यहोवा का स्वर्गीय रथ गतिमान है
“मेरे सुनते हुए इन पहियों को चक्कर कहा गया, अर्थात् घूमनेवाले पहिये।” —यहेज़केल १०:१३.
१. यहोवा के पास सफ़र करने के लिए कैसा वाहन है?
आज के लम्बे और चमकदार जेट हवाई जहाज़ों के दिनों में, विश्व नेताओं के मन में यह ख़याल आएगा कि वे सफ़री सक्षमता के परम मिसाल का मज़ा ले रहे हैं। फिर भी, २,६०० साल पहले, यहोवा परमेश्वर ने प्रकट किया कि उनके पास सफ़र करने का एक अत्युत्तम वाहन है, एक ऐसा वाहन जिसके जोड़ की वस्तु किसी इंजीनियर ने अब तक नहीं देखी। यह एक विशाल, विस्मयकारी रथ है! क्या यह अजीब लगता है कि विश्व का सृष्टिकर्ता एक रथ-समान वाहन पर सवारी करता है? नहीं, इसलिए कि यहोवा का दिव्य वाहन मनुष्यों द्वारा कल्पित किसी भी वाहन से बहुत अधिक भिन्न है।
२. यहेज़केल अध्याय १ में यहोवा के दिव्य रथ को किस तरह चित्रित किया गया है, और भविष्यद्वक्ता हमारा ध्यान पहले किस की ओर आकर्षित करता है?
२ यहेज़केल की भविष्यद्वाणी के पहले अध्याय में, यहोवा एक अति-विशाल दिव्य रथ पर सवारी करते हुए चित्रित किए गए हैं। यह विस्मय-प्रेरक चार-पहियों वाला वाहन स्व-चालित है और आश्चर्यजनक काम कर सकता है। यहेज़केल ने सामान्य युग पूर्व के वर्ष ६१३ में इस स्वर्गीय वाहन को एक दर्शन में देखा, जब वह प्राचीन बाबेलोन की एक नहर के पास था। भविष्यद्वक्ता पहले यहोवा के दिव्य रथ के पास सेवा करनेवालों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करता है। जैसे-जैसे हम पढ़ेंगे, आइए हम यह सजीव कल्पना करने की कोशिश करें कि यहेज़केल ने क्या देखा।
चार जीवित प्राणी
३. चारों करूबों के चार मुखों से क्या सूचित होता है?
३ यहेज़केल बताता है: “जब मैं देखने लगा, तो क्या देखता हूँ कि उत्तर दिशा से बड़ी घटा, और लहराती हुई आग सहित बड़ी आंधी आ रही है; और घटा के चारों ओर प्रकाश . . . दिखाई देता है। फिर उसके बीच से चार जीवधारियों के समान कुछ निकले।” (यहेज़केल १:४, ५) इन चारों जीवधारियों, या करूबों के चार-चार पंख और चार-चार मुख थे। उन्हें सिंह का मुख था, जो यहोवा के न्याय को सूचित करता है; एक बैल का मुख था, जो परमेश्वर की सामर्थ्य का द्योतक है; और एक उकाब का मुख था, जो उसकी बुद्धि का सूचक है। उनको एक मनुष्य का भी मुख था, जो यहोवा के प्रेम को निर्दिष्ट करता है।—व्यवस्थाविवरण ३२:४; अय्यूब १२:१३; यशायाह ४०:२६; यहेज़केल १:१०; १ यूहन्ना ४:८.
४. करूबों के चार-चार मुख क्यों थे, और कूरबों की रफ़्तार कैसी थी?
४ प्रत्येक करूब का एक मुख चार दिशाओं में से एक दिशा की ओर अभिमुख था। इसलिए, करूब क्षण भर में दिशा बदल सकते थे और उस दिशा में जा सकते थे, जिस दिशा में वह मुख देख रहा था। पर उन करूबों की रफ़्तार कैसी थी? अजी, वे तो बिजली की रफ़्तार से आगे बढ़ सकते थे! (यहेज़केल १:१४) किसी भी मानव-निर्मित वाहन की रफ़्तार कभी ऐसी नहीं रही है।
५. यहेज़केल ने रथ के पहियों और उनके घेरों का वर्णन किस प्रकार किया?
