यहोवा अपने बुज़ुर्ग सेवकों की गहरी परवाह करता है
“परमेश्वर अन्यायी नहीं, कि तुम्हारे काम, और उस प्रेम को भूल जाए, जो तुम ने उसके नाम के लिये . . . दिखाया।”—इब्रा. 6:10.
1, 2. (क) एक बुज़ुर्ग को देखकर आपको क्या याद आता है, जिसके बाल पक चुके हैं? (ख) यहोवा बुज़ुर्ग मसीहियों को किस नज़र से देखता है?
जब आप कलीसिया में किसी बुज़ुर्ग को देखते हैं, जिसके बाल पक चुके हैं, तो आपको क्या याद आता है? आपको शायद बाइबल में दर्ज़ वह दर्शन याद आए, जो यहोवा ने दानिय्येल को दिया था। उस दर्शन में परमेश्वर ने खुद को सफेद बालवाला बताया। इस बारे में दानिय्येल ने लिखा: “मैं ने देखते देखते अन्त में क्या देखा, कि सिंहासन रखे गए, और कोई अति प्राचीन विराजमान हुआ; उसका वस्त्र हिम सा उजला, और सिर के बाल निर्मल ऊन सरीखे थे।”—दानि. 7:9.
2 ऊन का कुदरती रंग अकसर सफेद होता है। इसलिए ऊन सरीखे सफेद बाल और उपाधि “अति प्राचीन” दिखाते हैं कि यहोवा युग-युग से है और उसके पास असीम बुद्धि है। इसी वजह से वह हमारा आदर और सम्मान पाने का हकदार है। तो फिर अति प्राचीन यहोवा उन बुज़ुर्गों को किस नज़र से देखता है, जो वफादारी से उसकी सेवा करते आए हैं? परमेश्वर का वचन कहता है: “पक्के बाल शोभायमान मुकुट ठहरते हैं; वे धर्म के मार्ग पर चलने से प्राप्त होते हैं।” (नीति. 16:31) जी हाँ, परमेश्वर की नज़र में ये वफादार मसीही बहुत ही खूबसूरत हैं। क्या आप भी बुज़ुर्ग भाई-बहनों को उसी नज़र से देखते हैं, जैसे यहोवा देखता है?
वे अनमोल क्यों हैं?
3. कलीसिया के बुज़ुर्ग मसीही हमें क्यों प्यारे हैं?
3 परमेश्वर के इन प्यारे बुज़ुर्ग सेवकों में यहोवा के साक्षियों के शासी निकाय के सदस्य, सफरी अध्यक्ष (जो पहले सफरी काम करते थे और जो आज यह काम कर रहे हैं), जोशीले पायनियर और प्रौढ़ प्रचारक शामिल हैं। ये भाई-बहन पूरी वफादारी से कलीसियाओं में सेवा कर रहे हैं। आप शायद इनमें से कुछ को जानते हों, जिन्होंने लंबे अरसे से जोश के साथ सुसमाचार का प्रचार किया है और जिनकी अच्छी मिसाल का जवानों पर बढ़िया असर हुआ है। कुछ बुज़ुर्ग भाइयों ने बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ उठायी हैं और सुसमाचार की खातिर ज़ुल्म सहे हैं। इन भाइयों ने गुज़रे सालों में जो सेवा की है और आज जो सेवा कर रहे हैं, उसकी यहोवा और “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” तहेदिल से कदर करते हैं।—मत्ती 24:45.
4. हमें क्यों बुज़ुर्ग मसीहियों का आदर करना चाहिए और उनके लिए प्रार्थना करनी चाहिए?
4 यहोवा के सभी सेवकों को इन उम्रदराज़ मसीहियों की कदर करनी चाहिए और उनका आदर करना चाहिए। दरअसल मूसा की कानून व्यवस्था के मुताबिक, बुज़ुर्गों के लिए आदर और लिहाज़ दिखाने और यहोवा का भय मानने के बीच गहरा नाता था। (लैव्य. 19:32) हमें इन वफादार जनों के लिए लगातार प्रार्थना करनी चाहिए और प्यार की खातिर उन्होंने बरसों से जो मेहनत की है, उसके लिए यहोवा को धन्यवाद देना चाहिए। प्रेरित पौलुस ने भी अपने प्यारे साथियों के लिए प्रार्थना की थी, जिनमें जवान और बुज़ुर्ग दोनों शामिल थे।—1 थिस्सलुनीकियों 1:2, 3 पढ़िए।
5. बुज़ुर्ग मसीहियों की संगति से हमें क्या फायदा हो सकता है?
