आज तक यहोवा द्वारा सिखाए गए
“यहोवा ने मुझे सीखनेवालों की जीभ दी है।”—यशायाह ५०:४.
१, २. (क) यहोवा ने अपने प्रिय शिष्य को किस लिए तैयार किया, और परिणाम क्या था? (ख) यीशु ने अपनी शिक्षाओं के स्रोत को कैसे स्वीकार किया?
जब से यहोवा परमेश्वर पिता बना है तब से वह एक शिक्षक रहा है। उसके कुछ बच्चों के विद्रोह करने के बाद किसी समय, उसने अपने प्रिय शिष्य, अपने पहलौठे को पृथ्वी पर सेवकाई के लिए तैयार किया। (नीतिवचन ८:३०) यशायाह अध्याय ५० भविष्यसूचक रीति से इस शिष्य को यह कहते हुए प्रस्तुत करता है: “प्रभु यहोवा ने मुझे सीखनेवालों की जीभ दी है कि मैं थके हुए को अपने वचन के द्वारा संभालना जानूं।” (यशायाह ५०:४) पृथ्वी पर रहते वक़्त अपने पिता की शिक्षा को लागू करने के परिणामस्वरूप, यीशु उन सब के लिए विश्राम का स्रोत था जो ‘थके और बोझ से दबे हुए’ थे।—मत्ती ११:२८-३०.
२ पहली शताब्दी के दौरान यीशु ने अनेक शक्तिशाली कार्य किए। उसने अंधों की आँखें खोलीं और मृतकों को भी जिलाया, फिर भी उसके समकालीन लोग उसे मुख्यतः एक शिक्षक के तौर पर जानते थे। उसके अनुयायी और उसके विरोधी उसे यही बुलाते थे। (मत्ती ८:१९; ९:११; १२:३८; १९:१६; यूहन्ना ३:२) जो उसने सिखाया उसका श्रेय यीशु ने कभी नहीं लिया बल्कि उसने नम्रतापूर्वक स्वीकार किया: “मेरा उपदेश मेरा नहीं, परन्तु मेरे भेजनेवाले का है।” “जैसे मेरे पिता ने मुझे सिखाया, वैसे ही ये बातें कहता हूं।”—यूहन्ना ७:१६; ८:२८; १२:४९.
आदर्श शिक्षक-शिष्य का रिश्ता
३. जिन्हें वह सिखाता है उनके प्रति यहोवा की दिलचस्पी को यशायाह की भविष्यवाणी कैसे सूचित करती है?
३ एक श्रेष्ठ शिक्षक अपने शिष्यों में व्यक्तिगत, ध्यानयुक्त, और प्रेममय दिलचस्पी लेता है। यशायाह अध्याय ५० प्रकट करता है कि यहोवा परमेश्वर को उन लोगों में, जिन्हें वह सिखाता है, इस प्रकार की दिलचस्पी है। “भोर को वह नित मुझे जगाता,” भविष्यवाणी बताती है, “और मेरा कान खोलता है कि मैं शिष्य के समान सुनू।” (यशायाह ५०:४) यहाँ इस्तेमाल की गई भाषा एक ऐसे शिक्षक को सूचित करती है जो अपने शिष्यों को सिखाने के लिए उन्हें सुबह जल्दी उठाता है। यह भविष्यवाणी कैसे लागू होती है उसके बारे में टिप्पणी करते हुए, एक बाइबल विद्वान ने कहा: “विचार यह है कि उद्धारक एक ऐसा व्यक्ति होता . . . जो, लाक्षणिक तौर पर कहें तो, परमेश्वर के स्कूल में था; और जो दूसरों को शिक्षा प्रदान करने के लिए योग्य होता। . . . ईश्वरीय शिक्षा के द्वारा मसीहा मनुष्यजाति का शिक्षक बनने के लिए उत्कृष्ट रूप से योग्य होता।”
४. यीशु ने अपने पिता की शिक्षा के प्रति कैसी प्रतिक्रिया दिखाई?