५ अचानक, रथ के पहिये दिखायी देते हैं। वे कितने असाधारण हैं! १६वें और १८वें आयतों में कहा गया है: “उनका रूप और बनावट ऐसी थी जैसे एक पहिये के बीच दूसरा पहिया हो। और उन चारों पहियों के घेरे बहुत बड़े और डरावने थे, और उनके घेरों में चारों ओर आँखें ही आँखें भरी हुई थीं।” हर करूब के पास एक पहिया होने के परिणामस्वरूप चार सम्बन्धित जगहों पर चार पहिये होते। वे पहिये क्रिसोलाइट के जैसे उद्दीप्त थे, जो कि एक पारदर्शक या पारभासी पीला या हरा पत्थर है। इससे इस शानदार दर्शन में प्रकाश और खुबसूरती आ जाती है। चूँकि पहियों “के घेरों में चारों ओर आँखे ही आँखे हैं,” वे अन्धाधुन्ध होकर बस किसी भी दिशा में नहीं जा रहे हैं। और ये पहिये बहुत ही ज़्यादा ऊँचे हैं, और इस प्रकार वे अपने ही अक्ष पर लगाए एक ही चक्कर में बहुत बड़ा फ़ासला तै कर सकते हैं। वे भी, करूबों के जैसे बिजली-समान तेज़ी से आगे बढ़ सकते हैं।
पहियों के बीच पहिए
६. (अ) यह किस तरह था कि उस रथ के पहियों के भीतर पहिये थे? (ब) पहियों ने अपनी चाल किस के अनुरूप किया?
६ एक और बात असाधारण थी। हर पहिये के अन्दर दूसरा पहिया था—ऐसा पहिया जिसका व्यास निचले पहिए में आड़े-तिरछे ठीक बैठता था। इसी रीति से कहा जा सकता था कि पहिये “अपनी चारों अलंगों की ओर चल सकते थे।” (आयत १७) तत्काल, पहिये दिशा बदल सकते थे, इसलिए कि पहिये का एक पक्ष प्रत्येक दिशा की ओर अभिमुख था। पहियों ने अपनी चाल की दिशा चार करूबों की चाल के अनुरूप किया। चार पहियों पर, परमेश्वर के रथ का मुख्य भाग अदृश्य टेकों के द्वारा चल सकता है। यह एक शक्तिशाली जल-यान के समान है जो हवा की एक गद्दी से टेक पाते हुए पानी के ऊपर से निकल जाता है।
७. पहियों की शक्ति का स्रोत क्या था?
७ पहियों को चारों करूबों की गतिविधियों के अनुरूप होने के लिए यह शक्ति कहाँ से मिली? सर्वशक्तिमान परमेश्वर की पवित्र आत्मा से। २०वें आयत में कहा गया है: “जिधर आत्मा जाना चाहती थी, उधर ही वे जाते, . . . क्योंकि उन [जीवधारियों] की आत्मा पहियों में थी।” परमेश्वर की अदृश्य सक्रिय शक्ति जो उन करूबों में थी, वही शक्ति उन पहियों में भी थी।
८. पहियों को कौनसा नाम दिया गया था, और क्यों?
८ पहियों का ज़िक्र “घूमनेवाले पहिये,” इन शब्दों से किया जाता है। (यहेज़केल १०:१३) प्रत्यक्षतः यह प्रत्येक पहिये के कार्य की वजह से दिया गया था। यह आगे बढ़ता है या तेज़ी से घूमता है। दिव्य रथ के इस भाग का ज़िक्र इस तरह करने से उस गति की ओर ध्यानाकर्षित किया जाता है, जिस से यह दिव्य रथ आगे बढ़ता है। हालाँकि इसके पहिये इतनी तेज़ी से घूमते थे, वे हमेशा अपना रास्ता देख सकते थे क्योंकि उनके घेरों में चारों ओर आँखें ही आँखें भरी हुई थीं।
९. यहेज़केल ने रथ के तेज़-गतिवाले पहियों के ऊपर जो था, उसका वर्णन किस प्रकार किया?
