यहोवा—एक सिखानेवाला परमेश्वर
“वे सब परमेश्वर की ओर से सिखाए हुए होंगे।”—यूहन्ना ६:४५.
१. यीशु अब कफरनहूम में क्या कर रहा है?
यीशु मसीह ने हाल ही में चमत्कार किए थे और अब गलील सागर के पास, कफरनहूम के एक आराधनालय में सिखाते हुए दिखाई देता है। (यूहन्ना ६:१-२१, ५९) अनेक जन अविश्वास व्यक्त करते हैं जब वह कहता है: “मैं . . . स्वर्ग से उतरा हूं।” वे कुड़कुड़ाते हैं: “क्या यह यूसुफ का पुत्र यीशु नहीं, जिस के माता-पिता को हम जानते हैं? तो वह क्योंकर कहता है कि मैं स्वर्ग से उतरा हूं।” (यूहन्ना ६:३८, ४२) उनको फटकारते हुए, यीशु घोषणा करता है: “कोई मेरे पास नहीं आ सकता, जब तक पिता, जिस ने मुझे भेजा है, उसे खींच न ले; और मैं उस को अंतिम दिन फिर जिला उठाऊंगा।”—यूहन्ना ६:४४.
२. पुनरुत्थान के बारे में यीशु की प्रतिज्ञा पर विश्वास करने के लिए क्या आधार है?
२ क्या ही अद्भुत प्रतिज्ञा—अंतिम दिन में पुनरुत्थित किया जाना, जब परमेश्वर का राज्य शासन करता है! हम इस प्रतिज्ञा में विश्वास कर सकते हैं क्योंकि पिता, यहोवा परमेश्वर ने इसकी गारंटी दी है। (अय्यूब १४:१३-१५; यशायाह २६:१९) वस्तुतः, यहोवा, जो सिखाता है कि मृत लोग फिर से जीवित होंगे, “सबसे महान शिक्षक” है। (अय्यूब ३६:२२, टुडेज़ इंग्लिश वर्शन) पिता की शिक्षा की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए, यीशु आगे कहता है: “भविष्यद्वक्ताओं के लेखों में यह लिखा है, कि वे सब परमेश्वर की ओर से सिखाए हुए होंगे।”—यूहन्ना ६:४५.
३. हम किन प्रश्नों पर विचार करेंगे?
३ निश्चित ही, उन लोगों में होना एक विशेषाधिकार होगा जिनके बारे में भविष्यवक्ता यशायाह ने लिखा: “तेरे सब लड़के यहोवा के सिखलाए हुए होंगे।” (यशायाह ५४:१३) क्या हम उनमें हो सकते हैं? कौन उसके लिए पुत्रों के समान रहे हैं और किसने उसकी शिक्षाओं को प्राप्त किया है? यहोवा की आशीष प्राप्त करने के लिए उसकी अति-महत्त्वपूर्ण शिक्षाएँ कौन-सी हैं जिन्हें हमें जानना है और जिन पर हमें कार्य करना है? अतीत में यहोवा ने कैसे सिखाया, और क्या वह आज भी वैसे ही सिखाता है? ये प्रश्न हैं जिन पर हम विचार करेंगे।
पिता, शिक्षक, पति
४. यहोवा के पुत्रों में से सबसे पहले उसकी शिक्षाओं को प्राप्त करनेवाले कौन थे?
४ यहोवा पहली बार पिता और शिक्षक दोनों बना जब उसने अपने एकलौते पुत्र, मानवपूर्व यीशु की सृष्टि की। उसे “वचन” कहते हैं क्योंकि वह यहोवा का प्रमुख प्रवक्ता है। (यूहन्ना १:१, १४; ३:१६) वचन ने ‘कुशल कारीगर जैसे [पिता के] साथ’ सेवा की, और उसने अपने पिता की शिक्षा से अच्छी तरह सीखा। (नीतिवचन ८:२२, ३०, NHT) वास्तव में, वह कर्ता, या ज़रिया बना, जिसके द्वारा पिता ने अन्य सभी वस्तुओं की सृष्टि की, जिनमें “परमेश्वर के [आत्मिक] पुत्र” भी शामिल हैं। परमेश्वर द्वारा सिखाए जाने में वे कितने आनन्दित हुए होंगे! (अय्यूब १:६; २:१; ३८:७; कुलुस्सियों १:१५-१७) बाद में, पहले मानव, आदम की सृष्टि की गई। वह भी ‘परमेश्वर का पुत्र’ था, और बाइबल प्रकट करती है कि यहोवा ने उसे प्रशिक्षित किया।—लूका ३:३८; उत्पत्ति २:७, १६, १७.
