यहोवा का वचन जीवित है
भजन संहिता किताब के पाँचवें भाग की झलकियाँ
रईस लोग शायद बड़े गर्व से कहें: ‘हमारे पुत्र अपनी जवानी में विकसित पौधों के समान हैं, और हमारी पुत्रियां महल के लिए तराशे गए कोने के खम्भों के समान हैं। हमारे खत्ते भरे हैं और हमारी भेड़-बकरियां हज़ारों बच्चे जनती हैं।’ (NHT) यही नहीं, दौलतमंद लोग शायद यह भी ऐलान करें कि वे “अति प्रसन्न” हैं। मगर इसके बिलकुल उलट, भजनहार ने कहा: “जिनका परमेश्वर यहोवा है, वे लोग अति प्रसन्न रहते हैं।” (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) (भजन 144:12-15) और क्यों न हों, आखिर यहोवा आनंदित परमेश्वर जो है और इसलिए उसकी उपासना करनेवालों की ज़िंदगी खुशियों से भर जाती है। (1 तीमुथियुस 1:11, NW) यह सच्चाई, परमेश्वर की प्रेरणा से लिखे भजनों के आखिरी संग्रह से साफ ज़ाहिर है। यह संग्रह भजन 107 से 150 के गीतों से बना है।
भजन संहिता किताब के पाँचवें भाग में, यहोवा के सर्वोत्तम गुणों पर भी ज़ोर दिया गया है, जैसे उसकी करुणा, सच्चाई और भलाई। हम उसकी शख्सियत के बारे जितना ज़्यादा सीखते हैं, उतना ज़्यादा हम उससे प्यार करने और उसका भय मानने लगते हैं। और इससे हमें बहुत खुशी मिलती है। भजन संहिता के इस पाँचवें भाग में दिया पैगाम, हमारे लिए क्या ही अनमोल है!—इब्रानियों 4:12.
यहोवा की करुणा की बदौलत खुश
बाबुल की बंधुआई से लौटते वक्त, यहूदियों ने एक गीत में गाया: “लोग यहोवा की करुणा के कारण, और उन आश्चर्यकर्मों के कारण, जो वह मनुष्यों के लिये करता है, उसका धन्यवाद करें!” (भजन 107:8, 15, 21, 31) दाऊद ने परमेश्वर की स्तुति करते हुए अपने गीत में गाया: “तेरी सच्चाई आकाशमण्डल तक है।” (भजन 108:4) और अपने अगले गीत में उसने यह दुआ की: “हे मेरे परमेश्वर यहोवा, मेरी सहायता कर! अपनी करुणा के अनुसार मेरा उद्धार कर!” (भजन 109:18, 19, 26) भजन 110, मसीहा की हुकूमत के बारे में एक भविष्यवाणी है। भजन 111:10 में कहा गया है: “बुद्धि का मूल, यहोवा का भय है।” इसके बाद के भजन में बताया गया है: “धन्य है वह पुरुष जो यहोवा का भय मानता है।”—भजन 112:1.
भजन 113 से 118 को ‘हालेल के भजन’ कहा गया है, क्योंकि इनमें बार-बार “हल्लिलूयाह” यानी “याह की स्तुति करो!” शब्द इस्तेमाल किए गए हैं। मिशना के मुताबिक, ये गीत यहूदियों के फसह के दिन और तीन सालाना पर्वों के वक्त गाए जाते थे। मिशना, तीसरी सदी में तैयार की गयी यहूदियों की किताब है, जिसमें पुराने ज़माने की ढेर सारी ज़बानी परंपराएँ दर्ज़ हैं। भजन 119 सब भजनों में सबसे लंबा है और बाइबल का सबसे बड़ा अध्याय भी है और इसमें यहोवा के वचन की बड़ाई की गयी है।
बाइबल सवालों के जवाब पाना:
109:23—दाऊद के यह कहने का क्या मतलब था कि “मैं ढलती हुई छाया की नाईं जाता रहा हूं”? दाऊद एक कविता के रूप में यह बयान कर रहा था कि उसने अपनी मौत को बहुत करीब आते हुए महसूस किया है।—भजन 102:11.
