परमेश्वर के करीब आइए
परमेश्वर चाहता है कि हम कामयाब हों
परवाह करनेवाले माता-पिताओं का यह अरमान होता है कि उनके बच्चे बड़े होकर कामयाब इंसान बनें, एक मकसद-भरी और खुशहाल ज़िंदगी जीएँ। उसी तरह, स्वर्ग में रहनेवाले हमारे पिता, यहोवा की यह आरज़ू है कि धरती पर रहनेवाले उसके बच्चे कामयाब हों। और वह हमारी कितनी परवाह करता है, इसकी झलक देने के लिए उसने बताया कि कामयाब होने के लिए हमें क्या करना चाहिए। उदाहरण के लिए, उन शब्दों पर गौर कीजिए जो उसने यहोशू से कहे थे। ये शब्द यहोशू 1:6-9 में दर्ज़ हैं।
दायीं तरफ दी तसवीर में दिखाए दृश्य की कल्पना कीजिए। इसराएलियों के नेता मूसा की मौत हो चुकी है और उसकी जगह लेने के लिए यहोशू को चुना गया है। इसराएलियों की गिनती अब लाखों में पहुँच गयी है और वे उस देश पर कब्ज़ा करने के लिए तैयार हैं, जिसे देने का वादा परमेश्वर ने उनके बाप-दादों से किया था। इसी दौरान यहोवा, यहोशू को कुछ सलाह देता है। अगर यहोशू इन सलाहों को मानेगा, तो वह ज़रूर कामयाब होगा। लेकिन ये सलाहें सिर्फ यहोशू के लिए नहीं थीं। अगर हम इन्हें मानें, तो हम भी कामयाब हो सकते हैं।—रोमियों 15:4.
यहोवा ने यहोशू से एक बार नहीं बल्कि तीन बार कहा कि वह हिम्मतवाला और मज़बूत बने। (आयत 6, 7, 9) यह बिलकुल सही सलाह थी, क्योंकि इसराएलियों को वादा किए गए देश में ले जाने के लिए यहोशू को हिम्मत और ताकत की ज़रूरत थी। लेकिन वह ये गुण कैसे पैदा कर सकता था?
यहोशू को ईश्वर-प्रेरणा से लिखे शास्त्रवचन से हिम्मत और ताकत मिल सकती थी। यहोवा ने कहा: “जो संहिता [यानी व्यवस्था] मेरे सेवक मूसा ने तुमको दी है, उसका सावधानी से पूरा-पूरा पालन करो।” (आयत 7, बुल्के बाइबिल) उस वक्त तक शायद यहोशू के पास लिखित में बाइबल की सिर्फ कुछ ही किताबें थीं।a मगर इन किताबों के होने से ही उसे कामयाबी नहीं मिल जाती। परमेश्वर के वचन से फायदा पाने के लिए उसे दो काम करने की ज़रूरत थी।
पहला, यहोशू को लगातार अपने मन को परमेश्वर के वचन से भरना था। यहोवा ने कहा: “इसी में दिन रात ध्यान दिए रहना।” (आयत 8) जिस मूल शब्द का अनुवाद “ध्यान” किया गया है, उस बारे में एक किताब कहती है: “परमेश्वर यहोशू को आज्ञा दे रहा था कि वह उसकी व्यवस्था में लिखी बातों को याद करने के लिए उन्हें ‘मंद स्वर में बुदबुदाए,’ उन पर ‘मनन’ करे या ‘गहराई से सोचे।’” हर दिन परमेश्वर का वचन पढ़ने और उस पर मनन करने से यहोशू को आनेवाली चुनौतियों का सामना करने में मदद मिलती।
दूसरा, यहोशू को परमेश्वर के वचन से सीखी बातों को अपनी ज़िंदगी में लागू करना था। यहोवा ने उससे कहा: “जो कुछ लिखा है, तुम उसका सावधानी से पालन करो। इस तरह तुम . . . अपने सब कार्यों में सफलता प्राप्त करोगे।” (आयत 8, बुल्के बाइबिल) सफल होने के लिए ज़रूरी था कि यहोशू, परमेश्वर की मरज़ी के मुताबिक काम करे। क्यों? क्योंकि परमेश्वर की मरज़ी हमेशा पूरी होती है।—यशायाह 55:10, 11.
यहोशू ने यहोवा की सलाह मानी। नतीजा, यहोवा का वफादार सेवक होने के नाते वह खुशहाल और संतोष-भरी ज़िंदगी जी पाया।—यहोशू 23:14; 24:15.
क्या आप यहोशू की तरह मकसद-भरी और खुशहाल ज़िंदगी जीना चाहते हैं? यहोवा चाहता है कि आप कामयाब हों। लेकिन उसके वचन बाइबल को महज़ अपने पास रखना ही काफी नहीं। एक मसीही जिसने लंबे समय तक परमेश्वर की वफादारी से सेवा की, उसने कहा: “बाइबल के पन्नों पर लिखे संदेश को निकालकर अपने दिल में उतार लो।” अगर आप लगातार अपने मन को परमेश्वर के वचन से भरते रहें और सीखी बातों को अपनी ज़िंदगी में लागू करते रहें, तो आप बेशक यहोशू की तरह “अपने सब कार्यों में सफलता प्राप्त” करेंगे। (w09-E 12/01)
[फुटनोट]
a वे हैं: मूसा की लिखी पाँच किताबें (उत्पत्ति, निर्गमन, लैव्यव्यवस्था, गिनती और व्यवस्थाविवरण), अय्यूब की किताब और एक या दो भजन।