मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
3-9 अक्टूबर
ढूँढ़े अनमोल रत्न
इंसाइट-2 पेज 180
ज्ञान
ज्ञान का स्त्रोत। यहोवा ही ज्ञान और जीवन का स्त्रोत है। ज्ञान पाने के लिए जीवन का होना ज़रूरी है। (भज 36:9; प्रेष 17:25, 28) आज इंसान के पास जो ज्ञान है वह परमेश्वर के बनाए काम के बारे में सीखकर हासिल किया गया है क्योंकि परमेश्वर ने ही सबकुछ बनाया है। (प्रक 4:11; भज 19:1, 2) इसके अलावा परमेश्वर ने अपनी बातें बाइबल में लिखवायीं ताकि इंसान उसकी इच्छा और मकसद के बारे में जान सके। (2ती 3:16, 17) हमें सही ज्ञान देनेवाला यहोवा ही है और जो व्यक्ति उस ज्ञान को पाने की कोशिश करता है, उसे परमेश्वर का भय होना चाहिए। ऐसा भय रखने से वह हर पल ध्यान रखता है कि वह ऐसा कोई काम न कर दे जिससे यहोवा नाखुश हो। इस तरह का भय रखने से ज्ञान की शुरूआत होती है। (नीत 1:7) एक व्यक्ति सही ज्ञान लेने के काबिल तभी बनता है, जब वह परमेश्वर के लिए भय रखता है। लेकिन जो व्यक्ति परमेश्वर के बारे में ज़्यादा नहीं सोचता, वह अपने मन से किसी भी बात या चीज़ के लिए कुछ भी धारणाएँ बना लेता है, जो शायद गलत हों यानी उसके पास सही ज्ञान नहीं होता।
17-23 अक्टूबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | नीतिवचन 12-16
“बुद्धि का मोल सोने से बढ़कर है”
प्र07 7/15 पेज 8, अँग्रेज़ी
‘बुद्धि से रक्षा होती है’
नीतिवचन 16:16 में लिखा है, “बुद्धि की प्राप्ति चोखे सोने से क्या ही उत्तम है! और समझ की प्राप्ति चाँदी से बढ़कर योग्य है।” बुद्धि इतनी अनमोल क्यों है? सभोपदेशक 7:12 में इसका जवाब दिया गया है, “बुद्धि की आड़ रुपये की आड़ का काम देता है; परन्तु ज्ञान की श्रेष्ठता यह है कि बुद्धि से उसके रखनेवालों के प्राण की रक्षा होती है।” बुद्धि से उसके रखनेवालों के प्राण की रक्षा कैसे होती है?
परमेश्वर की बुद्धि मिलने से यानी उसके वचन बाइबल का ज्ञान लेने और उसके मुताबिक काम करने से हम उस राह पर चल पाते हैं, जो यहोवा को मंज़ूर है। (नीतिवचन2:10-12) पुराने ज़माने के इसराएली राजा सुलैमान ने कहा था, “बुराई से हटना सीधे लोगों के लिये राजमार्ग है, जो अपने चालचलन की चौकसी करता, वह अपने प्राण की भी रक्षा करता है।” (नीतिवचन 16:17) बुद्धि से काम लेने से एक व्यक्ति बुरे रास्ते से हट पाता है और अपनी ज़िंदगी बचाता है। नीतिवचन 16:16-33 में कम शब्दों में समझदारी की बातें लिखी गयी हैं। इसमें बताया गया है कि जब एक व्यक्ति परमेश्वर की बुद्धि से काम करता है, तो उसका स्वभाव, बोली और उसके काम अच्छे होते हैं।
‘नम्र भाव से रहिए’
नीतिवचन की किताब में बुद्धि को एक व्यक्ति के रूप में बताया गया है। जैसे नीतिवचन 8:13 में बुद्धि के लिए कहा गया है कि वह कहती है, ‘घमण्ड, अहंकार से मैं बैर रखती हूँ।’ अहंकार और बुद्धि एक-दूसरे के बिलकुल उलट हैं। हमें बुद्धि से काम लेना है और ध्यान रखना है कि हममें किसी भी तरह का घमंडी या अहंकारी रवैया पैदा न हो जाए। खासकर हमें तब ज़्यादा इस बात का ध्यान रखना चाहिए, जब हमें ज़िंदगी में कुछ कामयाबी मिलती है या मसीही मंडली में कोई ज़िम्मेदारी मिलती है।
नीतिवचन 16:18 में लिखा है, “विनाश से पहले गर्व, और ठोकर खाने से पहले घमण्ड आता है।” दुनिया में ऐसा पतन शायद ही किसी का हुआ हो जैसा परमेश्वर के सिद्ध आत्मिक बेटों में से एक का हुआ यानी शैतान का। वह खुद ही शैतान बना। (उत्पत्ति 3:1-5; प्रकाशितवाक्य 12:9) अपने पतन से पहले शैतान में भी घमंड या अहंकार आ गया था। बाइबल इस बारे में हमें बताती है कि जब कोई व्यक्ति नया-नया साक्षी बना हो, तो उसे मसीही मंडली में कोई ज़िम्मेदारी का पद नहीं दिया जाना चाहिए कि कहीं ऐसा न हो कि ‘वह घमंड से फूल जाए और वही दंड पाए जो शैतान ने पाया है।’ (1 तीमुथियुस 3:1, 2, 6) इस वजह से यह बहुत ज़रूरी है कि हम ध्यान रखें कि हम दूसरों के मन में घमंड पैदा न कर दें और इस बात का भी कि कहीं हमारे अंदर घमंड न आ जाए।
प्र07 7/15 पेज 8-9, अँग्रेज़ी
‘बुद्धि से रक्षा होती है’
नीतिवचन 16:16 में लिखा है, “बुद्धि की प्राप्ति चोखे सोने से क्या ही उत्तम है! और समझ की प्राप्ति चाँदी से बढ़कर योग्य है।” बुद्धि इतनी अनमोल क्यों है? सभोपदेशक 7:12 में इसका जवाब दिया गया है, “बुद्धि की आड़ रुपये की आड़ का काम देता है; परन्तु ज्ञान की श्रेष्ठता यह है कि बुद्धि से उसके रखनेवालों के प्राण की रक्षा होती है।” बुद्धि से उसके रखनेवालों के प्राण की रक्षा कैसे होती है?
