अध्याय बारह
उसने अपने परमेश्वर से दिलासा पाया
1, 2. एलियाह की ज़िंदगी के सबसे यादगार दिन में क्या-क्या हुआ?
एलियाह बारिश में दौड़ता जा रहा था, इसके बावजूद कि चारों तरफ अँधेरा गहराने लगा था। अभी यिजरेल पहुँचने के लिए उसे एक लंबा रास्ता तय करना था और वह कोई जवान नहीं था। फिर भी वह बिना थके दौड़ता जा रहा था क्योंकि ‘यहोवा ने उसे शक्ति दी थी।’ वह अपने शरीर में ऐसी ताकत महसूस कर रहा था जो उसने पहले कभी महसूस नहीं की थी। अभी-अभी वह राजा अहाब के शाही रथ से भी आगे निकल गया था।—1 राजा 18:46 पढ़िए।
2 अब वह अकेले ही खाली सड़क पर दौड़ रहा था। कल्पना कीजिए कि जब बारिश की बूँदें एलियाह के चेहरे पर पड़ती हैं तो वह किस तरह बार-बार अपनी पलकें झपकाता है। साथ ही वह अपनी ज़िंदगी के इस सबसे यादगार दिन के बारे में सोचता है। इसमें कोई शक नहीं कि इस दिन एलियाह के परमेश्वर यहोवा की और सच्ची उपासना की बड़ी जीत हुई थी! इस वक्त पीछे खड़ा करमेल पहाड़ तूफान में दिखायी नहीं दे रहा था, जहाँ यहोवा ने बड़ा चमत्कार करके एलियाह के ज़रिए बाल की उपासना को करारी हार दी थी। बाल देवता के सैकड़ों भविष्यवक्ताओं का परदाफाश हो गया कि वे दुष्ट और मक्कार हैं। उन्हें मार डाला गया, जो कि न्याय के मुताबिक बिलकुल सही था। फिर एलियाह ने यहोवा से प्रार्थना की कि साढ़े तीन साल से इसराएल देश में पड़ा सूखा खत्म हो जाए। यहोवा ने एलियाह की प्रार्थना सुन ली और बारिश होने लगी थी!—1 राजा 18:18-45.
3, 4. (क) यिजरेल जाते वक्त एलियाह ने क्यों उम्मीद की होगी कि हालात बदलेंगे? (ख) हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?
3 यिजरेल की ओर 30 किलोमीटर का लंबा रास्ता तय करते वक्त एलियाह ने उम्मीद की होगी कि अब हालात बदलेंगे। अहाब ज़रूर बदल जाएगा! आखिर उसने अपनी आँखों से क्या कुछ नहीं देखा! अब तो वह बेशक बाल की उपासना छोड़ देगा, अपनी रानी इज़ेबेल को दुष्ट काम करने से रोकेगा और यहोवा के सेवकों पर ज़ुल्म ढाना बंद कर देगा।
4 जब सबकुछ हमारे मन-मुताबिक चल रहा होता है तो ज़ाहिर-सी बात है कि हमारी उम्मीदें बढ़ने लगती हैं। हम शायद सोचने लगें कि अब हमारे हालात सुधरते जाएँगे। हम शायद यह तक सोचें कि हमारी ज़िंदगी की बड़ी-बड़ी समस्याएँ खत्म हो चुकी हैं। अगर एलियाह को भी ऐसा लगा तो इसमें कोई ताज्जुब नहीं क्योंकि वह भी “हमारी तरह एक इंसान था, जिसमें हमारे जैसी भावनाएँ थीं।” (याकू. 5:17) लेकिन असल में एलियाह की समस्याएँ खत्म नहीं हुईं। कुछ ही घंटों में वह इतना डर जाता, इतना निराश हो जाता कि वह अपनी मौत माँगने लगता। उसके साथ ऐसा क्या होता? यहोवा अपने इस भविष्यवक्ता को दोबारा विश्वास और हिम्मत पाने में कैसी मदद देता? आइए देखें।
हालात ने अचानक रुख मोड़ा
5. करमेल पहाड़ पर हुईं घटनाओं के बाद क्या अहाब ने यहोवा का आदर करना सीखा और यह हम कैसे जानते हैं?
