बाइबल की किताब नंबर 58—इब्रानियों
लेखक: पौलुस
लिखने की जगह: रोम
लिखना पूरा हुआ: लगभग सा.यु. 61
पौलुस “अन्यजातियों” के लिए प्रेरित के नाम से जाना जाता था। लेकिन क्या उसने सिर्फ गैर-यहूदियों को प्रचार किया? बिलकुल नहीं! प्रभु यीशु ने पौलुस के बपतिस्मे और उसे प्रचार का काम सौंपने से पहले हनन्याह से कहा था: “यह [पौलुस] अन्यजातियों राजाओं, और इस्राएलियों के साम्हने मेरा नाम प्रगट करने के लिए मेरा चुना हुआ पात्र है।” (प्रेरि. 9:15; गल. 2:8, 9) इब्रानियों को लिखी पौलुस की पत्री इस बात का सबूत है कि उसने इस्राएलियों को यीशु के नाम की गवाही देने की अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी निभायी।
2 लेकिन कुछ आलोचकों का मानना है कि पौलुस इस पत्री का लेखक नहीं है। वे कहते हैं कि इसमें पौलुस का नाम कहीं नहीं दिया गया है। इस दावे में कोई दम नहीं, क्योंकि बाइबल की बहुत-सी किताबों में उनके लेखकों के नाम नहीं दिए गए हैं। लेकिन उन किताबों में दिए सबूतों से पता चलता है कि उनके लेखक कौन हैं। इसके अलावा, ऐसा लगता है कि पौलुस ने यहूदिया के इब्रानी मसीहियों को यह पत्री लिखते वक्त जानबूझकर अपना नाम नहीं लिखा। शायद इसलिए कि वहाँ के यहूदी उसके नाम से खार खाते थे। (प्रेरि. 21:28) और हालाँकि इसमें पौलुस की लेखन-शैली उसकी दूसरी पत्रियों से हटकर है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वह उसका लेखक नहीं। पौलुस में यह गज़ब की काबिलीयत थी कि वह ‘सब मनुष्यों के लिये सब कुछ बन’ सकता था, फिर चाहे वे काफिर हों, यहूदी हों या मसीही। इस पत्री में वह यहूदियों से एक यहूदी की तरह तर्क करता है, ताकि वे उसकी दलीलें अच्छी तरह समझ सकें और उन्हें कबूल कर सकें।—1 कुरि. 9:22.
3 इस पत्री में दिए सारे सबूत यही पुख्ता करते हैं कि पौलुस ही इसका लेखक है। जैसे, इसका लेखक इतालिया या इटली में तीमुथियुस के संग था। यह बात पौलुस पर ठीक बैठती है। (इब्रा. 13:23, 24) इसके अलावा, इसमें दिया उपदेश पौलुस के सिवा और किसी का नहीं हो सकता। फर्क सिर्फ इतना है कि इब्रानी मसीहियों के दिलों तक पहुँचने के लिए उसने दलीलों को उनके नज़रिए से पेश किया। इस बारे में क्लार्क की कॉमेंट्री, भाग 6, पेज 681 कहती है: “इस पत्री की रचना साफ बताती है कि यह यहूदियों को लिखी गयी थी। अगर यह अन्यजातियों को लिखी होती, तो दस हज़ार में से शायद ही कोई इन दलीलों को समझ पाता। क्योंकि वह यहूदी व्यवस्था से एकदम अनजान होता। लेखक यह मानकर चलता है कि वह जिन चीज़ों के बारे में बात कर रहा है, उनसे पढ़नेवाले अच्छी तरह वाकिफ हैं।” इससे हमें यह जानने में मदद मिलती है कि क्यों पौलुस की दूसरी पत्रियों की तुलना में इस पत्री की शैली अलग है।
