हमें अपने सारे चालचलन में पवित्र होना चाहिए
“तुम भी अपने सारे चालचलन में पवित्र बनो।”—1 पत. 1:15.
1, 2. (क) यहोवा अपने लोगों से क्या उम्मीद करता है? (ख) हम इस लेख में किन सवालों के जवाब पाएँगे?
प्रेषित पतरस ने यहोवा की प्रेरणा से लैव्यव्यवस्था की किताब से हवाला दिया और समझाया कि मसीहियों को पवित्र होना चाहिए, ठीक जैसे इसराएलियों को पवित्र होना था। (1 पतरस 1:14-16 पढ़िए।) “पवित्र परमेश्वर” यहोवा उम्मीद करता है कि अभिषिक्त जन और “दूसरी भेड़ें” अपने सारे चालचलन में पवित्र बनने की पूरी कोशिश करें।—यूह. 10:16.
2 अब आइए हम इस लेख में लैव्यव्यवस्था की किताब के कुछ और अनमोल खज़ानों से रू-ब-रू हों। ऐसा करने से हमें परमेश्वर के पवित्र स्तरों के बारे में सीखने और उन्हें अपनी ज़िंदगी में लागू करने में मदद मिलेगी। हम इन सवालों पर भी गौर करेंगे: यहोवा के स्तरों से समझौता करने के मामले में हमारा क्या नज़रिया होना चाहिए? यह किताब हमें यहोवा की हुकूमत का साथ देने के बारे में क्या सिखाती है? इसराएलियों के ज़रिए चढ़ाए गए बलिदानों से हम क्या सीख सकते हैं?
समझौता करने से दूर रहिए
3, 4. (क) बाइबल में दी आज्ञाओं और सिद्धांतों के साथ समझौता करने से हमें क्यों दूर रहना चाहिए? (ख) हमें बदला लेने या नाराज़गी पालने से क्यों दूर रहना चाहिए?
3 अगर हम यहोवा को खुश करना चाहते हैं, तो ज़रूरी है कि हम बाइबल में दी उसकी आज्ञाएँ और उसके सिद्धांत मानें। हम कभी उन आज्ञाओं और सिद्धांतों के साथ समझौता करके अपवित्र नहीं होना चाहेंगे। हालाँकि आज हम मूसा के कानून के अधीन नहीं हैं, लेकिन अगर हम उन कानूनों का अध्ययन करें, तो हम समझ पाएँगे कि कौन-सी बातें यहोवा को भाती हैं और कौन-सी नहीं। मिसाल के लिए, इसराएलियों को यह कानून दिया गया था: “पलटा न लेना, और न अपने जाति भाइयों से बैर रखना, परन्तु एक दूसरे से अपने ही समान प्रेम रखना; मैं यहोवा हूं।”—लैव्य. 19:18.
4 यहोवा नहीं चाहता कि हम दूसरों से बदला लें या दूसरों के खिलाफ अपने दिल में नाराज़गी पालें। (रोमि. 12:19) अगर हम परमेश्वर के कानूनों और सिद्धांतों को नज़रअंदाज़ करें, तो हम शैतान को खुश कर रहे होंगे और परमेश्वर के नाम का अनादर कर रहे होंगे। अगर कोई हमें जानबूझकर ठेस पहुँचाता है, और हम उस बात को लेकर अंदर-ही-अंदर कुढ़ते रहते हैं, तो यह कुढ़न तेज़ाब की तरह हमें अंदर-ही-अंदर तबाह कर सकती है। बाइबल हमारी तुलना “मिट्टी के बरतनों” से करती है, जिनमें एक बेशकीमती खज़ाना डाला गया है, और वह है हमारी सेवा। (2 कुरिं. 4:1, 7) तो सोचिए, जिस बर्तन में अनमोल खज़ाना रखा हो, क्या उसी बर्तन में हम तेज़ाब डालना चाहेंगे?
