ईश्वरीय सर्वसत्ता के पक्ष में मसीही साक्षी
“जिस ने तुम्हें अन्धकार में से अपनी अद्भुत ज्योति में बुलाया है, उसके गुण प्रगट करो।”—१ पतरस २:९.
१. मसीही-पूर्व समय में यहोवा के बारे में कैसी प्रभावकारी साक्षी दी गयी?
मसीही-पूर्व समय के दौरान, अनेक साक्षियों ने हिम्मत से प्रमाणित किया कि एकमात्र सच्चा परमेश्वर यहोवा है। (इब्रानियों ११:४-१२:१) अपने विश्वास में पक्के, उन्होंने निडर होकर यहोवा के नियमों का पालन किया और उपासना के मामलों में समझौता करने से इनकार किया। उन्होंने यहोवा की विश्व सर्वसत्ता के पक्ष में एक शक्तिशाली साक्षी दी।—भजन १८:२१-२३; ४७:१, २.
२. (क) यहोवा का सर्वश्रेष्ठ साक्षी कौन है? (ख) किसने यहोवा के साक्षी के रूप में इस्राएल जाति का स्थान लिया? हम कैसे जानते हैं?
२ अन्तिम और सर्वश्रेष्ठ मसीही-पूर्व साक्षी था यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला। (मत्ती ११:११) उसे चुने हए जन के आगमन की घोषणा करने का विशेषाधिकार मिला, और उसने यीशु का परिचय प्रतिज्ञात मसीहा के रूप में करवाया। (यूहन्ना १:२९-३४) यीशु यहोवा का सर्वश्रेष्ठ साक्षी है, “विश्वासयोग्य, और सच्चा गवाह है।” (प्रकाशितवाक्य ३:१४) क्योंकि शारीरिक इस्राएल ने यीशु को ठुकराया, यहोवा ने उनको ठुकराया और अपना साक्षी होने के लिए एक नयी जाति नियुक्त की, अर्थात् परमेश्वर का आत्मिक इस्राएल। (यशायाह ४२:८-१२; यूहन्ना १:११, १२; गलतियों ६:१६) पतरस ने इस्राएल के बारे में एक भविष्यवाणी उद्धृत की और दिखाया कि वह “परमेश्वर के इस्राएल,” मसीही कलीसिया पर लागू होती है, जब उसने कहा: “तुम एक चुना हुआ वंश, और राज-पदधारी, याजकों का समाज, और पवित्र लोग, और (परमेश्वर की) निज प्रजा हो, इसलिये कि जिस ने तुम्हें अन्धकार में से अपनी अद्भुत ज्योति में बुलाया है, उसके गुण प्रगट करो।”—१ पतरस २:९; निर्गमन १९:५, ६; यशायाह ४३:२१; ६०:२.
३. परमेश्वर के इस्राएल और “बड़ी भीड़” की मुख्य ज़िम्मेदारी क्या है?
३ पतरस के शब्द दिखाते हैं कि परमेश्वर के इस्राएल की मुख्य ज़िम्मेदारी है यहोवा की महिमा के बारे में सार्वजनिक साक्षी देना। हमारे समय में इस आत्मिक जाति के साथ साक्षियों की एक “बड़ी भीड़” मिल गयी है, और वे भी सार्वजनिक रूप से परमेश्वर की महिमा करते हैं। वे बड़े शब्द से पुकारकर कहते हैं जिससे कि सब सुन सकें: “उद्धार के लिये हमारे परमेश्वर का जो सिंहासन पर बैठा है, और मेम्ने का जय-जय-कार हो।” (प्रकाशितवाक्य ७:९, १०; यशायाह ६०:८-१०) परमेश्वर का इस्राएल और उसके साथी कैसे अपनी साक्षी को पूरा कर सकते हैं? अपने विश्वास और आज्ञाकारिता से।
झूठे साक्षी
४. यीशु के समय के यहूदी झूठे साक्षी क्यों थे?
