यीशु के पृथ्वी पर अंतिम दिनों की याद ताज़ा करना
यह यहूदियों के निसान महीने का सातवाँ दिन है, और सा.यु. ३३ का साल है। कल्पना कीजिए कि आप यहूदिया के रोमी प्रदेश में हो रही घटनाओं को देख रहे हैं। यरीहो और उसकी लहलहाती हरियाली को छोड़, यीशु मसीह और उसके चेले धूल-मिट्टी से भरे, घुमावदार रास्ते पर धीरे-धीरे चढ़ते जा रहे हैं। और भी कई यात्री फसह का सालाना पर्व मनाने के लिए यरूशलेम की ओर जा रहे हैं। लेकिन, मसीह के चेलों के मन में यह थकाऊ चढ़ाई नहीं बल्कि इससे भी बड़ी बात घूम रही है।
यहूदी लोग एक मसीहा के लिए तरस रहे हैं जो उन्हें रोम के जूए से राहत दिला सकता है। कई लोग मानते हैं कि नासरत का यीशु ही वह उद्धारक है जिसका बरसों से इंतज़ार किया जा रहा था। वह साढ़े तीन साल से परमेश्वर के राज्य के बारे में बताता रहा है। उसने बीमारों को चंगा किया है और भूखों को खाना खिलाया है। वाकई, उसने लोगों को चैन दिया है। लेकिन धार्मिक अगुए, यीशु द्वारा की गयी उनकी कठोर निंदा के कारण दाँत पीस रहे हैं और उसे जान से मार डालने पर आमादा हैं। इसके बावजूद, वो रहा यीशु, तपते हुए रास्ते पर अपने चेलों के आगे-आगे लंबे-लंबे डग भरता हुआ चला आ रहा है। उसे अपना काम पूरा करना है।—मरकुस १०:३२.
सामने जैतून पहाड़ के पीछे सूरज डूब रहा है, यीशु और उसके साथी बैतनिय्याह गाँव पहुँचते हैं, जहाँ वे अगली छः रातें गुज़ारेंगे। वहाँ उनके स्वागत के लिए उनके अज़ीज़ दोस्त लाजर, मरियम और मरथा मौजूद हैं। यात्रा की तपिश से शाम की ठंडक राहत दिलाती है और इसी शाम से निसान ८ का सब्त शुरू होता है।—यूहन्ना १२:१, २.
निसान ९
सब्त के बाद यरूशलेम में बहुत चहलपहल है। फसह के लिए नगर में हज़ारों यात्री पहले ही जमा हो चुके हैं। लेकिन आमतौर पर साल के इस समय ऐसा शोर नहीं होता जैसा हमें सुनाई दे रहा है। कारण जानने को उत्सुक, भीड़ नगर के सकरे रास्तों से फाटकों की ओर तेज़ी से जा रही है। जब वे भीड़-भाड़वाले फाटकों से धक्का-मुक्की करते हुए बाहर निकलते हैं, तो क्या ही नज़ारा उन्हें देखने को मिलता है! उल्लास से भरे हुए अनेक लोग बेतफैगे से आनेवाले रास्ते में पड़नेवाली जैतून पहाड़ की ढलान से उतर रहे हैं। (लूका १९:३७) इन सब बातों का क्या मतलब है?
देखो! नासरत का यीशु एक गदहे के बच्चे पर सवार होकर आ रहा है। लोग उसके आगे-आगे रास्ते पर कपड़े बिछाते हैं। दूसरे लोग खजूर की कटी हुई हरी-भरी डालियों को लहराते हुए आनंद से चिल्लाते हैं: “धन्य इस्राएल का राजा, जो प्रभु के नाम से आता है।”—यूहन्ना १२:१२-१५.
जब भीड़ यरूशलेम के करीब आती है, यीशु नगर की ओर देखता है और बहुत भाव-विभोर हो उठता है। वह रोने लगता है और हम उसे इस नगर पर आनेवाले विनाश की भविष्यवाणी करते हुए सुनते हैं। थोड़े समय बाद जब यीशु मंदिर में आता है, तब वह भीड़ को सिखाता है और अपने पास आनेवाले अंधे और लँगड़े लोगों को चंगा करता है।—मत्ती २१:१४; लूका १९:४१-४४, ४७.
