थके-माँदों के लिए एक प्रेमपूर्ण आमंत्रण
“हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा।”—मत्ती ११:२८.
१. यीशु ने अपने तीसरे प्रचार दौरे पर गलील में क्या देखा?
सामान्य युग ३२ वर्ष की शुरूआत के क़रीब, यीशु गलील प्रदेश के अपने तीसरे प्रचार दौरे पर था। वह नगरों और गाँवों में घूमता रहा, “उन की सभाओं में उपदेश करता, और राज्य का सुसमाचार प्रचार करता, और हर प्रकार की बीमारी और दुर्बलता को दूर करता रहा।” जब वह ऐसा कर रहा था, उसने भीड़ को देखा और “उस को लोगों पर तरस आया, क्योंकि वे उन भेड़ों की नाईं जिनका कोई रखवाला न हो, ब्याकुल और भटके हुए से थे।”—मत्ती ९:३५, ३६.
२. यीशु ने लोगों की मदद कैसे की?
२ लेकिन, यीशु ने भीड़ पर तरस खाने के अलावा ज़्यादा कुछ किया। अपने चेलों को “खेत के स्वामी,” यहोवा परमेश्वर से प्रार्थना करने का अनुदेश देने के बाद, उसने उन्हें लोगों की मदद करने के लिए भेजा। (मत्ती ९:३८; १०:१) उसके बाद उसने लोगों को असली राहत और सांत्वना के मार्ग का अपना व्यक्तिगत आश्वासन दिया। उसने उन्हें यह हृदयस्पर्शी आमंत्रण दिया: “हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे।”—मत्ती ११:२८, २९.
३. यीशु का आमंत्रण आज समान रूप से आकर्षक क्यों है?
३ आज हम ऐसे समय में जीते हैं जब अनेक व्यक्ति दुःखद रीति से बोझ तले दबा हुआ महसूस करते हैं। (रोमियों ८:२२; २ तीमुथियुस ३:१) कुछ लोगों के लिए, रोज़ी-रोटी कमाना ही उनका इतना समय और शक्ति ले लेता है कि उनके पास अपने परिवार, दोस्तों या किसी और बात के लिए बहुत कम समय और शक्ति बचती है। अनेकों पर गंभीर बीमारी, दुःख, हताशा और अन्य शारीरिक और भावात्मक समस्याओं का भार है। दबाव महसूस करते हुए, कुछ व्यक्ति सुख-विलास की खोज करने, खाने, पीने, यहाँ तक कि नशीले पदार्थों के दुष्प्रयोग करने में अपने आप को डुबो देने के द्वारा राहत पाने की कोशिश करते हैं। निःसंदेह, यह उन्हें सिर्फ़ एक ऐसे दुश्चक्र में डाल देता है, जो उन पर ज़्यादा समस्याएँ और दबाव लाता है। (रोमियों ८:६) स्पष्टतया, यीशु का प्रेमपूर्ण आमंत्रण आज उतना ही आकर्षक जान पड़ता है जितना वह उस समय था।
४. यीशु के प्रेमपूर्ण आमंत्रण से लाभ प्राप्त करने के लिए हमें किन प्रश्नों पर विचार करना चाहिए?
४ लेकिन, यीशु के दिनों में लोग किस बात के अधीन थे, जिससे कि वे “ब्याकुल और भटके हुए से” प्रतीत होते थे, और जिसके कारण यीशु को उन पर तरस आया? कौन-से भार और बोझ उन्हें उठाने पड़ते थे, और यीशु का आमंत्रण उनकी मदद कैसे करता? इन प्रश्नों के उत्तर, थके-माँदों के लिए यीशु के प्रेमपूर्ण आमंत्रण से लाभ प्राप्त करने में हमारी अधिकतम मदद कर सकते हैं।
‘परिश्रम करनेवाले और बोझ से दबे’ लोग
५. क्यों यह उचित था कि यीशु की सेवकाई की इस घटना का वर्णन प्रेरित मत्ती ने किया?