5 इसके अलावा, बुज़ुर्ग मसीहियों की संगति से कलीसिया के सभी भाई-बहन फायदा पा सकते हैं। इन वफादार बुज़ुर्ग जनों ने अध्ययन करके, दूसरों को देखकर और उनसे सीखकर, साथ ही अपने तजुरबे से बेशकीमती ज्ञान हासिल किया है। उन्होंने धीरज धरना और दूसरों को हमदर्दी दिखाना भी सीखा है। और जब वे सीखी हुई बातें आनेवाली पीढ़ी को बताते हैं, तो उन्हें बहुत खुशी और संतोष मिलता है। (भज. 71:18) जवानो, बुज़ुर्गों ने जो बेशकीमती ज्ञान हासिल किया है, वह गहरे कुएँ में पाए जानेवाले पानी की तरह है। इसलिए समझदारी दिखाते हुए उनसे वह ज्ञान पाने की कोशिश कीजिए।—नीति. 20:5.
6. आप कैसे दिखा सकते हैं कि आप बुज़ुर्ग जनों को वाकई अनमोल समझते हैं?
6 क्या आप बुज़ुर्गों को यह जताते हैं कि आप उन्हें उतना ही अनमोल समझते हैं जितना कि यहोवा उन्हें अनमोल समझता है? ऐसा करने का एक तरीका है, उन्हें यह बताना कि आप उनकी वफादारी के लिए उनसे बेहद प्यार करते हैं और उनकी राय या सलाह की कदर करते हैं। इसके अलावा, उनकी सलाह को मानने से भी आप दिखाते हैं कि आप सच्चे दिल से उनकी इज़्ज़त करते हैं। कई बुज़ुर्ग मसीही आज भी उन बुद्धि-भरी सलाहों को याद करते हैं, जो उन्हें वफादार बुज़ुर्ग जनों से मिली थीं। और उनका कहना है कि उन सलाहों पर चलने से उन्हें ज़िंदगी-भर फायदा हुआ है।a
व्यावहारिक तरीकों से प्यार और परवाह दिखाइए
7. यहोवा ने बुज़ुर्ग जनों की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी सबसे पहले किन्हें दी है?
7 परमेश्वर ने बुज़ुर्ग जनों की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी सबसे पहले उनके परिवारवालों को दी है। (1 तीमुथियुस 5:4, 8 पढ़िए।) जब परिवारवाले अपनी यह ज़िम्मेदारी निभाते हैं और यह ज़ाहिर करते हैं कि उन्हें भी यहोवा की तरह बुज़ुर्गों की परवाह है, तो यह देखकर यहोवा खुश होता है। वह ऐसे परिवारों की मदद करता है और उनकी मेहनत और त्याग के लिए उन्हें आशीषें देता है।b
8. कलीसियाओं को बुज़ुर्ग मसीहियों के लिए परवाह क्यों दिखानी चाहिए?
8 यहोवा को तब भी खुशी होती है, जब कलीसियाएँ उन वफादार बुज़ुर्ग भाई-बहनों की मदद करती हैं, जो ज़रूरतमंद होते हैं मगर जिनके घरवाले या तो सच्चाई में नहीं होते या उनकी देखभाल नहीं करना चाहते। (1 तीमु. 5:3, 5, 9, 10) उनकी मदद करके कलीसियाएँ दिखाती हैं कि बुज़ुर्गों के लिए उनमें ‘कृपा और भाईचारे की प्रीति, और करुणा’ है। (1 पत. 3:8) कलीसियाएँ इन बुज़ुर्ग सदस्यों के लिए जो परवाह दिखाती हैं, उसे समझाने के लिए प्रेरित पौलुस ने इंसान के शरीर का बहुत अच्छा उदाहरण दिया। उसने कहा कि जब शरीर का एक अंग तकलीफ में होता है “तो सब अंग उसके साथ दुःख पाते हैं।” (1 कुरि. 12:26) बुज़ुर्गों के लिए कारगर तरीकों से करुणा दिखाकर हम पौलुस की इस सलाह में दिए सिद्धांत को मान रहे होंगे: “तुम एक दूसरे के भार उठाओ, और इस प्रकार मसीह की व्यवस्था को पूरी करो।”—गल. 6:2.
