मसीही परिवार वृद्ध जनों की सहायता करता है
“बुढ़ापे के समय मेरा त्याग न कर; जब मेरा बल घटे तब मुझ को छोड़ न दे।”—भजन ७१:९.
१. अनेक संस्कृतिओं में वृद्ध जनों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है?
“सर्वेक्षण संकेत करते हैं कि हर सात दुर्व्यवहार किए गए वृद्ध जनों में से लगभग छः वृद्ध जनों (८६%) के साथ स्वयं उनके ही परिवार द्वारा दुर्व्यवहार किया जाता है,” द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने कहा। आधुनिक परिपक्वता (Modern Maturity) पत्रिका ने कहा: “वृद्ध जनों का दुर्व्यवहार केवल नवीनतम [पारिवारिक हिंसा] है, जो अमरीका के समाचार पत्रों के पृष्ठों पर प्रकट हुई है।” जी हाँ, अनेक संस्कृतिओं में वृद्ध जन घोर दुर्व्यवहार और उपेक्षा के शिकार बन गए हैं। वास्तव में हमारा वह समय है जब अनेक लोग “अपस्वार्थी, . . . कृतघ्न, निष्ठाहीन, स्वाभाविक स्नेह रहित” हैं।—२ तीमुथीयुस ३:१-३, NW.
२. इब्रानी शास्त्र के अनुसार, यहोवा वृद्ध जनों को किस दृष्टिकोण से देखता है?
२ लेकिन, प्राचीन इस्राएल में वृद्ध जनों के साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया जाना था। व्यवस्था ने कहा: “पक्के बालवाले के साम्हने उठ खड़े होना, और बूढ़े का आदरमान करना, और अपने परमेश्वर का भय निरन्तर मानना; मैं यहोवा हूं।” उत्प्रेरित बुद्धिमत्तापूर्ण नीतिवचन की पुस्तक हमें सलाह देती है: “अपने जन्मानेवाले की सुनना, और जब तेरी माता बुढ़िया हो जाए, तब भी उसे तुच्छ न जानना।” यह आज्ञा देती है: “हे मेरे पुत्र, अपने पिता की शिक्षा पर कान लगा, और अपनी माता की शिक्षा को न तज।” मूसा की व्यवस्था ने पुरुष और स्त्री दोनों जातिओं के वृद्ध जनों के लिए आदर और सम्मान सिखाया। स्पष्टतः, यहोवा चाहता है कि वृद्ध जनों का आदर किया जाए।—लैव्यव्यवस्था १९:३२; नीतिवचन १:८; २३:२२.
बाइबल समयों में वृद्ध जनों की देख-भाल करना
३. यूसुफ ने अपने वृद्ध पिता के लिए कैसे करुणा दिखाई?
३ आदर को केवल शब्दों में ही नहीं, बल्कि विचारशील कार्यों में भी दिखाना था। यूसुफ ने अपने वृद्ध पिता के लिए बड़ी करुणा दिखाई। वह चाहता था कि याक़ूब कनान से मिस्र की यात्रा करे, जिनके बीच की दूरी ३०० किलोमिटर से अधिक थी। इसलिए यूसुफ ने याक़ूब को “मिस्र की अच्छी वस्तुओं से लदे हुए दस गदहे, और अन्न और रोटी और उसके पिता के मार्ग के लिये भोजनवस्तु से लदी हुई दस गदहियां भेजीं।” जब याक़ूब गोशेन पहुँचा, तब यूसुफ उसके पास गया और “उसके गले से लिपटा, और कुछ देर तक उसके गले से लिपटा हुआ रोता रहा।” यूसुफ ने अपने पिता पर गहरे स्नेह की बौछार की। वृद्ध जनों के लिए चिन्ता का क्या ही प्रेरणाप्रद उदाहरण!—उत्पत्ति ४५:२३; ४६:५, २९.
४. रूत अनुसरण करने के लिए एक बढ़िया उदाहरण क्यों है?
