सुहावनेपन के परादीस में शानदार मानवी प्रत्याशाएँ
“परमेश्वर ने उनको आशीष दी: और उन से कहा, फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो; और समुद्र की मछलियों, तथा, आकाश के पक्षियों, और पृथ्वी पर रेंगेनेवाले सब जन्तुओं पर अधिकार रखो।”—उत्पत्ति १:२८.
१, २. मनुष्यों के संबंध में, यहोवा प्रेममयता से किस लक्ष्य की ओर कार्य कर रहा है, और उसने आदम को कौनसे नियत कार्य दिए?
“परमेश्वर प्रेम है,” यूँ हमें पवित्र बाइबल में बताया गया है। वह प्रेममयता से और निःस्वार्थ से मनुष्यजाति में दिलचस्पी रखता है और निरन्तर कार्य कर रहा है कि वे सुहावनेपन के पार्थीव परादीस में तंदुरुस्त, शान्तिमय जीवन का हमेशा आनन्द लें। (१ यूहन्ना ४:१६; भजन १६:११ से तुलना करें।) पहले मनुष्य, पूर्ण आदम, को एक शान्तिमय जीवन और दिलचस्प, आनन्ददायक काम था। मनुष्य के सृजनहार ने उसे अदन की रमणीय बाटिका जोतने के लिए नियत किया। मनुष्य के सृजनहार ने अब उसे एक और कार्य, एक खास और चुनौती-भरा कार्य दिया, जैसा कि घटनेवाली बातों का वृत्तांत प्रकट करता है:
२ “और यहोवा परमेश्वर भूमि में से सब जाति के बनैले पशुओं, और आकाश के सब भाँति के पक्षियों को रचकर मनुष्य के पास ले आया कि देखे, कि वह उनका क्या क्या नाम रखता है; और जिस जिस जीवित प्राणी का जो जो नाम मनुष्य ने रखा वही उसका नाम हो गया। सो मनुष्य ने सब जाति के घरेलू पशुओं, और आकाश के पक्षियों, और सब जाति के बनैले पशुओं के नाम रखे।”—उत्पत्ति २:१९, २०.
३. आदम और पशु सृष्टि की तरफ़ से कोई डर क्यों न था?
३ आदमी ने घोड़े को सुस कहा, साँड को शोर, भेड़ को सेह, बकरे को ʽएज़, परिंदे को ʽओफ़, फ़ाख़ते को यो·नाʹ, मोर को टुक्कीʹ, सिंह को ʼअर·येहʹ या ʼअरीʹ, भालू को डोव, कपि को क़ोफ़, कुत्ते को केʹलेव, सर्प को ना·ख़ाशʹ, इत्यादि।a जब वह अदन की बाटिका से बहनेवाली नदी के पास गया, उसने मछलियाँ देखी। मछलियों को उसने डा·गाहʹ नाम दिया। निरस्त्र मनुष्य को इन पालतू और जंगली जानवरों का, या परिंदों का, डर नहीं लगा, और उन्हें भी उस का डर नहीं लगा, जिसे वे सहज रूप से अपना उच्चाधिकारी मानते थे, एक उच्चतर प्रकार की सृष्टि। वे परमेश्वर के प्राणी थे, जिन्हें उसने जीवन की भेंट दी थी, और मनुष्य में उन्हें चोट पहुँचाने या उन्हें जान से मार डालने की कोई इच्छा या प्रवृत्ति न थी।
४. आदम के सारे जानवरों और परिंदों को नाम देने के बारे में हम क्या अंदाज़ा लगा सकते हैं, और यह किस तरह का अनुभव रहा होगा?
