परमेश्वर संकल्प करता है कि मनुष्य परादीस में जीवन का आनन्द उठाए
“और यहोवा परमेश्वर ने मनुष्य को लेकर अदन की बाटिका में रख दिया, कि वह उस में काम करे और उसकी रक्षा करे।”—उत्पत्ति २:१५, न्यू.व.
१. आज्ञाकारी मनुष्यों के संबंध में सृजनहार का प्रारंभिक उद्देश्य क्या था?
यह सृजनहार का प्रारंभिक उद्देश्य था, और यह अब भी उसका उद्देश्य है, कि आज्ञाकारी मनुष्यजाति चिरयुवा जीवन का आनन्द उठाए, जो युवा ताक़त से सदैव परिपूर्ण, और सारी ऊब से मुक्त हो, और जिस में पूरा करने के लिए हमेशा कोई योग्य लक्ष्य हो, तथा जो सच्चे, निःस्वार्थ और पूर्ण रीति से प्रेम करने और प्रेम किए जाने का जीवन हो—एक परादीस में!—उत्पत्ति २:८; लूका २३:४२, ४३ से तुलना करें।
२. (अ) जब पहले मनुष्य को होश आया, तब क्या हुआ होगा? (ब) पहला मनुष्य कब सृष्ट हुआ, कहाँ, और साल के किस महीने में?
२ उसे पहचानने के लिए, अतीत की ओर मुड़कर नए-नए सृजे आदम को देखें, जब उसे पहली बार होश प्राप्त हुआ, जब उसने खुद अपने बदन को और अपने इर्द-गिर्द जो कुछ भी उसने देखा और सुना और महसूस किया, उसे परखा, और जब उसने चौंककर समझ लिया कि वह ज़िन्दा था! पवित्र बाइबल में दिए समय की गणना के अनुसार, यह हमारे सामान्य युग पूर्व सन् ४,०२६ में, लगभग ६,००० साल पहले घटा। यह एक ऐसे इलाके में हुआ, जो आज तुर्की के नाम से जाना जाता है, या उस क्षेत्र के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में, जिसे अब एशिया कहा जाता है, यूफ्रेटीज़ और टाइग्रिस नदियों के पास कहीं, और इस प्रकार हमारे पार्थीव गोले के उत्तरी गोलार्ध में। समय लगभग अक्तूबर १ हुआ होगा, इसलिए कि मनुष्यजाति के अधिकांश प्राचीन तिथिपत्रों ने लगभग उस तारीख़ से समय की गणना करना शुरू किया।
३. पहला मनुष्य किस अवस्था में जीवित हुआ? (ब) पहले मनुष्य का नाम क्या रखा गया, और उसका मतलब क्या था?
३ पहला मनुष्य सम्पूर्णतः विकसित होकर ज़िन्दा बना, पूर्ण रूप से रचित, पूर्ण रूप से तंदुरुस्त, पूर्ण रूप से सदाचारी। बाइबल वृत्तांत में जो नाम उसे बार-बार दिया जाता है, वह हमारा ध्यान उस तत्त्व की ओर आकृष्ट करता है जिस से वह रचा गया। उसका नाम ʼअ·धामʹ था।a वह जिस पृथ्वी, या मिट्टी से रचा गया, उसे ʼअ·धा·माहʹ कहा जाता था। तो भली-भाँति कहा जा सकता था कि उसके नाम का मतलब “पार्थीव मनुष्य” था। यह पहले इंसान का निजी नाम बना—आदम। जब वह ज़िन्दा हुआ, एक सचेत, बुद्धिमान व्यक्ति बना, तब आदम के लिए यह क्या ही अनुभूति रही होगी!
४. पहले मनुष्य को जागृति पाने में कौनसा विचित्र अनुभव नहीं हुआ, तो वह किस का पुत्र न था?