४ विश्वास और आज्ञाकारिता में ईश्वरीय सिद्धान्तों के अनुसार जीना सम्मिलित है। यीशु ने अपने समय के यहूदी धार्मिक अगुओं के बारे में जो कहा उससे इसका महत्त्व दिखता है। वे व्यवस्था के शिक्षकों के रूप में “मूसा की गद्दी पर बैठे” थे। उन्होंने अविश्वासियों का धर्म-परिवर्तन करने के लिए मिशनरी भी भेजे। फिर भी, यीशु ने उन से कहा: “तुम एक जन को अपने मत में लाने के लिये सारे जल और थल में फिरते हो, और जब वह मत में आ जाता है, तो उसे अपने से दूना नारकीय बना देते हो।” ये धर्मवादी झूठे साक्षी थे—अहंकारी, पाखण्डी, और प्रेमरहित। (मत्ती २३:१-१२, १५) एक अवसर पर यीशु ने कुछ यहूदियों से कहा: “तुम अपने पिता शैतान से हो, और अपने पिता की लालसाओं को पूरा करना चाहते हो।” वह परमेश्वर की चुनी हुई जाति के सदस्यों को ऐसी बात क्यों कहता? क्योंकि वह यहोवा के सर्वश्रेष्ठ साक्षी के शब्द नहीं सुनते।—यूहन्ना ८:४१, ४४, ४७.
५. हम कैसे जानते हैं कि मसीहीजगत ने परमेश्वर के बारे में झूठी साक्षी दी है?
५ समान रीति से, यीशु के समय से शताब्दियों के दौरान, मसीहीजगत में करोड़ों लोगों ने उसके शिष्य होने का दावा किया है। लेकिन, वे परमेश्वर की इच्छा पर नहीं चले हैं और इसलिए यीशु उनको स्वीकार नहीं करता। (मत्ती ७:२१-२३; १ कुरिन्थियों १३:१-३) मसीहीजगत ने मिशनरी भेजे हैं, और कोई संदेह नहीं कि उनमें से अनेक निष्कपट थे। फिर भी, उन्होंने लोगों को एक त्रियेक ईश्वर की उपासना करना सिखाया जो पापियों को नरकाग्नि में जलाता है, और उनके द्वारा धर्म-परिवर्तित किए गए लोगों में से अधिकांश जन मसीही होने का शायद ही कोई प्रमाण दिखाते हैं। उदाहरण के लिए, अफ्रीकी देश रुवाण्डा रोमन कैथोलिक मिशनरियों के लिए उपजाऊ क्षेत्र रहा है। फिर भी, रुवाण्डा के कैथोलिक लोगों ने उस देश में हुए हाल के नृजातीय युद्ध में तन-मन से भाग लिया। उस मिशनरी क्षेत्र का फल दिखाता है कि उसे मसीहीजगत से असली मसीही साक्षी नहीं मिली।—मत्ती ७:१५-२०.
ईश्वरीय सिद्धान्तों के अनुसार जीना
६. किन तरीक़ों से सदाचरण साक्षी देने का एक अनिवार्य भाग है?
६ मसीही होने का दावा करनेवालों का दुराचरण “सत्य के मार्ग” पर निन्दा लाता है। (२ पतरस २:२) एक सच्चा मसीही ईश्वरीय सिद्धान्तों के अनुसार जीता है। वह चोरी नहीं करता, झूठ नहीं बोलता, बेईमानी अथवा अनैतिकता नहीं करता। (रोमियों २:२२) निश्चित ही वह अपने पड़ोसी की हत्या नहीं करता। मसीही पति अपने परिवारों की प्रेममय देखरेख करते हैं। पत्नियाँ आदर के साथ उस देखरेख का समर्थन करती हैं। बच्चों को उनके माता-पिता प्रशिक्षित करते हैं और इस प्रकार वे ज़िम्मेदार मसीही वयस्क होने के लिए तैयार किए जाते हैं। (इफिसियों ५:२१–६:४) यह सच है, हम सभी अपरिपूर्ण हैं और ग़लतियाँ करते हैं। लेकिन एक असली मसीही बाइबल स्तरों का आदर करता है और उन पर अमल करने का सच्चा प्रयास करता है। यह दूसरों को दिखता है और एक उत्तम साक्षी देता है। कभी-कभी, जो पहले सत्य का विरोध करते थे उन्होंने एक मसीही का सदाचरण देखा और जीत लिए गए।—१ पतरस २:१२, १५; ३:१.