४ वृद्ध जनों के लिए दयालुता में अनुसरण करने का एक और सुन्दर आदर्श रूत है। हालाँकि वह ग़ैर-यहूदी थी, वह अपनी वृद्ध, विधवा यहूदी सास, नाओमी का साथ देती रही। उसने स्वयं अपने लोगों को छोड़ दिया और दूसरा पति न पाने का जोखिम उठाया। जब नाओमी ने उससे स्वयं अपने लोगों के पास लौटने के लिए आग्रह किया, तब रूत ने बाइबल में दिए कुछ सबसे सुन्दर शब्दों में उत्तर दिया: “तू मुझ से यह बिनती न कर, कि मुझे त्याग वा छोड़कर लौट जा; क्योंकि जिधर तू जाए उधर मैं भी जाऊंगी; जहां तू टिके वहां मैं भी टिकूंगी; तेरे लोग मेरे लोग होंगे, और तेरा परमेश्वर मेरा परमेश्वर होगा; जहां तू मरेगी वहां मैं भी मरूंगी, और वहीं मुझे मिट्टी दी जाएगी। यदि मृत्यु छोड़ और किसी कारण मैं तुझ से अलग होऊं, तो यहोवा मुझ से वैसा ही वरन उस से भी अधिक करे।” (रूत १:१६, १७) देवर-अधिकार विवाह प्रबन्ध के अधीन जब रूत वृद्ध बोअज़ के साथ विवाह करने के लिए तैयार थी तब भी उसने अच्छे गुण दिखाए।—रूत, अध्याय २ से ४.
५. लोगों के साथ व्यवहार करने में यीशु ने कौनसे गुण दिखाए?
५ यीशु ने लोगों के साथ अपने व्यवहार में समान उदाहरण रखा। वह धैर्यवान्, करुणामय, दयालु, और स्फूर्तिदायक था। उसने एक ऐसे बेचारे आदमी में निजी दिलचस्पी दिखाई और उसे चंगा किया, जो ३८ वर्षों से अपंग था, चलने में असमर्थ था। उसने विधवाओं के प्रति लिहाज़ दिखाया। (लूका ७:११-१५; यूहन्ना ५:१-९) यातना स्तंभ पर अपनी दुःखदायी मृत्यु की पीड़ा के दौरान भी, उसने यह निश्चित किया कि उसकी माता की देख-भाल की जाएगी, जिसकी उम्र सम्भवतः ५०-५५ की थी। अपने पाखंडी शत्रुओं को छोड़, यीशु सबके लिए स्फूर्तिदायक संगति था। इसलिए, वह कह सका: “हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे।”—मत्ती ९:३६; ११:२८, २९; यूहन्ना १९:२५-२७.
कौन लिहाज़ के योग्य है?
६. (क) कौन ख़ास देख-भाल के योग्य हैं? (ख) हम अपने आप से कौनसे प्रश्न पूछ सकते हैं?
६ क्योंकि देख-भाल करने के मामले में यहोवा परमेश्वर और उसका पुत्र, यीशु मसीह इतने अच्छे उदाहरण रखते हैं, यह उपयुक्त है कि समर्पित मसीही उनके नमूने का अनुकरण करें। हमारे बीच में कुछ ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने अनेक वर्षों से परिश्रम किया है और जो बोझ से दबे हुए हैं—यानी वृद्ध भाई-बहन जिनकी उम्र ढलने लगी है। कुछ हमारे माता-पिता या दादा-दादी हो सकते हैं। क्या हम उनका कम मूल्यांकन करते हैं? क्या हम उन्हें नीचा दिखाते हैं? या क्या हम वास्तव में उनके विस्तृत अनुभव और बुद्धि का मूल्यांकन करते हैं? यह सच है कि शायद कुछ व्यक्ति सनकीपन और निर्बलताओं, जो वृद्धावस्था में असामान्य नहीं हैं, से हमारे धीरज को परखें। परन्तु अपने आप से पूछिए, ‘इन परिस्थितियों में मैं कितना फ़र्क़ होता?’
