प्रधान अधिकारियों के प्रति हमारी सापेक्ष अधीनता
“इसलिए आप लोगों को आधीन रहने के लिए अप्रतिरोध्य कारण है।”—रोमियों १३:५, न्यू.व.
१. यहोवा के गवाहों को नाट्ज़ी प्रधान अधिकारियों के हाथों कौनसे कठिन अनुभव हुए, और क्या यह ‘बुराई करने’ की वजह से था?
जनवरी ७, १९४० के रोज़, फ्रांज़ राइटर और पाँच अन्य तरुण ऑस्ट्रिया-वासियों के सिर गिलोटिन द्वारा काट दिए गए। वे बिबेलफॉर्सचर, यहोवा के गवाह थे, और वे इसलिए मर गए कि वे शुद्ध अन्तःकरण से हिट्लर के जर्मन राज्य के लिए हथियार उठा नहीं सकते थे। राइटर उन हज़ारों गवाहों में से था जो दूसरे विश्व युद्ध में अपने विश्वास के ख़ातिर मर गए। बहुतेरे ने नज़रबन्दी शिबिरों में कई साल बिताए। क्या इन सभी लोगों ने ‘बुराई करने’ की वजह से नाट्ज़ी प्रधान अधिकारियों की “तलवार” से कष्ट झेला? (रोमियों १३:४) क़तई नहीं! पौलुस के इसके आगे कहे शब्दों से यह दिखाई देता है कि इन मसीहियों ने रोमियों अध्याय १३ में दिए परमेश्वर के आदेशों का पालन किया, हालाँकि उन्होंने उस अधिकार के हाथों कष्ट झेला।
२. प्रधान अधिकारियों के अधीन रहने के लिए कौनसा अप्रतिरोध्य कारण है?
२ वहाँ रोमियों १३:५ में, प्रेरित लिखता है: “इसलिए आप लोगों को आधीन रहने के लिए अप्रतिरोध्य कारण है, जो कि न केवल उस क्रोध के कारण अवश्य है, लेकिन अन्तःकरण के कारण भी।” (न्यू.व.) पहले, पौलुस ने कहा था कि चूँकि वह अधिकार “तलवार” लिए हुए था, यह उसके अधीन रहने के लिए अच्छा कारण था। बहरहाल, अब वह एक ज़्यादा मज़बूत कारण देता है: अन्तःकरण। हम परमेश्वर की सेवा “शुद्ध अन्तःकरण से” करना चाहते हैं। (२ तीमुथियुस १:३, न्यू.व.) बाइबल हमें प्रधान अधिकारियों के अधीन रहने को कहती है, और हम इसलिए आज्ञापालन करते हैं कि हम परमेश्वर के नज़रों में जो सही है, वही करना चाहते हैं। (इब्रानियों ५:१४) सचमुच, हमारा बाइबल-प्रशिक्षित अन्तःकरण हमें आज्ञापालन करने के लिए प्रेरित करता है, उस समय भी जब हम पर निगरानी रखने के लिए कोई इन्सान मौजूद न हो।—सभोपदेशक १०:२० से तुलना करें।
“इसलिए आप कर भी देते हैं”
३, ४. यहोवा के गवाहों को किस विषय में प्रसिद्धि प्राप्त है, और मसीहियों को किस लिए कर देना चाहिए?