४ जब यह पहला इंसान, आदम, ज़िन्दा हुआ, बुद्धिमान चैतन्य पाकर जाग उठा और अपनी आँखें खोलीं, तब उसने अपने आप को किसी बालदार छाती पर लेटे हुए, कोई बन्दर-जैसी मादा प्राणी के लम्बे शक्तिशाली हाथों के आलिंगन में, उसे लिपटे हुए, और उसकी आँखों में देखकर, उसे कोमल स्नेह से माँ पुकारते हुए नहीं पाया। उस पहले इंसान, आदम, को जीवन की जागृति पाने में ऐसा कोई विचित्र अनुभव नहीं हुआ। उसने बन्दर के साथ कोई शारीरिक नाता महसूस नहीं किया, बाद में भी नहीं जब उसने बन्दर को पहली बार देखा। उसके सृजे जाने के दिन में, ऐसी कोई बात न थी जिस से यह सूचित हुआ कि वह किसी बन्दर, या उस तरह किसी प्राणी का वंशज या दूर का पुत्र था। फिर भी, क्या पहले इंसान, आदम, को अपने अस्तित्व के बारे में हैरान रखा जानेवाला था? नहीं।
५. आदम को अपने उपवन-जैसे बग़ीचे और अपने बारे में निश्चित रूप से क्या मालूम था?
५ स्वाभाविक रूप से, शायद वह उसकी देखी सभी सुन्दर चीज़ों के बारे में हैरान रहा होगा, कि वे कैसे अस्तित्व में आयीं। उसने अपने आप को एक उपवन-जैसे बग़ीचे में पाया, एक ऐसा परादीस जिसकी रचना, निर्माण, और विन्यास खुद उसने नहीं की थी। ये सब कैसे हुआ? एक पूर्ण रूप से बुद्धिमान, सुविवेचित मनुष्य के तौर से, वह ये सब जानना चाहता। उसका पहले कोई अनुभव न था। वह जानता था कि वह स्वनिर्मित, स्व-विकसित मनुष्य न था। वह खुद अपनी कोशिशों से इस अवस्था तक नहीं पहुँचा था।—भजन १००:३; १३९:१४ से तुलना करें।
६. एक पूर्ण पार्थीव घर में ज़िन्दा होने पर आदम संभवतः किस तरह प्रतिक्रिया दिखाता?
६ पहला मनुष्य, आदम, शायद शुरुआत में एक पूर्ण पार्थीव घर में आनन्दित रूप से ज़िन्दा होने के इस प्रारंभिक अनुभव से इतना उत्तेजित रहा होगा कि उसने यह नहीं सोचा कि वह कहाँ से और क्यों आया था। वह खुद को आनन्दित चिल्लाहट करने से मुश्किल से रोक सका। उसने पाया कि अपने मुँह से शब्द निकल रहे थे। उसने अपने आप को इंसान की भाषा में बोलते हुए पाया, उन सभी सुन्दर चीज़ों के बारे में टिप्पणी करते हुए जो उसने देखा और सुना। यहाँ इस परादीस बग़ीचे में ज़िन्दा होना कितना अच्छा था! पर जैसे वह आनन्दित होकर सारे नज़ारों, आवाज़ों, खुशबुओं, और चीज़ों के स्पर्श से प्राप्त जानकारी अपने दिमाग़ में भरता, वह कुछ विचार करने तक अभिप्रेरित होता। अगर हमें उसके स्थान में रखा गया होता, तो हम भी इस पूरी स्थिति के बारे में एक रहस्य महसूस करते, एक ऐसा रहस्य जो हम स्वयं से हल नहीं कर सके होते।
मानवी अस्तित्व से संबंधित कोई रहस्य नहीं
७. खुद को ज़िन्दा और एक परादीस बग़ीचे में पाकर आदम बहुत देर तक हैरान क्यों नहीं रहा?
७ बहुत देर तक पहला इंसान, आदम, उस स्थिति के बारे में हतप्रभ न रहा, जिस में उसने खुद को ज़िन्दा और अकेला पाया, उस परादीस बग़ीचे में, जहाँ उसके जैसा दूसरा कोई दृश्य व्यक्ति न था। उसने किसी की बोलने की आवाज़ सुनी। मनुष्य उसे समझ सका। लेकिन बोलनेवाला कहाँ था? मनुष्य ने बोलनेवाले किसी को नहीं देखा। आवाज़ अदृश्य, अनदेखे क्षेत्र, से आ रही थी, और उसे संबोधित कर रही थी। यह मनुष्य के निर्माता, उसके सृजनहार की आवाज़ थी! और मनुष्य उसी तरह की भाषा में उसे जवाब दे सकता था। उसने खुद को परमेश्वर, सृजनहार, के साथ बातचीत करते हुए पाया। ईश्वरीय आवाज़ सुनने के लिए मनुष्य को किसी आधुनिक वैज्ञानिक रेडियो रिसीवर की ज़रूरत न थी। परमेश्वर ने उस से सीधे सीधे बातचीत की, चूँकि वह उसका सृष्ट जीव था।
८, ९. (अ) आदम को कौनसे सवालों के जवाब मिलते, और उसे कैसा पितृवत् ध्यान और दिलचस्पी दिखायी गयी? (ब) आदम को अपने स्वर्गीय पिता से क्या जवाब मिला?
