अन्तर्दृष्टि के लिए यहोवा की ओर देखो
“मैं तुझे अन्तर्दृष्टि दूंगा, और जिस मार्ग से तुझे चलना होगा उस में तेरी अगुवाई करूंगा।”—भजन संहिता ३२:८, न्यू.व.
१. हमारे फ़ैसले विवेकपूर्ण होंगे या नहीं, यह निर्धारित करनेवाले कुछ कारण क्या हैं? (व्यवस्थाविवरण ३२:७, २९ से तुलना करें।)
प्रत्येक दिन हम फ़ैसलों का सामना करते हैं—कुछ प्रतीयमानतः छोटे, और कुछ प्रत्यक्षतः महत्तवपूर्ण। क्या हमारे फ़ैसले विवेकपूर्ण होंगे? यह मुख्य रूप से इस बात पर निर्भर होगा कि हम अविचारी हैं या हम कुछ कहने या करने से पहले विचार करते हैं। किन्तु, ऐसे कई विषय हैं जिन में विवेकपूर्ण फ़ैसले करने के लिए यह आवश्यक होता है कि हम में प्रकट बात के आगे देख सकने की क्षमता हो। इस से शायद यह आवश्यक होगा कि हम यह जानें कि इन वर्तमान विश्व घटनाओं का परिणाम क्या होगा, यहाँ तक कि हम उन बातों के बारे में अवगत रहें जो आत्मिक क्षेत्र में हो रही हैं। क्या हम यह कर सकते हैं? क्या यह किसी भी मनुष्य के लिए एक ऐसी रीति से करना शक्य है, जो केवल अटकलबाज़ी न हो?
२. ज़िन्दगी में एक सफ़ल मार्ग से चलने के लिए, हमें किस मदद की ज़रूरत है, और क्यों? (नीतिवचन २०:२४)
२ मानव सचमुच ही उल्लेखनिय मानसिक सामर्थ्य से सम्पन्न हैं, किन्तु परमेश्वर से मदद नम्रतापूर्वक स्वीकार किए बिना जीवन में एक सफ़ल मार्ग से चलने की उनमें योग्यता नहीं है। जैसे कि प्रेरित भविष्यवक्ता यिर्मयाह ने लिखा: “हे यहोवा, मैं जान गया हूं, कि मनुष्य का मार्ग उसके वश में नहीं है, मनुष्य चलता तो है, परन्तु उसके डग उसके अधीन नहीं हैं।”—यिर्मयाह १०:२३.
३. अगर हम मार्गदर्शन के लिए यहोवा की ओर देखने से रह जाएं, तो परिणाम क्या होनेवाला है? (उत्पत्ति ३:४-६, १६-२४ से तुलना करें।)
३ अगर हम उस तथ्य की अवज्ञा करेंगे और क्या विवेकी या अविवेकी है, क्या सही या गलत है, निश्चित करने के लिए अपने आप पर या दूसरे मनुष्यों पर भरोसा करेंगे तो परिणाम क्या होगा? सांसारिक तर्कणा से मार्गदर्शित होने के कारण, ऐसे समय आएंगे जब हम उस बात को अच्छी दृष्टि से देखेंगे जिसे परमेश्वर बुरा कहते हैं, और जब हम एक ऐसे मार्ग को विवेकपूर्ण कहेंगे जिसे परमेश्वर मूर्खतापूर्ण कहते हैं। (यशायाह ५:२०) यद्यपि हम यह शायद अनजाने में करते होंगे, दूसरों के लिए हम ठोकर का कारण बन सकते हैं। (१ कुरिन्थियों ८:९ से तुलना करें।) और जो लोग मार्गदर्शन के वास्ते यहोवा की ओर देखने से सतत रह जाते हैं, उन पर आनेवाले उस अन्तिम परिणाम के बारे में उनका वचन कहता है: “ऐसा मार्ग है, जो मनुष्य को ठीक देख पड़ता है, परन्तु उसके अन्त में मृत्यु ही मिलती है।”—नीतिवचन १४:१२.
