यहोवा का भय मानने में हर्षित होना सीखना
“हे लड़को, आओ, मेरी सुनो, मैं तुम को यहोवा का भय मानना सिखाऊंगा।” —भजन ३४: ११.
१. परमेश्वर के राज्य द्वारा भय को कैसे निकाला जाएगा, लेकिन क्या इसका अर्थ है कि सब प्रकार के भय को निकाला जाएगा?
हर जगह लोग भय से स्वतंत्रता के लिए तरसते हैं—अपराध और हिंसा का भय, बेरोज़गारी का भय, गम्भीर बीमारी का भय। वह क्या ही शानदार दिन होगा जब परमेश्वर के राज्य के अधीन ऐसी स्वतंत्रता वास्तविकता बन जाएगी! (यशायाह ३३:२४; ६५:२१-२३; मीका ४:४) फिर भी, तब सभी प्रकार के भय को नहीं निकाला जाएगा, ना ही हमें अब अपने जीवन से सब प्रकार के भय को निकालने की कोशिश करनी चाहिए। एक ऐसा भय है जो अच्छा है और एक ऐसा भय है जो बुरा है।
२. (क) किस प्रकार का भय बुरा है, और किस प्रकार का भय चाहने योग्य है? (ख) ईश्वरीय भय क्या है, और उद्धृत किए गए शास्त्रवचन इस बात को कैसे सूचित करते हैं?
२ भय एक मानसिक ज़हर हो सकता है, जो एक व्यक्ति के तर्क करने की क्षमता में बाधा डाल सकता है। यह साहस को धीरे-धीरे दुर्बल कर सकता है और आशा ख़त्म कर सकता है। ऐसे भय का अनुभव उस व्यक्ति को हो सकता है जिसे किसी दुश्मन से शारीरिक रूप से ख़तरा है। (यिर्मयाह ५१:३०) इस भय का अनुभव उस व्यक्ति को हो सकता है जो कुछेक प्रभावी मनुष्यों की स्वीकृति पाने को बहुत ज़्यादा महत्त्व देता है। (नीतिवचन २९:२५) लेकिन ऐसा भय भी है जो हितकर है, ऐसा भय जो हमें कुछ अंधाधुंध कार्य करने से या ख़ुद को हानि पहुँचाने से रोकता है। ईश्वरीय भय में इससे भी ज़्यादा सम्मिलित है। यह यहोवा के प्रति विस्मय, उसे अप्रसन्न करने के हितकर डर सहित उसके लिए गहरी श्रद्धा है। (भजन ८९:७) परमेश्वर को अप्रसन्न करने का यह भय उसकी करुणा और भलाई के लिए क़दरदानी से उत्पन्न होता है। (भजन ५:७; होशे ३:५) इसमें इस बात का बोध भी सम्मिलित है कि यहोवा सर्वोच्च न्यायी और सर्वशक्तिमान है, जिसके पास उसकी आज्ञा मानने से इनकार करनेवालों को दण्ड देने, यहाँ तक कि मार डालने की भी शक्ति है।—रोमियों १४:१०-१२.
३. यहोवा का भय विधर्मी देवताओं से जुड़े हुए भय से कैसे भिन्न है?
३ ईश्वरीय भय हितकर होता है, हानिकर नहीं। यह एक व्यक्ति को प्रेरित करता है कि सही बात के लिए दृढ़ रहे और ग़लत कार्य करने के द्वारा समझौता न करे। यह उस भय की तरह नहीं है जो प्राचीन यूनानी देवता फोबोस से जुड़ा हुआ है, जिसका वर्णन आतंक पैदा करनेवाले डरावने देवता के तौर पर किया गया है। और ना ही यह उस भय की तरह है जो हिन्दू देवी काली से जुड़ा हुआ है, जिसे कभी-कभी खून की प्यासी चित्रित किया जाता है, जो आभूषण के तौर पर लाशें, साँप, और खोपड़ियाँ पहनती है। ईश्वरीय भय आकर्षित करता है; दूर नहीं करता। यह प्रेम और क़दरदानी से जुड़ा हुआ है। अतः, ईश्वरीय भय हमें यहोवा के क़रीब लाता है।—व्यवस्थाविवरण १०:१२, १३; भजन २:११.
