रूप को देखकर नहीं पर विश्वास से चलिए!
“हम रूप को देखकर नहीं, पर विश्वास से चलते हैं।”—2 कुरिन्थियों 5:7.
1. क्या दिखाता है कि प्रेरित पौलुस रूप को देखकर नहीं बल्कि विश्वास से चलता था?
सामान्य युग 55 का साल था। उस वक्त तक मसीहियों को सतानेवाले शाऊल को एक मसीही बने कुछ 20 साल हो गए थे। इतना समय बीतने के बाद भी शाऊल ने जो अब प्रेरित पौलुस कहलाता है, परमेश्वर पर अपना विश्वास कमज़ोर नहीं होने दिया। स्वर्ग की चीज़ों को वह अपनी आँखों से देख तो नहीं सकता था मगर उन पर उसका विश्वास एकदम पक्का था। इसलिए उसने स्वर्ग में जीने की आशा रखनेवाले अभिषिक्त मसीहियों को लिखा: “हम रूप को देखकर नहीं, पर विश्वास से चलते हैं।”—2 कुरिन्थियों 5:7.
2, 3. (क) हम कैसे ज़ाहिर करते हैं कि हम विश्वास से चलनेवाले हैं? (ख) रूप को देखकर चलने का मतलब क्या है?
2 विश्वास से चलने के लिए परमेश्वर पर पूरा-पूरा भरोसा रखना ज़रूरी है कि वह हमें ज़िंदगी में सही राह दिखा सकता है। हमें यह पक्का यकीन होना चाहिए कि सिर्फ वही जानता है कि किस राह पर चलने में हमारी भलाई है। (भजन 119:66) इसलिए हम “अनदेखी वस्तुओं” को ध्यान में रखकर ज़िंदगी के फैसले लेते हैं। (इब्रानियों 11:1) ये अनदेखी वस्तुएँ क्या हैं? इनमें ‘नया आकाश और नई पृथ्वी’ शामिल हैं जिनके आने का वादा किया गया है। (2 पतरस 3:13) दूसरी तरफ, रूप को देखकर चलने का मतलब है, सिर्फ आँखों-देखी चीज़ों को पाने का लक्ष्य रखकर जीना। ऐसा करना खतरनाक है क्योंकि इससे हमारी ज़िंदगी में ऐसा मुकाम आ सकता है कि हम परमेश्वर की मरज़ी को दरकिनार कर दें।—भजन 81:12; सभोपदेशक 11:9.
3 चाहे हम स्वर्ग जाने की आशा रखनेवाले “छोटे झुण्ड” के सदस्य हों, या धरती पर जीने की आशा रखनेवाली ‘अन्य भेड़ें’, हममें से हरेक के लिए इस सलाह को दिल से मानना ज़रूरी है कि हम रूप को देखकर नहीं बल्कि विश्वास से चलें। (लूका 12:32; यूहन्ना 10:16, NW) आइए देखें कि ईश्वर-प्रेरणा से दी इस सलाह को मानने से हम कैसे इन फँदों से बच सकते हैं: ‘पाप में थोड़े दिन का सुख भोगना,’ धन का लालच, और यह सोचना कि अंत आने में अभी देर है। हम यह भी देखेंगे कि रूप को देखकर चलने में क्या-क्या खतरे हैं।—इब्रानियों 11:25.
“पाप में थोड़े दिन के सुख” को ठुकराना
4. मूसा ने क्या चुनाव किया और क्यों?
4 ज़रा सोचिए, अम्राम का बेटा मूसा अगर चाहता तो कैसी ज़िंदगी बिता सकता था। उसकी परवरिश प्राचीन मिस्र में राजघराने के दूसरे बच्चों के साथ हुई थी, इसलिए उसके आगे ताकत, दौलत और रुतबा हासिल करने के मौके खुले थे। मूसा के दिल में यह खयाल आ सकता था: ‘मैंने मिस्र की ऊँची तालीम हासिल की है, मैं होशियार हूँ और डील-डौल में मज़बूत हूँ। अगर मैं यहीं शाही घराने में ही रहूँ तो अपने ओहदे के बलबूते पर अपने इब्री भाइयों को ज़ुल्मों से छुटकारा दिला सकता हूँ।’ (प्रेरितों 7:22) लेकिन ऐसा सोचने के बजाय, मूसा ने ‘परमेश्वर के लोगों के साथ दुख भोगने’ का चुनाव किया। क्यों? आखिर मूसा ने मिस्र की दौलत और ताकत को क्यों ठुकरा दिया? बाइबल जवाब देती है: “विश्वास ही से राजा के क्रोध से न डरकर [मूसा] ने मिसर को छोड़ दिया, क्योंकि वह अनदेखे को मानो देखता हुआ दृढ़ रहा।” (इब्रानियों 11:24-27) मूसा को पूरा विश्वास था कि यहोवा धार्मिकता के काम करनेवालों को ज़रूर इनाम देता है, इसलिए उसने पाप और ऐयाशी की ज़िंदगी को ठुकरा दिया जो सिर्फ चार दिन की होती है।
5. मूसा की मिसाल हमें क्या करने के लिए उकसाती है?
