क्या आपने परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश किया है?
“जिस ने [परमेश्वर के] विश्राम में प्रवेश किया है, उस ने भी . . . अपने कामों को पूरा करके विश्राम किया है।”—इब्रानियों ४:१०.
१. लोग आराम इतना पसंद क्यों करते हैं?
विश्राम। इस शब्द में कितनी मिठास है, सुंदरता है! आज की इस दौड़-धूप और भागम-भागवाली दुनिया में, हममें से ज़्यादातर लोग, भले ही थोड़े समय के लिए क्यों न हो, आराम या विश्राम करना ज़रूर पसंद करेंगे। चाहे जवान हो या बूढ़े, शादी-शुदा हो या गैर शादी-शुदा, बस रोज़-ब-रोज़ की ज़िंदगी से ही हम पस्त हो जाते हैं, थक जाते हैं। और जो अपंग हैं या कमज़ोर हैं, उनके लिए तो हर दिन एक चुनौती लेकर निकलता है। जैसे शास्त्रवचन कहता है, “सारी सृष्टि अब तक मिलकर कहरती और पीड़ाओं में पड़ी तड़पती है।” (रोमियों ८:२२) सो, ज़रूरी नहीं है कि जो व्यक्ति आराम कर रहा है वो आलसी है। आराम तो इंसान की एक ज़रूरत है, जिसे पूरा किया जाना चाहिए।
२. यहोवा कब से विश्राम कर रहा है?
२ खुद यहोवा परमेश्वर भी विश्राम कर रहा है। उत्पत्ति की पुस्तक में लिखा है: “आकाश और पृथ्वी और उनकी सारी सेना का बनाना समाप्त हो गया। और परमेश्वर ने अपना काम जिसे वह करता था सातवें दिन समाप्त किया। और उस ने अपने किए हुए सारे काम से सातवें दिन विश्राम किया।” यहोवा ने “सातवें दिन” को अहमियत बख्शी, क्योंकि प्रेरित लेख आगे कहता है कि “परमेश्वर ने सातवें दिन को आशीष दी और पवित्र ठहराया।”—उत्पत्ति २:१-३.
परमेश्वर अपने कामों से विश्राम करता है
३. परमेश्वर ने किन कारणों से आराम नहीं किया?
३ परमेश्वर ने “सातवें दिन” विश्राम क्यों किया? बेशक, उसने इसलिए आराम नहीं किया क्योंकि वो थक चुका था। यहोवा बहुत ही “सामर्थी” है और “वह न थकता, न श्रमित होता है।” (यशायाह ४०:२६, २८) और न ही परमेश्वर ने इसलिए विश्राम किया क्योंकि वो अपने काम से थोड़ी छुट्टी चाहता था या उसे इसकी ज़रूरत थी, क्योंकि यीशु ने हमसे कहा: “मेरा पिता अब तक काम करता है, और मैं भी काम करता हूं।” (यूहन्ना ५:१७) जो भी हो, “परमेश्वर आत्मा है,” और शारीरिक सीमाओं, और उनकी ज़रूरतों के बंधन से मुक्त है।—यूहन्ना ४:२४.
४. किस तरीके से ‘सातवाँ दिन’ पिछले छः ‘दिनों’ से अलग था?
४ परमेश्वर के “सातवें दिन” विश्राम करने की वज़ह के बारे में हमें कुछ अंदरूनी मालूमात कैसे मिल सकती है? इस बात पर गौर करने से कि हालाँकि परमेश्वर ने पिछले छः लंबे, सृजनात्मक “दिन” जो कुछ किया था उससे बहुत ही खुश था, फिर भी उसने “सातवें दिन” पर खासकर आशीष दी और उसे “पवित्र” ठहराया। कन्साइज़ ऑक्सफर्ड डिक्शनरी “पवित्र” की परिभाषा इस तरह करती है, “(किसी देवता या किसी धार्मिक उद्देश्य के लिए) पूरी तरह समर्पित या अलग रखा गया।” सो, “सातवें दिन” पर यहोवा का आशीष देना और उसे पवित्र ठहराना सूचित करता है कि उस दिन का और उसके “विश्राम” का उसकी पवित्र इच्छा और उद्देश्य से कुछ संबंध था, उसकी किसी ज़रूरत से नहीं। वो संबंध क्या है?
५. पिछले छः सृजनात्मक ‘दिनों’ में परमेश्वर ने क्या चालू किया?