३ कुछ साल पहले नाइजीरिया में, कर की अदायगी के कारण दंगे हुए थे। कई जानों की हानि हुई, और अधिकारियों ने फ़ौज बुला ली। फ़ौजी एक किंग्डम हॉल में प्रवेश हुए जहाँ सभा चल रही थी, और उन्होंने इस सभा का उद्देश्य पूछा। यह पता चलने पर कि यह यहोवा के गवाहों की एक बाइबल अध्ययन सभा है, कार्यभारी अधिकारी ने फ़ौजियों को यह कहकर जाने को कह दिया: “यहोवा के गवाह कर आन्दोलनकर्ता नहीं हैं।”
४ पौलुस के इन शब्दों के अनुकूल जीने के लिए उन नाइजीरियन गवाह प्रसिद्ध थे: “इसलिए आप कर भी देते हैं; क्योंकि वे परमेश्वर के सेवक हैं, और सदा इसी काम में लगे रहते हैं।” (रोमियों १३:६, न्यू.व.) जब यीशु ने यह नियम दिया कि, “जो कैसर का है, वह कैसर को,” वह कर अदा करने के बारे में बोल रहे थे। (मत्ती २२:२१) सांसारिक अधिकारी-वर्ग रास्ते, पुलिस संरक्षण, पुस्तकालय, परिवहन व्यवस्था, पाठशालाएँ, डाक सेवा, और भी कई चीज़ों का प्रबन्ध करते हैं। हम अक्सर इन प्रबन्धों को इस्तेमाल करते हैं। यह उचित ही है कि हम इनके लिए अपने कर के द्वारा क़ीमत चुकाएँ।
“हर एक का हक़ चुकाया करो”
५. “हर एक का हक़ चुकाया करो,” इस अभिव्यक्ति का मतलब क्या है?
५ पौलुस आगे कहता है: “हर एक का हक़ चुकाया करो, जिसे कर चाहिए, उसे कर दो; जिसे महसूल चाहिए, उसे महसूल दो; जिसे डरना चाहिए, उससे डरो; जिसका आदर करना चाहिए, उसका आदर करो।” (रोमियों १३:७) “हर एक,” ये शब्द प्रत्येक सांसारिक शासन को शामिल करते हैं जो परमेश्वर का आम सेवक हैं। कोई अपवाद नहीं हैं। अगर हम ऐसी राजनीतिक व्यवस्था के अधीन रहते भी हैं, जिसे हम व्यक्तिगत रूप से पसन्द नहीं करते, तो भी हम कर अदा करते हैं। अगर जहाँ हम रहते हैं, वहाँ धर्म कर-विमुक्त हैं, तो मण्डलियाँ इसका फ़ायदा उठा सकती हैं। और अन्य नागरिकों की तरह, मसीही भी जो कर वे अदा करते हैं, उसे सीमित करने के लिए जो कोई क़ानूनी प्रबन्ध किए गए हैं, वे उनका इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन किसी भी मसीही को ग़ैर-क़ानूनी रूप से कर अदा करने से बच निकलना नहीं चाहिए।—मत्ती ५:४१; १७:२४-२७ से तुलना करें।
६, ७. अगर कर का पैसा ऐसी बातों पर लगाया जाता है, जिन से हम सहमत नहीं, या अगर अधिकार हमें उत्पीड़ित भी करे, फिर भी हमें अपना कर क्यों अदा करना चाहिए?
६ यद्यपि, मान लीजिए कि कोई एक कर अन्यायपूर्ण लगे। या क्या होगा अगर कर की रक़म का कुछ हिस्सा ऐसी बातों पर लगाया जाता है जिनसे हम सहमत नहीं, जैसे मुफ़्त गर्भपात, रक्तदान बैंक या ऐसे कार्यक्रम जो हमारे निष्पक्ष विचारों के विरोध में हैं? हम तब भी हमारे सारे कर अदा करते हैं। कर की रक़म को किस तरह इस्तेमाल किया जाता है, इसकी ज़िम्मेदारी अधिकार को ही लेनी चाहिए। अधिकार को न्याय करने के लिए हमें आदेश नहीं दिया गया है। परमेश्वर “पृथ्वी के न्यायी” हैं, और अपने ही समय में, वह सरकारों से हिसाब लेंगे कि उन्होंने अपने अधिकार को किस तरह इस्तेमाल किया है। (भजन ९४:२; यिर्मयाह २५:३१) जब तक वैसा न हो, तब तक हम अपने कर अदा करते हैं।
७ अगर अधिकार हमें उत्पीड़ित करे, तब क्या? हम फिर भी रोज़मर्रा सेवाओं के लिए कर अदा करते हैं। एक आफ्रिकी देश में उत्पीड़न सह रहे गवाहों के विषय में, सॅन फ्रॅनसिस्को एक्ज़ॉमिनर ने कहा: “आप उन्हें आर्दश नागरिक समझ सकते हैं। वे कर्त्तव्यनिष्ठा से अपने कर अदा करते हैं, बीमारों की देख-रेख करते हैं, और निरक्षरता के विरुद्ध संघर्ष करते हैं।” जी हाँ, उन उत्पीड़ित गवाहों ने अपने कर अदा किए।
“डर” और “आदर”
८. वह “डर” क्या है जो हम अधिकार को देते हैं?