इस काम को महायाजक और शास्त्री भी देखते हैं। यीशु के अद्भुत कामों और भीड़ के उल्लास को देखकर वे कितना चिढ़ जाते हैं! अपने क्रोध को छिपाने में असफल, फरीसी माँग करते हैं: “हे गुरु, अपने चेलों को डांट।” “मैं तुमसे कहता हूं,” यीशु जवाब देता है, “यदि ये चुप रहें, तो पत्थर चिल्ला उठेंगे।” जाने से पहले, यीशु मंदिर में चल रहे व्यापार को देखता है।—लूका १९:३९, ४०; मत्ती २१:१५, १६; मरकुस ११:११.
निसान १०
यीशु मंदिर में जल्दी आता है। अपने पिता, यहोवा परमेश्वर की उपासना के नाम पर खुलेआम व्यापार होता देख कल वह गुस्से से भर गया था। इसलिए, वह मंदिर में लेन देन करनेवाले लोगों को बड़े जोश के साथ बाहर निकालने लगता है। उसके बाद वह लोभी सर्राफों की मेज़ों और कबूतर बेचनेवालों की चौकियों को उलट देता है। “लिखा है,” यीशु आवेश में कहता है, “मेरा घर प्रार्थना का घर कहलाएगा; परन्तु तुम उसे डाकुओं की खोह बनाते हो।”—मत्ती २१:१२, १३.
महायाजक, शास्त्री और प्रमुख लोग यीशु के कामों और जो शिक्षा वह लोगों को देता है उसे बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं। वे उसे मारने के लिए तड़प रहे हैं! लेकिन भीड़ उनके लिए एक रुकावट बनी हुई है क्योंकि लोग यीशु की शिक्षा से चकित हैं और वे “बड़ी चाह से उस की सुनते” हैं। (लूका १९:४७, ४८) दिन ढलते-ढलते, यीशु और उसके साथी रास्ते का आनंद लेते हुए रात को विश्राम करने के लिए वापस बैतनिय्याह जाते हैं।
निसान ११
पौ फटनेवाली है, और यीशु और उसके चेले जैतून पहाड़ से यरूशलेम की ओर जानेवाले रास्ते पर पहले ही निकल चुके हैं। जब वे मंदिर पहुँचते हैं, तो महायाजक और पुरनिये तुरंत आकर यीशु को घेर लेते हैं। मंदिर में सर्राफों और व्यापारियों के विरुद्ध उसके काम को वे अभी भूले नहीं हैं। उसके दुश्मन ज़हर उगलते हुए पूछते हैं: “तू ये काम किस के अधिकार से करता है? और तुझे यह अधिकार किस ने दिया है?” “मैं भी तुम से एक बात पूछता हूं,” यीशु जवाब में कहता है। “यदि वह मुझे बताओगे, तो मैं भी तुम्हें बताऊंगा; कि ये काम किस अधिकार से करता हूं। यूहन्ना का बपतिस्मा कहां से था? स्वर्ग की ओर से या मनुष्यों की ओर से था?” इकट्ठे होकर विरोधी आपस में तर्क करते हैं: “यदि हम कहें स्वर्ग की ओर से, तो वह हम से कहेगा, फिर तुम ने उस की प्रतीति क्यों न की? और यदि कहें मनुष्यों की ओर से तो हमें भीड़ का डर है; क्योंकि वे सब यूहन्ना को भविष्यद्वक्ता जानते हैं।” बौखलाकर, वे दबी-सी आवाज़ में जवाब देते हैं: “हम नहीं जानते।” यीशु शांत स्वर में जवाब देता है: “तो मैं भी तुम्हें नहीं बताता, कि ये काम किस अधिकार से करता हूं।”—मत्ती २१:२३-२७.
यीशु के दुश्मन अब उससे कुछ ऐसा बुलवाने की कोशिश करते हैं जिसमें फँसाकर वे उसे गिरफ्तार करवा सकें। वे पूछते हैं, “कैसर को कर देना उचित है, कि नहीं?” “कर का सिक्का मुझे दिखाओ,” यीशु बदले में जवाब देता है। वह पूछता है: “यह मूर्त्ति और नाम किस का है?” “कैसर का,” वे कहते हैं। यीशु उनको हैरानी में डालकर और सबको सुनाकर कहता है: “जो कैसर का है, वह कैसर को; और जो परमेश्वर का है, वह परमेश्वर को दो।”—मत्ती २२:१५-२२.