४ मनुष्य को कितनी देर तक पालतू और जंगली जानवर और आकाश के पक्षी दिखाए जा रहे थे, यह वृत्तांत हमें नहीं बताता। यह सभी ईश्वरीय मार्गदर्शन और व्यवस्था की देख-रेख में हुआ। संभवतः आदम ने हर अलग जानवर की आदतों और स्वभाव का निरीक्षण करते हुए, उसे ध्यान से देखने के लिए वक्त लिया; फिर वह एक ऐसा नाम चुनता जो उसके लिए खास तौर से उपयुक्त होता। इसका मतलब हो सकता था कि क़ाफ़ी समय बीत जाता। आदम के लिए, इस पृथ्वी के प्राणी जीवन से, उसके अनेक प्रकारों में, इस प्रकार परिचित होना एक बहुत ही दिलचस्प अनुभव था, और इस से उसकी ओर से बड़ी दिमाग़ी क़ाबिलियत और बोलने की क्षमताएँ आवश्यक हुईं, कि वह हर एक प्रकार के जीवित प्राणी को एक उपयुक्त नाम से पहचाने।
५-७. (अ) संभवतः कौनसे सवाल उत्पन्न हो सकते थे? (ब) उत्पत्ति १:१-२५ में सृष्टि के वृत्तांत में किस तरह के जवाब दिए गए?
५ लेकिन इन सभी जीवित प्राणियों की सृष्टि का क्रम क्या था? क्या ज़मीन के जनवरों को परिंदों से पहले सृष्ट किया गया था या नहीं, और समय तथा क्रम में, निम्न प्रकार के इन सभी जीवित प्राणियों के संबंध में मनुष्य कहाँ था? परमेश्वर ने किस तरह प्राणी जीवन की इतनी विस्तृत विविधता का पोषण करने के लिए इस धरती की सतह तैयार की, और हवा का प्रबंध किया, जिस में परिंदें इतनी ऊँचाई पर उड़ सके, और किस तरह पीने के लिए पानी तथा भोजन के तौर से वनस्पति जीवन दिया, उसने दिन को प्रकाशमान बनाने और मनुष्य को दिखायी देने के लिए एक बड़ी ज्योति, तथा रात को सुन्दर बनाने के लिए एक छोटी ज्योति कैसे बनायी? मौसम इतना सुहावना और गरम क्यों था कि मनुष्य उघड़ा हुआ और नंगा यहाँ-वहाँ घूम सकता, काम कर सकता और सो सकता था?
६ आदमी को जवाबों का अंदाज़ा लगाने के लिए नहीं छोड़ा गया। उसका जिज्ञासु मन एक ऐसे स्रोत से, जिसे यथार्थता से मालूम था, जानकार उत्तर पाने के योग्य था। उसे परमेश्वर के एक अज्ञानी पुत्र के तौर से नहीं छोड़ा गया, लेकिन संभवतः उसकी उच्च कोटि की बुद्धि सृष्टि के अद्भुत इतिहास से सम्मानित की गयी, जैसा कि उत्पत्ति १:१-२५ में दिया गया है।
७ सृष्टि के उस भावोत्तेजक वृत्तांत के लिए आदम बहुत ही शुक्रगुज़ार रहा होगा। इस से अनेक बातें समझ में आयीं। जिस तरीक़े से उस वृत्तांत की शब्द रचना हुई, उस से उसने समझा कि ऐसी तीन लम्बी कालावधियाँ थीं, जिन्हें परमेश्वर ने समय मापने के अपने तरीक़े के अनुसार दिन कहा, और ये चौथे सृजनात्मक अवधि से पहले थीं, जिस में परमेश्वर ने मनुष्य के उस से बहुत ही कम समय के २४-घंटे के दिन प्रकट करने के लिए, आकाश के अन्तर में दो बड़ी ज्योतियाँ सृष्ट की। पृथ्वी पर यह अल्पकालिक मानवी दिन बड़ी ज्योति के अस्त होने से उसके अगले अवरोहण तक का समय था। आदम इस बात से भी अवगत हुआ कि उसके लिए समय वर्षों में होता, और बेशक उसने फ़ौरन अपनी ज़िन्दगी के वर्ष गिनना शुरू किए। आकाश के अन्तर में की