अध्ययन लेख 49
दूसरों के साथ किस तरह पेश आएँ?
“तुम अपने संगी-साथी से वैसे ही प्यार करना जैसे तुम खुद से करते हो।”—लैव्य. 19:18.
गीत 109 दिल से प्यार करें
लेख की एक झलकa
1-2. (क) पिछले लेख में हमने क्या सीखा था? (ख) इस लेख में हम क्या जानेंगे?
पिछले लेख में हमने लैव्यव्यवस्था अध्याय 19 से बहुत-सी बातें सीखीं। उदाहरण के लिए, आयत 3 में यहोवा ने इसराएलियों से कहा कि उन्हें अपने माता-पिता का आदर करना चाहिए। इससे हमने सीखा कि हमें अपने माता-पिता को ज़रूरत की चीजें लाकर देनी चाहिए, उनका हौसला बढ़ाना चाहिए और यहोवा के करीब बने रहने में उनकी मदद करनी चाहिए। उसी आयत में यह भी लिखा है कि इसराएलियों को सब्त मनाना चाहिए। हालाँकि आज हम यह नियम नहीं मानते, लेकिन हम इससे सीखते हैं कि हमें हर दिन यहोवा की उपासना के लिए कुछ समय निकालना चाहिए। अगर हम ये सब करेंगे, तो हम पवित्र बन पाएँगे, ठीक जैसे लैव्यव्यवस्था 19:2 और 1 पतरस 1:15 में लिखा है।
2 इस लेख में हम लैव्यव्यवस्था 19 से कुछ और बातें सीखेंगे। हम जानेंगे कि हम कैसे विकलांग लोगों का लिहाज़ कर सकते हैं, ईमानदारी से कारोबार कर सकते हैं और दूसरों से प्यार कर सकते हैं। अगर हम ये सब करेंगे, तो हम परमेश्वर की तरह पवित्र बन पाएँगे।
विकलांग लोगों का लिहाज़ कीजिए
3-4. लैव्यव्यवस्था 19:14 के मुताबिक, इसराएलियों को विकलांग लोगों के साथ किस तरह पेश आना था?
3 लैव्यव्यवस्था 19:14 पढ़िए। यहोवा चाहता था कि इसराएली विकलांग लोगों का लिहाज़ करें। उदाहरण के लिए, उसने इसराएलियों से कहा कि वे बधिर लोगों को बद्दुआ न दें, यानी उन्हें डराएँ-धमकाएँ न और न ही उन्हें कुछ बुरा-भला कहें। ज़रा सोचिए, अगर वे ऐसा करते तो कितनी बुरी बात होती! एक बधिर व्यक्ति नहीं सुन सकता कि उससे क्या कहा जा रहा है। इसलिए वह बदले में कुछ नहीं कह पाता।
4 इसके अलावा, आयत 14 में यह भी लिखा है कि इसराएलियों को ‘किसी अंधे के रास्ते में रोड़ा नहीं अटकाना’ चाहिए। एक किताब में बताया गया है कि प्राचीन मध्य पूर्व में विकलांग लोगों के साथ बुरा सलूक किया जाता था। शायद कुछ लोग अंधे लोगों को नुकसान पहुँचाने के लिए या उनका मज़ाक उड़ाने के लिए सच में उनके रास्ते में रोड़ा अटकाते थे। वे कितने बेरहम थे! यहोवा की इस आज्ञा से इसराएली यह समझ पाते थे कि उन्हें विकलांग लोगों का लिहाज़ करना चाहिए।
5. हम विकलांग लोगों का लिहाज़ कैसे कर सकते हैं?