यह क्यों कुछ लोगों में है और दूसरों में नहीं
४. प्रेरित पौलुस के वर्णन अनुसार, मनुष्यजाति किस स्थिति तक आ पहुँची है और इसका कारण क्या है?
४ पूरी मनुष्यजाति ईश्वरीय भय के गुण से प्रेरित नहीं है। रोमियों ३: ९-१८ में, प्रेरित पौलुस वर्णन करता है कि आरंभिक परिपूर्णता से मनुष्य कितना गिर चुका है। यह कहने के बाद कि सभी जन पाप के अधीन हैं, पौलुस भजन संहिता से उद्धृत करता है और कहता है: “कोई धर्मी नहीं, एक भी नहीं।” (भजन १४:१ देखिए।) इसके बाद वह विवरण के तौर पर ऐसी बातों का ज़िक्र करता है जैसे परमेश्वर की खोज करने में मनुष्यजाति की लापरवाही, उनमें भलाई की कमी, उनकी छल-भरी बोली, श्राप और रक्तपात। यह आज के संसार का वर्णन कितनी सही तरह करता है! अधिकांश लोगों को परमेश्वर और उसके उद्देश्यों में कोई दिलचस्पी नहीं है। अकसर, भलाई के दिखावे को उन अवसरों के लिए रखा जाता है जब उससे कुछ लाभ प्राप्त करना होता है। झूठ बोलना और गंदी भाषा सामान्य बात है। रक्तपात को समाचारों में ही नहीं बल्कि मनोरंजन में भी प्रस्तुत किया जाता है। ऐसी स्थिति का कारण क्या है? यह सच है कि हम सभी पापी आदम के वंशज हैं, लेकिन प्रेरित पौलुस द्वारा वर्णित बातों को जब लोग अपनी जीवन-शैली के तौर पर अपनाते हैं, तो इसमें उससे भी कुछ ज़्यादा अंतर्ग्रस्त है। वह क्या है इसकी व्याख्या आयत १८ यह कहते हुए करती है: “उन की आंखों के साम्हने परमेश्वर का भय नहीं।” —भजन ३६:१ देखिए।
५. कुछ लोगों में ईश्वरीय भय क्यों है, और दूसरों में क्यों नहीं है?
५ लेकिन, ऐसा क्यों है कि कुछ लोगों में ईश्वरीय भय है जबकि दूसरों में नहीं? सरल शब्दों में कहा जाए तो, यह इसलिए है कि कुछ लोग इसे विकसित करते हैं, जबकि दूसरे ऐसा नहीं करते। हम में से कोई भी व्यक्ति ईश्वरीय भय के साथ नहीं जन्मा, लेकिन हम सब के पास इसकी क्षमता है। ईश्वरीय भय एक ऐसी बात है जो हमें सीखनी है। तो फिर, हमारे जीवन में एक शक्तिशाली प्रेरक शक्ति बनने के लिए हमें इसे विकसित करने की ज़रूरत है।
एक आकर्षक आमंत्रण
६. कौन हमें भजन ३४:११ में अभिलिखित आमंत्रण देता है, और यह पाठ कैसे दिखाता है कि ईश्वरीय भय को सीखने की ज़रूरत है?
६ भजन ३४ में यहोवा का भय मानना सीखने के लिए हमें एक आकर्षक आमंत्रण दिया गया है। यह दाऊद का भजन है। और दाऊद ने किसका पूर्वसंकेत दिया? उसने प्रभु यीशु मसीह का पूर्वसंकेत दिया। एक भविष्यवाणी जो प्रेरित यूहन्ना ने विशिष्ट रूप से यीशु को लागू की, इस भजन की आयत २० में अभिलिखित है। (यूहन्ना १९:३६) हमारे दिनों में, यीशु वह व्यक्ति है जो आयत ११ का आमंत्रण देता है: “हे लड़को, आओ, मेरी सुनो, मैं तुम को यहोवा का भय मानना सिखाऊंगा।” यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि ईश्वरीय भय एक ऐसी बात है जिसे सीखा जा सकता है, और यीशु मसीह हमें सिखाने के लिए उत्कृष्ट रूप से योग्य है। ऐसा क्यों है?