५ पिछले छः सृजनात्मक ‘दिनों’ में, परमेश्वर ने पृथ्वी और उसके आस-पास की सभी वस्तुओं को संचालित करने के लिए सभी चक्रों और नियमों को बनाया था और उन्हें चालू कर दिया था। वैज्ञानिक अब सीख कर रहे हैं कि इन्हें कितने शानदार तरीके से बनाया गया है। ‘छठवें दिन’ के अंत में, परमेश्वर ने पहला मानव जोड़ा बनाया और उन्हें “पूर्व की ओर अदन देश में एक बाटिका” में रखा। आखिर में परमेश्वर ने इस मानव परिवार और पृथ्वी के बारे में अपना उद्देश्य इन भविष्यसूचक शब्दों में बताया: “फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो; और समुद्र की मछलियों, तथा आकाश के पक्षियों, और पृथ्वी पर रेंगनेवाले सब जन्तुओं पर अधिकार रखो।”—उत्पत्ति १:२८, ३१; २:८.
६. (क) ‘छठवें दिन’ के अंत में, परमेश्वर ने जो कुछ बनाया था, उसके बारे में उसे कैसा लगा? (ख) किस मायने में ‘सातवाँ दिन’ पवित्र है?
६ जब सृष्टि का ‘छठवाँ दिन’ समाप्त हुआ, तो लेख हमसे कहता है: “परमेश्वर ने जो कुछ बनाया था, सब को देखा, तो क्या देखा, कि वह बहुत ही अच्छा है।” (उत्पत्ति १:३१) परमेश्वर ने जो कुछ बनाया था, उससे वो संतुष्ट था। सो उसने पृथ्वी पर और भी सृजनात्मक काम करने से आराम किया या काम करना बंद किया। हालाँकि वो परादीस का बगीचा बेहतरीन और निहायत ही खूबसूरत था, फिर भी वो बस एक छोटी सी जगह में ही था, और पूरी धरती पर बस दो इंसान थे। परमेश्वर ने जो उद्देश्य किया था, उस मुकाम तक पहुँचने के लिए पृथ्वी को और मानव परिवार को समय लगता। इस वज़ह से उसने ‘सातवाँ दिन’ ठहराया, ताकि उसने पिछले छः ‘दिनों’ में जो कुछ बनाया था, वो उसकी पवित्र इच्छा के सामंजस्य में विकसित हो। (इफिसियों १:११ से तुलना कीजिए।) जब ‘सातवाँ दिन’ समाप्त हो जाएगा, तब पूरी पृथ्वी एक परादीस बन जाएगी, जिसमें परिपूर्ण मनुष्यों के परिवार हमेशा-हमेशा के लिए बसे रहेंगे। (यशायाह ४५:१८) ‘सातवाँ दिन’ इस पृथ्वी और मनुष्यजाति के लिए परमेश्वर की इच्छा के पूरा होने के लिए अलग रखा गया है, या उसके लिए समर्पित है। इस मायने में यह “पवित्र” है।
७. (क) किस अर्थ में परमेश्वर ने “सातवें दिन” विश्राम किया? (ख) “सातवें दिन” के खत्म होने तक सब कुछ कैसा होगा?
७ सो परमेश्वर ने “सातवें दिन” अपने सृजनात्मक काम से विश्राम किया। यह ऐसा था मानो वह पीछे हटा और जो कुछ उसने शुरू किया था उसे पूरा होने दिया। उसे पूरा यकीन है कि “सातवें दिन” के खत्म होने पर सब कुछ ठीक उसके उद्देश्य के मुताबिक पूरा होगा। अगर कोई बाधा हो, तो वो भी पार कर दी जाएगी। आज्ञा माननेवाली पूरी मनुष्यजाति इससे फायदा उठाएगी जब परमेश्वर की इच्छा साकार होकर हकीकत का रूप ले लेती है। कोई भी इसे रोक नहीं सकेगा क्योंकि “सातवें दिन” पर परमेश्वर की आशीष है और उसने इसे “पवित्र” ठहराया है। आज्ञा माननेवाली मनुष्यजाति के लिए क्या ही शानदार आशा!
इस्राएल परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश नहीं कर पाया
८. कब और किस तरह इस्राएली सब्त मनाने लगे?