४. अपने सेवकों से यहोवा दानशील रूप से कौनसी सहायता देने की प्रतिज्ञा करते हैं? (यिर्मयाह १०:२१ से तुलना करें।)
४ इसे ध्यान में रखते हुए, हमें किस बात की ज़रूरत है? स्पष्ट रूप से कहें तो, हमें उस मदद की आवश्यकता है जो यहोवा देते हैं। प्रोत्साहन देते हुए वह कहते हैं: “मैं तुझे अन्तर्दृष्टि दूँगा और जिस मार्ग में तुझे चलना होगा उस में तेरी अगुवाई करूँगा। मैं तुझ पर कृपादृष्टि रखूंगा और सम्मति दिया करूंगा।”—भजन संहिता ३२:८, न्यू.व.
अन्तर्दृष्ट में क्या शामिल है
५. “अन्तर्दृष्टि” क्या है?
५ यह “अन्तर्दृष्टि” वास्तव में क्या है, जैसा कि शास्त्रों में उल्लेखित है? यह एक परिस्थिति के भीतर देखने की और जो प्रकट है उसके आगे देखने की योग्यता है। थियॉलॉजिकल वर्डबुक ऑफ द ओल्ड टेस्टामेन्ट के अनुसार, जिस इब्रानी अभिव्यक्ति का अनुवाद “अन्तर्दृष्टि” किया गया है, वह मामलों के लिए “कारण के विवेकपूर्ण ज्ञान” से सम्बन्ध रखती है। यह ऐसा ज्ञान है जो एक व्यक्ति को विवेकपूर्ण रीति से कार्य करने और सफ़लता प्राप्त करने के लिए समर्थ करता है। उस मूल भाव के अनुरूप और वही इब्रानी क्रियापद की विशिष्टता व्यक्त करने के लिए, न्यू वर्ल्ड ट्रान्सलेशन ‘अन्तर्दृष्टि होना,’ इस अनुवाद के अलावा, ‘बुद्धिमानी से कार्य करना,’ ‘विवेकपूर्ण रीति से कार्य करना’ और ‘सफलता पाना,’ इन अभिव्यक्तियों का इस्तेमाल करता है।—भजन संहिता १४:२.
६. जो “अपने मुंह को बन्द रखता है,” उसके बारे में ऐसा क्यों कहा जा सकता है कि वह बुद्धि से या अन्तर्दृष्टि से काम कर रहा है?
६ इस तरह, उसके बारे में जो “अपने मुंह को बन्द रखता हैं,” कहा गया है कि वह “बुद्धि से काम करता है” या अन्तर्दृष्टि से कार्य करता है। (नीतिवचन १०:१९) वह कुछ भी कहने से पहले विचार करता है, और इस बात का ध्यान रखता है कि वह जो कहता है उसका अर्थ दूसरे लोग कैसे लेंगे, और साथ ही किसी दूसरे व्यक्ति के बारे में शायद जो बात वह कहेगा, क्या वह विवेकपूर्ण, प्रेममय, या आवश्यक होगा या नहीं। (नीतिवचन १२:१८; याकूब १:१९) इसलिए कि वह यहोवा के मार्गों के लिए प्रेम से और अपने संगी मनुष्य की मदद करने की एक वास्तविक इच्छा से प्रेरित है, वह जो भी कहता है दूसरों के लिए प्रोत्साहक है।—नीतिवचन १६:२३.
७. दाऊद बुद्धिमानी से कार्य करनेवाले एक व्यक्ति के रूप में ख्याति पाने के लिए कैसे समर्थ हुआ?