७. वृद्ध जनों को तदनुभूति दिखाने की आवश्यकता को कौनसी बात सचित्रित करती है?
७ वृद्ध जनों के लिए एक छोटी लड़की की करुणा के बारे में मध्य पूर्व से एक हृदयस्पर्शी कहानी है। एक नानी रसोईघर में सहायता कर रही थी और अचानक उससे एक चीनी मिट्टी की प्लेट गिरकर टूट जाती है। वह स्वयं अपने फूहड़पन से परेशान हुई; उसकी बेटी उससे भी ज़्यादा चिढ़ गई। उसकी बेटी ने स्वयं अपनी छोटी लड़की को बुलाया और उसे नानी के लिए एक लकड़ी की न टूटनेवाली प्लेट ख़रीदने को स्थानीय दुकान भेजा। वह लड़की लकड़ी की दो प्लेटें लेकर वापस आई। उसकी माँ ने उत्तर माँगा: “तुम ने दो प्लेटें क्यों ख़रीदीं?” नातिन ने हिजकिचाते हुए उत्तर दिया: “एक नानी के लिए और दूसरी आपके लिए जब आप बूढ़ी हो जाएँगी।” जी हाँ, इस संसार में हम सब बूढ़े होने की प्रत्याशा का सामना करते हैं। क्या हम इस बात का मूल्यांकन नहीं करेंगे कि हमारे साथ धीरज और दयालुता के साथ व्यवहार किया जाए?—भजन ७१:९.
८, ९. (क) हमारे बीच वृद्ध जनों के साथ हमें कैसा व्यवहार करना चाहिए? (ख) वे लोग जो हाल ही में मसीही बने हैं, उनमें से कुछ जनों को क्या याद रखने की आवश्यकता है?
८ यह कभी मत भूलिए कि हमारे वृद्ध भाई-बहनों में अनेक जनों का उनके अतीत में वफ़ादार मसीही कार्य का एक लंबा रिकार्ड है। वे निश्चय ही हमारे आदर और लिहाज़, हमारी दयालु सहायता और प्रोत्साहन के योग्य हैं। बुद्धिमान व्यक्ति ने सही कहा: “पक्के बाल शोभायमान मुकुट ठहरते हैं; [जब] वे धर्म के मार्ग पर चलने से प्राप्त होते हैं।” और उस वृद्ध व्यक्ति, पुरुष या स्त्री, का आदर किया जाना चाहिए। इन वृद्ध पुरुषों और स्त्रियों में से कुछ व्यक्ति अभी भी वफ़ादार पायनियर के तौर पर सेवा कर रहे हैं, और अनेक पुरुष कलीसिया में प्राचीनों के तौर पर वफ़ादारी से निरन्तर सेवा कर रहे हैं; कुछ व्यक्ति सफरी ओवरसियर के तौर पर अनुकरणीय कार्य करते हैं।—नीतिवचन १६:३१.
९ पौलुस ने तीमुथियुस को सलाह दी: “किसी बूढ़े को न डांट; पर उसे पिता जानकर समझा दे, और जवानों को भाई जानकर; बूढ़ी स्त्रियों को माता जानकर। और जवान स्त्रियों को पूरी पवित्रता से बहिन जानकर, समझा दे।” (१ तीमुथियुस ५:१, २) वे लोग जो हाल में एक निरादरपूर्ण संसार से निकलकर मसीही कलीसिया में आए हैं, उन्हें ख़ासकर प्रेम पर आधारित पौलुस के शब्दों को हृदय में बैठाना चाहिए। नौजवानों, आप उन बुरी मनोवृत्तियों का अनुकरण मत कीजिए जो शायद आपने स्कूल में देखी हों। वृद्ध गवाहों की दयालु सलाह का बुरा मत मानिए। (१ कुरिन्थियों १३:४-८; इब्रानियों १२:५, ६, ११) तथापि, जब ख़राब स्वास्थ्य या वित्तीय समस्या के कारण वृद्ध जनों को सहायता की आवश्यकता होती है, तब उन्हें सहायता करने की मुख्य ज़िम्मेदारी किन की है?
