हमेशा अपना बोझ यहोवा पर डालिए
अनेक लोग आज बोझ से कुचला हुआ महसूस करते हैं। आर्थिक कठिनाइयाँ, दुःखद पारिवारिक समस्याएँ, स्वास्थ्य समस्याएँ, दमन और अत्याचार के कारण पीड़ा और सताहट, और ढेर सारी अन्य वेदनाएँ चक्की के पाटों की तरह उनकी गर्दनों में लटकी हुई हैं। इन बाहरी दबावों के अलावा, कुछ लोग अपनी अपरिपूर्णताओं के कारण व्यक्तिगत अयोग्यता और असफलता के भाव से भी दबा हुआ महसूस करते हैं। अनेक लोग इस लड़ाई को बिलकुल छोड़ देने के लिए प्रवृत्त होते हैं। जब बोझ असहनीय लगने लगें तब आप कैसे सामना कर सकते हैं?
एक समय इस्राएल के राजा दाऊद ने महसूस किया कि दबाव लगभग असहनीय था। भजन ५५ के अनुसार, दबावों और शत्रुओं के बैर के कारण हुई चिन्ता ने उसे हद से ज़्यादा विचलित कर दिया था। उसने बड़ी हृदयवेदना और भय का अनुभव किया। वह अपने दुःख में सिर्फ़ कराह सकता था। (भजन ५५:२, ५, १७) लेकिन अपनी तमाम परेशानियों के बावजूद, उसने सामना करने का एक रास्ता पा लिया था। कैसे? उसने सहारे के लिए अपने परमेश्वर की ओर देखा। उन लोगों के लिए जो शायद दाऊद की तरह महसूस करें, उसकी यह सलाह थी: “अपना बोझ यहोवा पर डाल दे।”—भजन ५५:२२.
“अपना बोझ यहोवा पर डाल दे” इससे उसका क्या तात्पर्य था? क्या यह मात्र प्रार्थना में यहोवा के सम्मुख अपनी चिन्ताओं को व्यक्त करने का मामला है? अथवा स्थिति को सुधारने के लिए क्या हम स्वयं कुछ कर सकते हैं? तब क्या जब यहोवा के पास आने में हम अत्यन्त अयोग्य महसूस करें? दाऊद का क्या तात्पर्य था यह हम उन अनुभवों को देखकर पता लगा सकते हैं जो उसने सजीवता से याद किए होंगे जब उसने इन शब्दों को लिखा।
यहोवा के बल से कार्य कीजिए
क्या आपको याद है कि किस प्रकार गोलियत ने इस्राएली योद्धाओं के मन में डर बैठा दिया था? इस दानवी पुरुष ने, जो कि नौ फुट से भी लम्बा था, उन्हें भयभीत किया। (१ शमूएल १७:४-११, २४) लेकिन दाऊद भयभीत नहीं हुआ। क्यों? क्योंकि उसने गोलियत से अपने बल पर मुक़ाबला करने की कोशिश नहीं की। जिस समय से वह इस्राएल का भावी राजा अभिषिक्त किया गया था, जितने भी काम उसने किए उन सब में उसने परमेश्वर की आत्मा को ख़ुद को निर्देशित करने और बलवन्त करने दिया था। (१ शमूएल १६:१३) सो उसने गोलियत से कहा: “मैं सेनाओं के यहोवा के नाम से तेरे पास आता हूं, जो इस्राएली सेना का परमेश्वर है, और उसी को तू ने ललकारा है। आज के दिन यहोवा तुझ को मेरे हाथ में कर देगा।” (१ शमूएल १७:४५, ४६) दाऊद एक कुशल गोफन चलानेवाला था, लेकिन हम निश्चित हो सकते हैं कि यहोवा की पवित्र आत्मा ने उस पत्थर को निर्देशित किया और ज़्यादा प्राणघातक बनाया जिसे उसने गोलियत पर चलाया था।—१ शमूएल १७:४८-५१.