७. यह कितना महत्त्वपूर्ण है कि मसीही एक दूसरे से प्रेम करें?
७ यीशु ने मसीही आचरण का एक अनिवार्य पहलू बताया जब उसने कहा: “यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।” (यूहन्ना १३:३५) शैतान के संसार की विशेषता है ‘अधर्म, दुष्टता, लोभ, बैरभाव, डाह, हत्या, झगड़े, छल, और ईर्ष्या से भरपूर, और चुगलखोर, बदनाम करनेवाले, परमेश्वर के देखने में घृणित [“परमेश्वर से घृणा करनेवाले,” NHT], औरों का अनादर करनेवाले, अभिमानी, डींगमार, बुरी बुरी बातों के बनानेवाले, माता पिता की आज्ञा न माननेवाले।’ (रोमियों १:२९, ३०) ऐसे वातावरण में, एक विश्वव्यापी संगठन जिसकी विशेषता है प्रेम, परमेश्वर की क्रियाशील आत्मा का शक्तिशाली प्रमाण होता—एक प्रभावकारी साक्षी। यहोवा के साक्षी एक ऐसा ही संगठन हैं।—१ पतरस २:१७.
साक्षी बाइबल के विद्यार्थी हैं
८, ९. (क) परमेश्वर की व्यवस्था का अध्ययन करने और उस पर मनन करने से भजनहार को कैसे शक्ति मिली? (ख) किन तरीक़ों से बाइबल अध्ययन और मनन हमें साक्षी देते रहने के लिए शक्ति देगा?
८ एक उत्तम साक्षी देने में सफल होने के लिए, एक मसीही को यहोवा के धर्मी सिद्धान्तों को जानना और उनसे प्रेम करना और संसार की भ्रष्टता से सचमुच घृणा करना ज़रूरी है। (भजन ९७:१०) संसार स्वयं अपनी विचारधारा को बढ़ाने में आग्रही है, और उसकी आत्मा का विरोध करना कठिन हो सकता है। (इफिसियों २:१-३; १ यूहन्ना २:१५, १६) सही मनोवृत्ति बनाए रखने में कौन-सी बात हमारी मदद कर सकती है? बाइबल का नियमित और अर्थपूर्ण अध्ययन। भजन ११९ के लेखक ने यहोवा की व्यवस्था के लिए अपने प्रेम को कई बार दोहराया। वह सदा, “दिन भर” उसे पढ़ता और उस पर मनन करता था। (भजन ११९:९२, ९३, ९७-१०५) इसके फलस्वरूप, वह लिख सका: “झूठ से तो मैं बैर और घृणा रखता हूं, परन्तु तेरी व्यवस्था से प्रीति रखता हूं।” इसके अलावा, उसके गहरे प्रेम ने उसे कार्यशील होने के लिए प्रेरित किया। वह कहता है: “तेरे धर्ममय नियमों के कारण मैं प्रतिदिन सात बेर तेरी स्तुति करता हूं।”—भजन ११९:१६३, १६४.