९ पर अब आइए हम देखेंगे कि उन भयंकर ऊँचे और तेज़-गतिवाले चार पहियों के ऊपर क्या है। यहेज़केल अध्याय १ के २२वें आयत में कहा गया है: “जीवधारियों के सिरों के ऊपर आकाशमण्डल सा कुछ था जो बर्फ़ की नाईं भयानक रीति से चमकता था, और वह उनके सिरों के ऊपर फैला हुआ था।” वह आकाशमण्डल, हालाँकि ठोस था, फिर भी पारभासी था, ‘जिसमें विस्मयकारी बर्फ़ की सी चमक थी।’ (न्यू.व.) यह हज़ारों हीरों के जैसे चमक रहा था जब सूर्य की किरनें उन्हें छू जाती हैं। सचमुच ही विस्मयकारी!
रथ का शानदार सवार
१०. (अ) सिंहासन और उस पर बैठे व्यक्ति का वर्णन किस तरह किया गया है? (ब) इस तथ्य से क्या सूचित होता है कि रथ के सवार की चारों ओर महिमा ही महिमा है?
१० प्रत्यक्ष रूप से, रथ रुक जाता है ताकि सवार यहेज़केल से बात कर सके। उस आकाशमण्डल के ऊपर, सिंहासन के सादृश्य का कुछ है, जो नीलम, या गहरे नीले रंग का है। उस सिंहासन पर ऐसा कोई व्यक्ति बैठा हुआ है जिसकी आकृति मनुष्य के समान है। इस मानवीय आकृति से यहेज़केल को सबसे बेहतर रीति से इस ईश्वरीय प्रकटन को समझने में मदद होगी। लेकिन वह मानवीय रूप महिमा से ढका हुआ है, जिस के कारण इस में इलेक्ट्रम जैसी दीप्ति है, जो कि सोने और चाँदी का एक चमकीला मिश्रधातु है। क्या ही कपायमान सुन्दरता! इस मनुष्य-समान रूप की कमर से, यह ललित महिमा दोनों ऊपर की ओर और नीचे की ओर फैलती है। इस प्रकार पूरी आकृति की चारों ओर महिमा ही महिमा है। इस से सूचित होता है कि यहोवा वर्णनातीत रूप से महिमायुक्त हैं। इसके अलावा, रथ के सवार के साथ-साथ एक सुन्दर इन्द्रधनुष जाता है। इन्द्रधनुष से आंधी के बाद की शान्ति और सुकून व्यक्त होता है! ऐसा शान्तिमय रवैया होने से, यहोवा अपने बुद्धि, न्याय, सामर्थ्य और प्रेम के गुणों को परिपूर्ण रूप से सन्तुलन में रखता है।
११. यहोवा के रथ और सिंहासन के दर्शन से यहेज़केल किस तरह प्रभावित हुआ?
११ यहोवा के रथ और सिंहासन के इर्द-गिर्द प्रकाश और खुबसूरत रंग हैं। यह अन्धकार और तन्त्र-मन्त्र के राजकुमार, शैतान से कितना विषम है! और इन सारी बातों से यहेज़केल किस तरह प्रभावित हुआ? “और उसे देखकर, मैं मुँह के बल गिरा, तब मैं ने एक शब्द सुना जैसे कोई बातें करता है।”—यहेज़केल १:२८.
रथ से क्या चित्रित हुआ
१२. यहोवा के दिव्य रथ से क्या चित्रित होता है?