४ उत्कृष्ट रूप से, शिष्य अपने शिक्षक की शिक्षा के प्रति सकारात्मक प्रतिक्रिया दिखाते हैं। यीशु ने अपने पिता की शिक्षा के प्रति कैसी प्रतिक्रिया दिखाई? उसकी प्रतिक्रिया जो हम यशायाह ५०:५ में पढ़ते हैं उसके सामंजस्य में थी: “प्रभु यहोवा ने मेरा कान खोला है, और मैं ने विरोध न किया, न पीछे हटा।” जी हाँ, यीशु सीखने के लिए उत्सुक था। वह कान लगाकर सुनता था। इससे भी अधिक, जो भी उसके पिता ने उसे करने को कहा उसे करने के लिए वह इच्छुक था। वह विद्रोही नहीं था; इसके बजाय, उसने कहा: “मेरी नहीं परन्तु तेरी ही इच्छा पूरी हो।”—लूका २२:४२.
५. (क) क्या सूचित करता है कि पृथ्वी पर जिन परीक्षाओं का वह सामना करता उनके बारे में यीशु पहले से जानता था? (ख) यशायाह ५०:६ की भविष्यवाणी कैसे पूरी हुई?
५ यह भविष्यवाणी सूचित करती है कि पुत्र को उसके परमेश्वर की इच्छा को करने के संभाव्य नतीजों के बारे में जानकारी दी गई थी। उस सिखाए हुए व्यक्ति ने जो कहा उससे यह दर्शाया गया है: “मैं ने मारनेवालों को अपनी पीठ और गलमोछ नोचनेवालों की ओर अपने गाल किए; अपमानित होने और उनके थूकने से मैं ने मुंह न छिपाया।” (यशायाह ५०:६) जैसे भविष्यवाणी सूचित करती है, यीशु के साथ पृथ्वी पर क्रूरता से बर्ताव किया गया। “उन्हों ने उस के मुंह पर थूका,” प्रेरित मत्ती ने लिखा। ‘औरों ने थप्पड़ मारा।’ (मत्ती २६:६७) यह सा.यु. ३३ के फसह की रात को धार्मिक अगुओं के हाथों हुआ। अगले दिन यीशु ने मारनेवालों को अपनी पीठ दी, जब रोमी सैनिकों ने उसे मरने के लिए स्तम्भ पर चढ़ाने से पहले उसे निर्दयता से पीटा।—यूहन्ना १९:१-३, १६-२३.
६. क्या दिखाता है कि यीशु ने कभी अपने शिक्षक पर भरोसा नहीं खोया, और उसके भरोसे का कैसे प्रतिफल दिया गया?
६ पहले से अच्छी तरह शिक्षित, पुत्र ने कभी अपने शिक्षक पर भरोसा नहीं खोया। भविष्यवाणी के अनुसार वह आगे जो कहता है उससे यह दर्शाया गया है: “प्रभु यहोवा मेरी सहायता करता है, इसलिए मैं अपमानित न हुआ।” (यशायाह ५०:७, NHT) अपने शिक्षक की मदद पर यीशु के भरोसे का उसे भरपूर प्रतिफल प्राप्त हुआ। परमेश्वर के अन्य सभी सेवकों से अधिक श्रेष्ठ स्थान की आशीष देकर, उसके पिता ने उसे उन्नत किया। (फिलिप्पियों २:५-११) हमारे सामने भी महान आशीषें रखी हुई हैं यदि हम यहोवा की शिक्षा पर आज्ञाकारिता से चलते रहें और ‘पीछे न हटें।’ आइए हम देखें कि वह शिक्षा हमारे दिनों तक कैसे उपलब्ध करायी गई है।
एक विस्तृत शैक्षिक कार्यक्रम
७. यहोवा ने पृथ्वी पर अपने शिक्षण को कैसे चलाया है?
