अध्याय 20
“हृदय में बुद्धिमान्”—फिर भी नम्र
1-3. हम यकीन के साथ क्यों कह सकते हैं कि यहोवा नम्र है?
एक पिता अपने छोटे-से लड़के को एक अहम सबक सिखाना चाहता है। वह चाहता है कि उसकी बात बच्चे के दिल में उतर जाए। यह करने के लिए उसे क्या तरीका अपनाना चाहिए? क्या उसे बच्चे के सिर पर सवार होकर सख्ती से बोलना चाहिए? या क्या उसे बैठकर, नरमी से और लुभावने अंदाज़ में उससे बात करनी चाहिए? बेशक एक बुद्धिमान, नम्र पिता नरमी से बात करने का रास्ता इख्तियार करेगा।
2 यहोवा कैसा पिता है—घमंडी या नम्र, कठोर या नर्मदिल? यहोवा के पास सारा ज्ञान है और वह सबसे ज़्यादा बुद्धिमान है। फिर भी, जैसा कि आप जानते हैं, जिन लोगों के पास ज्ञान और बुद्धि होती है ज़रूरी नहीं कि वे नम्र भी हों? यह वैसा ही है जैसा बाइबल कहती है: “ज्ञान घमण्ड उत्पन्न करता है।” (1 कुरिन्थियों 3:19; 8:1) मगर यहोवा “हृदय में बुद्धिमान्” होने के साथ-साथ नम्र भी है। (अय्यूब 9:4, NHT) उसकी नम्रता का मतलब यह नहीं कि उसका पद किसी तरह कम है या उसकी कोई शान नहीं, लेकिन इसका मतलब है कि उसमें दूर-दूर तक घमंड नहीं। ऐसा क्यों?
3 यहोवा पवित्र है। इसलिए, घमंड जो भ्रष्ट करनेवाला अवगुण है, यहोवा में बिलकुल भी नहीं है। (मरकुस 7:20-22) इसके अलावा, गौर कीजिए कि भविष्यवक्ता यिर्मयाह ने यहोवा से क्या कहा: “निश्चय ही तेरा प्राण [खुद यहोवा] याद करेगा और मुझ पर नीचे झुकेगा।”a (विलापगीत 3:20, NW) ज़रा सोचिए! इस विश्व का महाराजाधिराज यहोवा ‘नीचे झुकने’ या यिर्मयाह के स्तर तक नीचे उतरने और उस असिद्ध इंसान की मदद करने को तैयार था। (भजन 113:7) जी हाँ, यहोवा वाकई नम्र है। मगर परमेश्वर की नम्रता क्या है? बुद्धि से इसका क्या नाता है? और हमारे लिए इसकी क्या अहमियत है?
यहोवा कैसे नम्र होने का सबूत देता है
4, 5. (क) नम्रता क्या है, यह कैसे ज़ाहिर होती है और क्यों इसे कमज़ोरी या बुज़दिली की निशानी नहीं समझना चाहिए? (ख) यहोवा ने दाऊद के साथ अपने बर्ताव में नम्रता कैसे दिखायी, और यहोवा का नम्र होना हमारे लिए क्या अहमियत रखता है?
4 नम्रता मन की दीनता है, जहाँ नम्रता होती है वहाँ हेकड़ी और घमंड के लिए कोई जगह नहीं होती। नम्रता, इंसान के दिल का भीतरी गुण है जो नर्मदिली, धीरज और कोमलता जैसे गुणों से ज़ाहिर होता है। (गलतियों 5:22, 23) मगर परमेश्वर के इन गुणों को उसकी कमज़ोरी या बुज़दिली की निशानी हरगिज़ नहीं समझना चाहिए। ऐसा नहीं कि ये गुण, यहोवा के धर्मी क्रोध या विनाशकारी शक्ति के इस्तेमाल से मेल नहीं खाते। इसके बजाय, यहोवा अपनी नम्रता और नर्मदिली से, अपनी ज़बरदस्त क्षमता का यानी खुद पर पूरा काबू रखने की शक्ति का सबूत देता है। (यशायाह 42:14) मगर, बुद्धि के साथ नम्रता का क्या नाता है? बाइबल के बारे में लिखी एक किताब कहती है: “कुल मिलाकर, नम्रता की परिभाषा है . . . अपने आप को भुलाना। और नम्रता की बुनियाद पर ही सारी बुद्धि कायम है।” तो फिर, नम्रता के बिना सच्ची बुद्धि हो ही नहीं सकती। यहोवा की नम्रता हमें कैसे लाभ पहुँचाती है?