बड़ी ज्योति उसे ऐसा करने देती। लेकिन जहाँ तक परमेश्वर की सृष्टि के अधिक लम्बे दिनों का सवाल था, पहले मनुष्य ने समझ लिया कि वह उस समय परमेश्वर के पार्थीव सृजनात्मक कार्य के छठे दिन में जी रहा था। अभी तक उस से उस छठे दिन की कोई समाप्ति का ज़िक्र नहीं किया गया, जिस दिन में उतने सारे ज़मीन के जानवरों को, और फिर अलग रूप से मनुष्य को सृष्ट किया गया था। अब वह वनस्पति जीवन, समुद्रीय जीवन, पक्षी जीवन, और ज़मीन के जानवरों को सृष्ट करने का क्रम समझ सकता। लेकिन अदन की बाटिका में अकेला, आदम, परमेश्वर के पार्थीव परादीस में मानव के लिए परमेश्वर के प्रेममय उद्देश्य की पूरी, संपूर्ण अभिव्यक्ति न था।
पहली स्त्री को सृष्ट करना
८, ९. (अ) पूर्ण मनुष्य ने पशु सृष्टि के बारे में क्या ग़ौर किया, लेकिन उसने खुद के विषय क्या निष्कर्ष निकाला? (ब) यह उचित क्यों था कि पूर्ण मनुष्य ने परमेश्वर से अपने लिए साथी नहीं माँगा? (क) बाइबल वृत्तांत पहली मानवी पत्नी की सृष्टि का वर्णन किस तरह करता है?
८ पहले मनुष्य ने, अपने पूर्ण दिमाग़ और अवलोकन की शक्तियों से, देखा कि परिंदों और जानवरों के क्षेत्र में, नर और मादा थे और उन्होंने मिलकर अपनी जाति के अनुसार बच्चे पैदा किए। लेकिन खुद मनुष्य के साथ, तब वैसा न था। अगर इस अवलोकन ने उसे किसी साथी का आनन्द उठाने का विचार रखने की ओर झुकाया, तो फिर उसने कोई उपयुक्त साथी जानवर क्षेत्र के किसी हिस्से में, कपियों में भी, नहीं पाया। आदम यह निष्कर्ष निकालता कि उसके लिए कोई साथी न थी, इसलिए कि अगर कोई होती, तो क्या परमेश्वर उसे उसके पास न ले आता? मनुष्य उन सभी जानवर जातियों से अलग सृष्ट किया गया था, और इरादा यही था कि वह अलग हो! वह खुद के लिए बातें तय करने और गुस्ताख़ होकर परमेश्वर अपने सृजनहार से साथी माँगने के लिए प्रवृत्त न था। यह उचित था कि पूर्ण मनुष्य सारे मामले को परमेश्वर के हाथों में रहने देता, इसलिए कि उसके थोड़ी ही देर बाद उसने पाया कि परमेश्वर ने स्थिति के बारे में खुद अपने निष्कर्ष निकाले थे। इसके बारे में, और अब जो कुछ घटित हुआ, वृत्तांत हमें बताता है:
९ “परन्तु मनुष्य के लिए कोई ऐसा सहायक न मिला जो उस से मेल खा सके। तब यहोवा परमेश्वर ने मनुष्य को भारी नीन्द में डाल दिया, और जब वह सो गया तब उस ने उसकी एक पसुली निकालकर उसकी सन्ती माँस भर दिया। और यहोवा परमेश्वर ने उस पसुली को जो उस ने मनुष्य में से निकाली थी, स्त्री बना दिया; और उसको मनुष्य के पास ले आया। और मनुष्य ने कहा: ‘आख़िरकार अब यह मेरी हड्डियों में की हड्डी और मेरे माँस में का माँस है: सो इसका नाम नारी होगा, क्योंकि यह नर में से निकाली गयी है।’ इस कारण पुरुष अपने माता पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा और वे एक ही तन बने रहेंगे। और मनुष्य और उसकी पत्नी दोनों नंगे थे, पर लजाते न थे।”—उत्पत्ति २:२०-२५, न्यू.व.