८ रोमियों १३:७ में “डर” शब्द एक कायर क़िस्म का डर नहीं बल्कि, उलटा, यह सांसारिक अधिकार के लिए आदर है, उसके क़ानून को तोड़ने का भय है। यह आदर इस से संबद्ध पद की वजह से दिया जाता है, हमेशा ही उस पद पर बैठे व्यक्ति की वजह से नहीं। जब बाइबल रोमी सम्राट् तिबिरियुस के बारे में भविष्यसूचक रूप से बताती है, यह उसे “एक तुच्छ मनुष्य” कहती है। (दानिय्येल ११:२१) पर वह सम्राट् था, और इस हैसियत से, एक मसीही को उसे डरना और आदर देना ही चाहिए।
९. कुछेक रीतियाँ क्या हैं जिन से हम मानवी अधिकारियों को आदर देते हैं?
९ आदर के संबंध में, हम यीशु के आदेश का पालन करते हैं कि धार्मिक पद के आधार पर उपाधि न दें। (मत्ती २३:८-१०) पर जब सांसारिक अधिकारियों का सवाल उठता है, तब उनका आदर करने में जो किसी उपाधि का उपयोग करना आवश्यक हो, उस से उन्हें संबोधित करने में हमें खुशी होती है। जब रोमी हाकिमों से बात की, तब पौलुस ने “हे महाप्रतापी,” अभिव्यक्ति इस्तेमाल की। (प्रेरितों २६:२५) दानिय्येल ने नबूकदनेस्सर को “हे मेरे प्रभु” कहा। (दानिय्येल ४:१९) आज, मसीही “अत्रभवान” और “महामहिम” जैसी अभिव्यक्तियाँ इस्तेमाल कर सकते हैं। जब न्यायाधीश अदालत में प्रवेश करता है, तब वे खड़े हो सकते हैं या, अगर वैसी प्रथा हो तो वे शासक के सामने आदरपूर्वक झुककर नमस्कार कर सकते हैं।
सापेक्ष अधीनता
१०. यीशु ने कैसे दिखाया कि मानव अधिकार किसी मसीही से जिन बातों की माँग कर सकता है, उनकी सीमाएँ भी हैं?
१० चूँकि यहोवा के गवाह प्रधान अधिकारियों के अधीन हैं, तो फ्रांज़ राइटर और इतने अनेकों लोगों ने इस तरह का कष्ट क्यों झेला? इसलिए कि हमारी अधीनता सापेक्षिक है, और अधिकार हमेशा ही यह नहीं मानती कि वह जिन बातों की माँग कर सकती है, उनके लिए बाइबल द्वारा ठहराई गई सीमाएँ हैं। अगर अधिकार एक ऐसी बात की माँग करे, जो एक प्रशिक्षित मसीही अन्तःकरण को ठेस पहुँचाए, तो यह अपनी परमेश्वर-प्रदत्त सीमा को पार कर रहा है। यीशु ने इसका संकेत दिया जब उसने कहा: “जो कैसर का है, वह कैसर को; और जो परमेश्वर का है, वह परमेश्वर को दो।” (मत्ती २२:२१) जब कैसर उस चीज़ की माँग करे, जो परमेश्वर की है, तब हमें यह मानना चाहिए कि इसके हक़ से पहले परमेश्वर का हक़ होता है।
११. मानव अधिकार जिन बातों की माँग कर सकते हैं, उनकी सीमाएँ हैं, इस बात को दर्शानेवाला कौनसा सिद्धान्त व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है?