एक बुद्धिमान पिता अपने बच्चों के साथ नम्रता और नरमी से पेश आता है
5 राजा दाऊद ने यहोवा के लिए गीत गाया: “तू ने मुझे अपने उद्धार की ढाल भी दी है, तेरा दाहिना हाथ मुझे सम्भाले रहता है, तेरी नम्रता मुझे महान् बनाती है।” (भजन 18:35, NHT) दरअसल, इस असिद्ध, अदना इंसान की रक्षा करने और उसे हर दिन सँभालने के लिए यहोवा ने अपने आपको नीचे झुकाया था। दाऊद को एहसास था कि अगर वह उद्धार चाहता है, और राजा बनकर कुछ हद तक महानता हासिल करना चाहता है, तो यह तभी मुमकिन होगा जब यहोवा ऐसा करने के लिए खुद को नम्र करने की इच्छा दिखाए। सच, अगर यहोवा नम्र न होता और एक नर्मदिल और प्यार करनेवाले पिता की तरह हमारे साथ पेश आने के लिए खुद को झुकाने को तैयार न होता, तो हममें से कौन उद्धार की आशा कर सकता था?
6, 7. (क) बाइबल क्यों कभी नहीं कहती कि यहोवा मर्यादाशील है? (ख) नर्मदिली और बुद्धि के बीच क्या नाता है, और इस मामले में सबसे बढ़िया मिसाल किसकी है?
6 गौर करने लायक बात है कि नम्रता दिखाना और मर्यादा में रहना दो अलग-अलग बातें हैं। मर्यादा वह बेहतरीन गुण है जिसे वफादार इंसानों को अपने अंदर पैदा करना चाहिए। नम्रता की तरह, मर्यादा भी बुद्धि से जुड़ी हुई है। मिसाल के लिए, नीतिवचन 11:2 (NW) कहता है: “मर्यादाशील लोगों में बुद्धि होती है।” मगर, बाइबल के मुताबिक मर्यादा में रहने की बात यहोवा पर लागू नहीं होती। क्यों नहीं? बाइबल के मुताबिक, मर्यादाशील वह है जिसे हमेशा अपनी हदों का एहसास रहता है। लेकिन, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के लिए ऐसी कोई हद नहीं, सिवाय उनको छोड़ जो अपने धर्मी स्तरों की वजह से खुद उसने अपने लिए ठहरायी हैं। (मरकुस 10:27; तीतुस 1:2) इसके अलावा, परमप्रधान परमेश्वर के नाते वह किसी के अधीन नहीं है। इसलिए, मर्यादा का गुण यहोवा पर कभी लागू नहीं होता।
7 लेकिन, यहोवा नम्र और नर्मदिल है। वह अपने सेवकों को सिखाता है कि सच्ची बुद्धि पाने के लिए नर्मदिली बेहद ज़रूरी है। उसका वचन ऐसी “नर्मदिली” के बारे में बताता है “जिसका बुद्धि से नाता है।”b (याकूब 3:13, NW) इस मामले में आइए यहोवा की मिसाल पर गौर करें।
ज़िम्मेदारी देने और दूसरों की सुनने में यहोवा की नम्रता
8-10. (क) यह क्यों अनोखी बात है कि यहोवा दूसरों को ज़िम्मेदारी सौंपने और उनकी बात सुनने के लिए तैयार रहता है? (ख) सर्वशक्तिमान कैसे अपने स्वर्गदूतों के साथ नम्रता से पेश आया है?