लाजवाब तर्क से अपने दुश्मनों का मुँह बंद करने के बाद, भीड़ और अपने चेलों के सामने उन्हें फटकारने की अब यीशु की बारी है। शास्त्रियों और फरीसियों की निडरता से भर्त्सना करते हुए उसे सुनिए। “उन के से काम मत करना,” वह कहता है, “क्योंकि वे कहते तो हैं पर करते नहीं।” निर्भय होकर, वह उन पर एक-के-बाद-एक ‘हाय’ घोषित करता है, और अंधे अगुओं और कपटियों के तौर पर उनकी पहचान कराता है। “हे सांपो, हे करैतों के बच्चो,” यीशु कहता है, “तुम नरक के दण्ड से क्योंकर बचोगे?”—मत्ती २३:१-३३.
इस कठोर निंदा का मतलब यह नहीं कि यीशु को दूसरों की अच्छाइयाँ नज़र नहीं आतीं। बाद में, वह मंदिर की दान-पेटियों में लोगों को पैसे डालते हुए देखता है। एक ज़रूरतमंद विधवा को अपनी सारी जीविका—बहुत कम कीमत की दो छोटी दमड़ियाँ—डालते देखना दिल को छू लेता है! हार्दिक कदरदानी के साथ, यीशु कहता है कि असल में इस विधवा ने उन सब से ज़्यादा डाला जो “अपनी अपनी बढ़ती में से” बहुत सारा दान दे रहे थे। अपनी कोमल करुणा के कारण, यीशु एक व्यक्ति द्वारा की गयी पूरी-पूरी कोशिश की बहुत कदर करता है।—लूका २१:१-४.
यीशु अब आखिरी बार मंदिर से निकलता है। उसके कुछ चेले इसके वैभव के बारे में बात करते हैं, कि वह “सुन्दर पत्थरों और भेंट की वस्तुओं से संवारा गया है।” यीशु के जवाब से वे हैरत में पड़ जाते हैं: “वे दिन आएंगे, जिन में . . . यहां किसी पत्थर पर पत्थर भी न छुटेगा, जो ढाया न जाएगा।” (लूका २१:५, ६) यीशु के पीछे-पीछे उस भीड़ भरे नगर से बाहर निकलते वक्त, प्रेरित सोच रहे हैं कि उसके कहने का क्या मतलब हो सकता है।
थोड़ी देर बाद यीशु और उसके प्रेरित बैठकर जैतून पहाड़ की शांति और एकांत का आनंद उठा रहे हैं। जब वे यरूशलेम और उसके मंदिर का शानदार नज़ारा देख रहे हैं, तब पतरस, याकूब, यूहन्ना और अन्द्रियास यीशु की चौंका देनेवाली भविष्यवाणी का स्पष्टीकरण माँगते हैं। “हम से कह,” वे कहते हैं, “ये बातें कब होंगी? और तेरे आने [तेरी उपस्थिति] का, और जगत के अन्त का क्या चिन्ह होगा?”—मत्ती २४:३; मरकुस १३:३, ४.
जवाब में यह कुशल शिक्षक एक सचमुच असाधारण भविष्यवाणी करता है। वह घमासान युद्धों, भूकंपों, अकालों और बीमारियों की भविष्यवाणी करता है। यीशु यह भी पूर्वबताता है कि राज्य का यह सुसमाचार सारी पृथ्वी पर प्रचार किया जाएगा। “उस समय,” वह चिताता है, “ऐसा भारी क्लेश होगा, जैसा जगत के आरम्भ से न अब तक हुआ, और न कभी होगा।”—मत्ती २४:७, १४, २१; लूका २१:१०, ११.
ये चार प्रेरित ध्यान से सुन रहे हैं जब यीशु ‘अपनी उपस्थिति के चिन्ह’ के दूसरे पहलुओं पर चर्चा करता है। वह ‘जागते रहने’ की ज़रूरत पर ज़ोर देता है। क्यों? “क्योंकि,” वह कहता है, “तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु किस दिन आएगा।”—मत्ती २४:४२; मरकुस १३:३३, ३५, ३७.
