यहोवा की महानता अगम है
“यहोवा महान् और अति स्तुति के योग्य है, और उसकी महानता अगम्य है।”—भजन 145:3, NHT.
1, 2. दाऊद कैसा इंसान था, और परमेश्वर की तुलना में वह खुद को कैसा समझता था?
भजन 145 का रचनाकार, इतिहास का एक जाना-माना शख्स है। जब वह एक लड़का था, तभी उसने दानव जैसे एक हथियारबंद आदमी का मुकाबला किया और उसे मार डाला। और जब वह बड़ा होकर एक वीर योद्धा और राजा बना, तो उसने अपने कई दुश्मनों को धूल चटा दी। उस शख्स का नाम है, दाऊद जो प्राचीन इस्राएल का दूसरा राजा था। उसने जो नाम कमाया, वह उसके मरने के बाद भी कायम रहा। तभी तो आज लाखों लोग उसके बारे में कुछ-न-कुछ ज़रूर जानते हैं।
2 ज़िंदगी में कई कामयाबियाँ हासिल करने के बावजूद, दाऊद नम्र बना रहा। यहोवा के बारे में उसने गीत में गाया: “जब मैं आकाश को, जो तेरे हाथों का कार्य है, और चंद्रमा और तारागण को जो तू ने नियुक्त किए हैं, देखता हूं; तो फिर मनुष्य क्या है कि तू उसका स्मरण रखे, और आदमी क्या है कि तू उसकी सुधि ले?” (भजन 8:3, 4) अपने आपको महान समझने के बजाय, दाऊद ने दुश्मनों के हाथों बच निकलने का सारा श्रेय यहोवा को दिया। परमेश्वर के बारे में उसने कहा: “तू ने मुझ को अपने उद्धार की ढाल दी है, और तेरी नम्रता मुझे बढ़ाती है।” (2 शमूएल 22:1, 2, 36) यहोवा पापियों पर दया करके नम्रता दिखाता है और इस अपार कृपा के लिए दाऊद एहसानमंद था।
‘मैं परमेश्वर को सराहूंगा जो राजा है’
3. (क) दाऊद की नज़र में इस्राएल का असल राजा कौन था? (ख) दाऊद किस हद तक यहोवा की स्तुति करना चाहता था?
3 हालाँकि दाऊद, परमेश्वर का ठहराया हुआ राजा था, फिर भी वह यहोवा को ही इस्राएल का सच्चा राजा मानता था। दाऊद ने कहा: “हे यहोवा! राज्य तेरा है, और तू सभों के ऊपर मुख्य और महान ठहरा है।” (1 इतिहास 29:11) और वाकई दाऊद, परमेश्वर को एक शासक मानकर उसका कितना आदर करता था! उसने गाया: “हे मेरे परमेश्वर, हे राजा, मैं तुझे सराहूंगा, और तेरे नाम को सदा सर्वदा धन्य कहता रहूंगा। प्रति दिन मैं तुझ को धन्य कहा करूंगा, और तेरे नाम की स्तुति सदा सर्वदा करता रहूंगा।” (भजन 145:1, 2) दाऊद की दिली-तमन्ना थी कि वह सुबह से लेकर शाम तक और सदा-सर्वदा यहोवा परमेश्वर की स्तुति करता रहे।
4. भजन 145, किन झूठे दावों का पर्दाफाश करता है?