परमेश्वर की बुद्धि मिलने से यानी उसके वचन बाइबल का ज्ञान लेने और उसके मुताबिक काम करने से हम उस राह पर चल पाते हैं, जो यहोवा को मंज़ूर है। (नीतिवचन 2:10-12) पुराने ज़माने के इसराएली राजा सुलैमान ने कहा था, “बुराई से हटना सीधे लोगों के लिये राजमार्ग है, जो अपने चालचलन की चौकसी करता, वह अपने प्राण की भी रक्षा करता है।” (नीतिवचन 16:17) बुद्धि से काम लेने से एक व्यक्ति बुरे रास्ते से हट पाता है और अपनी ज़िंदगी बचाता है। नीतिवचन 16:16-33 में कम शब्दों में समझदारी की बातें लिखी गयी हैं। इसमें बताया गया है कि जब एक व्यक्ति परमेश्वर की बुद्धि से काम करता है, तो उसका स्वभाव, बोली और उसके काम अच्छे होते हैं।
‘नम्र भाव से रहिए’
नीतिवचन की किताब में बुद्धि को एक व्यक्ति के रूप में बताया गया है। जैसे नीतिवचन 8:13 में बुद्धि के लिए कहा गया है कि वह कहती है, ‘घमण्ड, अहंकार से मैं बैर रखती हूँ।’ अहंकार और बुद्धि एक-दूसरे के बिलकुल उलट हैं। हमें बुद्धि से काम लेना है और ध्यान रखना है कि हममें किसी भी तरह का घमंडी या अहंकारी रवैया पैदा न हो जाए। खासकर हमें तब ज़्यादा इस बात का ध्यान रखना चाहिए, जब हमें ज़िंदगी में कुछ कामयाबी मिलती है या मसीही मंडली में कोई ज़िम्मेदारी मिलती है।
नीतिवचन 16:18 में लिखा है, “विनाश से पहले गर्व, और ठोकर खाने से पहले घमण्ड आता है।” दुनिया में शायद ही किसी का ऐसा पतन हुआ हो जैसा परमेश्वर के सिद्ध आत्मिक बेटों में से एक का हुआ यानी शैतान का। वह खुद ही शैतान बना। (उत्पत्ति 3:1-5; प्रकाशितवाक्य 12:9) अपने पतन से पहले शैतान में भी घमंड या अहंकार आ गया था। बाइबल इस बारे में हमें बताती है कि जब कोई व्यक्ति नया-नया साक्षी बना हो, तो उसे मसीही मंडली में कोई ज़िम्मेदारी का पद नहीं दिया जाना चाहिए कि कहीं ऐसा न हो कि ‘वह घमंड से फूल जाए और वही दंड पाए जो शैतान ने पाया है।’ (1 तीमुथियुस 3:1, 2, 6) इस वजह से यह बहुत ज़रूरी है कि हम ध्यान रखें कि हम दूसरों के मन में घमंड पैदा न कर दें और इस बात का भी कि कहीं हमारे अंदर घमंड न आ जाए।
नीतिवचन 16:19 में लिखा है, “घमण्डियों के संग लूट बाँट लेने से, दीन लोगों के संग नम्र भाव से रहना उत्तम है।” यह बात पुराने ज़माने के बैबिलोन के घमंडी राजा नबूकदनेस्सर के किस्से से सच साबित होती है। उसने अपने घमंड की वजह से दूरा के मैदान में एक विशाल मूर्ति खड़ी की। शायद यह मूर्ति उसी को दर्शाती थी। यह मूर्ति शायद एक ऊँची जगह पर खड़ी की गयी होगी, इसलिए इस मूर्ति की ऊँचाई 90 फीट [27 मीटर] की हो गयी थी। (दानिय्येल 3:1) इतनी ऊँची मूर्ति नबूकदनेस्सर के साम्राज्य की एक निशानी के तौर पर बनायी गयी थी। हो सकता है कि मूर्तियाँ, स्मारक स्तंभ, मीनारें और गगनचुंबी इमारतें जैसी ऊँची और भारी चीज़ें देखकर इंसान हैरत में पड़ जाएँ, लेकिन ये सारी चीज़ें परमेश्वर के लिए कोई हैरानी की बात नहीं हैं। भजन के एक गीत में लिखा है, “यद्यपि यहोवा महान् है, तौभी वह नम्र मनुष्य की ओर दृष्टि करता है; परन्तु अहंकारी को दूर ही से पहिचानता है।” (भजन 138:6) दरअसल “जो इंसानों के बीच बहुत बड़ी बात समझी जाती है वह परमेश्वर की नज़र में घिनौनी है।” (लूका 16:15) हमारे लिए अच्छा होगा कि हम “बड़ी-बड़ी बातों पर मन न” लगाकर “जिन बातों को दीन-हीन और छोटा समझा जाता है, उनसे लगाव रखते हुए उनके साथ लगे” रहें।—रोमियों 12:16.