8 यहोवा दूसरों को ज़िम्मेदारी देने और उनकी बात सुनने के लिए तैयार रहता है। यह उसकी नम्रता का एक प्यार-भरा सबूत है। वह दूसरों की सुनता है, यह बात सोचकर ही ताज्जुब होता है; क्योंकि यहोवा को किसी की मदद या सलाह की कोई ज़रूरत नहीं। (यशायाह 40:13, 14; रोमियों 11:34, 35) तो भी, बाइबल बार-बार दिखाती है कि यहोवा ने इस तरह खुद को नीचे झुकाया है।
9 मसलन, इब्राहीम की ज़िंदगी की एक अनोखी घटना पर गौर कीजिए। इब्राहीम के पास तीन मेहमान आए थे, उनमें से एक को वह “यहोवा” पुकार रहा था। ये मेहमान दरअसल स्वर्गदूत थे, मगर उनमें से एक यहोवा के नाम से आया था और उसकी तरफ से कार्यवाही कर रहा था। जब वह स्वर्गदूत बोलता और काम करता था, तो यह ऐसा था मानो खुद यहोवा बोल रहा हो या कार्यवाही कर रहा हो। इस दूत के ज़रिए यहोवा ने इब्राहीम को बताया कि उसने “सदोम और अमोरा की” बुराई के खिलाफ भारी “चिल्लाहट” सुनी है। यहोवा ने कहा: “मैं उतरकर देखूंगा, कि उसकी जैसी चिल्लाहट मेरे कान तक पहुंची है, उन्हों ने ठीक वैसा ही काम किया है कि नहीं: और न किया हो तो मैं उसे जान लूंगा।” (उत्पत्ति 18:3, 20, 21) बेशक, यहोवा के संदेश का यह मतलब न था कि सर्वशक्तिमान खुद नीचे “उतरकर” देखेगा। इसके बजाय, उसने अपने दूत भेजे जो उसकी तरफ से उन नगरों में गए। (उत्पत्ति 19:1) क्यों? क्या यहोवा, जो सबकुछ देख सकता है, खुद-ब-खुद उस इलाके की सच्ची हालत को नहीं “जान” सकता था? बेशक, जान सकता था। मगर, ऐसा करने के बजाय यहोवा ने नम्रता दिखाते हुए स्वर्गदूतों को इस काम की ज़िम्मेदारी सौंपी ताकि वे इन नगरों के हालात का मुआयना करें और सदोम में लूत और उसके घराने से जाकर मिलें।
10 इतना ही नहीं, यहोवा दूसरों की बात भी सुनता है। एक बार यहोवा ने दुष्ट राजा आहाब को मिटाने के लिए अपने स्वर्गदूतों से सलाह-मशविरा किया। असल में, यहोवा को इस मदद की ज़रूरत नहीं थी। मगर फिर भी उसने, उनमें से एक स्वर्गदूत के मशविरे को माना और उसके मुताबिक काम करने की ज़िम्मेदारी उसे सौंपी। (1 राजा 22:19-22) क्या यह नम्रता का सबूत नहीं?
11, 12. इब्राहीम कैसे यहोवा की नम्रता को जान पाया?
11 यहोवा उन असिद्ध इंसानों की बात भी सुनने को तैयार रहता है, जो उसके सामने अपनी चिंता ज़ाहिर करना चाहते हैं। मिसाल के लिए, जब यहोवा ने पहली बार इब्राहीम को बताया कि वह सदोम और अमोरा के नगरों को नाश करने जा रहा है, तो यहोवा का यह वफादार सेवक चिंता में पड़ गया। इब्राहीम ने कहा: “ऐसा करना तुझ से दूर रहे।” और आगे कहा: “क्या समस्त पृथ्वी का न्यायी उचित न्याय न करे[गा]?” (NHT) उसने यहोवा से पूछा कि अगर उन नगरों में 50 धर्मी लोग पाए गए, तो क्या वह उन नगरों को बख्श देगा? हालाँकि यहोवा ने इब्राहीम को यकीन दिलाया कि वह ऐसा ही करेगा, फिर भी इब्राहीम 45, फिर 40, और उससे भी कम गिनती करके पूछता रहा। यहोवा के बार-बार यकीन दिलाने के बावजूद इब्राहीम तब तक पूछता रहा जब तक कि वह 10 पर न आ गया। शायद इब्राहीम को अब तक पूरी तरह समझ नहीं आया था कि यहोवा कितना दयालु है। इब्राहीम के सवाल करने की वजह चाहे जो भी रही हो, यहोवा ने बड़े धीरज और नम्रता से अपने इस मित्र और सेवक को अपनी चिंता ज़ाहिर करने का मौका दिया।—उत्पत्ति 18:23-33.