4 भजन 145 में लिखे शब्द शैतान के लिए मुँह-तोड़ जवाब हैं, जिसने दावा किया था कि परमेश्वर एक स्वार्थी शासक है और उसने अपने प्राणियों की आज़ादी छीन ली है। (उत्पत्ति 3:1-5) यह भजन, शैतान के इस झूठ का भी पर्दाफाश करता है कि इंसान सिर्फ अपना मतलब पूरा करने के लिए परमेश्वर की आज्ञा मानते हैं, न कि प्यार होने की वजह से। (अय्यूब 1:9-11; 2:4, 5) दाऊद की तरह आज सच्चे मसीही भी, शैतान के झूठे इलज़ामों को गलत साबित कर रहे हैं। वे परमेश्वर के राज्य में अनंत जीवन पाने की आशा को इसलिए संजोए रखते हैं, क्योंकि वे सदा-सर्वदा तक यहोवा की महिमा करना चाहते हैं। अब तक लाखों लोगों ने यहोवा की स्तुति करना शुरू कर दिया है। वे ऐसा यीशु के छुड़ौती बलिदान पर विश्वास ज़ाहिर करने के ज़रिए करते हैं। साथ ही, यहोवा के लिए प्यार होने की वजह से, उसके समर्पित और बपतिस्मा पाए उपासकों के नाते वे उसकी आज्ञाएँ मानते हैं और उसकी सेवा करते हैं।—रोमियों 5:8; 1 यूहन्ना 5:3.
5, 6. हमारे पास यहोवा को धन्य कहने और उसकी स्तुति करने के क्या-क्या मौके हैं?
5 ज़रा सोचिए कि यहोवा के सेवकों के नाते, हमारे पास उसके नाम को धन्य कहने और उसकी स्तुति करने के कितने मौके हैं। उसका वचन बाइबल पढ़ते वक्त अगर उसमें लिखी कुछ बातें हमारे दिल को गहराई तक छू जाएँ, तो हम प्रार्थना में उसकी स्तुति कर सकते हैं। और जब यह बात हमारे मन को भा जाती है कि परमेश्वर अपने लोगों के साथ कितने बढ़िया तरीके से पेश आता है या फिर जब उसकी अद्भुत सृष्टि की कोई चीज़ देखकर हमारे अंदर सनसनी दौड़ जाती है, तब हम एहसान भरे दिल से उसकी महिमा और उसका शुक्रिया अदा कर सकते हैं। इसके अलावा, जब हम मसीही सभाओं में भाई-बहनों से या कहीं और परमेश्वर के मकसदों के बारे में बात करते हैं, तब भी हमें यहोवा परमेश्वर को धन्य कहने का मौका मिलता है। दरअसल, परमेश्वर के राज्य की खातिर किए जानेवाले सभी “भले कामों” से यहोवा की स्तुति होती है।—मत्ती 5:16.
6 यहोवा के लोगों ने हाल ही में बहुत-से भले काम किए हैं जिनकी एक मिसाल है, गरीब देशों में उपासना की कई इमारतें बनाना। यह काम काफी हद तक दूसरे देशों के उन भाई-बहनों की वजह से हो पाया है जिन्होंने पैसे देकर मदद की। कुछ मसीहियों ने उन गरीब देशों में जाकर राज्यगृह बनाने में हाथ बँटाया। मगर उनके भले कामों में से सबसे खास काम यह है कि वे यहोवा के राज्य का सुसमाचार सुनाने के ज़रिए उसकी स्तुति करते हैं। (मत्ती 24:14) जैसे भजन 145 की बाद की आयतें दिखाती हैं, दाऊद ने परमेश्वर की हुकूमत की महानता को समझा और उसकी प्रभुता की बड़ाई की। (भजन 145:11, 12) क्या आप भी परमेश्वर की प्यार भरी हुकूमत के लिए उतने ही कदरदान हैं? और क्या आप नियमित रूप से दूसरों को उसके राज्य के बारे में बताते हैं?
परमेश्वर की महानता की मिसालें
7. यहोवा की स्तुति करने की एक अहम वजह बताइए।
7 भजन 145:3 (NHT) में यहोवा की स्तुति करने की एक अहम वजह दी गयी है। दाऊद ने अपने गीत में गाया: “यहोवा महान् और अति स्तुति के योग्य है, और उसकी महानता अगम्य है।” यहोवा की महानता की कोई सीमा नहीं है। यह इतनी गहरी है कि इंसान न तो उसे पूरी तरह समझ सकता और ना ही उसका हिसाब लगा सकता है। इसके बावजूद, यहोवा की अगम महानता की कुछ मिसालों पर अभी गौर करने से हमें ज़रूर फायदा होगा।
8. यहोवा की महानता और शक्ति के बारे में अंतरिक्ष क्या ज़ाहिर करता है?