५. आदम ने किस बहुमूल्य विशेषाधिकार को खो दिया, फिर भी यहोवा ने किसे सिखाया, और क्यों?
५ दुःख की बात है कि अपनी जानबूझकर प्रदर्शित अवज्ञाकारिता से आदम ने परमेश्वर के पुत्र बने रहने के विशेषाधिकार को खो दिया। अतः, उसके वंशज केवल जन्म के आधार पर परमेश्वर के पुत्र होने के रिश्ते का दावा नहीं कर सकते थे। फिर भी, यहोवा ने उन अपरिपूर्ण मनुष्यों को सिखाया जिन्होंने उसकी ओर मार्गदर्शन के लिए देखा। उदाहरण के लिए, नूह एक “धर्मी पुरुष” साबित हुआ जो “परमेश्वर ही के साथ साथ चलता रहा,” और इसलिए यहोवा ने नूह को प्रशिक्षित किया। (उत्पत्ति ६:९;१३–७:५) अपनी आज्ञाकारिता से, इब्राहीम ने अपने आपको “[यहोवा] का मित्र” साबित किया, और इस वजह से वह भी यहोवा द्वारा सिखाया गया था।—याकूब २:२३; उत्पत्ति १२:१-४; १५:१-८; २२:१, २.
६. यहोवा किसे अपना “पुत्र” मानने लगा, और वह उन के लिए किस प्रकार का शिक्षक था?
६ काफ़ी समय बाद, मूसा के दिनों के दौरान, यहोवा ने इस्राएल की जाति के साथ एक वाचा का रिश्ता स्थापित किया। परिणामस्वरूप, वह जाति उसकी निज प्रजा बनी और उसे “पुत्र” माना गया। परमेश्वर ने कहा: “इस्राएल मेरा पुत्र . . . है।” (निर्गमन ४:२२, २३; १९:३-६; व्यवस्थाविवरण १४:१, २) उस वाचा के रिश्ते के आधार पर, इस्राएली कह सके, जैसे भविष्यवक्ता यशायाह ने अभिलिखित किया: “हे यहोवा, तू हमारा पिता . . . है।” (यशायाह ६३:१६) यहोवा ने अपनी पितृवत् ज़िम्मेदारी को सँभाला और प्रेमपूर्वक अपने बच्चे, अर्थात् इस्राएल को सिखाया। (भजन ७१:१७; यशायाह ४८:१७, १८) वास्तव में, जब वे विश्वासघाती बने, तब उसने दया के साथ उनसे याचना की: “हे भटकनेवाले लड़को लौट आओ।”—यिर्मयाह ३:१४.
७. इस्राएल का यहोवा के साथ क्या रिश्ता था?
७ इस्राएल के साथ वाचा के रिश्ते के परिणामस्वरूप, लाक्षणिक तौर पर यहोवा उस जाति का पति भी बन गया, और वह उसकी लाक्षणिक पत्नी बन गई। उसके बारे में भविष्यवक्ता यशायाह ने लिखा: “तेरा कर्त्ता तेरा पति है, उसका नाम सेनाओं का यहोवा है।” (यशायाह ५४:५; यिर्मयाह ३१:३२) हालाँकि यहोवा ने ईमानदारी से पति की अपनी भूमिका निभायी, इस्राएल की जाति एक विश्वासघाती पत्नी बन गई। “जैसे विश्वासघाती स्त्री अपने प्रिय से मन फेर लेती है,” यहोवा ने कहा, “वैसे ही हे इस्राएल के घराने, तू मुझ से फिर गया है।” (यिर्मयाह ३:२०) यहोवा अपनी अविश्वासी पत्नी के पुत्रों से निवेदन करता रहा; वह उनका “महान उपदेशक” बना रहा।—यशायाह ३०:२०, NW; २ इतिहास ३६:१५.