12 ऐसे कितने पढ़े-लिखे और ज्ञानी लोग होंगे जो अपने से कहीं कम अक्लमंद इंसान की बात इतने धीरज से सुनें?c लेकिन, हमारा परमेश्वर ऐसी नम्रता दिखाता है। यहोवा के साथ बातचीत के दौरान, इब्राहीम को यह भी समझ आया कि यहोवा “कोप करने में धीरजवन्त” है। (निर्गमन 34:6) इब्राहीम को शायद इस बात का एहसास था कि परमप्रधान की कार्यवाही पर सवाल उठाने का उसे कोई हक नहीं, इसलिए उसने दो बार बिनती की: “हे प्रभु, क्रोध न कर।” (उत्पत्ति 18:30, 32) बेशक यहोवा क्रोधित नहीं हुआ। उसमें वाकई वह “नर्मदिली [है] जिसका बुद्धि से नाता है।”
यहोवा कोमल है
13. बाइबल में जिस तरह शब्द “कोमल” इस्तेमाल हुआ है, उसका क्या मतलब है और यह शब्द यहोवा पर बिलकुल ठीक क्यों बैठता है?
13 यहोवा की नम्रता उसके एक और मनोहर गुण, कोमलता से ज़ाहिर होती है। पर अफसोस कि इस गुण की असिद्ध इंसानों में भारी कमी है। यहोवा न सिर्फ अपने अक्लमंद प्राणियों की सुनने को तैयार रहता है, बल्कि जिन बातों में उसके धर्मी उसूल न टूटते हों, उनमें वह दूसरों की मानने के लिए भी तैयार रहता है। बाइबल में जिस तरह शब्द “कोमल” इस्तेमाल हुआ है, उसका शाब्दिक अर्थ है “दूसरों की मानना।” यह गुण भी परमेश्वर की बुद्धि की एक खासियत है। याकूब 3:17 कहता है: ‘जो [बुद्धि] ऊपर से आती है वह कोमल होती है।’ सबसे बुद्धिमान यहोवा परमेश्वर किस मायने में कोमल है? एक तो यह है कि वह ज़रूरत के हिसाब से खुद को ढाल लेता है। याद कीजिए, उसका अपना नाम ही हमें सिखाता है कि यहोवा अपने मकसद को पूरा करने के लिए जो ज़रूरी हो वह बन जाता है। क्या यह, ज़रूरत के हिसाब से खुद को ढालने और कोमलता दिखाने का सबूत नहीं?
14, 15. यहोवा के रथ के बारे में यहेजकेल का दर्शन, हमें यहोवा के स्वर्गीय संगठन के बारे में क्या सिखाता है, और यह इंसानों के संगठनों से कैसे अलग है?