८ इस्राएल की जाति ने काम और आराम के लिए यहोवा के इंतज़ाम से फायदा उठाया। सीनै पर्वत पर इस्राएलियों को व्यवस्था देने से पहले, परमेश्वर ने उन्हें मूसा के ज़रिए कहा: “देखो, यहोवा ने जो तुम को विश्राम [सब्त] का दिन दिया है, इसी कारण वह छठवें दिन को दो दिन का भोजन तुम्हें देता है; इसलिये तुम अपने अपने यहां बैठे रहना, सातवें दिन कोई अपने स्थान से बाहर न जाना।” इसका नतीजा यह हुआ कि “लोगों ने सातवें दिन विश्राम किया।”—निर्गमन १६:२२-३०.
९. इस्राएली लोगों को सब्त का नियम बेशक क्यों पसंद आया?
९ यह इंतज़ाम इस्राएलियों के लिए नया था, जिन्हें जुम्मा-जुम्मा मिस्र की गुलामी से छुड़ाया गया था। हालाँकि मिस्र और दूसरे देशों के लोग समय को पाँच से दस दिन की अवधि में मापते थे, फिर भी इसकी गुंजाइश काफी कम ही है कि इन गुलाम इस्राएलियों को आराम करने के लिए एक दिन भी दिया जाता था। (निर्गमन ५:१-९ से तुलना कीजिए।) सो इस नतीजे पर पहुँचना तर्कसंगत है कि इस्राएल के लोगों को यह बदलाव पसंद आया। सब्त की माँग को बोझ या बंदिश समझने के बजाय, उन्हें इसको मनाने से खुश होना चाहिए था। असलियत में, परमेश्वर ने बाद में कहा कि सब्त उन्हें मिस्र में अपनी गुलामी की और उसके द्वारा उन्हें छुड़ाए जाने की याद दिलाएगा।—व्यवस्थाविवरण ५:१५.
१०, ११. (क) आज्ञाकारी होने के द्वारा, इस्राएली किस बात का आनंद उठाने की आशा कर सकते थे? (ख) परमेश्वर के विश्राम में इस्राएली क्यों प्रवेश नहीं कर पाए?
१० अगर मूसा के साथ मिस्र से बाहर आनेवाले इस्राएली आज्ञाकारी रहे होते, तो उनके पास उस प्रतिज्ञात “देश में” जाने का विशेषाधिकार होता “जिस में दूध और मधु की धारा बहती है।” (निर्गमन ३:८) वहाँ उन्हें सिर्फ सब्त के दिन ही नहीं, बल्कि ज़िंदगी भर असली आराम मिला होता। (व्यवस्थाविवरण १२:९, १०) मगर ऐसा नहीं हुआ। उनके बारे में प्रेरित पौलुस ने लिखा: “भला किन लोगों ने सुनकर क्रोध दिलाया? क्या उन सब ने नहीं, जो मूसा के द्वारा मिसर से निकले थे? और वह चालीस वर्ष तक किन लोगों से रूठा रहा? क्या उन्हीं से नहीं, जिन्हों ने पाप किया, और उन की लोथें जंगल में पड़ी रहीं? और उस ने किन से शपथ खाई, कि तुम मेरे विश्राम में प्रवेश करने न पाओगे: केवल उन से जिन्हों ने आज्ञा न मानी? सो हम देखते हैं, कि वे अविश्वास के कारण प्रवेश न कर सके।”—इब्रानियों ३:१६-१९.
११ हमारे लिए कितना बड़ा सबक! यहोवा में उनके अविश्वास की वज़ह से, उस पीढ़ी को वो विश्राम नहीं मिला जिसका वादा उनसे किया गया था। इसके बजाय, वे लोग वीराने में ही नाश हो गए। वे समझ नहीं पाए कि वे इब्राहीम के वंशज होने के नाते, पृथ्वी की सभी जातियों पर आशीष देने की परमेश्वर की इच्छा से करीबी से जुड़े हुए थे। (उत्पत्ति १७:७, ८; २२:१८) परमेश्वर की इच्छा के तालमेल में काम करने के बजाय, उन लोगों का ध्यान अपनी दुनियावी और स्वार्थी इच्छाओं की वज़ह से पूरी तरह से हट गया था। ऐसा हो कि हम कभी ऐसे झमेले में न पड़ें!—१ कुरिन्थियों १०:६, १०.
विश्राम बाकी है
१२. पहली-सदी के मसीहियों के लिए अब भी कौन-सी आशा थी, और वे इसे कैसे पा सकते थे?