5 जब अहाब यिजरेल में अपने महल पहुँचा तो क्या उसने दिखाया कि वह बदल गया है? बाइबल बताती है, “अहाब ने इज़ेबेल को सारा हाल कह सुनाया। उसने बताया कि एलियाह ने क्या-क्या किया और कैसे सभी भविष्यवक्ताओं को तलवार से मार डाला।” (1 राजा 19:1) गौर कीजिए कि अहाब ने इज़ेबेल को उस दिन की घटनाएँ बताते वक्त एलियाह के परमेश्वर यहोवा के बारे में एक बार भी ज़िक्र नहीं किया। अहाब ने उन चमत्कारों को इंसानी नज़रिए से देखा, उसने सिर्फ यह देखा कि “एलियाह ने क्या-क्या किया।” इससे साफ पता चलता है कि उसने अभी-भी यहोवा परमेश्वर का आदर करना नहीं सीखा। सारा हाल सुनने के बाद इज़ेबेल ने क्या किया जो बदला लेने पर हमेशा उतारू रहती थी?
6. इज़ेबेल ने एलियाह को क्या संदेश भेजा?
6 इज़ेबेल का चेहरा तमतमा गया! गुस्से से भरकर उसने एलियाह के पास यह संदेश भेजा, “अगर कल इस वक्त तक, मैंने तेरा वह हश्र नहीं किया जो तूने सभी भविष्यवक्ताओं का किया है, तो मुझ पर मेरे देवताओं का कहर टूटे!” (1 राजा 19:2) कितनी बड़ी धमकी! इज़ेबेल एक तरह से अपनी जान की कसम खा रही थी कि वह अगले दिन तक एलियाह की जान लेकर बाल के भविष्यवक्ताओं के खून का बदला लेगी। कल्पना कीजिए, एलियाह उस तूफानी रात में यिजरेल के किसी छोटे-से सराय में सो रहा है, तभी रानी का एक दूत आकर उसे जगाता है और मौत का फरमान सुनाता है। यह सुनकर एलियाह को कैसा लगा?
निराशा और डर ने आ घेरा
7. इज़ेबेल की धमकी का एलियाह पर क्या असर हुआ और उसने क्या किया?
7 अगर एलियाह उम्मीद लगाए हुए था कि बाल की उपासना के खिलाफ लड़ाई लगभग खत्म हो चुकी है, तो उस एक पल में उसकी सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया। इतना सब होने के बाद भी इज़ेबेल नहीं बदली थी! उसके हुक्म पर एलियाह के कई वफादार साथियों को पहले ही मार डाला गया था और लग रहा था कि अब एलियाह की बारी है। इज़ेबेल की धमकी का एलियाह पर क्या असर हुआ? बाइबल बताती है, “एलियाह बहुत डर गया।” क्या वह यह सोचने लगा कि उसे इज़ेबेल के हाथों कैसी दर्दनाक मौत मिलनेवाली है? शायद, इसलिए उसकी हिम्मत जवाब दे गयी। एलियाह ने चाहे जो भी सोचा हो, एक बात साफ है कि वह “अपनी जान बचाकर भाग गया।”—1 राजा 18:4; 19:3.
अगर हम अपनी हिम्मत बनाए रखना चाहते हैं तो हमें खतरों के बारे में नहीं सोचना चाहिए
8. (क) पतरस कैसे एलियाह के जैसी भावना से गुज़रा? (ख) हम एलियाह और पतरस से क्या सीख सकते हैं?
8 परमेश्वर पर विश्वास करनेवाला एलियाह अकेला ऐसा व्यक्ति नहीं था जिस पर डर हावी हो गया। सदियों बाद प्रेषित पतरस भी डर का शिकार हो गया। एक बार जब यीशु ने उसे पानी पर चलने की शक्ति दी तो वह कुछ कदम पानी पर चला, लेकिन फिर वह ‘तूफान को देखने लगा।’ उसकी हिम्मत चली गयी और वह डूबने लगा। (मत्ती 14:30 पढ़िए।) एलियाह और पतरस के साथ जो हुआ उससे हमें एक ज़रूरी सबक मिलता है। अगर हम अपनी हिम्मत बनाए रखना चाहते हैं तो हमें खतरों के बारे में नहीं सोचना चाहिए। हमें पूरा ध्यान यहोवा पर लगाए रखना चाहिए जो हमें आशा और ताकत देता है।
“अब मुझसे और बरदाश्त नहीं होता!”