14 बाइबल का एक हिस्सा पढ़कर हम यह समझ पाते हैं कि ज़रूरत के हिसाब से खुद को ढालने की यहोवा में ज़बरदस्त काबिलीयत है। भविष्यवक्ता यहेजकेल को आत्मिक प्राणियों से बने यहोवा के स्वर्गीय संगठन का दर्शन दिया गया था। उसने एक विराट और विस्मयकारी रथ देखा। यह रथ यहोवा का “वाहन” है, जो हमेशा उसके इशारे पर चलता है। यह रथ जिस तरीके से चलता है वह बहुत ही दिलचस्प है। इसके विशालकाय पहिए चारों दिशाओं में घूम सकते हैं और इनमें हर तरफ आँखें-ही-आँखें हैं, इसलिए ये हर तरफ देख सकते हैं और बिना रुके या मुड़े, पलक झपकते ही दिशा बदल सकते हैं। यह विराट रथ, इंसान के बनाए किसी भारी-भरकम वाहन की तरह धीरे-धीरे नहीं चलता। यह समकोण मोड़ लेता हुआ बिजली की रफ्तार से आगे बढ़ सकता है। (यहेजकेल 1:1, 14-28) जी हाँ, यह स्वर्गीय संगठन पूरी तरह सर्वशक्तिमान महाराजाधिराज यहोवा के काबू में है, और उसी की तरह लाजवाब तरीके से खुद को ढाल सकता है, यानी नित बदलते हालात के मुताबिक कैसी भी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कार्यवाही कर सकता है।
15 इंसान, हालात के मुताबिक खुद को ढालने की ऐसी अचूक काबिलीयत पैदा करने की बस कल्पना ही कर सकता है। लेकिन, अकसर ऐसा होता है कि इंसान और उसके बनाए संगठन ज़रूरत के हिसाब से खुद को ढालने के बजाय सख्ती से काम लेते हैं, दूसरों की माननेवाले नहीं बल्कि अड़ियल होते हैं। इसे समझने के लिए एक उदाहरण लीजिए: एक सुपर टैंकर समुद्री जहाज़ या एक मालगाड़ी देखने में भले ही विशालकाय और शक्तिशाली क्यों न लगें, मगर क्या इनमें से कोई भी अचानक बदलनेवाले हालात के मुताबिक फौरन कार्यवाही कर सकता है? मालगाड़ी जिस पटरी पर चल रही है, अगर उसके सामने अचानक कोई आ जाए, तो इसे हरगिज़ मोड़ा नहीं जा सकता और इसे अचानक रोकना भी आसान नहीं होगा। ब्रेक लगाने के बाद भी, एक भरी हुई मालगाड़ी कम-से-कम दो किलोमीटर से पहले नहीं रुकेगी! उसी तरह पानी का सुपर टैंकर, इंजिन बंद करने के बाद भी आठ किलोमीटर दूर जाकर रुकता है। अगर इंजिन को उलटी दिशा में चलाया जाए, तब भी टैंकर कम-से-कम तीन किलोमीटर से पहले नहीं रुकेगा। इंसानी संगठन भी ऐसे ही हैं जो अकसर अपने व्यवहार में बहुत सख्त और अड़ियल होते हैं। अपने घमंड की वजह से अकसर लोग, बदलती ज़रूरतों और हालात के मुताबिक खुद को ढालना पसंद नहीं करते। ऐसी ढिठाई की वजह से कई बड़ी-बड़ी कंपनियों का दिवाला पिट गया है और कई सरकारों का तख्ता भी पलट चुका है। (नीतिवचन 16:18) मगर, कितनी खुशी की बात है कि यहोवा और उसका संगठन, इंसान के इन संगठनों से बिलकुल अलग है!
यहोवा कैसे कोमलता दिखाता है
16. सदोम और अमोरा का विनाश करने से पहले, यहोवा ने लूत के साथ कैसे कोमलता बरती?
16 आइए हम एक बार फिर सदोम और अमोरा के विनाश पर गौर करें। लूत और उसके परिवार को यहोवा के स्वर्गदूत ने यह कहकर साफ-साफ हिदायत दी: “पहाड़ पर भाग जाना।” मगर लूत को यह बात पसंद नहीं आयी। उसने विनती की: “हे प्रभु, ऐसा न कर।” लूत को यह डर था कि अगर वह पहाड़ों की तरफ भागा तो जान से हाथ धो बैठेगा, इसलिए उसने विनती की कि उसे और उसके परिवार को पास के सोअर नगर में जाने की इजाज़त दी जाए। अब याद कीजिए कि यहोवा ने उस नगर को भी नाश करने की ठानी थी। और-तो-और, लूत के इस डर की कोई जायज़ वजह भी नहीं थी। यहोवा बेशक पहाड़ों पर भी लूत की हिफाज़त कर सकता था! तो भी, यहोवा ने लूत की विनती को माना और सोअर को बख्श दिया। स्वर्गदूत ने लूत से कहा: “देख, मैं ने इस विषय में भी तेरी बिनती अंगीकार की है।” (उत्पत्ति 19:17-22) क्या ऐसा करना यहोवा की कोमलता का सबूत नहीं था?