११ क्या यह पक्ष क्रांतिकारी या विश्वासघाती है? बिल्कुल नहीं। दरअसल, यह एक ऐसे सिद्धान्त का विस्तृत रूप है जो अधिकांश सभ्य राष्ट्रों द्वारा मान्य है। १५वीं सदी में, पीटर फॉन हागेनबाख़ नामक व्यक्ति पर यूरोप के एक इलाके में, जो उसके अधिकार में था, दहशत की हुकूमत चलाने के कारण मुक़द्दमा चलाया गया। उसका बचाव, कि वह मात्र अपने स्वामी, ड्यूक ऑफ बर्गन्डी, के आदेशों का पालन कर रहा था, अस्वीकार कर दिया गया। यह दावा, कि अगर नृशंसता करनेवाला कोई व्यक्ति अपने प्रधान अधिकारियों के आदेशों का पालन करने में ऐसा करता है, तो वह उसके लिए ज़िम्मेदार नहीं, उस समय से कई बार किया जा चुका है—अधिक विशेष रूप से न्यूरेम्बर्ग में इंटरनॅशनल ट्राइब्यूनल (अन्तरराष्ट्रीय अदालत) के सामने नाट्ज़ी युद्ध-अपराधियों के द्वारा। उस दावे को आम तौर से अस्वीकार कर दिया गया है। अपने फ़ैसले में इंटरनॅशनल ट्राइब्यूनल ने कहा: “लोगों के अन्तरराष्ट्रीय दायित्व होते हैं, जो वैयक्तिक राष्ट्र द्वारा लगाए गए राष्ट्रीय दायित्वों के परे हैं।”
१२. परमेश्वर के सेवकों की कुछेक धर्मशास्त्रीय मिसालें क्या हैं, जिन्होंने अधिकार द्वारा किए हद से ज़्यादा माँगों का पालन करना अस्वीकार किया?
१२ परमेश्वर के सेवकों ने हमेशा समझा है कि उस अधीनता की सीमाएँ हैं जो उन्हें शुद्ध अन्तःकरण से प्रधान अधिकारियों को देनी चाहिए। लगभग उस समय जब मूसा मिस्र में जन्मा, फिरौन ने दो इब्री दाइयों को सभी नवजात इब्री लड़कों को मार डालने का आदेश दिया। परन्तु, दाइयों ने शिशुओं को ज़िन्दा छोड़ा। क्या फिरौन की अवज्ञा करने में वे ग़लत थीं? नहीं, वे अपने परमेश्वर-प्रदत्त अन्तःकरण की आवाज़ सुन रही थीं, और परमेश्वर ने उन्हें इस के लिए आशीर्वाद दिया। (निर्गमन १:१५-२०) जब इस्राएल की जाति बाबेलोन में निर्वासित थी, नबूकदनेस्सर ने माँगा कि उसके अधिकारी, जिन में इब्री शद्रक, मेशक, और अबेदनगो शामिल थे, दूरा नाम मैदान पर उस मूरत को झुककर दण्डवत करे, जो उसने रखवाया था। तीन इब्रियों ने इन्कार किया। क्या वे ग़लत थे? नहीं, इसलिए कि राजा के आदेशानुसार करने का अर्थ परमेश्वर का नियम भंग करना हुआ होता।—निर्गमन २०:४, ५; दानिय्येल ३:१-१८.
‘शासक के रूप में परमेश्वर की आज्ञा का पालन करें’
१३. प्रारंभिक मसीहियों ने प्रधान अधिकारियों को दिए सापेक्ष आज्ञापालन के मामले में कौनसी मिसाल प्रस्तुत की?