१२ इस अद्भुत रथ से क्या चित्रित होता है? यहोवा परमेश्वर का दिव्य, या स्वर्गीय संगठन। यह अदृश्य क्षेत्र में उनके सभी पवित्र आत्मिक प्राणियों से बनता है—साराप, करूब और स्वर्गदूत। चूँकि यहोवा परमप्रधान परमेश्वर हैं, उनके सभी आत्मिक प्राणी उनके अधीन हैं, और वह इस भावार्थ से सवारी करते हैं कि वह परोपकारी रूप से उन पर शासन करते हैं और अपने उद्देश्य के अनुसार उन्हें इस्तेमाल करते हैं।—भजन १०३:२०.
१३. (अ) ऐसा क्यों कहा जा सकता है कि यहोवा अपने संगठन पर सवारी करते हैं? (ब) यहोवा के चार-पहियों वाले रथ का दर्शन आप पर कैसा असर करता है?
१३ यहोवा इस संगठन पर इस तरह सवारी करते हैं मानो एक रथ पर सवारी करते हों, और जहाँ कहीं उनकी आत्मा उसे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है, वहाँ उसे बढ़ाते हैं। यह बेक़ाबू नहीं, और न ही बग़ैर नियंत्रण या बुद्धिमान निरीक्षण के है। परमेश्वर इस संगठन को बस किसी भी दिशा में, जहाँ यह जाना चाहे, जाने नहीं दे रहे हैं। उलटा, यह उनके निर्देशों का पालन करता है। मिलकर, सभी एक होकर, परमेश्वर की सम्पूर्ण लक्ष्यपूर्ति की ओर बढ़ रहे हैं। यहोवा के गतिमान्, चार-पहियोंवाले दिव्य रथ के इस दर्शन में क्या ही अद्भुत स्वर्गीय संगठन प्रकट होता है! इसके अनुरूप, यहोवा का संगठन वर्गाकार, या परिपूर्ण सन्तुलन में होने के तौर से चित्रित किया गया है।
एक पहरेदार के तौर से नियुक्त
१४. भविष्यद्वक्ता यहेज़केल से कौन चित्रित है?
१४ पर कौन भविष्यद्वक्ता यहेज़केल को चित्रित करता है? इतिहास के तथ्यों से, यह ज़ाहिर है कि यहोवा के आत्मा से अभिषिक्त गवाहों का वर्ग दिव्य रथ से सम्बद्ध है। इस प्रकार, यहेज़केल १९१९ से यहोवा के गवाहों के शेष अभिषिक्त जनों को भली-भाँति चित्रित करता है। आत्मिक रूप से, परमेश्वर के स्वर्गीय संगठन ने उस वर्ष में शेष अभिषिक्त लोगों में नए सिरे से प्राण डालने के लिए उन से सम्पर्क किया, ताकि पूरी दुनिया के सामने यहोवा के गवाह बनें। (प्रकाशितवाक्य ११:१-१२ से तुलना करें।) वह रथ-समान संगठन उस समय गतिमान था, जिस तरह वह आज भी है। दरअसल, उसके प्रगति के पहिये पहले से कहीं ज़्यादा तेज़ी से बढ़ रहे हैं। यहोवा तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं!
१५. दिव्य रथ के सवार की आवाज़ क्या कहती है, और यहेज़केल को कौनसा कार्य सौंपा जाता है?