१०. जब पूर्ण औरत को उसके सामने पेश किया गया तब पूर्ण आदमी ने कैसी प्रतिक्रिया दिखायी, और उसके शब्दों से क्या सूचित हुआ होगा?
१० जब पूर्ण औरत एक सहायक और मेल खानेवाली के तौर से उसके सामने पेश की गयी, तब उसके शब्दों में पूरा संतोष था: “आख़िरकार अब यह मेरी हड्डियों में की हड्डी और मेरे माँस में का माँस है।” अपनी नयी-नयी सृष्ट की गयी पत्नी को आख़िर देख लेने पर, उसके शब्दों का विचार करते हुए, यह हो सकता है कि उसने अपना आनन्ददायी मानवी प्रतिरूप पाने के लिए कुछ समय तक इंतज़ार किया था। अपनी मेल खानेवाली का वर्णन करते हुए, आदम ने अपनी पत्नी को “नारी” (ʼइश·शाहʹ या, अक्षरशः “मादा पुरुष” कहा) कहा, “क्योंकि यह नर में से निकाली गयी” थी। (उत्पत्ति २:२३, न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन रेफरेन्स बाइबल, फुटनोट) आदम ने उन उड़ते हुए प्राणियों और ज़मीन के जानवरों के साथ कोई शारीरिक रिश्तेदारी महसूस नहीं की, जिनकी ओर परमेश्वर ने, उन्हें नाम देने के वास्ते उन्हें पहले ही आदम के पास ले आकर, उसका ध्यान आकृष्ट किया था। उसका माँस उनसे अलग था। लेकिन यह स्त्री सचमुच उसकी शारीरिक भाँति ही की थी। उसकी बग़ल में से ली गयी पसली उसी तरह का खून बनाती थी जो उसके शरीर में था। (मत्ती १९:४-६ देखें।) अब उसके साथ ऐसा कोई था जिस के प्रति वह परमेश्वर के भविष्यद्वक्ता का काम कर सकता था और जिसे वह सृष्टि का अद्भुत वृत्तांत बता सकता था।
११-१३. (अ) आदम के एक पत्नी पाने से, कौनसे सवाल उत्पन्न हो सकते हैं? (ब) पहले मानवी जोड़े के लिए परमेश्वर का उद्देश्य क्या था? (क) पूर्ण मानवी परिवार के भोजन के लिए क्या उपलब्ध था?
११ फिर भी, उसे एक पत्नी देने में मनुष्य के सृजनहार का उद्देश्य क्या था? क्या यह सिर्फ़ उसे एक सहायक और मेल खानेवाली, और उसे अकेला होने से बचाने के लिए उसकी ही भाँति की साथी देने के लिए था? वृत्तांत परमेश्वर का उद्देश्य समझाता है, जैसे यह हमें उनकी शादी परमेश्वर का उद्घोषित आशीर्वाद बताता है:
१२ “फिर परमेश्वर ने कहा, ‘हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएँ; और वे समुद्र की मछलियों, और आकाश के पक्षियों, और घरेलू पशुओं, और सारी पृथ्वी पर, और सब रेंगनेवाले जन्तुओं पर जो पृथ्वी पर रेंगते हैं, अधिकार रखें।’ तब परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर ने उसको उत्पन्न किया, नर और नारी करके उस ने मनुष्यों की सृष्टि की। और परमेश्वर ने उनको आशीष दी: और उन से कहा, ‘फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो, और समुद्र की मछलियों, तथा आकाश के पक्षियों, और पृथ्वी पर रेंगेनेवाले सब जन्तुओं पर अधिकार रखो।’
१३ “फिर परमेश्वर ने उन से कहा, ‘सुनो, जितने बीजवाले छोटे छोटे पेड़ सारी पृथ्वी के ऊपर हैं और जितने वृक्षों में बीजवाले फल होते हैं, वे सब मैं ने तुम को दिए हैं; वे तुम्हारे भोजन के लिए हैं: और जितने पृथ्वी के पशु, और आकाश के पक्षी, और पृथ्वी पर रेंगनेवाले जन्तु हैं, जिन में जीवन के प्राण हैं, उन सब के खाने के लिए मैं ने सब हरे हरे छोटे पेड़ दिए हैं।’ और वैसा ही हो गया।”—उत्पत्ति १:२६-३०.
