उनके विश्वास की मिसाल पर चलिए
वह “यहोवा के संग . . . बढ़ता गया”
शमूएल के कहने पर इसराएली लोग गिलगाल शहर में इकट्ठा हुए। शमूएल, परमेश्वर का एक वफादार सेवक था और बरसों से एक नबी और न्यायी के तौर पर सेवा कर रहा था। उस वक्त गरमी का मौसम था। आज के कैलेंडर के हिसाब से शायद मई या जून का महीना रहा होगा। खेतों में गेहूँ की सुनहरी फसलें कटाई के लिए तैयार खड़ी थीं। सारे इसराएली शमूएल के सामने खामोश खड़े थे। अब शमूएल ऐसा क्या कहेगा कि उसकी बातें उनके दिल को छू जाए?
इसराएलियों की आँखों पर परदा पड़ा था। वे समझ नहीं पा रहे थे कि उनके हालात कितने नाज़ुक हैं। उन्होंने शमूएल से ज़िद्द की थी कि उन पर हुकूमत करने के लिए वह एक राजा चुने। उन्हें ज़रा-भी एहसास नहीं था कि राजा की माँग कर वे यहोवा परमेश्वर और उसके नबियों की तौहीन कर रहे थे। दरअसल वे यहोवा को अपना राजा मानने से इनकार कर रहे थे! अब भला शमूएल उन्हें कैसे अपनी गलती का एहसास दिलाता ताकि वे पश्चाताप करते?
शमूएल ने भीड़ से कहा, “मेरे तो बाल पक गए और मैं बूढ़ा हो चला हूँ।” उसके सफेद बालों की वजह से उसकी बातों में वज़न था। उसने कहा, “मैं अपने बचपन से आज तक तुम्हारी अगुवाई करता आ रहा हूँ।” (1 शमूएल 11:14, 15; 12:2, NHT) हालाँकि शमूएल बूढ़ा हो गया था, लेकिन वह अपना बचपन अभी-भी भूला नहीं था। बचपन की यादें उसके दिलो-दिमाग में ताज़ा थीं। उस वक्त उसने जो फैसले लिए, उनकी वजह से वह बरसों-बरस अपने परमेश्वर यहोवा पर विश्वास बनाए रख सका और उसकी भक्ति कर सका।
शमूएल के लिए ज़िंदगी आसान नहीं थी। वह ऐसे लोगों के बीच जी रहा था, जिन्हें परमेश्वर पर रत्ती-भर विश्वास नहीं था और जो परमेश्वर के वफादार नहीं थे। उसे लगातार अपने विश्वास को बढ़ाना था और उसे बरकरार रखना था। आज हमारे लिए भी अपना विश्वास बनाए रखना एक चुनौती है, क्योंकि हम विश्वासघाती और भ्रष्ट दुनिया में जी रहे हैं। आइए देखें कि हम शमूएल की मिसाल से क्या सीख सकते हैं? चलिए, पहले उसके लड़कपन पर गौर करें।
‘बालक जो यहोवा के साम्हने सेवा टहल किया करता था’
शमूएल का बचपन अनोखे तरीके से गुज़रा। दूध छुड़ाए जाने के बाद, करीब चार साल की उम्र में वह शीलो में परमेश्वर के निवास-स्थान में सेवा करने लगा। शमूएल का घर वहाँ से तीस किलोमीटर दूर रामा में था। उसके पिता एल्काना और माँ हन्ना ने उसे एक खास सेवा के लिए यहोवा को अर्पित कर दिया था। इस तरह शमूएल जीवन-भर के लिए एक नाज़ीर बन गया।a क्या इसका यह मतलब था कि शमूएल के माँ-बाप उससे प्यार नहीं करते थे और इसलिए उन्होंने उसे अपने से दूर कर दिया था?
नहीं, ऐसी बात नहीं थी। निवास-स्थान में, शमूएल महायाजक एली के साथ काम करता था, जिस पर वहाँ के सारे कामकाज की ज़िम्मेदारी थी। यही नहीं, वहाँ कई औरतें भी थीं, जो निवास-स्थान से जुड़े काम करती थीं। तो ज़ाहिर है कि एल्काना और हन्ना जानते थे कि उनके बेटे की निवास-स्थान में अच्छी देखभाल होगी।—निर्गमन 38:8.