९ समान रीति से, परमेश्वर के वचन का हमारा नियमित अध्ययन और उस पर मनन हमारे हृदय को छूएगा और हमे बारंबार, ‘प्रतिदिन सात बार’ भी ‘उसकी स्तुति’ करने—यहोवा के बारे में साक्षी देने—के लिए प्रेरित करेगा। (रोमियों १०:१०) इसके सामंजस्य में, पहले भजन का लेखक कहता है कि वह जो नियमित रूप से यहोवा के वचनों पर मनन करता है “उस वृक्ष के समान है, जो बहती नालियों के किनारे लगाया गया है। और अपनी ऋतु में फलता है, और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। इसलिये जो कुछ वह पुरुष करे वह सफल होता है।” (भजन १:३) प्रेरित पौलुस ने भी परमेश्वर के वचन की शक्ति दिखायी जब उसने लिखा: “हर एक पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिये लाभदायक है। ताकि परमेश्वर का जन सिद्ध बने, और हर एक भले काम के लिये तत्पर हो जाए।”—२ तीमुथियुस ३:१६, १७.
१०. इन अन्तिम दिनों में यहोवा के लोगों के बारे में क्या स्पष्ट है?
१० इस २०वीं शताब्दी में सच्चे उपासकों की संख्या में तेज़ वृद्धि यहोवा की आशिष का संकेत करती है। निःसंदेह, एक समूह के रूप में, ईश्वरीय सर्वसत्ता का पक्ष लेनेवाले इन आधुनिक-दिन साक्षियों ने अपने हृदयों में यहोवा की व्यवस्था के लिए प्रेम विकसित किया है। भजनहार की तरह, वे उसकी व्यवस्था का पालन करने के लिए और एकनिष्ठ होकर “दिन रात” यहोवा की महिमा के बारे में साक्षी देने के लिए प्रेरित होते हैं।—प्रकाशितवाक्य ७:१५.
यहोवा के सामर्थी कार्य
११, १२. यीशु और उसके अनुयायियों द्वारा किए गए चमत्कारों से क्या निष्पन्न हुआ?
११ प्रथम शताब्दी में, पवित्र आत्मा ने विश्वासी मसीही साक्षियों को चमत्कार करने की शक्ति दी, जिसने ठोस सबूत दिया कि उनकी साक्षी सच्ची थी। जब यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला क़ैद में था तब उसने अपने शिष्यों को यीशु से यह पूछने भेजा: “क्या आनेवाला तू ही है: या हम दूसरे की बाट जोहें?” यीशु ने हाँ या न में उत्तर नहीं दिया। इसके बजाय, उसने कहा: “जो कुछ तुम सुनते हो और देखते हो, वह सब जाकर यूहन्ना से कह दो। कि अन्धे देखते हैं और लंगड़े चलते फिरते हैं; कोढ़ी शुद्ध किए जाते हैं और बहिरे सुनते हैं, मुर्दे जिलाए जाते हैं; और कंगालों को सुसमाचार सुनाया जाता है। और धन्य है वह, जो मेरे कारण ठोकर न खाए।” (मत्ती ११:३-६) इन शक्तिशाली कार्यों ने यूहन्ना के लिए एक साक्षी के रूप में कार्य किया कि वह “आनेवाला” सचमुच यीशु ही था।—प्रेरितों २:२२.
१२ समान रीति से, यीशु के कुछ अनुयायियों ने बीमारों को चंगा किया और मुर्दों को भी जिलाया। (प्रेरितों ५:१५, १६; २०:९-१२) ये चमत्कार उनके पक्ष में स्वयं परमेश्वर द्वारा साक्षी के समान थे। (इब्रानियों २:४) और ऐसे कार्यों ने यहोवा की सर्व-सामर्थ को प्रदर्शित किया। उदाहरण के लिए, यह सच है कि ‘इस संसार के सरदार,’ शैतान के पास मृत्यु लाने के साधन हैं। (यूहन्ना १४:३०; इब्रानियों २:१४) लेकिन जब पतरस ने विश्वासिनी दोरकास को मरे हुओं में से जिलाया, तब वह केवल यहोवा की ही शक्ति से ऐसा कर सकता था, क्योंकि केवल वही जीवन वापस दे सकता है।—भजन १६:९; ३६:९; प्रेरितों २:२५-२७; ९:३६-४३.