पहले मानवी जोड़े के सामने की प्रत्याशाएँ
१४. परमेश्वर की आशीष से, पूर्ण आदमी और औरत के सामने क्या भविष्य था, और वे सही सही किस बात की कल्पना कर सकते थे?
१४ उस पूर्ण मनुष्य और उसकी पूर्ण पत्नी के लिए, परमेश्वर की आवाज़ उनसे बातें करते हुए, उन्हें जो कुछ करना था, यह बताते हुए और उन्हें आशीष देते हुए सुनना, कैसी बढ़िया बात थी! परमेश्वर के आशीर्वाद से, ज़िन्दगी व्यर्थ न होती, लेकिन वे समर्थ किए जाते वह सब करने के लिए, जो उन्हें बताया गया था। उनके सामने कैसा बढ़िया भविष्य था! जब वह सुखी शादी-शुदा दम्पति वहाँ अपने घर, अदन की बाटिका, में खड़ा था, तब संभवतः उन्होंने उन बातों पर मनन किया जो, जैसे वे उनके लिए परमेश्वर की इच्छा का पालन करते, घटित होतीं। जैसे उनके मन की आँख से उन्होंने आगे दूरवर्ती भविष्य में देखा, उन्होंने न सिर्फ़ “पूर्व की ओर, अदन देश में एक बाटिका” देखी, लेकिन तेजस्वी-चेहरोंवाले पुरुष और स्त्रियों से भरी संपूर्ण पृथ्वी देखी। (उत्पत्ति २:८) उस आदमी और औरत का मन इस विचार से उछल पड़ता कि ये सभी उनके बच्चे थे, उनकी संतति। वे सभी पूर्ण, शारीरिक रूप और संरचना में बेऐब, अनन्तकाल तक जवान होकर, बढ़िया तंदुरुस्ती और जीने के आनन्द से भरपूर थे, तथा सभी एक दूसरे के लिए पूर्ण प्रेम व्यक्त कर रहे थे, और पहले मानवी पिता और माता से मिलकर, सभी एकता से अपने महान् सृजनहार, अपने स्वर्गीय पिता, की उपासना कर रहे थे। ऐसा परिवार होने के विचार से पहले आदमी और औरत का मन कैसे फूला होगा!
१५, १६. (अ) मानवी परिवार के लिए भरपूर भोजन क्यों होता? (ब) जैसे सुखी परिवार की संख्या बढ़ जाती, अदन की बाटिका के बाहर उनके लिए क्या काम होता?
१५ पूरी पृथ्वी को भरनेवाले इस मानवी परिवार के हर सदस्य के लिए भरपूर भोजन होता। वहाँ अदन की बाटिका में, शुरू से ही बहुत सारा भोजन था। परमेश्वर ने उनके लिए प्रबंध किया था और उन्हें सारे बीजवाले पेड़-पौधे और फलवाले पेड़, स्वास्थ्यकर, प्राण-पोषक भोजन के तौर से काम आने के लिए दिए थे।—भजन १०४:२४ से तुलना करें।
१६ जैसे जैसे उनके परिवार की संख्या बढ़ती, वैसे वैसे वे बाटिका को अदन की सीमाओं के पार के देशों में फैलाते, इसलिए कि परमेश्वर के शब्द सूचित करते हैं कि अदन की बाटिका के बाहर, पृथ्वी एक ना-तैयार अवस्था में थी। कम से कम, उसकी देख-रेख नहीं हो रही थी और उसे खेती के उस उच्च स्तर तक नहीं लाया गया जो अदन की बाटिका को चिह्नित करता था। इसीलिए उनके सृजनहार ने उन्हें, जैसे वे पृथ्वी को भरते गए, उसे “वश” में करने के लिए कहा।—उत्पत्ति १:२८.