5. हम हारून के परिवार के साथ हुई घटना से क्या सीख सकते हैं? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
5 लैव्यव्यवस्था 10:1-11 में हम हारून के परिवार के साथ घटी एक दिल दहलानेवाली घटना के बारे में पढ़ते हैं। जब यहोवा ने स्वर्ग से आग भेजकर हारून के दोनों बेटों, नादाब और अबीहू को भस्म कर दिया, तो सोचिए इससे हारून के परिवार पर क्या गुज़री होगी! इतना ही नहीं, परमेश्वर ने हारून और उसके परिवार से यह तक कहा कि वे उनकी मौत पर किसी भी तरीके से मातम न मनाएँ। यह उनके विश्वास की क्या ही कड़ी परीक्षा थी! अगर आपके परिवार के किसी सदस्य का या मंडली में किसी और का बहिष्कार हो गया है, तो क्या आप उनके साथ संगति न करके खुद को पवित्र साबित कर रहे हैं?—1 कुरिंथियों 5:11 पढ़िए।
6, 7. (क) हम अपने किसी अविश्वासी रिश्तेदार की शादी में हिस्सा लेंगे या नहीं, यह फैसला करते वक्त हमें किन ज़रूरी बातों के बारे में सोचना चाहिए? (फुटनोट देखिए।) (ख) हम अपने अविश्वासी रिश्तेदारों को अपने फैसले के बारे में कैसे समझा सकते हैं?
6 हमें हारून और उसके परिवार की तरह शायद इतनी बड़ी परीक्षा का सामना न करना पड़े। लेकिन तब क्या अगर हमारा कोई रिश्तेदार जो सच्चाई में नहीं है, हमें चर्च में रखी गयी शादी में या फिर किसी धार्मिक रस्म के मुताबिक रखी गयी शादी में आने और उसमें हिस्सा लेने का न्यौता दे? बाइबल में ऐसा कोई नियम नहीं दिया गया है, जो कहता है कि हमें इस तरह की शादी में शामिल नहीं होना चाहिए। लेकिन बाइबल में ऐसे कुछ सिद्धांत ज़रूर दिए हैं, जो हमें सही फैसला लेने में मदद दे सकते हैं।a
7 यहोवा को खुश करने और पवित्र बने रहने के लिए हम जो फैसला लेते हैं, उससे शायद हमारे रिश्तेदार उलझन में पड़ जाएँ। (1 पत. 4:3, 4) हम उन्हें ठेस नहीं पहुँचाना चाहते, इसलिए हमें उनके साथ प्यार से, मगर साफ-साफ बात करनी चाहिए। हो सके तो हमें शादी से काफी पहले ही उनसे इस बारे में बात कर लेनी चाहिए। हम इस बात के लिए उनका शुक्रिया अदा कर सकते हैं कि उन्होंने हमें शादी में हाज़िर होने और उसमें हिस्सा लेने का न्यौता दिया। फिर हम उनसे कह सकते हैं कि हमारे उसूलों की वजह से हम उनके धार्मिक रस्मों में हिस्सा लेने से मना करके उन्हें और उनके मेहमानों को शर्मिंदा नहीं करना चाहते। यह एक तरीका है, जिससे हम अपने विश्वास के साथ समझौता करने से दूर रह सकते हैं।
यहोवा की हुकूमत का साथ दीजिए
8. लैव्यव्यवस्था की किताब यहोवा के हुकूमत करने के हक पर कैसे ज़ोर देती है?
8 लैव्यव्यवस्था की किताब इस बात पर ज़ोर देती है कि सिर्फ यहोवा को ही इस विश्व पर हुकूमत करने का हक है। इस किताब में 30 से भी ज़्यादा बार बताया गया है कि इसमें दिए नियम परमेश्वर की तरफ से हैं। मूसा यह बात जानता था और उसने ठीक वही किया, जो यहोवा ने उसे करने के लिए कहा था। (लैव्य. 8:4, 5) मूसा की तरह, हमें भी हमेशा वही करना चाहिए जो सारे जहान का मालिक, यहोवा हमसे चाहता है। हालाँकि परमेश्वर का संगठन हमें यहोवा की मरज़ी पूरी करने में मदद देता है, लेकिन कभी-कभी जब हम अकेले होते हैं, तब हमारे विश्वास की परीक्षा होती है, ठीक जैसे वीराने में यीशु के साथ हुआ था। (लूका 4:1-13) अगर हम परमेश्वर पर भरोसा रखें और उसकी हुकूमत का साथ दें, तो कोई भी हम पर यहोवा के स्तरों के साथ समझौता करने का दबाव नहीं डाल सकता। हम कभी डर के आगे घुटने नहीं टेकेंगे!—नीति. 29:25.
9. दुनिया-भर में यहोवा के साक्षियों से नफरत क्यों की जाती है?