७ जैसे हम ने पहले देखा, पहली शताब्दी के दौरान ईश्वरीय शिक्षा प्रदान करने के लिए यहोवा ने अपने पार्थिव प्रतिनिधि, यीशु मसीह को इस्तेमाल किया। (यूहन्ना १६:२७, २८) अपनी शिक्षा के आधार के तौर पर यीशु ने हमेशा परमेश्वर के वचन की ओर ध्यान आकर्षित किया, और जिन्हें उसने सिखाया उनके लिए उदाहरण रखा। (मत्ती ४:४, ७, १०; २१:१३; २६:२४, ३१) बाद में, पृथ्वी पर यहोवा की शिक्षा ऐसे सिखाए गए लोगों की सेवकाई के द्वारा चलायी गयी थी। याद कीजिए कि यीशु ने उन्हें आज्ञा दी: “इसलिये तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ . . . उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ।” (मत्ती २८:१९, २०, तिरछे टाइप हमारे।) जब चेले बनाए गए, तब ये “परमेश्वर का घर . . . जीवते परमेश्वर की कलीसिया” के भाग बने। (१ तीमुथियुस ३:१५) उनका भी अलग-अलग कलीसियाओं में गठन किया गया जहाँ वे यहोवा द्वारा सिखाए गए थे। (प्रेरितों १४:२३; १५:४१; १६:५; १ कुरिन्थियों ११:१६) क्या इस तरह ईश्वरीय शिक्षा हमारे दिनों तक जारी रही है?
८. यीशु ने कैसे सूचित किया कि अन्त आने से पहले प्रचार कार्य पृथ्वी पर निर्देशित किया जाता?
८ निश्चय ही, यह जारी रही है! अपनी मृत्यु के तीन दिन पहले, यीशु ने पूर्वबताया कि इस रीति-व्यवस्था के अन्त से पहले, एक महान प्रचार कार्य होता। “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो,” उसने कहा, “तब अन्त आ जाएगा।” यीशु ने आगे उस माध्यम का वर्णन किया जिससे यह विश्वव्यापी प्रचार और शैक्षिक कार्यक्रम निर्देशित किया जाता। उसने “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के बारे में बताया जो उसके सेवकों को आध्यात्मिक भोजन प्रदान करने का एक माध्यम या साधन का कार्य करता। (मत्ती २४:१४, ४५-४७) पृथ्वी-भर में राज्य हितों की देखभाल करने के लिए यहोवा परमेश्वर ने इस “दास” को इस्तेमाल किया है।
९. विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास किन लोगों से बना है?
९ आज, विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास राज्य वारिसों के शेषजनों से बना है। ये अभिषिक्त मसीही हैं, १,४४,००० में से पृथ्वी पर शेष लोग, जो ‘मसीह के हैं’ और जो “इब्राहीम के वंश” का भाग हैं। (गलतियों ३:१६, २९; प्रकाशितवाक्य १४:१-३) आप विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास को कैसे पहचान सकते हैं? ख़ास तौर पर जो कार्य वे करते हैं उससे, और परमेश्वर के वचन, बाइबल का नज़दीकी से अनुपालन करने से।
१०. यहोवा की शिक्षाओं को बढ़ावा देने के लिए दास वर्ग किन साधनों का इस्तेमाल करता है?
१० यहोवा आज लोगों को सिखाने के उसके माध्यम के तौर पर इस “दास” को इस्तेमाल करता है। दास वर्ग के लोगों ने १९३१ में यहोवा के साक्षी नाम अपनाया। तब से लाखों ने उनके साथ संगति की है और उस नाम को स्वीकारा है तथा उनके साथ परमेश्वर के राज्य की घोषणा करने में शामिल हुए हैं। यह पत्रिका, प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है, “दास” द्वारा शैक्षिक कार्य में उपयोग किया जानेवाला मुख्य साधन है। लेकिन, अन्य प्रकाशन भी इस्तेमाल किए जाते हैं, जिनमें पुस्तकें, पुस्तिकाएँ, ब्रोशर, ट्रैक्ट और सजग होइए! पत्रिका शामिल हैं।
११. “दास” ने किन स्कूलों का आयोजन किया है, और इनमें से प्रत्येक स्कूल किस उद्देश्य को पूरा करता है?