इस दिन को यीशु और उसके प्रेरित भूल नहीं सकते। असल में, यीशु की गिरफ्तारी, उस पर चलाए गए मुकदमे और उसे मृत्युदंड दिए जाने से पहले, उसकी जन सेवकाई का यह आखिरी दिन है। क्योंकि शाम ढल चुकी है, वे उस पहाड़ी से थोड़ी-सी दूरी तय करके वापस बैतनिय्याह की ओर चल पड़ते हैं।
निसान १२ और १३
यीशु निसान १२ का दिन अपने चेलों के साथ एकांत में बिताता है। उसे पता है कि धार्मिक अगुए उसे मारने पर आमादा हैं। और वह नहीं चाहता कि अगली शाम उसके फसह मनाने में वे लोग बाधा डालें। (मरकुस १४:१, २) अगले दिन, यानी निसान १३ को लोग फसह के लिए आखिरी तैयारियाँ करने में जुटे हुए हैं। दोपहर के शुरू होते ही, यीशु पतरस और यूहन्ना को यरूशलेम की एक अटारी में उनके लिए फसह तैयार करने भेजता है। (मरकुस १४:१२-१६; लूका २२:८) सूर्यास्त से थोड़ी ही देर पहले, यीशु और उसके दस अन्य प्रेरित अपना आखिरी फसह मनाने के लिए उन्हें वहाँ मिलते हैं।
सूर्यास्त के बाद, निसान १४
जब जैतून पहाड़ के ऊपर पूरा चाँद उभरता है, तब यरूशलेम शाम की मंद-मंद रोशनी में नहा रहा है। एक बड़े सजे हुए कमरे में, यीशु और उसके १२ चेले सजी हुई मेज़ के चारों तरफ बैठे हैं। “मुझे बड़ी लालसा थी, कि दुख-भोगने से पहिले यह फसह तुम्हारे साथ खाऊं,” वह कहता है। (लूका २२:१४, १५) थोड़ी देर बाद प्रेरित यह देखकर चकित हो जाते हैं कि यीशु उठता है और अपने बाहरी कपड़े उतारकर एक तरफ रखता है। एक अंगोछा और बर्तन में पानी लेकर, वह उनके पाँव धोने लगता है। नम्रतापूर्वक सेवा करने का क्या ही यादगार सबक!—यूहन्ना १३:२-१५.
लेकिन, यीशु जानता है कि इनमें से एक मनुष्य—यहूदा इस्करियोती—ने पहले ही धार्मिक अगुओं के हाथों उसे पकड़वाने की योजना बना ली है। स्वाभाविक ही, वह बहुत व्याकुल हो जाता है। “तुम में से एक मुझे पकड़वाएगा,” वह साफ-साफ बताता है। यह सुनकर प्रेरित बहुत ज़्यादा दुःखी हो जाते हैं। (मत्ती २६:२१, २२) फसह मनाने के बाद, यीशु यहूदा से कहता है: “जो तू करता है, तुरन्त कर।”—यूहन्ना १३:२७.
यहूदा के चले जाने के बाद, यीशु अपनी पास आती मृत्यु के स्मरण के लिए एक भोज की शुरूआत करता है। वह अखमीरी रोटी लेता है, प्रार्थना में धन्यवाद करके उसे तोड़ता है और ११ प्रेरितों को खाने के लिए कहता है। “यह मेरी देह है,” वह कहता है, “जो तुम्हारे लिये दी जाती है: मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।” फिर वह लाल दाखमधु का कटोरा लेता है। आशीष माँगने के बाद, वह कटोरा उन्हें देता है, और उससे पीने के लिए कहता है। यीशु आगे कहता है: “यह वाचा का मेरा वह लोहू है, जो बहुतों के लिये पापों की क्षमा के निमित्त बहाया जाता है।”—लूका २२:१९, २०; मत्ती २६:२६-२८.