८. हालाँकि एक जाति के तौर पर इस्राएल यहोवा द्वारा त्यागी गयी थी, अब भी उसके पास कौन-सी रूपक लाक्षणिक पत्नी है?
८ जब इस्राएल ने उसके पुत्र, यीशु मसीह को अस्वीकार किया और मार डाला, तब परमेश्वर ने अंततः उसे अस्वीकार किया। अतः तब से वह यहूदी जाति उसकी लाक्षणिक पत्नी नहीं रही, न ही वह उसके भटके हुए पुत्रों का पिता और शिक्षक रहा। (मत्ती २३:३७, ३८) लेकिन, इस्राएल केवल एक प्रतिरूपक, या सांकेतिक पत्नी थी। प्रेरित पौलुस ने यशायाह ५४:१ को उद्धृत किया, जिसमें एक ऐसी “बांझ” की बात की गई है जो “सुहागिन,” अर्थात् शारीरिक इस्राएल की जाति से अलग और भिन्न है। पौलुस बताता है कि अभिषिक्त मसीही उस “बांझ” के बच्चे हैं जिसे वह “ऊपर की यरूशलेम” कहता है। यह रूपक लाक्षणिक स्त्री आत्मिक प्राणियों के परमेश्वर के स्वर्गीय संगठन से बनी हुई है।—गलतियों ४:२६, २७.
९. (क) यीशु किसका ज़िक्र कर रहा था जब उसने ‘तेरे लड़के यहोवा के सिखाए हुए होने’ के बारे में कहा? (ख) किस आधार पर लोग परमेश्वर के आध्यात्मिक पुत्र बनते हैं?
९ अतः, कफरनहूम के आराधनालय में, जब यीशु ने यशायाह की भविष्यवाणी को उद्धृत किया: “तेरे सब लड़के यहोवा के सिखलाए हुए होंगे,” तब वह उनके बारे में बात कर रहा था जो “ऊपर की यरूशलेम,” परमेश्वर की पत्नीरूपी स्वर्गीय संगठन के “पुत्र” बनते। स्वर्ग से परमेश्वर के प्रतिनिधि, यीशु मसीह की शिक्षाओं को स्वीकार करने से, वे यहूदी श्रोता परमेश्वर की पहली बाँझ स्वर्गीय स्त्री की संतान बन सकते थे और फिर “पवित्र लोग,” अर्थात् “परमेश्वर के [आत्मिक] इस्राएल” बनते। (१ पतरस २:९, १०; गलतियों ६:१६) परमेश्वर के आध्यात्मिक पुत्र बनने के लिए जिस महान अवसर को यीशु ने उपलब्ध कराया उसका वर्णन करते हुए प्रेरित यूहन्ना ने लिखा: “वह अपने घर आया और उसके अपनों ने उसे ग्रहण नहीं किया। परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उस ने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं।”—यूहन्ना १:११, १२.
यहोवा की अति-महत्त्वपूर्ण शिक्षाएँ
१०. अदन में विद्रोह के तुरन्त बाद, “वंश” के बारे में यहोवा ने क्या सिखाया, और यह वंश कौन साबित हुआ?
१० एक प्रेममय पिता के तौर पर, यहोवा अपने बच्चों को अपने उद्देश्यों के बारे में जानकारी देता है। अतः, जब एक विद्रोही स्वर्गदूत ने पहले मानव जोड़े को अवज्ञा करने के लिए प्रलोभित किया, तब यहोवा ने तुरन्त उन्हें जानकारी दी कि पृथ्वी को एक परादीस बनाने के अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए वह क्या करेगा। उसने कहा कि “वही पुराना सांप,” जो शैतान अर्थात् इब्लीस है, “और इस स्त्री” के बीच वह बैर उत्पन्न कराएगा। फिर उसने समझाया कि स्त्री का “वंश” शैतान के “सिर” को घातक रूप से कुचल देगा। (उत्पत्ति ३:१-६, १५; प्रकाशितवाक्य १२:९; २०:९, १०) जैसे हम ने देखा है, वह स्त्री—जिसकी बाद में “ऊपर की यरूशलेम” के तौर पर पहचान की गई है—आत्मिक प्राणियों के परमेश्वर का स्वर्गीय संगठन है। लेकिन उसका “वंश” कौन है? वह परमेश्वर का पुत्र, यीशु मसीह है, जो स्वर्ग से भेजा गया था और जो अंततः शैतान का नाश करेगा।—गलतियों ४:४; इब्रानियों २:१४; १ यूहन्ना ३:८.