5 अकसर हमें भी इन मामलों में मुश्किल फैसले करने पड़ते हैं, जैसे, ‘क्या मुझे ऐसे कुछ काम या आदतें छोड़ देनी चाहिए जो बाइबल के सिद्धांतों से पूरी तरह मेल नहीं खाते? क्या मुझे कोई ऐसी नौकरी करनी चाहिए जो अच्छी तनख्वाह तो देती है मगर मेरी आध्यात्मिक तरक्की में रुकावट बन सकती है?’ मूसा की मिसाल हमें उकसाती है कि हम संसार के लोगों के जैसे फैसले न करें जिनके लिए आज की ज़िंदगी ही सबकुछ है, इसलिए वे जितना हो सके उसका मज़ा लूटना चाहते हैं। इसके बजाय, हमें “अनदेखे” परमेश्वर यहोवा की दूरंदेशी बुद्धि पर विश्वास रखना चाहिए। आइए हम भी मूसा की तरह दुनिया की चमक-दमक को ठुकराएँ और यहोवा की मित्रता को सबसे अनमोल समझें।
6, 7. (क) एसाव ने कैसे दिखाया कि उसे रूप को देखकर चलना मंज़ूर था? (ख) एसाव से हम क्या सबक सीखते हैं?
6 मगर कुलपिता इसहाक के बेटे, एसाव ने मूसा से बिलकुल अलग रवैया दिखाया। वह एक उतावला इंसान था, जिसे अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए ज़रा भी इंतज़ार करना मंज़ूर नहीं था। (उत्पत्ति 25:30-34) उसने ‘पवित्र बातों की कदर नहीं की’ (NW) इसलिए “एक बार के भोजन के बदले” उसने पहिलौठा होने का अपना अधिकार बेच दिया। (इब्रानियों 12:16) उसने एक पल के लिए भी रुककर नहीं सोचा कि इस फैसले का यहोवा के साथ उसके रिश्ते पर क्या असर पड़ेगा या उसकी आनेवाली संतानों का क्या होगा। वह आध्यात्मिक मायने में अंधा था। इसलिए उसने परमेश्वर के अनमोल वादों को नज़रअंदाज़ कर दिया और उन्हें तुच्छ जाना। वह रूप को देखकर चलनेवाला इंसान था, न कि विश्वास से चलनेवाला।
7 एसाव से आज हम सबक सीख सकते हैं। (1 कुरिन्थियों 10:11) जब हमें कोई फैसला लेना होता है, फिर चाहे वह छोटा और मामूली फैसला हो या बड़ा, हमें खबरदार रहना है कि हम शैतान की दुनिया के झाँसे में न आएँ जो इस तरह के रवैए को बढ़ावा देती है: ‘तुम्हें जो चाहिए अभी इसी वक्त हासिल कर लो।’ हमें खुद से ये सवाल पूछने चाहिए: ‘क्या मेरे फैसले दिखाते हैं कि मेरे अंदर धीरे-धीरे एसाव के जैसा रवैया पैदा होने लगा है? क्या मैं अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने में इतना डूब गया हूँ कि आध्यात्मिक बातों को दूसरी जगह देने लगा हूँ? क्या मैंने इस तरह के चुनाव किए हैं जिनकी वजह से परमेश्वर के साथ मेरी मित्रता और भविष्य में मिलनेवाला इनाम दाँव पर हैं? मैं दूसरों के लिए कैसी मिसाल पेश कर रहा हूँ?’ अगर हमारे फैसले दिखाते हैं कि हम पवित्र बातों की कदर करते हैं, तो यहोवा हमें ज़रूर आशीष देगा।—नीतिवचन 10:22.
धन के लालच से बचना
8. लौदीकिया के मसीहियों को किस बात से खबरदार किया गया था, और हमें इस चेतावनी पर क्यों ध्यान देना चाहिए?