इतना ही नहीं, वे अपने प्यारे बेटे को कभी नहीं भूले, जो परमेश्वर से मिन्नत करने पर उन्हें मिला था। हन्ना ने यहोवा से एक बेटा माँगा था और वादा किया था कि वह हमेशा के लिए अपना बेटा उसकी पवित्र सेवा में दे देगी। अब हर साल यरूशलेम का दौरा करते वक्त हन्ना शमूएल के लिए बिन बाँह का कोट सिलकर लाती थी ताकि निवास-स्थान में सेवा करते वक्त वह उसे पहन सके। बेशक, छोटे शमूएल को अपने माता-पिता से मिलकर बेहद खुशी होती होगी। वे उसे सही मार्गदर्शन देते होंगे और बताते होंगे कि निवास-स्थान में यहोवा की सेवा करना कितना बड़ा सम्मान है। वाकई इन सब बातों से उसका हौसला बढ़ा होगा।
आज माता-पिता हन्ना और एल्काना से बहुत कुछ सीख सकते हैं। कई माँ-बाप आध्यात्मिक बातों को नज़रअंदाज़ कर अपना सारा ध्यान और ताकत बच्चों को बढ़िया-से-बढ़िया सहूलियत देने में लगा देते हैं। लेकिन शमूएल के माँ-बाप ने आध्यात्मिक बातों को पहली जगह दी और इसका शमूएल पर ज़बरदस्त असर हुआ। वह आगे चलकर परमेश्वर का वफादार सेवक बना।—नीतिवचन 22:6.
हम कल्पना कर सकते हैं कि जैसे-जैसे छोटा शमूएल बड़ा होता गया वह शीलो की आस-पास की पहाड़ियों पर घूमने जाता होगा। और जब वह इन पहाड़ियों से नीचे बसे शहर पर और दूर-दूर तक दिखनेवाली वादियों पर नज़र दौड़ाता होगा तो उसे कैसा लगता होगा। और हाँ, जब उसकी नज़र निवास-स्थान पर पड़ती होगी, तो खुशी से कैसे उसकी आँखें चमक उठती होगी और उसे फख्र होता होगा। वाकई, निवास-स्थान एक पवित्र जगह थी।b इसे करीब 400 साल पहले मूसा की निगरानी में बनाया गया था और पूरी दुनिया में सिर्फ यहीं यहोवा की शुद्ध उपासना की जाती थी।
शमूएल जैसे-जैसे बड़ा हुआ, निवास-स्थान से उसका लगाव बढ़ता गया। बाद में उसने जो ब्यौरा लिखा उसमें हम पढ़ते हैं, “शमूएल जो बालक था सनी का एपोद पहिने हुए यहोवा के साम्हने सेवा टहल किया करता था।” (1 शमूएल 2:18) शमूएल का एपोद या बिन बाँह का सादा कोट इस बात की निशानी था कि वह निवास-स्थान में याजकों की मदद करता था। हालाँकि शमूएल याजकवर्ग से नहीं था, लेकिन उसे कुछ ज़िम्मेदारियाँ दी गयी थीं। जैसे सुबह के वक्त निवास-स्थान के आँगन का दरवाज़ा खोलना और बूढ़े महायाजक एली की मदद करना। शमूएल खुशी-खुशी ये काम करता था, लेकिन आगे चलकर कुछ ऐसी बातें हुई जिससे शमूएल का मासूम दिल परेशान हो उठा। यहोवा के घर में बुरे काम होने लगे थे।
बुरे माहौल में बेदाग बने रहना