वृद्ध जनों की देख-भाल करने में परिवार की भूमिका
१०, ११. (क) बाइबल के अनुसार, वृद्ध जनों की देख-भाल करने के लिए किनको पहल करनी चाहिए? (ख) वृद्ध जनों की देख-भाल करना क्यों हमेशा आसान नहीं होता है?
१० प्रारंभिक मसीही कलीसिया में, विधवाओं की देख-भाल के विषय पर समस्या उठी। प्रेरित पौलुस ने किस प्रकार सूचित किया कि इन आवश्यकताओं को पूरा किया जाना चाहिए? “उन विधवाओं का जो सचमुच विधवा हैं आदर कर। और यदि किसी विधवा के लड़केबाले या नातीपोते हों, तो वे पहिले अपने ही घराने के साथ भक्ति का बर्ताव करना, और अपने माता-पिता आदि को उन का हक्क देना सीखें, क्योंकि यह परमेश्वर को भाता है। पर यदि कोई अपनों की और निज करके अपने घराने की चिन्ता न करे, तो वह विश्वास से मुकर गया है, और अविश्वासी से भी बुरा बन गया है।”—१ तीमुथियुस ५:३, ४, ८.
११ आवश्यकता के समय में, परिवार के नज़दीकी सदस्यों को पहले वृद्ध जनों की सहायता करनी चाहिए।a इस प्रकार, सयाने बच्चे उन वर्षों के प्रेम, कार्य, और देख-भाल का मूल्यांकन दिखा सकते हैं जो उनके माता-पिता ने प्रदान की। यह शायद आसान न हो। जैसे-जैसे लोग बूढ़े होते जाते हैं, वे स्वाभाविक ढंग से धीमे हो जाते हैं, और कुछ जन तो अपाहिज हो जाते हैं। अन्य जन शायद बिना समझे-बूझे, आत्मकेंद्रित और माँग करनेवाले बन सकते हैं। लेकिन जब हम शिशु थे, क्या हम भी आत्मकेंद्रित और माँग करनेवाले नहीं थे? और क्या हमारे माता-पिता हमारी सहायता करने के लिए दौड़े चले नहीं आते थे? अब उनकी वृद्धावस्था में स्थिति बदल गई है। इसलिए, किस चीज़ की आवश्यकता है? करुणा और धीरज।—१ थिस्सलुनीकियों २:७, ८ से तुलना कीजिए.
१२. कलीसिया में वृद्ध जनों—और अन्य सभी लोगों की देख-भाल करने में कौनसे गुणों की आवश्यकता है?
१२ प्रेरित पौलुस ने व्यावहारिक सलाह दी जब उसने लिखा: “इसलिये परमेश्वर के चुने हुओं की नाईं जो पवित्र और प्रिय हैं, बड़ी करुणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो। और यदि किसी को किसी पर दोष देने का कोई कारण हो, तो एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो: जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी करो। और इन सब के ऊपर प्रेम को जो सिद्धता का कटिबन्ध है बान्ध लो।” यदि हमें इस प्रकार की करुणा और प्रेम कलीसिया में दिखाना चाहिए, तो क्या हमें इसे परिवार में और अधिक नहीं दिखाना चाहिए?—कुलुस्सियों ३:१२-१४.
१३. वृद्ध माता-पिता या दादा-दादी के अलावा, किनको शायद सहायता की आवश्यकता हो?