17, 18. नीनवे के लोगों के मामले में, यहोवा ने कैसे दिखाया कि वह कोमल है?
17 यहोवा दिल से किए गए पश्चाताप को भी स्वीकार करता है, और हमेशा दया दिखाते हुए वही करता है जो सही है। गौर कीजिए जब भविष्यवक्ता योना को दुष्ट और हत्यारी नगरी नीनवे में भेजा गया तब क्या हुआ। योना नीनवे की सड़कों पर परमेश्वर का जो संदेश सुनाता जाता था, वह बहुत सीधा-सा था: यह शक्तिशाली नगरी 40 दिन में तहस-नहस की जाएगी। मगर हालात में एकाएक बहुत भारी बदलाव आया। नीनवे के लोगों ने पछतावा दिखाया!—योना, अध्याय 3.
18 अचानक इस तरह हालात बदलने पर यहोवा ने जो किया और योना ने जो किया, उससे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। इस मामले में, यहोवा ने खुद को हालात के मुताबिक ढाला, और वह “योद्धा” बनने के बजाय पापों का क्षमा करनेवाला बन गया।d (निर्गमन 15:3) मगर दूसरी तरफ, योना टस-से-मस नहीं हुआ, और उसने ज़रा भी तरस नहीं खाया। यहोवा की तरह कोमलता दिखाने के बजाय, वह उस मालगाड़ी या पानी के सुपर टैंकर जैसा निकला जिनके बारे में हमने पहले ज़िक्र किया था। उसने सर्वनाश का ऐलान किया था, तो उसके हिसाब से सर्वनाश होना ही चाहिए! मगर, यहोवा ने बड़े धीरज से अपने इस बेसब्र भविष्यवक्ता को कोमल होने और दया दिखाने का एक यादगार सबक सिखाया।—योना, अध्याय 4.
19. (क) हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमसे जो उम्मीद रखता है, उसमें वह कोमलता दिखाता है? (ख) नीतिवचन 19:17 कैसे दिखाता है कि यहोवा ‘भला और कोमल’ मालिक है, और उसकी तरह कोई और नम्र नहीं हो सकता?
19 आखिर में, यहोवा हमसे जो उम्मीद करता है उसमें भी वह कोमलता दिखाता है। राजा दाऊद ने कहा: “वह हमारी सृष्टि जानता है; और उसको स्मरण रहता है कि मनुष्य मिट्टी ही हैं।” (भजन 103:14) यहोवा हमारी असिद्धताओं को और सीमाओं को हमसे बेहतर समझता है। वह कभी हमसे हद-से-ज़्यादा की उम्मीद नहीं करता। बाइबल दो तरह के मालिकों के बारे में बताती है। एक वे हैं जो “भले और विनम्र [“कोमल,” NW]” हैं और दूसरे ऐसे हैं जो “निर्दयी” हैं। (1 पतरस 2:18, NHT) यहोवा कैसा मालिक है? ध्यान दीजिए कि नीतिवचन 19:17 क्या कहता है: “जो कंगाल पर अनुग्रह करता है, वह यहोवा को उधार देता है।” ज़ाहिर है कि सिर्फ एक भला और कोमल मालिक ही भलाई के ऐसे कामों पर ध्यान देगा, जो दीनों की मदद करने के लिए किए जाते हैं। इससे ज़्यादा, यह आयत ज़ाहिर करती है कि यहोवा खुद को ऐसे मामूली इंसानों का कर्ज़दार समझता है जो दया के ऐसे काम करते हैं! वाकई, इससे बड़ी नम्रता और कोई नहीं दिखा सकता।
20. हम कैसे यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमारी प्रार्थनाओं को सुनता है और उनका जवाब देता है?