छोटी-सी उम्र से ही शमूएल को बुराई और भ्रष्टाचार से रू-ब-रू होना पड़ा। एली के दो बेटे थे जिनके नाम थे होप्नी और पीनहास। शमूएल का लिखा ब्यौरा बताता है, “एली के पुत्र तो लुच्चे थे; उन्हों ने यहोवा को न पहिचाना।” (1 शमूएल 2:12) इस आयत में दी दोनों बातों का आपस में गहरा नाता है। जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद “लुच्चे” किया गया है उसका शाब्दिक अर्थ है, “निकम्मेपन के बेटे”। होप्नी और पीनहास के लिए इन शब्दों का इस्तेमाल करना बिलकुल सही था क्योंकि उनके दिल में यहोवा के लिए ज़रा-भी इज़्ज़त नहीं थी। वे उसके धर्मी सिद्धांतों और माँगों को तुच्छ समझते थे। और यही वजह थी कि उन्होंने आगे चलकर दूसरे पाप किए।
परमेश्वर के दिए कानून में याजकों के काम और किस तरह उन्हें बलिदान चढ़ाने थे, इस बारे में साफ-साफ बताया गया था। ये बलिदान यहोवा के इंतज़ामों को दर्शाते थे जिसकी बिनाह पर लोगों को पापों की माफी मिलती थी और वे परमेश्वर की नज़र में शुद्ध ठहरते थे। साथ ही, वे परमेश्वर से आशीष और मार्गदर्शन पाने के लायक ठहरते थे। लेकिन होप्नी और पीनहास की देखा-देखी दूसरे याजकों ने भी बलिदानों की बेइज़्ज़ती करना शुरू कर दिया।c
कल्पना कीजिए शमूएल को यह सब नाइंसाफी देखकर कैसा लगता होगा, जिसे मिटाने के लिए कोई कदम नहीं उठाए जा रहे थे। उसने न जाने कितने ही गरीब, लाचार और टूटे मनवालों को पवित्र निवास-स्थान से निराश और अपमानित लौटते देखा होगा, जो यह आस लिए आते थे कि उन्हें दिलासा और हिम्मत मिलेगी। शमूएल को कैसा लगा होगा जब उसे मालूम पड़ा कि होप्नी और पीनहास यहोवा के नियमों को दरकिनार कर निवास-स्थान में सेवा करनेवाली स्त्रियों के साथ कुकर्म कर रहे हैं। (1 शमूएल 2:22) शमूएल शायद यह उम्मीद लगाए था कि एली हालात को सुधारने के लिए कुछ कदम उठाएगा।
एली इस समस्या का समाधान कर सकता था। महायाजक के नाते निवास-स्थान के सारे कामकाज का ज़िम्मा उसी के कंधों पर था। और पिता की हैसियत से उसे अपने बेटों को सुधारना था, क्योंकि वे न सिर्फ खुद का नुकसान कर रहे थे बल्कि देश के बेशुमार लोगों के लिए दुख का कारण बने हुए थे। लेकिन एली अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाने में नाकाम रहा। वह न तो एक अच्छा पिता साबित हुआ और न ही एक सही महायाजक। उसने अपने बेटों को हल्की-सी फटकार लगाकर मामला रफा-दफा कर दिया। (1 शमूएल 2:23-25) लेकिन उसके बेटों को कड़े अनुशासन की ज़रूरत थी क्योंकि वे ऐसे पाप कर रहे थे जिसके लिए वे मौत के लायक थे!
हालात इतने बिगड़ गए कि यहोवा को एली और उसके परिवार पर न्यायदंड सुनाने के लिए अपना “एक जन” यानी एक बेनाम नबी भेजना पड़ा। यहोवा ने नबी के ज़रिए एली से कहा, “तू . . . अपने पुत्रों का आदर मेरे आदर से अधिक करता है।” फिर परमेश्वर ने उसके खिलाफ भविष्यवाणी की कि उसके दुष्ट बेटे उसी दिन मारे जाएँगे और उसके परिवार को भारी दुख उठाना पड़ेगा। यही नहीं, एली अपना याजक पद खो देगा। क्या इस ज़बरदस्त चेतावनी का एली और उसके बेटों पर कोई असर हुआ? ब्यौरे में उनके पश्चाताप करने के बारे में कुछ नहीं बताया गया है।—1 शमूएल 2:27–3:1.