८ अब मनुष्य जानता था कि वह अकेला न था, और इसकी वजह से उसने बेहतर महसूस किया होगा। उसका मन सवालों से भरा था। वह उस से बातचीत करनेवाले अदृश्य व्यक्ति से वे सवाल पूछ सकता था। उसे और प्रमोद के इस बग़ीचे को किसने बनाया? उसे वहाँ क्यों रखा गया था, और उसे अपने जीवन का क्या करना था? क्या ज़िन्दा रहने में कोई उद्देश्य था? इस पहले इंसान, आदम, के प्रति पितृवत् ध्यान और दिलचस्पी दिखायी गयी, इसलिए कि उसके सवालों को ऐसा जवाब दिया गया जिस से उसका जिज्ञासु दिमाग़ सन्तुष्ट हुआ। उसके निर्माता, उसके जीवन-दाता, उसके स्वर्गीय पिता को कितनी खुशी हुई होगी, जब उसने मुनष्य को बोलना शुरू करते और उसके पहले शब्द उच्चारते सुना! अपने पुत्र को अपने से बातें करता सुनने से स्वर्गीय पिता को किता आनन्द हुआ होगा! स्वाभाविक पहला सवाल होता, “मैं कैसे उत्पन्न हुआ?” स्वर्गीय पिता को इसका जवाब देने और इस प्रकार स्वीकार करने में खुशी हुई कि यह पहला इंसान उसका पुत्र था। वह “परमेश्वर का पुत्र” था। (लूका ३:३८) यहोवा ने खुद का परिचय उस पहले इंसान, आदम, के पिता के तौर से किया। उसके स्वर्गीय पिता से, आदम ने अपने सवाल का जो जवाब पाया, और जो उसने अपनी सन्तान को दिया, उसका सारांश पेश है:
९ “और यहोवा परमेश्वर ने मनुष्य को भूमि की मिट्टी से रचा और उसके नथनों में जीवन का श्वास फूँक दिया, और मनुष्य जीवता प्राणी बन गया। और यहोवा परमेश्वर ने पूर्व की ओर अदन देश में एक बाटिका लगाई, और वहाँ मनुष्य को जिसे उस ने रचा था, रख दिया। और यहोवा परमेश्वर ने भूमि से सब भाँति के वृक्ष, जो देखने में मनोहर और जिनके फल खाने में अच्छे हैं उगाए, और बाटिका के बीच में जीवन के वृक्ष को और भले या बुरे के ज्ञान के वृक्ष को भी लगाया। और उस बाटिका को सींचने के लिए एक महानदी अदन से निकली और वहाँ से आगे बहकर चार धारा में हो गयी।”—उत्पत्ति २:७-१०, न्यू.व.b
१०, ११. (अ) आदम ने स्पष्ट रूप से कौनसे तथ्य सीखे, लेकिन उसे और कौनसे सवालों के जवाब मिलने की ज़रूरत थी? (ब) स्वर्गीय पिता ने आदम को कौनसे जवाब दिए?
१० आदम के तीव्रबुद्धि, फुरतीले दिमाग़ ने इस सन्तोषजनक जानकारी को उत्सुकता से सोख लिया। अब वह जानता था कि वह उस अदृश्य क्षेत्र से नहीं आया जिस से उसका निर्माता और रचयिता बोल रहा था। उलटा, वह उस पृथ्वी से बनाया गया था जिस पर वह जी रहा था और इसलिए वह पार्थीव था। उसका जीवन-दाता और पिता यहोवा परमेश्वर था। वह एक “जीवित प्राणी” था। चूँकि उसने यहोवा परमेश्वर से जीवन प्राप्त किया था, वह “परमेश्वर का पुत्र” था। अदन की बाटिका में उसके इर्द-गिर्द पेड़ों ने फल उत्पन्न किए जो खाने में अच्छे थे, ताकि वह उन्हें खाकर एक जीवित प्राणी के तौर से ज़िन्दा रह सकता था। और फिर भी, उसे ज़िन्दा क्यों रहना चाहिए, और उसे पृथ्वी पर, इस अदन की बाटिका में, क्यों रखा गया था? वह एक पूर्ण रूप से विकसित इंसान था जो बुद्धिमान था और जिसे शारीरिक क्षमताएँ थीं, और उसका जानना योग्य था। वरना, वह किस तरह जीवन में अपना उद्देश्य पूरा कर सकता और इस प्रकार ईश्वरीय इच्छानुसार करके अपने निर्माता और पिता को खुश करता? इन उचित सवालों के जवाब निम्नलिखित जानकारी में दिए गए थे:
११ “और यहोवा परमेश्वर ने मनुष्य को लेकर अदन की बाटिका में रख दिया, कि वह उस में काम करे और उसकी रक्षा करे। तब यहोवा परमेश्वर ने मनुष्य को यह आज्ञा दी: ‘तू बाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है। पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना, क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाए उसी दिन अवश्य मर जाएगा।’”—उत्पत्ति २:१५-१७, न्यू.व.