8 अगर आप कभी शहर की चकाचौंध रोशनी से दूर कहीं और गए हों, और वहाँ आपने साफ खुले आसमान को निहारा हो तो उस लम्हे को याद कीजिए। रात के अंधियारे में आसमान पर बिखरे तारों का झुरमुट देखकर क्या आप दंग नहीं रह गए? क्या आप यहोवा की स्तुति नहीं करने लगे, जिसने उन सभी तारों को बनाकर अपनी महानता का सबूत दिया है? लेकिन आपने जो देखा, वह असल में हमारी आकाशगंगा के ढेरों तारों का सिर्फ एक छोटा-सा भाग है। उनके अलावा, पूरे विश्व में एक खरब से भी ज़्यादा मंदाकिनियों के होने का अनुमान है जिनमें से सिर्फ तीन मंदाकिनियों को हम बिना टेलीस्कोप के देख सकते हैं। अनगिनत तारों और मंदाकिनियों से बना हमारा विशाल अंतरिक्ष, सचमुच यहोवा के सृजने की शक्ति और उसकी अगम महानता का सबूत देता है।—यशायाह 40:26.
9, 10. (क) यीशु मसीह के ज़रिए यहोवा की महानता के क्या-क्या सबूत मिलते हैं? (ख) यीशु के पुनरुत्थान का हमारे विश्वास पर क्या असर होना चाहिए?
9 यहोवा की महानता के उन पहलुओं पर गौर कीजिए जो यीशु मसीह से ताल्लुक रखते हैं। अपने पुत्र की सृष्टि करके और अनगिनत युगों तक उसे अपने “कुशल कारीगर” (NHT) के तौर पर इस्तेमाल करके उसने अपनी महानता ज़ाहिर की है। (नीतिवचन 8:22-31) यहोवा का प्यार कितना गहरा है, यह इस बात से देखा जा सकता है कि उसने इंसानों की खातिर अपने एकलौटे बेटे को छुड़ौती बलिदान के तौर पर दे दिया। (मत्ती 20:28; यूहन्ना 3:16; 1 यूहन्ना 2:1, 2) और यीशु के पुनरुत्थान के बाद, यहोवा ने उसे जो गौरवपूर्ण और अमर आत्मिक शरीर दिया, उसे समझना इंसान के बस की बात की नहीं।—1 पतरस 3:18.
10 यीशु के पुनरुत्थान से यहोवा की अगम महानता के कई शानदार सबूत मिलते हैं जो हमारे दिल पर गहरी छाप छोड़ जाते हैं। यीशु के पुनरुत्थान के बाद परमेश्वर ने उसे ज़रूर याद दिलाया होगा कि देखी और अनदेखी चीज़ों की सृष्टि कैसे की गयी थी। (कुलुस्सियों 1:15, 16) इन देखी और अनदेखी चीज़ों में दूसरे आत्मिक प्राणियों, विश्व, उपजाऊ धरती और उसमें पाए जानेवाले हर किस्म के जीवित प्राणी शामिल हैं। यीशु ने इंसान के रूप में जन्म लेने से पहले, स्वर्ग और पृथ्वी पर जिन घटनाओं को देखा था, उनकी याद ताज़ा करने के साथ-साथ, परमेश्वर ने उसे यह भी याद दिलाया होगा कि एक सिद्ध इंसान की हैसियत से उसने धरती पर क्या अनुभव किया था। जी हाँ, यीशु के पुनरुत्थान से यहोवा की अगम महानता का साफ सबूत मिलता है। इतना ही नहीं, यह महान चमत्कार इस बात की गारंटी है कि मरे हुए दूसरों का भी पुनरुत्थान किया जाएगा। इससे हमारा यह विश्वास मज़बूत होना चाहिए कि परमेश्वर उन करोड़ों लोगों को दोबारा ज़िंदा करेगा जो उसकी सिद्ध याददाश्त में हैं।—यूहन्ना 5:28, 29; प्रेरितों 17:31.