११, १२. “वंश” के बारे में अपनी अति-महत्त्वपूर्ण शिक्षा पर यहोवा ने और अधिक जानकारी कैसे दी?
११ यहोवा ने “वंश” के बारे में इस अति-महत्त्वपूर्ण शिक्षा पर और अधिक जानकारी दी जब उसने इब्राहीम से प्रतिज्ञा की: ‘मैं निश्चय तेरे वंश को आकाश के तारागण के समान अनगिनित करूंगा और पृथ्वी की सारी जातियां अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी।’ (उत्पत्ति २२:१७, १८) यहोवा ने यह समझाने के लिए प्रेरित पौलुस को इस्तेमाल किया कि यीशु मसीह इब्राहीम का प्रतिज्ञात वंश है लेकिन अन्य लोग भी इस “वंश” का भाग बनेंगे। “यदि तुम मसीह के हो,” पौलुस ने लिखा, “तो इब्राहीम के वंश और प्रतिज्ञा के अनुसार वारिस भी हो।”—गलतियों ३:१६, २९.
१२ यहोवा ने यह भी प्रकट किया कि मसीह, वह वंश, यहूदा की राजसी वंशावली में से आएगा और कि “राज्य राज्य के लोग उसके अधीन हो जाएंगे।” (उत्पत्ति ४९:१०) यहूदा के गोत्र के राजा दाऊद के बारे में, यहोवा ने वचन दिया: “मैं उसके वंश को सदा बनाए रखूंगा, और उसकी राजगद्दी स्वर्ग के समान सर्वदा बनी रहेगी। उसका वंश सर्वदा रहेगा, और उसकी राजगद्दी सूर्य की नाईं मेरे सम्मुख ठहरी रहेगी।” (भजन ८९:३, ४, २९, ३६) जब जिब्राईल नामक स्वर्गदूत ने यीशु के जन्म की घोषणा की, तब उसने समझाया कि वह बालक परमेश्वर का नियुक्त शासक, दाऊद का वंश था। “वह महान होगा; और परमप्रधान का पुत्र कहलाएगा,” जिब्राईल ने कहा, “और [यहोवा] परमेश्वर उसके पिता दाऊद का सिंहासन उस को देगा . . . और उसके राज्य का अन्त न होगा।”—लूका १:३२, ३३; यशायाह ९:६, ७; दानिय्येल ७:१३, १४.
१३. यहोवा की आशीष प्राप्त करने के लिए, हमें उसकी शिक्षा के प्रति कैसी प्रतिक्रिया दिखानी चाहिए?
१३ यहोवा की आशीष प्राप्त करने के लिए, हमें परमेश्वर के राज्य के बारे में इस अति-महत्त्वपूर्ण शिक्षा को जानना और उस पर कार्य करना चाहिए। हमें विश्वास करना चाहिए कि यीशु स्वर्ग से उतर आया था, कि वह परमेश्वर का नियुक्त राजा है—वह राजसी वंश जो पृथ्वी पर परादीस की पुनःस्थापना का निरीक्षण करेगा—और कि वह मृतकों को पुनरुत्थित करेगा। (लूका २३:४२, ४३; यूहन्ना १८:३३-३७) कफरनहूम में जब यीशु ने मृतकों को पुनरुत्थित करने के बारे में कहा, तब यहूदियों को यह स्पष्ट हो जाना चाहिए था कि उसने सच कहा था। क्यों, सिर्फ़ कुछ ही हफ़्तों पहले, संभवतः वहीं कफरनहूम में, उसने आराधनालय के एक सरदार की १२-वर्षीया पुत्री को पुनरुत्थित किया था! (लूका ८:४९-५६) ज़रूर हमारे पास भी हर कारण है कि हम यहोवा के राज्य के बारे में उसकी आशा-प्रेरक शिक्षा पर विश्वास करें और उसके सामंजस्य में कार्य करें!