१२ अविश्वास की वज़ह से परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश करने की इस्राएल की नाकामी की ओर इशारा करने के बाद, पौलुस ने अपना ध्यान संगी विश्वासियों की ओर मोड़ा। जैसे इब्रानियों ४:१-५ में बताया गया है, पौलुस ने उनका हौसला बढ़ाया कि परमेश्वर के “विश्राम में प्रवेश करने की प्रतिज्ञा अब तक है।” पौलुस ने उनसे आग्रह किया कि “सुसमाचार” में विश्वास करें क्योंकि “हम जिन्हों ने विश्वास किया है, उस विश्राम में प्रवेश करते हैं।” क्योंकि यीशु के छुड़ौती बलिदान के द्वारा व्यवस्था पहले ही निकाल दी गयी थी, पौलुस यहाँ सब्त के द्वारा दिए गए शारीरिक विश्राम की बात नहीं कर रहा था। (कुलुस्सियों २:१३, १४) उत्पत्ति २:२ और भजन ९५:११ की बात को दोहराकर, पौलुस इब्रानी मसीहियों को परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश करने के लिए कह रहा था।
१३. भजन ९५ का हवाला देते हुए पौलुस ने शब्द “आज” की ओर क्यों ध्यान खींचा?
१३ परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश करने की गुंजाइश को इब्रानी मसीहियों के लिए “सुसमाचार” होना था, ठीक जैसे उनसे पहले सब्त के विश्राम को इस्राएलियों के लिए “सुसमाचार” होना था। सो, पौलुस ने अपने संगी विश्वासियों से कहा कि वही गलती न दोहराएँ जो इस्राएलियों ने वीराने में की थी। अब जो भजन ९५:७, ८ है, उसका हवाला देते हुए, उसने शब्द “आज” की ओर ध्यान खींचा, हालाँकि सृष्टि से विश्राम किए परमेश्वर को बड़ा अरसा गुज़र चुका था। (इब्रानियों ४:६, ७) पौलुस के मन में क्या था? यह कि ‘सातवाँ दिन,’ जिसे परमेश्वर ने पृथ्वी और मनुष्यजाति के लिए अपने उद्देश्य को पूरा होने के लिए अलग रखा था, वो अब भी चल रहा था। सो, उसके संगी मसीहियों के लिए यह बहुत ही ज़रूरी था कि स्वार्थी कामों में मशरूफ हो जाने के बजाय उस उद्देश्य के अनुसार काम करें। उसने फिर एक बार चेतावनी दी: “अपने मनों को कठोर न करो।”
१४. पौलुस ने कैसे दिखाया कि परमेश्वर का “विश्राम” अब भी बाकी है?
१४ इसके अलावा, पौलुस ने दिखाया कि जिस “विश्राम” का वादा किया गया था, वो यहोशू के नेतृत्व के अधीन बस प्रतिज्ञात देश में बस जाने की बात नहीं थी। (यहोशू २१:४४) “यदि यहोशू उन्हें विश्राम में प्रवेश कर लेता,” पौलुस ने तर्क किया, “तो उसके बाद दूसरे दिन की चर्चा न होती।” इस बात के मद्देनज़र पौलुस ने आगे कहा: “परमेश्वर के लोगों के लिये सब्त का विश्राम बाकी है।” (इब्रानियों ४:८, ९) ये “सब्त का विश्राम” क्या है?
परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश कीजिए
१५, १६. (क) वाक्यांश “सब्त का विश्राम” की क्या अहमियत है? (ख) ‘अपने कामों से विश्राम’ करने का अर्थ क्या है?