१५ यहेज़केल जानना चाहता था कि दिव्य रथ उसके सामने आकर क्यों रुक गया था। जब रथ पर बैठे व्यक्ति से आनेवाली आवाज़ उसे सुनायी दी, तब उसे पता चला। इस विस्मय-प्रेरक भव्य दृश्य से हावी होकर, यहेज़केल ने साष्टांग प्रणाम किया। सुनिए, जैसे-जैसे दिव्य रथ के सवार की आवाज़ कहती है: “हे मनुष्य की सन्तान, अपने पाँवों के बल खड़ा हो, कि मैं तुझ से बातें करूँ।” (यहेज़केल २:१, न्यू.व.) इसके बाद यहोवा यहेज़केल को एक पहरेदार होने और इस्राएल की विद्रोही जाति को चेतावनी देने का कार्य सौंपते हैं। उसे ईश्वरीय नाम से बोलने का भी अधिकार दिया जाता है। यहेज़केल के नाम का मतलब है “परमेश्वर बल देते हैं।” तो यह इस प्रकार हुआ कि परमेश्वर ने यहेज़केल वर्ग का बल बढ़ाकर उन्हें ईसाईजगत के लिए एक पहरेदार के तौर से नियुक्त करके भेज दिया।
१६, १७. (अ) दिव्य रथ के दर्शन से यहेज़केल को क्या लाभ हुआ? (ब) हमारे समय में, दिव्य रथ के दर्शन के बारे में समझने से यहेज़केल वर्ग और बड़ी भीड़ पर कैसा असर हुआ है?
१६ यहेज़केल के लिए दिव्य रथ का यह दर्शन संजीदा करानेवाला और ग़ज़ब का था, लेकिन इस ने उसे एक पहरेदार के तौर से यरूशलेम के आनेवाले विनाश की चेतावनी सुनाने के लिए अपने नियतकार्य के लिए तैयार किया। यहोवा के गतिमान दिव्य रथ के दर्शन के बारे में समझने से शेष अभिषिक्त जन पर एक गहरा असर हुआ है। वर्ष १९३१ में उन्होंने यहेज़केल के दर्शन के बारे में ज़्यादा सीखा, जैसे विन्डिकेशन्, पुस्तक एक, में प्रकट किया गया था। तब से उन में इनती गंभीर क़दरदानी उत्पन्न हुई कि द वॉचटावर के अक्तूबर १५, १९३१, के अंक से लेकर, अगस्त १, १९५०, के अंक तक, उनके आवरण पृष्ठ के ऊपरी दाएँ कोने में, एक चित्रकार की कल्पनानुसार यहेज़केल के दर्शन का दिव्य रथ प्रकाशित होता रहा। इस प्रकार, यहेज़केल वर्ग ने उन्हें सौंपे गए कार्य पर अमल किया, और वे ईश्वरीय चेतावनी सुनाते हुए, एक पहरेदार के तौर से सेवा करते रहे हैं। अपने दिव्य रथ पर सिंहासन पर बैठे हुए यहोवा की ओर से ईसाईजगत पर आनेवाले ज्वलनशील नाश का समय पहले कभी इससे ज़्यादा निकट न था!
१७ आज, भेड़-समान लोगों की एक “बड़ी भीड़” शेष अभिषिक्त जन से मेल-जोल रख रही है। (प्रकाशितवाक्य ७:९) मिलकर, वे ईसाईजगत पर और इस सम्पूर्ण शैतानी रीति-व्यवस्था पर आनेवाले विनाश की चेतावनी सुना रहे हैं। वह चेतावनी देने का कार्य तेज़ी से चल रहा है, और जैसे प्रकाशितवाक्य १४:६, ७ से सूचित होता है, स्वर्गदूत इसका समर्थन कर रहे हैं।
दिव्य रथ के साथ-साथ बढ़ना
१८. स्वर्गदूतों का समर्थन सतत पाने के लिए क्या किया जाना चाहिए, और हमें किस के प्रति सुग्राही होना चाहिए?