७. यीशु विशेषकर वह व्यक्ति क्यों है जिससे ईश्वरीय भय सीखा जाना चाहिए?
७ यीशु मसीह ईश्वरीय भय का महत्त्व जानता है। उसके विषय में इब्रानियों ५:७ कहता है: “उस ने अपनी देह में रहने के दिनों में ऊंचे शब्द से पुकार पुकारकर, और आंसू बहा बहाकर उस से जो उस को मृत्यु से बचा सकता था, प्रार्थनाएं और बिनती की और भक्ति [उसके ईश्वरीय भय, NW] के कारण उस की सुनी गई।” ऐसा ईश्वरीय भय वह गुण था जिसे यीशु मसीह ने यातना स्तंभ पर मृत्यु का सामना करने से पहले भी प्रकट किया था। याद कीजिए, नीतिवचन अध्याय ८ में, परमेश्वर के पुत्र का वर्णन बुद्धि के मूर्त्त रूप में किया गया है। और नीतिवचन ९:१० में हमें बताया गया है: “यहोवा का भय मानना बुद्धि का आरम्भ है।” सो यह ईश्वरीय भय, पृथ्वी पर आने से काफ़ी समय पहले परमेश्वर के पुत्र के व्यक्तित्व का मुख्य भाग था।
८. यशायाह ११:२, ३ में हम यहोवा के भय के बारे में क्या सीखते हैं?
८ इसके अतिरिक्त, मसीहाई राजा के तौर पर यीशु के विषय में यशायाह ११: २, ३ (NHT) कहता है: “यहोवा का आत्मा, बुद्धि और समझ का आत्मा, युक्ति और पराक्रम का आत्मा वरन् ज्ञान और यहोवा के भय का आत्मा उस पर छाया रहेगा। और वह यहोवा का भय मानने में हर्षित होगा।” यह कितने सुन्दर ढंग से कहा गया है! यहोवा का भय अप्रिय नहीं है। यह लाभदायक और रचनात्मक है। यह एक ऐसा गुण है जो उस समस्त क्षेत्र में व्याप्त होगा जिस पर राजा के तौर पर मसीह शासन करता है। वह अभी शासन कर रहा है, और उसकी प्रजा के तौर पर जो एकत्रित हो रहे हैं, उन्हें वह यहोवा के भय का उपदेश दे रहा है। कैसे?
९. यीशु मसीह हमें यहोवा का भय कैसे सिखा रहा है, और इस भय के बारे में वह क्या चाहता है कि हम सीखें?
९ हमारी कलीसिया सभाओं, सम्मेलनों और अधिवेशनों के द्वारा यीशु, कलीसिया के नियुक्त सिर और मसीहाई राजा के तौर पर, हमें स्पष्ट रूप से यह समझने के लिए मदद कर रहा है कि ईश्वरीय भय क्या है और यह इतना लाभकारी क्यों है। इस प्रकार वह इसके लिए हमारे मूल्यांकन को बढ़ाने की कोशिश करता है ताकि हम उसकी तरह यहोवा का भय मानने में हर्षित होना सीखें।
क्या आप प्रयास करेंगे?
१०. मसीही सभाओं में उपस्थित होते वक़्त, यदि हमें यहोवा का भय समझना है तो हमें क्या करना चाहिए?