4 सन् 1930 के आस-पास चेस्टर बीटी पपाइरस नं. 2 (P46) की खोज से इस बात का और भी खुलासा हुआ कि पौलुस ही इब्रानियों की पत्री का लेखक है। इस पपाइरस कोडेक्स (किताब के आकार की हस्तलिपि) को पौलुस की मौत के 150 साल बाद लिखा गया था। इस कोडेक्स के बारे में हस्तलिपियों की जाँच करनेवाले विशेषज्ञ सर फ्रेड्रिक केन्यन कहते हैं: “यह बात गौरतलब है कि इसमें इब्रानियों को ठीक रोमियों के बाद रखा गया है (जो कि एक बहुत अहम जगह है)। यह दिखाता है कि जब इस हस्तलिपि को लिखा गया, तो इसमें कोई शक नहीं था कि पौलुस ही इब्रानियों का लिखनेवाला है।”a इसी बारे में मैक्लिंटॉक और स्ट्रॉन्ग की साइक्लोपीडिया साफ-साफ कहती है: “न तो इस पत्री में, ना ही कहीं और इस बात का कोई ठोस सबूत है कि पौलुस के सिवा किसी और ने यह पत्री लिखी थी।”b
5 शुरू के मसीही इस किताब को ईश्वर-प्रेरित मानते थे। इसके अलावा, इसमें दी जानकारी भी साबित करती है कि यह “परमेश्वर की प्रेरणा” से लिखी गयी है। यह किताब पढ़नेवाले का ध्यान बार-बार इब्रानी शास्त्र की भविष्यवाणियों की तरफ खींचती है। यह इनसे कई हवाले देकर बताती है कि ये भविष्यवाणियाँ कैसे मसीह यीशु में पूरी हुईं। पहले अध्याय की बात लें तो इसमें इब्रानी शास्त्र के कम-से-कम 7 हवाले दिए गए हैं, जो पुख्ता करते हैं कि पुनरुत्थान के बाद से पुत्र स्वर्गदूतों से कहीं महान है। किताब लगातार यहोवा के नाम और उसके वचन की बड़ाई करती है। यह बताती है कि यीशु ही जीवन का अधिनायक है और उसकी बागडोर में परमेश्वर का राज्य ही इंसानों के लिए एकमात्र आशा है।
6 यह पत्री कब और कहाँ लिखी गयी थी? जैसा कि हमने पहले देखा पौलुस ने इसे इटली से लिखा था। पत्री के आखिर में वह कहता है: “तुम यह जान लो कि तीमुथियुस हमारा भाई छूट गया है और यदि वह शीघ्र आ गया, तो मैं उसके साथ तुम से भेंट करूंगा।” (13:23) इससे यह इशारा मिलता है कि पौलुस कैद से जल्द ही रिहा होने की उम्मीद कर रहा था और अभी-अभी जेल से छूटे तीमुथियुस के साथ यरूशलेम के भाइयों से मिलने की राह देख रहा था। इन बातों को मद्देनज़र रखते हुए यह माना जाता है कि इब्रानियों की पत्री तब लिखी गयी थी जब पौलुस को रोम में पहली बार जेल हुई थी और उसका आखिरी साल चल रहा था। दूसरे शब्दों में कहें तो यह पत्री सा.यु. 61 में लिखी गयी थी।
7 यहूदी व्यवस्था के अंत के दौरान, यहूदिया के और खासकर यरूशलेम के इब्रानी मसीहियों को ज़बरदस्त परीक्षाओं से गुज़रना पड़ा। जैसे-जैसे सुसमाचार फैलता गया और कई लोग चेले बनने लगे, यहूदियों से रहा नहीं गया और वे पागलों की तरह मसीहियों का विरोध करने लगे। इसके कुछ साल पहले, जब पौलुस यरूशलेम आया, तो उसे देखते ही यहूदी भड़क उठे और यह कहकर चिल्लाने लगे: “ऐसे मनुष्य का अन्त करो; उसका जीवित रहना उचित नहीं।” चालीस से भी ज़्यादा यहूदियों ने कसम ली थी कि जब तक वे पौलुस को मार नहीं डालते, तब तक न तो कुछ खाएँगे, न पीएँगे। इसलिए पौलुस को रात के वक्त सही-सलामत कैसरिया ले जाने के लिए सैनिकों के बड़े दस्ते का इंतज़ाम किया गया। (प्रेरि. 22:22; 23:12-15, 23, 24) वाकई, यहूदी अपने धर्म को मानने में कट्टर थे और मसीहियों से सख्त नफरत करते थे। इब्रानी मसीहियों को ऐसे माहौल में जीना था, प्रचार करना था और खुद को विश्वास में मज़बूत बनाए रखना था। उनके लिए यह जानना और समझना ज़रूरी था कि मसीह ने किस तरह मूसा की व्यवस्था पूरी की। वरना वे वापस यहूदी धर्म में लौट सकते थे और जानवरों का बलिदान चढ़ाने जैसे व्यवस्था के नियम मानने लग सकते थे, जो अब खोखले रिवाज़ों के सिवा कुछ नहीं थे।
