कमज़ोरी, दुष्टता, और पश्चाताप तय करना
पाप एक ऐसी चीज़ है जिससे मसीही घृणा करते हैं—यहोवा के धर्मी स्तरों पर पूरा नहीं उतरना। (इब्रानियों १:९) दुःख की बात है कि हम सभी समय-समय पर पाप करते हैं। हम सभी वंशागत कमज़ोरी और अपरिपूर्णता से संघर्ष करते हैं। लेकिन अधिकांश मामलों में, यदि हम यहोवा के सामने अपने पाप स्वीकार कर लें और उन्हें दुबारा न करने की गंभीरता से कोशिश करें, तो हम एक साफ़ अंतःकरण के साथ उसके सामने जा सकते हैं। (रोमियों ७:२१-२४; १ यूहन्ना १:८, ९; २:१, २) हम यहोवा का धन्यवाद करते हैं कि छुड़ौती बलिदान के आधार पर वह हमारी कमज़ोरियों के बावजूद हमारी पवित्र सेवा स्वीकार करता है।
यदि कोई व्यक्ति शारीरिक कमज़ोरी के कारण गंभीर पाप में पड़ जाता है, तो याकूब ५:१४-१६ में बतायी गयी कार्यविधि के सामंजस्य में उसे तुरंत रखवाली की बहुत ज़रूरत है: “यदि तुम में से कोई [आध्यात्मिक रूप से] रोगी हो, तो कलीसिया के प्राचीनों को बुलाए . . . यदि उस ने पाप भी किए हों, तो उन की भी क्षमा हो जाएगी। इसलिये तुम आपस में एक दूसरे के साम्हने अपने अपने पापों को मान लो; और एक दूसरे के लिये प्रार्थना करो, जिस से चंगे हो जाओ।”
अतः, जब एक समर्पित मसीही घोर पाप करता है, तो यहोवा के सामने व्यक्तिगत पाप-स्वीकृति से ज़्यादा की ज़रूरत है। प्राचीनों को कुछ क़दम उठाने ज़रूरी हैं, क्योंकि कलीसिया की स्वच्छता या शान्ति को ख़तरा है। (मत्ती १८:१५-१७; १ कुरिन्थियों ५:९-११; ६:९, १०) प्राचीनों को शायद तय करना पड़े: क्या वह व्यक्ति पश्चातापी है? क्या बात पाप की ओर ले गयी? क्या वह कमज़ोरी के एकल क्षण का परिणाम था? क्या वह पाप का अभ्यास था? यह तय करना हमेशा आसान या स्पष्ट नहीं होता है और काफ़ी समझ की माँग करता है।
लेकिन, तब क्या यदि दुष्कर्म और दुराचरण के मार्ग पर चलने के कारण पाप हुआ है? तब, प्राचीनों की ज़िम्मेदारी स्पष्ट है। कुरिन्थियों की कलीसिया में एक गंभीर मामले को निपटाने के बारे में निर्देशन देते समय प्रेरित पौलुस ने कहा: “कुकर्मी को अपने बीच में से निकाल दो।” (१ कुरिन्थियों ५:१३) कुकर्मियों के लिए मसीही कलीसिया में कोई स्थान नहीं है।
कमज़ोरी, दुष्टता, और पश्चाताप को तौलना
प्राचीन कैसे जान सकते हैं कि एक व्यक्ति पश्चातापी है?a यह एक आसान प्रश्न नहीं है। उदाहरण के लिए, राजा दाऊद के बारे में सोचिए। उसने परस्त्रीगमन किया और फिर, वस्तुतः हत्या की। फिर भी, यहोवा ने उसे जीवित रहने दिया। (२ शमूएल ११:२-२४; १२:१-१४) फिर हनन्याह और सफीरा के बारे में सोचिए। उन्होंने झूठ बोलकर प्रेरितों को धोखा देने की कोशिश की, ढोंग करके वास्तव में वे जितने उदार थे उससे ज़्यादा उदार होने का दिखावा करना चाहा। गंभीर? जी हाँ। हत्या और परस्त्रीगमन के जितना बुरा? शायद ही! फिर भी, हनन्याह और सफीरा ने अपनी जान से क़ीमत चुकायी।—प्रेरितों ५:१-११.