ऐसे बोलिए जिससे ज्ञान और समझदारी झलके
बुद्धि या समझ पाने से हमारी बोली पर क्या असर होता है? बुद्धिमान राजा कहता है, “जो वचन पर मन लगाता, वह कल्याण पाता है, और जो यहोवा पर भरोसा रखता, वह धन्य होता है। जिसके हृदय में बुद्धि है, वह समझवाला कहलाता है, और मधुर वाणी के द्वारा ज्ञान बढ़ता है। जिसके पास बुद्धि है, उसके लिये वह जीवन का सोता है, परन्तु मूढ़ों को शिक्षा देना मूढ़ता ही होती है। बुद्धिमान का मन उसके मुँह पर भी बुद्धिमानी प्रगट करता है, और उसके वचन में विद्या रहती है।”—नीतिवचन 16:20-23.
बुद्धि होने से हम समझदारी से बोल पाते हैं और लोगों को कायल कर पाते हैं। कैसे? जो व्यक्ति बुद्धिमान है, वह किसी भी मामले में अच्छाई ढूँढ़ने की कोशिश करता है और “यहोवा पर भरोसा” करता है। जब हम दूसरों में अच्छाई ढूँढ़ने की कोशिश करते हैं, तब हम उनके बारे में अच्छी बातें बोलते हैं। हम कड़वी बातें या बहसबाज़ी करने के बजाय मीठे बोल बोलते हैं और अपनी बातों से लोगों को कायल कर पाते हैं। जब हम समझ से काम लेते हैं, तब हम दूसरों के हालात के बारे में सोच पाते हैं कि वे किन मुसीबतों से गुज़र रहे हैं और कैसे उनका सामना कर रहे हैं।
जब हम राज का प्रचार करने और चेला बनाने के काम के लिए जाते हैं, उस वक्त भी समझदारी से बात करना बहुत ज़रूरी है। जब हम लोगों को परमेश्वर के वचन के बारे में सिखाते हैं, तब हमारा मकसद सिर्फ शास्त्र में दी जानकारी बताना नहीं होना चाहिए, बल्कि यह होना चाहिए कि वह जानकारी उनके दिलों को छू जाए। इसका मतलब है कि हमारे वचन में विद्या होनी चाहिए यानी हमें उन्हें यकीन दिलाना है कि वे जानकारी को अपने जीवन में भी लागू करें। प्रेषित पौलुस ने तीमुथियुस से कहा कि वह उन बातों पर कायम रहे, जो उसे ‘दलीलें देकर यकीन दिलायी गयी थीं।’—2 तीमुथियुस 3:14, 15.
प्र07 7/15 पेज 9-10, अँग्रेज़ी
‘बुद्धि से रक्षा होती है’
नीतिवचन 16:19 में लिखा है, “घमण्डियों के संग लूट बाँट लेने से, दीन लोगों के संग नम्र भाव से रहना उत्तम है।” यह बात पुराने ज़माने के बैबिलोन के घमंडी राजा नबूकदनेस्सर के किस्से से सच साबित होती है। उसने अपने घमंड की वजह से दूरा के मैदान में एक विशाल मूर्ति खड़ी की। शायद यह मूर्ति उसी को दर्शाती थी। यह मूर्ति शायद एक ऊँची जगह पर खड़ी की गयी होगी, इसलिए इस मूर्ति की ऊँचाई 90 फीट [27 मीटर] की हो गयी थी। (दानिय्येल 3:1) इतनी ऊँची मूर्ति नबूकदनेस्सर के साम्राज्य की एक निशानी के तौर पर बनायी गयी थी। हो सकता है कि मूर्तियाँ, स्मारक स्तंभ, मीनारें और गगनचुंबी इमारतें जैसी ऊँची और भारी चीज़ें देखकर इंसान हैरत में पड़ जाएँ, लेकिन ये सारी चीज़ें परमेश्वर के लिए कोई हैरानी की बात नहीं हैं। भजन के एक गीत में लिखा है, “यद्यपि यहोवा महान् है, तौभी वह नम्र मनुष्य की ओर दृष्टि करता है; परन्तु अहंकारी को दूर ही से पहिचानता है।” (भजन 138:6) दरअसल “जो इंसानों के बीच बहुत बड़ी बात समझी जाती है वह परमेश्वर की नज़र में घिनौनी है।” (लूका 16:15) हमारे लिए अच्छा होगा कि हम “बड़ी-बड़ी बातों पर मन न” लगाकर “जिन बातों को दीन-हीन और छोटा समझा जाता है, उनसे लगाव रखते हुए उनके साथ लगे” रहें।—रोमियों 12:16.
ऐसे बोलिए जिससे ज्ञान और समझदारी झलके
बुद्धि या समझ पाने से हमारी बोली पर क्या असर होता है? बुद्धिमान राजा कहता है, “जो वचन पर मन लगाता, वह कल्याण पाता है, और जो यहोवा पर भरोसा रखता, वह धन्य होता है। जिसके हृदय में बुद्धि है, वह समझवाला कहलाता है, और मधुर वाणी के द्वारा ज्ञान बढ़ता है। जिसके पास बुद्धि है, उसके लिये वह जीवन का सोता है, परन्तु मूढ़ों को शिक्षा देना मूढ़ता ही होती है। बुद्धिमान का मन उसके मुँह पर भी बुद्धिमानी प्रगट करता है, और उसके वचन में विद्या रहती है।”—नीतिवचन 16:20-23.