१३ उसी तरह, जब यहूदी अधिकारियों ने पतरस और यूहन्ना को यीशु के बारे में प्रचार करना बन्द करने का आदेश दिया, तब उन्होंने जवाब दिया: “तुम ही न्याय करो, कि क्या यह परमेश्वर के निकट भला है, कि हम परमेश्वर की बात से बढ़कर तुम्हारी बात मानें।” (प्रेरितों ४:१९; ५:२९) वे ख़ामोश नहीं रह सकते थे। द क्रिस्चियन सेंचुरी पत्रिका प्रारंभिक मसीहियों द्वारा लिया गया एक और शुद्ध अन्तःकरण से प्रेरित पक्ष की ओर ध्यानाकर्षित करती है, जब यह कहती है: “सबसे प्रारंभिक मसीहियों ने सशस्त्र सेनाओं में सेवा नहीं की। रोलैंड बेंटन ग़ौर करता है कि ‘नए करार की अवधि की समाप्ति से लेकर सन् १७०-१८० ईसवी के दशक तक ऐसा कोई प्रमाण नहीं कि मसीही सेना में कार्यरत थे’ (क्रिस्चियन ऐटिट्यूड्स टुवर्ड वॉर ॲन्ड पीस [ॲबिंग्डन, १९६०], पृष्ठ ६७-८)। . . . स्विफ़्ट कहता है कि जस्टिन मार्टर ‘यह मानकर चलता है कि मसीही हिंसक कार्य नहीं करते।’”
१४, १५. मानवी अधिकारियों के प्रति प्रारंभिक मसीहियों के सापेक्षिक आज्ञापालन को नियंत्रित करनेवाले कुछेक बाइबल सिद्धान्त क्या हैं?
१४ प्रारंभिक मसीहियों ने फ़ौजियों के तौर से सेवा क्यों नहीं की? बेशक, प्रत्येक व्यक्ति ने परमेश्वर के वचन और नियमों का ध्यानपूर्वक अध्ययन करके, अपने बाइबल-प्रशिक्षित अन्तःकरण के आधार पर अपना निजी फ़ैसला किया था। वे तटस्थ थे, “संसार का कोई भाग नहीं,” और उनकी तटस्थता ने उन्हें इस दुनिया के संघर्षों में पक्ष लेना मना किया। (यूहन्ना १७:१६; १८:३६) इसके अतिरिक्त, वे परमेश्वर के अपने थे। (२ तीमुथियुस २:१९) राष्ट्र के लिए अपनी जान की बलि चढ़ाने का मतलब यह होता कि वे कैसर को वह चीज़ दे रहे थे जो परमेश्वर की थी। और तो और, वे एक अन्तरराष्ट्रीय भाइचारे का हिस्सा थे जो प्रेम-भाव में बँधे हुए थे। (यूहन्ना १३:३४, ३५; कुलुस्सियों ३:१४; १ पतरस ४:८; ५:९) वे अच्छा अन्तःकरण बनाए रखकर हथियार नहीं उठा सकते थे, जिस में एक संगी मसीही को जान से मार डालने की संभावना मौजूद थी।
१५ इसके अलावा, मसीही लोकप्रिय धार्मिक अनुष्ठानों में सहयोग नहीं दे सकते थे, जैसे कि सम्राट्-पूजा। इसके परिणामस्वरूप, उन्हें “विलक्षण और ख़तरनाक़” माना जाता था, “और स्वाभाविक है कि बाक़ी जनता उन पर शक़ करती थी।” (डब्ल्यू. ए. स्मार्ट द्वारा लिखित, स्टिल द बाइबल स्पीक्स) हालाँकि पौलुस ने लिखा कि मसीहियों को ‘जिस मनुष्य से डरना आवश्यक है, उस से डरना’ चाहिए, फिर भी उन्हें यहोवा के लिए अपने अधिक डर, या आदर को भूलना नहीं चाहिए। (रोमियों १३:७, न्यू.व.; भजन ८६:११) खुद यीशु ने कहा: “उन से मत डरना जो शरीर को घात करते हैं, पर प्राण को घात नहीं कर सकते, पर उसी से डरो, जो प्राण और शरीर दोनों को गेहन्ना में नाश कर सकते हैं।”—मत्ती १०:२८, न्यू.व.