110:1, 2—“[दाऊद के] प्रभु,” यीशु मसीह ने परमेश्वर के दाहिने हाथ बैठकर क्या किया? पुनरुत्थान के बाद, यीशु स्वर्ग लौट गया और परमेश्वर के दाहिने हाथ बैठकर उस घड़ी का इंतज़ार करने लगा जब वह राजा की हैसियत से अपनी हुकूमत शुरू करता। सन् 1914 में जाकर उसके इंतज़ार की यह घड़ी खत्म हुई। मगर तब तक यीशु ने अपने अभिषिक्त चेलों पर राज किया और उन्हें प्रचार करने और चेला बनाने के काम में मार्गदर्शन देता रहा। साथ ही, उसने उन्हें अपने राज्य में राजाओं की हैसियत से हुकूमत करने के लिए भी तैयार किया।—मत्ती 24:14; 28:18-20; लूका 22:28-30.
110:4—यहोवा ने ‘बिना पछताए’ क्या “शपथ खाई”? यह शपथ दरअसल एक वाचा है जो यहोवा ने यीशु मसीह के साथ बाँधी कि यीशु, राजा और महायाजक के नाते सेवा करेगा।—लूका 22:29.
113:3—किस मायने में यहोवा के नाम की स्तुति “उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक” की जानी है? इसका मतलब सिर्फ यह नहीं है कि हर दिन एक समूह के लोग परमेश्वर की उपासना करते हैं। सूरज, पूरब से निकलकर पश्चिम में जाकर डूबता और इस तरह पूरी धरती पर अपना उजियाला फैलाता है। उसी तरह, यहोवा का नाम पूरी दुनिया में रोशन किया जाना है। और यह तभी मुमकिन होगा जब लोग मिलकर, संगठित तरीके से काम करेंगे। यहोवा के साक्षी होने के नाते, हमें परमेश्वर की स्तुति करने का और जोश के साथ राज्य का प्रचार करने का बड़ा सम्मान मिला है।
116:15—‘यहोवा की दृष्टि में, उसके भक्तों की मृत्यु’ कितनी “अनमोल है”? यहोवा की नज़र में उसके उपासक इतने अनमोल हैं कि एक समूह के तौर पर उन्हें मरने देना, एक भारी कीमत चुकाने के बराबर है। इसलिए यहोवा ऐसा हरगिज़ नहीं होने देगा। अगर वह इसकी इजाज़त देगा, तो यह ऐसा होगा मानो उसके दुश्मन उससे भी ज़्यादा शक्तिशाली हैं। यही नहीं, अगर धरती पर कोई वफादार जन ज़िंदा ही नहीं बचेगा, तो एक नयी दुनिया बनाने के लिए कौन रहेगा?
119:71—दुःख सहने से कैसे एक इंसान का भला हो सकता है? दुःख-तकलीफों से गुज़रकर, हम और भी ज़्यादा यहोवा पर भरोसा रखना, दिल की गहराई से प्रार्थना करना, साथ ही पूरी लगन के साथ बाइबल का अध्ययन करना और उसमें दी बातों पर अमल करना सीखते हैं। इसके अलावा, मुसीबत की घड़ी में हम जिस तरह से पेश आते हैं, उससे हमारी वे खामियाँ उभरकर सामने आती हैं जिन्हें हमें दूर करने की ज़रूरत है। जी हाँ, अगर हम तकलीफों के हाथों खुद को निखरने दें तो हम कभी कड़वाहट से नहीं भरेंगे।
119:96, फुटनोट—‘सारी पूर्णता के अंत’ का क्या मतलब है? भजनहार यहाँ इंसानी नज़रिए के बारे में बता रहा था। हो सकता है, उसके मन में यह खयाल रहा हो कि सिद्धता के बारे में इंसान की समझ बहुत सीमित है। लेकिन परमेश्वर की आज्ञा की कोई सीमा नहीं। यह ज़िंदगी के सभी दायरों पर लागू होती है। न्यू हिन्दी ट्रांस्लेशन बाइबल में यह आयत कहती है: “मैंने समस्त पूर्णता की एक सीमा देखी है, परन्तु तेरी आज्ञा तो असीमित है।”
119:164—“प्रतिदिन सात बार” परमेश्वर की स्तुति करने का क्या मतलब है? नंबर सात अकसर पूर्णता को दर्शाता है। इसलिए भजनहार यह कह रहा है कि यहोवा पूरी स्तुति पाने का हकदार है।
हमारे लिए सबक:
107:27-31. जब हरमगिदोन आएगा, तो संसार की बुद्धि ‘मारी जाएगी।’ (प्रकाशितवाक्य 16:14, 16) यह बुद्धि किसी को भी उस नाश से नहीं बचा पाएगी। सिर्फ वे लोग ही ‘यहोवा की करुणा के कारण उसे धन्यवाद’ करने के लिए जिंदा बचेंगे, जो उद्धार पाने के लिए उस पर भरोसा रखते हैं।
109:30, 31; 110:5. आम तौर पर एक सैनिक दाएँ हाथ में तलवार पकड़ता था और बाएँ हाथ में ढाल, इसलिए उसके दाएँ हाथ के लिए कोई बचाव नहीं रहता था। आध्यात्मिक मायने में, यहोवा अपने सेवकों की “दहिनी ओर खड़ा” होकर उनके लिए लड़ता है। इस तरह वह उनकी हिफाज़त करता है और उन्हें मदद देता है। “यहोवा का बहुत धन्यवाद” करने की यह क्या ही बढ़िया वजह है!