७ यिशै के पुत्र दाऊद के बारे में लिखा गया है: “जहां कहीं शाऊल दाऊद को भेजता था वहां वह जाकर बुद्धिमानी के साथ काम करता था,” अर्थात् अन्तर्दृष्टि के साथ। दाऊद ने यह पहचाना कि उसके कार्य में केवल मानवी योद्धाओं के बीच एक संघर्ष से कुछ अधिक शामिल है। उसने यह समझ लिया कि वह और उसके साथ दूसरे मनुष्य यहोवा के युद्ध लड़ रहे थे। इस तरह, दाऊद ने निर्देशन और आशीष के लिए यहोवा की ओर देखा। (१ शमूएल १७:४५; १८:५; २ शमूएल ५:१९) इसके परिणामस्वरूप, दाऊद के अभियान सफ़ल हुए।
८. मसीही यूनानी शास्त्रों में जिस क्रियापद का अनुवाद ‘अन्तर्दृष्टि होना,’ इस रूप में किया गया है, उस से और कौनसे विचार सूचित होते हैं?
८ मसीही यूनानी शास्त्रों में, जिस क्रियापद का अनुवाद ‘अन्तर्दृष्टि होना,’ इस रूप में किया गया है, उसका अनुवाद ‘बोध होना’ और, ‘महसूस करना,’ इस रूप में भी किया गया है। (रोमियों ३:११; मत्ती १३:१३-१५; इफिसियों ५:१७) परमेश्वर अपने सेवकों से जो वादा करते हैं वह ये सब करने की योग्यता है। लेकिन वह यह अन्तर्दृष्टि उन्हें कैसे देते हैं?
यहोशू ने अन्तर्दृष्टि कैसे पायी
९. प्राचीन इस्राएल में, यहोवा ने लोगों को अन्तर्दृष्टि कैसे दी?
९ प्राचीन इस्राएल में, यहोवा ने राष्ट्र को अपने नियम में उपदेश देने का कार्य लेवियों को सौंप दिया था। (लैव्यव्यवस्था १०:११; व्यवस्थाविवरण ३३:८, १०) यह नियम परमेश्वर की ओर से प्रेरित था, और जिस संघटनात्मक व्यवस्था को यह सिखाने के लिए नियुक्त किया गया था, उस पर यहोवा की आत्मा क्रियाशील थी। (मलाकी २:७) इस मार्ग से, यहोवा ने ‘इस्राएलियों को बुद्धिमान” बनाया, या उन्हें अन्तर्दृष्टि दी, जैसे कि नहेमायाह ९:२० में बताया गया है।
१०, ११. (अ) जैसे यहोशू १:७, ८ में दिखाया गया है, अन्तर्दृष्टि से कार्य करने के लिए यहोशू किस से योग्य बनता? (ब) शिक्षण के किस प्रबन्ध की क़दर करना यहोशू के लिए महत्त्वपूर्ण था? (क) यहोशू की ओर से कौनसा व्यक्तिगत प्रयास भी ज़रूरी था?
१० लेकिन क्या इस राष्ट्र में कुछ व्यक्ति अन्तर्दृष्टि के साथ कार्य करते? अगर उन्हें ऐसा करना था, तो उनकी ओर से कुछ ज़रूरी था। जिस वक्त यहोशू को प्रतिज्ञात देश में इस्राएल को ले जाने का उत्तरदायित्व सौंपा गया, यहोवा ने उससे कहा: “इतना हो कि तू हियाव बान्धकर और बहुत दृढ़ होकर जो व्यवस्था मेरे दास मूसा ने तुझे दी है उन सब के अनुसार करने में चौकसी करना; और उस से न तो दहिने मुड़ना और न बाएं, ताकि जहां जहां तू जाए वहां वहां तू बुद्धिमानी से कार्य करे। व्यवस्था की यह पुस्तक तेरे चित्त से कभी न उतरने पाए, इसी में दिन रात ध्यान दिए रहना, ताकि जो कुछ उस में लिखा है उसके अनुसार करने की तू चौकसी करे; क्योंकि ऐसा ही करने से तेरे सब काम सुफल होंगे, और तभी तू बुद्धिमानी से कार्य करेगा।” जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद यहाँ “बुद्धिमानी से कार्य करना” किया गया है, उसका अर्थ “अन्तर्दृष्टि से कार्य करना” भी होता है।—यहोशू १:७, ८.