5 यीशु ने उन लोगों का लिहाज़ किया जो विकलांग थे। एक बार उसने यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले को यह संदेश भेजा, “अंधे अब देख रहे हैं, लँगड़े चल-फिर रहे हैं, कोढ़ी शुद्ध किए जा रहे हैं, बहरे सुन रहे हैं [और] मरे हुओं को ज़िंदा किया जा रहा है।” (लूका 7:20-22) यीशु के इन चमत्कारों को देखकर ‘सब लोगों ने परमेश्वर की तारीफ की।’ (लूका 18:43) आज हम भी यीशु की तरह विकलांग लोगों का लिहाज़ करते हैं, उनके साथ प्यार से और सब्र से पेश आते हैं। हालाँकि हम चमत्कार करके उनकी तकलीफ दूर तो नहीं कर सकते, लेकिन हम उन्हें आनेवाले फिरदौस के बारे में बता सकते हैं, जहाँ वे पूरी तरह से ठीक हो जाएँगे। हम यह खुशखबरी उन लोगों को तो बताते ही हैं जो देख नहीं सकते, इसके साथ-साथ हम उन्हें भी बताते हैं जो सच्चाई को देख नहीं पाते। (लूका 4:18) इस खुशखबरी की वजह से बहुत-से लोग आज परमेश्वर की तारीफ कर रहे हैं।
ईमानदारी से कारोबार कीजिए
6. लैव्यव्यवस्था 19 की कुछ आयतों में क्या जानकारी दी गयी है?
6 यहोवा ने इसराएलियों को जो दस आज्ञाएँ दी थीं, उनके बारे में लैव्यव्यवस्था 19 की कुछ आयतों में और जानकारी दी गयी है। उदाहरण के लिए, आठवीं आज्ञा थी, “तुम चोरी न करना।” (निर्ग. 20:15) एक इसराएली सोच सकता था कि अगर वह किसी और की चीज़ न ले, तो वह यह आज्ञा मान रहा है। लेकिन शायद वह किसी और तरीके से चोरी करे।
7. क्या करने से एक व्यापारी आठवीं आज्ञा तोड़ देता?
7 एक व्यापारी शायद कभी-भी किसी और की चीज़ न चुराए। लेकिन क्या कारोबार करते वक्त वह इस बात का ध्यान रखता? लैव्यव्यवस्था 19:35, 36 में यहोवा ने कहा, “तुम नापने या तौलने के लिए गलत माप इस्तेमाल न करना। तुम सिर्फ ऐसा तराज़ू, बाट-पत्थर और पैमाना इस्तेमाल करना जो बिलकुल सही हो।” अगर एक व्यापारी दूसरों को ठगने के लिए गलत नाप-तौल इस्तेमाल करता, तो वह एक तरीके से चोरी ही करता। लैव्यव्यवस्था 19 की दूसरी आयतों से भी यही बात पता चलती है।
8. (क) लैव्यव्यवस्था 19:11-13 पढ़कर यहूदी लोग आठवीं आज्ञा के बारे में क्या समझ पाए? (ख) इससे हम क्या सीखते हैं?
8 लैव्यव्यवस्था 19:11-13 पढ़िए। लैव्यव्यवस्था 19:11 की शुरूआत में लिखा है, “तुम चोरी न करना” और आयत 13 में लिखा है, “तुम अपने संगी-साथी को न ठगना।” इन आयतों से पता चलता है कि नौकरी-धंधे में बेईमानी या धोखा करना, चोरी है। आठवीं आज्ञा में सिर्फ इतना लिखा था कि तुम चोरी न करना, लेकिन यहूदी उसके पीछे का सिद्धांत लैव्यव्यवस्था की इन आयतों से समझ सकते थे। वह सिद्धांत था कि उन्हें हर मामले में ईमानदार रहना चाहिए। लैव्यव्यवस्था 19:11-13 से हम सीखते हैं कि बेईमानी और चोरी करने के बारे में यहोवा का क्या नज़रिया है। इसलिए हमें खुद से पूछना चाहिए, ‘क्या मैं अपना कारोबार या नौकरी ईमानदारी से करता हूँ? या क्या मुझे कुछ बदलाव करने चाहिए?’
9. लैव्यव्यवस्था 19:13 में बतायी बात से मज़दूरों का भला कैसे होता था?