यह विश्वास रखते हुए कि परमेश्वर उसको सहारा और सामर्थ देता, दाऊद ने इस बड़ी चुनौती का सामना किया और विजयी हुआ। उसने परमेश्वर के साथ एक अच्छा, भरोसे का रिश्ता क़ायम किया था। जिस तरीक़े से यहोवा ने इससे पहले उसे छुड़ाया था, निःसन्देह यह उससे अधिक मज़बूत हुआ होगा। (१ शमूएल १७:३४-३७) दाऊद की तरह, आप यहोवा के साथ एक मज़बूत व्यक्तिगत सम्बन्ध क़ायम रख सकते हैं और आपको सभी हालातों में बलवन्त करने और संभालने की उसकी योग्यता और इच्छा पर पूर्ण विश्वास रख सकते हैं।—भजन ३४:७, ८.
समस्या को सुलझाने के लिए भरसक कोशिश कीजिए
हालाँकि इसका अर्थ यह नहीं है कि अत्यधिक पीड़ा, चिन्ता, और यहाँ तक कि भय के समय कभी नहीं आएँगे, जैसा कि भजन ५५ स्पष्ट रूप से दिखाता है। उदाहरण के लिए, यहोवा में विश्वास के इस निर्भीक प्रदर्शन के कुछ साल बाद, दाऊद ने अपने शत्रुओं के सामने अत्यन्त भय का अनुभव किया। उसने शाऊल का अनुग्रह खो दिया था और उसे अपने जीवन के लिए भागना पड़ा। उस भावात्मक अशान्ति की जो दाऊद को हुई होगी, और यहोवा के उद्देश्य की पूर्ति के बारे में जो सवाल इसने उसके मन में उठाए होंगे, उनकी कल्पना करने की कोशिश कीजिए। आख़िरकार, इस्राएल के भावी राजा के तौर पर उसका अभिषेक किया जा चुका था, फिर भी, एक जंगली जानवर की तरह उसका पीछा किया जा रहा था, उसे एक भगोड़े के रूप में वीराने में जीना पड़ रहा था। जब उसने गत नगर, अर्थात् गोलियत के गृहनगर में शरण पानी चाही तो उसे पहचान लिया गया। इसका क्या परिणाम हुआ? अभिलेख कहता है कि वह “अत्यन्त डर गया।”—१ शमूएल २१:१०-१२.
लेकिन उसने अपने भय और गहरी चिन्ता को उसे सहायता के लिए यहोवा की ओर देखने से रोकने नहीं दिया। भजन ३४ के अनुसार (जो इस अनुभव के परिणामस्वरूप लिखा गया), दाऊद ने कहा: “मैं यहोवा के पास गया, तब उस ने मेरी सुन ली, और मुझे पूरी रीति से निर्भय किया। इस दीन जन ने पुकारा तब यहोवा ने सुन लिया, और उसको उसके सब कष्टों से छुड़ा लिया।”—भजन ३४:४, ६.
निश्चित ही, यहोवा ने उसको सहारा दिया। तौभी ध्यान दीजिए कि दाऊद केवल हाथ पर हाथ रखकर यहोवा द्वारा छुड़ाए जाने के इन्तज़ार में नहीं बैठा रहा। इस कठिन स्थिति से निकलने के लिए इन हालातों में वह जो कुछ ख़ुद कर सकता था उसे करने की ज़रूरत को उसने पहचाना। उसने अपने छुटकारे में यहोवा के हाथ को स्वीकार किया, लेकिन पागल होने का नाटक करने के द्वारा, ताकि गत का राजा उसे न मारे, उसने ख़ुद कार्यवाही की। (१ शमूएल २१:१४-२२:१) यहोवा द्वारा छुड़ाए जाने का बैठकर इन्तज़ार करने के बजाय, हमें भी अपना बोझ उठाने के लिए भरसक कोशिश करने की ज़रूरत है।—याकूब १:५, ६; २:२६.