५ यह दिलचस्पी की बात है कि यीशु की सेवकाई की इस घटना का वर्णन सिर्फ़ मत्ती ने किया। मत्ती, जो लेवी के तौर पर भी जाना जाता था, पहले महसूल लेनेवाला था, और वह एक विशेष बोझ से अच्छी तरह परिचित था जिसे लोग उठा रहे थे। (मत्ती ९:९; मरकुस २:१४) किताब यीशु के समय में दैनिक जीवन (अंग्रेज़ी) कहती है: “जो कर [यहूदियों को] पैसों में और वस्तुओं या सेवाओं के रूप में भरने पड़ते थे, बहुत ज़्यादा भारी थे, और वे और अधिक भारी थे क्योंकि उन्हें दो प्रकार के कर साथ-साथ देने पड़ते थे, सरकारी कर और धार्मिक कर; और उनमें से कोई भी हल्का नहीं था।”
६. (क) यीशु के समय में कौन-सी कर-व्यवस्था प्रयोग में थी? (ख) महसूल लेनेवाले इतने कुख्यात क्यों थे? (ग) पौलुस ने अपने संगी मसीहियों को क्या बात याद दिलाने की ज़रूरत समझी?
६ इन सब को जिस बात ने विशेषकर भारी बना दिया था वह थी उस समय की कर-व्यवस्था। रोमी अधिकारी अपने अधिकार-क्षेत्र में कर इकट्ठे करने के अपने अधिकार को सबसे ऊँची बोली लगानेवालों को सौंप देते। बदले में, वे स्थानीय समुदायों के लोगों को, कर इकट्ठा करने के असल कार्य का निरीक्षण करने के काम पर लगाते। इस अंशाधिकार योजना में हरेक व्यक्ति अपनी कमीशन, या हिस्से को जोड़ना पूरी तरह उचित समझता। उदाहरण के लिए, लूका ने कहा कि “जक्कई नाम एक मनुष्य था जो चुङ्गी लेनेवालों का सरदार और धनी था।” (लूका १९:२) ‘चुङ्गी लेनेवालों के सरदार’ जक्कई और उसके निरीक्षण के अधीन अन्य लोग प्रत्यक्षतः लोगों की तंगहाली से धनवान बने। ऐसी व्यवस्था द्वारा उत्पन्न दुर्व्यवहार और भ्रष्टाचार के कारण लोगों ने महसूल लेनेवालों को पापियों और वेश्याओं का दरजा दिया, और संभवतः अधिकांश मामलों में वे इसके योग्य भी थे। (मत्ती ९:१०; २१:३१, ३२; मरकुस २:१५; लूका ७:३४) क्योंकि लोग इस लगभग असहनीय बोझ को महसूस करते थे, यह आश्चर्य की बात नहीं कि प्रेरित पौलुस ने अपने संगी मसीहियों को यह याद दिलाने की ज़रूरत समझी कि रोमी जूए के अधीन खीझें नहीं परन्तु ‘हर एक का हक्क चुकाया करें, जिसे कर चाहिए, उसे कर दें; जिसे महसूल चाहिए, उसे महसूल दें।’—रोमियों १३:७क. लूका २३:२ से तुलना कीजिए।
७. कैसे रोमी दण्डात्मक नियम लोगों के भार को बढ़ाया?
७ पौलुस ने मसीहियों को यह भी याद दिलाया कि “जिस से डरना चाहिए, उस से [डरें]; जिस का आदर करना चाहिए उसका आदर [करें]।” (रोमियों १३:७ख) रोमी अपने दण्डात्मक नियमों की क्रूरता और कठोरता के लिए कुख्यात थे। लोगों को अधीनता में रखने के लिए कोड़ों की मार, पिटाई, सख़्त क़ैद और प्राणदंड का अकसर प्रयोग किया जाता था। (लूका २३:३२, ३३; प्रेरितों २२:२४, २५) यहूदी अगुओं को भी, जैसा वे उचित समझें, वैसी सज़ा देने का अधिकार दिया गया था। (मत्ती १०:१७; प्रेरितों ५:४०) ऐसी व्यवस्था, उसके नीचे जीनेवाले किसी भी व्यक्ति के लिए निश्चय ही अत्यधिक दमनकारी, या यहाँ तक कि अत्याचारी थी।
८. धार्मिक अगुओं ने लोगों पर भार कैसे लादा था?