8 यहूदी मसीही जिन दबावों और ज़ुल्मों का सामना कर रहे थे, वे प्रेरित पौलुस से बेहतर और कोई नहीं समझ सकता था। यही नहीं, सिर्फ पौलुस ही यहूदी रीति-रिवाज़ों के खिलाफ ज़बरदस्त तर्क और दलीलें देने के काबिल था, क्योंकि वह पहले फरीसी रह चुका था। उसने गमलीएल से मूसा की व्यवस्था का बेशुमार ज्ञान हासिल किया था। इसी ज्ञान की बदौलत उसने ठोस सबूत पेश किए कि मसीह में व्यवस्था, नियम-कानून और बलिदान पूरे हुए। पौलुस समझाता है कि ये बातें महज़ एक छाया थीं और अब इनकी जगह और भी शानदार सच्चाइयों ने ले ली, जो नयी और बेहतर वाचा के तहत इंसानों को बेशुमार फायदे पहुँचाएँगी। पौलुस ने अपने तेज़ दिमाग से एक-के-बाद-एक कायल कर देनेवाली कई दलीलें दीं। जैसे, कानून-व्यवस्था खत्म हो चुकी है और नयी वाचा लागू की जा चुकी है; मसीह का याजकपद, हारून के याजकपद से कहीं श्रेष्ठ है; बैलों और बकरों के बलिदानों के मुकाबले मसीह का बलिदान सचमुच पापों को दूर कर सकता है; मसीह हाथ से बनाए तंबू के बजाय, स्वर्ग में परमेश्वर के सामने उपस्थित हुआ। इन हैरतअँगेज़ नयी शिक्षाओं से अविश्वासी यहूदियों को सख्त नफरत थी। लेकिन इन्हें पुख्ता करने के लिए पौलुस ने इब्रानी शास्त्र से इतने सबूत दिए कि कोई भी समझदार यहूदी आसानी से कायल हो सकता है।
9 यह पत्री पाकर इब्रानी मसीहियों को मानो एक नया और शक्तिशाली हथियार मिल गया था। इससे वे ताना कसनेवाले यहूदियों का मुँह बंद कर सकते थे। साथ ही, इसकी मदद से वे नेकदिल यहूदियों को कायल करने और मसीही बनने के लिए ज़बरदस्त दलीलें दे सकते थे। इस पत्री से साफ झलकता है कि पौलुस इब्रानी मसीहियों से बेहद प्यार करता था। और उसकी दिली तमन्ना थी कि वह उस मुश्किल दौर में उनकी व्यावहारिक तरीके से मदद करे।
क्यों फायदेमंद है
23 इस बेजोड़ पत्री में मसीह के पक्ष में ज़बरदस्त तर्क पेश किए गए हैं, जिन्हें कोई काट नहीं सकता। इसे बहुत ही बढ़िया ढंग से लिखा गया है और यह इब्रानी शास्त्र से दिए सबूतों से भरी पड़ी है। इसमें मूसा की व्यवस्था के अलग-अलग पहलुओं का ज़िक्र किया गया है, जैसे वाचा, लहू, मध्यस्थ, निवासस्थान, याजकपद और बलिदान। और यह समझाया गया है कि ये सारी चीज़ें परमेश्वर की तरफ से एक नमूना थीं, जो आनेवाली बड़ी चीज़ों को दर्शाती थीं। ये सारी चीज़ें मसीह यीशु में, जो व्यवस्था का अंत है और उसके बलिदान में पूरी हुईं। पौलुस कहता है, व्यवस्था जो “पुरानी और जीर्ण हो जाती है उसका मिट जाना अनिवार्य है।” लेकिन “यीशु मसीह कल और आज और युगानुयुग एकसा है।” (8:13; 10:1; 13:8) सच, इस पत्री को पढ़कर इब्रानी मसीही फूले न समाए होंगे!