9. एलियाह भागकर कहाँ गया और उस वक्त उसके मन की क्या हालत थी?
9 एलियाह डर के मारे वहाँ से भागा और यिजरेल से करीब 150 किलोमीटर दूर बेरशेबा नाम के एक शहर पहुँचा। वह शहर यहूदा राज्य की दक्षिणी सरहद के पास था। एलियाह ने वहाँ अपने सेवक को छोड़ दिया और अकेले वीराने की ओर बढ़ गया। बाइबल बताती है कि उसने “एक दिन का सफर” तय किया। हो सकता है वह तड़के सुबह निकला हो और उसने खाने-पीने का या दूसरा कोई सामान साथ न लिया हो। डर और निराशा की वजह से वह ठीक से सोच नहीं पा रहा था। इसलिए चिलचिलाती धूप में भी वह ऊबड़-खाबड़ रास्तों और वीरान इलाकों से गुज़रता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था। जैसे-जैसे सूरज ढलने लगा, एलियाह की हालत पस्त होने लगी। थककर वह एक झाड़ी के नीचे बैठ गया। हालाँकि वह झाड़ी ज़्यादा छाया नहीं देती, लेकिन वीराने में उसके सिवा कुछ नहीं था जिसके तले वह बैठ सके।—1 राजा 19:4.
10, 11. (क) एलियाह ने प्रार्थना में जो कहा उसका क्या मतलब था? (ख) दी गयी आयतों से बताइए कि परमेश्वर के कुछ सेवक जब निराश हो गए तो उन्हें कैसा लगा?
10 लाचार होकर एलियाह ने प्रार्थना की और वह अपनी मौत की कामना करने लगा। उसने कहा, “मैं अपने पुरखों से कुछ बढ़कर नहीं हूँ।” वह जानता था कि उसके पुरखे मिट्टी में मिल चुके हैं और वे किसी का भला नहीं कर सकते। (सभो. 9:10) एलियाह भी खुद को उनकी तरह बेकार समझ रहा था। इसलिए ताज्जुब नहीं कि उसने कहा, “अब मुझसे और बरदाश्त नहीं होता!” उसे लगा कि अब जीने का कोई फायदा नहीं।
11 क्या यह जानकर हमें चौंक जाना चाहिए कि परमेश्वर का एक सेवक इस कदर निराश हो सकता है? बिलकुल नहीं। बाइबल में ऐसे कई वफादार आदमियों और औरतों के बारे में बताया गया है जो इतने निराश हो चुके थे कि उन्होंने मर जाना चाहा, जैसे रिबका, याकूब, मूसा और अय्यूब।—उत्प. 25:22; 37:35; गिन. 11:13-15; अय्यू. 14:13.
12. अगर आप कभी निराश हो जाएँ तो आपको एलियाह की तरह क्या करना चाहिए?
12 आज हम ‘संकटों से भरे वक्त’ में जी रहे हैं। (2 तीमु. 3:1) इसलिए हैरानी की बात नहीं कि कई लोग, यहाँ तक कि परमेश्वर के वफादार सेवक भी कभी-कभी निराशा में डूब जाते हैं। अगर आप भी कभी बहुत निराश हो जाएँ तो आप वही कीजिए जो एलियाह ने किया था। यहोवा को अपने दिल की बात बताइए। वह “हर तरह का दिलासा देनेवाला परमेश्वर है।” (2 कुरिंथियों 1:3, 4 पढ़िए।) क्या उसने एलियाह को दिलासा दिया?
यहोवा ने अपने भविष्यवक्ता को सँभाला
13, 14. (क) यहोवा ने कैसे दिखाया कि उसे अपने भविष्यवक्ता की परवाह है? (ख) हमें यह जानकर क्यों दिलासा मिलता है कि यहोवा हमारे बारे में सबकुछ जानता है, यहाँ तक कि हमारी हदें भी जानता है?