१३ कभी-कभी इस प्रकार की सहायता की आवश्यकता केवल माता-पिता या दादा-दादी को ही नहीं बल्कि अन्य वृद्ध सम्बन्धियों को भी हो सकती है। कुछ वृद्ध जनों ने, जिनके कोई बच्चे नहीं हैं, मिशनरी सेवा, सफ़री सेवकाई, और अन्य पूर्ण-समय के कार्य में काफ़ी वर्ष सेवा की है। उन्होंने जीवनभर राज्य को वास्तविक रूप से पहला स्थान दिया है। (मत्ती ६:३३) तो फिर, क्या उन्हें परवाह की भावना दिखाना उपयुक्त न होगा? निःसंदेह जिस प्रकार वॉचटावर सोसाइटी अपने वृद्ध बेथेल सदस्यों की देख-भाल करती है, उसमें हमारे पास एक बढ़िया उदाहरण है। ब्रुकलिन के बेथेल मुख्यालय में और संस्था की अनेक शाखाओं में, अनेक वृद्ध भाई-बहनों को परिवार के उन प्रशिक्षित सदस्यों द्वारा प्रतिदिन तवज्जो मिलती है, जो इस कार्य के लिए नियुक्त किए गए हैं। वे इन वृद्ध जनों की देख-भाल करने में ख़ुश हैं, मानो वे उनके अपने ही माता-पिता या दादा-दादी हों। इसके साथ-साथ, वे वृद्ध जनों के अनुभव से काफ़ी कुछ सीखते हैं।—नीतिवचन २२:१७.
देख-भाल करने में कलीसिया की भूमिका
१४. प्रारंभिक मसीही कलीसिया में वृद्ध जनों के लिए कौनसा प्रबन्ध किया गया था?
१४ आज वृद्ध जनों के लिए अनेक देशों में वृद्धावस्था पेंशन व्यवस्था और सरकार-प्रबन्धित चिकित्सीय सेवा है। जहाँ मसीही ऐसे प्रबन्धों के हक़दार हैं, वहाँ वे इनका पूरा लाभ उठा सकते हैं। लेकिन, पहली सदी में, ऐसा कोई प्रबन्ध नहीं था। इसलिए मसीही कलीसिया ने निराश्रय विधवाओं की सहायता करने के लिए सकारात्मक क़दम उठाया। पौलुस ने निर्देशित किया: “उसी विधवा का नाम [कलीसिया सहायता के लिए] लिखा जाए, जो साठ वर्ष से कम की न हो, और एक ही पति की पत्नी रही हो। और भले काम में सुनाम रही हो, जिस ने बच्चों का पालन-पोषण किया हो; पाहुनों की सेवा की हो, पवित्र लोगों के पांव धोए हो, दुखियों की सहायता की हो, और हर एक भले काम में मन लगाया हो।” इस प्रकार, पौलुस ने दिखाया कि वृद्ध जनों की सहायता करने में कलीसिया की भी एक भूमिका है। आध्यात्मिक रूप से मनस्क स्त्रियाँ जिनके विश्वासी बच्चे नहीं थे, ऐसी सहायता के लिए योग्य थीं।—१ तीमुथियुस ५:९, १०.
१५. सरकारी सहायता प्राप्त करने के लिए शायद क्यों सहायता की आवश्यकता पड़े?
१५ जहाँ वृद्ध जनों के लिए सरकारी व्यवस्थाएँ हैं, वहाँ अक्सर ऐसी काग़ज़ी-कार्यवाही सम्मिलित होती है जो शायद हतोत्साहित करनेवाली प्रतीत हो। ऐसे मामलों में कलीसिया के ओवरसियरों के लिए उपयुक्त है कि वे सहायता देने का प्रबन्ध करें ताकि वृद्ध जन ऐसी सहायता के लिए आवेदन दे सकें, उसको वसूल कर सकें, या उसके मूल्य को भी बढ़ा सकें। कभी-कभी परिस्थितियों में परिवर्तन के कारण पेंशन में वृद्धि हो सकती है। लेकिन और भी अनेक अन्य व्यावहारिक बातें हैं जिनको ओवरसियर आयोजित कर सकते हैं ताकि वृद्ध जनों की देख-भाल की जा सके। इन में से कुछ क्या हैं?