१५ वाक्यांश “सब्त का विश्राम” का अनुवाद यूनानी शब्द “सब्त मनाना” से किया गया है। प्रॉफॆसर विलियम लेन कहता है: “इस वाक्यांश को इसका खास अर्थ सब्त के निर्देश से मिला जो यहूदीवाद में निर्ग २०:८-१० के आधार पर विकसित हुआ, जहाँ दोनों, विश्राम और स्तुति पर ज़ोर दिया गया था . . . [ये] त्योहार और खुशी के खास पहलू पर ज़ोर देता है, जो परमेश्वर के प्रति श्रद्धा और स्तुति से व्यक्त होता है।” सो जिस विश्राम का वादा किया गया है वो बस काम से छुट्टी नहीं है। यह थका देनेवाले, उद्देश्यहीन काम से ऐसी खुशी-भरी सेवा में बदलाव है जो परमेश्वर का आदर करती है।
१६ यह पौलुस के आगे के शब्दों से पता चलता है: “क्योंकि जिस ने उसके विश्राम में प्रवेश किया है, उस ने भी परमेश्वर की नाईं अपने कामों को पूरा करके विश्राम किया है।” (इब्रानियों ४:१०) परमेश्वर ने सातवें सृजनात्मक दिन को आराम किया, मगर इसलिए नहीं कि वो थका हुआ था। इसके बजाय, उसने पृथ्वी पर सृष्टि का अपना कार्य रोक दिया जिससे कि उसकी हस्तकला खिलकर अपनी पूरी महिमा में आए, और उसकी स्तुति और सम्मान हो। परमेश्वर की सृष्टि के तौर पर, हमें भी उस प्रबंध में फिट होना चाहिए। हमें “अपने कामों को पूरा करके विश्राम” करना चाहिए, यानी उद्धार पाने के लिए परमेश्वर के आगे खुद को अपने कामों के ज़रिए लायक ठहराने की कोशिशें नहीं करनी चाहिए। इसके बजाय, हमें यह विश्वास करना चाहिए कि हमारा उद्धार यीशु मसीह के छुड़ौती बलिदान पर निर्भर है, जिसके ज़रिए फिर एक बार सभी चीज़ों को परमेश्वर के उद्देश्य के सामंजस्य में लाया जाएगा।—इफिसियों १:८-१४; कुलुस्सियों १:१९, २०.
परमेश्वर का वचन प्रबल है
१७. कौन-सा रास्ता शारीरिक इस्राएलियों ने अपनाया था, जिससे हमें दूर रहना चाहिए?
१७ इस्राएली लोग आज्ञा न मानने की वज़ह से और अविश्वास की वज़ह से परमेश्वर के प्रतिज्ञात विश्राम में प्रवेश नहीं कर पाए। सो, पौलुस ने इब्रानी मसीहियों से आग्रह किया: “सो हम उस विश्राम में प्रवेश करने का [पूरा-पूरा] प्रयत्न करें, ऐसा न हो, कि कोई जन उन की नाईं आज्ञा न मानकर गिर पड़े।” (इब्रानियों ४:११) पहली-सदी के अधिकांश यहूदियों ने यीशु पर विश्वास नहीं किया, और उनमें से कई लोगों ने काफी दुःख-तकलीफ सहा जब सा.यु. ७० में यहूदी रीति-व्यवस्था समाप्त हुई। कितना ज़रूरी है कि हम आज परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर विश्वास करें!
१८. (क) परमेश्वर के वचन में विश्वास करने के लिए पौलुस ने कौन-कौन-से कारण दिए? (ख) कैसे परमेश्वर का वचन “हर एक दोधारी तलवार से भी बहुत चोखा है”?
१८ यहोवा के वचन में विश्वास करने के लिए हमारे पास जायज़ कारण हैं। पौलुस ने लिखा: “परमेश्वर का वचन जीवित, और प्रबल, और हर एक दोधारी तलवार से भी बहुत चोखा है, और जीव, और आत्मा को, और गांठ गांठ, और गूदे गूदे को अलग करके, वार पार छेदता है; और मन की भावनाओं और विचारों को जांचता है।” (इब्रानियों ४:१२) जी हाँ, परमेश्वर का वचन, या संदेश “हर एक दोधारी तलवार से भी बहुत चोखा है।” इब्रानी मसीहियों को याद रखने की ज़रूरत थी कि उनके पूर्वजों के साथ क्या हुआ था। यहोवा के न्याय को नज़रअंदाज़ करके, कि वे वीराने में ही मर मिटेंगे, उन्होंने प्रतिज्ञात देश में प्रवेश करने की कोशिश की। मगर मूसा ने उन्हें आगाह किया: “वहां तुम्हारे आगे अमालेकी और कनानी लोग हैं, सो तुम तलवार से मारे जाओगे।” इस्राएली जब हठपूर्वक आगे बढ़ चले, तब “अमालेकी और कनानी जो उस पहाड़ पर रहते थे उन पर चढ़ आए, और होर्मा तक उनको मारते चले आए।” (गिनती १४:३९-४५) यहोवा का वचन किसी भी दोधारी तलवार से ज़्यादा चोखा है और जो कोई जानबूझकर इसे नज़रअंदाज़ करता है वो यकीनन इसका अंजाम भुगतेगा।—गलतियों ६:७-९.