9 अगर एक मसीही कारोबार चलाता है, तो वह लैव्यव्यवस्था 19:13 से ईमानदारी के बारे में एक और बात सीख सकता है। वहाँ लिखा है, “तुम दिहाड़ी के मज़दूर की मज़दूरी रात-भर, अगली सुबह तक अपने पास मत रखना।” इसराएल में ज़्यादातर लोग किसान थे और वे अपने खेत में काम करने के लिए मज़दूर रखते थे। उन्हें उन मज़दूरों को दिन के आखिर में दिहाड़ी देनी होती थी। अगर एक किसान किसी मज़दूर को दिहाड़ी नहीं देता, तो शायद उस दिन उस मज़दूर का परिवार भूखा रहता। यहोवा यह बात जानता था। उसने कहा, “[मज़दूर] ज़रूरतमंद है और उसकी मज़दूरी से ही उसका गुज़ारा होता है।”—व्यव. 24:14, 15; मत्ती 20:8.
10. लैव्यव्यवस्था 19:13 से हम क्या सीखते हैं?
10 आज कई लोगों को हर दिन नहीं, बल्कि महीने में एक या दो बार तनख्वाह मिलती है। लेकिन लैव्यव्यवस्था 19:13 का जो सिद्धांत है, वह आज भी लागू होता है। कुछ मालिक जानते हैं कि उनके कर्मचारियों को नौकरी की सख्त ज़रूरत है। इसलिए वे उनकी मजबूरी का फायदा उठाकर उनसे कम पैसों में काम करवाते हैं। ऐसा करके वे एक तरह से उनकी ‘मज़दूरी अपने पास रख’ लेते हैं। एक मसीही को ध्यान रखना चाहिए कि वह अपने कर्मचारियों के साथ ऐसा न करे, बल्कि उनकी मेहनत की मज़दूरी उन्हें दे। अब आइए हम लैव्यव्यवस्था 19 से कुछ और बातें सीखें।
दूसरों से वैसे ही प्यार कीजिए जैसे आप खुद से करते हैं
11-12. यीशु ने किस बात पर ज़ोर दिया? (लैव्यव्यवस्था 19:17, 18)
11 परमेश्वर सिर्फ यह नहीं चाहता कि हम दूसरों का नुकसान न करें। वह हमसे कुछ और भी चाहता है। इस बारे में लैव्यव्यवस्था 19:17, 18 में बताया गया है। (पढ़िए।) यहोवा ने साफ-साफ कहा, “तुम अपने संगी-साथी से वैसे ही प्यार करना जैसे तुम खुद से करते हो।” अगर हम यहोवा को खुश करना चाहते हैं, तो हमें यह बात माननी होगी।
12 यीशु ने भी इस बात पर ज़ोर दिया। एक बार एक फरीसी ने उससे पूछा, “कानून में सबसे बड़ी आज्ञा कौन-सी है?” तब यीशु ने कहा कि यहोवा से पूरे दिल, पूरी जान और पूरे दिमाग से प्यार करना ही “सबसे बड़ी और पहली आज्ञा है।” इसके बाद उसने लैव्यव्यवस्था 19:18 का हवाला देकर कहा, “इसी की तरह यह दूसरी है, ‘तुम अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना जैसे तुम खुद से करते हो।’” (मत्ती 22:35-40) अपने पड़ोसी से प्यार करने के कई सारे तरीके हैं। कुछ तरीके लैव्यव्यवस्था 19 में बताए गए हैं।
13. हम लैव्यव्यवस्था 19:18 में दी सलाह मानने के बारे में यूसुफ से क्या सीखते हैं?
13 अपने पड़ोसी से प्यार करने का एक तरीका लैव्यव्यवस्था 19:18 में बताया गया है। वहाँ लिखा है, ‘तुम किसी से बदला न लेना, न ही उसके खिलाफ दुश्मनी पालना।’ आप शायद किसी व्यक्ति को जानते होंगे, जो अपने साथ काम करनेवाले, पढ़नेवाले या किसी दोस्त या रिश्तेदार से सालों तक नाराज़ रहा हो। यूसुफ के दस भाइयों ने भी उसके खिलाफ दुश्मनी पाली, जिसका नतीजा यह हुआ कि उन्होंने उसके साथ बहुत बुरा किया। (उत्प. 37:2-8, 25-28) लेकिन यूसुफ उनकी तरह बिलकुल नहीं था। जब वह एक बड़ा अधिकारी बना, तो वह चाहे तो उनसे बदला ले सकता था। लेकिन उसने उन पर दया की। उसने उनके खिलाफ दुश्मनी नहीं पाली। ध्यान दीजिए, उसने वही किया जो बाद में लैव्यव्यवस्था 19:18 में लिखा गया।—उत्प. 50:19-21.