113:4-9. यहोवा इतना महान है कि ‘आकाश पर दृष्टि करने के लिए भी उसे झुकना’ पड़ता है। फिर भी, वह कंगालों, गरीबों और बाँझ स्त्रियों पर करुणा करता है। सारे जहान का महाराजाधिराज, यहोवा परमेश्वर नम्र है और चाहता है कि उसके उपासक भी उसकी तरह नम्र बनें।—याकूब 4:6.
114:3-7. जब हम सीखते हैं कि यहोवा ने लाल समुद्र, यरदन नदी और सीनै पर्वत पर अपने लोगों की खातिर क्या-क्या आश्चर्यकर्म किए थे, तो इनका हमारे दिल पर गहरा असर होना चाहिए। मगर “पृथ्वी” यानी दूसरे इंसानों को प्रभु से खौफ खाने की ज़रूरत है, या जैसे लाक्षणिक भाषा में कहा गया है, उन्हें उसके सामने ‘थरथराना’ चाहिए।
119:97-101. परमेश्वर के वचन से बुद्धि, अंदरूनी समझ और सूझ-बूझ पाने से हम आध्यात्मिक नुकसान से बच पाते हैं।
119:105. परमेश्वर का वचन इस मायने में हमारे पाँव के लिए दीपक है कि यह हमें मौजूदा समस्याओं से निपटने में मदद दे सकता है। साथ ही, यह वचन इस मायने में हमारे मार्ग के लिए उजियाला भी है कि यह हमें भविष्यवाणियों के ज़रिए बताता है कि भविष्य के लिए परमेश्वर का क्या मकसद है।
मुसीबतों के बावजूद खुश
हम मुश्किल-से-मुश्किल हालात का सामना कैसे कर सकते हैं और मुसीबतों से कैसे बच निकल सकते हैं? भजन 120 से 134 में इसका साफ जवाब दिया गया है। जब हम मदद के लिए यहोवा के पास जाते हैं, तो हम किसी भी मुश्किल का सामना कर पाते हैं और अपनी खुशी भी बरकरार रख पाते हैं। इन भजनों को ‘यात्रा के गीत’ कहा जाता है, क्योंकि हो सकता है कि जब प्राचीन इस्राएल के लोग सालाना पर्व मनाने के लिए यरूशलेम जाते थे, तो वे रास्ते में ये भजन गाया करते थे।
भजन 135 और 136 में बताया गया है कि यहोवा, बेजान मूर्तियों से बिलकुल जुदा है, क्योंकि यहोवा जो चाहता है ‘वह करता भी है।’ भजन 136 को इस तरह रचा गया था कि हर आयत का आखिरी भाग, पहले भाग के जवाब में गाया जाता था। अगले भजन में यह बताया गया है कि बाबुल की कैद में पड़े यहूदी कितने दुःखी थे, क्योंकि वे सिय्योन में जाकर यहोवा की उपासना करना चाहते थे। भजन 138 से 145, दाऊद की रचनाएँ हैं। वह ‘पूरे मन से यहोवा का धन्यवाद करना’ चाहता था। क्यों? उसने बताया: “इसलिये कि मैं भयानक और अद्भुत रीति से रचा गया हूं।” (भजन 138:1; 139:14) इसके बाद के पाँच भजनों में, दाऊद ने परमेश्वर से प्रार्थना की कि वह उसे बुरे लोगों से बचाए, धार्मिकता की बिना पर ताड़ना दे, सतानेवालों के हाथों से छुड़ाए और चालचलन के मामले में निर्देश दे। उसने यहोवा के लोगों की खुशी भी बयान की। (भजन 144:15) यहोवा की महानता और भलाई पर गौर करने के बाद, दाऊद ने ऐलान किया: “मैं यहोवा की स्तुति करूंगा, और सारे प्राणी उसके पवित्र नाम को सदा सर्वदा धन्य कहते रहें।”—भजन 145:21.