८ लेकिन, रोमी करों और नियमों से बदतर था वह भार जो सामान्य लोगों पर उस समय के धार्मिक अगुओं द्वारा रखा गया था। असल में, यह यीशु की मुख्य चिन्ता प्रतीत हुई जब उसने लोगों को ‘परिश्रम करनेवाले और बोझ से दबे’ लोगों के तौर पर वर्णित किया। यीशु ने कहा कि पद-दलित लोगों को आशा और दिलासा देने के बजाय, धार्मिक नेता “ऐसे भारी बोझ को जिन को उठाना कठिन है, बान्धकर उन्हें मनुष्यों के कन्धों पर रखते हैं; परन्तु आप उन्हें अपनी उंगली से भी सरकाना नहीं चाहते।” (मत्ती २३:४; लूका ११:४६) सुसमाचार वृत्तान्तों में धार्मिक अगुओं—विशेषकर शास्त्रियों और फरीसियों—का अभिमानी, निर्दयी और कपटपूर्ण समूह के तौर पर अचूक चित्रण स्पष्ट है। वे सामान्य लोगों को अशिक्षित और अशुद्ध लोग समझकर उनका तिरस्कार करते थे, और वे अपने बीच परदेशियों को तुच्छ समझते थे। उनकी मनोवृत्ति पर एक व्याख्या कहती है: “एक व्यक्ति जो घोड़े पर हद से ज़्यादा बोझ रखता है उस पर अब क़ानून के अनुसार जुर्माना लगाया जाता है। उस व्यक्ति के बारे में क्या जिसने ‘ज़मीन के लोगों’ पर, जिन्हें कोई धार्मिक प्रशिक्षण नहीं मिला था, ६१३ आज्ञाओं का बोझ लाद दिया; और फिर, उनकी मदद करने के लिए कुछ नहीं किया और उन पर विधर्मी होने का दोष लगा दिया?” निश्चय ही, जो वास्तविक बोझ था वह मूसा की व्यवस्था नहीं बल्कि लोगों पर लादा गया परम्परा का ढेर था।
कठिनाई का असल कारण
९. यीशु के समय में लोगों की स्थिति की तुलना में राजा सुलैमान के दिनों की स्थिति कैसी थी?
९ कभी-कभी लोगों पर पड़ा आर्थिक भार बहुत भारी होता था, जिसके कारण ग़रीबी व्याप्त थी। इस्राएलियों को मूसा की व्यवस्था द्वारा निर्धारित किए गए उचित कर देने होते थे। फिर सुलैमान के शासन के दौरान, लोगों ने बहुत ही महँगी राष्ट्रीय परियोजनाओं की देख-रेख की जैसे मन्दिर और अन्य इमारतों का निर्माण करना। (१ राजा ७:१-८; ९:१७-१९) फिर भी, बाइबल हमें बताती है कि लोग “खाते-पीते और आनन्द करते रहे। . . . और दान से बेर्शेबा तक के सब यहूदी और इस्राएली अपनी अपनी दाखलता और अंजीर के वृक्ष तले सुलैमान के जीवन भर निडर रहते थे।” (१ राजा ४:२०, २५) इस फर्क़ का कारण क्या था?
१०. प्रथम शताब्दी तक इस्राएल की स्थिति का कारण क्या था?
१० जब तक वह जाति सच्ची उपासना के लिए दृढ़ रही, उन्होंने यहोवा के अनुग्रह का आनन्द लिया और भारी राष्ट्रीय ख़र्च के बावजूद उन्हें सुरक्षा और समृद्धि की आशीष-प्राप्त थी। लेकिन, यहोवा ने चिताया कि यदि वे ‘उसके पीछे चलना छोड़ दें; और उसकी आज्ञाओं को न मानें,’ तो इसके उलटे वे गंभीर विपत्ति से पीड़ित होंगे। असल में, “सब जातियों में इस्राएल विनाश की उपमा और उदाहरण बनेगा।” (१ राजा ९:६, ७, NHT) ठीक यही हुआ। इस्राएल विदेशी सत्ता के नीचे आ गया, और कभी एक महिमायुक्त रहा राज्य, विदेशी साम्राज्यों का सिर्फ़ एक उपनिवेश बनकर रह गया। अपनी आध्यात्मिक बाध्यताओं को नज़रअंदाज़ करने के कितने भयानक परिणाम!
११. क्यों यीशु ने ऐसा महसूस किया कि लोग “उन भेड़ों की नाईं जिनका कोई रखवाला न हो, ब्याकुल और भटके हुए से थे”?