१३. (क) किस रीति से बाइबल चमत्कार अभी-भी यहोवा की शक्ति को प्रमाणित करते हैं? (ख) यहोवा का परमेश्वरत्व साबित करने में भविष्यवाणी की पूर्ति कैसे एक मुख्य भूमिका निभाती है?
१३ आज, वे चमत्कारी कार्य नहीं होते। उनका उद्देश्य पूरा हो चुका है। (१ कुरिन्थियों १३:८) फिर भी, हमारे पास अभी-भी उनका अभिलेख बाइबल में है, जो अनेक देखनेवालों द्वारा प्रमाणित हैं। आज जब मसीही इन ऐतिहासिक वृत्तान्तों की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं, तब वे कार्य अभी-भी यहोवा की शक्ति के बारे में एक प्रभावकारी साक्षी दे रहे हैं। (१ कुरिन्थियों १५:३-६) इसके अतिरिक्त, यशायाह के समय में, यहोवा ने यथार्थ भविष्यवाणी को इस बात के उल्लेखनीय प्रमाण के रूप में बताया कि वह सच्चा परमेश्वर है। (यशायाह ४६:८-११) अनेकों ईश्वरीय रूप से उत्प्रेरित बाइबल भविष्यवाणियाँ आज पूरी हो रही हैं—उनमें से अनेकों मसीही कलीसिया पर। (यशायाह ६०:८-१०; दानिय्येल १२:६-१२; मलाकी ३:१७, १८; मत्ती २४:९; प्रकाशितवाक्य ११:१-१३) यह सूचित करने के साथ-साथ कि हम “अन्तिम दिनों” में जी रहे हैं, इन भविष्यवाणियों की पूर्ति यहोवा को एकमात्र सच्चे परमेश्वर के रूप में सिद्ध करती है।—२ तीमुथियुस ३:१.
१४. किन तरीक़ों से यहोवा के साक्षियों का आधुनिक-दिन इतिहास इस बात का शक्तिशाली साक्षी है कि यहोवा ही सर्वसत्ताधारी प्रभु है?
१४ अंततः, यहोवा अभी-भी अपने लोगों के लिए महान काम, आश्चर्यजनक काम करता है। बाइबल सत्य पर बढ़ता प्रकाश यहोवा की आत्मा द्वारा निर्देशित है। (भजन ८६:१०; प्रकाशितवाक्य ४:५, ६) संसार-भर से रिपोर्ट की गयी उल्लेखनीय वृद्धि इस बात का प्रमाण है कि यहोवा ‘ठीक समय पर यह सब कुछ शीघ्रता से पूरा कर रहा है।’ (यशायाह ६०:२२) जब अन्तिम दिनों के दौरान अनेक देशों में कड़ी सताहट फूटी है, तब यहोवा के लोगों का साहसपूर्ण धीरज पवित्र आत्मा के शक्तिदायी समर्थन के कारण संभव हुआ है। (भजन १८:१, २, १७, १८; २ कुरिन्थियों १:८-१०) जी हाँ, यहोवा के साक्षियों का आधुनिक-दिन इतिहास अपने आप में इस बात की शक्तिशाली साक्षी है कि यहोवा सर्वसत्ताधारी प्रभु है।—जकर्याह ४:६.
सुसमाचार का प्रचार किया जाना
१५. मसीही कलीसिया द्वारा कौन-सी विस्तृत साक्षी दी जानी थी?