9. ढलती उम्र के साथ-साथ एक व्यक्ति को क्या भार उठाने पड़ सकते हैं?
9 बुज़ुर्ग मसीहियों को क्या भार उठाना पड़ सकता है? कई बुज़ुर्ग बहुत जल्द थक जाते हैं। उन्हें शायद लगे कि अब उनसे मामूली-से-मामूली काम भी नहीं हो पाता। जैसे डॉक्टर के पास जाना, बिल वगैरह जमा करना, घर की सफाई करना और खाना बनाना। उम्र ढलने के साथ-साथ उनकी भूख-प्यास भी कम हो जाती है। इसलिए उन्हें लग सकता है कि उन्हें ज़्यादा खाने-पीने की ज़रूरत नहीं। ढलती उम्र की वजह से उन्हें बाइबल अध्ययन करने और मसीही सभाओं में भी काफी दिक्कतें आती हैं। जैसे देखने और सुनने की शक्ति कमज़ोर होने पर वे सभाओं में ठीक तरह से पढ़ या सुन नहीं पाते। यहाँ तक कि सभाओं के लिए तैयार होना ही उन्हें थका देता है। तो फिर सवाल यह है कि इन बुज़ुर्गों की मदद करने के लिए दूसरे क्या कर सकते हैं?
आप कैसे मदद कर सकते हैं
10. बुज़ुर्ग मसीहियों को व्यावहारिक मदद देने के लिए प्राचीन क्या कर सकते हैं?
10 बहुत-सी कलीसियाओं में बुज़ुर्गों की बड़ी अच्छी तरह से देखभाल की जाती है। भाई-बहन उनके लिए खरीदारी करते, खाना बनाते और साफ-सफाई करते हैं। वे इन बुज़ुर्गों को अध्ययन करने, सभाओं के लिए तैयार होने और नियमित तौर पर प्रचार में जाने में मदद देते हैं। जवान साक्षी इन बुज़ुर्गों को सभाओं और प्रचार के लिए ले जाते हैं। जो बुज़ुर्ग चलने-फिरने के काबिल नहीं हैं, उन्हें या तो टेलिफोन के ज़रिए सभाओं का कार्यक्रम सुनाया जाता है या फिर उन्हें सभाओं की रिकॉर्डिंग दी जाती है। जहाँ तक हो सके, कलीसिया के प्राचीन कोशिश करते हैं कि इन इंतज़ामों के ज़रिए बुज़ुर्ग मसीहियों को व्यावहारिक मदद दी जाए।c
11. बताइए कि एक परिवार ने एक बुज़ुर्ग भाई की कैसे मदद की।
11 कलीसिया में हरेक मसीही भी बुज़ुर्गों को मेहमाननवाज़ी और दरियादिली दिखाकर उनकी मदद कर सकता है। एक परिवार की मिसाल लीजिए, जिसमें माँ-बाप के अलावा दो किशोर बेटियाँ हैं। इस परिवार को एक बुज़ुर्ग जोड़े ने बाइबल अध्ययन कराया था। जब बुज़ुर्ग भाई की पत्नी गुज़र गयी, तो वह घर का किराया न दे सका, क्योंकि वह पत्नी की पेंशन से ही किराया देता था। ऐसे में, उस परिवार ने अपने बड़े घर में भाई को रहने के लिए दो कमरे दिए। वह उनके परिवार का एक हिस्सा बन गया और पंद्रह साल तक उन्होंने खुशियों के कई पल साथ बिताए। किशोर बेटियों को बुज़ुर्ग भाई के विश्वास और बरसों के तजुरबे से बहुत कुछ सीखने को मिला और इस भाई को भी उनके साथ मेल-जोल रखने से बहुत खुशी मिली। यह भाई 89 साल की उम्र में अपनी मौत तक उनके साथ रहा। उस भाई के साथ मेल-जोल रखने से इस परिवार को जो बेशुमार आशीषें मिलीं, उनके लिए वे आज भी यहोवा को धन्यवाद देते हैं। वाकई, यीशु मसीह के एक चेले की मदद करने पर उन्होंने ‘अपना प्रतिफल नहीं खोया।’—मत्ती 10:42.d
12. आप बुज़ुर्ग भाई-बहनों के लिए प्यार और परवाह कैसे दिखा सकते हैं?