उस यादगार शाम को, यीशु अपने वफादार प्रेरितों को अनेक मूल्यवान सबक सिखाता है और इनमें भाईचारे के प्रेम के महत्त्व का सबक भी है। (यूहन्ना १३:३४, ३५) वह उन्हें आश्वासन देता है कि वे एक “सहायक,” यानी पवित्र आत्मा पाएँगे। यह सहायक उन्हें यीशु द्वारा बतायी गयी सब बातें याद दिलाएगा। (यूहन्ना १४:२६) कुछ समय बाद उसी शाम को, यीशु को अपने लिए भावप्रवण प्रार्थना करते हुए सुनकर प्रेरितों को बहुत ज़्यादा प्रोत्साहन मिला होगा। (यूहन्ना, अध्याय १७) स्तुति के भजन गाने के बाद, वे उस अटारी से निकलकर रात की ठंडी हवा में यीशु के साथ-साथ बाहर जाते हैं।
किद्रोन नाले को पार करके, यीशु और उसके प्रेरित अपनी मनपसंद जगह, गतसमनी के बाग में आते हैं। (यूहन्ना १८:१, २) उसके प्रेरित इंतज़ार कर रहे हैं, और यीशु प्रार्थना करने के लिए थोड़ी दूर जाता है। जब वह मदद के लिए परमेश्वर से गिड़गिड़ाकर बिनती करता है, तब अपना भावात्मक तनाव वह शब्दों में ज़ाहिर नहीं कर पाता। (लूका २२:४४) इस बात का विचार ही उसके लिए हद से ज़्यादा तकलीफदेह है कि अगर वह हार गया तो उसके प्रिय स्वर्गीय पिता की कितनी बदनामी होगी।
यीशु ने बमुश्किल प्रार्थना पूरी की है कि यहूदा इस्करियोती भीड़ के साथ आ पहुँचता है जिनके हाथों में तलवारें, लाठियाँ और मशालें हैं। “हे रब्बी नमस्कार,” यहूदा कहता है, और यीशु को हलके से चूमता है। यह उन लोगों के लिए इशारा है कि यीशु को गिरफ्तार कर लें। अचानक, पतरस अपनी तलवार खींचकर बाहर निकालता है और महायाजक के दास का कान उड़ा देता है। “अपनी तलवार काठी में रख ले,” उस व्यक्ति के कान को ठीक करते हुए यीशु कहता है। “जो तलवार चलाते हैं, वे सब तलवार से नाश किए जाएंगे।”—मत्ती २६:४७-५२.
सबकुछ कितनी तेज़ी से हो रहा है! यीशु को गिरफ्तार करके बाँध दिया जाता है। डर और घबराहट में, प्रेरित अपने स्वामी को छोड़कर भाग जाते हैं। यीशु को भूतपूर्व महायाजक, हन्ना के पास ले जाया जाता है। उसके बाद उसे वर्तमान महायाजक, काइफा के पास लाया जाता है ताकि उस पर मुकदमा चलाया जाए। सुबह को तड़के ही महासभा यीशु पर ईशनिंदा का झूठा आरोप लगाती है। बाद में काइफा उसे रोमी हाकिम पुन्तियुस पीलातुस के पास भेज देता है। वह यीशु को हेरोदेस अन्तिपास के यहाँ भेजता है जो गलील का हाकिम है। हेरोदेस और उसके सैनिक यीशु का मज़ाक उड़ाते हैं। उसके बाद उसे वापस पीलातुस के पास भेजा जाता है। पीलातुस यीशु के निर्दोष होने की पुष्टि करता है। लेकिन यहूदी धार्मिक अगुए उस पर दबाव डालते हैं कि यीशु को मृत्युदंड सुनाए। काफी देर तक ज़ुबानी और शारीरिक दुर्व्यवहार के बाद, यीशु को गुलगुता ले जाया जाता है, जहाँ उसे बेरहमी से यातना स्तंभ पर कीलों से ठोंक दिया जाता है और वह बहुत ही दर्दनाक मौत मरता है।—मरकुस १४:५०-१५:३९; लूका २३:४-२५.