१४, १५. (क) यहोवा का राज्य यीशु के लिए कितना महत्त्वपूर्ण है? (ख) हमें यहोवा के राज्य के बारे में कौन-सी बात को समझने और समझाने में समर्थ होने की ज़रूरत है?
१४ यीशु ने अपने पार्थिव जीवन को यहोवा के राज्य के बारे में सिखाने के लिए समर्पित किया। उसने इसे अपनी सेवकाई का मूलविषय बनाया, और उसने अपने अनुयायियों को भी इसके लिए प्रार्थना करना सिखाया। (मत्ती ६:९, १०; लूका ४:४३) शारीरिक यहूदी “राज्य के सन्तान” बनने की स्थिति में थे, लेकिन विश्वास की कमी के कारण, उनमें से अधिकतर लोग इस विशेषाधिकार को नहीं पा सके। (मत्ती ८:१२; २१:४३) यीशु ने प्रकट किया कि केवल एक ‘छोटा झुण्ड’ ही “राज्य के सन्तान” बनने का विशेषाधिकार प्राप्त करता है। ये “सन्तान” उसके स्वर्गीय राज्य में “मसीह के संगी वारिस” बनते हैं।—लूका १२:३२; मत्ती १३:३८; रोमियों ८:१४-१७; याकूब २:५.
१५ अपने साथ पृथ्वी पर शासन करने के लिए मसीह कितने राज्य वारिसों को स्वर्ग ले जाएगा? बाइबल के अनुसार केवल १,४४,००० को। (यूहन्ना १४:२, ३; २ तीमुथियुस २:१२; प्रकाशितवाक्य ५:१०; १४:१-३; २०:४) लेकिन यीशु ने कहा कि उसकी “अन्य भेड़ें” हैं, जो उस राज्य शासन की पार्थिव प्रजा होंगी। एक परादीस पृथ्वी पर वे हमेशा परिपूर्ण स्वास्थ्य और शांति का आनन्द लेंगी। (यूहन्ना १०:१६, NW; भजन ३७:२९; प्रकाशितवाक्य २१:३, ४) हमें राज्य के बारे में यहोवा की शिक्षा को समझने और समझाने में समर्थ होने की ज़रूरत है।
१६. यहोवा की कौन-सी अति-महत्त्वपूर्ण शिक्षा को हमें सीखने और अभ्यास करने की ज़रूरत है?
१६ प्रेरित पौलुस ने यहोवा की एक और अति-महत्त्वपूर्ण शिक्षा की पहचान करायी। उसने कहा: “आपस में प्रेम रखना तुम ने आप ही परमेश्वर से सीखा है।” (१ थिस्सलुनीकियों ४:९) यहोवा को ख़ुश करने के लिए हमें ऐसा प्रेम प्रदर्शित करने की ज़रूरत है। “परमेश्वर प्रेम है,” बाइबल कहती है, और हमें प्रेम दिखाने में उसके उदाहरण का अनुकरण करने की ज़रूरत है। (१ यूहन्ना ४:८; इफिसियों ५:१, २) दुःख की बात है कि अधिकतर लोग अपने संगी मनुष्यों से उस तरह प्रेम करना सीखने में बुरी तरह से असफल हो गए हैं जिस तरह परमेश्वर हमें प्रेम करना सिखाता है। हमारे बारे में क्या? क्या हम ने यहोवा की इस शिक्षा के प्रति सकारात्मक प्रतिक्रिया दिखाई है?
१७. हमें किसकी मनोवृत्ति का अनुकरण करना चाहिए?
