शुद्ध भाषा द्वारा एक हो जाएँ
“और उस समय मैं देश-देश के लोगों से एक नई और शुद्ध भाषा बुलवाऊंगा, कि वे सब के सब यहोवा से प्रार्थना करें, और एक मन से कन्धे से कन्धा मिलाए हुए उसकी सेवा करें।”—सपन्याह ३:९.
१. क्या लोगों ने यहोवा परमेश्वर को कभी बोलते हुए सुना है?
यहोवा परमेश्वर की भाषा शुद्ध है। लेकिन क्या लोगों ने उन्हें कभी बोलते हुए सुना है? जी हाँ! यह तब हुआ था जब उनका पुत्र, यीशु मसीह १९ शताब्दियों पहले इस पृथ्वी पर आया था। उदाहरण के लिए, जब यीशु का बपतिस्मा हुआ, तो परमेश्वर की यह आवाज़ सुनी गई, “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिस से मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ।” (मत्ती ३:१३-१७) वह पूर्ण सच्चाई का एक कथन था, जिसे यीशु और यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने मानवीय भाषा में सुना था।
२. प्रेरित पौलुस द्वारा किए गए “स्वर्गदूतों की . . . बोलियों” के ज़िक्र से क्या सूचित होता है?
२ कुछ वर्षों बाद मसीही प्रेरित पौलुस ने “मनुष्यों और स्वर्गदूतों की बोलियों” के बारे में बताया। (१ कुरिन्थियों १३:१) यह क्या सूचित करता है? यह दिखाता है कि न सिर्फ़ मनुष्यों की लेकिन आत्मिक व्यक्तियों की भी भाषा और वाणी है! निःसन्देह, परमेश्वर और स्वर्गदूत एक दूसरे से उन स्वरों और भाषा में वार्तालाप नहीं करते जो हम सुन और समझ सकते हैं। क्यों नहीं? क्योंकि वाचिक ध्वनि तरंगों को प्रसारित करने के लिये, जो इंसान सुन और समझ सकें, एक ऐसे वातावरण की आवश्यकता है जैसे पृथ्वी की चारों ओर है।
३. मानवीय भाषा की उत्पत्ति कैसे हुई?
३ मानवीय भाषा की उत्पत्ति कैसे हुई? कुछों का कहना है कि हमारे पूर्वजों ने गुर्राने और कराहने का सहारा लेकर एक दूसरे से वार्तालाप करने के लिए संघर्ष किया। एवोल्यूशन (लाइफ नेचर लाइब्ररी) पुस्तक कहती है, “संभव है कि लगभग दस लाख वर्षों पहले के कपि-मानव ने . . . वाणी की कुछ आवाज़ों में दक्षता प्राप्त की थी।” लेकिन प्रसिद्ध कोशकार लुडविग कोहलर ने कहा, “मानवीय वाणी एक रहस्य है; यह ईश्वरीय उपहार है, एक चमत्कार।” जी हाँ, मानवीय भाषा एक ईश्वरीय वरदान है, क्योंकि परमेश्वर ने प्रथम मनुष्य, आदम को एक भाषा दी थी। यह प्रत्यक्षतः वही भाषा है जिसे बाद में इब्रानी कहा गया। वह भाषा “इब्री आब्राम” के इस्राएली वंशज द्वारा बोली जाती थी, जो एक वफ़ादार कुलपिता था, जिसका पुरखा शेम जहाज बनानेवाले नूह का पुत्र था। (उत्पत्ति ११:१०-२६; १४:१३; १७:३-६) शेम पर परमेश्वर की पूर्वकथित आशिष को ध्यान में रखते हुए, यह निष्कर्ष निकालना तर्कसंगत होगा कि यहोवा परमेश्वर ने ४३ शताब्दियों पूर्व चमत्कारी रूप से जो कुछ किया था उस से उसकी भाषा प्रभावित नहीं हुई थी।—उत्पत्ति ९:२६.
४. निम्रोद कौन था, और वह शैतान इब्लीस के द्वारा कैसे इस्तेमाल किया गया?