20 आज भी यहोवा अपने सेवकों के साथ इतनी ही नर्मदिली और कोमलता से पेश आता है। जब हम विश्वास के साथ प्रार्थना करते हैं, तो वह हमारी सुनता है। और हालाँकि वह हमसे बात करने के लिए अपने स्वर्गदूतों को नहीं भेजता, फिर भी हमें इस नतीजे पर नहीं पहुँचना चाहिए कि हमारी प्रार्थनाओं का वह जवाब नहीं देता। याद कीजिए कि जब प्रेरित पौलुस ने अपने मसीही भाई-बहनों से कहा कि वे उसके कैद से रिहा होने के लिए ‘प्रार्थना करते रहें,’ तो उसने यह भी कहा: “कि मैं शीघ्र तुम्हारे पास फिर आ सकूं।” (इब्रानियों 13:18, 19) सो हमारी प्रार्थनाएँ सुनकर यहोवा वह कर सकता है, जो उसने शायद पहले न किया होता!—याकूब 5:16.
21. यहोवा की नम्रता का हमें क्या नतीजा नहीं निकालना चाहिए, इसके बजाय हमें किस बात के लिए उसकी कदर करनी चाहिए?
21 बेशक, यहोवा की नम्रता को ज़ाहिर करनेवाले गुणों का, यानी उसकी नर्मदिली, कोमलता, दूसरों की सुनने की इच्छा, और उसके धीरज का यह मतलब नहीं कि वह अपने धर्मी सिद्धांतों के साथ समझौता करता है। ईसाईजगत के पादरी शायद यह सोचें कि अगर वे झुंड के कानों की खुजली मिटाने के लिए यहोवा के ऊँचे नैतिक स्तरों पर पानी फेर देते हैं, तो वे कोमलता दिखा रहे हैं। (2 तीमुथियुस 4:3) इंसानों की यह आदत होती है कि जो नियम उनकी सहूलियत के हिसाब से ठीक न हो, उसे वे नहीं मानते, मगर ऐसा रवैया परमेश्वर की तरह कोमलता दिखाना हरगिज़ नहीं है। यहोवा पवित्र है; वह कभी अपने धर्मी स्तरों को भ्रष्ट नहीं होने देगा। (लैव्यव्यवस्था 11:44) तो फिर, आइए हम यहोवा की कोमलता से प्यार करें, क्योंकि यह वाकई उसकी नम्रता का सबूत है। क्या यह सोचकर आपके अंदर सनसनी नहीं दौड़ जाती कि इस विश्व में सबसे ज़्यादा बुद्धिमान, यहोवा परमेश्वर नम्रता की एक बेजोड़ मिसाल भी है? ऐसे विस्मयकारी, मगर नर्मदिल, धीरजवंत और कोमल परमेश्वर के करीब आना क्या ही खुशी की बात है!
a प्राचीन शास्त्रियों, या सोफेरिम वर्ग ने इस आयत को बदलकर यह लिखा कि यिर्मयाह, न कि यहोवा नीचे झुकता है। ज़ाहिर है कि उन्हें यह ठीक नहीं लगा कि परमेश्वर ऐसा दीन काम करे। इसका नतीजा यह हुआ कि बहुत-से अनुवाद इस बढ़िया आयत का असली मतलब देने से चूक गए। मगर न्यू इंग्लिश बाइबल में इसका सही-सही अनुवाद किया गया है जहाँ यिर्मयाह, परमेश्वर से कहता है: “याद कर, हे [परमेश्वर] याद कर और नीचे झुककर मेरे पास आ।”
b कुछ और अनुवाद कहते हैं, “नम्रता जो बुद्धि से आती है” और “कोमलता जो बुद्धि की निशानी है।”
c दिलचस्पी की बात है कि बाइबल धीरज को अहंकार के उल्टा बताती है। (सभोपदेशक 7:8) यहोवा का धीरज उसकी नम्रता का एक और सबूत है।—2 पतरस 3:9.