अपने बोझ मत बढ़ाइए
बाद में, अपने जीवन में दाऊद ने एक और दुःखद सबक़ सीखा। वह क्या था? वह था कि कभी-कभी हम अपने बोझ को ख़ुद बढ़ा लेते हैं। पलिश्तियों पर विजय के पश्चात्, दाऊद पर मुसीबत आने लगी जब उसने वाचा के सन्दूक को यरूशलेम लाने का निर्णय किया। ऐतिहासिक अभिलेख हमें बताता है: “तब दाऊद और जितने लोग उसके संग थे, वे सब उठकर यहूदा के बाले नाम स्थान से चले, कि परमेश्वर का वह सन्दूक ले आएं, . . . उन्हों ने परमेश्वर का सन्दूक एक नई गाड़ी पर चढ़ाकर . . . निकाला; और अबीनादाब के उज्जा और अहह्यो नाम दो पुत्र उस नई गाड़ी को हांकने लगे।”—२ शमूएल ६:२, ३.
सन्दूक को ले जाने के लिए गाड़ी के इस्तेमाल ने उन सभी निर्देशों का उल्लंघन किया जो यहोवा ने उसके सम्बन्ध में दिए थे। यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि एकमात्र प्राधिकृत धारक, कहाती लेवियों को, सन्दूक में बने ख़ास छल्लों में डले डंडों का इस्तेमाल करते हुए अपने कंधों पर सन्दूक को उठाना चाहिए। (निर्गमन २५:१३, १४; गिनती ४:१५, १९; ७:७-९) इन निर्देशों की उपेक्षा करना विपत्ति लाया। जब गाड़ी खींच रहे बैलों की वजह से वह लगभग गिरने लगा, तब उज्जा ने, जो कि संभवतः एक लेवी तो था लेकिन निश्चित ही एक याजक नहीं था, सन्दूक को थामने के लिए हाथ बढ़ाया और उसकी अश्रद्धा के कारण यहोवा द्वारा मार डाला गया।—२ शमूएल ६:६, ७.
राजा होने के नाते दाऊद कुछ हद तक इसके लिए ज़िम्मेदार था। उसकी प्रतिक्रिया यह दिखाती है कि वे लोग भी जिनका यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्ता है कठिन परिस्थितियों में कई बार ग़लत तरीक़े से प्रतिक्रिया दिखा सकते हैं। पहले तो दाऊद क्रोधित हुआ। उसके बाद वह भयभीत हो गया। (२ शमूएल ६:८, ९) यहोवा के साथ उसके भरोसेपूर्ण रिश्ते की कड़ी परीक्षा हुई। यह एक मौक़ा था जब वह प्रतीयमानतः यहोवा पर अपना बोझ डालने से चूक गया, जब उसने उसकी आज्ञाओं का पालन नहीं किया। क्या किसी समय हमारी स्थिति भी ऐसी हो सकती है? क्या हम कभी यहोवा को उन समस्याओं के लिए ज़िम्मेदार ठहराते हैं जो कि इसलिए आती हैं क्योंकि हम उसके निर्देशों की उपेक्षा करते हैं?—नीतिवचन १९:३.
दोष के बोझ का सामना करना
बाद में, दाऊद ने यहोवा के नैतिक स्तरों के विरुद्ध घोर पाप करने के द्वारा अपने लिए दोष का एक भारी बोझ बना लिया। इस मौक़े पर दाऊद ने युद्ध में अपने लोगों का नेतृत्व करने की अपनी ज़िम्मेदारी को त्याग दिया था। वह यरूशलेम में रहा जबकि वे युद्ध करने बाहर गए। ऐसा करना गंभीर संकट की ओर ले गया।—२ शमूएल ११:१.
दाऊद ने ख़ूबसूरत बतशेबा को नहाते हुए देखा। उसने उसके साथ अनैतिकता की और वह गर्भवती हो गयी। (२ शमूएल ११:२-५) इस बदचलनी को छिपाने के लिए, उसने उसके पति ऊरिय्याह को युद्ध के मैदान से वापस यरूशलेम लाने का प्रबन्ध किया। जबकि इस्राएल युद्ध में अन्तर्ग्रस्त था ऊरिय्याह ने अपनी पत्नी के साथ वैवाहिक सम्बन्ध निभाने से इनकार कर दिया। (२ शमूएल ११:६-११) अब दाऊद अपने पाप को छिपाने के लिए दुष्ट और धूर्त तरीकों पर उतर आया। उसने ऊरिय्याह के संगी सिपाहियों को उसे युद्ध में एक असुरक्षित स्थिति में छोड़ देने का प्रबन्ध किया ताकि वह मर जाता। एक घोर, दुःखद पाप!—२ शमूएल ११:१२-१७.