११ इसके अतिरिक्त, “दास” विभिन्न स्कूलों को आयोजित करता है। इनमें गिलियड नामक प्रहरीदुर्ग बाइबल स्कूल शामिल है, जो पाँच-महीने का कोर्स है और युवा सेवकों को विदेशी मिशनरी सेवा के लिए तैयार करता है। फिर दो-महीने का सेवकाई प्रशिक्षण स्कूल कोर्स है जो अविवाहित प्राचीनों और सहायक सेवकों को ख़ास ईश्वरशासित नियुक्तियों के लिए प्रशिक्षित करता है। राज्य सेवकाई स्कूल भी है जिसमें समय-समय पर मसीही प्राचीन और सहायक सेवक उनकी कलीसिया ज़िम्मेदारियों के बारे में प्रशिक्षित किए जाते हैं, और पायनियर सेवा स्कूल, जो पूर्ण समय के सुसमाचारकों को अपने प्रचार कार्य में अधिक प्रभावकारी बनने के लिए सज्जित करता है।
१२. शैक्षिक कार्यक्रम का एक साप्ताहिक पहलू क्या है?
१२ शैक्षिक कार्यक्रम का एक और पहलू है पाँच साप्ताहिक सभाएँ जो संसार-भर में यहोवा के लोगों के ७५,५०० से अधिक कलीसियाओं में होती हैं। क्या आप इन सभाओं से यथासंभव फ़ायदा उठाते हैं? दिए गए निर्देशन के प्रति आपकी एकाग्रता से, क्या आप दिखाते हैं कि आप वास्तव में विश्वास करते हैं कि आप लाक्षणिक रूप से परमेश्वर के स्कूल में हैं? क्या आपकी आध्यात्मिक उन्नति दूसरों को स्पष्ट करती है कि आपके पास “सीखनेवालों की जीभ” है?—यशायाह ५०:४; १ तीमुथियुस ४:१५, १६.
कलीसिया सभाओं में सिखाए गए
१३. (क) एक महत्त्वपूर्ण तरीक़ा कौन-सा है जिससे यहोवा अपने लोगों को आज सिखाता है? (ख) प्रहरीदुर्ग के लिए हम अपना मूल्यांकन कैसे दिखा सकते हैं?
१३ प्रहरीदुर्ग को शिक्षा सहायक के तौर पर इस्तेमाल करते हुए, बाइबल के एक साप्ताहिक अध्ययन के माध्यम से यहोवा ख़ास तौर पर अपने लोगों को सिखाता है। क्या आप इस सभा को एक ऐसी जगह समझते हैं जहाँ आप यहोवा द्वारा सिखाए जा सकते हैं? हालाँकि यशायाह ५०:४ मुख्यतः यीशु पर लागू होता है, यह उन सब पर भी लागू हो सकता है जो “सीखनेवालों की जीभ” प्राप्त करने के लिए परमेश्वर के प्रबन्धों से फ़ायदा उठाते हैं। हर अंक को प्राप्त करने के बाद जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी उसे पढ़ना एक ऐसा तरीक़ा है जिससे आप दिखा सकते हैं कि आप प्रहरीदुर्ग को बहुमूल्य समझते हैं। फिर, जब कलीसिया में प्रहरीदुर्ग का अध्ययन किया जाता है, आप उपस्थित होने के द्वारा और अपनी आशा की सार्वजनिक घोषणा करने के लिए तैयार रहने के द्वारा भी यहोवा के प्रति अपना मूल्यांकन दिखा सकते हैं।—इब्रानियों १०:२३.
१४. (क) सभाओं में टिप्पणियाँ देना इतना महत्त्वपूर्ण विशेषाधिकार क्यों है? (ख) बच्चों द्वारा किस प्रकार की टिप्पणियाँ अति प्रोत्साहक हैं?