8 पहली सदी के आखिर में, महिमा से भरपूर यीशु मसीह ने प्रेरित यूहन्ना को एक दर्शन दिया। इसमें एशिया माइनर की लौदीकिया कलीसिया के लिए एक पैगाम था। यीशु ने वहाँ के मसीहियों को धन-दौलत के लालच से खबरदार किया था। लौदीकिया के मसीही थे तो बड़े धनी मगर आध्यात्मिक मायने में वे कंगाल थे। दौलत की चमक-दमक ने उन्हें आध्यात्मिक रूप से अंधा कर दिया था, इसलिए उन्होंने विश्वास से चलना छोड़ दिया था। (प्रकाशितवाक्य 3:14-18) धन का लालच आज भी कुछ ऐसा ही असर करता है। यह हमारे विश्वास को कमज़ोर कर देता है और जीवन की ‘दौड़ में धीरज से दौड़ने’ से हमें रोक देता है। (इब्रानियों 12:1) अगर हम सावधान न रहें तो हम “जीवन के सुख विलास” में इस कदर डूब सकते हैं कि आध्यात्मिक कामों को नज़रअंदाज़ करने लगेंगे और एक वक्त ऐसा आएगा जब ये काम ‘पूरी तरह दब जाएँगे।’—लूका 8:14, NW.
9. आध्यात्मिक भोजन से खुश रहने और उसकी कदर करने से कैसे हमारी हिफाज़त होती है?
9 इस फँदे से आध्यात्मिक हिफाज़त पाने का राज़ है, हमारे पास जो है उसी में खुश रहना, न कि इस संसार की चीज़ों का मज़ा लेने में लिप्त हो जाना और धन-दौलत बटोरना। (1 कुरिन्थियों 7:31; 1 तीमुथियुस 6:6-8) रूप को देखकर चलने के बजाय विश्वास से चलने की वजह से आज हम आध्यात्मिक फिरदौस में खुशी पाते हैं। ज़रा सोचिए, क्या हम इस बात के लिए “हर्षित मन से जयजयकार” नहीं करते कि हमें बढ़िया आध्यात्मिक खुराक मिलती है? (यशायाह 65:13, 14, NHT) इतना ही नहीं, हमें उन लोगों के साथ मेल-जोल रखने से खुशी मिलती है जो परमेश्वर की आत्मा के फल ज़ाहिर करते हैं। (गलतियों 5:22, 23) इसलिए यहोवा ने हमारी खातिर जो-जो आध्यात्मिक इंतज़ाम किए हैं, उसमें खुश रहना और उससे ताज़गी पाना निहायत ज़रूरी है!
10. हमें अपने आपसे क्या सवाल पूछने चाहिए?
10 हमें खुद से ऐसे सवाल पूछने चाहिए: ‘मेरी ज़िंदगी में रुपए-पैसे और साज़ो-सामान की क्या अहमियत है? मैं अपने पैसों और साधनों का किस तरह इस्तेमाल कर रहा हूँ—आराम की ज़िंदगी बिताने के लिए या सच्ची उपासना को बढ़ावा देने के लिए? मुझे किस बात से सबसे ज़्यादा खुशी मिलती है? क्या मसीही सभाओं में बाइबल का अध्ययन करने और भाई-बहनों के साथ संगति करने से या शनिवार-रविवार के दिन अपनी मसीही ज़िम्मेदारियों को भूलकर मौज-मस्ती करने से? क्या मैं शनिवार-रविवार का समय प्रचार करने और सच्ची उपासना के दूसरे कामों के लिए अलग रखता हूँ या मैं अकसर बाहर घूमने या मनोरंजन करने में बिताता हूँ?’ विश्वास से चलने के लिए ज़रूरी है कि हम यहोवा के वादों पर पूरा भरोसा रखकर राज्य के कामों में जी-जान से लगे रहें।—1 कुरिन्थियों 15:58.
हमेशा याद रखना कि अंत करीब है
11. विश्वास से चलने की वजह से हम कैसे इस बात को हमेशा याद रखेंगे कि अंत करीब है?