१० निश्चय ही, हमारा सिर्फ़ बाइबल पढ़ना या राज्यगृह में सभाओं में उपस्थित होना इस बात की गारंटी नहीं देगा कि हम में ईश्वरीय भय होगा। यदि हमें सचमुच यहोवा का भय समझना है तो ध्यान दीजिए कि हमें क्या करने की ज़रूरत है। नीतिवचन २:१-५ कहता है: “हे मेरे पुत्र, यदि तू मेरे वचन ग्रहण करे, और मेरी आज्ञाओं को अपने हृदय में रख छोड़े, और बुद्धि की बात ध्यान से सुने, और समझ की बात मन लगाकर सोचे; और प्रवीणता और समझ के लिये अति यत्न से पुकारे, और उसको चान्दी की नाईं ढूंढ़े, और गुप्त धन के समान उसकी खोज में लगा रहे; तो तू यहोवा के भय को समझेगा, और परमेश्वर का ज्ञान तुझे प्राप्त होगा।” इसलिए सभाओं में उपस्थित होते वक़्त, हमें कही गयी बातों पर ध्यान देने की, मुख्य विचारों पर एकाग्रता रखने की और उन्हें याद रखने के लिए गम्भीर प्रयत्न करने की ज़रूरत है। साथ ही इस बात पर गहराई से सोचने की ज़रूरत है कि यहोवा के बारे में हम जैसा महसूस करते हैं उसका असर, दी गयी सलाह के प्रति हमारी मनोवृत्ति पर किस तरीक़े से पड़ना चाहिए—जी हाँ, अपना हृदय खोलने की ज़रूरत है। तब हम यहोवा का भय समझेंगे।
११. ईश्वरीय भय विकसित करने के लिए, हमें गंभीरतापूर्वक और बारंबार क्या करना चाहिए?
११ भजन ८६:११ एक और महत्त्वपूर्ण तत्त्व की ओर ध्यान आकर्षित करता है, वह है प्रार्थना। भजनहार ने प्रार्थना की, “हे यहोवा अपना मार्ग मुझे दिखा, तब मैं तेरे सत्य मार्ग पर चलूंगा, मुझ को एक चित्त कर कि मैं तेरे नाम का भय मानूं।” यहोवा ने उस प्रार्थना को स्वीकार किया, क्योंकि उसने इसे बाइबल में अभिलिखित करवाया। ईश्वरीय भय विकसित करने के लिए, हमें भी उसकी मदद के लिए यहोवा से प्रार्थना करने की ज़रूरत है, और गंभीरतापूर्वक तथा बारंबार प्रार्थना करने से हमें लाभ प्राप्त होगा। —लूका १८: १-८.
आपका हृदय अंतर्ग्रस्त है
१२. हृदय को विशेष ध्यान क्यों दिया जाना चाहिए, और उसमें क्या सम्मिलित है?
१२ भजन ८६:११ में कुछ और बात है जिस पर हमें ध्यान देना चाहिए। भजनहार परमेश्वर के भय की सिर्फ़ दिमाग़ी समझ नहीं माँग रहा था। वह अपने हृदय का उल्लेख करता है। ईश्वरीय भय विकसित करने में लाक्षणिक हृदय अंतर्ग्रस्त है, जो विशेष ध्यान की माँग करता है क्योंकि यह वह आंतरिक व्यक्ति है जो हमारे जीवन की सभी गतिविधियों में प्रकट होता है और इसमें हमारे विचार, हमारी मनोवृत्तियाँ, हमारी इच्छाएँ, हमारी प्रेरणा, हमारे लक्ष्य सम्मिलित हैं।
१३. (क) क्या बात सूचित कर सकती है कि एक व्यक्ति का हृदय विभाजित है? (ख) जैसे-जैसे हम ईश्वरीय भय विकसित करते हैं, तो किस लक्ष्य को पाने के लिए हमें कार्य करना चाहिए?