१६, १७. हम कलीसिया के वृद्ध जनों को किन विभिन्न तरीक़ों से पहुनाई दिखा सकते हैं?
१६ पहुनाई करना एक ऐसी प्रथा है जो पीछे की ओर बाइबल समयों तक जाती है। आज तक अनेक मध्य पूर्वी देशों में, अजनबियों की पहुनाई की जाती है, कम से कम एक प्याला चाय या कॉफी पेश करने के हद तक। तो फिर, यह आश्चर्य की बात नहीं कि पौलुस ने लिखा: “पवित्र लोगों को जो कुछ अवश्य हो, उस में उन की सहायता करो; पहुनाई करने में लगे रहो।” (रोमियों १२:१३) पहुनाई के लिए यूनानी शब्द, फिलोक्सीनीया (phi·lo·xe·niʹa), का शाब्दिक रूप से अर्थ है “अजनबियों के लिए प्रेम (स्नेह, या के प्रति दयालुता)।” यदि एक मसीही को अजनबियों के प्रति सत्कारशील होना चाहिए, तो क्या उसे उन लोगों के प्रति और अधिक सत्कारशील नहीं होना चाहिए जो विश्वास में उससे सम्बन्धित हैं? अक्सर एक वृद्ध जन के नित्यकर्म में भोजन का एक निमंत्रण सुखद परिवर्तन का अर्थ रखता है। यदि आप अपने सामाजिक समूहन में बुद्धि और अनुभव की अभिव्यक्ति चाहते हैं, तो वृद्ध जनों को सम्मिलित कीजिए।—लूका १४:१२-१४ से तुलना कीजिए.
१७ अनेक तरीक़े हैं जिनसे वृद्ध जनों को प्रोत्साहित किया जा सकता है। यदि हम कार में राज्यगृह जाने या एक सम्मेलन में जाने के लिए एक समूह बनाते हैं, तो क्या कोई वृद्ध जन हैं जो सवारी पसन्द करेंगे? उनके पूछने का इन्तज़ार मत कीजिए। उन्हें ले जाने का प्रस्ताव रखिए। एक और व्यावहारिक सहायता है, उनके लिए ख़रीदारी करना। या यदि वे समर्थ हैं, तो क्या हम उन्हें अपने साथ ले जा सकते हैं, जब हम अपनी ख़रीदारी करने जाते हैं? लेकिन यह निश्चित कीजिए कि यदि आवश्यकता पड़ जाए, तो वहाँ ऐसे स्थान हैं जहाँ वे आराम कर सकते हैं और अपने आपको ताज़ा कर सकते हैं। निःसंदेह धीरज और दयालुता की आवश्यकता पड़ेगी, लेकिन एक वृद्ध जन की सत्हृदय कृतज्ञता बहुत ही लाभप्रद हो सकती है।—२ कुरिन्थियों १:११.
कलीसिया के लिए एक सुन्दर परिसंपत्ति
१८. वृद्ध जन क्यों कलीसिया के लिए आशिष हैं?
१८ जब हम कलीसिया में कुछ पक्के और सफ़ेद बालों को (और साथ ही वृद्धावस्था के कारण गंजे सिरों) को देखते हैं तो यह क्या ही आशिष है! इसका यह अर्थ है कि नौजवानों की कार्यक्षमता और ओजस्विता के बीच, हमारे पास थोड़ी सी बुद्धि और अनुभव है—किसी भी कलीसिया के लिए एक वास्तविक परिसंपत्ति। उनका ज्ञान स्फूर्तिदायक जल की तरह है जिसे एक कुएँ से खींचना पड़ता है। यह ऐसे है जैसे नीतिवचन १८:४ व्यक्त करता है: “मनुष्य के मुंह के वचन गहिरा जल, वा उमण्डनेवाली नदी वा बुद्धि के सोते हैं।” वृद्ध जनों के लिए यह महसूस करना कितना प्रोत्साहक है कि उनकी आवश्यकता है और उनका मूल्यांकन किया जाता है!—भजन ९२:१४ से तुलना कीजिए.