9 दुनिया-भर में यहोवा के साक्षियों को डराया-धमकाया जाता है और उन पर ज़ुल्म किए जाते हैं। हम जानते हैं कि लोग हमारे साथ ऐसा बरताव ज़रूर करेंगे, क्योंकि यीशु ने अपने चेलों से पहले ही कहा था: “लोग तुम्हें क्लेश दिलाने के लिए पकड़वाएँगे और तुम्हें मार डालेंगे और तुम मेरे नाम की वजह से सब राष्ट्रों की नफरत का शिकार बनोगे।” (मत्ती 24:9) हालाँकि हमसे इतनी नफरत की जाती है, लेकिन फिर भी हम हार नहीं मानते। हम प्रचार में लगे रहते हैं और अपने सारे चालचलन में पवित्र बने रहते हैं। हम ईमानदार और साफ-सुथरे लोगों के तौर पर जाने जाते हैं, यहाँ तक कि देश के कायदे-कानून माननेवाले नागरिक भी कहलाते हैं। तो फिर लोग क्यों हमसे इतनी नफरत करते हैं? (रोमि. 13:1-7) क्योंकि हम सिर्फ यहोवा को अपना राजा और मालिक मानते हैं। हम ‘सिर्फ उसी की’ उपासना करते हैं और हमने ठान लिया है कि हम किसी भी हाल में उसके नियमों और सिद्धांतों के साथ समझौता नहीं करेंगे।—मत्ती 4:10.
10. यहोवा की हुकूमत का पक्ष न लेनेवाले एक भाई के साथ क्या हुआ?
10 इसके अलावा, हम इस “दुनिया के नहीं” हैं, इसलिए हम युद्धों में हिस्सा नहीं लेते और न ही राजनीति में किसी का पक्ष लेते हैं। (यूहन्ना 15:18-21; यशायाह 2:4 पढ़िए।) लेकिन कुछ समर्पित मसीहियों ने इस मामले में अपनी निष्पक्षता नहीं बनाए रखी और यहोवा के स्तरों के साथ समझौता कर लिया। उनमें से कई भाई-बहनों ने आगे चलकर पश्चाताप किया और वे यहोवा के संगठन में लौट आए। (भज. 51:17) लेकिन कुछ थे जो नहीं लौटे। मिसाल के लिए, दूसरे विश्व युद्ध के दौरान कई बेकसूर भाइयों को हंगरी की अलग-अलग जेलों में डाल दिया गया था। एक बार अधिकारियों ने उनमें से 160 भाइयों को, जिनकी उम्र 45 से कम थी, एक शहर में इकट्ठा किया और उन्हें फौज में भरती होने का हुक्म दिया। ज़्यादातर भाई अडिग खड़े रहे, मगर नौ भाइयों ने डर के आगे घुटने टेक दिए और फौजियों की वर्दी पहन ली। दो साल बाद, कुछ फौजियों से कहा गया कि वे उन वफादार साक्षियों को गोलियों से भून दें। जानते हैं उन फौजियों में से एक कौन था? उन नौ साक्षियों में से एक, जिन्होंने अपने विश्वास के साथ समझौता कर लिया था। और उसे जिन वफादार साक्षियों को मारना था, उनमें से एक था उसका अपना सगा भाई! मगर आखिर में क्या हुआ? इन साक्षियों की जान बख्श दी गयी।
यहोवा को अपना सबसे उत्तम दीजिए
11, 12. इसराएलियों के ज़माने में जो बलिदान चढ़ाए जाते थे, उनसे हम क्या सीख सकते हैं?
11 मूसा के कानून के तहत, इसराएलियों को कुछ खास तरह के बलिदान चढ़ाने थे। (लैव्य. 9:1-4, 15-21) इन बलिदानों में इस्तेमाल किए जानेवाले जानवरों में किसी भी तरह की कमी या खोट नहीं होना था, क्योंकि ये यीशु के सिद्ध बलिदान को दर्शाते थे। इतना ही नहीं, इसराएलियों को हर तरह का बलिदान चढ़ाते वक्त कुछ खास हिदायतें माननी होती थीं। उदाहरण के लिए, गौर कीजिए कि बच्चा होने पर एक माँ से क्या करने की माँग की जाती थी। लैव्यव्यवस्था 12:6 कहता है: “जब उसके शुद्ध हो जाने के दिन पूरे हों, तब चाहे उसके बेटा हुआ हो चाहे बेटी, वह होमबलि के लिये एक वर्ष का भेड़ी का बच्चा, और पापबलि के लिये कबूतरी का एक बच्चा [या] पंडुकी मिलापवाले तम्बू के द्वार पर याजक के पास लाए।” हालाँकि यहोवा ने इसराएलियों को साफ-साफ हिदायतें दी थीं, लेकिन उसके दिए कानूनों से एक और बात साफ ज़ाहिर होती है। वह यह कि वह एक प्यार करनेवाला और लिहाज़ दिखानेवाला परमेश्वर है। मिसाल के लिए, अगर वह माँ एक भेड़ नहीं खरीद सकती थी, तो वह दो पंडुकी (फाख्ता) या कबूतर के दो बच्चे चढ़ा सकती थी। (लैव्य. 12:8) हालाँकि वह माँ गरीब थी, फिर भी यहोवा उसकी उतनी ही कदर करता था और उससे उतना ही प्यार करता था, जितना वह महँगे बलिदान चढ़ानेवालों से करता था। इससे हम क्या सीख सकते हैं?