१७ यह अति-महत्त्वपूर्ण है कि हम यहोवा की सभी शिक्षाओं के प्रति ग्रहणशील हों। हमारी मनोवृत्ति बाइबल भजनहारों की मनोवृत्ति जैसी हो जिन्होंने लिखा: “हे यहोवा अपने मार्ग मुझ को दिखला; अपना पथ मुझे बता दे। मुझे अपने सत्य पर चला और शिक्षा दे।” “मुझे अपनी विधियां सिखा! मुझे भली विवेक-शक्ति और ज्ञान दे . . . अपने नियमों को मुझे सिखा।” (भजन २५:४, ५; ११९:१२, ६६, १०८) यदि आपकी भावनाएँ भजनहारों की भावनाओं के समान हैं, तो आप एक ऐसी विशाल भीड़ में हो सकते हैं जो यहोवा द्वारा सिखाई जाती है।
सिखाए हुए लोगों की बड़ी भीड़
१८. भविष्यवक्ता यशायाह ने क्या पूर्वबताया जो हमारे समय में होता?
१८ भविष्यवक्ता यशायाह ने पूर्वबताया कि हमारे समय में क्या होगा: “अन्त के दिनों में ऐसा होगा कि यहोवा के भवन का पर्वत सब पहाड़ों पर दृढ़ किया जाएगा . . . और बहुत देशों के लोग आएंगे, और आपस में कहेंगे: आओ, हम यहोवा के पर्वत पर चढ़कर, याकूब के परमेश्वर के भवन में जाएं; तब वह हमको अपने मार्ग सिखाएगा।” (यशायाह २:२, ३, तिरछे टाइप हमारे; मीका ४:२) ये यहोवा द्वारा सिखाए गए लोग कौन हैं?
१९. यहोवा द्वारा सिखाए गए लोगों में आज कौन शामिल हैं?
१९ इनमें उन लोगों के अलावा जो स्वर्ग में मसीह के साथ शासन करेंगे, अन्य लोग भी शामिल हैं। जैसे पहले बताया गया है, यीशु ने कहा कि राज्य वारिसों के “छोटे झुण्ड” के अतिरिक्त उसकी “अन्य भेड़ें”—राज्य की पार्थिव प्रजा—हैं। (लूका १२:३२; यूहन्ना १०:१६, NW) वह “बड़ी भीड़” जो “बड़े क्लेश” से बच निकलती है, ‘अन्य भेड़’ वर्ग की हैं, और यीशु के बहाए हुए लोहू पर अपने विश्वास के आधार पर वे यहोवा के सामने एक स्वीकृत स्थिति का आनन्द लेते हैं। (प्रकाशितवाक्य ७:९, १४) हालाँकि अन्य भेड़ यशायाह ५४:१३ में बताए गए ‘लड़कों’ में सीधे रूप से शामिल नहीं है, उन्हें यहोवा द्वारा सिखाए जाने की आशीष प्राप्त है। इसलिए, वे उचित ही परमेश्वर को “पिता” के रूप में संबोधित करते हैं क्योंकि वह, वस्तुतः ‘अनन्तकाल के पिता,’ यीशु मसीह द्वारा उनका दादा होगा।—मत्ती ६:९; यशायाह ९:६.
यहोवा कैसे सिखाता है
२०. यहोवा किन तरीक़ों से सिखाता है?
२० यहोवा अनेक तरीक़ों से सिखाता है। उदाहरण के लिए, वह अपने सृजनात्मक कार्यों के ज़रिए ऐसा करता है, जो उसके अस्तित्व और उसकी महान बुद्धि दोनों का प्रमाण देते हैं। (अय्यूब १२:७-९; भजन १९:१, २; रोमियों १:२०) इसके अलावा, वह सीधे संचार द्वारा सिखाता है, जैसे उसने मानवपूर्व यीशु को प्रशिक्षित करने में किया। समान रीति से, तीन अभिलिखित अवसरों पर, उसने स्वर्ग से सीधे पृथ्वी पर मनुष्यों से बात की।—मत्ती ३:१७; १७:५; यूहन्ना १२:२८.
२१. विशेष रूप से किस स्वर्गदूत को यहोवा ने अपने प्रतिनिधि के तौर पर इस्तेमाल किया, लेकिन हम कैसे जानते हैं कि दूसरे भी इस्तेमाल किए गए थे?