११ यह सब हमें यह समझने में मदद करता है कि जिन लोगों को यीशु ने देखा, उसने उन्हें क्यों “ब्याकुल और भटके हुए से” समझा। ये इस्राएली थे, यहोवा के लोग, जो आम तौर पर परमेश्वर के नियमों के अनुसार जीने और अपनी उपासना को स्वीकृत तरीक़े से करते रहने का प्रयास कर रहे थे। तथापि, न सिर्फ़ राजनैतिक और वाणिज्यिक शक्तियों द्वारा, बल्कि उनके बीच धर्मत्यागी धार्मिक अगुओं द्वारा भी उन्हें शोषित किया गया और रौंदा गया था। वे “उन भेड़ों की नाईं [थे] जिनका कोई रखवाला न हो,” क्योंकि उनकी देखभाल करनेवाला या उनके पक्ष में लड़नेवाला उनके पास कोई न था। उनको बहुत ही कठोर सच्चाइयों का सामना करने के लिए मदद की ज़रूरत थी। यीशु का प्रेमपूर्ण और कोमल आमंत्रण कितना समयोचित था!
आज यीशु का आमंत्रण
१२. आज परमेश्वर के सेवक और अन्य निष्कपट लोग कौन-से दबाव महसूस करते हैं?
१२ अनेक तरीक़ों से बातें आज वैसी ही हैं। निष्कपट लोग जो अपने व्यापारिक व्यवहार में ईमानदार रहने का प्रयास कर रहे हैं, वे इस भ्रष्ट रीति-व्यवस्था के दबावों और माँगों को सहना मुश्किल पाते हैं। जिन व्यक्तियों ने यहोवा को अपना जीवन समर्पित किया है वे भी प्रतिरक्षित नहीं हैं। रिपोर्टें दिखाती हैं कि यहोवा के सेवकों में से कुछ व्यक्ति अपनी सभी ज़िम्मेदारियों को पूरा करना अधिकाधिक मुश्किल पा रहे हैं, यद्यपि वे ऐसा करना चाहते हैं। वे बोझ तले दबे हुए, थकित, निढाल महसूस करते हैं। कुछ यह भी महसूस करते हैं कि इससे राहत मिलेगी अगर वे सबकुछ छोड़-छाड़ दें और कहीं दूर जा सकें, ताकि वे अपने आपको समेट पाएँ। क्या आपने कभी ऐसा महसूस किया है? क्या आप अपने क़रीब के किसी व्यक्ति को जानते हैं जो ऐसी स्थिति में है? जी हाँ, यीशु के हृदयस्पर्शी आमंत्रण का आज हमारे लिए बहुत ज़्यादा अर्थ है।
१३. क्यों हम निश्चित हो सकते हैं कि यीशु हमें सांत्वना और विश्राम पाने में मदद दे सकता है?
१३ अपना प्रेमपूर्ण आमंत्रण देने से पहले, यीशु ने कहा: “मेरे पिता ने मुझे सब कुछ सौंपा है, और कोई पुत्र को नहीं जानता, केवल पिता; और कोई पिता को नहीं जानता, केवल पुत्र; और वह जिस पर पुत्र उसे प्रगट करना चाहे।” (मत्ती ११:२७) यीशु और उसके पिता के बीच इस घनिष्ठ सम्बन्ध के कारण, हमें आश्वासन दिया गया है कि यीशु के आमंत्रण को स्वीकार करने और उसके चेले बनने के द्वारा, हम यहोवा के साथ, जो “सब प्रकार की शान्ति [“सांत्वना,” NW] का परमेश्वर है,” एक क़रीबी, व्यक्तिगत सम्बन्ध में आ सकते हैं। (२ कुरिन्थियों १:३. यूहन्ना १४:६ से तुलना कीजिए।) इसके अतिरिक्त, क्योंकि ‘सब कुछ उसे सौंपा गया है,’ सिर्फ़ यीशु मसीह के पास हमारे भार को हल्का करने का सामर्थ्य और अधिकार है। कौन-से भार? वे जो भ्रष्ट राजनैतिक, वाणिज्यिक और धार्मिक व्यवस्थाओं द्वारा लादे गए हैं, साथ ही वह भार जो हमारे वंशागत पाप और अपरिपूर्णता के द्वारा लादा गया है। शुरूआत से ही यह कितना प्रोत्साहक और आश्वासन देनेवाला विचार है!
१४. यीशु किस परिश्रम से विश्राम दे सकता था?