24 यह पत्री आज हमारे अलग-अलग हालात के लिए क्या अहमियत रखती है? हम व्यवस्था के अधीन नहीं, इसके बावजूद क्या हमें पौलुस की दलीलों से फायदा हो सकता है? बेशक हो सकता है! इस किताब में एक महान और नयी वाचा का इंतज़ाम समझाया गया है, जो इब्राहीम से किए उस वादे पर आधारित है कि उसके वंश के ज़रिए पृथ्वी के सारे घराने आशीष पाएँगे। इब्राहीम के वंश यानी यीशु मसीह के ज़रिए इस वादे का पूरा होना हमारी ज़िंदगी से गहरा ताल्लुक रखता है। और इसी वादे के दम पर हम भविष्य की आस लगाए हुए हैं। बेशक, हम व्यवस्था के अधीन नहीं, मगर हम सब आदम की संतान होने के नाते पाप में जन्मे हैं। इसलिए हमें एक दयालु महायाजक की ज़रूरत है, जो हमारे लिए पापबलि चढ़ा सके और जो स्वर्ग में यहोवा के सामने जाकर हमारे लिए बिनती कर सके। इस पत्री में उसी महायाजक यानी यीशु के बारे में बताया गया है, जो हमें यहोवा की नयी दुनिया में ज़िंदगी दिला सकता है। वही हमारी कमज़ोरियों में हमसे हमदर्दी जता सकता है, क्योंकि वह खुद “सब बातों में हमारी नाईं परखा” गया है। और वही हमें न्यौता देता है कि हम “अनुग्रह के सिंहासन के निकट हियाव बान्धकर चलें, कि हम पर दया हो, और वह अनुग्रह पाएं, जो आवश्यकता के समय हमारी सहायता करे।”—4:15, 16.
25 इसके अलावा, इस पत्री में हमें सबूत मिलते हैं कि किस तरह इब्रानी शास्त्र में बरसों पहले दर्ज़ भविष्यवाणियाँ आगे चलकर लाजवाब तरीके से पूरी हुईं। ये सारी बातें हमारी शिक्षा और हमें दिलासा देने के लिए लिखी गयी हैं। मिसाल के लिए, पौलुस पाँच बार भजन 110:1 में राज्य के बारे में दी भविष्यवाणी को वंश यानी यीशु मसीह पर लागू करता है। वह बताता है कि यीशु “परमेश्वर के सिहांसन की दाहिनी ओर जा बैठा” है और उस समय का इंतज़ार कर रहा है, जब “उसके बैरी उसके पांवों के नीचे की पीढ़ी बनें[गे]।” (इब्रा. 1:3, 13; 8:1; 10:12, 13; 12:2, NHT) पौलुस भजन 110:4 का भी हवाला देता है और समझाता है कि परमेश्वर के बेटे को एक अहम पद मिला है, यानी उसे “मलिकिसिदक की रीति पर सदा के लिये याजक” ठहराया गया है। बाइबल में दिया रिकॉर्ड बताता है कि प्राचीन समय के मलिकिसिदक का ‘न पिता, न माता, और न वंशावली थी, न आदि था और न जीवन का अन्त था।’ उसी तरह यीशु भी राजा होने के साथ-साथ “सदा के लिए याजक” (NHT) है, जो उसकी हुकूमत के अधीन रहनेवालों को अपने छुड़ौती बलिदान से हमेशा के फायदे पहुँचाएगा। (इब्रा. 