बुद्धि होने से हम समझदारी से बोल पाते हैं और लोगों को कायल कर पाते हैं। कैसे? जो व्यक्ति बुद्धिमान है, वह किसी भी मामले में अच्छाई ढूँढ़ने की कोशिश करता है और “यहोवा पर भरोसा” करता है। जब हम दूसरों में अच्छाई ढूँढ़ने की कोशिश करते हैं, तब हम उनके बारे में अच्छी बातें बोलते हैं। हम कड़वी बातें या बहसबाज़ी करने के बजाय मीठे बोल बोलते हैं और अपनी बातों से लोगों को कायल कर पाते हैं। जब हम समझ से काम लेते हैं, तब हम दूसरों के हालात के बारे में सोच पाते हैं कि वे किन मुसीबतों से गुज़र रहे हैं और कैसे उनका सामना कर रहे हैं।
जब हम राज का प्रचार करने और चेला बनाने के काम के लिए जाते हैं, उस वक्त भी समझदारी से बात करना बहुत ज़रूरी है। जब हम लोगों को परमेश्वर के वचन के बारे में सिखाते हैं, तब हमारा मकसद सिर्फ शास्त्र में दी जानकारी बताना नहीं होना चाहिए, बल्कि यह होना चाहिए कि वह जानकारी उनके दिलों को छू जाए। इसका मतलब है कि हमारे वचन में विद्या होनी चाहिए यानी हमें उन्हें यकीन दिलाना है कि वे जानकारी को अपने जीवन में भी लागू करें। प्रेषित पौलुस ने तीमुथियुस से कहा कि वह उन बातों पर कायम रहे, जो उसे ‘दलीलें देकर यकीन दिलायी गयी थीं।’—2 तीमुथियुस 3:14, 15.
डब्ल्यू. ई. वाइन की ऐन एक्सपॉज़िट्री डिक्शनरी ऑफ न्यू टेस्टामेंट वर्ड्स में लिखा है कि जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “दलीलें देकर यकीन दिलाया” किया गया है, उसका मतलब है “कोई वजह देकर या नैतिक स्तरों के बारे में बताकर किसी व्यक्ति का मन बदलना।” अपने सुननेवाले का मन बदलने के लिए हम उसे दलीलें तभी दे पाएँगे, जब हम उसकी सोच, पसंद-नापसंद, हालात और उसके रहन-सहन को समझेंगे। हम यह कैसे कर सकते हैं? इसका जवाब हमें चेले याकूब के इन शब्दों से मिलता है, “हर इंसान सुनने में फुर्ती करे, बोलने में सब्र करे।” (याकूब 1:19) अपने सुननेवाले से सवाल करके और उसकी बात ध्यान से सुनकर हम उसके मन की बात जान सकते हैं।
प्रेषित पौलुस दलीलें देकर लोगों को कायल करने में माहिर था। (प्रेषितों 18:4) यहाँ तक कि देमेत्रियुस नाम के उसके एक विरोधी ने भी, जो चाँदी का काम करनेवाला सुनार था, इस बात को कबूल किया। उसने कहा, ‘न सिर्फ इफिसुस में, बल्कि एशिया के करीब-करीब पूरे ज़िले में इस पौलुस ने भारी तादाद में लोगों को कायल किया है और उन्हें दूसरे मत की तरफ फेर दिया है।’ (प्रेषितों 19:26) प्रचार काम इतने बढ़िया तरीके से करने का श्रेय क्या पौलुस ने खुद लिया? बिलकुल नहीं। उसका मानना था कि “परमेश्वर की पवित्र शक्ति और ताकत” की बदौलत ही वह यह काम कर पाया। (1 कुरिंथियों 2:4, 5) आज यहोवा हमें भी पवित्र शक्ति देता है। हम यहोवा पर भरोसा करते हैं इसलिए हमें पूरा यकीन है कि प्रचार सेवा के दौरान वह हमें भी लोगों से समझदारी से और दलीलें देकर बात करने के लिए मदद करेगा।
यही वजह है कि “जिसके हृदय में बुद्धि है,” उसे “समझदार” या “होशियार” कहा गया है। (नीतिवचन 16:21, वाल्द-बुल्के अनुवाद; उर्दू—ओ.वी.) जो बुद्धि या समझ रखता है, उसके लिए बुद्धि “जीवन का सोता” ठहरती है। लेकिन मूढ़ लोगों के बारे में क्या कहा गया है? वे ‘बुद्धि और शिक्षा को तुच्छ जानते हैं।’ (नीतिवचन 1:7) सुलैमान उनके बारे में कहता है, “मूढ़ों को शिक्षा देना मूढ़ता ही होती है।” (नीतिवचन 16:22) यहोवा से मिलनेवाली शिक्षा या अनुशासन को ठुकराने से उनका क्या होता है? उन्हें और भी कड़ा अनुशासन दिया जाता है और कभी-कभी तो मूढ़ व्यक्ति मुश्किल, शर्मिंदगी, बीमारी और आखिरकार बेवक्त मौत का शिकार भी हो जाता है।
बुद्धि या समझ से बोलने से हमारी बोली मीठी होती है। इस बारे में इसराएल के राजा सुलैमान ने कहा, “मनभावने वचन मधुभरे छत्ते के समान प्राणों को मीठे लगते, और हड्डियों को हरी-भरी करते हैं।” (नीतिवचन 16:24) ठीक जैसे शहद मीठा होता है और जिस व्यक्ति को भूख लगी हो उसे इसे खाने से ताज़गी मिलती है, उसी तरह मीठे बोल भी दूसरों को ताज़गी देते हैं और उनका हौसला बढ़ाते हैं। शहद का इस्तेमाल इलाज के लिए भी किया जाता है और यह हमारी सेहत के लिए फायदेमंद होता है। उसी तरह हमारे मीठे बोल बोलने से दूसरों को परमेश्वर की सेवा से जुड़े काम करने का हौसला मिलता है और वे परमेश्वर के और करीब आते हैं।—नीतिवचन 24:13, 14.