२१ यहोवा सिखाने के लिए स्वर्गदूतीय प्रतिनिधियों को भी इस्तेमाल करता है, जिनमें उसका पहलौठा, अर्थात् “वचन” भी शामिल है। (यूहन्ना १:१-३) हालाँकि अदन की वाटिका में यहोवा अपने परिपूर्ण मानव पुत्र, आदम से सीधे बात कर सकता था, संभवतः उसकी ओर से बोलने के लिए यहोवा ने मानवपूर्व यीशु को इस्तेमाल किया। (उत्पत्ति २:१६, १७) संभवतः यही था “परमेश्वर का दूत जो इस्राएली सेना के आगे आगे चला करता था” और जिसके बारे में यहोवा ने आज्ञा दी: “उसकी मानना।” (निर्गमन १४:१९; २३:२०, २१) निःसंदेह मानवपूर्व यीशु “यहोवा की सेना का प्रधान” भी था जो यहोशू को बलवन्त करने के लिए उसको प्रकट हुआ। (यहोशू ५:१४, १५) यहोवा अपनी शिक्षाओं को प्रदान करने के लिए दूसरे स्वर्गदूतों को भी इस्तेमाल करता है, जैसे वे स्वर्गदूत जिन्हें मूसा तक अपनी व्यवस्था को पहुँचाने के लिए उसने इस्तेमाल किया था।—निर्गमन २०:१; गलतियों ३:१९; इब्रानियों २:२, ३.
२२. (क) सिखाने के लिए पृथ्वी पर यहोवा ने किसे इस्तेमाल किया है? (ख) वह मुख्य तरीक़ा कौन-सा है जिससे यहोवा आज मनुष्यों को प्रशिक्षित करता है?
२२ इसके अलावा, सिखाने के लिए यहोवा परमेश्वर मानव प्रतिनिधियों को इस्तेमाल करता है। इस्राएल में माता-पिताओं को अपने बच्चों को सिखाना था; भविष्यवक्ता, याजक, राजकुमार, और लैवी, जाति को यहोवा की व्यवस्था सिखाते थे। (व्यवस्थाविवरण ११:१८-२१; १ शमूएल १२:२०-२५; २ इतिहास १७:७-९) पृथ्वी पर यीशु परमेश्वर का प्रमुख प्रवक्ता था। (इब्रानियों १:१, २) यीशु ने अकसर कहा कि जो उसने सिखाया वह बिलकुल वही था जो उसने पिता से सीखा था, अतः उसके श्रोता, वास्तव में यहोवा द्वारा सिखाए जा रहे थे। (यूहन्ना ७:१६; ८:२८; १२:४९; १४:९, १०) यहोवा ने अपने कथनों को अभिलिखित कराया है, और हमारे दिनों में वह मनुष्यों को मुख्यतः इस उत्प्रेरित शास्त्र के ज़रिए सिखाता है।—रोमियों १५:४; २ तीमुथियुस ३:१६.
२३. अगले लेख में किन प्रश्नों पर विचार किया जाएगा?
२३ हम महत्त्वपूर्ण समय में जी रहे हैं, क्योंकि शास्त्र प्रतिज्ञा करता है कि ‘अन्त के दिनों में [जिनमें हम जी रहे हैं] बहुत लोगों को यहोवा के मार्ग सिखाए जाएंगे।’ (यशायाह २:२, ३) यह प्रशिक्षण कैसे प्रदान किया जाता है? अभी चल रहे यहोवा के महान शैक्षिक कार्यक्रम से लाभ प्राप्त करने, साथ ही उसमें भाग लेने के लिए हमें क्या करना चाहिए? हम अगले लेख में ऐसे प्रश्नों पर विचार करेंगे।
आप कैसे उत्तर देंगे?
◻ यहोवा एक पिता, शिक्षक, और पति कैसे बना?
◻ “वंश” के बारे में यहोवा क्या सिखाता है?
◻ परमेश्वर की किस अति-महत्त्वपूर्ण शिक्षा का हमें पालन करना चाहिए?
◻ यहोवा कैसे सिखाता है?
[पेज 10 पर तसवीरें]
याईर की पुत्री के पुनरुत्थान ने पुनरुत्थान के बारे में यीशु की प्रतिज्ञा पर विश्वास करने का आधार प्रदान किया