12 प्रेषित पौलुस ने मसीहियों को बढ़ावा दिया कि वे परमेश्वर को “गुणगान का बलिदान” चढ़ाएँ। (इब्रा. 13:15) जब हम अपने होठों से यहोवा के पवित्र नाम का सरेआम ऐलान करते हैं, तो हम गुणगान का बलिदान चढ़ा रहे होते हैं। बधिर भाई-बहन साइन लैंग्वेज का इस्तेमाल करके परमेश्वर का गुणगान करते हैं। और जो मसीही अपने घर की चारदीवारी में कैद होकर रह जाते हैं, वे खत या टेलिफोन के ज़रिए गवाही देकर और उनके घर आए लोगों को प्रचार करके गुणगान का बलिदान चढ़ाते हैं। हम यहोवा को किस हद तक गुणगान का बलिदान चढ़ा सकते हैं, यह हमारी सेहत और काबिलीयत पर निर्भर करता है। लेकिन हम जितना भी करें, अगर हम चाहते हैं कि यहोवा हमारे बलिदान से खुश हो, तो ज़रूरी है कि हम अपना सबसे उत्तम दें।—रोमि. 12:1; 2 तीमु. 2:15.
13. हमें प्रचार की रिपोर्ट क्यों देनी चाहिए?
13 हम यहोवा को गुणगान के जो बलिदान चढ़ाते हैं, वह अपनी मरज़ी से, खुशी-खुशी चढ़ाते हैं, क्योंकि हम उससे प्यार करते हैं। (मत्ती 22:37, 38) लेकिन हमसे कहा गया है कि हम इस बलिदान की, यानी प्रचार में बिताए समय की रिपोर्ट दें। तो जब हमसे प्रचार की रिपोर्ट देने के लिए कहा जाता है, तो हमारा क्या रवैया होना चाहिए? हमें खुशी-खुशी ऐसा करना चाहिए, क्योंकि इस तरह हम परमेश्वर के लिए अपनी भक्ति दिखा रहे होंगे। (2 पत. 1:7) लेकिन किसी को भी ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि उसे अपनी रिपोर्ट में बड़े-बड़े आँकड़े भरने के लिए ज़बरदस्ती प्रचार में घंटों बिताने होंगे। यही वजह है कि अगर एक प्रचारक, ढलती उम्र या खराब सेहत की वजह से प्रचार में ज़्यादा नहीं कर पाता, तो वह सिर्फ 15 मिनट की रिपोर्ट भी दे सकता है। यहोवा उस प्रचारक की रिपोर्ट की भी कदर करता है, क्योंकि वह जानता है कि उस प्रचारक ने अपना उत्तम दिया है। वह यह भी जानता है कि वह प्रचारक उससे बहुत प्यार करता है और यहोवा का एक साक्षी कहलाने के सम्मान को बहुत अनमोल समझता है। जिस तरह गरीब इसराएली यहोवा को छोटा-सा बलिदान चढ़ाकर भी खुशी महसूस कर सकते थे, उसी तरह आज बीमार या बुज़ुर्ग भाई-बहन प्रचार में थोड़ा-सा समय बिताकर भी खुशी महसूस कर सकते हैं। हमारी रिपोर्ट दुनिया-भर में यहोवा के साक्षियों की रिपोर्ट में शामिल की जाती है, जिससे संगठन को राज के काम को आगे बढ़ाने के लिए ज़रूरी योजनाएँ बनाने में मदद मिलती है। यही वजह है कि क्यों हम प्रचार की रिपोर्ट देते हैं।
गहराई से अध्ययन करने की हमारी आदत और गुणगान के हमारे बलिदान
14. समझाइए कि क्यों हमें अध्ययन करने की अपनी आदत के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए।