5:6, 10; 6:20; 7:1-21) इसी राजा और याजक का ज़िक्र करते हुए पौलुस भजन 45:6, 7 का हवाला देता है। वह कहता है: “हे परमेश्वर, तेरा सिंहासन युगानुयुग रहेगा: तेरे राज्य का राजदण्ड न्याय का राजदण्ड है। तू ने धर्म से प्रेम और अधर्म से बैर रखा; इस कारण परमेश्वर तेरे परमेश्वर ने तेरे साथियों से बढ़कर हर्षरूपी तेल से तुझे अभिषेक किया।” (इब्रा. 1:8, 9) जैसे-जैसे पौलुस इब्रानी शास्त्र से हवाले देकर समझाता है कि कैसे वे मसीह में पूरे होते हैं, वैसे-वैसे हम परमेश्वर के मकसद को और भी साफ-साफ समझ पाते हैं।
26 इब्रानियों की किताब साफ बताती है कि इब्राहीम, ‘स्वर्ग के’ उस “स्थिर नेववाले नगर” यानी राज्य की आस लगाए हुए था, “जिस का रचनेवाला और बनानेवाला परमेश्वर है।” “विश्वास ही से” वह उस राज्य की अभिलाषा करता रहा और उसने बड़े-बड़े त्याग किए, ताकि “उत्तम पुनरुत्थान” पाकर राज्य की आशीषें पा सके। वाकई, विश्वास दिखाने में इब्राहीम और बाकी स्त्री-पुरुष हमारे लिए क्या ही बढ़िया मिसाल हैं! इन्हें पौलुस इब्रानियों के 11वें अध्याय में ‘गवाहों का बड़ा बादल’ कहता है। जब हम उनके बारे में पढ़ते हैं, तो हमारा दिल खुशी से झूम उठता है, क्योंकि इन वफादार जनों की तरह हमारे पास भी यहोवा की सेवा करने का खास सम्मान और भविष्य की शानदार आशा है। इसलिए हमें उकसाया गया है कि हम “वह दौड़ जिस में हमें दौड़ना है, धीरज से दौड़ें।”—11:8, 10, 16, 35; 12:1.
27 पौलुस, हाग्गै की भविष्यवाणी का हवाला देते हुए परमेश्वर के इस वादे की तरफ हमारा ध्यान खींचता है: “एक बार फिर मैं केवल पृथ्वी को नहीं, बरन आकाश को भी हिला दूंगा।” (इब्रा. 12:26; हाग्गै 2:6) लेकिन वंश यानी यीशु मसीह की बागडोर में परमेश्वर का राज्य हमेशा कायम रहेगा। “इस कारण हम इस राज्य को पाकर जो हिलने का नहीं, उस अनुग्रह को हाथ से न जाने दें, जिस के द्वारा हम भक्ति, और भय सहित, परमेश्वर की ऐसी आराधना कर सकते हैं जिस से वह प्रसन्न होता है।” यह ज़ोरदार रिकॉर्ड हमें यकीन दिलाता है कि “जो लोग [मसीह की] बाट जोहते हैं, उन के उद्धार के लिये [वह] दूसरी बार बिना पाप के दिखाई देगा।” इसलिए आइए हम मसीह के ज़रिए “स्तुतिरूपी बलिदान, अर्थात् उन होठों का फल जो [परमेश्वर के] नाम का अंगीकार करते हैं, परमेश्वर के लिए सर्वदा चढ़ाया करें।” ऐसा हो कि राजा और याजक यीशु मसीह के ज़रिए यहोवा का महान नाम हमेशा-हमेशा के लिए पवित्र किया जाए!—इब्रा. 9:28; 12:28; 13:15.
[फुटनोट]
a बाइबल की कहानी (अँग्रेज़ी), सन् 1964, पेज 91.
b सन् 1981 में दोबारा छापी गयी, चौथा भाग, पेज 147.