११ यहोवा ऐसी अन्तर्दृष्टि यहोशू को कैसे देनेवाले थे? किसी चमत्कारिक रीति से उसके मन में नहीं बैठाने वाले थे। इसकी कुँजी परमेश्वर का लिखित वचन था। यहोशू को इसे नियमित रूप से पढ़ते और उस पर मनन करते हुए, इससे अपना मन और हृदय भर देना था। यहोशू यह जानता था, कि परमेश्वर के वचन में कहा गया था, कि नियम से उपदेश लेवियों द्वारा दिया जाएगा। इसलिए, यहोशू को इस बात का महत्त्व समझना ज़रूरी था, और यह सोचकर कि उसे राष्ट्र में एक उत्तरदायित्वपूर्ण स्थान है, उसे अपने आप को अलग नहीं रखना था, मानो वह यह सब कुछ अकेले ही हल कर सकता था। (नीतिवचन १८:१) परमेश्वर के लिखित वचन का अध्ययन करने में यहोशू को अध्यवसायी बनना महत्त्वपूर्ण था। उसके किसी भी भाग की उपेक्षा किए बग़ैर, अगर वह उसका अध्ययन करता, और अगर उसका पालन करता, तभी वह अन्तर्दृष्टि से कार्य करता।—१ राजा २:३ से तुलना करें।
आज यहोवा अन्तर्दृष्टि कैसे देते हैं
१२. उस अन्तर्दृष्टि से लाभ उठाने के लिए जो यहोवा हमारे लिए उपलब्ध कराते हैं, किन तीन चीज़ों की ज़रूरत है?
१२ हमारे समय तक, यहोवा अपने सेवकों को वह निर्देशन प्रदान करते आए हैं जो उन्हें विवेकपूर्ण रीति से कार्य करने के लिए ज़रूरी है। उस निर्देशन से लाभ उठाने के लिए, हम से व्यक्तिगत रूप से कई बातों की अपेक्षा की जाती है: (१) जैसे यहोशू ने किया था, वैसे हमें यहोवा के संघटन की क़दर करनी चाहिए। हमारे विषय में, ऐसी क़दर में मसीही मण्डली के अभिषिक्त व्यक्ति, “विश्वसयोग्य और बुद्धिमान दास” और उसके शासी निकाय के साथ सहयोग देना शामिल है। (मत्ती २४:४५-४७; प्रेरितों के काम १६:४ से तुलना करें।) और इस क़दर में सभा उपस्थिति में नियमितता सम्बद्ध है। (इब्रानियों १०:२४, २५) (२) हमें परमेश्वर के वचन और “दास” वर्ग द्वारा प्रदान किए गए अन्य प्रकाशन, जिनसे इस वचन को समझने में मदद होती है, का व्यक्तिगत अध्ययन करने में अवश्य अध्यवसायी होना चाहिए। (३) हम जो बातें सीखते हैं, उसे हमारी अपनी ज़िन्दगी में कैसे लागू किया जा सकता है और दूसरों की मदद करने के लिए कैसे उपयोग किया जा सकता है, इस पर मनन करने के लिए समय निकालना भी हमारे लिए महत्त्वपूर्ण है।
१३. यिर्मयाह ३:१५ में अभिलिखित प्रतिज्ञा का अर्थ क्या है?
१३ वह हमारे समय में हमें किस प्रकार का निरीक्षण और आध्यात्मिक भरण-पोषण प्रदान करते, इसके बारे में, यहोवा ने यिर्मयाह ३:१५ में कहा: “और मैं तुम्हें अपने मन के अनुकूल चरवाहे दूंगा, जो ज्ञान और बुद्धि से तुम्हें चराएंगे।” सचमुच, यह आध्यात्मिक भरण-पोषण कार्यक्रम हमें परिस्थितियों का अवलोकन करने और सफ़लता पाने के लिए कौनसा मार्ग अपनाना है, यह समझने के लिए उल्लेखनीय योग्यता देता। इस अन्तर्दृष्टि का स्रोत कौन है? यहोवा परमेश्वर।
१४. ‘विश्वासयोग्य दास’ वर्ग के पास अन्तर्दृष्टि क्यों है?