इन सारी दुष्टता और बुराइयों का शमूएल पर क्या असर हुआ? एली और उसके बेटों के कारनामों को पढ़ते वक्त बीच-बीच में शमूएल के बारे में बढ़िया बातें भी दी गयी है कि वह कैसे बड़ा हुआ और तरक्की करता गया। मिसाल के लिए, हम 1 शमूएल 2:18 में पढ़ते हैं, शमूएल “जो बालक था यहोवा के साम्हने सेवा टहल किया करता था।” छोटी उम्र से ही शमूएल ने परमेश्वर की सेवा करना अपनी ज़िंदगी का मकसद बना लिया था। इसी अध्याय की आयत 21 में हम एक और दिल छू लेनेवाली बात पढ़ते हैं, “शमूएल बालक यहोवा के संग रहता हुआ बढ़ता गया।” जैसे-जैसे वह बड़ा होता गया, स्वर्ग में रहनेवाले परमेश्वर के साथ उसका रिश्ता मज़बूत होता गया। सच, यहोवा के साथ ऐसा करीबी रिश्ता किसी भी तरह की बुराई से एक बड़ी सुरक्षा है।
शमूएल के लिए यह सोचना बहुत आसान था कि जब महायाजक एली और उसके बेटे पाप कर सकते हैं तो क्यों न मैं भी अपनी मन-मरज़ी करूँ। मगर किसी शख्स के बुरे काम, फिर चाहे वह ज़िम्मेदारी के पद पर क्यों न हो, हमें पाप करने की छूट नहीं देते। आज कई मसीही जवान शमूएल की मिसाल पर चलते हैं और ‘यहोवा के संग बढ़ते जाते हैं,’ ऐसे माहौल में भी जब कुछ लोग उनके आगे बुरी मिसाल रखते हैं।
शमूएल ने जो रास्ता अपनाया उसका क्या नतीजा हुआ? ब्यौरा बताता है, “शमूएल बालक बढ़ता गया और यहोवा और मनुष्य दोनों उस से प्रसन्न रहते थे।” (1 शमूएल 2:26) जी हाँ, शमूएल को लोग पसंद करते थे, खासकर वे लोग जो हालात से अच्छी तरह वाकिफ थे। इतना ही नहीं, यहोवा खुद बालक शमूएल की वफादारी को अनमोल समझता था। और शमूएल को भी यकीन था कि परमेश्वर शीलो में हो रही बुराइयों को ज़रूर मिटाएगा, मगर वह शायद सोचता होगा पता नहीं कब।
“कह, क्योंकि तेरा दास सुन रहा है”
एक रात इन सभी सवालों के जवाब मिल गए। सुबह होनेवाली थी, लेकिन बाहर अभी-भी अंधेरा था। तंबू में रखे बड़े दीपक की रौशनी रह-रहकर चमक रही थी। तभी शमूएल को एक आवाज़ सुनायी दी, जो उसका नाम पुकार रही थी। उसे लगा कि एली उसे बुला रहा है, जो बहुत बूढ़ा हो चला था और जिसकी आँखों की रौशनी कम हो गयी थी। शमूएल उठा और “दौड़कर” एली के पास गया। क्या आप मन की आँखों से देख सकते हैं कि शमूएल एली की मदद के लिए कैसे नंगे पैर फुर्ती से दौड़ा होगा? यह जानकर हमारे अंदर सिहरन दौड़ उठती है कि एली के पाप करने के बावजूद शमूएल उसे यहोवा का ठहराया महायाजक जानकर, उसके साथ इज़्ज़त और अदब से पेश आता था!—1 शमूएल 3:2-5.
शमूएल ने एली को नींद से जगाया और कहा, “क्या आज्ञा, तू ने . . . मुझे पुकारा।” लेकिन एली ने कहा कि उसने उसे नहीं बुलाया, जा वापस सो जा। इसके बाद, कई मरतबा शमूएल को आवाज़ सुनायी दी और वह हर बार दौड़ता हुआ एली के पास गया। आखिरकार एली समझ गया कि माजरा क्या है। उन दिनों में यहोवा की तरफ से दर्शन या संदेश मिलना बहुत कम हो गया था, क्योंकि इसराएल में दुष्टता बहुत बढ़ चुकी थी। लेकिन अब यहोवा अपने लोगों से दोबारा बात करना चाहता है और वह भी इस छोटे लड़के के ज़रिए! इसलिए एली ने शमूएल से कहा कि वह जाकर सो जाए और उसे बताया कि अगर दोबारा आवाज़ सुनायी दे, तो उसे ठीक-ठीक क्या कहना है। शमूएल ने एली की बात मानी और ठीक वैसा ही किया। जल्द ही उसे आवाज़ सुनायी दी, “शमूएल! शमूएल!” उसने जवाब दिया, “कह, क्योंकि तेरा दास सुन रहा है।”—1 शमूएल 3:1, 5-10.