11 विश्वास से चलने की वजह से हम यह इंसानी नज़रिया नहीं रखेंगे कि अभी तो अंत आने में देर है या अंत कभी नहीं आएगा। हम उन लोगों की तरह नहीं हैं जो बाइबल की भविष्यवाणियों की सच्चाई पर शक करते हैं, और उन्हें झूठा ठहराने की कोशिश करते हैं। (2 पतरस 3:3, 4) इसके बजाय, हम देख सकते हैं कि आज संसार की घटनाएँ कैसे बाइबल की भविष्यवाणियों को पूरा कर रही हैं। मिसाल के लिए, क्या ज़्यादातर लोगों के रवैए और व्यवहार से यह साबित नहीं होता कि हम “अन्तिम दिनों” में जी रहे हैं? (2 तीमुथियुस 3:1-5) विश्वास की आँखों से हम देख सकते हैं कि आज दुनिया में जो घटनाएँ घट रही हैं, वे मामूली बातें नहीं हैं। इसके बजाय, ये घटनाएँ ‘[मसीह की] उपस्थिति का और इस रीति-व्यवस्था के अन्त का चिन्ह’ हैं। (NW)—मत्ती 24:1-14.
12. लूका 21:20, 21 में कहे यीशु के शब्द पहली सदी में कैसे पूरे हुए?
12 सामान्य युग पहली सदी की एक घटना पर गौर कीजिए। इससे मिलती-जुलती एक घटना हमारे दिनों में भी होगी। जब यीशु मसीह धरती पर था तो उसने अपने चेलों को आगाह किया था: “जब तुम यरूशलेम को सेनाओं से घिरा हुआ देखो, तो जान लेना कि उसका उजड़ जाना निकट है। तब जो यहूदिया में हों वह पहाड़ों पर भाग जाएं, और जो यरूशलेम के भीतर हों वे बाहर निकल जाएं।” (लूका 21:20, 21) यह भविष्यवाणी सा.यु. 66 में पूरी हुई जब सेस्टियस गैलस ने रोमी फौज के साथ पूरे यरूशलेम को घेर लिया था। लेकिन फिर बिना किसी वजह, अचानक रोमी सेना वापस चली गयी। तब मसीही समझ गए कि यीशु की चेतावनी के मुताबिक ‘पहाड़ों पर भाग जाने’ का यही मौका है और उन्होंने ऐसा ही किया। सामान्य युग 70 में रोमी सेना वापस आयी और इस बार उन्होंने यरूशलेम पर धावा बोला और उसके मंदिर को खाक में मिला दिया। इतिहासकार जोसीफस रिपोर्ट करता है कि दस लाख से ज़्यादा यहूदी मारे गए और 97,000 यहूदियों को कैदी बना लिया गया। इस तरह परमेश्वर ने यहूदी व्यवस्था पर अपना न्यायदंड लाया। मगर जो लोग विश्वास से चले, उन्होंने यीशु की चेतावनी को माना और नाश होने से बच गए।
13, 14. (क) बहुत जल्द कौन-सी घटनाएँ घटनेवाली हैं? (ख) हमें यह देखने के लिए क्यों सतर्क रहना चाहिए कि बाइबल की भविष्यवाणियाँ किस तरह पूरी हो रही हैं?
13 आज हमारे समय में ऐसा ही कुछ होनेवाला है। संयुक्त राष्ट्र के अंदर ही मौजूद कुछ तत्वों को परमेश्वर के आनेवाले न्यायदंड में इस्तेमाल किया जाएगा। पहली सदी में जिस तरह रोमी सेना का काम पैक्स रोमाना (रोमी शांति) को बरकरार रखना था, ठीक उसी तरह आज संयुक्त राष्ट्र को भी सारी दुनिया में शांति बनाए रखने के लिए खड़ा किया गया है। हालाँकि उस ज़माने में रोमी सेना ने सारी दुनिया में शांति और सुरक्षा कायम करने की कोशिश की, मगर आखिर में इसी सेना ने यरूशलेम को तबाह कर डाला। उसी तरह, बाइबल की भविष्यवाणियों से पता चलता है कि संयुक्त राष्ट्र की सैन्य शक्तियों को लगेगा कि धर्म, असल में मुसीबतों की जड़ है। इसलिए वे आज के यरूशलेम यानी ईसाईजगत का, साथ ही बड़े बाबुल के बाकी धर्मों का नामो-निशान मिटा देंगी। (प्रकाशितवाक्य 17:12-17) इसमें कोई शक नहीं कि साम्राज्य की तरह फैले झूठे धर्म के दिन अब गिने हुए हैं!