14 इन दो लेखों में हमने लैव्यव्यवस्था की किताब से कई अनमोल सबक सीखे। इस चर्चा से क्या आपके दिल में इस बात के लिए कदरदानी बढ़ी है कि क्यों इस किताब को परमेश्वर के प्रेरित वचन में शामिल किया गया है? (2 तीमु. 3:16) क्या पवित्र बने रहने का आपका इरादा और भी मज़बूत हो गया है? हम यहोवा को अपना उत्तम देना चाहते हैं, लेकिन सिर्फ इसलिए नहीं कि वह इसकी माँग करता है, बल्कि इसलिए भी कि वह इसका हकदार है। इन दो लेखों पर चर्चा करने के बाद शायद आपका मन कर रहा होगा कि आप बाइबल की दूसरी किताबों का भी गहराई से अध्ययन करें। (नीतिवचन 2:1-5 पढ़िए।) क्या आप बाइबल का गहराई से अध्ययन करते हैं? इस बात को गंभीरता से लीजिए और इस बारे में प्रार्थना कीजिए। खुद से पूछिए: ‘क्या मैं वाकई यहोवा को अपना उत्तम दे रहा हूँ? या क्या मैं टीवी देखने, वीडियो गेम्स खेलने, या फिर दूसरे शौक पूरे करने में इतना समय बिता रहा हूँ कि मेरी आध्यात्मिक तरक्की ही रुक गयी है?’ अगर ऐसी बात है, तो अच्छा होगा कि हम उस बात पर गौर करें, जो पौलुस ने इब्रानियों की किताब में कही थी।
15, 16. जब पौलुस ने इब्रानी मसीहियों को लिखा, तो उसने सीधे-सीधे बात क्यों की?
15 जब पौलुस ने इब्रानी मसीहियों को खत लिखा, तो उसने उनसे घुमा-फिराकर नहीं, बल्कि सीधे-सीधे बात की। (इब्रानियों 5:7, 11-14 पढ़िए।) उसने कहा: “तुम्हारी सोचने-समझने की शक्ति मंद पड़ गयी है।” पौलुस ने उनसे इतने सीधे-सीधे बात क्यों की? यहोवा की तरह, वह भी उनसे बहुत प्यार करता था और उसे इस बात की चिंता हो रही थी कि वे सिर्फ दूध के सहारे जी रहे थे, यानी वे बाइबल की बुनियादी बातों के ज्ञान से ही संतुष्ट थे। हालाँकि हमें बाइबल की बुनियादी बातों की समझ होनी चाहिए, मगर हमें उसी में संतुष्ट नहीं होना चाहिए। हमें “ठोस आहार” भी लेना चाहिए, या दूसरे शब्दों में कहें, तो बाइबल की गहरी बातों की समझ भी हासिल करनी चाहिए, ताकि हम आध्यात्मिक तौर पर प्रौढ़ इंसान बन सकें।
16 इब्रानी मसीहियों को दूसरों को सिखाने के काबिल होना चाहिए था। मगर नौबत यह आ गयी थी कि खुद उन्हें ही सीखने की ज़रूरत थी। क्यों? क्योंकि वे “ठोस आहार” नहीं ले रहे थे। खुद से पूछिए: ‘क्या मैं बाइबल की गहरी बातें सीखने में भी दिलचस्पी लेता हूँ? क्या मैं गहराई से बाइबल का अध्ययन और प्रार्थना करता हूँ? या क्या मैं इससे दूर भागता हूँ? अगर ऐसा है, तो क्या इसकी एक वजह यह है कि गहराई से अध्ययन करने की मेरी आदत ही नहीं है?’ हमें लोगों को सिर्फ प्रचार ही नहीं करना चाहिए, बल्कि उन्हें सिखाना और चेला भी बनाना चाहिए।—मत्ती 28:19, 20.
17, 18. (क) हमें लगातार ठोस आध्यात्मिक आहार क्यों लेते रहना चाहिए? (ख) सभाओं से पहले हमें शराब के इस्तेमाल के बारे में क्या नज़रिया रखना चाहिए?