अलग-अलग न्याय क्यों? दाऊद शारीरिक कमज़ोरी के कारण गंभीर पाप में पड़ा। जब उसकी करनी उसके सामने लायी गयी, तो उसने पश्चाताप किया, और यहोवा ने उसे क्षमा किया—हालाँकि उसके घराने की समस्याओं के सम्बन्ध में उसे सख़्त अनुशासन मिला। हनन्याह और सफीरा ने पाप किया कि उन्होंने ढोंग करके झूठ बोला, और मसीही कलीसिया को धोखा देने और इस प्रकार ‘पवित्र आत्मा और परमेश्वर से झूठ बोलने’ की कोशिश की। वह दुष्ट हृदय का प्रमाण साबित हुआ। अतः, उनका ज़्यादा सख़्ती से न्याय किया गया।
दोनों मामलों में यहोवा ने न्याय दिया, और उसका न्याय सही था क्योंकि वह हृदय जाँच सकता है। (नीतिवचन १७:३) मानवी प्राचीन वैसा नहीं कर सकते। सो प्राचीन कैसे समझ सकते हैं कि एक गंभीर पाप दुष्टता से ज़्यादा कमज़ोरी का प्रमाण है?
असल में, सभी पाप दुष्ट है, लेकिन सभी पापी दुष्ट नहीं होते। समान पाप एक व्यक्ति में कमज़ोरी का और दूसरे में दुष्टता का प्रमाण हो सकते हैं। सचमुच, पाप करने में पापी की ओर से कुछ हद तक कमज़ोरी और दुष्टता दोनों सम्मिलित होते हैं। तय करने का एक तत्व यह है कि पापी अपनी करनी को किस दृष्टिकोण से देखता है और उसके बारे में वह क्या करने का इरादा रखता है। क्या वह पश्चातापी आत्मा दिखाता है? यह देखने के लिए प्राचीनों को समझ की ज़रूरत है। वे ऐसी समझ कैसे पा सकते हैं? प्रेरित पौलुस ने तीमुथियुस से प्रतिज्ञा की: “जो मैं कहता हूं, उस पर [निरन्तर, NW] ध्यान दे और प्रभु तुझे सब बातों की समझ देगा।” (२ तीमुथियुस २:७) यदि प्राचीन नम्रतापूर्वक पौलुस के और अन्य बाइबल लेखकों के उत्प्रेरित वचनों पर “निरन्तर ध्यान” दें, तो उन्हें वह समझ मिलेगी जो कलीसिया में पाप करनेवालों के प्रति उचित दृष्टिकोण रखने के लिए ज़रूरी है। तब, उनके निर्णय स्वयं उनके नहीं बल्कि यहोवा के सोच-विचार प्रतिबिंबित करेंगे।—नीतिवचन ११:२; मत्ती १८:१८.
यह कैसे किया जाता है? एक तरीक़ा है यह जाँच करना कि बाइबल दुष्ट लोगों का वर्णन कैसे करती है और फिर देखना कि क्या वह वर्णन उस व्यक्ति पर लागू होता है जिसके साथ निपटा जा रहा है।
ज़िम्मेदारी लेना और पश्चाताप करना
दुष्टता का मार्ग अपनाने वाले पहले मानव थे आदम और हव्वा। परिपूर्ण होने और यहोवा की व्यवस्था का पूर्ण ज्ञान रखने के बावजूद, उन्होंने ईश्वरीय सर्वसत्ता के विरुद्ध विद्रोह किया। जब यहोवा उनकी करनी उनके सामने लाया, तो उनकी प्रतिक्रियाएँ ध्यान देने के योग्य थीं—आदम ने हव्वा पर दोष लगाया, और हव्वा ने सर्प पर दोष लगाया! (उत्पत्ति ३:१२, १३) इसकी तुलना दाऊद की गहरी नम्रता से कीजिए। अपने गंभीर पाप का सामना करने पर उसने ज़िम्मेदारी स्वीकार की और क्षमा की भीख माँगी, उसने कहा: “मैं ने यहोवा के विरुद्ध पाप किया है।”—२ शमूएल १२:१३; भजन ५१:४, ९, १०.