13 आपको क्या लगता है, जब यहोवा ने स्वर्ग से नीचे देखा कि उसका प्यारा भविष्यवक्ता वीराने में झाड़ी के नीचे बैठा मौत की कामना कर रहा है, तो उसे कैसा लगा होगा? हमें अंदाज़ा लगाने की ज़रूरत नहीं। एलियाह जब सो गया तो यहोवा ने उसके पास एक स्वर्गदूत भेजा। स्वर्गदूत ने धीरे से उसे जगाया और कहा, “उठ और कुछ खा ले।” स्वर्गदूत ने उसके सिरहाने एक सादा-सा खाना, यानी ताज़ी गरम रोटी और पानी रख दिया था। एलियाह उठा, उसने खाना खाया और पानी पीया। क्या उसने स्वर्गदूत को धन्यवाद दिया? बाइबल सिर्फ इतना बताती है कि भविष्यवक्ता ने रोटी खायी, पानी पीया और दोबारा सो गया। क्या वह इतना निराश था कि उससे कुछ बोलते नहीं बना? बात चाहे जो भी रही हो, स्वर्गदूत ने उसे दूसरी बार उठाया, शायद सुबह-सुबह। एक बार फिर उसने एलियाह से कहा, “उठ और कुछ खा ले।” इसके बाद स्वर्गदूत ने जो कहा वह गौर करने लायक है। उसने कहा, “क्योंकि आगे का सफर तेरे लिए बहुत मुश्किल और थकाऊ होगा।”—1 राजा 19:5-7.
14 परमेश्वर से मिली समझ की वजह से स्वर्गदूत जान गया कि एलियाह कहाँ जा रहा है। वह यह भी जानता था कि यह सफर इतना लंबा है कि एलियाह अपनी ताकत से उसे तय नहीं कर पाएगा। इससे हमें कितना दिलासा मिलता है कि हम एक ऐसे परमेश्वर की सेवा कर रहे हैं जो हमारे इरादों और हमारी सीमाओं को हमसे बेहतर जानता है! (भजन 103:13, 14 पढ़िए।) स्वर्गदूत ने जो खाना दिया उससे एलियाह को क्या फायदा हुआ?
15, 16. (क) यहोवा से मिला खाना खाने के बाद एलियाह को क्या करने की ताकत मिली? (ख) आज यहोवा अपने लोगों को जिस तरह सँभालता है उसकी हमें क्यों कदर करनी चाहिए?
15 बाइबल बताती है, “उसने उठकर खाया-पीया। उस खाने से ताकत पाकर वह 40 दिन और 40 रात पैदल चलता रहा। आखिर में वह सच्चे परमेश्वर के पहाड़ होरेब पहुँचा।” (1 राजा 19:8) एलियाह ने 40 दिन और 40 रात तक कुछ नहीं खाया, ठीक जैसे करीब 600 साल पहले मूसा ने और करीब 1,000 साल बाद यीशु ने किया था। (निर्ग. 34:28; लूका 4:1, 2) उस एक वक्त की रोटी से एलियाह की सारी परेशानियाँ तो दूर नहीं हुईं, लेकिन उस खाने ने चमत्कार से उसे कई दिनों तक ताकत दी। ज़रा सोचिए, वह बुज़ुर्ग आदमी वीराने में आगे बढ़ता जा रहा है जहाँ कोई रास्ता या पगडंडी नहीं है और वह भी एक दिन या एक हफ्ते नहीं बल्कि पूरे 40 दिन तक!
16 आज भी यहोवा अपने सेवकों को सँभालता है। वह चमत्कार से हमें खाना नहीं देता बल्कि उससे भी बढ़िया तरीके से हमारी मदद करता है। (मत्ती 4:4) वह अपने वचन बाइबल और उस पर आधारित प्रकाशनों के ज़रिए हमें अपने बारे में सिखाता है ताकि उसके साथ हमारा रिश्ता मज़बूत बना रहे। परमेश्वर के बारे में सीखना खुराक लेने जैसा है जिससे हमें उसकी सेवा करते रहने की ताकत मिलती है। इस तरह सीखते रहने से भले ही हमारी सारी मुश्किलें दूर न हों, लेकिन हमें धीरज धरने की ताकत मिलेगी जो हमारे बरदाश्त के बाहर हो सकती हैं। इसके अलावा, परमेश्वर के ज्ञान से हमें “हमेशा की ज़िंदगी” मिल सकती है।—यूह. 17:3.