ऐसे रास्ते से बचकर रहिए जो “सीधा जान पड़ता है”
सुलैमान कहता है, “ऐसा भी मार्ग है, जो मनुष्य को सीधा जान पड़ता है, परन्तु उसके अन्त में मृत्यु ही मिलती है।” (नीतिवचन 16:25) यह हमारे लिए एक चेतावनी है, झूठी दलीलों के खिलाफ और उन कामों के खिलाफ जो परमेश्वर के नियम के मुताबिक नहीं हैं। जब हम इंसान की नज़र से देखें, तो हो सकता है कि कोई राह सही जान पड़े, लेकिन शायद वह परमेश्वर के वचन के सिद्धांतों के बिलकुल खिलाफ हो। उसके अलावा, शैतान भी हमें इस कदर धोखा दे सकता है कि हमें लगे कि यही रास्ता सही है, पर असल में वह रास्ता मौत की तरफ ले जाता है।
ढूँढ़े अनमोल रत्न
सज 11/13 पेज 16, अँग्रेज़ी
क्या आप “नित्य भोज में” जाते हैं?
“दुखियारे के सब दिन दुःख भरे रहते हैं, परन्तु जिसका मन प्रसन्न रहता है, वह मानो नित्य भोज में जाता है।”—नीतिवचन 15:15
इन शब्दों का क्या मतलब है? ये हमारी मन की दशा को दर्शाते हैं। ‘दुखियारा’ यानी दुखी व्यक्ति हमेशा निराश रहता है, उसे अपने दिन “दुःख भरे” लगते हैं और वह कुछ भी अच्छा नहीं सोचता। लेकिन जिसका “मन प्रसन्न रहता है,” वह अच्छी सोच रखने की कोशिश करता है। ऐसा करने से उसे खुशी मिलती है, “वह मानो नित्य भोज में जाता है।”
हम सभी समस्याओं से घिरे होते हैं। इस वजह से हम दुखी हो जाते हैं। लेकिन इन मुश्किलों के दौरान भी हम ऐसा कुछ कर सकते हैं, जिससे हम अपनी खुशी बरकरार रख पाएँगे। आइए गौर करें कि बाइबल में इस बारे में क्या लिखा है:
• कल की चिंता करके आप अपना आज का दिन खराब न करें। यीशु मसीह ने कहा था, “अगले दिन की चिंता कभी न करना, क्योंकि अगले दिन की अपनी ही चिंताएँ होंगी। आज के लिए आज की मुसीबत काफी है।”—मत्ती 6:34.
• आपके साथ जो अच्छी बातें हुई हैं, उन पर ध्यान देने की कोशिश कीजिए। जब भी आप दुखी होते हैं, तब क्यों न आप अपने साथ हुई अच्छी बातों की एक सूची बनाएँ और उनके बारे में सोचें? और एक बात, अपनी उन गलतियों और बुरे कामों के बारे में ज़्यादा मत सोचिए, जो आपसे पहले हुई थीं। उनसे सीखिए और अपनी ज़िंदगी खुशनुमा बनाइए। ऐसे कार चालक की तरह बनिए जो अपनी गाड़ी के उस शीशे में एक नज़र ज़रूर रखता है जिससे पीछे आनेवाली गाड़ियाँ नज़र आती हैं, लेकिन अपना ध्यान हर वक्त सिर्फ उस पर ही नहीं लगाए रखता। यह भी याद रखिए कि “परमेश्वर क्षमा करनेवाला है।”—भजन 130:4.
• जब आपको बहुत ज़्यादा चिंता सताए, उस वक्त किसी ऐसे से बात कीजिए जो आपका हौसला बढ़ा सके और आपका मन खुश कर सके। नीतिवचन 12:25 में लिखा है, “उदास मन दब जाता है, परन्तु भली बात से वह आनन्दित होता है।” यह “भली बात” आपको अपने परिवार के किसी ऐसे सदस्य या ऐसे भरोसेमंद दोस्त से बात करने पर सुनने को मिल सकती है, जो रूखे स्वभाव का नहीं है बल्कि “सब समयों में प्रेम रखता है।”—नीतिवचन 17:17.