१३ बाइबल हमें चेतावनी देती है कि एक व्यक्ति का हृदय विभाजित हो सकता है। यह धोखा देनेवाला हो सकता है। (भजन १२:२; यिर्मयाह १७: ९) यह शायद हमें हितकर गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रेरित करे जैसे कि कलीसिया सभाओं में और क्षेत्र सेवकाई में जाना, लेकिन यह संसार की जीवन-शैली के कुछ पहलुओं से भी प्रेम कर सकता है। यह हमें राज्य हितों को सचमुच पूरे मन से बढ़ावा देने से रोक सकता है। इसके बाद यह धोखा देनेवाला हृदय शायद हमें यह विश्वास दिलाने की कोशिश करे कि आख़िरकार हम दूसरे अनेक लोगों जितना ही कर रहे हैं। या शायद स्कूल अथवा कार्यस्थल में, हृदय मनुष्य के भय से प्रभावित हो सकता है। इसके परिणामस्वरूप, इन परिस्थितियों में हम शायद यहोवा के गवाहों के तौर पर अपनी पहचान करवाने से हिचकिचाएँ और शायद ऐसे कार्य भी करें जो मसीहियों के लिए उचित नहीं हैं। लेकिन बाद में, हमारा अंतःकरण हमें सताता है। हम इस प्रकार के व्यक्ति नहीं बनना चाहते। इसलिए, हम भजनहार के साथ यहोवा से प्रार्थना करते हैं: “मुझ को एक चित्त कर कि मैं तेरे नाम का भय मानूं।” हम चाहते हैं कि यह पूरा आंतरिक व्यक्ति, जो जीवन की हमारी सभी गतिविधियों में प्रकट होता है, यह प्रमाण दे कि हम ‘परमेश्वर का भय मानते और उसकी आज्ञाओं का पालन करते हैं।’ —सभोपदेशक १२: १३.
१४, १५. (क) बाबुल की दासता से छुड़ाकर इस्राएल की पुनःस्थापना को पूर्वबताते वक़्त, यहोवा ने अपने लोगों को क्या देने की प्रतिज्ञा की? (ख) अपने लोगों के हृदय में परमेश्वर का भय बिठाने के उद्देश्य से यहोवा ने क्या किया? (ग) इस्राएल परमेश्वर के मार्गों से अलग क्यों हो गया?
१४ यहोवा ने प्रतिज्ञा की कि वह अपने लोगों को ऐसा परमेश्वर का भय माननेवाला हृदय देगा। उसने इस्राएल की पुनःस्थापना को पूर्वबताया और कहा, जैसे कि हम यिर्मयाह ३२: ३७-३९ में पढ़ते हैं: “मैं उनको . . . लौटा ले आकर इसी नगर में इकट्ठे करूंगा, और निडर करके बसा दूंगा। और वे मेरी प्रजा ठहरेंगे, और मैं उनका परमेश्वर ठहरूंगा। मैं उनको एक ही मन और एक ही चाल कर दूंगा कि वे सदा मेरा भय मानते रहें, जिस से उनका और उनके बाद उनके वंश का भी भला हो।” आयत ४० में, परमेश्वर की प्रतिज्ञा को दृढ़ किया गया है: “अपना भय मैं उनके मन से ऐसा उपजाऊंगा कि वे कभी मुझ से अलग होना न चाहेंगे।” सामान्य युग पूर्व ५३७ में, जैसे यहोवा ने प्रतिज्ञा की थी वह उन्हें वापस यरूशलेम ले आया। लेकिन उस प्रतिज्ञा के बाक़ी के भाग के बारे में क्या—कि वह ‘उनको एक ही मन कर देगा कि वे सदा उसका भय मानते रहें’? यहोवा द्वारा बाबुल से वापस लाए जाने के बाद प्राचीन इस्राएल जाति उससे अलग क्यों हो गयी जिसके परिणामस्वरूप सा.यु. ७० में उनका मंदिर नाश किया गया और फिर कभी उसका पुनःनिर्माण नहीं हुआ?