४ उस समय “सारी पृथ्वी पर एक ही भाषा और एक ही बोली थी।” (उत्पत्ति ११:१) उस समय निम्रोद नाम का एक व्यक्ति जीवित था, जो “यहोवा के विरोध में एक पराक्रमी शिकारी” ठहरा। (उत्पत्ति १०:८, ९) मनुष्यजाति के अदृश्य महाशत्रु, शैतान ने विशेष रूप से निम्रोद को इब्लीस के संगठन के पार्थिव भाग को स्थापित करने के लिए इस्तेमाल किया। निम्रोद अपना नाम कमाना चाहता था, और यह घमंडी अभिवृत्ति उसके अनुगामियों में फैल गई, जो शिनार देश में एक मैदान में विशेष निर्माण योजना में लग गए। उत्पत्ति अध्याय ११ के चौथे वचन के अनुसार, वे कहने लगे, “आओ, हम एक नगर और गुम्मट बना लें, जिसकी चोटी आकाश से बातें करे, इस प्रकार से हम अपना नाम करें ऐसा न हो कि हम को सारी पृथ्वी में फैलना पड़े।” परमेश्वर के ‘पृथ्वी को भरने’ के आदेश के विरुद्ध किये इस प्रयत्न का अन्त हो गया जब यहोवा ने विरोधियों की भाषा में गड़बड़ी डाल दी। बाइबल का वृतान्त कहता है, “इस प्रकार यहोवा ने उनको, वहाँ से सारी पृथ्वी के ऊपर फैला दिया, और उन्होंने उस नगर को बनाना छोड़ दिया।” (उत्पत्ति ९:१; ११:२-९) उस नगर को बाबुल, या बाबेलोन नाम दिया गया (अर्थात्, “गड़बड़ी”), “क्योंकि सारी पृथ्वी की बोली में यहोवा ने वहीं गड़बड़ी डाली थी।”—Byington.
५. (अ) जब परमेश्वर ने मनुष्यों की भाषा में गड़बड़ी डाली तब किस बात को रोका गया? (ब) नूह और शेम की भाषा के बारे में हम क्या निष्कर्ष निकाल सकते हैं?
५ वह चमत्कार—यानी, एक मानवीय भाषा में गड़बड़ी पैदा किए जाने के कारण, परमेश्वर द्वारा नूह को दी गई आज्ञानुसार पृथ्वी भर दी गई। और इस से ऐसे मनुष्यों के द्वारा उपासना जिन्होंने आकाश और पृथ्वी के सर्वश्रेष्ठ प्रभु के ख़िलाफ़ विद्रोह किया था, शैतान की संगठित अशुद्ध उपासना स्थापित करने के लिए उसकी भी योजना जो रही होगी, रोक दी गई। यह सच है कि किसी भी रूप में झूठी उपासना का अभ्यास करने के द्वारा, लोग इब्लीस का शिकार हुए थे, और जब उन्होंने देवी-देवताओं को बनाया और अपनी विभिन्न भाषाओं में उन्हें नाम देकर उनकी उपासना की, तब वे पिशाचों की उपासना कर रहे थे। (१ कुरिन्थियों १०:२०) परन्तु बाबुल में अद्वैत सच्चे परमेश्वर के कार्यवाही के द्वारा एक संगठित झूठे धर्म के निर्माण में, जिस से इब्लीस को वह उपासना मिलती जिसके लिए वह प्रत्यक्षतः बहुत तरसता था, रुकावट आ गयी। निश्चय, धर्मी नूह और उसका पुत्र शेम शिनार देश में हुए उस पराजय में बिलकुल शामिल नहीं हुए थे। इसलिये तर्कसंगत रूप से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उनकी भाषा वही रही जो आब्राम (या इब्राहीम) द्वारा बोली जाती थी—वही बोली जिस में परमेश्वर अदन की बाटिका में मनुष्य आदम से बात करते थे।
६. सा.यु. वर्ष ३३ के पिन्तेकुस्त के दिन, परमेश्वर ने कैसे दिखाया कि वे अन्य-अन्य भाषाएँ बोलने की योग्यता भी प्रदान कर सकते हैं?