१४ ‘विश्वासयोग्य दास’ वर्ग के पास यह अन्तर्दृष्टि क्यों है? क्योंकि उन्होंने परमेश्वर के वचन को अपनी प्रमुख चिन्ता बनायी है और वे उनके निर्देशन का पालन करते हैं। इसके अतिरिक्त, चूँकि वे यहोवा के निर्देशन के अधीन हुए हैं, उन्होंने अपने उद्देश्य के अनुरूप उनका उपयोग करते हुए, उन्हें अपनी आत्मा दी है। (लूका १२:४३, ४४; प्रेरितों के काम ५:३२) जैसे प्रेरित भजनकार ने बहुत समय पहले लिखा था: “मैं अपने सब शिक्षकों से भी अधिक समझ (अन्तर्दृष्टि, न्यू.व.) रखता हूं, क्योंकि मेरा ध्यान तेरी चितौनियों पर लगा है।”—भजन संहिता ११९:९९.
१५. (अ) “दास” वर्ग द्वारा संगत रूप से दी जानेवाली सलाह का सारांश क्या है? (ब) कई वर्ष पहले, उस “दास” वर्ग के लिए, रक्त-आधान के विषय में मसीही दृष्टिकोण से सम्बन्धित आवश्यक “ज्ञान और अन्तर्दृष्टि” प्रदान करना कैसे सम्भव था?
१५ क्या करना सही है, इस सम्बन्ध में आनेवाले प्रश्नों के उत्तर में “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” ने हमेशा सलाह दी है: ‘बाइबल में जो लिखा है उसे लागू करो। यहोवा पर भरोसा रखो।’ (भजन संहिता ११९:१०५; नीतिवचन ३:५, ६) जब रक्त-आधान को एक मान्य डाक्टरी उपचार के रूप में विचार किया जाने लगा और यहोवा के गवाहों के सम्मुख एक वाद-विषय बन गया, तब जुलाई १, १९४५ के द वॉचटावर, में खून की पवित्रता के बारे में मसीही दृष्टिकोण समझा दिया गया। उस अंक में दिखाया गया कि दोनों, पशुओं का और मनुष्यों का खून ईश्वरीय वर्जन में शामिल था। (उत्पत्ति ९:३, ४; प्रेरितों के काम १५:२८, २९) शारीरिक गौण-प्रभावों पर इस लेख में चर्चा नहीं की गयी थी; उस समय इनके बारे में ज्ञान बहुत ही सीमित था। वास्तविक वाद-विषय परमेश्वर के नियम की ओर आज्ञाकारिता थी, और आज भी वही है। आज, कई लोग रक्त-आधान अस्वीकार करने की व्यावहारिक बुद्धिमानी समझ रहे हैं और बढ़ती हुई संख्या में लोग ऐसा ही कर रहे हैं। लेकिन हमेशा से, यहोवा के गवाह अन्तर्दृष्टि से कार्य कर सके हैं क्योंकि वे उनके सृष्टिकर्ता पर भरोसा रखते हैं, जो कि खून के बारे में किसी भी मनुष्य से कहीं ज़्यादा जानते हैं।
१६. द वॉचटावर में लैंगिक नैतिकता, एक-पालक परिवार, और उदासी जैसे विषयों पर दी गयी सलाह ठीक वही जो ज़रूरी है कैसे साबित हुई है?