आश्चर्यकर्म और पराक्रम के काम
11. सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त के दिन, यहोवा ने कौन-सा महान काम करना शुरू किया?
11 यीशु के पुनरुत्थान के बाद से यहोवा ने और भी बहुत-से महान और आश्चर्यकर्म किए हैं। (भजन 40:5) सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त के दिन, वह एक नयी जाति को वजूद में लाया जो ‘परमेश्वर का इस्राएल’ कहलायी। (गलतियों 6:16) यह जाति यीशु के उन चेलों से बनी थी जिन्हें पवित्र आत्मा से अभिषिक्त किया गया था। उस ज़माने में यह नयी आत्मिक जाति दुनिया के सभी जाने-माने देशों में फैल गयी। हालाँकि यीशु के प्रेरितों की मौत के बाद, धर्मत्याग फैलने लगा और बाद में जाकर ईसाईजगत का रूप लिया, फिर भी यहोवा ने अपना मकसद पूरा करने के लिए आश्चर्यकर्म करना जारी रखा।
12. दुनिया की सभी मुख्य भाषाओं में बाइबल का उपलब्ध होना, किस बात का सबूत है?
12 मिसाल के लिए, बाइबल की सभी किताबों को महफूज़ रखा गया और धीरे-धीरे दुनिया की सभी मुख्य भाषाओं में उनका अनुवाद किया गया। बाइबल के अनुवादकों ने अकसर यह काम बहुत ही मुश्किल हालात में और शैतान के पैरोकारों से मौत की धमकियाँ सहते हुए किया। अगर यह हमारे महान परमेश्वर की मरज़ी न होती, तो बाइबल का अनुवाद 2,000 से भी ज़्यादा भाषाओं में कभी पूरा नहीं होता!
13. सन् 1914 से, यहोवा ने अपने राज्य के लिए जो मकसद ठहराए हैं, उनमें उसकी महानता कैसे ज़ाहिर हुई है?
13 यहोवा ने अपने राज्य के लिए जो मकसद ठहराए हैं, उनसे भी उसकी महानता ज़ाहिर होती है। मसलन, सन् 1914 में उसने अपने बेटे, यीशु मसीह को स्वर्गीय राजा बनाया। उसके फौरन बाद, यीशु ने शैतान और उसके दुष्ट स्वर्गदूतों के खिलाफ कार्यवाही की। उन्हें स्वर्ग से खदेड़कर धरती पर फेंक दिया और कुछ समय बाद उन्हें अथाह कुंड में डाल दिया जाएगा। (प्रकाशितवाक्य 12:9-12; 20:1-3) शैतान और उसके दुष्ट स्वर्गदूतों को जब से धरती पर फेंका गया है, तब से यीशु के अभिषिक्त चेलों पर ज़्यादा अत्याचार होने लगे हैं। फिर भी यहोवा, मसीह की अदृश्य उपस्थिति के दौरान उनकी मदद करता रहा है।—मत्ती 24:3; प्रकाशितवाक्य 12:17.
14. सन् 1919 में यहोवा ने कौन-सा आश्चर्यकर्म किया, और इससे क्या हासिल हुआ?
14 सन् 1919 में, यहोवा ने एक और आश्चर्यकर्म किया जिससे उसकी महानता ज़ाहिर हुई। यीशु के अभिषिक्त चेले जो आध्यात्मिक रूप से बेजान हो गए थे, उनमें नयी जान फूँकी गयी। (प्रकाशितवाक्य 11:3-11) तब से लेकर आज तक अभिषिक्त मसीही, स्वर्ग में स्थापित राज्य का सुसमाचार पूरे ज़ोर-शोर से सुना रहे हैं। अभिषिक्त जनों में से बाकियों को भी इकट्ठा किया गया ताकि उनकी एक लाख चौआलीस हज़ार की गिनती पूरी हो। (प्रकाशितवाक्य 14:1-3) और मसीह के इन अभिषिक्त चेलों के ज़रिए यहोवा ने “नयी पृथ्वी” यानी धर्मी इंसानों से बने समाज की बुनियाद डाली। (प्रकाशितवाक्य 21:1) लेकिन जब सभी वफादार अभिषिक्त जन स्वर्ग चले जाएँगे, तो “नयी पृथ्वी” का क्या होगा?