१५ यह यहोवा की ओर से किसी विफलता के कारण नहीं हुआ। अपने लोगों के हृदय में परमेश्वर का भय डालने के लिए यहोवा ने वाक़ई क़दम उठाए थे। उसने उन्हें बाबुल से छुड़ाने और उनके स्वदेश में पुनःस्थापित करने के द्वारा उन्हें दया दिखायी। इन सब कार्यों के द्वारा उसने अपने लोगों को उसके प्रति गहरी श्रद्धा रखने के लिए पर्याप्त कारण दिए। इन सब को परमेश्वर ने हाग्गै, जकर्याह, और मलाकी भविष्यवक्ताओं के ज़रिये; एज्रा के ज़रिये, जो शिक्षक के तौर पर उनके पास भेजा गया; हाकिम नहेमायाह के ज़रिये; और ख़ुद परमेश्वर के पुत्र के ज़रिये उन्हें अनुस्मारकों, सलाहों और ताड़नाओं के द्वारा सुदृढ़ किया। कभी-कभार लोगों ने सुना और पालन किया। उन्होंने ऐसा तब किया जब हाग्गै और जकर्याह के आग्रह करने पर उन्होंने यहोवा के मंदिर का पुनःनिर्माण किया और जब एज्रा के दिनों में अपनी अन्यजाति की पत्नियों को वापस भेज दिया। (एज्रा ५: १, २; १०: १-४) लेकिन ज़्यादातर उन्होंने आज्ञा नहीं मानी। वे निरन्तर रूप से ध्यान नहीं दे रहे थे; वे सलाह के प्रति ग्रहणशील नहीं रहे; उन्होंने अपने हृदयों को खुला नहीं रखा। इस्राएली लोग ईश्वरीय भय विकसित नहीं कर रहे थे, और इसके परिणामस्वरूप, यह उनके जीवन में एक शक्तिशाली प्रेरक शक्ति नहीं था। —मलाकी १:६; मत्ती १५: ७, ८.
१६. यहोवा ने किसके हृदय में ईश्वरीय भय बिठाया है?
१६ फिर भी, अपने लोगों के हृदय में ईश्वरीय भय डालने की यहोवा की प्रतिज्ञा विफल नहीं रही। उसने आत्मिक इस्राएल के साथ एक नयी वाचा बाँधी, ये वे मसीही हैं जिनको उसने स्वर्गीय आशा प्रस्तुत की। (यिर्मयाह ३१:३३; गलतियों ६:१६) वर्ष १९१९ में, परमेश्वर ने उन्हें बड़े बाबुल, झूठे धर्म के विश्व साम्राज्य के दासत्व से छुड़ाकर पुनःस्थापित किया। उनके हृदय में उसने अपना भय दृढ़तापूर्वक बिठाया है। इससे उनको और “बड़ी भीड़” को प्रचुर लाभ प्राप्त हुए हैं, जिन्हें राज्य की पार्थिव प्रजा के तौर पर जीवन की आशा है। (यिर्मयाह ३२:३९; प्रकाशितवाक्य ७: ९) यहोवा का भय उनके हृदयों में भी उत्पन्न हुआ है।
ईश्वरीय भय हमारे हृदय में कैसे बैठता है
१७. यहोवा ने हमारे हृदय में ईश्वरीय भय कैसे डाला है?
१७ यहोवा ने यह ईश्वरीय भय हमारे हृदय में कैसे बिठाया है? उसकी आत्मा के कार्य से। और हमारे पास क्या है जो पवित्र आत्मा की रचना है? बाइबल, परमेश्वर का उत्प्रेरित वचन। (२ तीमुथियुस ३: १६, १७) अतीत में उसके द्वारा किए गए कार्यों से, अपने भविष्यसूचक वचन की पूर्ति में अब अपने सेवकों के साथ उसके व्यवहार से, और आनेवाली घटनाओं की भविष्यवाणियों से, यहोवा हम सब के लिए ईश्वरीय भय विकसित करने का ठोस आधार प्रदान करता है। —यहोशू २४: २-१५; इब्रानियों १०: ३०, ३१.
१८, १९. अधिवेशन, सम्मेलन और कलीसिया सभाएँ हमें ईश्वरीय भय प्राप्त करने में कैसे मदद करते हैं?