१४ यीशु ने आगे कहा: “हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा।” (मत्ती ११:२८) निश्चय ही यीशु कड़ी मेहनत के विरोध में बात नहीं कर रहा था, क्योंकि उसने अकसर अपने चेलों को सलाह दी कि जो काम उनके हाथ में था उसे यत्न से करें। (लूका १३:२४) लेकिन, ‘परिश्रम करना’ (“मज़दूरी करना,” किंग्डम इंटरलीनियर) जारी और थकाऊ मज़दूरी को सूचित करता है, जिसका अकसर कोई सार्थक परिणाम नहीं होता। और “बोझ से दबे” सामान्य क्षमता से अधिक बोझ के अधीन होने का विचार देता है। इस भिन्नता की समानता उन दो व्यक्तियों के बीच की भिन्नता के साथ की जा सकती है, जिनमें से एक गुप्त ख़ज़ाने के लिए खोदता है और दूसरा श्रमिक शिविर में गड्ढे खोदता है। वे एक जैसी कड़ी मेहनत कर रहे हैं। एक, इस कार्य को उत्सुकता से करता है, लेकिन दूसरे के लिए यह एक अंतहीन परिश्रम है। जो बात भिन्नता लाती है वह है अमुक कार्य का उद्देश्य या उद्देश्य की कमी।
१५. (क) अगर हम महसूस करते हैं कि हम अपने कंधों पर भारी बोझ उठाए हुए हैं, तो हमें अपने आप से कौन-से प्रश्न पूछने चाहिए? (ख) हमारे भार के कारण के बारे में क्या कहा जा सकता है?
१५ क्या आप महसूस करते हैं कि आप ‘परिश्रम करनेवाले और बोझ से दबे हुए’ हैं, कि आपके समय और शक्ति से बहुत ज़्यादा की माँग की जाती है? जो भार आप उठाए हुए हैं क्या वे आपके लिए बहुत भारी प्रतीत होते हैं? अगर ऐसा है, तो अपने आप से यह पूछना शायद आपकी मदद करे, ‘मैं किस लिए परिश्रम कर रहा हूँ? मैं किस प्रकार का बोझ उठा रहा हूँ?’ इस सम्बन्ध में, एक बाइबल टीकाकार ने ८० से ज़्यादा साल पहले कहा: “अगर हम जीवन के भार पर विचार करें, तो वह दो वर्गों में विभाजित हो जाता है; हम इन्हें आत्मारोपित और अनिवार्य कह सकते हैं: जो हमारे कार्यों के कारण हैं और जो हमारे कार्यों के कारण नहीं हैं।” इसके बाद उसने कहा: “कड़े आत्म-परीक्षण के बाद, हम में से अनेक यह पाकर चकित होंगे कि हमारे कुल भार में से कितना बड़ा भाग आत्मारोपित भार है।”
१६. कौन-से भार हम अपने आप पर बुद्धिहीनता से लाद सकते हैं?
१६ ऐसे कौन-से कुछ भार हैं जो हम ख़ुद अपने आप पर डाल सकते हैं? आज हम एक भौतिकवादी, सुख-विलास चाहनेवाले और अनैतिक संसार में जीते हैं। (२ तीमुथियुस ३:१-५) समर्पित मसीही भी इस संसार के फ़ैशन और जीवन-शैलियों के अनुरूप होने के निरन्तर दबाव के अधीन हैं। प्रेरित यूहन्ना ने ‘शरीर की अभिलाषा, और आंखों की अभिलाषा और जीविका के घमण्ड’ के बारे में लिखा। (१ यूहन्ना २:१६) ये शक्तिशाली प्रभाव हैं जो हम पर आसानी से असर कर सकते हैं। ऐसा ज्ञात है कि कुछ व्यक्ति सांसारिक सुख-विलास का अधिक आनन्द उठाने के लिए या अमुक जीवन-शैली को बनाए रखने के लिए बहुत ज़्यादा कर्ज़ में डूबने के भी इच्छुक रहे हैं। उसके बाद उन्हें पता चलता है कि उन्हें अपना कर्ज़ चुकाने के लिए पैसा हासिल करने के लिए अपनी नौकरी पर बहुत ज़्यादा समय बिताना पड़ता है, या उन्हें अनेक नौकरियाँ करनी पड़ती हैं।
१७. कौन-सी स्थिति बोझ को उठाना और भी मुश्किल कर सकती है, और इसे कैसे ठीक किया जा सकता है?