१५ यहोवा ने इस्राएल को अन्यजातियों के लिए अपने साक्षी के रूप में नियुक्त किया। (यशायाह ४३:१०) लेकिन, मात्र कुछ ही इस्राएलियों को ईश्वरीय रूप से आज्ञा दी गयी थी कि जाकर ग़ैर-इस्राएलियों को प्रचार करें, और यह प्रायः यहोवा के न्याय की घोषणा करने के लिए होता था। (यिर्मयाह १:५; योना १:१, २) लेकिन, इब्रानी शास्त्र की भविष्यवाणियाँ सूचित करती हैं कि एक दिन यहोवा व्यापक रूप से अपना ध्यान अन्यजातियों की ओर फेरेगा, और यह उसने परमेश्वर के आत्मिक इस्राएल के माध्यम से किया है। (यशायाह २:२-४; ६२:२) स्वर्ग पर चढ़ने से पहले, यीशु ने अपने अनुयायियों को आज्ञा दी: “इसलिये तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ।” (मत्ती २८:१९) जबकि यीशु ने “इस्राएल के घराने की खोई हुई भेड़ों” पर अपना ध्यान केंद्रित किया, उसके अनुयायियों को “सब जातियों” में, “पृथ्वी की छोर तक” भी भेजा गया। (मत्ती १५:२४; प्रेरितों १:८) मसीही साक्षी को पूरी मानवजाति द्वारा सुना जाना था।
१६. प्रथम-शताब्दी मसीही कलीसिया ने किस कार्य-नियुक्ति को पूरा किया, और किस हद तक?
१६ पौलुस ने दिखाया कि उसने यह ठीक तरह से समझा था। सामान्य युग वर्ष ६१ तक, वह कह सका कि सुसमाचार “सारे जगत में निरन्तर फल लाता और बढ़ता जा रहा” (NHT) था। सुसमाचार का प्रचार मात्र एक ही जाति या सम्प्रदाय को नहीं किया गया, जैसे कि वह सम्प्रदाय जो “स्वर्गदूतों की पूजा” करता था। इसके बजाय, वह खुले आम “आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में किया गया।” (कुलुस्सियों १:६, २३; २:१३, १४, १६-१८) अतः, प्रथम शताब्दी में परमेश्वर के इस्राएल ने उन्हें मिले आदेश का पालन किया कि ‘जिस ने उन्हें अन्धकार में से अपनी अद्भुत ज्योति में बुलाया था, उसके गुण प्रगट करें।’
१७. मत्ती २४:१४ कैसे एक बड़े पैमाने पर पूरा होता जा रहा है?
१७ फिर भी, वह प्रथम-शताब्दी प्रचार कार्य इस बात की मात्र एक झलक था कि अन्तिम दिनों के दौरान क्या किया जाएगा। ख़ासकर आगे हमारे समय की ओर देखते हुए यीशु ने कहा: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।” (मत्ती २४:१४; मरकुस १३:१०) क्या यह भविष्यवाणी पूरी हुई है? सचमुच, यह पूरी हुई है। वर्ष १९१९ में छोटी शुरूआत से, सुसमाचार का प्रचार अब २३० से भी अधिक देशों में फैल गया है। साक्षी बर्फीले उत्तरी-क्षेत्रों में और उष्ण कटिबन्ध-क्षेत्रों में सुनी जाती है। बड़े महाद्वीपों को पूरा किया जाता है, और दूरस्थ द्वीपों में जाया जाता है कि उनके निवासियों को साक्षी मिल सके। बड़ी उथल-पुथल, जैसे बॉसनीया और हर्ट्सगोवीना में युद्ध के बीच भी सुसमाचार का प्रचार किया जाना जारी है। जैसे प्रथम शताब्दी में था, साक्षी “सारे जगत में” फल ला रही है। सुसमाचार खुले आम “आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में” घोषित किया जाता है। परिणाम? पहले, “हर एक कुल, और भाषा, और लोग, और जाति में से” परमेश्वर के इस्राएल के शेषजन एकत्रित किए गए हैं। फिर, “बड़ी भीड़” के लाखों लोगों का “हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा” में से लाया जाना शुरू हुआ। (प्रकाशितवाक्य ५:९; ७:९) एक बड़े पैमाने पर मत्ती २४:१४ की पूर्ति होना जारी है।
१८. सुसमाचार के विश्वव्यापी प्रचार से कौन-सी कुछ बातें निष्पन्न हो रही हैं?
