठा, क्योंकि वे उन भेड़ों की तरह थे जिनकी खाल खींच ली गयी हो और जिन्हें बिन चरवाहे के यहाँ-वहाँ भटकने के लिए छोड़ दिया गया हो।” (मत्ती 9:35, 36) यीशु को आम लोगों के लिए हमदर्दी थी। वह अच्छी तरह जानता था कि उनकी आध्यात्मिक हालत कितनी खराब है। उसे मालूम था कि जिन्हें उनकी देखभाल करने की ज़िम्मेदारी दी गयी है, यानी धर्म-गुरु ही उनके साथ बुरा सलूक कर रहे हैं और उनका खयाल नहीं रख रहे हैं। लोगों के लिए गहरी करुणा होने की वजह से यीशु ने उन तक आशा का संदेश पहुँचाने में जी-तोड़ मेहनत की। उन्हें परमेश्वर के राज की खुशखबरी की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी।
16 कुछ महीनों बाद, ईसवी सन् 32 में फसह के पर्व से पहले भी कुछ ऐसी ही घटना घटी। यीशु अपने प्रेषितों के साथ नाव से गलील झील की दूसरी तरफ जा रहा था, ताकि वे कहीं एकांत में आराम कर सकें। लेकिन लोगों की भीड़ झील के किनारे दौड़ते हुए उनसे पहले ही झील की दूसरी तरफ पहुँच गयी। यह देखकर यीशु ने क्या किया? “जब यीशु नाव से उतरा तो उसने एक बड़ी भीड़ देखी और उन्हें देखकर वह तड़प उठा, क्योंकि वे उन भेड़ों की तरह थे जिनका कोई चरवाहा न हो। और वह उन्हें बहुत-सी बातें सिखाने लगा।” (मरकुस 6:31-34) यीशु एक बार फिर लोगों को देखकर “तड़प उठा” क्योंकि उनकी आध्यात्मिक हालत बहुत खराब थी। वे “उन भेड़ों की तरह थे जिनका कोई चरवाहा न हो।” उनकी देखभाल करने और उन्हें सच्चाई सिखाने के लिए कोई नहीं था। वे आध्यात्मिक तौर पर भूखे मर रहे थे। यीशु ने फर्ज़ समझकर नहीं, करुणा की वजह से उन्हें प्रचार किया।
17, 18. (क) क्या बात हमें लोगों को प्रचार करने के लिए उकसाती है? (ख) हम कैसे दूसरों के लिए अपने दिल में करुणा पैदा कर सकते हैं?
17 यीशु के पीछे चलनेवालों के नाते क्या बात हमें लोगों को प्रचार करने के लिए उकसाती है? जैसा कि हमने इस किताब के अध्याय 9 में देखा था, हमें प्रचार करने और लोगों को चेला बनाने की आज्ञा दी गयी है, यह हमारी ज़िम्मेदारी है। (मत्ती 28:19, 20; 1 कुरिंथियों 9:16) लेकिन हमें इस काम को सिर्फ फर्ज़ समझकर नहीं करना चाहिए। इसे करने की सबसे बड़ी वजह यह है कि हम यहोवा से प्यार करते हैं। दूसरी वजह है, उन लोगों के लिए करुणा जिनका विश्वास हमसे अलग है। (मरकुस 12:28-31) तो फिर हम कैसे दूसरों के लिए अपने दिल में करुणा पैदा कर सकते हैं?
18 यीशु ने लोगों को जिस नज़र से देखा, हमें भी उन्हें उसी नज़र से देखना चाहिए, यानी ‘उन भेड़ों की तरह जिनकी खाल खींच ली गयी हो और जिन्हें बिन चरवाहे के यहाँ-वहाँ भटकने के लिए छोड़ दिया गया हो।’ कल्पना कीजिए कि आपको एक मेम्ना मिलता है, जो भटक गया है। उसके पास कोई चरवाहा नहीं जो उसे हरी-हरी तराइयों में और पानी के पास ले जाए। वह नन्हा-सा मेम्ना भूखा और प्यासा है। क्या आपको उस पर तरस नहीं आएगा? क्या आप उसे चारा और पानी देने के लिए अपना भरसक नहीं करेंगे? उस मेम्ने की तुलना उन लोगों से की जा सकती है, जिन्हें अभी तक खुशखबरी के बारे में पता नहीं है। झूठे धार्मिक चरवाहों ने उन्हें यहाँ-वहाँ भटकने के लिए छोड़ दिया है। वे आध्यात्मिक तौर पर भूखे और प्यासे हैं। उनके पास भविष्य की कोई सच्ची आशा नहीं है। लेकिन हमारे पास वह चीज़ है जिसकी उन्हें ज़रूरत है, परमेश्वर के वचन में मिलनेवाला पोषण से भरा आध्यात्मिक भोजन और तरोताज़ा करनेवाला सच्चाई का पानी। (यशायाह 55:1, 2) जब हम अपने आस-पास के लोगों की आध्यात्मिक ज़रूरतों पर गौर करते हैं, तो हमें उन पर बहुत तरस आता है। अगर यीशु की तरह हमारे दिल में भी लोगों के लिए हमदर्दी होगी, तो हम उन्हें राज की आशा देने की हर मुमकिन कोशिश करेंगे।
19. अगर एक बाइबल विद्यार्थी प्रचार काम में हिस्सा लेने के काबिल हो गया है, तो उसे बढ़ावा देने के लिए हम क्या कर सकते हैं?