१६. (अ) कौन-कौनसे क्षेत्रों में मसीहियों ने प्रधान अधिकारियों के प्रति अपनी अधीनता को ध्यानपूर्वक तोलना चाहिए? (ब) पृष्ठ २५ पर दिए गए बॉक्स में क्या दर्शाया गया है?
१६ मसीही होने के नाते, हम आज समान चुनौतियों का सामना करते हैं। हम मूर्तिपूजा के किसी भी आधुनिक रूप में हिस्सा नहीं ले सकते—चाहे यह किसी मूर्ति या प्रतीक की ओर आदरपूर्ण इशारे करना हो, या किसी व्यक्ति या संघटन को उद्धार का श्रेय देना हो। (१ कुरिन्थियों १०:१४; १ यूहन्ना ५:२१) और प्रारंभिक मसीहियों के जैसे, हम अपनी मसीही तटस्थता से समझौता नहीं कर सकते।—२ कुरिन्थियों १०:४ से तुलना करें।
‘नम्रता और गहरा आदर’
१७. अन्तःकरण के कारण दुःख उठा रहे मसीहियों को पतरस ने कौनसी सलाह दी?
१७ प्रेरित पतरस ने हमारे शुद्ध अन्तःकरण से प्रेरित पक्ष के बारे में लिखा और कहा: “यदि कोई परमेश्वर का विचार करके अन्याय से दुःख उठाता हुआ क्लेश सहता है, तो यह सुहावना है।” (१ पतरस २:१९) जी हाँ, यह परमेश्वर की नज़रों में एक सुहावनी बात है जब एक मसीही उत्पीड़न के बावजूद भी दृढ़ खड़ा रहता है, और फिर यह अतिरिक्त लाभ भी है कि उस मसीही का विश्वास सबल और परिष्कृत किया जाता है। (याकूब १:२-४; १ पतरस १:६, ७; ५:८-१०) पतरस ने यह भी लिखा: “यदि तुम धर्म के कारण दुःख उठाओ, तो धन्य हो; पर उन के डरने से मत डरो, और न घबराओ। पर मसीह को प्रभु जानकर अपने अपने मन में पवित्र समझो, और जो कोई तुम से तुम्हारी आशा के विषय में कुछ पूछे, तो उसे उत्तर देने के लिए सर्वदा तैयार रहो, पर नम्रता और गहरे आदर के साथ।” (१ पतरस ३:१४, १५, न्यू.व.) सचमुच उपयोगी सलाह!
१८, १९. अगर अधिकार हमारी उपासना की स्वतंत्रता पर प्रतिबन्ध लगाता है, तब किस तरह गहरे आदर और तर्कसंगति के रवैये से मदद हो सकती है?
१८ जब उत्पीड़न उठता है, इसलिए कि मसीही पक्ष के विषय अधिकारियों की ओर से ग़लतफ़हमी हुई है या इसलिए कि ईसाईजगत् के धार्मिक अगुवों ने उस अधिकार के सामने यहोवा के गवाहों का अयथार्थ विवरण दिया है, तब अधिकार के सामने वास्तविकताओं को पेश करने के परिणामस्वरूप शायद दबाव कुछ कम होगा। चूँकि वह नम्र है और उस में गहरा आदर है, एक मसीही उत्पीड़कों के साथ शारीरिक रूप से नहीं झगड़ता। परन्तु, वह अपने विश्वास की हिफ़ाज़त करने के लिए हर उपलब्ध क़ानूनी साधन का उपयोग करता है। फिर वह मामलों को यहोवा के हाथ में छोड़ देता है।—फिलिप्पियों १:७; कुलुस्सियों ४:५, ६.