६ यहोवा, जिन्होंने मनुष्यों की मूल भाषा में गड़बड़ी डाली, दूसरी बोलियाँ बोलने की क्षमता भी प्रदान कर सकते हैं। अजी, उन्होंने ठीक ऐसा ही सामान्य युग वर्ष ३३ में पिन्तेकुस्त के दिन किया! प्रेरितों के काम २:१-११ के अनुसार, उस समय यरूशलेम के एक ऊपरी कमरे में यीशु मसीह के क़रीब १२० शिष्य इकट्ठे हुए थे। (प्रेरितों १:१३, १५) एकाएक, आकाश से बड़ी “आँधी की सी सनसनाहट” की आवाज़ आयी। “आग की सी जीभें” फटती हुई प्रकट हुईं और वे बाँट दी गयीं। इस से शिष्य “पवित्र आत्मा से भर गए, और जिस प्रकार आत्मा ने उन्हें बोलने की सामर्थ दी, वे अन्य अन्य भाषा बोलने लगे।” उन ईश्वरीय रूप से प्रदान की गई भाषाओं में, उन्होंने “परमेश्वर के बड़े-बड़े कामों की चर्चा” की। और वह क्या ही चमत्कार था, जैसे मेसोपोटामिया, मिस्र, लिबिया और रोम जैसे दूर देशों से आए अन्य-अन्य भाषा वाले यहूदी और यहूदी मत धारण करने वालों ने उस जीवन-दायक संदेश को समझा!
आज एक परमेश्वर-प्रदत्त भाषा!
७. यदि संसार भर में एक ही भाषा बोली और समझी जाती, फिर भी कैसी प्रत्याशाएँ होतीं?
७ चूँकि परमेश्वर विभिन्न भाषाओं को आश्चर्यजनक रूप से प्रदान कर सकते हैं, तो क्या यह बहुत बढ़िया नहीं होगा कि वे दुनिया भर में केवल एक ही भाषा बोलना और समझना सम्भव करें? उस से मानव परिवार में आपसी समझौता बढ़ा दी जाएगी। जैसे द वर्ल्ड बुक एन्साइक्लोपीडिया [The World Book Encyclopedia] कहती है, “यदि सारी मनुष्यजाति एक ही भाषा बोले, तो सांस्कृतिक और आर्थिक बन्धन और भी मज़बूत होंगे, और देशों के मध्य सद्भावना बढ़ेगी।” ख़ैर, अब तक कम से कम ६०० विश्व-भाषाओं का प्रस्ताव रखा गया है। इन में से, एस्परंतो भाषा का सबसे अधिक प्रभाव रहा है क्योंकि सन् १८८७ में जब से इसकी उत्पत्ति हुई है लगभग एक करोड़ लोगों ने इसे सीखा है। तो भी, एक विश्व-भाषा के द्वारा मानवजाति को एकता में लाने के मनुष्यों के प्रयास कभी भी सफल नहीं हुए हैं। वास्तव में, निरन्तर बढ़ती हुई समस्याएँ इस संसार में विघटन का कारण बन रही हैं जैसे जैसे ‘दुष्ट लोग बिगड़ते चले जा रहे हैं।’—२ तीमुथियुस ३:१३.
८. यदि आज के संसार में एक विश्व-भाषा अपनाई जाती, तब भी क्या अस्तित्व में रहता, और क्यों?