14 झूठे धर्म के नाश से बड़ा क्लेश शुरू हो जाएगा। बड़े क्लेश के आखिर में, इस दुष्ट संसार के बाकी तत्वों का नाश किया जाएगा। (मत्ती 24:29, 30; प्रकाशितवाक्य 16:14, 16) विश्वास से चलते हुए हमें यह देखने के लिए सतर्क रहना चाहिए कि किस तरह ये घटनाएँ, बाइबल की भविष्यवाणियों को पूरा करती हैं। तब हम इस झाँसे में नहीं आएँगे कि परमेश्वर, दुनिया में शांति और सुरक्षा लाने के लिए संयुक्त राष्ट्र या किसी और इंसानी संगठन को इस्तेमाल करेगा। तो फिर, क्या हमारे जीने के तरीके से यह ज़ाहिर नहीं होना चाहिए कि हमें पक्का विश्वास है कि “यहोवा का भयानक दिन निकट है”?—सपन्याह 1:14.
रूप को देखकर चलना—कितना खतरनाक?
15. परमेश्वर से मदद और हिफाज़त पाने के बावजूद इस्राएल जाति किस फँदे में जा फँसी?
15 प्राचीन इस्राएल के साथ जो हुआ, वह दिखाता है कि रूप को देखकर चलने की वजह से जब विश्वास कमज़ोर पड़ जाता है तो यह कितना खतरनाक साबित हो सकता है। इस्राएलियों ने खुद अपनी आँखों से देखा था कि कैसे यहोवा ने दस विपत्तियाँ लाकर मिस्र के देवी-देवताओं को शर्मिंदा किया था। इतना ही नहीं, यहोवा ने इस्राएलियों को लाल समुद्र पार करवाकर बड़े शानदार तरीके से बचाया था। लेकिन इतना कुछ अनुभव करने के बावजूद, उन्होंने परमेश्वर की आज्ञा के खिलाफ जाकर रूप को देखकर चलने की गलती की। जब मूसा को “पर्वत से उतरने में विलम्ब हो रहा” था तो वे बेचैन हो उठे। (निर्गमन 32:1-4) वे इस कदर उतावले हो गए कि अनदेखे परमेश्वर यहोवा को छोड़कर सोने के बछड़े को पूजने लगे जिसे वे आँखों से देख सकते थे। इस तरह रूप को देखकर चलने की वजह से उन्होंने यहोवा का घोर अपमान किया। नतीजा यह था कि “लगभग तीन हज़ार लोग मारे गए।” (NHT) (निर्गमन 32:25-29) आज भी जब यहोवा का कोई उपासक ऐसे फैसले करता है जो दिखाते हैं कि उसे यहोवा पर भरोसा नहीं और ना ही उसकी इस काबिलीयत पर यकीन है कि वह अपने वादों को पूरा कर सकता है, तो उसे कितने बुरे अंजाम भुगतने पड़ते हैं।
16. बाहरी रूप को देखने का इस्राएलियों पर क्या असर हुआ?
16 बाहरी रूप को देखकर चलने की वजह से इस्राएलियों ने और भी कई तरीकों से गलत रवैए दिखाए। यह देखकर कि दुश्मन बहुत बलवान हैं, उनका मन कच्चा हो गया। (गिनती 13:28, 32; व्यवस्थाविवरण 1:28) मूसा को परमेश्वर ने जो अधिकार दिया था, उसके खिलाफ उन्होंने आवाज़ उठायी और अपनी ज़िंदगी पर रोने लगे। इस तरह परमेश्वर पर विश्वास न होने की वजह से उन्हें वादा किए गए देश के बजाय मिस्र वापस लौटना बेहतर लगा जो दुष्टात्माओं के कब्ज़े में था। (गिनती 14:1-4; भजन 106:24) ऐसा करके वे अपने अदृश्य राजा यहोवा का घोर अपमान कर रहे थे। यह देखकर यहोवा को कितना दुःख हुआ होगा!
17. शमूएल के दिनों में इस्राएलियों ने किस वजह से यहोवा के मार्गदर्शन को ठुकरा दिया?
17 भविष्यवक्ता शमूएल के दिनों में, परमेश्वर की चुनी हुई इस्राएल जाति एक बार फिर रूप को देखकर चलने के फँदे में फँस गयी। वे एक ऐसा राजा चाहते थे जिसे वे आँखों से देख सकते थे। हालाँकि यहोवा ने साबित कर दिखाया था कि वही उनका राजा है, मगर वे अपने विश्वास की आँखों से इस हकीकत को नहीं देख सके। (1 शमूएल 8:4-9) इसलिए उन्होंने यहोवा के मार्गदर्शन को ठुकराने की बेवकूफी की और दूसरी जातियों की तरह अपने लिए एक इंसानी राजा की माँग करने लगे। इससे आगे चलकर उनका ही नुकसान हुआ।—1 शमूएल 8:19, 20.