गंभीर पाप, ख़ासकर एक वयस्क के पाप के मामलों से निपटते समय प्राचीनों का इन दो उदाहरणों पर विचार करना अच्छा होगा। क्या वह पापी—दाऊद की तरह जब वह अपने पाप के बारे में विश्वस्त हो गया—तुरंत दोष स्वीकार करता है और पश्चाताप करते हुए मदद और क्षमा के लिए यहोवा की ओर देखता है, या शायद किसी दूसरे पर दोष लगाते हुए क्या वह अपनी करनी को कम करने की कोशिश करता है? यह सच है कि पाप करनेवाला व्यक्ति यह समझाना चाहता है कि क्या बात उसे उसके कार्यों की ओर ले गयी, और उसकी मदद कैसे की जाए यह निर्णय करते समय ऐसी भूतपूर्व या वर्तमान परिस्थितियाँ हो सकती हैं जिन पर प्राचीनों को विचार करने की ज़रूरत हो। (होशे ४:१४ से तुलना कीजिए।) लेकिन उसे स्वीकार करना चाहिए कि पाप उसी ने किया है और कि वही यहोवा के सामने ज़िम्मेदार है। याद रखिए: “यहोवा टूटे मनवालों के समीप रहता है, और पिसे हुओं का उद्धार करता है।”—भजन ३४:१८.
बुरे कामों का अभ्यास करना
भजन संहिता की पुस्तक में दुष्ट लोगों के अनेक उल्लेख हैं। ऐसे शास्त्रवचन प्राचीनों को यह समझने में अतिरिक्त मदद दे सकते हैं कि एक व्यक्ति मूलतः दुष्ट है या कमज़ोर। उदाहरण के लिए, राजा दाऊद की उत्प्रेरित प्रार्थना पर विचार कीजिए: “दुष्ट लोगों के साथ मुझे न घसीट, न उनके साथ जो दुखदायी कार्यों का अभ्यास करते हैं, वे जो अपने साथियों के साथ बातें तो शान्ति की करते हैं परन्तु जिनके हृदय में बुराई रहती है।” (भजन २८:३, NW) नोट कीजिए कि दुष्ट लोगों की समानता उनसे की गयी है “जो दुखदायी कार्यों का अभ्यास करते हैं।” एक व्यक्ति जो शारीरिक कमज़ोरी के कारण पाप करता है, संभव है कि वह अपने होश ठिकाने आते ही वह कार्य बन्द कर दे। लेकिन, यदि एक व्यक्ति बुराई का “अभ्यास” करता है जिससे कि वह उसके जीवन का एक अंग बन जाती है, तो यह एक दुष्ट हृदय का प्रमाण हो सकता है।
दाऊद ने उस आयत में दुष्टता की एक और विशेषता बतायी। हनन्याह और सफीरा की तरह दुष्ट व्यक्ति अपने मुँह से अच्छी बातें करता है लेकिन उसके हृदय में बुरी बातें होती हैं। वह शायद यीशु के दिनों के फरीसियों की तरह एक ढोंगी हो जो ‘ऊपर से मनुष्यों को धर्मी दिखाई देते थे, परन्तु भीतर कपट और अधर्म से भरे हुए थे।’ (मत्ती २३:२८; लूका ११:३९) यहोवा ढोंग से घृणा करता है। (नीतिवचन ६:१६-१९) न्यायिक कमेटी के साथ बात करते समय भी यदि एक व्यक्ति ढोंग करके अपने गंभीर पापों को मानने से इनकार करने की कोशिश करता है, या अनिच्छा से सिर्फ़ उतना ही स्वीकार करता है जितना कि दूसरों को पहले ही मालूम है, और पूरी तरह पाप-स्वीकृति करने से इनकार करता है, तो यह एक दुष्ट हृदय का प्रमाण हो सकता है।
यहोवा के लिए अहंकारी अनादर
अन्य बातें जो एक दुष्ट व्यक्ति को विशिष्ट करती हैं भजन १० में दी गयी हैं। वहाँ हम पढ़ते हैं: ‘दुष्टों के अहंकार के कारण दीन मनुष्य खदेड़े जाते हैं; वह [यहोवा का] तिरस्कार करता है।’ (भजन १०:२, ३) एक समर्पित मसीही जो अहंकारी है और यहोवा का तिरस्कार करता है उसे हमें किस दृष्टि से देखना है? निश्चित रूप से, ये दुष्ट मानसिक अभिवृत्तियाँ हैं। कमज़ोरी के कारण पाप करनेवाला व्यक्ति अपना पाप महसूस करने पर या जब उसके पाप की ओर उसका ध्यान आकर्षित किया जाता है, पश्चाताप करेगा और अपने मार्ग को बदलने के लिए कड़ा प्रयास करेगा। (२ कुरिन्थियों ७:१०, ११) इसकी विषमता में, यदि एक मनुष्य यहोवा के लिए मूल तिरस्कार के कारण पाप करता है, तो क्या बात उसे बार-बार उसके पापमय मार्ग पर लौटने से रोकेगी? यदि विनम्रता की आत्मा से सलाह दिए जाने के बावजूद वह अहंकारी है, तो निष्कपटता से और सचमुच पश्चाताप करने के लिए ज़रूरी नम्रता उसमें कैसे आ सकती है?