१६ लैंगिक नैतिकता के सम्बन्ध में जैसे जैसे उनमुक्त मनोवृत्तियाँ बढ़ती हुई रीति से सुप्रकट हो रही हैं, द वॉचटावर ने प्रचलित मार्ग का समर्थन करने के बजाय, सही शास्त्रीय मार्गदर्शन प्रदान किया है। यह बहुतों को यहोवा के साथ के उनके बहुमूल्य सम्बन्ध की रक्षा करने में, और क्षणिक सुख के बजाय अनन्त खुशी पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मदद दे रहा है। इसी तरह, माता या पिता, किसी एक द्वारा सँभाले जानेवाले परिवारों और उदासी से संघर्ष करनेवालों की ओर केंद्रित वॉचटावर के लेखों में एक ऐसी अन्तर्दृष्टि व्यक्त है जो केवल उन्हीं लोगों को मिलना संभव है जिनके लिए यहोवा के विचार अमूल्य हैं और जो सच्चाई से प्रार्थना करते हैं: “मुझ को यह सिखा, कि मैं तेरी इच्छा क्योंकर पूरी करूं, क्योंकि मेरा परमेश्वर तू ही है!”—भजन संहिता १४३:१०; १३९:१७.a
१७. (अ) कई दशकों पहले, यहोवा के सेवक सन् १९१४ के बारे में क्या जानते थे? (ब) यद्यपि ऐसे कई बातें थीं जिनके बारे में परमेश्वर के लोगों के मन में १९१४ के बाद भी सवाल थे, वे ऐसा क्या जानते थे जिससे उनकी ज़िन्दगी में पक्का निर्देशन मिल गया?
१७ “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के द्वारा, यहोवा ने अपने सेवकों को, दशकों पहले से, यह समझने में मदद दी कि सन् १९१४ अन्य जातियों का काल समाप्त कर देगा। (लूका २१:२४, किंग जेम्स वर्शन) जैसे उन्होंने उस युग में प्रवेश किया जो पहले विश्व युद्ध के बाद आया, उनके सामने ऐसे प्रश्न आए जिन के कारण वे हैरान हुए। लेकिन वे जो भी कुछ जानते थे, वह उनके लिए विवेकपूर्ण रीति से चलने के लिए काफ़ी था। वे शास्त्रों से यह जानते थे कि इस पुरानी व्यवस्था का नाश करने के लिए परमेश्वर का निश्चित समय आ गया था; इसलिए उस में आशा रखना या उसके भौतिकवादी सफ़लता के मानदण्डों को अपनी ज़िन्दगी नियंत्रित करने देना मूर्खता होगी। वे यह भी जानते थे कि यहोवा का राज्य मनुष्यजाति को दुःख देनेवाली सभी समस्याओं का एकमात्र वास्तविक हल था। (दानिय्येल २:४४; मत्ती ६:३३) उन्होंने यह स्पष्ट रूप से देखा कि यहोवा के अभिषिक्त राजा, यीशु मसीह, और उसके राज्य की घोषणा करना सभी सच्चे मसीहियों की ज़िम्मेवारी है। (यशायाह ६१:१, २; मत्ती २४:१४) १९२५ में, एक वॉचटावर लेख “बर्त ऑफ द नेशन” (राष्ट्र का जन्म) के द्वारा, उन्हें प्रकाशितवाक्य के १२वें अध्याय पर एक अधिक स्पष्ट समझ से सुदृढ़ किया गया; इसलिए अब वे मानवी आँखों के लिए अदृश्य, स्वर्ग में जो भी हो रहा था, उसे समझने लगे। ऐसी अन्तर्दृष्टि से उनकी ज़िन्दगी में यथार्थ मार्गदर्शन मिला।
१८. हमारे पास अब कौनसा ख़ास अनुग्रह और उत्तरदायित्व है, और हमें अपने आप से कौनसा प्रश्न पूछना चाहिए?