१४ क्या आप इस बात का मूल्यांकन करते हैं कि सभाओं में आपकी टिप्पणियों से आप यहोवा के महान शैक्षिक कार्यक्रम में भाग ले सकते हैं? निःसंदेह, सभाओं में टिप्पणियाँ देना एक महत्त्वपूर्ण तरीक़ा है जिससे हम एक दूसरे को “प्रेम, और भले कामों” में उस्का सकते हैं। (इब्रानियों १०:२४, २५) क्या बच्चे भी इस निर्देशन के कार्यक्रम में भाग ले सकते हैं? जी हाँ, वे ले सकते हैं। बच्चों द्वारा की गई हार्दिक टिप्पणियाँ बड़े लोगों के लिए अकसर प्रोत्साहक होती हैं। कभी-कभी, हमारी सभाओं में नए लोग बच्चों की टिप्पणियों से बाइबल सच्चाई में अधिक गंभीर दिलचस्पी लेने के लिए प्रेरित हुए हैं। कुछ बच्चे अपनी टिप्पणियों को सीधे अनुच्छेद से पढ़ने की या एक वयस्क व्यक्ति जो उनके कान में फुसफुसाता है उसके पीछे-पीछे बोलने की आदत बना लेते हैं। लेकिन, यह अति प्रोत्साहक होता है जब उनकी टिप्पणियाँ अच्छी तरह तैयार की गई हों। इस प्रकार टिप्पणी करना वास्तव में हमारे महान उपदेशक और शिक्षा के उसके उन्नत कार्यक्रम को महिमा लाता है।—यशायाह ३०:२०, २१.
१५. बच्चों को अधिक प्रभावकारिता से टिप्पणी देने में मदद देने के लिए माता-पिता क्या कर सकते हैं?
१५ यह देखना आनन्द की बात है कि बच्चे हमारे परमेश्वर की स्तुति करने में भाग लेना चाहते हैं। यीशु ने बच्चों द्वारा स्तुति की अभिव्यक्तियों का मूल्यांकन किया। (मत्ती २१:१५, १६) एक मसीही प्राचीन बताता है: “जब मैं एक बच्चा था, तब मैं प्रहरीदुर्ग अध्ययन में टिप्पणी करना चाहता था। एक टिप्पणी तैयार करने में मुझे मदद देने के बाद, मेरा पिता मुझ से माँग करता कि मैं उस टिप्पणी का कम-से-कम सात बार अभ्यास करूँ।” संभवतः आपके पारिवारिक बाइबल अध्ययन के दौरान, आप माता-पिता अपने बच्चों को प्रहरीदुर्ग में चुने हुए अनुच्छेदों पर उनके अपने शब्दों में टिप्पणियाँ तैयार करने में मदद दे सकते हैं। यहोवा के शैक्षिक कार्यक्रम में भाग लेने के उनके महान विशेषाधिकार का मूल्यांकन करने में उनकी मदद कीजिए।
१६. ईश्वरशासित सेवकाई स्कूल का क्या फ़ायदा रहा है, और कौन इस स्कूल में नाम लिखवा सकते हैं?
१६ जानकारी प्रस्तुत करने के विशेषाधिकार प्राप्त लोग साथ ही प्रस्तुत जानकारी को सुननेवाले, दोनों को अन्य मसीही सभाओं में दी गई शिक्षा पर भी गंभीर ध्यान देना चाहिए। पिछले ५० सालों से अधिक समय के दौरान, लाखों पुरुषों और स्त्रियों को अधिक प्रभावकारी रूप से राज्य संदेश को प्रस्तुत करने में प्रशिक्षित करने के लिए यहोवा ने साप्ताहिक ईश्वरशासित सेवकाई स्कूल को इस्तेमाल किया है। जो कलीसिया के साथ सक्रिय रूप से संगति करते हैं वे इसमें नाम लिखवा सकते हैं। इसमें वे भी शामिल हैं जो हाल ही में सभाओं में उपस्थित होने लगे हैं, बशर्ते वे एक ऐसा जीवन व्यतीत कर रहे हों जो मसीही सिद्धांतों के सामंजस्य में है।
१७. (क) जन सभा ख़ास तौर पर किस उद्देश्य के लिए आयोजित की गयी थी? (ख) जन वक्ताओं को किन बातों को मन में रखना चाहिए?