१९. कुछ व्यक्तियों ने अपने वृद्ध माता-पिताओं के लिए किस प्रकार बलिदान दिए हैं?
१९ पूर्ण-समय सेवा कर रहे कुछ व्यक्तियों ने वृद्ध, बीमार माता-पिताओं की देख-भाल करने के लिए अपने विशेषाधिकारों को छोड़कर घर लौटने की आवश्यकता महसूस की है। उन्होंने उनके लिए एक बलिदान दिया है जिन्होंने पहले उनके लिए बलिदान दिया था। एक दम्पत्ति, जो पहले मिशनरी थे और अब भी पूर्ण-समय सेवा में हैं, अपने वृद्ध माता-पिता की देख-भाल करने के लिए घर लौटे। यह उन्होंने २० से भी अधिक वर्षों से किया है। चार वर्ष पहले इस पुरुष की माँ को उपचार-गृह में डालना पड़ा। पति, जो अब ६०-७० वर्ष का है, अपनी ९३-वर्षीय माँ को प्रतिदिन भेंट करने जाता है। वह स्पष्ट करता है: “मैं उसे कैसे छोड़ सकता हूँ? वह मेरी माँ है!” अन्य मामलों में वृद्ध जनों की देख-भाल करने के लिए कलीसियाओं और व्यक्तियों ने आगे आकर अपने आपको प्रस्तुत किया है, ताकि उनके बच्चे अपनी कार्य-नियुक्ति में बने रह सकें। ऐसा निःस्वार्थ प्रेम भी अधिक प्रशंसा के योग्य है। हरेक स्थिति को कर्त्तव्यनिष्ठता से निपटाया जाना चाहिए क्योंकि वृद्ध जनों की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। दिखाइए कि आप अपने वृद्ध माता-पिता से प्रेम करते हैं।—निर्गमन २०:१२; इफिसियों ६:२, ३.
२०. वृद्ध जनों की देख-भाल करने में यहोवा ने हमें कौनसा उदाहरण दिया है?
२० निश्चय ही, हमारे वृद्ध भाई-बहन परिवार या कलीसिया के लिए शोभायमान मुकुट हैं। यहोवा ने कहा: “तुम्हारे बुढ़ापे में भी मैं वैसा ही बना रहूंगा और तुम्हारे बाल पकने के समय तक तुम्हें उठाए रहूंगा। मैं ने तुम्हें बनाया और तुम्हें लिए फिरता रहूंगा; मैं तुम्हें उठाए रहूंगा और छुड़ाता भी रहूंगा।” ऐसा हो कि मसीही परिवार में हम अपने वृद्ध भाई-बहनों के प्रति समान धीरज और परवाह दिखाएँ।—यशायाह ४६:४, ५; नीतिवचन १६:३१.
[फुटनोट]
a वृद्ध जनों के लिए परिवार के सदस्य क्या कर सकते हैं पर विस्तृत सुझावों के लिए, दिसम्बर १, १९८७, प्रहरीदुर्ग देखिए.
क्या आपको याद है?
▫ वृद्ध जनों की देख-भाल करने के कौनसे बाइबल उदाहरण हमारे पास हैं?
▫ हमें वृद्ध जनों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए?
▫ परिवार के सदस्य अपने वृद्ध प्रिय जनों की देख-भाल कैसे कर सकते हैं?
▫ वृद्ध जनों की सहायता करने के लिए कलीसिया क्या कर सकती है?
▫ वृद्ध जन हम सब के लिए आशिष क्यों हैं?
[पेज 16 पर तसवीरें]
रूत ने वृद्ध नाओमी को दयालुता और आदर दिखाया
[पेज 17 पर तसवीरें]
वृद्ध जन कलीसिया के मूल्यवान सदस्य हैं