12 इस परिवार ने एक बुज़ुर्ग को जैसी मदद दी, वैसी मदद आप शायद न दे पाएँ। लेकिन आप बुज़ुर्ग जनों को प्रचार और सभाओं में जाने के लिए मदद दे सकते हैं। यही नहीं, आप उन्हें अपने घर बुला सकते हैं और पिकनिक का प्रोग्राम बनाते वक्त उन्हें भी शामिल कर सकते हैं। आप उनसे मिलने भी जा सकते हैं, खासकर तब जब वे बीमार होते हैं या कहीं आ-जा नहीं सकते। इसके अलावा, आपको उनके साथ बच्चों की तरह नहीं, बल्कि बड़ों की तरह पेश आना चाहिए। जब तक बुज़ुर्ग मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं, तब तक उनके बारे में लिए जानेवाले फैसलों में उनकी राय पूछनी चाहिए। और जो बुज़ुर्ग मानसिक रूप से कमज़ोर हो चुके हैं, उन्हें भी आदर दिया जाना चाहिए। क्योंकि इस हालत में भी वे महसूस कर सकते हैं कि दूसरे उन्हें सम्मान देते हैं कि नहीं।
यहोवा आपके काम को नहीं भूलेगा
13. बुज़ुर्ग मसीहियों की भावनाओं के लिए लिहाज़ दिखाना क्यों ज़रूरी है?
13 बुज़ुर्ग भाई-बहनों की भावनाओं के लिए लिहाज़ दिखाना बेहद ज़रूरी है। वह क्यों? क्योंकि उन्हें अकसर यह बात अंदर-ही-अंदर खाए जाती है कि अब वे यहोवा की सेवा में पहले जितना नहीं कर पा रहे हैं। मिसाल के लिए, एक बहन ने पायनियर के नाते 50 साल तक यहोवा की सेवा की। लेकिन फिर उसे एक बीमारी ने धर-दबोचा और वह धीरे-धीरे कमज़ोर होती चली गयी। इस वजह से वह बड़ी मुश्किल से सभाओं में जा पाती थी। जब उसने अपने बीते दिनों की सेवा को याद किया और देखा कि अब वह पहले के मुकाबले ज़्यादा नहीं कर पा रही है, तो फफक-फफकर रोने लगी। अपना सिर झुकाए उसने सिसकियाँ लेते हुए कहा: “मैं यहोवा की सेवा में कुछ नहीं कर पा रही हूँ।”
14. भजनों से यहोवा के बुज़ुर्ग सेवकों को क्या हौसला मिलता है?
14 अगर आप एक उम्रदराज़ मसीही हैं, तो क्या आपको भी इस तरह की दर्दनाक भावनाओं से जूझना पड़ता है? या क्या कभी आपको ऐसा लगता है कि यहोवा ने आपको छोड़ दिया है? हो सकता है, भजनहार को भी अपनी ढलती उम्र में ऐसी ही भावनाओं ने आ घेरा हो, क्योंकि उसने यहोवा से बिनती की: “बुढ़ापे के समय मेरा त्याग न कर; जब मेरा बल घटे तब मुझ को छोड़ न दे। इसलिये हे परमेश्वर जब मैं बूढ़ा हो जाऊं, और मेरे बाल पक जाएं, तब भी तू मुझे न छोड़।” (भज. 71:9, 18) बेशक यहोवा इस भजन के लेखक को त्यागनेवाला नहीं था और ना ही वह आपको त्यागेगा। एक दूसरे भजन में दाऊद ने यह भरोसा ज़ाहिर किया कि परमेश्वर उसे सँभाले रहेगा। (भजन 68:19 पढ़िए।) आप भी इस बात का पूरा यकीन रख सकते हैं कि अगर आप एक बुज़ुर्ग और वफादार मसीही हैं, तो यहोवा आपके साथ है और हर दिन आपकी मदद करता रहेगा।
15. सही नज़रिया रखने में क्या बात बुज़ुर्ग मसीहियों की मदद कर सकती है?