१२. आदम ने अपने सृजनहार को किस बात का शुक्रिया अदा किया होगा, और इसलिए मनुष्य परमेश्वर की महिमा क्यों कर सकता था?
१२ इस सुन्दर बग़ीचे में उसे उपयोगिता से व्यस्त रखने के लिए काम दिए जाने की वजह से आदम ने अपने सृजनहार का शुक्रिया अदा किया होगा। अब वह अपने सृजनहार की इच्छा जानता था, और वह पृथ्वी पर उसके लिए कुछ कर सकता था। उस पर अब एक ज़िम्मेदारी थी, अदन की बाटिका को जोतने और उसकी देख-रेख करने की ज़िम्मेदारी, लेकिन वैसा करना सुहावना होता। ऐसा करने से, वह उस बग़ीचे को इस तरह रख सकता था कि उस से उसके निर्माता, यहोवा परमेश्वर को महिमा और प्रशंसा मिलती। जब कभी आदम को काम करने से भूख लगती, वह बग़ीचे के पेड़ों से पेट भर खा सकता था। इस तरह वह अपना बल ताज़ा कर सकता था और अपनी खुशी की ज़िन्दगी अनिश्चित काल तक—अन्तहीन रूप से बनाए रख सकता था।—सभोपदेशक ३:१०-१३ से तुलना करें।
अनन्त जीवन की प्रत्याशा
१३. पहले मनुष्य को क्या प्रतयाशा थी, और ऐसा क्यों?
१३ अन्तहीन रूप से? पूर्ण मनुष्य के मन में यह क़रीब-क़रीब कैसा अ-विश्वसनीय विचार रहा होगा! लेकिन क्यों नहीं? उसके सृजनहार को अदन के इस अत्यंत कुशलतापूर्ण रीति से अभिकल्पित बग़ीचे का नाश करने का कोई विचार या इरादा न था। वह खुद अपना काम क्यों नाश करता जब वह इतना अच्छा था और उसकी कलात्मक सृजनशीलता का सूचक था? तर्कसंगत रूप से, वह ऐसा करने का इरादा नहीं करता। (यशायाह ४५:१८) और चूँकि इस बेजोड़ बग़ीचे में जोताई का काम होना था, उसे पूर्ण मनुष्य, आदम, के जैसे एक खेतिहर और रखवाले की ज़रूरत होती। और अगर रखवाला मनुष्य निषिद्ध “भले या बुरे के ज्ञान के वृक्ष” का फल कभी न खाता, तो वह कभी न मरता। पूर्ण मनुष्य हमेशा के लिए ज़िन्दा रह सकता था!
१४. आदम को परादीस में अनन्त जीवन किस तरह मिल सकता था?
१४ अदन के परादीस बग़ीचे में अनन्त जीवन आदम के सामने रखा गया था! इसका आनन्द अनन्त काल तक लिया जा सकता था, इस शर्त पर कि वह मनुष्य के सृजनहार द्वारा निषिद्ध फल कभी न खाकर, पूर्ण रूप से अपने सृजनहार के प्रति आज्ञाकारिता बनाए रखता। यह उसकी इच्छा थी कि पूर्ण मनुष्य आज्ञाकारी रहे और अनन्त काल तक ज़िन्दा रहे। “भले या बुरे के ज्ञान के वृक्ष” का फल निषिद्ध करने में कोई प्राण-नाशक बात संबद्ध न थी। यह मनुष्य का अपने पिता के प्रति पूर्ण आज्ञाकारिता की सिर्फ़ एक परीक्षा थी। इस से मनुष्य को परमेश्वर, अपने पिता, के प्रति अपना प्रेम साबित करने के लिए एक मौक़ा मिला।
१५. आदम एक उज्ज्वल भविष्य, और अपने सृजनहार के हाथों भलाई की प्रत्याशा क्यों कर सकता था?