१८ विश्वास से कार्य करते हुए, वे कुछ ही हज़ारों ने, जो उस वक्त यहोवा की सेवा उनके गवाहों के रूप में कर रहे थे, दुनिया के सभी हिस्सों में परमेश्वर के स्थापित राज्य के सुसमाचार के प्रचार कार्य में अगुआई की। इसके परिणामस्वरूप, लाखों लोग यहोवा और उनके प्रेम को जानने लगे हैं और अनन्त जीवन की आशा रखते हैं। हम सभों को यह दिखाया गया है, जिन्होंने उनके प्रेममय प्रयासों के परिणामस्वरूप सच्चाई पायी है, कि हमें भी उस कार्य में भाग लेने का ख़ास अनुग्रह और उत्तरदायित्व है, और हमें उन सब को एक परिपूर्ण गवाही देनी चाहिए, जिनके पास हम पहुँच सकते हैं और उस वक्त तक ऐसा करते रहना चाहिए, जब यहोवा कहे कि कार्य समाप्त हुआ है। (प्रकाशितवाक्य २२:१७; प्रेरितों के काम २०:२६, २७ से तुलना करें।) क्या जिस रीति से आप अपना जीवन इस्तेमाल कर रहे हैं, यह प्रमाण देता है कि आप उस अन्तर्दृष्टि की क़दर करते हैं, जो यहोवा ने अपनी संघटन के द्वारा दी है?
१९. (अ) एक ऐसे व्यक्ति का उदाहरण दें जिसकी ज़िन्दगी उस अन्तर्दृष्टि के लिए क़दर प्रदर्शित करती है जो यहोवा अपने संघटन द्वारा देते हैं। (ब) उस उदाहरण से हम क्या सीख सकते हैं?
१९ इस पृथ्वी के सभी भागों से व्यक्तियों की एक बड़ी भीड़ के जीवन यह प्रमाण देते हैं कि उनके उदाहरण में इसका उत्तर हाँ है। उदाहरण के लिए, जॉन कटफोर्त पर ग़ौर कीजिए। कुछ ४९ वर्ष पहले, उन्होंने उस शास्त्रीय सलाह पर गंभीरतापूर्वक विचार किया, जिसकी ओर ‘विश्वासयोग्य दास’ ध्यान केंद्रित कर रहा था, जैसा कि अब भी करता है, अर्थात, “इसलिये पहिले तुम उसके राज्य और धर्म की खोज करते रहो तो ये सब वस्तुएं भी तुम्हें मिल जाएंगी। सो कल के लिये चिन्ता न करो।” (मत्ती ६:३३, न्यू.व.) यहोवा की सेवकाई में सालों के अनुभव के बाद, भाई कटफोर्त कहते हैं: ‘उन कुछ बातों में से एक बात जो मेरे मन में एक गहरा प्रभाव डाल चुकी है, यह है कि यहोवा को पृथ्वी पर एक संघटन है जिसे वह निर्देशित करते हैं, और यह कि मैं एक व्यक्ति के नाते उस संघटन के साथ कार्य कर सकता हूँ, और यह भी कि अगर मैं उनके नेतृत्व और निर्देशन का पूरा पालन करूँगा, तो मुझे शांति, संतोष, तुष्टि, और कई मित्रों के अतिरिक्त, कई अन्य शानदार आशीषें मिलेंगी।’ उनका यह विश्वास बार बार सुदृढ़ किया गया क्योंकि उन्होंने संयुक्त राज्य अमरीका, कॅनेडा, ऑस्ट्रेलिया, और पॅपुआ न्यू गिनी में आध्यात्मिक आशिषों से भरी ज़िन्दगी का आनन्द लिया है।b सचमुच, हम सभों के लिए सब से विवेकपूर्ण रास्ता वही है जो यहोवा के उस मार्ग की क़दर करता है जिसके द्वारा वह लोगों को अन्तर्दृष्टि देते हैं।—मत्ती ६:१९-२१.
अन्तर्दृष्टि के अभाव से बचे रहना
२०, २१. (अ) कुछ व्यक्तियों ने उस ईश्वरीय अन्तर्दृष्टि को कैसे खो दिया जो उनके पास कभी थी? (ब) एक हानिकर मार्ग पर चलने से बचने के लिए हमें किस बात की मदद होगी?