15. अभिषिक्त मसीही किस काम में हमेशा आगे रहे हैं, और इसका क्या नतीजा निकला है?
15 सन् 1935 में, इस पत्रिका के अगस्त 1 और अगस्त 15 के अँग्रेज़ी अंकों में कुछ खास लेख प्रकाशित किए गए। इनमें प्रकाशितवाक्य अध्याय 7 में बतायी “बड़ी भीड़” के बारे में समझाया गया है। उसके बाद, अभिषिक्त मसीही पूरे जोश के साथ हर जाति, कुल, और भाषा में से उन लोगों को ढूँढ़ने लगे जो उनके साथ मिलकर सच्ची उपासना करते। यह “बड़ी भीड़” बहुत जल्द आनेवाले “बड़े क्लेश” से बच जाएगी और वह फिरदौस में “नयी पृथ्वी” की प्रजा बनकर हमेशा की ज़िंदगी पाएगी। (प्रकाशितवाक्य 7:9-14) अभिषिक्त मसीही, राज्य का प्रचार करने और चेला बनाने के काम में हमेशा आगे रहे हैं, इसलिए आज 60 लाख से भी ज़्यादा लोगों ने धरती पर, फिरदौस में हमेशा तक जीने की आशा पायी है। शैतान और उसकी भ्रष्ट दुनिया के विरोध के बावजूद जो बढ़ोतरी हुई है, उसका श्रेय किसे दिया जाना चाहिए? (1 यूहन्ना 5:19) सिर्फ यहोवा को, क्योंकि केवल वही अपनी पवित्र आत्मा के ज़रिए यह सब मुमकिन कर सकता था।—यशायाह 60:22; जकर्याह 4:6.
यहोवा के ऐश्वर्य की महिमा और प्रताप
16. इंसान अपनी आँखों से यहोवा के “ऐश्वर्य की महिमा के प्रताप” को क्यों नहीं देख सकता?
16 यहोवा ने जितने भी किस्म के “आश्चर्यकर्म” और “पराक्रम के काम” किए हैं, उन्हें कभी-भी भुलाया नहीं जाएगा। दाऊद ने लिखा: “तेरे कामों की प्रशंसा और तेरे पराक्रम के कामों का वर्णन, पीढ़ी पीढ़ी होता चला जाएगा। मैं तेरे ऐश्वर्य की महिमा के प्रताप पर और तेरे भांति भांति के आश्चर्यकर्मों पर ध्यान करूंगा। लोग तेरे भयानक कामों की शक्ति की चर्चा करेंगे, और मैं तेरे बड़े बड़े कामों का वर्णन करूंगा।” (भजन 145:4-6) लेकिन जब “परमेश्वर आत्मा है” और उसे कोई इंसान नहीं देख सकता, तो दाऊद उसके ऐश्वर्य की महिमा के बारे में कैसे जान सका?—यूहन्ना 1:18; 4:24.
17, 18. यहोवा के “ऐश्वर्य की महिमा के प्रताप” के लिए दाऊद श्रद्धा की भावना कैसे बढ़ा पाया?