14. हमें आज भी लैव्यव्यवस्था 19:18 में दिए सिद्धांत क्यों मानने चाहिए?
14 अगर हम यहोवा को खुश करना चाहते हैं, तो हमें यूसुफ की तरह दूसरों के खिलाफ दुश्मनी नहीं पालनी चाहिए, न ही उनसे बदला लेना चाहिए। आदर्श प्रार्थना में यीशु ने यही बात कही। उसने कहा कि हमें “अपने खिलाफ पाप करनेवालों को माफ” करना चाहिए। (मत्ती 6:9, 12) उसी तरह, प्रेषित पौलुस ने मसीहियों से कहा, “प्यारे भाइयो, बदला मत लो।” (रोमि. 12:19) उसने यह भी कहा, “अगर किसी के पास दूसरे के खिलाफ शिकायत की कोई वजह है, तो भी एक-दूसरे की सहते रहो और एक-दूसरे को दिल खोलकर माफ करते रहो।” (कुलु. 3:13) यहोवा के सिद्धांत कभी नहीं बदलते। इसलिए हमें लैव्यव्यवस्था 19:18 में दिए सिद्धांत आज भी मानने चाहिए।
15. उदाहरण देकर समझाइए कि हमें क्यों दूसरों की गलती माफ करके भूल जाना चाहिए।
15 हमें दूसरों को माफ क्यों करना चाहिए, इसे समझने के लिए आइए एक उदाहरण लेते हैं। मान लीजिए कि सब्ज़ी काटते वक्त आपकी उँगली ज़रा-सी कट जाती है। आपको दर्द होता है, लेकिन यह दर्द बहुत समय तक नहीं रहता। एक-दो दिन बाद आप भूल जाते हैं कि आपकी उँगली कटी थी। उसी तरह, हो सकता है कि आपका दोस्त कुछ ऐसा कहे या करे, जिससे आपको दुख हो। लेकिन शायद बात इतनी बड़ी न हो, इसलिए आप उसे माफ कर दें। अब मान लीजिए कि आपको बहुत बड़ी चोट लगी है। आप डॉक्टर के पास जाते हैं और वह आपकी मरहम-पट्टी करता है। अगर आप उस घाव को छूते रहेंगे, तो वह और बड़ा हो सकता है। उसी तरह, हो सकता है कि किसी ने आपका बहुत ज़्यादा दिल दुखाया हो। ऐसे में अगर आप बार-बार उस बारे में सोचते रहेंगे, तो इससे आपका ही नुकसान होगा। इसलिए अच्छा होगा कि आप लैव्यव्यवस्था 19:18 में दी सलाह मानें।
16. (क) लैव्यव्यवस्था 19:33, 34 के मुताबिक, इसराएलियों को परदेसियों के साथ किस तरह व्यवहार करना था? (ख) इससे हम क्या सीखते हैं?
16 जब यहोवा ने इसराएलियों को आज्ञा दी कि वे ‘अपने संगी-साथी से प्यार करें,’ तो वह सिर्फ दूसरे इसराएलियों की बात नहीं कर रहा था। वह उन परदेसियों की भी बात कर रहा था, जो उनके बीच रहते थे। यह बात लैव्यव्यवस्था 19:33, 34 से साफ पता चलती है। (पढ़िए।) इसराएलियों को परदेसियों के साथ वैसा ही व्यवहार करना था, जैसे वे “अपने इसराएली भाई” से करते थे और उनसे उसी तरह “प्यार करना” था, जिस तरह वे खुद से करते थे। उदाहरण के लिए, उन्हें परदेसियों और गरीबों को अपने खेतों से बालें बीनने देना था। (लैव्य. 19:9, 10) लैव्यव्यवस्था 19:33, 34 से हम भी सीख सकते हैं। (लूका 10:30-37) आज लाखों लोग अपना देश छोड़कर दूसरे देशों में रहते हैं। शायद कुछ आपके इलाके में भी रहते हों। हमें इन लोगों के साथ प्यार और इज़्ज़त से पेश आना चाहिए।
सबसे ज़रूरी काम
17-18. (क) लैव्यव्यवस्था 19:2 और 1 पतरस 1:15 से हम क्या सीखते हैं? (ख) पतरस ने हमें कौन-सा ज़रूरी काम करने का बढ़ावा दिया?