17. एलियाह कहाँ गया और वह जगह क्यों खास थी?
17 एलियाह करीब 320 किलोमीटर पैदल चलकर होरेब पहाड़ पर पहुँचा। वह एक खास जगह थी क्योंकि सदियों पहले इसी पहाड़ पर यहोवा परमेश्वर ने एक स्वर्गदूत के ज़रिए जलती हुई झाड़ी में से मूसा से बात की थी और यहीं पर यहोवा ने इसराएलियों के साथ कानून का करार किया था। वहाँ एलियाह ने एक गुफा के अंदर शरण ली।
यहोवा ने कैसे अपने भविष्यवक्ता को दिलासा और हिम्मत दी
18, 19. (क) यहोवा के स्वर्गदूत ने एलियाह से क्या पूछा और एलियाह ने क्या जवाब दिया? (ख) एलियाह की बातों से उसके निराश होने की कौन-सी तीन वजह पता चलती हैं?
18 होरेब पहाड़ पर एलियाह के पास यहोवा का “संदेश” पहुँचा, शायद एक स्वर्गदूत के ज़रिए। यहोवा ने एलियाह से एक आसान-सा सवाल किया, “एलियाह, तू यहाँ क्या कर रहा है?” परमेश्वर ने शायद यह सवाल बहुत प्यार से पूछा था क्योंकि जवाब में एलियाह ने परमेश्वर के सामने अपनी सारी भावनाएँ उँडेल दीं। उसने कहा, “मैंने सेनाओं के परमेश्वर यहोवा की उपासना के लिए बढ़-चढ़कर जोश दिखाया है, क्योंकि इसराएल के लोगों ने तेरा करार मानना छोड़ दिया, तेरी वेदियाँ ढा दीं और तेरे भविष्यवक्ताओं को तलवार से मार डाला। मैं ही अकेला बचा हूँ और अब वे मेरी जान के पीछे पड़े हैं।” (1 राजा 19:9, 10) एलियाह की बात से पता चलता है कि उसके निराश होने की कम-से-कम तीन वजह थीं।
19 पहली वजह, एलियाह को लगा कि उसकी मेहनत बेकार गयी। सालों से वह यहोवा की सेवा के लिए “बढ़-चढ़कर जोश” दिखा रहा था और उसके पवित्र नाम और उसकी उपासना को पहली जगह दे रहा था, फिर भी हालात बिगड़ते जा रहे थे। लोग अब भी परमेश्वर पर विश्वास नहीं कर रहे थे और बागी थे। साथ ही, झूठी उपासना ज़ोर पकड़ती जा रही थी। दूसरी वजह, एलियाह खुद को अकेला महसूस कर रहा था। उसने कहा, “मैं ही अकेला बचा हूँ,” मानो इसराएल देश में यहोवा की सेवा करनेवाला वही अकेला रह गया हो। तीसरी वजह, एलियाह डर गया था। उसके कई साथी भविष्यवक्ताओं को मार डाला गया था और उसे यकीन था कि अगली बारी उसकी है। एलियाह के लिए यह सब कबूल करना आसान नहीं रहा होगा, फिर भी वह घमंड या शर्म की वजह से अपने दिल की बात कहने से पीछे नहीं हटा। उसने प्रार्थना में दिल खोलकर अपने परमेश्वर से बात की और इस तरह सभी वफादार लोगों के लिए एक बेहतरीन मिसाल रखी।—भज. 62:8.
20, 21. (क) बताइए कि एलियाह ने गुफा के मुहाने पर खड़े होकर क्या नज़ारा देखा। (ख) जब यहोवा ने अपनी शक्ति दिखायी तो एलियाह ने क्या सीखा?