17 बाइबल का गहराई से अध्ययन करना शायद हममें से ज़्यादातर लोगों के लिए लोहे के चने चबाने के बराबर हो। यहोवा अपने लोगों को दोषी महसूस करवाकर उन्हें अध्ययन करने के लिए नहीं उकसाता। अगर हमारे लिए बाइबल का अध्ययन करना आसान न भी हो, तब भी हमें लगातार ठोस आध्यात्मिक आहार लेते रहना चाहिए, फिर भले ही हम सच्चाई में सालों से हों या हाल ही में आए हों। पवित्र बने रहने के लिए ऐसा करना बेहद ज़रूरी है।
18 पवित्र बने रहने के लिए हमें फलाँ मामले में बाइबल में दिए सिद्धांतों की ध्यान से जाँच करनी चाहिए और वही करना चाहिए जो परमेश्वर हमसे कहता है। इसकी एक मिसाल पर गौर कीजिए, और वह है शराब के इस्तेमाल के मामले में। हारून के बेटे नादाब और अबीहू इसलिए मार डाले गए थे, क्योंकि उन्होंने उस “ऊपरी आग की जिसकी आज्ञा यहोवा ने नहीं दी थी यहोवा के सम्मुख आरती” की थी, और वह भी तब जब वे शायद शराब के नशे में थे। (लैव्य. 10:1, 2) ध्यान दीजिए कि इसके बाद परमेश्वर ने हारून से क्या कहा। (लैव्यव्यवस्था 10:8-11 पढ़िए।) क्या इसका यह मतलब है कि मसीही सभाओं में जाने से पहले हमें शराब का बिलकुल भी इस्तेमाल नहीं करना चाहिए? ज़रा इन बातों के बारे में सोचिए: आज हम मूसा के कानून के अधीन नहीं हैं। (रोमि. 10:4) कुछ देशों में, हमारे भाई-बहन सभाओं में जाने से पहले खाना खाते वक्त सही मात्रा में शराब का इस्तेमाल करते हैं। फसह के त्योहार में दाख-मदिरा के चार प्याले इस्तेमाल किए जाते थे। स्मारक मनाते वक्त, यीशु ने अपने प्रेषितों से दाख-मदिरा पीने के लिए कहा था, जो उसके लहू को दर्शाती थी। (मत्ती 26:27) बाइबल हद-से-ज़्यादा शराब पीने और पियक्कड़पन को गलत ठहराती है। (1 कुरिं. 6:10; 1 तीमु. 3:8) और बहुत-से मसीही अपने ज़मीर की वजह से, यहोवा की उपासना करने से पहले शराब को शायद बिलकुल भी हाथ न लगाएँ। लेकिन हर देश के हालात अलग-अलग होते हैं और मसीहियों के लिए जो बात सबसे ज़रूरी है, वह यह है कि वे ‘पवित्र और अपवित्र में अन्तर करें,’ ताकि वे पवित्र चालचलन बनाए रख सकें और यहोवा को खुश कर सकें।
19. (क) हम अपनी पारिवारिक उपासना और निजी अध्ययन को और भी दिलचस्प कैसे बना सकते हैं? (ख) आप कैसे दिखा सकते हैं कि आपने पवित्र बने रहने की ठान ली है?
19 परमेश्वर के वचन में ढेर सारे खूबसूरत रत्न छिपे हुए हैं। अगर हम अपनी पारिवारिक उपासना और निजी अध्ययन के दौरान खोजबीन के लिए मौजूद अलग-अलग औज़ारों का इस्तेमाल करें, तो हम इन बेशकीमती रत्नों को, इन खज़ानों को ढूँढ़ निकाल सकते हैं। इससे हमारी उपासना या हमारा अध्ययन और भी दिलचस्प बनेगा। इन मौकों का इस्तेमाल करके यहोवा के करीब आइए। (याकू. 4:8) उसके और उसके मकसदों के बारे में अपनी समझ को और भी निखारिए। भजनहार की तरह यहोवा से प्रार्थना कीजिए: “मेरी आंखें खोल दे, कि मैं तेरी व्यवस्था की अद्भुत बातें देख सकूं।” (भज. 119:18) बाइबल में दिए नियमों और सिद्धांतों के साथ कभी समझौता मत कीजिए। खुशी-खुशी “पवित्र परमेश्वर” यहोवा की आज्ञाएँ मानिए और जोश के साथ ‘परमेश्वर की खुशखबरी सुनाने के पवित्र काम’ में हिस्सा लीजिए। (1 पत. 1:15; रोमि. 15:16) मुश्किलों से भरे इन आखिरी दिनों में खुद को पवित्र बनाए रखिए। ऐसा हो कि हम सभी अपने सारे चालचलन में पवित्र हों और अपने पवित्र परमेश्वर, यहोवा की हुकूमत का साथ दें।
a 15 मई, 2002 की प्रहरीदुर्ग में दिया लेख “पाठकों के प्रश्न” देखिए।