19 दूसरे भी यीशु की मिसाल पर चलें, इसके लिए हम उनकी कैसे मदद कर सकते हैं? मान लीजिए हमारा एक बाइबल विद्यार्थी प्रचार काम में हिस्सा लेने के काबिल हो गया है और हम इसके लिए उसे बढ़ावा देना चाहते हैं। या हम एक ऐसे मसीही को प्रचार में फिर से पूरा हिस्सा लेने में मदद देना चाहते हैं जो सच्चाई में ठंडा पड़ गया है। हम ऐसे लोगों की मदद कैसे कर सकते हैं? हमें अपनी बातें उन तक इस तरह पहुँचानी चाहिए जिससे वे बातें उनके दिल पर गहरा असर कर जाएँ। याद कीजिए कि लोगों को देखकर पहले तो यीशु “तड़प उठा” और फिर वह उन्हें सिखाने लगा। (मरकुस 6:34) इसलिए अगर हम उन्हें अपने दिल में करुणा पैदा करने में मदद दें, तो शायद उनका दिल भी उन्हें यीशु की तरह बनने और दूसरों को खुशखबरी सुनाने के लिए उकसाए। हम उनसे पूछ सकते हैं: ‘राज संदेश कबूल करने से आपकी ज़िंदगी कैसे बेहतर हुई है? तो क्या आपको नहीं लगता कि जिन लोगों को अभी तक यह संदेश नहीं मिला है, उन्हें भी खुशखबरी सुनाने की ज़रूरत है? उनकी मदद करने के लिए आप क्या कर सकते हैं?’ लेकिन यह बात भी सच है कि एक इंसान प्रचार में हिस्सा लेने के लिए तभी आगे बढ़ता है, जब उसके दिल में परमेश्वर के लिए प्यार और उसकी सेवा करने का जज़्बा हो।
20. (क) यीशु का चेला होने में क्या बातें शामिल हैं? (ख) अगले अध्याय में हम किस बात पर गौर करेंगे?
20 यीशु का चेला होने का मतलब सिर्फ उसके शब्द दोहराना या उसके कामों की नकल करना नहीं है। हमें “मन का वैसा स्वभाव” भी पैदा करने की ज़रूरत है, जैसा मसीह में था। (फिलिप्पियों 2:5) हम कितने एहसानमंद हैं कि बाइबल हमें यीशु की बातों और कामों के पीछे छिपी उसकी भावनाओं और विचारों के बारे में बताती है! जब हम ‘मसीह के मन’ से वाकिफ होंगे तो हम और भी अच्छी तरह लोगों की भावनाओं का खयाल रख पाएँगे और उनके लिए दिल से करुणा दिखा पाएँगे। तब हम लोगों के साथ वैसा ही व्यवहार करेंगे जैसा यीशु करता था। (1 कुरिंथियों 2:16) अगले अध्याय में हम गौर करेंगे कि यीशु ने खास तौर से अपने चेलों के लिए कैसे अलग-अलग तरीकों से प्यार दिखाया।
a जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “तड़प उठा” किया गया है, उसे करुणा की भावना के लिए यूनानी भाषा में इस्तेमाल होनेवाले सबसे ज़बरदस्त शब्दों में से एक कहा गया है। एक किताब कहती है कि इस शब्द का मतलब “किसी की तकलीफ देखकर सिर्फ दर्द महसूस करना नहीं, बल्कि इसमें तकलीफ से गुज़र रहे इंसान को राहत पहुँचाने और उसकी तकलीफ दूर करने की गहरी इच्छा भी शामिल है।”
b जिस यूनानी विशेषण का अनुवाद “एक-दूसरे का दर्द महसूस करो” किया गया है, उसका शाब्दिक मतलब है “उसके साथ तकलीफ से गुज़रो।”