२० वह अन्तर्दृष्टि जो यहोवा देते हैं, एक ऐसा खज़ाना है जिसकी क़दर की जानी चाहिए। लेकिन हमें इस बात से अवगत रहना चाहिए कि, अगर हम उस रास्ते पर चलते नहीं रहेंगे, जिस पर हम ईश्वरीय अन्तर्दृष्टि हासिल करने के योग्य बन गए, तो हम इसे खो सकते हैं। यह दुःख की बात है कि कुछों का ठीक यही अनुभव रहा है। (नीतिवचन २१:१६; दानिय्येल ११:३५) उस अनुशासन को अस्वीकार करके जो व्यक्तिगत रूप से उन पर लागू होता था, उन्होंने, जो कुछ वे कर रहे थे, उसे उचित सिद्ध करने की कोशिश की। घमण्ड उनका फन्दा बन गया। वे उन बातों को अच्छी दृष्टि से देखने लगे जिन्हें परमेश्वर का वचन बुरा कहता है, और वे यहोवा की संस्था से अलग हो गए। कितनी दुःख-भरी बात है!
२१ एक ऐसे व्यक्ति की अवस्था भजन संहिता ३६:१-३ (न्यू.व.) में वर्णन की गयी है, जहाँ हम पढ़ते हैं: “दुष्ट जन का अपराध उसके हृदय के भीतर कहता है।” अर्थात, उसी के स्वार्थी विचार और अभिलाषाएं उसे पाप की ओर ले जाते हैं। भजनकार आगे कहता है, “परमेश्वर का भय उसकी दृष्टि में नहीं है। वह अपने अधर्म के प्रगट होने और घृणित ठहरने के विषय अपने मन में चिकनी चुपड़ी बातें विचारता है। उसकी बातें अनर्थ और छल की हैं।” और उसके लिए इसका क्या परिणाम निकलता है? उसके पास ‘भलाई के काम करने के लिए अन्तर्दृष्टि अब और नहीं रहती।’ वह वास्तव में अपने आप को विश्वास दिलाता है कि वह जो कर रहा है वही सही है, और दूसरों को वैसे ही करने के लिए बहकाता है। तो फिर, यह कितना महत्त्वपूर्ण है कि हमारे पास न केवल अन्तर्दृष्टि हो, बल्कि हम उसकी रक्षा उस मार्ग की क़दर करने से करें, जिसके द्वारा यहोवा ने हमें यह पाने के योग्य बनाया है!
[फुटनोट]
a वॉचटावर पब्लिकेशन्स इन्डेक्स १९३०-१९८५ में “विवाह” (मॅरेज), “परिवार” (फॅमिलीज़), “नैतिक क्षय” (मॉरल ब्रेकडाउन), और “उदासी (मानसिक)” (डिप्रेशन [मेन्टल]) इन विषयों के नीचे देखें।
b द वॉचटावर जून १, १९५८, पृष्ठ ३३३-६ देखें।
आप क्या स्मरण करते हैं?
◻ विवेकपूर्ण फ़ैसले बनाने में हमारी मदद किस बात से होगी?
◻ “अन्तर्दृष्टि” में क्या सम्बद्ध है?
◻ हमारे समय में यहोवा अपने सेवकों को अन्तर्दृष्टि कैसे देते हैं?
◻ हमारी ओर से क्या ज़रूरी है अगर हमें यहोवा द्वारा प्रदान की गयी अन्तर्दृष्टि से पूरा-पूरा लाभ उठाना हो?
[पेज 28 पर तसवीरें]
यहोवा जो अन्तर्दृष्टि हमें देते हैं, उससे लाभ उठाने के लिए हमें उनके संघटन की क़दर करनी चाहिए, व्यक्तिगत अभ्यास में अध्यवसायी बनना चाहिए, और हम जो सीख रहे हैं, उसे कैसे लागू करना है इस पर मनन करना चाहिए