१७ इस शैक्षिक कार्यक्रम का एक और चिरकालीन पहलू जन सभा है। जैसे उसका नाम सूचित करता है, यह सभा ख़ास तौर पर ग़ैर-साक्षियों को मूल बाइबल शिक्षाओं से परिचित कराने के लिए आयोजित की गयी थी। अतः, भाषण देनेवाले को जानकारी इस प्रकार प्रस्तुत करने की ज़रूरत है कि वह संदेश पहली बार सुननेवालों की समझ में आ सके। इसका अर्थ है “अन्य भेड़,” “भाई,” और “शेष जन” जैसे पदों को समझाना, ऐसे पद जो ग़ैर-साक्षी शायद ना समझें। चूँकि जन सभा में उपस्थित होनेवाले लोगों के शायद ऐसे विश्वास और जीवन-शैलियाँ हैं जो शास्त्र के काफ़ी विपरीत हैं—हालाँकि वे आज के समाज में स्वीकार्य हैं—वक्ता को हमेशा व्यवहार-कुशल होना चाहिए और कभी ऐसे विश्वासों या जीवन-शैलियों का मज़ाक नहीं उड़ाना चाहिए।—१ कुरिन्थियों ९:१९-२३ से तुलना कीजिए।
१८. कौन-सी अन्य साप्ताहिक कलीसिया सभाएँ हैं, और वे किस उद्देश्य को पूरा करती हैं?
१८ कलीसिया पुस्तक अध्ययन एक ऐसी सभा है जिसमें बाइबल के साथ विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास के निर्देशन के अधीन तैयार किए गए प्रकाशनों का हर हफ़्ते अध्ययन किया जाता है। अनेक देशों में अभी प्रकाशितवाक्य—इसकी महान् पराकाष्ठा निकट! (अंग्रेज़ी) पुस्तक का अध्ययन किया जा रहा है। सेवा सभा राज्य के सुसमाचार का प्रचार करने और चेले बनाने में पूरा भाग लेने में यहोवा के लोगों को सज्जित करने के लिए तैयार की गयी है।—मत्ती २८:१९, २०; मरकुस १३:१०.
बड़ी सभाओं में सिखाए गए
१९. “दास” किन ज़्यादा बड़े समूहनों को हर साल आयोजित करता है?
१९ पिछले सौ सालों से अधिक समय के दौरान, सच्चे मसीहियों के शिक्षण और ख़ास प्रोत्साहन के लिए ‘विश्वासयोग्य दास’ ने अधिवेशन और सम्मेलन आयोजित किए हैं। अब हर साल तीन ऐसी बड़ी सभाएँ होती हैं। एक-दिवसीय सम्मेलन होता है जिसमें कुछ कलीसियाओं से बने एक सर्किट के लोग उपस्थित होते हैं। हर सर्किट में साल में दो-दिन का एक समूहन भी होता है जिसे सर्किट सम्मेलन कहते हैं। इसके अलावा, एक और समूहन है जिसे ज़िला अधिवेशन कहते हैं, जिसमें कई सर्किट उपस्थित होते हैं। समय-समय पर अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन भी हो सकते हैं। ये बड़े समूहन, जिनमें अनेक देशों से अतिथि साक्षी उपस्थित होते हैं, वास्तव में यहोवा के लोगों के लिए विश्वास को दृढ़ करनेवाले हैं।—व्यवस्थाविवरण १६:१६ से तुलना कीजिए।
२०. यहोवा के साक्षियों के ज़्यादा बड़े समूहनों में हमेशा किस बात पर ज़ोर दिया गया है?