बाइबल सवालों के जवाब पाना:
122:3 (नयी हिन्दी बाइबिल)—यरूशलेम कैसे “एकता के बंधनों में बंधा” शहर था? प्राचीन समय के दूसरे शहरों की तरह, यरूशलेम में भी घर बहुत पास-पास बने होते थे। इसलिए शहर का बचाव करना आसान था। इसके अलावा, पास-पास बने घरों की वजह से, शहरी लोग मदद और हिफाज़त के लिए एक-दूसरे पर निर्भर रहते थे। यह, इस्राएल के 12 गोत्रों की आध्यात्मिक एकता को भी दर्शाता है जब वे उपासना के लिए एक-साथ जमा होते थे।
123:2—दासों की आँखों के दृष्टांत का क्या मतलब है? दास-दासियाँ, दो वजह से अपने मालिक या मालकिन के हाथ की तरफ आँखें लगाए रहते हैं। एक, यह पता लगाने के लिए कि मालिक या मालकिन को क्या चाहिए और दूसरी, हिफाज़त और ज़रूरत की चीज़ें पाने के लिए। उसी तरह, हम अपनी आँखें यहोवा की तरफ लगाए रखते हैं ताकि उसकी मरज़ी जान सकें और उसकी मंज़ूरी पा सकें।
131:1-3—‘जैसे दूध छुड़ाया हुआ लड़का अपनी माँ की गोद में रहता है,’ वैसे ही दाऊद ने कैसे ‘अपने मन को शान्त और चुप किया’? जिस तरह दूध छुड़ाया हुआ बच्चा अपनी माँ की गोद में चैन और संतुष्ट रहना सीखता है, उसी तरह दाऊद ने अपने मन को शांत और चुप करना सिखाया। वह कैसे? उसने न तो अपने मन को और ना ही अपनी आँखों को घमंड से भरने दिया। साथ ही, वह बड़ी-बड़ी चीज़ों के पीछे नहीं भागा। शोहरत हासिल करने के बजाय, दाऊद ने अपनी हदों को पहचाना और नम्र बना रहा। हमारे लिए अक्लमंदी इसी में है कि हम उसकी मिसाल पर चलें, खासकर तब जब हम कलीसिया में ज़िम्मेदारियाँ सँभालने के काबिल होने के लिए मेहनत करते हैं।
हमारे लिए सबक:
120:1, 2, 6, 7. झूठे इलज़ाम लगाने और जली-कटी सुनाने से दूसरों को इतनी गहरी चोट पहुँच सकती है कि वह बरदाश्त से बाहर हो जाए। अपनी ज़बान पर लगाम लगाना, यह दिखाने का एक तरीका है कि हम ‘शान्ति चाहते हैं।’
120:3, 4. अगर हमारे पास एक ऐसे इंसान को सहन करने के अलावा कोई और चारा नहीं, जिसके पास “छली जीभ” है, तो हम इस बात से दिलासा पा सकते हैं कि यहोवा अपने ठहराए वक्त पर मामले को निपटाएगा। झूठे इलज़ाम लगानेवालों को “वीर” के हाथों विपत्ति झेलनी पड़ेगी। इसमें कोई शक नहीं कि “झाऊ वृक्ष का दहकता अंगारा” (नयी हिन्दी बाइबिल) उन पर आ गिरेगा, यानी यहोवा उन्हें कड़ी-से-कड़ी सज़ा देगा।
127:1, 2. हमें कोई भी काम हाथ में लेने से पहले, यहोवा से मार्गदर्शन लेना चाहिए।
133:1-2. यहोवा के लोगों के बीच की एकता से हमें सुकून और ताज़गी मिलती है, साथ ही इसका हम पर अच्छा असर पड़ता है। इसलिए हमें दूसरों में नुक्स निकालने, झगड़ा करने और शिकायत करने से दूर रहना चाहिए, क्योंकि इनसे हमारी एकता भंग हो सकती है।
137:1, 5, 6. बंधुआई में पड़े यहोवा के उपासकों को उस सिय्योन से लगाव था, जो उस वक्त धरती पर परमेश्वर का संगठन था। हमारे बारे में क्या? क्या हम पूरी वफादारी के साथ उस संगठन के करीब रहते हैं जिसे यहोवा आज इस्तेमाल कर रहा है?