आखिरकार, शीलो में यहोवा का एक सेवक मिल ही गया, जो उसकी बात सुनता था। शमूएल ने सारी ज़िंदगी यहोवा की बात सुनी और यह उसके जीने का तरीका बन गया। क्या आप भी यहोवा की बात सुनते हैं? यहोवा की सुनने के लिए हमें इस बात का इंतज़ार करने की ज़रूरत नहीं कि रात में स्वर्ग से कोई आवाज़ सुनायी देगी। क्योंकि एक मायने में आज हम यहोवा की आवाज़ हमेशा सुन सकते हैं। उसके वचन बाइबल के ज़रिए। जितना ज़्यादा हम परमेश्वर की सुनेंगे और उसके मुताबिक चलेंगे, उतना ज़्यादा हमारा विश्वास बढ़ता जाएगा। शमूएल के साथ भी यही हुआ।
उस रात से शमूएल की ज़िंदगी बदल गयी। वह यहोवा के साथ एक खास रिश्ते में बँध गया और परमेश्वर के नबी और प्रवक्ता के तौर पर सेवा करने लगा। छोटे शमूएल को सबसे पहला पैगाम महायाजक एली को सुनाना था। वह बहुत डर गया क्योंकि उसे एली को बताना था कि उसके परिवार के खिलाफ परमेश्वर ने जो भविष्यवाणी की है वह जल्द पूरी होनेवाली है। लेकिन उसने हिम्मत जुटाकर एली को परमेश्वर का न्यायदंड सुनाया। एली ने नम्रता से उसे कबूल किया। कुछ ही समय बाद, यहोवा की कही एक-एक बात पूरी हुई। इसराएली, पलिश्तियों से युद्ध करने निकले और उसी दिन होप्नी और पीनहास मारे गए। पलिश्तियों ने यहोवा के पवित्र संदूक को अपने कब्ज़े में कर लिया। यह खबर सुनकर एली की भी मौत हो गयी।—1 शमूएल 3:10-18; 4:1-18.
शमूएल यहोवा के वफादार नबी के तौर पर मशहूर होता गया। ब्यौरा बताता है कि “यहोवा उसके संग” था। यही नहीं यहोवा ने उसकी हर भविष्यवाणी पूरी की।—1 शमूएल 3:19.
“शमूएल ने यहोवा को पुकारा”
क्या इसराएली शमूएल की अगुवाई में चलने लगे और परमेश्वर के वफादार बन गए? नहीं। कुछ समय बाद, उन्होंने एक राजा की माँग की, जो उन पर राज कर सके। वे ज़िद्द करने लगे कि दूसरे राष्ट्रों की तरह उनके लिए भी एक इंसानी राजा चुना जाए। यहोवा के कहने पर शमूएल उनकी ज़िद्द पूरी करने के लिए तैयार हो गया। लेकिन उसे इसराएलियों को बताना था कि राजा की माँग कर उन्होंने कितना घोर पाप किया है। उन्होंने किसी इंसान को नहीं बल्कि यहोवा को अपना राजा होने से ठुकराया है। इसलिए वह लोगों को गिलगाल में इकट्ठा होने के लिए कहता है।
अब आइए हम उस तनाव-भरे माहौल में बूढ़े शमूएल के साथ हो लें, जो इसराएलियों के सामने खड़ा है। वह उन्हें अपनी वफादारी की मिसाल याद दिलाता है। फिर ब्यौरा कहता है, “शमूएल ने यहोवा को पुकारा।” उसने यहोवा से बादल गरजाने और मेंह बरसाने को कहा।—1 शमूएल 12:17, 18.