२० वर्ष १९२२ में, जब क़रीब १०,००० लोग सीडार पॉइंट, ओहायो, अमरीका में एकत्रित हुए, तब प्रतिनिधि वक्ता के प्रोत्साहन से प्रेरित हुए: “यह सबसे बड़ा दिन है। देख, राजा राज्य करता है! तुम लोग उसके प्रचार अभिकर्ता हो। इसलिए, राजा और उसके राज्य की घोषणा करो, घोषणा करो, घोषणा करो।” ऐसे बड़े अधिवेशनों ने हमेशा प्रचार कार्य पर ज़ोर दिया है। उदाहरण के लिए, न्यू यॉर्क शहर में १९५३ में हुए अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में सभी कलीसियाओं में घर-घर के प्रशिक्षण कार्यक्रम की स्थापना के बारे में घोषणा की गई थी। उसके लागू किए जाने से अनेक देशों में राज्य प्रचार पर बहुत ही सकारात्मक प्रभाव पड़ा।
सिखाने के लिए परमेश्वर द्वारा सिखाए गए
२१. उसके उद्देश्य को न चूकते हुए, हम किस विशेषाधिकार को स्वीकार करना चाहते हैं?
२१ निश्चय ही, यहोवा का आज पृथ्वी पर एक अद्भुत शैक्षिक कार्यक्रम है! सभी जो इसका फ़ायदा उठाते हैं परमेश्वर द्वारा सिखाए जा सकते हैं, जी हाँ, वे उनमें हो सकते हैं जिन्हें “सीखनेवालों की जीभ” दी गई है। लाक्षणिक तौर पर, परमेश्वर के स्कूल में होना क्या ही विशेषाधिकार है! लेकिन, इस विशेषाधिकार को स्वीकार करते वक़्त हमें इसके उद्देश्य को नहीं चूकना चाहिए। यहोवा ने यीशु को सिखाया ताकि वह दूसरों को सिखा सके, और यीशु ने अपने चेलों को सिखाया ताकि वे भी वही कार्य कर सकें जो वह कर रहा था लेकिन और भी बड़े पैमाने पर। वैसे ही, दूसरों को सिखाने के उद्देश्य से हम यहोवा के महान शैक्षिक कार्यक्रम में प्रशिक्षित किए जा रहे हैं।—यूहन्ना ६:४५; १४:१२; २ कुरिन्थियों ५:२०, २१; ६:१; २ तीमुथियुस २:२.
२२. (क) मूसा और यिर्मयाह को कौन-सी समस्या थी, लेकिन वह कैसे सुलझायी गई? (ख) हमें क्या आश्वासन मिल सकता है कि परमेश्वर यह निश्चित करेगा कि राज्य प्रचार निष्पन्न किया जाता है?
२२ क्या आप मूसा की तरह कहते हैं, “मैं बोलने में निपुण नहीं,” या जैसे यिर्मयाह ने कहा, “मैं तो बोलना ही नहीं जानता”? यहोवा आपकी मदद करेगा जैसे उसने उनकी मदद की। उसने मूसा से कहा, ‘मैं तेरे मुख के संग होऊंगा।’ और यिर्मयाह को उसने कहा, “मत डर . . . मैं तेरे साथ हूं।” (निर्गमन ४:१०-१२; यिर्मयाह १:६-८) जब धार्मिक अगुए उसके चेलों को चुप कराना चाहते थे, तब यीशु ने कहा: “यदि ये चुप रहें, तो पत्थर चिल्ला उठेंगे।” (लूका १९:४०) लेकिन पत्थरों को तब चिल्लाना नहीं पड़ा, और न ही उन्हें अब चिल्लाने की ज़रूरत है क्योंकि यहोवा अपने राज्य संदेश को सिखाने के लिए अपने सिखाए हुए लोगों की जीभ को इस्तेमाल कर रहा है।
क्या आप जवाब दे सकते हैं?
◻ यशायाह अध्याय ५० में किस आदर्श शिक्षक-शिष्य के रिश्ते को विशिष्ट किया गया है?
◻ यहोवा ने एक विस्तृत शैक्षिक कार्यक्रम कैसे चलाया है?
◻ यहोवा के शैक्षिक कार्यक्रम के कुछ पहलू कौन-से हैं?
◻ यहोवा के शैक्षिक कार्यक्रम में भाग लेना एक महान विशेषाधिकार क्यों है?
[पेज 16 पर तसवीरें]
बच्चों द्वारा की गयी हार्दिक टिप्पणियाँ बड़े लोगों के लिए अकसर प्रोत्साहक होती हैं