बाइबल में दी समझदारी की बातों पर चलने से बहुत लोगों को अपनी ज़िंदगी में खुशियाँ मिली हैं, उस वक्त भी जब उनकी ज़िंदगी का सबसे मुश्किल दौर चल रहा था। आपको भी इन समझदारी की बातों से मदद मिल सकती है।
प्र07 5/15 पेज 18-19, अँग्रेज़ी
“तेरी कल्पनाएँ सिद्ध होंगी”
खुद से प्यार करने की वजह से हम अपनी गलतियाँ सही ठहराने की कोशिश कर सकते हैं, अपनी बुरी आदतों पर परदा डाल सकते हैं और हो सकता है कि खुद की बुराइयाँ हमें नज़र ही न आएँ। लेकिन यहोवा को धोखा नहीं दिया जा सकता। वह सभी प्राणियों को जाँचता है। एक व्यक्ति का झुकाव जिन बातों की तरफ होता है, वे उसके मन से जुड़ी होती हैं। बहुत हद तक उसके मन में क्या चल रहा है, जैसे उसकी सोच, भावनाएँ और इरादे, उसके मुताबिक ही उस व्यक्ति का स्वभाव बनता है। ‘मनों को जाँचनेवाला’ यहोवा हर एक प्राणी को परखता है और वह जो न्याय करता है, उसमें किसी भी तरह का पक्षपात नहीं होता। अगर हम अपने मन की रक्षा करें, तो हम बुद्धिमान ठहरेंगे।
“अपने कामों को यहोवा पर डाल दे”
कल्पनाएँ यानी योजनाएँ बनाने में सोच-विचार करना पड़ता है और यह सोच-विचार करने का काम हमारा मन करता है। योजनाओं के मुताबिक काम किया जाता है। क्या अपनी योजनाओं के मुताबिक काम करने से हम सफल हो सकते हैं? सुलैमान कहता है, “अपने कामों को यहोवा पर डाल दे, इस से तेरी कल्पनाएँ सिद्ध होंगी।” (नीतिवचन 16:3) अपने कामों को यहोवा पर डालने का मतलब है कि हम उस पर पूरा भरोसा रखें और उसकी मरज़ी के मुताबिक काम करें। अपने सिर से चिंताओं के बोझ को उतारकर यहोवा पर डाल दें। भजन के एक गीत में लिखा है, “अपने मार्ग की चिन्ता यहोवा पर छोड़; और उस पर भरोसा रख, वही पूरा करेगा।”—भजन 37:5.
हमारी योजनाएँ तभी कामयाब होंगी, जब हम उन्हें नेक इरादे से और परमेश्वर के वचन के आधार पर बनाएँ। इसके अलावा हमें यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमें उन योजनाओं के मुताबिक काम करने में मदद करे और हमें भी बाइबल में दी सलाह पर अमल करने की कोशिश करनी चाहिए। जब हम मुश्किलों या आज़माइशों का सामना कर रहे होते हैं, तब यह और भी ज़रूरी हो जाता है कि हम “अपना बोझ यहोवा पर डाल” दें ताकि वह हमें सँभाले। “वह धर्मी को कभी टलने न देगा।”—भजन 55:22.
“यहोवा ने सब वस्तुएँ विशेष उद्देश्य के लिये बनाई हैं”
अपने कामों को यहोवा पर डालने से और क्या होगा? बुद्धिमान राजा कहता है, “यहोवा ने सब वस्तुएँ विशेष उद्देश्य के लिये बनाई हैं।” (नीतिवचन 16:4क) दुनिया का बनानेवाला परमेश्वर हर चीज़ किसी उद्देश्य या मकसद से बनाता है। जब हम अपने कामों को उस पर डालते हैं, तब हम एक मकसद-भरी ज़िंदगी जीते हैं और व्यर्थ कामों में अपना समय नहीं गँवाते। यहोवा ने धरती और इंसान को हमेशा के लिए बनाया है। (इफिसियों 3:11) उसने पृथ्वी को बनाया और उसे “बसने के लिये रचा।” (यशायाह 45:18) इसके अलावा उसने इंसानों के लिए जो चाहा था, वह बहुत जल्द पूरा होनेवाला है। (उत्पत्ति 1:28) तब इंसान हमेशा के लिए परमेश्वर की उपासना कर पाएगा और एक मकसद-भरी ज़िंदगी जी पाएगा।
यहोवा ने “दुष्ट को भी विपत्ति भोगने के लिये बनाया है।” (नीतिवचन 16:4ख) दुष्टों को उसने नहीं बनाया क्योंकि “उसका काम खरा है।” (व्यवस्थाविवरण 32:4) लेकिन उसने कुछ लोगों को दुष्टता करने दी है, जब तक कि उसका न्याय का दिन नहीं आता। उदाहरण के लिए यहोवा ने मिस्र के फिरौन से कहा, “मैं ने इसी कारण तुझे बनाए रखा है, कि तुझे अपनी सामर्थ्य दिखाऊँ, और अपना नाम सारी पृथ्वी पर प्रसिद्ध करूँ।” (निर्गमन 9:16) दस विपत्तियाँ और फिरौन के साथ उसकी सेना का लाल सागर में नाश, ये सारी घटनाएँ परमेश्वर की असीम शक्ति को ज़ाहिर करती हैं, जिन्हें कोई भूला नहीं सकता।
यहोवा कई बार हालात का रुख इस तरह मोड़ देता है कि दुष्ट अनजाने में ही उसके मकसद को पूरा कर बैठते हैं। भजन में लिखा है, “मनुष्य की जलजलाहट तेरी स्तुति का कारण हो जाएगी, और जो जलजलाहट रह जाए, उसको तू रोकेगा।” (भजन 76:10) कई बार यहोवा अपने सेवकों को अनुशासन देने और उन्हें सिखाने के लिए उनके दुश्मनों को कुछ हद तक उन पर ज़ुल्म ढाने देता है। लेकिन जब दुश्मन अपनी हद पार कर देते हैं, तब वह कदम उठाता है।