अंततः, निश्चित ही दाऊद को उसके पाप का लेखा देना पड़ा, और उसका परदाफ़ाश किया गया। (२ शमूएल १२:७-१२) उस दुःख और दोष के भार की कल्पना कीजिए जो दाऊद ने महसूस किया होगा जब अपनी वासना के कारण उसने जो किया था उसकी जघन्यता को उसने महसूस किया। वह अपनी असफलता के बोध से अभिभूत हो गया होगा, ख़ासकर क्योंकि वह संभवतः एक भावुक, संवेदी पुरुष था। उसने शायद पूरी तरह से बेकार महसूस किया होगा!
परन्तु, भविष्यवक्ता नातान के सामने अंगीकार करते हुए, दाऊद ने शीघ्रता से अपनी ग़लती को माना: “मैं ने यहोवा के विरुद्ध पाप किया है।” (२ शमूएल १२:१३) भजन ५१ हमें बताता है कि उसने कैसा महसूस किया और कैसे उसने यहोवा परमेश्वर से उस को शुद्ध करने और क्षमा करने के लिए बिनती की। उसने प्रार्थना की: “मुझे भली भांति धोकर मेरा अधर्म दूर कर, और मेरा पाप छुड़ाकर मुझे शुद्ध कर! मैं तो अपने अपराधों को जानता हूं, और मेरा पाप निरन्तर मेरी दृष्टि में रहता है।” (भजन ५१:२, ३) क्योंकि वह सचमुच पश्चातापी था, वह यहोवा से अपना मज़बूत, नज़दीकी रिश्ता फिर से क़ायम कर सका। दाऊद अपराध और अयोग्यता की भावना के बारे में सोचता नहीं रहा। नम्रतापूर्वक अपने दोष को मानने, सच्चा पश्चाताप प्रदर्शित करने, और यहोवा की क्षमा के लिए अत्यधिक प्रार्थना करने के द्वारा उसने अपना बोझ यहोवा पर डाल दिया। उसने परमेश्वर का अनुग्रह पुनःप्राप्त किया।—भजन ५१:७-१२, १५-१९.
विश्वासघात का सामना करना
यह हमें उस वृत्तान्त की ओर लाता है जिसने दाऊद को भजन ५५ लिखने के लिए उकसाया। वह गहरे भावात्मक तनाव में था। “मेरा हृदय भीतर ही भीतर वेदना से भर गया है,” उसने लिखा, “और मृत्यु का भय मुझ में समा गया है।” (भजन ५५:४) कौन-सी बात इस वेदना का कारण थी? दाऊद के बेटे अबशालोम ने दाऊद से राजपद छीनने का षड्यन्त्र रचा था। (२ शमूएल १५:१-६) उसके अपने बेटे द्वारा किए गए इस विश्वासघात को सहना तो मुश्किल था ही, लेकिन जिस बात ने इसे बदतर बना दिया वह यह थी कि दाऊद का सबसे ज़्यादा भरोसेमंद सलाहकार, अहीतोपेल नामक पुरुष, दाऊद के विरुद्ध इस षड्यन्त्र में शामिल हो गया। वह अहीतोपेल है जिसके बारे में दाऊद भजन ५५:१२-१४ में वर्णन करता है। इस षड्यन्त्र और विश्वासघात के फलस्वरूप, दाऊद को यरूशलेम से भागना पड़ा। (२ शमूएल १५:१३, १४) इसके कारण उसे कितनी वेदना हुई होगी!