अब उसी भजन में थोड़ा आगे दाऊद के शब्दों पर विचार कीजिए: “परमेश्वर को दुष्ट क्यों तुच्छ जानता है, और अपने मन में कहता है कि तू लेखा न लेगा?” (भजन १०:१३) मसीही कलीसिया के प्रबन्ध में, दुष्ट मनुष्य सही और ग़लत के बीच फ़र्क जानता है, लेकिन यदि वह सोचता है कि वह बिना दंड पाए बच सकता है तो वह ग़लत कार्य करने से नहीं हिचकिचाता है। जब तक पोल खुलने का कोई डर नहीं है, वह अपनी पापमय प्रवृत्तियों को पूरी छूट देता है। दाऊद से भिन्न, यदि उसके पाप प्रकाश में आते हैं, तो वह अनुशासन से बचने के लिए षड्यंत्र रचेगा। ऐसा मनुष्य यहोवा के प्रति बहुत ही तिरस्कारपूर्ण है। “परमेश्वर का भय उसकी दृष्टि में नहीं है। . . . बुराई से वह हाथ नहीं उठाता।”—भजन ३६:१, ४.
दूसरों को हानि पहुँचाना
सामान्यतः, पाप का प्रभाव एक से ज़्यादा लोगों पर पड़ता है। उदाहरण के लिए, एक परस्त्रीगामी परमेश्वर के विरुद्ध पाप करता है; वह अपनी पत्नी और बच्चों को शिकार बनाता है; यदि वह स्त्री जिसके साथ वह परस्त्रीगमन करता है विवाहित है, तो वह उसके परिवार को शिकार बनाता है; और वह कलीसिया के भले नाम पर धब्बा लगाता है। इस सब को वह किस दृष्टि से देखता है? क्या वह असली पश्चाताप के साथ-साथ हार्दिक शोक दिखाता है? या क्या वह भजन ९४ में वर्णित आत्मा प्रदर्शित करता है: “सब अनर्थकारी बड़ाई मारते हैं। हे यहोवा, वे तेरी प्रजा को पीस डालते हैं, वे तेरे निज भाग को दुःख देते हैं। वे विधवा और परदेशी का घात करते, और बपमूओं को मार डालते हैं; और कहते हैं, कि याह न देखेगा, याकूब का परमेश्वर विचार न करेगा”?—भजन ९४:४-७.
संभवतः, कलीसिया में निपटाए गए पापों में हत्या और क़त्ल सम्मिलित नहीं होंगे। फिर भी यहाँ प्रदर्शित आत्मा—निजी लाभ के लिए दूसरों को शिकार बनाने को तैयार रहने की आत्मा—प्राचीनों द्वारा कुकर्म की जाँच-पड़ताल करते समय शायद प्रत्यक्ष हो जाए। यह भी अभिमान है, दुष्ट मनुष्य का चिह्न। (नीतिवचन २१:४) यह एक सच्चे मसीही की आत्मा के बिल्कुल विपरीत है, जो अपने भाई के लिए ख़ुद को बलिदान करने को तैयार रहता है।—यूहन्ना १५:१२, १३.