यहोवा अपने नम्र सेवकों का पूरा साथ देता है, लेकिन जो घमंडी और अहंकारी हैं, उनके बारे में वह क्या सोचता है? इसराएल के राजा ने बताया, “सब मन के घमण्डियों से यहोवा घृणा करता है; मैं दृढ़ता से कहता हूँ, ऐसे लोग निर्दोष न ठहरेंगे।” (नीतिवचन 16:5) जो ‘मन के घमण्डी’ हैं वे भले ही हाथ मिलाकर एक-साथ हों ले, लेकिन वे दंड से नहीं बच पाएँगे। अगर हम नम्रता का गुण पैदा करते हैं, तो हम बुद्धिमान ठहरते हैं फिर चाहे हमारे पास कितना ही ज्ञान या कितनी ही काबिलीयतें क्यों न हों या फिर हमें यहोवा की सेवा से जुड़ा कोई भी सम्मान क्यों न मिला हो।
‘यहोवा का भय मानना’
हम पैदाइशी पापी हैं इसलिए हम गलतियाँ करते रहते हैं। (रोमियों 3:23; 5:12) हम ऐसी योजनाएँ बनाने से कैसे बच सकते हैं, जो हमें गलत राह पर ले जा सकती हैं? नीतिवचन 16:6 में लिखा है, “अधर्म का प्रायश्चित्त कृपा, और सच्चाई से होता है, और यहोवा के भय मानने के द्वारा मनुष्य बुराई करने से बच जाते हैं।” यहोवा अपनी कृपा और अपनी सच्चाई या वफादारी की वजह से हमारे पाप माफ करता है, लेकिन यहोवा का भय मानने से हम पाप करने से बच पाते हैं। इस वजह से बहुत ज़रूरी है कि हम परमेश्वर के लिए प्यार और उसकी कृपा के लिए कदरदानी पैदा करें। साथ ही उसे नाखुश करने का भय भी पैदा करें।
जब हम परमेश्वर की असीम शक्ति के लिए श्रद्धा और आदर पैदा करते हैं, तब हमारे दिल में उसके लिए भय भी पैदा होता है। ज़रा उसकी ताकत के बारे में सोचिए जो उसकी बनायी चीज़ों में दिखती है! जब अय्यूब से कहा गया कि वह परमेश्वर की शक्ति पर ध्यान दे जो उसकी बनायी सृष्टि में नज़र आती है, तो उसकी सोच बदल गयी। (अय्यूब 42:1-6) उसी तरह जब हम बाइबल में पढ़ते हैं कि यहोवा ने किस तरह अपने लोगों के साथ व्यवहार किया, तब हमारी सोच पर भी इन बातों का असर होता है। भजन के एक गीत में लिखा है, “आओ परमेश्वर के कामों को देखो; वह अपने कार्यों के कारण मनुष्यों को भययोग्य देख पड़ता है।” (भजन 66:5) यहोवा की कृपा को हम बस अपने फायदे के लिए नहीं इस्तेमाल कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, इसराएलियों ने “बलवा किया और उसके पवित्र आत्मा को खेदित किया; इस कारण [यहोवा] पलटकर उनका शत्रु हो गया, और स्वयं उन से लड़ने लगा।” (यशायाह 63:10) दूसरी तरफ “जब किसी का चालचलन यहोवा को भावता है, तब वह उसके शत्रुओं का भी उस से मेल कराता है।” (नीतिवचन 16:7) यहोवा का भय मानने से हमेशा हिफाज़त होती है।
बुद्धिमान राजा कहता है, “अन्याय के बड़े लाभ से, न्याय से थोड़ा ही प्राप्त करना उत्तम है।” (नीतिवचन 16:8) नीतिवचन 15:16 में लिखा है, “घबराहट के साथ बहुत रखे हुए धन से, यहोवा के भय के साथ थोड़ा ही धन उत्तम है।” अगर हम सही राह चलना चाहते हैं, तो परमेश्वर के लिए श्रद्धा और विस्मय होना बहुत ज़रूरी है।
“मनुष्य मन में अपने मार्ग पर विचार करता है”
परमेश्वर ने इंसान को अपनी मरज़ी का मालिक बनाया है और उसे यह काबिलीयत दी है कि वह सही-गलत में से किसी एक को चुन सके। (व्यवस्थाविवरण 30:19, 20) हमारे मन में यह काबिलीयत है कि हम किसी बात पर बहुत कुछ सोच सकते हैं और फिर अपना ध्यान किसी एक बात पर लगा सकते हैं। किसी बात को चुनना हमारी ज़िम्मेदारी है, इस बारे में सुलैमान ने लिखा, “मनुष्य मन में अपने मार्ग पर विचार करता है।” लेकिन एक बार सोच-विचार कर लिया जाता है, तब “यहोवा ही उसके पैरों को स्थिर करता है।” (नीतिवचन 16:9) यहोवा ही हमें सही राह दिखा सकता है, इसलिए अगर हम अपनी “कल्पनाएँ” यानी योजनाएँ सफल बनाने के लिए उसकी मदद लेते हैं, तो हम बुद्धिमानी दिखा रहे होते हैं।
31 अक्टूबर–6 नवंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | नीतिवचन 22-26
“लड़के को शिक्षा उसी मार्ग की दे जिसमें उसको चलना चाहिए”
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आपने पूछा
अगर मसीही बच्चों को सही तरह से शिक्षा दी जाए, तो क्या नीतिवचन 22:6 के मुताबिक वे सभी बच्चे यहोवा के मार्ग से नहीं भटकेंगे?