20 एलियाह का डर और उसकी चिंता दूर करने के लिए यहोवा ने क्या किया? स्वर्गदूत ने एलियाह से कहा कि वह गुफा के मुहाने पर खड़ा हो जाए। एलियाह ने ऐसा ही किया। उसे नहीं मालूम था कि आगे क्या होनेवाला है। फिर एक ज़बरदस्त आँधी चली! इससे ऐसा भयानक शोर हुआ कि पहाड़ फटने लगे और चट्टानें चूर-चूर होने लगीं। कल्पना कीजिए, एलियाह एक हाथ से अपनी आँखें ढक रहा है और दूसरे हाथ से अपने मोटे कपड़े को थामे रखने की कोशिश कर रहा है जो हवा में इधर-उधर उड़ रहा है। फिर एक ज़ोर का भूकंप आया जिससे वहाँ की ज़मीन हिलने लगी और एलियाह सीधा खड़ा नहीं हो पा रहा था। अभी वह ठीक से सँभल भी नहीं पाया था कि आग की एक बड़ी ज्वाला भड़की! उसकी झुलसन से बचने के लिए एलियाह को वापस गुफा के अंदर जाना पड़ा।—1 राजा 19:11, 12.
21 बाइबल साफ-साफ बताती है कि जब आँधी चली, भूकंप आया और आग भड़की तो कुदरत के इन शक्तिशाली प्रदर्शनों में यहोवा नहीं था। एलियाह को मालूम था कि यहोवा, बाल की तरह कोई मनगढ़ंत प्रकृति-देवता नहीं है। बाल की पूजा करनेवाले मानते थे कि बाल “बादलों की सवारी करनेवाला” देवता या बरसात का देवता है। कुदरत में पायी जानेवाली ज़बरदस्त शक्तियों का असली सोता यहोवा है। साथ ही, वह अपनी बनायी हर चीज़ से कहीं ज़्यादा महान है। वह इतना महान है कि वह विशाल आकाश में भी नहीं समा सकता! (1 राजा 8:27) इन सब बातों से एलियाह को कैसे मदद मिली? याद कीजिए कि वह बहुत डरा हुआ था। जब यहोवा जैसा परमेश्वर एलियाह के साथ है, जो कुदरत की ज़बरदस्त शक्तियों का जब चाहे जैसा चाहे इस्तेमाल कर सकता है, तो उसे अहाब और इज़ेबेल से डरने की कोई ज़रूरत नहीं!—भजन 118:6 पढ़िए।
22. (क) उस “धीमी आवाज़” ने कैसे एलियाह को भरोसा दिलाया कि वह बेकार नहीं है? (ख) वह “धीमी आवाज़” शायद किसकी थी? (फुटनोट देखें।)
22 आग के बाद चारों तरफ सन्नाटा छा गया। फिर एलियाह को “एक धीमी आवाज़ सुनायी दी और उस आवाज़ में नरमी थी।” उस आवाज़ ने एलियाह को एक बार फिर अपने दिल की बात बताने के लिए कहा और एलियाह ने दूसरी बार ऐसा किया।a तब उसका मन हलका हो गया होगा। और उस “धीमी आवाज़” ने आगे जो कहा उससे बेशक एलियाह को और दिलासा मिला होगा। यहोवा ने एलियाह को भरोसा दिलाया कि वह बेकार नहीं है। परमेश्वर ने उसे बताया कि इसराएल से बाल की उपासना को जड़ से मिटाने के लिए भविष्य में क्या-क्या होगा। इससे पता चलता है कि एलियाह का काम बेकार नहीं गया था, क्योंकि परमेश्वर का मकसद आगे बढ़ता जा रहा था और उसे पूरा होने से कोई रोक नहीं सकता था। इसके अलावा, परमेश्वर आगे भी उसे अपने भविष्यवक्ता के तौर पर इस्तेमाल करनेवाला था, क्योंकि यहोवा ने उसे कुछ खास निर्देश देकर उसे फिर से कुछ ज़िम्मेदारियाँ सौंपीं।—1 राजा 19:12-17.
23. यहोवा ने किन दो तरीकों से एलियाह को अकेलेपन की भावना से उभरने में मदद दी?