ईश्वरीय सिद्धान्त लागू करना
ये कुछेक मुख्य बातें नियम बनाने के इरादे से नहीं बतायी गयी हैं। लेकिन, ये कुछ ऐसी बातों के बारे में अन्दाज़ा ज़रूर देती हैं जिन्हें यहोवा सचमुच दुष्ट समझता है। क्या ग़लत कार्य करने की ज़िम्मेदारी स्वीकार करने से इनकार किया गया है? क्या पाप करनेवाले व्यक्ति ने इसी विषय पर पहले दी गयी सलाह को निर्लज्जता से नज़रअंदाज़ किया है? क्या गंभीर कुकर्म का संस्थापित अभ्यास किया जाता है? क्या कुकर्मी यहोवा की व्यवस्था के लिए घोर अनादर दिखाता है? क्या उसने ग़लती को छिपाने के लिए योजनाबद्ध प्रयास किए हैं, शायद साथ-ही-साथ दूसरों को भी भ्रष्ट किया है? (यहूदा ४) क्या ऐसे प्रयास और बढ़ जाते हैं जब ग़लती प्रकाश में आती है? जो हानि कुकर्मी ने दूसरों को और यहोवा के नाम को पहुँचायी है उसके प्रति क्या वह पूरी तरह लापरवाह है? उसकी मनोवृत्ति के बारे में क्या? एक लाभकारी शास्त्रीय सलाह दिए जाने के बाद, क्या वह अहंकारी या अभिमानी है? क्या उस में ग़लती को दोहराने से बचने की हार्दिक अभिलाषा की कमी है? यदि प्राचीन ऐसी बातों को देखते हैं, जो पश्चाताप की कमी को सुस्पष्ट रूप से सूचित करती हैं, तो वे निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि किए गए पाप मात्र शरीर की कमज़ोरी का नहीं बल्कि दुष्टता का प्रमाण देते हैं।
ऐसे व्यक्ति से व्यवहार करते समय भी जिसकी प्रवृत्तियाँ दुष्ट प्रतीत होती हैं, प्राचीन उसे धार्मिकता का पीछा करने के लिए प्रोत्साहित करना नहीं छोड़ते। (इब्रानियों ३:१२) दुष्ट व्यक्ति पश्चाताप करके बदल सकते हैं। यदि यह सही नहीं होता, तो यहोवा ने इस्राएलियों से क्यों आग्रह किया: “दुष्ट अपनी चालचलन और अनर्थकारी अपने सोच विचार छोड़कर यहोवा ही की ओर फिरे, वह उस पर दया करेगा, वह हमारे परमेश्वर की ओर फिरे और वह पूरी रीति से उसको क्षमा करेगा”? (यशायाह ५५:७) हो सकता है कि शायद न्यायिक सुनवाई के दौरान प्राचीन उसके पश्चातापी व्यवहार और मनोवृत्ति से झलक रहा उसकी हृदय-स्थिति में एक सुस्पष्ट परिवर्तन देखेंगे।
एक व्यक्ति को बहिष्कृत करते समय भी प्राचीन, रखवालों के रूप में उससे पश्चाताप करने और फिर से यहोवा के अनुग्रह में आने की कोशिश करने का आग्रह करेंगे। कुरिन्थुस के “दुष्ट” मनुष्य को याद कीजिए। प्रत्यक्षतः उसने अपना मार्ग बदल लिया, और बाद में पौलुस ने उसकी बहाली की सिफ़ारिश की। (२ कुरिन्थियों २:७, ८) राजा मनश्शे के बारे में भी विचार कीजिए। वह सचमुच बहुत दुष्ट था, लेकिन अन्त में जब उसने पश्चाताप किया तो यहोवा ने उसका पश्चाताप स्वीकार किया।—२ राजा २१:१०-१६; २ इतिहास ३३:९, १३, १९.
यह सच है कि एक पाप है जो क्षमा नहीं किया जाएगा—पवित्र आत्मा के विरुद्ध पाप। (इब्रानियों १०:२६, २७) केवल यहोवा ही तय करता है कि किसने वह पाप किया है। मनुष्यों के पास ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है। प्राचीनों की ज़िम्मेदारी है कलीसिया को स्वच्छ रखना और पश्चातापी पापियों को पुनःप्रतिष्ठित करने में मदद देना। यदि वे ऐसा समझदारी और नम्रता के साथ करते हैं, अपने निर्णयों में यहोवा की बुद्धि को झलकने देते हैं, तो यहोवा उनके रखवाली-कार्य के इस पहलू को आशिष देगा।
[फुटनोट]
a ज़्यादा जानकारी के लिए सितम्बर १, १९८१ की द वॉचटावर के पृष्ठ २४-६; शास्त्रवचनों पर अंतर्दृष्ट (अंग्रेज़ी), खंड २ के पृष्ठ ७७२-४ देखिए।
[पेज 29 पर तसवीर]
हनन्याह और सफीरा ने ढोंग करके पवित्र आत्मा से झूठ बोला और इस प्रकार हृदय की दुष्टता दिखायी