15 यहोवा के बुज़ुर्ग सेवको, आपने उसकी महिमा करने के लिए जो मेहनत की है और आज भी कर रहे हैं, उसे वह कभी नहीं भूलेगा। बाइबल कहती है: “परमेश्वर अन्यायी नहीं, कि तुम्हारे काम, और उस प्रेम को भूल जाए, जो तुम ने उसके नाम के लिये . . . दिखाया।” (इब्रा. 6:10) इसलिए अपने मन में निराश करनेवाली भावनाओं को मत उठने दीजिए और यह मत सोचिए कि बुढ़ापे की वजह से आप यहोवा के किसी काम के नहीं रहे। इसके बजाय, अपने मन में अच्छी भावनाएँ पैदा कीजिए। यहोवा ने आपको जो आशीषें और भविष्य के लिए जो आशा दी है, उनमें आनंद लीजिए। हमें एक “उज्ज्वल भविष्य और आशा” मिली है और इसके पूरा होने की गारंटी खुद सिरजनहार देता है। (यिर्म. 29:11, 12, NHT; प्रेरि. 17:31; 1 तीमु. 6:19) अपनी आशा के बारे में सोचते रहिए, हमेशा अच्छे की उम्मीद कीजिए और कलीसिया में अपनी मौजूदगी की अहमियत को कभी कम मत आँकिए!e
16. (क) एक बुज़ुर्ग भाई को ऐसा क्यों लगने लगा कि उसे अब एक प्राचीन के नाते सेवा नहीं करनी चाहिए? (ख) लेकिन प्राचीनों के निकाय ने किस तरह उसे हौसला दिया?
16 योहान नाम के एक 80 साल के भाई की मिसाल पर ध्यान दीजिए। कुछ समय पहले उसकी पत्नी, सानी शरीर से एकदम लाचार हो गयी और इस वजह से योहान को चौबीसों घंटे उसकी देखभाल करनी पड़ती है।f कलीसिया की बहनें बारी-बारी से सानी के साथ रहती हैं, ताकि योहान सभाओं और प्रचार में जा सके। मगर हाल ही में योहान का मन थककर इतना पस्त हो चुका था कि उसे लगने लगा कि उसे कलीसिया के प्राचीन के नाते सेवा नहीं करनी चाहिए। “जब मैं कलीसिया के किसी काम नहीं आ सकता, तो मेरा प्राचीन होने का क्या फायदा?” यह कहते-कहते उसकी आँखें डबडबा आयीं। मगर उसके साथी प्राचीनों ने उसे भरोसा दिलाया कि उसके तजुरबे से और मामले को सही-सही समझने की उसकी काबिलीयत से उन्हें बहुत मदद मिलती है। उन्होंने उसे प्राचीन के नाते सेवा करते रहने को उकसाया, फिर चाहे वह ज़्यादा न कर पाए। इससे योहान को काफी हौसला मिला और वह प्राचीन के नाते सेवा करता रहा, जिससे उसकी कलीसिया को बहुत फायदा हुआ।
यहोवा सचमुच परवाह करता है
17. बाइबल बुज़ुर्ग मसीहियों को क्या भरोसा दिलाती है?