138:2. यहोवा ने “अपने वचन को अपने बड़े नाम से अधिक महत्व दिया है।” इसका मतलब यह है कि उसने अपने नाम से जितने भी वादे किए हैं, वे इतने बढ़िया तरीके से पूरे होंगे जिसकी हम कभी उम्मीद भी नहीं कर सकते। सच, हमारे आगे क्या ही शानदार भविष्य है!
139:1-6, 15, 16. यहोवा हमारे हर काम और विचार को जानता है, यहाँ तक कि हमारे कुछ भी कहने से पहले ही वह हमारी बात जान लेता है। वह हमें तब से जानता है जब हमारा भ्रूण बना था, जी हाँ, हमारे शरीर का एक-एक अंग पूरी तरह तैयार होने से भी पहले। परमेश्वर हममें से हरेक को कितने करीब से पहचानता है, यह बात इतनी “अत्यन्त अद्भुत” (NHT) है कि हम सोच भी नहीं सकते। वाकई, यह जानकर हमें कितना सुकून मिलता है कि यहोवा न सिर्फ हमारे मुश्किल हालात को देखता है बल्कि यह भी समझता है कि इनसे गुज़रते वक्त, हम पर क्या बीतती है!
139:7-12. हम चाहे दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न चले जाएँ, यहोवा वहाँ भी पहुँचकर हमें ताकत दे सकता है।
139:17, 18. क्या यहोवा का ज्ञान, हमारे मन को भाने लगा है? (नीतिवचन 2:10) अगर हाँ, तो हमने खुशी का ऐसा सोता पा लिया है जो कभी खत्म नहीं होनेवाला। यहोवा के विचार “बालू के किनकों से भी अधिक” हैं। हमें उसके बारे में हमेशा कुछ-न-कुछ नया सीखने को मिलेगा।
139:23, 24. हमें यहोवा से यह बिनती करनी चाहिए कि वह हमारे अंदरूनी इंसान को जाँचे और ‘बुरी चालों,’ जैसे गलत खयालात, इच्छाएँ और रुझान को जड़ से उखाड़ने में हमारी मदद करे।
143:4-7. हम बड़ी-से-बड़ी मुसीबतों में भी कैसे धीरज धर सकते हैं? भजनहार ने हमें इसका एक राज़ बताया है। वह है: यहोवा के अद्भुत कामों पर मनन करना, उसके उपकारों के बारे में सोचते रहना और मदद के लिए उससे प्रार्थना करना।
“याह की स्तुति करो!”
भजनों के पहले चारों संग्रहों के आखिर में, यहोवा की स्तुति में कुछ बोल लिखे हैं। (भजन 41:13; 72:19, 20; 89:52; 106:48) उसी तरह, भजनों के आखिरी संग्रह का अंत भी, यहोवा की स्तुति करने के साथ किया गया है। भजन 150:6 कहता है: “जितने प्राणी हैं सब के सब याह की स्तुति करें! याह की स्तुति करो!” यह बात, परमेश्वर की नयी दुनिया में हकीकत बन जाएगी।
खुशियों-भरे उस समय का इंतज़ार करने के साथ-साथ, आज हमारे पास सच्चे परमेश्वर की स्तुति करने और उसके नाम की महिमा करने की ढेरों वजह मौजूद हैं। यहोवा को जानने और उसके साथ एक अच्छा रिश्ता कायम करने से हमें बेशुमार खुशियाँ मिलती हैं। जब हम इस बारे में सोचते हैं, तो क्या हमारा दिल एहसान से नहीं भर जाता और हमें उसकी स्तुति करने के लिए नहीं उभारता? (w06 9/1)
[पेज 19 पर तसवीर]
यहोवा के आश्चर्यकर्मों से विस्मय और श्रद्धा की भावना पैदा होती है
[पेज 20 पर तसवीर]
यहोवा के विचार “बालू के किनकों से भी अधिक” हैं