अगर यीशु की मौत ने हमेशा के लिए उसके जीवन का अंत कर दिया होता, तो यह इतिहास की सबसे दुःखद घटना साबित होती। ख़ुशी की बात है ऐसा नहीं हुआ। सामान्य युग ३३ के निसान १६ के दिन, उसके चेले यह जानकर विस्मित रह गए कि उसे मृतकों में से जिलाया गया है। कुछ समय बाद, ५०० से ज़्यादा लोग इस बात की पुष्टि कर सकते थे कि यीशु फिर से जीवित हो गया है। और उसके पुनरुत्थान के ४० दिन बाद, वफादार अनुयायियों के एक समूह ने उसे स्वर्ग पर चढ़ते हुए देखा।—प्रेरितों १:९-११; १ कुरिन्थियों १५:३-८.
यीशु का जीवन और आप
इन सबका असर आप पर—असल में, हम सब पर—कैसा होता है? यीशु की सेवकाई, मौत और पुनरुत्थान यहोवा परमेश्वर की महिमा करते हैं और उसके महान उद्देश्य की पूर्ति के लिए अनिवार्य हैं। (कुलुस्सियों १:१८-२०) ये हमारे लिए बहुत ही ज़रूरी हैं क्योंकि हम यीशु के बलिदान के आधार पर अपने पापों की क्षमा प्राप्त कर सकते हैं और इस तरह यहोवा परमेश्वर से एक व्यक्तिगत रिश्ता कायम कर सकते हैं।—यूहन्ना १४:६; १ यूहन्ना २:१, २.
मनुष्यजाति के मृतकों पर भी इसका असर होता है। यीशु का पुनरुत्थान उनके लिए रास्ता खोल देता है कि परादीस पृथ्वी पर वापस जीवित किए जाएँ जिसका वादा परमेश्वर ने किया है। (लूका २३:३९-४३; १ कुरिन्थियों १५:२०-२२) अगर आप इन बातों के बारे में ज़्यादा जानना चाहते हैं, तो हम आपको अप्रैल ११, १९९८ के दिन यीशु की मृत्यु के स्मारक में उपस्थित होने के लिए आमंत्रित करते हैं। यह स्मारक आपके इलाके में यहोवा के साक्षियों के राज्यगृह में मनाया जाएगा।
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“डाकुओं की खोह”
यीशु के पास यह कहने का पर्याप्त कारण था कि उन लोभी व्यापारियों ने परमेश्वर के मंदिर को “डाकुओं की खोह” बना दिया था। (मत्ती २१:१२, १३) मंदिर का कर अदा करने के लिए, दूसरे देशों से आए यहूदियों और यहूदी-मतधारकों को अपनी विदेशी मुद्रा के बदले स्वीकारयोग्य मुद्रा लेनी पड़ती थी। अपनी किताब मसीहा यीशु का जीवन और काल (अंग्रेज़ी) में, अल्फ्रॆड एडरशाइम बताता है कि फसह के एक महीने पहले, अदार महीने की १५ तारीख को सर्राफ बाहरी क्षेत्रों में अपना व्यापार जमा लेते थे। अदार २५ से, वे यरूशलेम में मंदिर के क्षेत्र में आ जाते थे ताकि बड़ी संख्या में यहूदियों और यहूदी-मतधारकों के आने का फायदा उठा सकें। दलालों का धंधा फल-फूल रहा था, वे मुद्रा की अदला-बदली में एक-एक पैसे पर फीस लेते। यीशु का उन्हें डाकू कहना दिखाता है कि उनकी फीस इतनी ज़्यादा थी कि वे असल में गरीबों से पैसा ऐंठ रहे थे।
कुछ लोग बलि के लिए अपने जानवर नहीं ला पाते थे। जो कोई लाता उसे मंदिर में एक निरीक्षक से उस जानवर की जाँच करवानी पड़ती—जिसके लिए फीस ली जाती। इतनी दूर तक जानवर लाने के बाद उसके ठुकराए जाने के खतरे से बचने के लिए, अनेक लोग मंदिर में उन भ्रष्ट दलालों से लेवीय स्तरों के अनुसार “स्वीकृत” जानवर लेते थे। “कई गरीब किसानों का खून चूस लिया जाता था,” एक विद्वान कहता है।
इस बात का सबूत पाया जाता है कि कभी महायाजक रह चुके हन्ना और उसके परिवार का मंदिर के व्यापार में अपना स्वार्थ था। रब्बिनी लेख “हन्ना के बेटों के [मंदिर के] बाज़ारों” के बारे में बताते हैं। सर्राफों और मंदिर के परिवेश में बेचे गए जानवरों से आया पैसा, उनकी कमाई का एक मुख्य ज़रिया था। एक विद्वान कहता है कि व्यापारियों को निकालने की यीशु की कार्यवाही का “निशाना न केवल याजकों की प्रतिष्ठा थी बल्कि उनकी जेबें भी थीं।” चाहे जो भी हो, उसके दुश्मन हर हाल में उसका खातमा करना चाहते थे! —लूका १९:४५-४८.