८ धार्मिक रूप से देखा जाए तो बड़ी गड़बड़ी है। लेकिन क्या हमें इसकी अपेक्षा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि बाइबल की प्रकाशितवाक्य पुस्तक झूठे धर्म के विश्व साम्राज्य को “बड़ी बाबेलोन” कहती है? (प्रकाशितवाक्य १८:२) जी हाँ, क्योंकि “बाबेलोन” का अर्थ “गड़बड़ी” है। यदि आज के संसार में एक कृत्रिम भाषा या अंग्रेज़ी, फ्रांसीसी, जर्मन या रूसी भाषा जैसे किसी स्वभाविक भाषा को एक विश्व-भाषा के रूप में अपना भी लिया जाए, तो भी धार्मिक रूप से और अन्य प्रकार से फूट अस्तित्व में रहती। क्यों? क्योंकि “सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है,” जो शैतान इब्लीस है। (१ यूहन्ना ५:१९) वह स्वार्थ का सार है, और वह लालची इच्छा से अपनी उपासना समस्त मनुष्यजाति से कराना चाहता है, जैसे उसने निम्रोद और बाबुल की गुम्मट के समय किया था। अजी, पापी मनुष्यों द्वारा बोली जानेवाली एक विश्व-भाषा से भी शैतान को संगठित इब्लीस-उपासना स्थापित करने के लिए मौक़ा मिल जाता! मगर यहोवा इसकी अनुमति कभी नहीं देंगे; वस्तुतः, वे बहुत जल्दी सभी झूठे, इब्लीस-प्रेरित धर्मों का अन्त कर देंगे।
९. सभी राष्ट्रों और जातियों के लोग अभी कैसे संगठित किये जा रहे हैं?
९ तब भी, एक विस्मयकारी तथ्य यह है कि प्रत्येक राष्ट्र और जाति से अच्छे लोगों को अभी से ही एक किया जा रहा है। यह परमेश्वर की शर्तों पर और उनकी उपासना के लिए हो रहा है। आज, परमेश्वर इस पृथ्वी पर मनुष्यों को पृथ्वी पर की एकमात्र शुद्ध भाषा सीखना और बोलना संभव कर रहे हैं। और यह वास्तव में एक विश्व-भाषा है। वस्तुतः, आज यहोवा परमेश्वर पृथ्वी के सभी राष्ट्रों में से बहुत लोगों को यह शुद्ध भाषा सीखा रहे हैं। यह अपने भविष्यद्वक्ता और गवाह सपन्याह के द्वारा दी गयी परमेश्वर की भविष्यसूचक प्रतिज्ञा की पूर्ति में है: “और उस समय मैं देश-देश के लोगों से एक नई और शुद्ध भाषा (अक्षरशः, “एक स्वच्छ होठ”) बुलवाऊंगा, कि वे सब के सब यहोवा से प्रार्थना करें, और एक मन से कन्धे से कन्धा मिलाए हुए उसकी सेवा करें।” (सपन्याह ३:९) यह शुद्ध भाषा क्या है?
शुद्ध भाषा समझाई गई
१०. शुद्ध भाषा क्या है?
१० शुद्ध भाषा परमेश्वर की सच्चाई है जो उन के अपने वचन, पवित्र शास्त्र में पाई जाती है। यह विशेष तौर से परमेश्वर के राज्य के बारे में सच्चाई है, जो मनुष्यजाति के लिए शान्ति और अन्य आशिषें लाएगा। शुद्ध भाषा धार्मिक ग़लतियों और झूठी उपासना को दूर करती है। इसके बोलने वालों को यह जीवित और सच्चे परमेश्वर, यहोवा की शुद्ध, स्वच्छ, हितकर उपासना में एक कर देती है। आज, लगभग ३,००० भाषाएँ समझ में विघ्न डालती हैं, और सैंकड़ों झूठे धर्मों ने मनुष्यजाति को संभ्रान्त किया है। इसलिए हम कितने आनन्दित हैं कि परमेश्वर लोगों को यह अद्भुत शुद्ध भाषा दे रहे हैं!
११. शुद्ध भाषा ने सभी राष्ट्रों और जातियों के लोगों के लिए क्या किया है?