17 यह सच है कि दाऊद, परमेश्वर को नहीं देख सकता था, फिर भी ऐसे कई तरीके थे जिनसे वह यहोवा के प्रताप के लिए श्रद्धा की भावना पैदा कर सकता था। एक तरीका था कि वह शास्त्र में दर्ज़ परमेश्वर के पराक्रम के कामों के बारे में पढ़ सकता था। उसने पढ़ा होगा कि कैसे जलप्रलय के ज़रिए पूरे दुष्ट संसार का नाश किया गया। दाऊद ने यह भी सीखा होगा कि जब परमेश्वर ने इस्राएलियों को मिस्र की गुलामी से छुड़ाया, तब वहाँ के झूठे देवी-देवताओं को उस वक्त कैसे नीचा किया गया था। ऐसी घटनाएँ यहोवा के प्रताप और महानता की गवाही देती हैं।
18 दाऊद ने उन घटनाओं के बारे में न सिर्फ पढ़कर, बल्कि उन पर मनन करने के ज़रिए यहोवा के प्रताप के लिए अपने अंदर गहरी श्रद्धा बढ़ायी। उदाहरण के लिए, जब यहोवा ने इस्राएल जाति को अपनी कानून-व्यवस्था दी, तो उस वक्त हुई घटनाओं पर उसने ज़रूर मनन किया होगा। उस वक्त बादल गरजने लगे, बिजली चमकने लगी, चारों तरफ काली घटा छा गयी और नरसिंगे की ज़ोरदार आवाज़ सुनायी पड़ी। सीनै पर्वत काँप उठा और उसमें से धुआँ निकलने लगा। और जब यहोवा ने अपने स्वर्गदूत के ज़रिए पर्वत के नीचे इकट्ठी हुई इस्राएल जाति से बात की, तो उन्हें आग और बादल के बीच में से यहोवा के “दस वचन” सुनायी दिए। (व्यवस्थाविवरण 4:32-36; 5:22-24; 10:4; निर्गमन 19:16-20; प्रेरितों 7:38, 53) यह यहोवा के वैभव का क्या ही ज़बरदस्त नज़ारा था! परमेश्वर के वचन से प्यार करनेवाले जब ऐसे वृत्तांतों पर मनन करते हैं, तो यहोवा के ‘ऐश्वर्य की महिमा और प्रताप’ के बारे में जानकर उसके लिए श्रद्धा और भी बढ़ जाती है। आज तो हमारे पास पूरी बाइबल है, जिसमें यहोवा की महिमा के ऐसे ढेरों दर्शन दर्ज़ हैं जो हमारे दिल में उसकी महानता की गहरी छाप छोड़ जाते हैं।—यहेजकेल 1:26-28; दानिय्येल 7:9, 10; प्रकाशितवाक्य, अध्याय 4.
19. यहोवा के प्रताप के लिए हमारी श्रद्धा कैसे बढ़ सकती है?
19 परमेश्वर ने इस्राएलियों को जो नियम दिए थे, उनके बारे में भी दाऊद ने अध्ययन किया होगा। (व्यवस्थाविवरण 17:18-20; भजन 19:7-11) यह एक और तरीका था, जिससे उसे यहोवा के प्रताप की अच्छी समझ मिली होगी। यहोवा के नियमों का पालन करने से इस्राएल जाति की शोभा बढ़ी और वह दूसरी सभी जातियों से बिलकुल अलग नज़र आयी। (व्यवस्थाविवरण 4:6-8) दाऊद की तरह अगर हम भी लगातार शास्त्रवचनों को पढ़ें, उन पर गहरायी से मनन करें और पूरी लगन से उनका अध्ययन करें, तो यहोवा के प्रताप के लिए हमारी श्रद्धा भी बढ़ेगी।
यहोवा के गुण क्या ही मनभावने हैं!
20, 21. (क) भजन 145:7-9 में यहोवा के किन गुणों का ज़िक्र करके उसकी महानता की बड़ाई की गयी है? (ख) इन आयतों में बताए परमेश्वर के गुणों का उन लोगों पर क्या असर पड़ता है जो उससे प्यार करते हैं?