१७. बढ़नेवाली आबादी के लिए भरपूर भोजन क्यों होता, और जब बाटिका बढ़ायी जाती, तब आख़िर क्या विद्यमान होता?
१७ जैसे बाटिका पूर्ण खेतिहरों और रखवालों द्वारा फैलायी जाती, वैसे वैसे वश में लायी गयी पृथ्वी बढ़ती हुई आबादी के लिए प्रचुर मात्रा में उत्पन्न करती। आख़िर, बराबर बढ़नेवाली बाटिका सारी पृथ्वी पर फैल जाती, और एक विश्व-व्याप्त परादीस विद्यमान होता, कि मनुष्यजाति के चिरस्थायी घर के तौर से फलता-फूलता रहे। यह एक रम्य स्थान बन जाता जिसे स्वर्ग से देखा जा सकता है, और स्वर्गीय सृजनहार उसे बहुत अच्छा घोषित करता।—अय्यूब ३८:७ से तुलना करें।
१८. अदन की सार्वभौमिक बाटिका उपद्रव से क्यों मुक्त होती, और कौनसी शान्ति प्रचलित होती?
१८ यह सब उतना ही शान्तिमय और उपद्रव से मुक्त होता जितना अदन की वह बाटिका, जिस में उस नए नए शादी-शुदा आदमी और औरत ने अपने आप को पाया। पहले मनुष्य, आदम, ने जिन जानवरों और परिंदों का निरीक्षण करके उन्हें नाम दिया था, उन सब जानवरों की ओर से ख़तरा या हानि से डरने की कोई ज़रूरत न होती। अपने पहले मानवी पिता और माता की तरह, विश्व-व्याप्त परादीस के पूर्ण निवासियों के अधीन समुद्र की मछलियाँ, आकाश के पक्षी, और पृथ्वी पर चलनेवाला हर एक प्राणी, खुले मैदान में घूमनेवाले जंगली जानवर भी होते। ये निम्न प्राणी मनुष्य के प्रति, जिसे “परमेश्वर के स्वरूप के अनुसार” सृष्ट किया गया था, अधीनता के एक सहज भाव से, उस से शान्ति से रहते। उनके कोमल, पूर्ण मानवी अधिकारी, इन निम्न जीवित प्राणियों को अधीनता में रखने से, पशु-सृष्टि के बीच शान्ति का वातावरण विकसित करते। इन ईश्वर-जैसे मानवी अधिकारियों का शान्तिमय प्रभाव उन संतुष्ट निम्न जीवित प्राणियों पर रक्षात्मक रूप से फैल जाता। सबसे महत्त्वपूर्ण, पूर्ण मनुष्यजाति परमेश्वर के साथ शान्ति से होती, जिसकी आशीष उन पर से कभी उठायी नहीं जाती।—यशायाह ११:९ से तुलना करें।
परमेश्वर अपने सृजनात्मक कार्यों से विश्राम करता है
१९. (अ) परमेश्वर के उद्देश्य के संबंध में, पहले आदमी और औरत ने क्या समझ लिया होगा? (ब) समय के संबंध में परमेश्वर ने क्या प्रकट किया?