17 लैव्यव्यवस्था 19:2 और 1 पतरस 1:15 से पता चलता है कि यहोवा चाहता है कि हम पवित्र रहें। हमने लैव्यव्यवस्था 19 की कुछ आयतों से सीखा कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं, ताकि यहोवा हमसे खुश हो। इस अध्याय की दूसरी आयतों से भी हम इस बारे में और ज़्यादा सीख सकते हैं।b इसके अलावा, मसीही यूनानी शास्त्र की आयतों से भी हम यह जान पाते हैं कि यहोवा आज भी चाहता है कि हम उन सिद्धांतों को मानें। लेकिन प्रेषित पतरस ने एक और बात कही।
18 हम शायद यहोवा की उपासना करते हों और लोगों का भला करते हों। लेकिन पतरस ने एक काम पर खास ज़ोर दिया, जिससे दूसरों का सबसे ज़्यादा भला होता है। “अपना पूरा चालचलन पवित्र बनाए रखो,” यह कहने से पहले उसने कहा, “कड़ी मेहनत करने के लिए अपने दिमाग की सारी शक्ति बटोर लो।” (1 पत. 1:13, 15) हमें किस काम के लिए कड़ी मेहनत करनी है? पतरस ने बताया कि मसीह के अभिषिक्त भाई ‘सारी दुनिया में परमेश्वर के महान गुणों का ऐलान’ करेंगे। (1 पत. 2:9) आज इस ज़रूरी काम में हम उनका साथ देते हैं। हम जोश से लोगों को प्रचार करते हैं और उन्हें सिखाते हैं। (मर. 13:10) सच में, परमेश्वर के पवित्र लोग होने के नाते, हमें कितना बड़ा सम्मान मिला है! जब हम लैव्यव्यवस्था 19 में दिए सिद्धांतों को मानने की पूरी कोशिश करते हैं, तो हम दिखाते हैं कि हम परमेश्वर और अपने पड़ोसी से प्यार करते हैं। हम यह भी दिखाते हैं कि हम अपने पूरे चालचलन में ‘पवित्र बनना’ चाहते हैं।
गीत 111 हमारी खुशी के कई कारण
a आज हम मसीही मूसा के कानून के अधीन नहीं हैं, लेकिन हम उससे सीख सकते हैं कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं। इस तरह हम दूसरों से प्यार कर पाएँगे और परमेश्वर को खुश कर पाएँगे। इस लेख में हम लैव्यव्यवस्था अध्याय 19 में लिखी कुछ बातों के बारे में चर्चा करेंगे।
b लैव्यव्यवस्था 19 की दूसरी आयतों में तरफदारी करने, बदनाम करने, खून खाने, जादू-टोना करने, भविष्य बतानेवालों से पूछताछ करने और अनैतिकता के बारे में बताया गया है।—लैव्य. 19:15, 16, 26-29, 31.—इस अंक में “आपने पूछा” पढ़ें।
c तसवीर के बार में: एक भाई, डॉक्टर से बात करने में एक बधिर भाई की मदद कर रहा है।
d तसवीर के बार में: एक भाई पुताई का काम करता है। वह अपने कर्मचारी को उसकी तनख्वाह दे रहा है।
e तसवीर के बार में: एक बहन भूल गयी है कि उसे छोटी-सी चोट लगी है। लेकिन क्या वह अपने बड़े घाव को भूल पाएगी?