अब भी, अपने गहरे मनोभाव और दुःख के कारण उसने यहोवा में अपने भरोसे और विश्वास को कमज़ोर नहीं होने दिया। उसने यहोवा से षड्यन्त्रकारियों की योजनाओं को विफल करने की प्रार्थना की। (२ शमूएल १५:३०, ३१) दुबारा हम देखते हैं कि दाऊद ने केवल हाथ पर हाथ रख कर यहोवा द्वारा सारा काम किए जाने का इन्तज़ार नहीं किया। जैसे ही उसके सामने मौक़ा आया, उसने अपने विरुद्ध रचे गए षड्यन्त्र को विफल करने की भरसक कोशिश की। उसने अपने एक अन्य सलाहकार, हूशै को षड्यन्त्र में शामिल होने का नाटक करने के लिए वापस यरूशलेम भेजा, जबकि वास्तव में, वह उसे विफल करने गया था। (२ शमूएल १५:३२-३४) यहोवा की सहायता से यह योजना सफल हुई। हूशै अबशालोम को उस समय तक रोके रहा जब तक कि दाऊद पुनःसंगठित नहीं हो गया।—२ शमूएल १७:१४.
दाऊद ने अपने जीवन-भर यहोवा की सुरक्षात्मक परवाह साथ ही साथ उसके धैर्य और क्षमा करने की इच्छा का कितना मूल्यांकन किया होगा! (भजन ३४:१८, १९; ५१:१७) इस पृष्ठभूमि के साथ दाऊद हमें हमारे संकट के समय में सहायता के लिए यहोवा के पास जाने, ‘अपना बोझ यहोवा पर डालने’ के लिए विश्वस्त होकर प्रोत्साहित करता है।—१ पतरस ५:६, ७ से तुलना कीजिए।
यहोवा के साथ एक मज़बूत, भरोसे का रिश्ता बनाइए और क़ायम रखिए
हम कैसे उस प्रकार का रिश्ता यहोवा के साथ क़ायम कर सकते हैं जैसा दाऊद का था, एक ऐसा रिश्ता जिसने उसे बड़ी परीक्षाओं और क्लेशों के समय में संभाले रखा? हम ऐसा रिश्ता परमेश्वर के वचन बाइबल के अध्यवसायी विद्यार्थी होने के द्वारा बनाते हैं। हम उसे उसके नियमों, सिद्धान्तों, और उसके व्यक्तित्व के बारे में हमें सिखाने देते हैं। (भजन १९:७-११) जैसे-जैसे हम परमेश्वर के वचन पर मनन करते हैं, हम और भी उसके नज़दीक आते और उस पर पूरी तरह से भरोसा करना सीखते हैं। (भजन १४३:१-५) हम उस रिश्ते को गहरा और मज़बूत करते हैं जब हम संगी उपासकों के साथ यहोवा द्वारा और अधिक निर्देश पाने के लिए संगति करते हैं। (भजन १२२:१-४) हम हार्दिक प्रार्थना के द्वारा यहोवा के साथ हमारे रिश्ते को बढ़ाते हैं।—भजन ५५:१.
सच है कि हमारी तरह दाऊद भी हताश होता था, जब यहोवा के साथ उसका रिश्ता इतना मज़बूत नहीं था जितना कि होना चाहिए था। अत्याचार हमें “बावला” बना सकता है। (सभोपदेशक ७:७) लेकिन जो हो रहा है उसे यहोवा देखता है, और वह जानता है कि हमारे दिल में क्या है। (सभोपदेशक ४:१; ५:८) हमें यहोवा के साथ अपना रिश्ता मज़बूत रखने के लिए कठिन परिश्रम करने की ज़रूरत है। तब, चाहे हमें कोई भी बोझ क्यों न उठाना पड़े, हम दबाव को कम करने अथवा हमारी परिस्थिति का सामना करने के लिए हमें शक्ति देने के लिए यहोवा पर निर्भर हो सकते हैं। (फिलिप्पियों ४:६, ७, १३) यह हमारा यहोवा के समीप रहने का मामला है। जब दाऊद ने ऐसा किया, वह पूरी तरह से सुरक्षित हुआ।
इसलिए, आपकी परिस्थिति कोई भी क्यों न हो, दाऊद कहता है हमेशा अपना बोझ यहोवा पर डालिए। तब हम इस प्रतिज्ञा की सच्चाई का अनुभव करेंगे: “वह तुझे सम्भालेगा; वह धर्मी को कभी टलने न देगा।”—भजन ५५:२२.