१९ जैसे पूर्ण मानवी जोड़ा, परमेश्वर के उद्देश्य के अनुसार पूरे किए गए पार्थीव दृश्य पर मनन करते, उन्हें एक बात समझ में आती। उन्हें परमेश्वर से प्राप्त इस बढ़िया कार्याधिकार को पूरा करने के लिए वक्त लगता। कितना वक्त? उनके सृजनहार और स्वर्गीय पिता को मालूम था। उसने उनको सूचित किया कि सृजनात्मक दिनों की यह बड़ी श्रृंखला एक और समाप्ति तक पहुँची थी और वे खुद परमेश्वर के सृजनात्मक दिनों के अंकन के अनुसार एक नए दिन के प्रारंभ-बिन्दु पर, “साँझ” में स्थित थे। इसे एक धन्य दिन होना था और परमेश्वर के अपने शुद्ध, धर्मी उद्देश्य के लिए पवित्र ठहराया जाना था। पूर्ण मनुष्य, परमेश्वर के भविष्यद्वक्ता ने इस पर ग़ौर किया। प्रेरित वर्णन हमें बताता है:
२०. “सातवें दिन” के संबंध में बाइबल वृत्तांत क्या कहता है?
२० “तब परमेश्वर ने जो कुछ बनाया था, सब को देखा, तो क्या देखा, कि वह बहुत ही अच्छा है। तथा साँझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार छठवाँ दिन हो गया। यों आकाश और पृथ्वी और उनकी सारी सेना का बनाना समाप्त हो गया। और परमेश्वर ने अपना काम जिसे वह करता था सातवें दिन समाप्त किया। और उस ने अपने किए हुए सारे काम से सातवें दिन विश्राम किया। और परमेश्वर ने सातवें दिन को आशीष दी और पवित्र ठहराया; क्योंकि उस में उस ने अपनी सृष्टि की रचना के सारे काम से विश्राम लिया। आकाश और पृथ्वी की उत्पत्ति का वृत्तांत यह है कि जब वे उत्पन्न हुए अर्थात् जिस दिन यहोवा परमेश्वर ने पृथ्वी और आकाश को बनाया।”—उत्पत्ति १:३१–२:४.
२१. (अ) क्या बाइबल कहती है कि परमेश्वर ने अपना विश्राम का दिन समाप्त किया और यह कहा कि वह बहुत ही अच्छा था? व्याख्या दें। (ब) कौनसे सवाल उत्पन्न होते हैं?
२१ वृत्तांत यह नहीं बताता कि परमेश्वर ने अपना विश्राम का दिन समाप्त किया और देखा कि यह बहुत ही अच्छा था, और साँझ हुई फिर भोर हुआ तथा इस प्रकार सातवाँ दिन हुआ। पूर्ववर्ती छः दिनों के सदृश होने के लिए, सातवें दिन को अभी बहुत ही अच्छा घोषित करना है, इसलिए कि यह अब तक समाप्त नहीं हुआ है। क्या अब तक यहोवा परमेश्वर इस दिन को बहुत ही अच्छा घोषित कर सकता है? क्या अब तक यह उसके लिए शान्तिमय विश्राम का दिन रहा है? उस सम्मोहक प्रतयाशा का क्या होगा जिसकी कल्पना पहले आदमी और औरत ने परादीस में अपने शादी के दिन की थी? आइए देखें जैसे दृश्य अगले लेख में प्रकट होता है। (w89 8/1)
[फुटनोट]
a ये नाम उत्पत्ति के इब्रानी मूल-पाठ और इब्रानी शास्त्रों के अन्य प्रेरित किताबों में पाए जाते हैं।
आप कैसे जवाब देते?
◻ बाटिका की देख-रेख करने के अतिरिक्त परमेश्वर ने आदम को क्या काम दिया, और इस में क्या संबद्ध था?
◻ उत्पत्ति १:१-२५ में वृत्तांत से क्या प्रकट हुआ?
◻ पहली मानवी पत्नी किस तरह सृष्ट की गयी, और उनके शादी के दिन पर आदम ने कैसी प्रतिक्रिया दिखायी?
◻ पहले मानवी जोड़े के सामने कौनसी प्रत्याशाएँ थीं?
◻ परमेश्वर ने किस तरह सूचित किया कि सृजनात्मक दिनों की बड़ी श्रृंखला एक और समाप्ति तक पहुँची थी?