११ जी हाँ, सभी राष्ट्रों और जातियों के लोग शुद्ध भाषा को बोलने में निपुण हो रहे हैं। पृथ्वी पर आध्यात्मिक रूप से एकमात्र शुद्ध भाषा होने के कारण, यह एक मज़बूत, एक कर देने वाली शक्ति के समान कार्य करती है। यह इसके बोलने वालों को सामर्थ देती है कि वे “यहोवा से प्रार्थना करें, और एक मन से कन्धे से कन्धा मिलाए हुए उसकी सेवा करें,” या अक्षरशः, “एक कन्धे से” सेवा करें। इस प्रकार वे “एक मत,” “सर्वसम्मत समझौते और एक संयुक्त कंधे” से परमेश्वर की सेवा करते हैं। (The New English Bible; The Amplified Bible) स्टीवन टी. बाइंग्टन द्वारा किए गए अनुवाद में यूँ लिखा गया है, “तब मैं [यहोवा परमेश्वर] सब लोगों के होठों को शुद्ध करूंगा, कि वे सभी यहोवा का नाम ले सकें और सेवा एक साथ मिलकर कर सकें।” परमेश्वर की सेवा में ऐसा विश्व-व्यापी बहुभाषीय सहयोग केवल यहोवा के गवाहों के बीच ही पाया जाता है। आज २१२ देशों में, ४० लाख से भी अधिक राज्य प्रचारक कई मानवीय भाषाओं में सुसमाचार का प्रचार कर रहे हैं। तो भी, गवाह “एक ही बात” करते हैं और वे “एक ही मन और एक मत हो कर मिले” हैं। (१ कुरिन्थियों १:१०) यह इसलिए है कि यहोवा के सभी गवाह, चाहे वे पृथ्वी पर कहीं भी क्यों न हों, अपने स्वर्गीय पिता की प्रशंसा और महिमा के लिए वह एकमात्र शुद्ध भाषा बोलते हैं।
शुद्ध भाषा अभी सीखें!
१२, १३. (अ) शुद्ध भाषा बोलने के बारे में आपको क्यों चिन्तित होना चाहिए? (ब) सपन्याह ३:८, ९ के वचनों का आज इतना महत्त्व क्यों है?
१२ आपको शुद्ध भाषा बोलने के लिए चिन्तित क्यों होना चाहिए? पहली बात यह है कि उसे सीखने और बोलने पर आपका जीवन निर्भर है। परमेश्वर के यह प्रतिज्ञा देने से कुछ ही समय पहले, कि वे ‘लोगों से एक नई और शुद्ध भाषा बुलवाएँगें,’ उन्होंने चेतावनी दी: “यहोवा की यह वाणी है कि जब तक मैं नाश करने को न उठूँ, तब तक तुम मेरी बाट जोहते रहो। मैं ने यह ठाना है कि जाति-जाति के और राज्य-राज्य के लोगों को मैं इकठ्ठा करूं, कि उन पर अपने क्रोध की आग पूरी रीति से भड़काऊं; क्योंकि सारी पृथ्वी मेरी जलन की आग से भस्म हो जाएगी।”—सपन्याह ३:८.
१३ सर्वश्रेष्ठ प्रभु यहोवा के ये शब्द २६ शताब्दियों पूर्व यहूदा में पहली बार बोले गए थे, जिस देश की राजधानी यरूशलेम थी। लेकिन यह कथन ख़ास तौर से हमारे दिनों के लिए था क्योंकि यरूशलेम मसीहीजगत् का एक प्रतीक था। और हमारा समय, १९१४ में परमेश्वर के स्वर्गीय राज्य के स्थापित किए जाने से लेकर, राष्ट्रों को इकठ्ठा करने और राज्यों को जमा करने के लिए यहोवा का दिन है। एक महान गवाही कार्य के द्वारा उन्होंने अपनी निगरानी में उन सब को एक कर दिया है। पारी से, इसने उन्हें परमेश्वर के उद्देश्य के विरुद्ध उत्तेजित किया है। फिर भी, यहोवा परमेश्वर दयापूर्णता से इन सभी राष्ट्रों में से लोगों को शुद्ध भाषा बोलने में एक हो जाने की मदद कर रहे हैं। साथ ही, जो भी उनके प्रतिज्ञात नये संसार में जीवन पाना चाहते हैं, वे उनकी सेवा एकता से कर सकते हैं, इससे पहले कि “सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उस बड़े दिन की लड़ाई” में, जो प्रायः हर-मगिदोन कहलाती है, ईश्वरीय क्रोध की अग्निमय अभिव्यक्ति में सभी राष्ट्र नाश हो जाएं। (प्रकाशितवाक्य १६:१४, १६; २ पतरस ३:१३) खुशी की बात है कि जो लोग शुद्ध भाषा बोलते हैं और एकता में बंधे सच्चे उपासकों के तौर से विश्वास से यहोवा का नाम लेते हैं, वे उस संसार की घोर विपत्ति की प्रचंडता के दौरान ईश्वरीय सुरक्षा का आनन्द लेंगे। परमेश्वर उन्हें नये संसार में सुरक्षित ले आएंगे, जहां अन्त में सारी मानवजाति के होंठों पर केवल शुद्ध भाषा ही होगी।
१४. सपन्याह के ज़रिए, परमेश्वर ने कैसे दर्शाया कि वर्तमान रीति-व्यवस्था के अन्त से बचने के लिए तुरन्त कार्य करना है?