१८ परमेश्वर के स्वर्गीय संगठन के एक हिस्से के तौर से आज्ञाकारी स्वर्गदूत सामंजस्य में बढ़ते हैं, और साथ ही यहोवा के पार्थिव सेवकों को ईश्वरीय न्यायदण्ड की चेतावनियाँ घोषित करने के लिए उनके नियतकार्य को पूरा करने में सहायता करते हैं। अगर हम इन शक्तिशाली स्वर्गदूतीय सेवकों की निरन्तर रक्षा और मार्गदर्शन चाहते हैं, तो हमें भी इन प्रतीकात्मक घूमनेवाले पहियों के सामंजस्य में और वही गति से बढ़ना होगा। इसके अलावा, यहोवा के दृश्य संगठन के एक हिस्सा होने के नाते, जो उनके दिव्य रथ के साथ-साथ आगे बढ़ रहा है, हमें परमेश्वर की आत्मा के मार्गदर्शन के प्रति सुग्राही होना चाहिए। (फिलिप्पियों २:१३ से तुलना करें।) अगर हम यहोवा के गवाह हैं, तो हमें उसी दिशा में बढ़ना चाहिए जिस दिशा में दिव्य रथ बढ़ रहा है। हमें निश्चय ही उसके उद्देश्यों के विरोध में कार्य करना नहीं चाहिए। जब हमें निर्देश दिया जाता है कि किसी दिशा में जाएँ, तब हमें उसी दिशा में जाना चाहिए। इस प्रकार, कलीसिया विभाजित नहीं होती।—१ कुरिन्थियों १:१०.
१९. (अ) जिस तरह दिव्य रथ के पहियों की चारों ओर आँखें हैं, यहोवा के लोगों को किस बात के विषय में सतर्क रहना चाहिए? (ब) इस विक्षुब्ध समय में हमारा आचरण कैसा होना चाहिए?
१९ परमेश्वर के रथ के पहियों की चारों ओर आँखें होने से सतर्कता सूचित होती है। जिस तरह स्वर्गीय संगठन सतर्क है, उसी तरह हमें भी यहोवा के पार्थिव संगठन का समर्थन करने के लिए सतर्क रहना चाहिए। कलीसियाई स्तर पर, हम स्थानीय प्राचीनों से सहयोग करने से वह समर्थन दिखा सकते हैं। (इब्रानियों १३:१७) और इस विक्षुब्ध समय में, यह ज़रूरी है कि मसीही यहोवा के संगठन के बहुत ही क़रीब रहें। हम घटनाओं के बारे में अपनी ही व्याख्या करना नहीं चाहते, इसलिए कि तब हम यहोवा के दिव्य रथ के साथ-साथ नहीं बढ़ रहे होंगे। हम हमेशा अपने आप से पूछें: ‘दिव्य रथ किस दिशा में बढ़ रहा है?’ और अगर हम परमेश्वर के दृश्य संगठन के साथ-साथ बढ़ेंगे, तो हम उनके अदृश्य संगठन के साथ-साथ भी बढ़ रहे होंगे।
२०. फिलिप्पियों ३:१३-१६ में प्रेरित पौलुस क्या बढ़िया सलाह देता है?
२० इस सम्बन्ध में, पौलुस ने लिखा: “हे भाइयों, मेरी भावना यह नहीं कि मैं पकड़ चुका हूँ: परन्तु केवल यह एक काम करता हूँ, कि जो बातें पीछे रह गई हैं उन को भूल कर, आगे की बातों की ओर बढ़ता हुआ, निशाने की ओर दौड़ा चला जाता हूँ, ताकि वह इनाम पाऊँ, जिस के लिए परमेश्वर ने मुझे मसीह यीशु में ऊपर बुलाया है। सो हम में से जितने सिद्ध हैं, यही विचार रखें, और यदि किसी बात में तुम्हारा और ही विचार हो तो परमेश्वर उसे भी तुम पर प्रगट कर देगा। सो जहाँ तक हम पहुँचे हैं, उसी के अनुसार [इसी नित्यचर्या के अनुसार, न्यू.व.] चलें।”—फिलिप्पियों ३:१३-१६.
२१. कौनसी नित्यचर्या के अनुसार चलने से हम परमेश्वर के संगठन के साथ आध्यात्मिक प्रगति कर सकेंगे?