इस आयत में लिखा है, “लड़के को उसी मार्ग की शिक्षा दे जिसमें उसको चलना चाहिए, और वह बुढ़ापे में भी उससे न हटेगा।” ठीक जैसे पौधे की एक नयी टहनी को थोड़ा-सा अलग दिशा में मोड़ने से वह पौधा बढ़कर एक मज़बूत पेड़ बनता है, उसी तरह जिन बच्चों को सही तरह से शिक्षा दी जाती है, मुमकिन है कि वे बड़े होकर यहोवा की सेवा करते रहें। माता-पिता जानते हैं कि ऐसी शिक्षा देने में बहुत वक्त और मेहनत लगती है। अपने बच्चों को मसीह का चेला बनाने के लिए माता-पिताओं को उन्हें ध्यान से सिखाना होगा, समझाना होगा, उनका हौसला बढ़ाना होगा और उन्हें अनुशासन देना होगा। इसके अलावा उन्हें खुद भी अच्छी मिसाल रखनी होगी। ऐसा उन्हें लगातार कई सालों तक करते रहना पड़ेगा।
जब एक बच्चा यहोवा की सेवा करना छोड़ देता है, तब क्या इसका मतलब यह होता है कि इसमें माता-पिता की गलती है? कुछ मामलों में माता-पिता यहोवा की तरफ से आनेवाला अनुशासन देने में और उसी की सोच के मुताबिक उनके मन को ढालने में चूक जाते हैं। (इफिसियों 6:4) नीतिवचन 22:6 में भी इस बात की कोई गारंटी नहीं दी गयी है कि अगर माता-पिता बच्चों को अच्छी तरह सिखाएँ, तो वे बड़े होकर परमेश्वर के वफादार रहेंगे। ऐसा नहीं होता कि जैसे माता-पिता चाहते हैं, बच्चे ठीक वैसे ही बनें। बड़ों की तरह बच्चों की भी अपनी मरज़ी होती है और बड़े होकर अपनी ज़िंदगी की राह उन्हें खुद ही चुननी होती है। (व्यवस्थाविवरण 30:15, 16, 19) माता-पिता की लाख कोशिशों के बावजूद कुछ बच्चे यहोवा की सेवा करनी छोड़ देते हैं, ठीक जैसे सुलैमान ने किया, जबकि उसी ने नीतिवचन की यह बात लिखी थी। यहाँ तक कि यहोवा के भी कुछ बेटे ऐसे हैं, जिन्होंने उसकी सेवा करनी छोड़ दी।
लेकिन इस आयत का यह मतलब नहीं कि सभी बच्चे यहोवा के मार्ग पर चलेंगे, पर ज़्यादातर मामलों में देखा गया है कि बच्चे ऐसा करते हैं। यह बात जानकर माता-पिताओं को तसल्ली मिलती है और उन्हें बहुत हौसला मिलता है कि उन्होंने अपने बच्चों को यहोवा का मार्ग सिखाने में जो कड़ी मेहनत की है, वह ज़रूर रंग लाएगी। यह बहुत ज़रूरी है कि वे अपने बच्चों को सिखाते रहें क्योंकि बच्चों पर अपने माता-पिता का असर सबसे ज़्यादा होता है, इसलिए माता- पिताओं को उन्हें सिखाते रहना चाहिए और इस बात को हलके में नहीं लेना चाहिए।—व्यवस्थाविवरण 6:6, 7.
कई माता-पिताओं ने अपने बच्चों को यहोवा की शिक्षा देकर पाला, लेकिन उनमें से कुछ बच्चों ने यहोवा की राह पर चलना छोड़ दिया है। ऐसे में वे माता-पिता आशा रख सकते हैं कि उनके बच्चों को कभी-न-कभी एहसास होगा और वे लौटकर ज़रूर आएँगे। बाइबल में दी सच्चाई बहुत ताकत रखती है और माता-पिता की दी शिक्षा भी भुलाए नहीं भूलती।—भजन 19:7.
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छड़ी, डंडा
माता-पिता का अधिकार। “छड़ी” माता-पिता का अपने बच्चों पर जो अधिकार है, उसकी निशानी मानी जाती है। नीतिवचन की किताब छड़ी के अधिकार के बारे में बहुत कुछ बताती है, हर तरह के अनुशासन को यह दर्शाती है और उस वक्त के लिए भी जब इसका इस्तेमाल सज़ा देने के लिए किया जाता है। माता-पिता को परमेश्वर से ज़िम्मेदारी मिली है कि वे इस अधिकार का इस्तेमाल करके अपने बच्चों को काबू में करें। अगर माता-पिता ऐसा नहीं करते, तो वे अपने बच्चों को बिगाड़ते हैं और उन बच्चों को हमेशा के जीवन की आशा भी नहीं होती। इसके अलावा माता-पिता की बदनामी होती है और परमेश्वर की मंज़ूरी भी उन पर नहीं होती। (नीत 10:1; 15:20; 17:25; 19:13) “लड़के के मन में मूढ़ता की गाँठ बन्धी रहती है, परन्तु अनुशासन की छड़ी के द्वारा वह खोलकर उस से दूर की जाती है।” “लड़के की ताड़ना न छोड़ना; क्योंकि यदि तू उसको छड़ी से मारे, तो वह न मरेगा। तू उसको छड़ी से मारकर उसका प्राण अधोलोक से बचाएगा।” (नीत 22:15; 23:13, 14) दरअसल, “जो बेटे पर छड़ी नहीं चलाता वह उसका बैरी है, परन्तु जो उस से प्रेम रखता, वह यत्न से उसको शिक्षा देता है।”—नीत 13:24; 19:18; 29:15; 1शम 2:27-36.