मेंह बरसाने के लिए? और वह भी गरमी के मौसम में? शायद लोगों के मन में दूर-दूर तक यह बात आयी भी न होगी। लेकिन शमूएल ने बेमौसम बारिश होने के लिए क्यों कहा? ताकि अगर लोगों के मन में ज़रा-सी भी शंका बची हो तो वह भी दूर हो जाए। फिर अचानक आसमान में काले घने बादल छाने लगे। ज़ोरदार आँधी से गेहूँ की फसलें तबाह होने लगीं। कड़कती बिजली की आवाज़ से कान फटने लगे। फिर ज़ोरों की बारिश होने लगी। यह सब देखकर “लोग यहोवा से और शमूएल से अत्यन्त डर गए।” वे समझ गए कि उन्होंने कितना गंभीर पाप किया है।—1 शमूएल 12:18, 19.
आखिरकार शमूएल की नहीं बल्कि उसके परमेश्वर यहोवा की बातें उन बागियों के दिल को छू गयी। शमूएल ने अपनी जवानी से लेकर बुढ़ापे तक अपने परमेश्वर पर विश्वास रखा। यहोवा ने उसे इसका इनाम दिया। यहोवा बदला नहीं है, आज भी वह अपने उन उपासकों का साथ निभाता है जो शमूएल की तरह उस पर विश्वास दिखाते हैं। (w10-E 10/01)
[फुटनोट]
a नाज़ीर बने रहने की मन्नत माननेवालों पर शराब पीने और बाल कटवाने की पाबंदी थी। ज़्यादातर लोग कुछ समय के लिए नाज़ीर रहने की मन्नत माँगते थे, लेकिन शिमशोन, शमूएल और यहून्ना बपतिस्मा देनेवाले को ज़िंदगी-भर के लिए नाज़ीर ठहराया गया था।
b निवास-स्थान एक आयताकार ढाँचा था, जो एक बड़े से तंबू की तरह दिखायी देता था। यह ढाँचा खास तौर पर लकड़ी से तैयार किया गया था लेकिन इसमें उम्दा-से-उम्दा चीज़ों का इस्तेमाल किया गया था जैसे, सुइसों की खाल, खूबसूरत कढ़ाईदार कपड़ा और सोने-चाँदी से मढ़ी हुई कीमती लकड़ी। निवास-स्थान, आयताकार आँगन के बीच बना हुआ था और इसी आँगन में बलि चढ़ाने के लिए एक भव्य वेदी भी थी। समय के चलते, याजकों के इस्तेमाल के लिए निवास-स्थान से सटके दूसरे कमरे भी बनाए गए थे। और ऐसा लगता है कि शमूएल शायद इन्हीं में से किसी एक कमरे में सोता होगा।
c ब्यौरे में इसकी दो मिसालें दी गयी हैं। पहली, कानून में साफ बताया गया था कि बलि के पशु का कौन-सा हिस्सा याजकों को खाने के लिए दिया जाना था। (व्यवस्थाविवरण 18:3) लेकिन निवास-स्थान में, दुष्ट याजकों ने अलग रिवाज़ बना रखा था। वे अपने सेवकों को हंडे में उबल रहे गोश्त में तीन नोंकवाला काँटा डालने के लिए कहते और जितना माँस उस काँटे में आ जाता वे उसे ले लेते थे। दूसरी, जब लोग अपने बलिदान वेदी पर चढ़ाने के लिए लाते, तो इन दुष्ट याजकों के कहने पर सेवक, लोगों को डराते-धमकाते थे और यहोवा को चर्बी चढ़ाने से पहले ही उनसे कच्चा माँस देने की ज़िद्द करते थे।—लैव्यव्यवस्था 3:3-5; 1 शमूएल 2:13-17.
[पेज 17 पर तसवीर]
अपने डर के बावजूद, शमूएल ने वफादारी से यहोवा के न्याय का संदेश एली को सुनाया
[पेज 18 पर तसवीर]
शमूएल ने विश्वास के साथ प्रार्थना की और यहोवा ने बिजली और बारिश लाकर उसका जवाब दिया