१५ इस मनस्तोष से कि वह सिर्फ़ एक अनैच्छिक संयोग से उत्पन्न नहीं हुआ, पर उसे एक स्वर्गीय पिता था, ज़िन्दगी में अपने उद्देश्य के बारे में उसका दिमाग़ समझ से प्रबुद्ध होकर, और परादीस में अनन्त जीवन की आशा के साथ, पूर्ण मनुष्य ने आगे उज्ज्वल भविष्य की प्रत्याशा की। “भले या बुरे के ज्ञान के वृक्ष” के फल से दूर रहकर, उसने उन वृक्षों से फल खाए जो खाने के लिए अच्छे थे। वह अपने सृजनहार के हाथों से अच्छाई का अनुभव करना चाहता था। काम, एक विनाशक प्रकार का नहीं, बल्कि अदन की बाटिका को जोतने का काम अच्छा था, और पूर्ण मनुष्य ने काम किया।
बातों को समझाने के लिए कोई बाध्यता महसूस न हुई
१६-१८. आदम ने कौनसे नाम-मात्र के रहस्यों का हल निकालने की बाध्यता महसूस नहीं की, और क्यों?
१६ दिन का प्रकाश ढलता गया जैसे दिन की बड़ी ज्याति, जिसे वह आकाश के पार उसकी गति से पहचान सकता था, अस्त हुई। अँधेरा छा गया, और रात हुई, और वह चाँद देख सका। इस से वह भय की भावना से भर नहीं गया; यह छोटी ज्याति थी जिस ने रात पर प्रभुता की। (उत्पत्ति १:१४-१८) संभवतः, जुगनूँ बग़ीचे में यहाँ-वहाँ उड़ते रहे, जिनकी ठंडी रोशनी छोटे दीयों के जैसे टिमटिमाती थी।
१७ जैसे रात हुई और उसकी चारों ओर अँधेरा छा गया, उसने अपने इर्द-गिर्द जानवरों के जैसे सोने की ज़रूरत महसूस की। जागने पर उसे भूख लगने लगी, और उसने अनुमित फल के पेड़ों से बड़ी रुचि से खाया, एक ऐसा भोजन जिसे शायद नाश्ता कहा जा सकता है।
१८ नए बल के साथ और रात के आराम से भली-भाँति तरोताज़ा होकर, उसने अपना ध्यान दिन के काम की ओर आकृष्ट किया। जैसे उसने अपने इर्द-गिर्द सारी हरियाली देखी, उसने यह महसूस नहीं किया कि उसे उस रहस्य को खोज निकालना चाहिए जिसे लोग हज़ारों साल बाद प्रकाश-संश्लेषण (फ़ोटोसिन्थीसिस) कहते, यह एक रहस्यमय प्रक्रिया है जिस से पौधों के हरे रंग का पदार्थ, उनका क्लोरोफ़िल (हरितक), मनुष्य और जानवर को खाने के लिए खाद्यपदार्थ उत्पन्न करने के वास्ते, धूप की ऊर्जा को काम में लाता है, और साथ साथ मनुष्य और जानवर द्वारा अपश्वासित कार्बन डाइऑक्साइड अन्दर लेकर उन्हें साँस लेने के लिए ऑक्सिजन छोड़ देता है। कोई इंसान शायद इसे एक रहस्य कहे, लेकिन आदम को उसका हल निकालने की कोई ज़रूरत नहीं थी। यह मनुष्य के सृजनहार का एक चमत्कार था। उसने उस प्रक्रिया को समझा और पृथ्वी पर प्राणी जीवन के लाभ के लिए उसे काम में लाया। इसलिए, यह पहले इंसान की बुद्धि के लिए काफ़ी था कि परमेश्वर, सृजनहार, ने पौधें उगायीं, और मनुष्य का ईश्वर-प्रदत्त कार्य अदन की बाटिका में उग रहे वन-जीवन के इन जातियों की देख-रेख करना था।—उत्पत्ति १:१२ देखें।
अकेला—पर आनन्द में कोई कमी नहीं
१९. हालाँकि उसने समझ लिया कि वह, पृथ्वी पर अपने जैसे बाक़ी किसी के बिना ही, अकेला था, आदम ने क्या नहीं किया?