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यीशु के मानव जीवन के अंतिम दिन
निसान सा.यु.३३ घटनाएँ सर्वश्रेष्ठ मनुष्य*
७ शुक्रवार यीशु और उसके चेले १०१, अनु. १
यरीहो से निकलकर यरूशलेम को जाते हैं (निसान ७ रविवार,
अप्रैल ५, १९९८ से मेल खाता है, हालाँकि इब्रानी दिन
एक शाम से दूसरी शाम तक हुआ करता था)
८ शुक्रवार यीशु और उसके चेले बैतनिय्याह १०१, अनु.२-४ पहुँचते हैं; सब्त शुरू होता है की शाम
शनिवार सब्त (सोमवार, अप्रैल ६, १९९८) १०१,अनु. ४
९ शनिवार शमौन कोढ़ी के साथ भोजन; १०१,अनु. ५-९ मरियम जटामांसी के तेल से यीशु का
की शाम अभिषेक करती है; अनेक लोग यरूशलेम से यीशु को देखने और उसकी सुनने आते हैं
रविवार यरूशलेम में विजयी प्रवेश; १०२ मंदिर में सिखाता है
१० सोमवार यरूशलेम में सुबह-सुबह १०३,१०४
आना; मंदिर को साफ करता है; यहोवा स्वर्ग से बोलता है
११ मंगलवार यरूशलेम में, मंदिर में १०५ से ११२, दृष्टांतों के ज़रिए सिखाता है; अनु. १ फरीसियों की निंदा करता है; विधवा का अंशदान देखता है; अपनी भावी उपस्थिति का चिन्ह देता है
१२ बुधवार चेलों के साथ बैतनिय्याह ११२,अनु. २-४ में एकांत में बीता दिन; यहूदा पकड़वाने का प्रबंध करता है
१३ गुरुवार पतरस और यूहन्ना यरूशलेम ११२, अनु.५से में फसह की तैयारी करते हैं; ११३, अनु.१ यीशु और अन्य दस प्रेरित देर दोपहर में पहुँचते हैं (शनिवार, अप्रैल ११, १९९८)
१४ गुरुवार फसह का समारोह; ११३, अनु. २ यीशु प्रेरितों के पाँव धोता है; से ११७ यहूदा यीशु को पकड़वाने बाहर जाता है; मसीह अपनी मृत्यु का स्मारक स्थापित करता है (सूर्यास्त के बाद, शनिवार, अप्रैल ११, १९९८)की शाम
आधी रात गतसमनी के बाग में पकड़वाया ११८ से १२० के बाद जाना और गिरफ्तारी; प्रेरित भाग खड़े होते हैं; महायाजकों और महासभा के सामने मुकदमा; पतरस यीशु का इनकार करता है
शुक्रवार दोबारा महासभा के सामने; १२१ से १२७ सूर्योदय से पीलातुस के सामने, फिर हेरोदेस, अनु. ७ सूर्यास्त तक फिर वापस पीलातुस के सामने; मृत्युदंड सुनाया जाता है; यातना स्तंभ पर लटकाया जाता है; दफनाया जाता है
१५ शनिवार सब्त; पीलातुस यीशु की १२७,अनु. ८-१० कब्र के लिए पहरेदारों की अनुमति देता है
१६ रविवार यीशु पुनरुत्थित होता है १२८
*यहाँ दिए गए अंक वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा किताब के अध्यायों को सूचित करते हैं। यीशु की अंतिम सेवकाई के लिए विस्तृत शास्त्रीय संदर्भों के चार्ट के लिए, “समस्त शास्त्र ईश्वर-प्रेरित और लाभदायक है” (अंग्रेज़ी) का पृष्ठ २९० देखिए। ये किताबें वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित की गयी हैं।