17 बाइबल साफ बताती है कि बुढ़ापे में आनेवाली मुश्किलों के बावजूद, बुज़ुर्ग जन यहोवा की सेवा में बहुत-सा फल ला सकते हैं। भजनहार ने कहा: “वे यहोवा के भवन में रोपे जाकर, . . . पुराने होने पर [“वृद्धावस्था में,” नयी हिन्दी बाइबिल] भी फलते रहेंगे, और रस भरे और लहलहाते रहेंगे।” (भज. 92:13, 14) प्रेरित पौलुस इसकी एक मिसाल है। ऐसा मालूम होता है कि उसे भी कोई शारीरिक तकलीफ थी। फिर भी, वह ‘निराश नहीं हुआ; यद्यपि उसका शारीरिक बल क्षीण हो रहा था।’ (नयी हिन्दी बाइबिल)—2 कुरिन्थियों 4:16-18 पढ़िए।
18. बुज़ुर्ग मसीहियों और उनकी देखभाल करनेवालों को दूसरों की मदद की ज़रूरत क्यों होती है?
18 आज बहुत-से बुज़ुर्ग मसीहियों की मिसालें साबित करती हैं कि वे इस उम्र में भी ‘फलते रह’ सकते हैं। लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि बीमारी और बुढ़ापे की वजह से आनेवाली चुनौतियों का सामना करना आसान नहीं। उन बुज़ुर्गों के लिए भी नहीं जिनके घरवाले उनकी बहुत परवाह करते हैं और उनकी मदद करने को हरदम तैयार रहते हैं। दूसरी तरफ, बुज़ुर्गों की देखभाल करनेवाले भी पस्त हो सकते हैं। इसलिए बुज़ुर्गों और उनकी देखभाल करनेवालों के लिए व्यावहारिक तरीकों से प्यार दिखाना कलीसिया के लिए न सिर्फ सम्मान की बात है, बल्कि उसकी ज़िम्मेदारी भी बनती है। (गल. 6:10) इस तरह हम दिखाते हैं कि हम सिर्फ अपनी बातों से उन्हें ‘गरम रहने और तृप्त रहने’ को नहीं कहते, बल्कि ऐसा करने के लिए उन्हें कारगर मदद भी देते हैं।—याकू. 2:15-17.
19. भविष्य को लेकर वफादार बुज़ुर्ग मसीहियों को घबराने की ज़रूरत क्यों नहीं है?
19 ढलती उम्र की वजह से शायद एक मसीही यहोवा की सेवा में ज़्यादा न कर पाए, लेकिन इससे उस वफादार सेवक के लिए यहोवा का प्यार किसी तरह कम नहीं होता। इसके उलट, सभी वफादार बुज़ुर्ग मसीही उसके लिए बेशकीमती हैं और वह उन्हें कभी नहीं त्यागेगा। (भज. 37:28; यशा. 46:4) यहोवा उन्हें बुढ़ापे में सँभाले रहेगा और उन्हें राह दिखाता रहेगा।—भज. 48:14.
[फुटनोट]
a 1 जून, 2007 की प्रहरीदुर्ग में लेख, “बुज़ुर्ग जन—जवानों के लिए एक आशीष” देखिए।
b 8 फरवरी, 1994 की सजग होइए! (अँग्रेज़ी) का पेज 3-10 देखिए।
c कुछ देशों में सरकार ने बुज़ुर्गों के लिए कुछ योजनाएँ बनायी हैं। बुज़ुर्गों को व्यावहारिक मदद देने में यह भी शामिल है कि हम इन योजनाओं से फायदा पाने में उनकी सहायता करें। 1 जून, 2006 की प्रहरीदुर्ग में लेख, “परमेश्वर, बुज़ुर्गों की परवाह करता है” देखिए।
d 1 सितंबर, 2003 की प्रहरीदुर्ग में लेख, “यहोवा को हमेशा हमारी परवाह रहती है” देखिए।
e 15 मार्च, 1993 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) में लेख, “पके बाल की शोभा” देखिए।
f नाम बदल दिए गए हैं।
आप क्या जवाब देंगे?
• कलीसिया के बुज़ुर्ग वफादार मसीही आपको क्यों प्यारे हैं?
• बुढ़ापे की मार सहनेवाले भाई-बहनों के लिए हम प्यार और परवाह कैसे दिखा सकते हैं?
• सही नज़रिया रखने में क्या बात यहोवा के बुज़ुर्ग सेवकों की मदद कर सकती है?
[पेज 18 पर तसवीरें]
कलीसिया के सदस्य बुज़ुर्ग मसीहियों का गहरा आदर करते हैं