१९ गहरे आदर से एक मसीही, अपने अन्तःकरण को दूषित किए बग़ैर, उस अधिकार का आज्ञापालन करने के लिए जिस हद तक वह जा सकता है, उतना जाने के लिए प्रेरित होता है। उदाहरण के लिए, अगर मण्डली की सभाओं पर प्रतिबन्ध लगया जाता है, यहोवा की मेज़ पर भोजन करते रहने के लिए मसीही किसी कम स्पष्ट रीति को खोज निकालेंगे। सर्वोच्च अधिकार, यहोवा परमेश्वर हमें पौलुस के ज़रिए बताते हैं: “प्रेम और भले कामों में उकसाने के लिए एक दूसरे की चिन्ता किया करें। और एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें, जैसे कि कितनों की रीति है।” (इब्रानियों १०:२४, २५) लेकिन ऐसी सभाएँ सावधानी से आयोजित की जा सकती हैं। अगर बहुत कम लोग उपस्थित भी हों, फिर भी हमें यक़ीन हो सकता है कि परमेश्वर ऐसी व्यवस्थाओं पर आशीर्वाद देते हैं।—मत्ती १८:२० से तुलना करें।
२०. अगर सुसमाचार के आम प्रचार को निषेध किया जाता है, तो मसीही इस स्थिति से कैसे निपट सकते हैं?
२० उसी तरह, कुछ अधिकारों ने सुसमाचार के आम प्रचार को निषेध किया है। उनके अधीन रहनेवाले मसीही याद रखते हैं कि, स्वयं यीशु के द्वारा, सर्वोच्च अधिकार ने कहा था: “पर अवश्य है कि पहले सुसमाचार सब जातियों में प्रचार किया जाए।” (मरकुस १३:१०) इसलिए, खुद को चाहे कुछ भी हो, वे सर्वोच्च अधिकार का आज्ञापालन करते हैं। जहाँ संभव था, वहाँ प्रेरितों ने सरेआम और घर-घर प्रचार किया, लेकिन लोगों तक पहुँचने के और भी तरीक़े हैं, जैसा कि अनौपचारिक प्रचार कार्य। (यूहन्ना ४:७-१५; प्रेरितों ५:४२; २०:२०) अक्सर अधिकार प्रचार कार्य में दख़ल नहीं देंगे, अगर बाइबल का ही इस्तेमाल हो—जो कि इस आवश्यकता को विशिष्ट करता है कि सभी गवाहों को धर्मशास्त्र से तर्क करने में अच्छी तरह प्रशिक्षित होना चाहिए। (प्रेरितों १७:२, १७ से तुलना करें।) निडर, फिर भी आदरपूर्ण होकर, मसीही अक्सर एक ऐसा तरीक़ा ढूँढ़ निकालेंगे, जिस से वे प्रधान अधिकारियों के रोष को बुलावा दिए बग़ैर, यहोवा का आज्ञापालन कर सकेंगे।—तीतुस ३:१, २.
२१. अगर कैसर उत्पीड़ित करने में निर्मम है, तो मसीहियों को कौनसा मार्ग चुनना चाहिए?
२१ यद्यपि, कभी-कभी अधिकार मसीहियों को उत्पीड़ित करने में निर्मम है। फिर, एक शुद्ध अन्तःकरण के साथ, हम सिर्फ़ जो सही है, वह करते रहने में सहन कर सकते हैं। तरुण फ्रांज़ राइटर के सामने एक विकल्प था: अपने विश्वास से समझौता करो या मर जाओ। चूँकि वह परमेश्वर की उपासना करना बन्द नहीं कर सकता था, उसने बड़ी साहस से अपनी मौत को गले लगाया। उसकी मौत से एक रात पहले, फ्रांज़ ने अपनी माँ को लिखा: “मुझे कल मार दिया जाएगा। मेरी ताक़त परमेश्वर की ओर से है, उसी तरह जैसे अतीत में सभी सच्चे मसीहियों का अनुभव रहा है . . . अगर आप मृत्यु तक अटल रहेंगी, तो हम पुनरुत्थान में फिर से मिलेंगे।”
२२. हमें कौनसी आशा है, और इस दौरान हमें कैसे चलते रहना चाहिए?