२१ यहाँ “नित्यचर्या,” इस शब्द का अर्थ एक बुरी लीक नहीं, जिस में से हम खुद को निकाल नहीं सकते। यहोवा के सेवकों का एक उत्तम नित्यचर्या है, जिसके ज़रिए वे आध्यात्मिक प्रगति करते हैं। यह एक ऐसा नित्यचर्या है, जिस में वे व्यक्तिगत बाइबल अभ्यास करते, कलीसिया की सभाओं में उपस्थित होते, राज्य का सुसमाचार नियमित रूप से प्रचार करते, और परमेश्वर के स्वर्गीय संगठन के गुण प्रतिबिंबित करते हैं। ऐसी नित्यचर्या उन्हें यहोवा के दिव्य रथ-समान संगठन के मार्गदर्शन के अनुसार चलने देती है। इस तरह करते रहने से, हम अपने लक्ष्य को पाएँगे, चाहे यह स्वर्ग में अमर जीवन का इनाम हो या एक परादीस पृथ्वी पर अनन्त जीवन का इनाम।
२२. (अ) शेष अभिषिक्त लोगों और अन्य भेड़ों की बड़ी भीड़ को संयुक्त रूप से संगठित होने के लिए क्या किया जाना चाहिए? (ब) यहोवा की नज़र से क्या नहीं बचता?
२२ जैसे यूहन्ना १०:१६ से सूचित होता है, “अन्य भेड़ें” और यहेज़केल वर्ग संयुक्त रूप से संगठित होते। इस प्रकार, अगर यहोवा के संगठन में सभी लोग परमेश्वर के दिव्य रथ के सामंजस्य में आगे बढ़ना चाहते हैं, तो यह अत्यावश्यक है कि वे यहेज़केल अध्याय १ में लेखबद्ध किए गए दर्शन का पूरा मतलब और अभिप्राय समझ लें। उस दिव्य रथ का दर्शन हमें इस बात की क़दर करने की मदद करता है कि हमें परमेश्वर के दृश्य और अदृश्य संगठन के अनुरूप आगे बढ़ना चाहिए। यह भी ध्यान में रखिए, कि यहोवा की आँखें “सारी पृथ्वी पर इसलिए फिरती रहती हैं, कि जिनका मन उसकी ओर निष्कपट [सम्पूर्ण, न्यू.व.] रहता है, उनकी सहायता में वह अपना सामर्थ दिखाए।” (२ इतिहास १६:९) एक भी बात यहोवा की नज़र से नहीं बचती, ख़ास तौर ऐसी कोई बात जो विश्व के सम्राट् के तौर से खुद को सत्य प्रमाणित करने के लिए अपने उद्देश्य से सम्बद्ध है।
२३. चूँकि यहोवा का दिव्य रथ गतिमान है, हमें क्या करना चाहिए?
२३ यहोवा का दिव्य रथ आज निश्चय ही गतिमान है। जल्द ही सारी बातों की महिमा होगी, उस महिमा-युक्त व्यक्ति के अनुरूप जो उस रथ पर सवार है—और इन सब बातों से विश्व के सर्वश्रेष्ठ प्रभु के तौर से वह सत्य प्रमाणित किए जाएँगे। उनके साराप, करूब, और स्वर्गदूत हमारे बड़े विश्वव्यापी प्रचार कार्य में हमारा समर्थन कर रहे हैं। तो फिर आइए, हम यहोवा के स्वर्गीय संगठन के साथ-साथ आगे बढ़ें। लेकिन हम उस तेज़ गति से आगे बढ़नेवाले दिव्य रथ के साथ-साथ किस तरह चल सकते हैं? इसी पत्रिका के अगले अंक में इस बात पर विचार किया जाएगा।
आप किस तरह जवाब देंगे?
◻ यहेज़केल द्वारा देखे चार जीवधारियों से कौनसे गुण चित्रित होते हैं?
◻ यहोवा के दिव्य रथ से क्या चित्रित होता है?
◻ कौन परमेश्वर के भविष्यद्वक्ता यहेज़केल से चित्रित है?
◻ यहोवा के दिव्य रथ के दर्शन के बारे में समझने से यहेज़केल वर्ग और बड़ी भीड़ पर कैसा असर हुआ है?