23 लेकिन एलियाह खुद को जिस तरह अकेला महसूस कर रहा था, उसके बारे में क्या? यहोवा ने उसे इस भावना से उभरने के लिए दो तरीकों से मदद दी। पहला, उसने एलियाह से कहा कि वह एलीशा का अभिषेक करे जो उसके बाद भविष्यवक्ता बनेगा। जवान एलीशा अब से सालों तक एलियाह का साथी और सहायक बनता। यह सुनकर एलियाह को कितना दिलासा मिला होगा! दूसरा, यहोवा ने उसे यह खबर दी जिसे सुनकर वह हैरान रह गया, “देख, इसराएल में अब भी मेरे 7,000 लोग हैं जिन्होंने बाल के सामने घुटने टेककर दंडवत नहीं किया और न ही उसे चूमा।” (1 राजा 19:18) एलियाह अकेला नहीं था! उसे यह जानकर खुशी हुई होगी कि इसराएल में ऐसे हज़ारों वफादार लोग हैं जिन्होंने बाल की उपासना करने से इनकार कर दिया है। उस समय लगभग सभी यहोवा के खिलाफ जा रहे थे, ऐसे में यहोवा की सेवा में एलियाह जो मिसाल कायम करता और जो वफादारी दिखाता, उससे उन हज़ारों लोगों को यहोवा की उपासना करते रहने का बढ़ावा मिलता। यहोवा के स्वर्गदूत की यह बात एलियाह के दिल को छू गयी होगी, क्योंकि यह उसके लिए ऐसा था मानो खुद यहोवा उससे “धीमी आवाज़” में बात कर रहा हो।
अगर हम बाइबल की सलाह पर चलें तो यह हमारे लिए उस “धीमी आवाज़” की तरह हो सकती है
24, 25. (क) आज हम कैसे यहोवा की “धीमी आवाज़” सुन सकते हैं? (ख) हम कैसे कह सकते हैं कि यहोवा की बातों से एलियाह को दिलासा मिला?
24 एलियाह की तरह हम भी शायद कुदरत की ज़बरदस्त शक्तियाँ देखकर हैरान हो जाएँ और ऐसा होना भी चाहिए। सृष्टि से साफ पता चलता है कि इसे बनानेवाला कितना शक्तिशाली है। (रोमि. 1:20) यहोवा आज भी अपने वफादार सेवकों की मदद करने के लिए अपनी असीम शक्ति का इस्तेमाल करता है। (2 इति. 16:9) लेकिन वह अपने वचन बाइबल के ज़रिए हमसे और भी अच्छी तरह बात करता है। (यशायाह 30:21 पढ़िए।) अगर हम बाइबल की सलाह पर चलें तो यह हमारे लिए उस “धीमी आवाज़” की तरह हो सकती है। बाइबल के एक-एक पन्ने में अनमोल बातें लिखी हैं और इन्हीं के ज़रिए यहोवा हमारी सोच सुधारता है, हमें हिम्मत देता है और अपने प्यार का यकीन दिलाता है।
25 क्या होरेब पहाड़ पर एलियाह को यहोवा की बातों से दिलासा मिला? बिलकुल! यह हम कैसे कह सकते हैं? क्योंकि वह जल्द ही पहले की तरह अपने काम में लग गया और हिम्मत से झूठी उपासना के खिलाफ भविष्यवाणी करने लगा। एलियाह की तरह अगर हम भी परमेश्वर की प्रेरणा से लिखी बातों को अपने दिल में उतारें यानी ‘शास्त्र से दिलासा’ पाएँ तो हम उसके जैसा विश्वास रख पाएँगे।—रोमि. 15:4.
a वह ‘धीमी आवाज़ जिसमें नरमी थी’ शायद उसी स्वर्गदूत की रही होगी जिसने 1 राजा 19:9 में बताया “यहोवा का संदेश” एलियाह को दिया था। आयत 15 में उस स्वर्गदूत को सिर्फ “यहोवा” कहा गया है। इससे शायद हमें उस स्वर्गदूत का ध्यान आए जिसके ज़रिए यहोवा ने वीराने में इसराएलियों को रास्ता दिखाया था और जिसके बारे में उसने कहा, “वह मेरे नाम से तुम्हारे पास आता है।” (निर्ग. 23:21) हम यह दावे के साथ तो नहीं कह सकते कि वह स्वर्गदूत यीशु था, लेकिन गौरतलब है कि यीशु धरती पर आने से पहले “वचन” के तौर पर सेवा करता था। यानी वही खास तौर से यहोवा की तरफ से उसके सेवकों से बात करता था।—यूह. 1:1.