२२ एक दिन सारी मानवजाति एक ही नियम के अधीन होगी, यहोवा परमेश्वर के नियम के अधीन। उस वक़्त तक, हमें अच्छा अन्तःकरण बनाए रखकर परमेश्वर की व्यवस्था के अनुसार चलना चाहिए और प्रधान अधिकारियों के प्रति हमारी सापेक्ष अधीनता बनाए रखनी चाहिए, जबकि उसी समय हर एक बात में हमारे सर्वश्रेष्ठ प्रभु यहोवा का आज्ञापालन करते रहना चाहिए।—फिलिप्पियों ४:५-७.
क्या आपको याद है?
◻ प्रधान अधिकारियों के अधीन रहने का अप्रतिरोध्य कारण क्या है?
◻ कैसर द्वारा लगाए गए कर अदा करने में हमें क्यों हिचकना नहीं चाहिए?
◻ हमें अधिकार को किस तरह का आदर देना चाहिए?
◻ कैसर को दी हमारी अधीनता मात्र सापेक्षिक क्यों है?
◻ अगर हमें इसलिए उत्पीड़ित किया जाता है कि कैसर वही चाहता है, जो परमेश्वर का है, तो हमें कैसी प्रतिक्रिया दिखानी चाहिए?
[पेज 21 पर चित्रों का श्रेय]
French Embassy Press & Information Division
USSR Mission to the UN
[पेज 25 पर बक्स]
आदर, उपासना नहीं
एक सुबह कक्षा के अभ्यास समय के दौरान, टेर्रा, यहोवा की एक छोटी कॅनेडियन गवाह ने ग़ौर किया कि उसका शिक्षक कुछ समय के लिए अपने एक सहपाठी को कक्षा के बाहर ले गया। उसके कुछ समय बाद, शिक्षक ने चुपचाप टेर्रा को उसके साथ प्रिंसीपल के ऑफिस में आने को कहा।
वहाँ पहुँचने पर, टेर्रा ने ग़ौर किया कि प्रिंसीपल की मेज़ पर कॅन्डा का झंडा रखा गया था। शिक्षक ने टेर्रा को झंडे पर थूकने को कहा! उसने सुझाया कि चूँकि टेर्रा राष्ट्रगान नहीं गाती थी, और न झंडे को सलामी देती थी, ऐसा कोई कारण न था कि वह इस तरह नहीं कर सकती थी। टेर्रा ने इन्कार कर दिया, यह समझाते हुए कि हालाँकि यहोवा के गवाह झंडे को नहीं पूजते, वे उसका आदर ज़रूर करते हैं।
वापस कक्षा में जाकर, शिक्षक ने घोषित किया कि अभी अभी उसने एक प्रयोग किया था। उसने दो विद्यार्थियों को एक एक करके प्रिंसीपल की ऑफिस में ले जाकर उन्हें झंडे पर थूकने का आदेश दिया था। पहली विद्यार्थिनी देशभक्तिपूर्ण समारोह में हिस्सा लेती थी, लेकिन जब उसे कहा गया, तब उसने झंडे पर थूक दिया। इसके विपरीत, टेर्रा न तो राष्ट्रगान गाती थी और न झंडे को सलामी देती थी; फिर भी, उसने इस तरह से झंडे का अपमान करना अस्वीकार किया। शिक्षक ने बताया कि टेर्रा ही ने उचित आदर दिखाया था।—१९९० यरबुक ऑफ जेहोवाज़ विट्नेसिज़.