१७ जबकि एक व्यक्ति तर्क कर सकता है कि अन्य लोगों के पास जो है ऐसी कुछ चीज़ों को प्राप्त करना, या उनके जैसे कार्य करना ग़लत नहीं है, इस बात का विश्लेषण करना महत्त्वपूर्ण है कि क्या वह अनावश्यक ही अपने बोझ को बढ़ा रहा है। (१ कुरिन्थियों १०:२३) क्योंकि एक व्यक्ति सीमित बोझ उठा सकता है, कुछ बोझ को कम किया जाना चाहिए ताकि दूसरा बोझ उठाया जा सके। अकसर, हमारे आध्यात्मिक कल्याण के लिए आवश्यक बातों—व्यक्तिगत बाइबल अध्ययन, सभा उपस्थिति और क्षेत्र सेवकाई—को ही पहले कम किया जा रहा है। इसका परिणाम है आध्यात्मिक शक्ति की कमी, जो बदले में, बोझ को उठाना और भी मुश्किल कर देती है। यीशु मसीह ने ऐसे ख़तरे के विरुद्ध चिताया जब उसने कहा: “सावधान रहो, ऐसा न हो कि तुम्हारे मन खुमार और मतवालेपन, और इस जीवन की चिन्ताओं से सुस्त हो जाएं, और वह दिन तुम पर फन्दे की नाईं अचानक आ पड़े।” (लूका २१:३४, ३५; इब्रानियों १२:१) अगर एक व्यक्ति बोझ तले दबा हुआ है और थका हुआ है तो फन्दे को पहचानना और उससे बचना मुश्किल है।
राहत और विश्राम
१८. यीशु ने उसके पास आनेवालों को क्या पेश किया?
१८ इसलिए, प्रेमपूर्ण रूप से यीशु ने इसका हल पेश किया: “मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा।” (मत्ती ११:२८) यहाँ और आयत २९ में शब्द “विश्राम” उस यूनानी शब्द से मेल खाता है जिसे सॆप्टुअजेंट अनुवाद में “सब्त” अथवा “सब्त-पालन” के लिए इब्रानी शब्द का अनुवाद करने के वास्ते प्रयोग किया गया है। (निर्गमन १६:२३) अतः, यीशु ने अपने पास आनेवालों से यह प्रतिज्ञा नहीं की कि उनके पास फिर कोई काम नहीं होगा, लेकिन उसने यह प्रतिज्ञा की कि वह उन्हें विश्राम देगा ताकि वे उस काम के लिए तैयार हों जो परमेश्वर के उद्देश्य के सामंजस्य में उन्हें करने की ज़रूरत है।
१९. कैसे एक व्यक्ति ‘यीशु के पास आता’ है?
१९ लेकिन, कैसे एक व्यक्ति ‘यीशु के पास’ आता है? अपने चेलों को यीशु ने कहा: “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आप का इन्कार करे और अपना क्रूस उठाए, और मेरे पीछे हो ले।” (मत्ती १६:२४) इसलिए, यीशु के पास आना सूचित करता है कि स्वयं अपनी इच्छा को परमेश्वर और मसीह की इच्छा के अधीन करना, ज़िम्मेदारी का कुछ बोझ उठाना, और ऐसा निरन्तर करते रहना। क्या यह सब कुछ बहुत ज़्यादा की माँग करता है? क्या क़ीमत बहुत ज़्यादा है? आइए इस बात पर विचार करें कि थके-माँदों के लिए प्रेमपूर्ण आमंत्रण देने के बाद यीशु ने क्या कहा।
क्या आपको याद है?
◻ किन तरीक़ों से यीशु के समय के लोग भार से दबे हुए थे?
◻ क्या बात लोगों की कठिनाई का सच्चा कारण थी?
◻ अगर हम महसूस करते हैं कि हम पर बहुत ज़्यादा भार है तो हमें ख़ुद को किस तरह जाँचना चाहिए?
◻ कौन-से भार हम अपने आप पर बुद्धिहीनता से लाद सकते हैं?
◻ कैसे हम यीशु द्वारा प्रतिज्ञात विश्राम प्राप्त कर सकते हैं?
[पेज 15 पर तसवीरें]
कुछ भार कौन-से हैं जो हम अपने आप पर डाल सकते हैं?