१९. परमेश्वर का वचन कितनी शक्तिशाली रूप से “छेदता” है, और परमेश्वर को अपना लेखा देने की बात को हमें क्यों कबूल करना चाहिए?
१९ कितने शक्तिशाली रूप से परमेश्वर का वचन “जीव, और आत्मा को, और गांठ गांठ, और गूदे गूदे को अलग करके, वार पार छेदता है”! वह व्यक्ति के विचारों व मंसाओं को बेधता है, मानो लाक्षणिक तौर पर हड्डियों के सबसे अंदर के गूदे तक भेद डालता है! हालाँकि मिस्र की गुलामी से छुड़ाए गए इस्राएली व्यवस्था को मानने के लिए राज़ी हुए थे, मगर यहोवा जानता था कि वे तहेदिल से उसके इंतज़ामों और माँगों की कदर नहीं करते थे। (भजन ९५:७-११) उसकी इच्छा पूरी करने के बजाय, वे अपने शरीर की अभिलाषाओं को ही तृप्त करने के बारे में चिंतित थे। इसीलिए, वे परमेश्वर के प्रतिज्ञात विश्राम में प्रवेश नहीं कर पाए, और वीराने में ही मर मिटे। हमें इस बात को अपने ज़हन में उतारना है, क्योंकि “जिसको हमें लेखा देना है, [उस परमेश्वर की] दृष्टि में कोई भी प्राणी [सृष्टि] छिपा नहीं। उसकी आंखों के सामने सब कुछ खुला और नग्न है।” (इब्रानियों ४:१३, NHT) सो आइए हम यहोवा के प्रति अपने समर्पण को पूरा करें ताकि ‘पीछे हटकर नाश न हो जाएं।’—इब्रानियों १०:३९.
२०. भविष्य में क्या रखा है, और परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश करने के लिए हमें अभी क्या करना चाहिए?
२० हालाँकि ‘सातवाँ दिन’—परमेश्वर का विश्राम दिन—अब भी चल रहा है, वह पृथ्वी और मनुष्यजाति के सिलसिले में अपने उद्देश्य को पूरा करने के प्रति सतर्क है। बहुत ही जल्द, मसीहाई राजा, यीशु मसीह, परमेश्वर की इच्छा का विरोध करनेवाले उन तमाम लोगों का पृथ्वी पर से सफाया करने का कार्य करेगा, जिनमें शैतान अर्थात् इब्लीस भी शामिल है। मसीह के हज़ार वर्ष के राज्य के दौरान, यीशु और उसके १,४४,००० सह-शासक पृथ्वी और मनुष्यजाति को उस मुकाम तक पहुँचाएँगे जो परमेश्वर का उद्देश्य था। (प्रकाशितवाक्य १४:१; २०:१-६) हमारे लिए यह साबित करने का समय अभी है कि हमारा जीवन यहोवा परमेश्वर की इच्छा पूरी करने पर केंद्रित है। खुद को परमेश्वर के सामने अपने कामों के ज़रिए लायक ठहराने और अपनी ही हितों को बढ़ावा देने के बजाय, अब हमारे लिए वक्त आ गया है कि ‘अपने कामों से विश्राम’ करें और राज्य हितों के लिए पूरे दिल से सेवा करें। ऐसा करने के द्वारा और अपने स्वर्गीय पिता यहोवा के प्रति वफादार रहने के द्वारा, हमारे पास अभी और हमेशा-हमेशा के लिए परमेश्वर के विश्राम के फायदों का आनंद उठाने का विशेषाधिकार होगा।
क्या आप समझा सकते हैं?
◻ किस उद्देश्य से परमेश्वर ने “सातवें दिन” विश्राम किया?
◻ इस्राएली किस विश्राम का आनंद उठा सकते थे, लेकिन वे उसमें प्रवेश क्यों नहीं कर पाए?
◻ परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश करने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
◻ परमेश्वर का वचन कैसे जीवित, शक्तिशाली, और हर एक दोधारी तलवार से भी बहुत चोखा है?
[पेज 16, 17 पर तसवीर]
इस्राएलियों ने सब्त तो मनाया, मगर वे परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश नहीं कर पाए। क्या आप जानते हैं क्यों?