१८ व्यवस्थाविवरण ४:१० में जैसे रिपोर्ट किया गया है, यह उल्लेखनीय बात है कि यहोवा ने मूसा से कहा: “उन लोगों को मेरे पास इकट्ठा कर कि मैं उन्हें अपने वचन सुनाऊं, जिस से वे सीखें, ताकि जितने दिन वे पृथ्वी पर जीवित रहें उतने दिन मेरा भय मानते रहें, और अपने लड़के बालों को भी यही सिखाएं।” समान रूप से आज, अपने लोगों को उसका भय मानना सीखने में मदद देने के लिए यहोवा ने प्रचुर प्रबंध किए हैं। अधिवेशनों, सम्मेलनों और कलीसिया सभाओं में, हम यहोवा की करुणा और उसकी भलाई के प्रमाण का स्मरण करते हैं। वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा किताब का अध्ययन करते समय हम यही कर रहे थे। उस अध्ययन ने आपको और यहोवा के प्रति आपकी मनोवृत्ति को किस तरह प्रभावित किया? जब आपने हमारे स्वर्गीय पिता के महान व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को उसके पुत्र में प्रति—बिम्बित होते देखा, तो क्या इस बात ने परमेश्वर को कभी भी अप्रसन्न न करने की आपकी इच्छा को दृढ़ नहीं किया? —कुलुस्सियों १: १५.
१९ अपनी सभाओं में हम बीते हुए समयों में यहोवा द्वारा अपने लोगों को छुटकारा दिलाने के वृत्तांतों का भी अध्ययन करते हैं। (२ शमूएल ७:२३) जैसे-जैसे हम प्रकाशितवाक्य—इसकी महान पराकाष्ठा निकट! (अंग्रेज़ी) किताब की सहायता से बाइबल की प्रकाशितवाक्य नामक किताब का अध्ययन करते हैं, हम उन भविष्यसूचक दर्शनों के बारे में सीखते हैं जिनकी पूर्ति इस २०वीं शताब्दी में पहले ही हो चुकी है साथ ही आगे होनेवाली भय-प्रेरक घटनाओं के बारे में भी सीखते हैं। परमेश्वर के ऐसे सब कामों के विषय में, भजन ६६:५ कहता है: “आओ परमेश्वर के कामों को देखो; वह अपने कार्यों के कारण मनुष्यों को भययोग्य देख पड़ता है।” जी हाँ, सही दृष्टिकोण से देखा जाए तो, परमेश्वर के ये काम हमारे हृदय में यहोवा का भय, अर्थात् गहरी श्रद्धा बिठाते हैं। इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि यहोवा परमेश्वर कैसे अपनी प्रतिज्ञा पूरी करता है: “अपना भय मैं उनके मन से ऐसा उपजाऊंगा कि वे कभी मुझ से अलग होना न चाहेंगे।” —यिर्मयाह ३२: ४०.
२०. ईश्वरीय भय को अपने हृदय में गहराई तक बिठाने के लिए, हमारी तरफ़ से क्या माँग की जाती है?
२० लेकिन, यह स्पष्ट है कि ईश्वरीय भय हमारी ओर से बिना प्रयत्न के हमारे हृदय में नहीं आता। परिणाम अपने आप नहीं आते। यहोवा अपना भाग अदा करता है। ईश्वरीय भय विकसित करने के द्वारा हमें अपना भाग अदा करना है। (व्यवस्थाविवरण ५:२९) शारीरिक इस्राएल ऐसा करने में विफल हुआ। लेकिन यहोवा पर भरोसे के साथ, आत्मिक इस्राएली और उनके साथी उन अनेक लाभों का अभी से अनुभव कर रहे हैं जो परमेश्वर के भय माननेवालों को मिलते हैं। कुछ लाभों की चर्चा हम अगले लेख में करेंगे।
आप कैसे उत्तर देंगे?
◻ ईश्वरीय भय क्या है?
◻ यहोवा के भय में हर्षित होने के लिए हमें कैसे सिखाया जा रहा है?
◻ ईश्वरीय भय होने के लिए, हमारी तरफ़ से किस प्रयास की माँग की जाती है?
◻ ईश्वरीय भय को प्राप्त करने में हमारे लाक्षणिक हृदय के सभी पहलू क्यों अंतर्ग्रस्त हैं?
[पेज 12, 13 पर तसवीरें]
यहोवा का भय समझने के लिए अध्यवसायी अध्ययन की ज़रूरत है