20 जैसे हमने देखा, भजन 145 की पहली छः आयतों में ठोस कारण दिए गए हैं कि यहोवा की अगम महानता ज़ाहिर करनेवाली बातों के लिए हमें क्यों उसकी स्तुति करनी चाहिए। और सात से नौ आयतों में यहोवा के गुणों का ज़िक्र करते हुए उसकी महानता का बखान किया गया है। दाऊद गाता है: “लोग तेरी बड़ी भलाई का स्मरण करके उसकी चर्चा करेंगे, और तेरे धर्म [“धार्मिकता,” NW] का जयजयकार करेंगे। यहोवा अनुग्रहकारी और दयालु, विलम्ब से क्रोध करनेवाला और अति करुणामय है। यहोवा सभों के लिये भला है, और उसकी दया उसकी सारी सृष्टि पर है।”
21 दाऊद सबसे पहले यहोवा की भलाई और धार्मिकता का ज़िक्र करता है। ये वही गुण हैं जिनके बारे में शैतान यानी इब्लीस ने सवाल खड़ा किया था। जो लोग परमेश्वर से प्यार करते और उसकी हुकूमत के अधीन रहते हैं, उन सभी पर इन गुणों का क्या असर होता है? इसमें शक नहीं कि यहोवा की भलाई और उसका धार्मिकता से शासन करना, उसके उपासकों को इतनी खुशी देता है कि वे उसकी स्तुति करने से खुद को रोक नहीं सकते। इतना ही नहीं, यहोवा ‘सभी’ के साथ भलाई करता है। उम्मीद है कि यहोवा का यह गुण, और भी कई लोगों को पश्चाताप करने और उसके उपासक बनने को उकसाएगा, इससे पहले कि देर हो जाए।—प्रेरितों 14:15-17.
22. यहोवा अपने सेवकों से किस तरह पेश आता है?
22 दाऊद, उन गुणों को भी अनमोल समझता था जिनके बारे में खुद परमेश्वर ने ‘मूसा के सामने होते हुए प्रचार किया था, कि यहोवा, यहोवा, ईश्वर दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय और सत्य।’ (निर्गमन 34:6) तभी तो दाऊद ने कहा: “यहोवा अनुग्रहकारी और दयालु, विलम्ब से क्रोध करनेवाला और अति करुणामय है।” हालाँकि यहोवा की महानता अगम है, फिर भी वह अपने हर सेवक पर अनुग्रह करता और उनके साथ गरिमा से पेश आता है। वह दया का सागर है और पश्चाताप करनेवाले पापियों को यीशु के छुड़ौती बलिदान की बिनाह पर माफ करता है। वह क्रोध करने में धीमा है, इसलिए अपने सेवकों को मौका देता है कि वे अपनी उन कमज़ोरियों को दूर करें जो उनके लिए धार्मिकता की नयी दुनिया में जाने से रुकावट बन सकती हैं।—2 पतरस 3:9, 13, 14.
23. अगले लेख में हम किस अनमोल गुण पर चर्चा करेंगे?
23 दाऊद, परमेश्वर की निरंतर प्रेम-कृपा, या सच्चे प्यार की तारीफ करता है। दरअसल, भजन 145 की बाकी आयतें यही दिखाती हैं कि यहोवा निरंतर प्रेम-कृपा कैसे दिखाता है और बदले में उसके वफादार सेवक अपना एहसान कैसे ज़ाहिर करते हैं। इन विषयों पर अगले लेख में चर्चा की जाएगी।
आपका जवाब क्या है?
• हमारे पास “प्रति दिन” यहोवा की स्तुति करने के क्या-क्या मौके हैं?
• कौन-सी मिसालें दिखाती हैं कि यहोवा की महानता अगम है?
• यहोवा के प्रताप की महिमा के लिए हम अपनी श्रद्धा कैसे बढ़ा सकते हैं?
[पेज 10 पर तसवीर]
मंदाकिनियाँ यहोवा की महानता के बारे में गवाही देती हैं
[चित्र का श्रेय]
Courtesy of Anglo-Australian Observatory, photograph by David Malin
[पेज 12 पर तसवीर]
यीशु मसीह के मामले में यहोवा ने अपनी महानता कैसे ज़ाहिर की?
[पेज 13 पर तसवीर]
सीनै पर्वत के पास जब इस्राएलियों को कानून-व्यवस्था दी गयी थी, तब उन्होंने यहोवा के प्रताप की महिमा देखी