१९ अपने स्वर्गीय पिता की तरफ़ से मनुष्य का शिक्षण अभी ख़त्म न हुआ था। पृथ्वी पर उसका साथ देने या उसकी मदद करने के लिए उसके जैसे किसी के बिना ही, मनुष्य ने अदन की बाटिका की देख-भाल की। जहाँ तक उसके प्रकार, मानवी प्रकार, का सवाल था, वह अकेला था। वह उसके जैस किसी को खोज निकालने के लिए नहीं गया, जिसके साथ वह पार्थीव संग-साथ रख सकता था। उसने परमेश्वर, अपने स्वर्गीय पिता, से उसे कोई भाई या बहन देने के लिए नहीं कहा। एक आदमी के तौर से उसके अकेलेपन से वह आख़िरकार पाग़ल नहीं हुआ, और न ही उस से ज़िन्दा रहने और काम करने का आनन्द हट गया। उसकी सहचारिता परमेश्वर के साथ थी।—भजन २७:४ से तुलना करें।
२०. (अ) आदम के आनन्द और खुशी की पराकाष्ठा क्या थी? (ब) इस जीवन क्रम में रहना आदम के लिए कोई थकाऊ कष्ट क्यों न होता? (क) अगले लेख में किस बात पर विचार-विमर्श किया जाएगा?
२० आदम जानता था कि वह और उसका काम अपने स्वर्गीय पिता के निरीक्षण में था। उसकी खुशी की पराकाष्ठा अपने परमेश्वर और सृजनहार को खुश करने में थी, जिसकी उत्कृष्टता मनुष्य की चारों ओर सृष्टि की सुन्दर कृतियों द्वारा प्रकट थी। (प्रकाशितवाक्य १५:३ से तुलना करें।) इस जीवन क्रम में रहना कोई थकाऊ कष्ट या उबाऊ काम न होता, इसलिए कि यह पूर्ण रूप से संतुलित मनुष्य अपने परमेश्वर के साथ बातचीत कर सकता था। और परमेश्वर ने आदम के सामने दिलचस्प काम, चित्ताकर्षक काम, रखा था, जिस से उसे बड़ा सन्तोष और खुशी मिलती। अगले लेख में परादीस के उन आशीषों और प्रत्याशाओं के बारे में अधिक बताया जाएगा, जिनका उपभोग आदम ने अपने प्रेममय सृजनहार की तरफ़ से पाकर किया।
[फुटनोट]
a यही शब्द पवित्र बाइबल के सृष्टि वृत्तांत की मूल भाषा में है।—उत्पत्ति १:२६, न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन रेफ़रेन्स बाइबल, फुटनोट.
b भविष्यद्वक्ता मूसा ने, जिसने हमारे सामान्य युग पूर्व १६वीं सदी में उत्पत्ति की किताब की जानकारी लिपिबद्ध की, उसने इस अदनी नदी के बारे में, उसके समय में प्राप्त ज्ञान के अनुसार, निम्नलिखित जानकारी जोड़ दी:
“पहली धारा का नाम पीशोन् है, यह वही है जो हवीला नाम के सारे देश को जहाँ सोना मिलता है घेरे हुए है। उस देश का सोना चोखा होता है, वहाँ मोती और सुलैमानी पत्थर भी मिलते हैं। और दूसरी नदी का नाम गीहोन् है, यह वही है जो कूश् के सारे देश को घेरे हुए है। और तीसरी नदी का नाम हिद्देकेल् है, यह वही है जो अश्शूर् के पूर्व की ओर बहती है। और चौथी नदी का नाम फरात है।”—उत्पत्ति २:११-१४.
आपके क्या जवाब हैं?
◻ आदम अपने अस्तित्व के बारे में बहुत देर तक हैरान क्यों न रहा?
◻ परमेश्वर ने आदम को क्या काम दिया, और उसने किस तरह प्रतिक्रिया दिखायी होगी?
◻ पूर्ण मनुष्य ने कौनसी प्रत्याशा का अनुभव किया, और क्यों?
◻ आदम ने रहस्यों का हल करना अपना जीवन कार्य क्यों नहीं बनाया?
◻ आदम का एक आदमी के तौर से अकेला रहना, उसके ज़िन्दा रहने के आनन्द को क्यों नहीं छीना?
[पेज 14 पर चित्र का श्रेय]
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