18. रूप को देखकर चलने के क्या खतरे हो सकते हैं?
18 आज, यहोवा के सेवक होने के नाते उसके साथ हमारा एक बढ़िया रिश्ता है और हम उस रिश्ते को अनमोल समझते हैं। गुज़रे ज़माने के लोगों के साथ जो हुआ, उससे हम सबक सीखते हैं और उनकी गलतियाँ नहीं दोहराना चाहते। (रोमियों 15:4) मसलन, जब इस्राएली रूप को देखकर चलने लगे तो वे भूल गए कि मूसा के ज़रिए दरअसल परमेश्वर उनकी अगुवाई कर रहा था। अगर हम सावधान न रहें, तो हम भी यह बात भूल सकते हैं कि मसीही कलीसिया की अगुवाई दरअसल यहोवा परमेश्वर और महान मूसा, यीशु मसीह कर रहे हैं न कि कोई इंसान। (प्रकाशितवाक्य 1:12-16) हमें चौकस रहना चाहिए कि हम धरती पर मौजूद यहोवा के संगठन को इंसानी नज़रिए से न देखें। ऐसा नज़रिया रखने से हम “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” से मिलनेवाले भोजन के लिए, साथ ही यहोवा के ठहराए नुमाइंदों के लिए अपनी कदरदानी खो देंगे और उनके खिलाफ कुड़कुड़ाने लगेंगे।—मत्ती 24:45.
विश्वास से चलने की ठान लीजिए
19, 20. आपने क्या करने का पक्का इरादा किया है, और क्यों?
19 बाइबल कहती है: “हमारा यह मल्लयुद्ध, लोहू और मांस से नहीं, परन्तु प्रधानों से और अधिकारियों से, और इस संसार के अन्धकार के हाकिमों से, और उस दुष्टता की आत्मिक सेनाओं से है जो आकाश में हैं।” (इफिसियों 6:12) शैतान इब्लीस हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है। उसका एक ही लक्ष्य है, किसी तरह यहोवा पर हमारा विश्वास तोड़ देना। वह ऐसी कोई भी चाल आज़माने से पीछे नहीं हटेगा जिससे हम परमेश्वर की सेवा करना छोड़ दें। (1 पतरस 5:8) क्या बात हमारी हिफाज़त करेगी ताकि हम शैतान के संसार के बाहरी दिखावे से धोखा न खाएँ? रूप को देखकर नहीं बल्कि विश्वास से चलना हमारी मदद करेगा! यहोवा के वादों पर भरोसा रखने से ‘हमारा विश्वास रूपी जहाज़ डूबने’ से बचेगा। (1 तीमुथियुस 1:19) तो फिर आइए हम यह पक्का इरादा कर लें कि हम विश्वास से चलते रहेंगे और पूरा भरोसा रखेंगे कि यहोवा हमें इनाम ज़रूर देगा। और यह प्रार्थना करते रहें कि संसार पर जल्द आनेवाली सारी घटनाओं से वह हमें बचाए रखे।—लूका 21:36.
20 रूप को देखकर नहीं पर विश्वास से चलने में हमारे आगे एक उम्दा मिसाल है। वह कौन है? बाइबल कहती है: ‘मसीह तुम्हारे लिये दुख उठाकर, तुम्हें एक आदर्श दे गया है, कि तुम भी उसके चिन्ह पर चलो।’ (1 पतरस 2:21) अगला लेख बताएगा कि हम कैसे यीशु के नक्शे-कदम पर चल सकते हैं।
क्या आपको याद है?
• रूप को देखकर नहीं पर विश्वास से चलने के बारे में आपने मूसा और एसाव की मिसाल से क्या सीखा?
• धन के लालच से बचने का राज़ क्या है?
• विश्वास से चलने पर हम किस तरह इस रवैए से बचेंगे कि अंत आने में अभी देर है?
• रूप को देखकर चलना क्यों खतरनाक है?
[पेज 17 पर तसवीर]
मूसा विश्वास से चला
[पेज 18 पर तसवीर]
क्या मन-बहलाव के काम अकसर आपको मसीही कामों में हिस्सा लेने से रोक देते हैं?
[पेज 20 पर तसवीर]
परमेश्वर के वचन पर ध्यान देना कैसे आपकी हिफाज़त करता है?