१८ सुसमाचार का विश्वव्यापी प्रचार यह साबित करने में मदद करता है कि यीशु की शाही उपस्थिति शुरू हो गयी है। (मत्ती २४:३) इसके अलावा, यह मुख्य साधन है जिसके द्वारा “पृथ्वी की खेती” की कटनी की जा रही है, क्योंकि यह लोगों को मनुष्यजाति की एकमात्र सच्ची आशा, यहोवा के राज्य की ओर निर्देशित करता है। (प्रकाशितवाक्य १४:१५, १६) चूँकि केवल असली मसीही सुसमाचार के प्रचार में भाग लेते हैं, यह महत्त्वपूर्ण कार्य सच्चे मसीहियों और झूठे मसीहियों के बीच भिन्नता दिखाने में मदद करता है। (मलाकी ३:१८) इस प्रकार, यह उनके उद्धार का कारण बनता है जो प्रचार करते हैं साथ ही उनका जो अनुकूल प्रतिक्रिया दिखाते हैं। (१ तीमुथियुस ४:१६) सबसे महत्त्वपूर्ण, सुसमाचार का प्रचार करना यहोवा परमेश्वर को स्तुति और सम्मान लाता है, जिसने आज्ञा दी कि यह किया जाए, जो इस कार्य के करनेवालों को समर्थन देता है, और जो इसे फलदायी बनाता है।—२ कुरिन्थियों ४:७.
१९. सभी मसीहियों को क्या दृढ़संकल्प करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जब वे नए सेवा वर्ष में प्रवेश करते हैं?
१९ इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि प्रेरित पौलुस यह कहने को प्रेरित हुआ: “यदि मैं सुसमाचार न सुनाऊं, तो मुझ पर हाय।” (१ कुरिन्थियों ९:१६) आज मसीही ऐसा ही महसूस करते हैं। “परमेश्वर के सहकर्मी” होना, इस अन्धकारमय संसार में सत्य का प्रकाश फैलाना एक महान विशेषाधिकार और एक बड़ी ज़िम्मेदारी है। (१ कुरिन्थियों ३:९; यशायाह ६०:२, ३) उस कार्य ने जिसकी १९१९ में छोटी शुरूआत हुई थी अब विस्मयकारी आयाम ले लिए हैं। लगभग ५० लाख मसीही ईश्वरीय सर्वसत्ता के पक्ष में साक्षी दे रहे हैं जब वे उद्धार का संदेश दूसरों तक पहुँचाने में प्रति वर्ष एक अरब से भी अधिक घंटे बिताते हैं। यहोवा के नाम को पवित्रीकृत करने के इस कार्य में भाग लेना क्या ही आनन्द की बात है! जब हम १९९६ सेवा वर्ष में प्रवेश करते हैं, तो आइए धीमा न पड़ने के लिए दृढ़संकल्प करें। इसके बजाय, हम पहले से कहीं ज़्यादा तीमुथियुस को कहे पौलुस के शब्दों को मानेंगे: “वचन का प्रचार कर, . . . इसे अत्यावश्यकता से करने में लगा रह।” (२ तीमुथियुस ४:२, NW) जैसे-जैसे हम ऐसा करते हैं, हम अपने पूरे हृदय से प्रार्थना करते हैं कि यहोवा हमारे प्रयासों पर आशिष देना जारी रखेगा।
क्या आपको याद है?
◻ जातियों के लिए यहोवा के “साक्षी” के रूप में किसने इस्राएल का स्थान लिया?
◻ साक्षी देने में मसीही आचरण कैसे योग देता है?
◻ मसीही साक्षी के लिए बाइबल का अध्ययन और उस पर मनन क्यों अत्यावश्यक है?
◻ यहोवा के साक्षियों का आधुनिक-दिन इतिहास किस रीति से इस बात के प्रमाण का कार्य करता है कि यहोवा ही सच्चा परमेश्वर है?
◻ सुसमाचार के प्रचार से क्या निष्पन्न होता है?
[पेज 15 पर तसवीरें]
सीमित रहने से कहीं दूर, सुसमाचार की घोषणा अब “आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में” की जा रही है