१४ अपने भविष्यद्वक्ता सपन्याह के ज़रिए, यहोवा स्पष्ट करते हैं कि जो वर्तमान दुष्ट रीति-व्यवस्था के अन्त से बचने की आशा रखते हैं, उन्हें तुरन्त कार्य करना चाहिए। सपन्याह २:१-३ के अनुसार, परमेश्वर कहते हैं, “हे निर्लज्ज जाति के लोगो, इकठ्ठे हो! इस से पहिले कि दण्ड की आज्ञा पूरी हो और बचाव का दिन भूसी की नाईं निकले, और यहोवा का भड़कता हुआ क्रोध तुम पर आ पड़े, और यहोवा के क्रोध का दिन तुम पर आए, तुम इकठ्ठे हो। हे पृथ्वी के सब नम्र लोगो, हे यहोवा के नियम के माननेवालो, उसको ढूंढ़ते रहो; धर्म को ढूंढ़ो; नम्रता को ढूंढ़ो; सम्भव है तुम यहोवा के क्रोध के दिन में शरण पाओ।”
१५. (अ) सपन्याह २:१-३ की प्रारम्भिक पूर्ति क्या थी? (ब) यहूदा पर परमेश्वर के न्याययुक्त विनाश से कौन बचे थे, और हमारे दिनों में इस बचाव का कौन-सा समानान्तर होगा?
१५ इन शब्दों की प्रारम्भिक पूर्ति प्राचीन यहूदा और यरूशलेम पर हुई। यहूदा के पापपूर्ण लोगों ने परमेश्वरीय आग्रह के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया नहीं दिखायी, जैसा सा.यु.पू. वर्ष ६०७ में बाबेलियों के हाथों उन पर लाए गए परमेश्वर के न्याययुक्त विनाश से मालूम होता है। जैसे यहूदा परमेश्वर के सामने “निर्लज्ज जाति” थी, उसी प्रकार मसीहीजगत भी यहोवा के सामने “निर्लज्ज जाति” रही है। परन्तु परमेश्वर के वचन पर ध्यान देने की वजह से, कुछ यहूदी और अन्य लोग बच गए, उन में यहोवा का विश्वासयोग्य भविष्यद्वक्ता यिर्मयाह भी था। अन्य बचने वालों में एबेदमेलेक कूशी और योनादाब का वंशज था। (यिर्मयाह ३५:१८, १९; ३९:११, १२, १६-१८) उसी तरह आज भी, यीशु की “दूसरी भेड़ों” की “एक बड़ी भीड़” जो सभी जातियों में से निकलकर आई है, हर-मगिदोन से बचकर परमेश्वर के नये संसार में जायेगी। (प्रकाशितवाक्य ७:९; यूहन्ना १०:१४-१६) केवल वही जो शुद्ध भाषा सीखते और बोलते हैं, आनन्दित उत्तरजीवी होंगे।
१६. “यहोवा के क्रोध के दिन में” शरण पाने के लिए किसी व्यक्ति को क्या करना है?
१६ जिस प्रकार यह यहोवा का आदेश था कि यहूदा और यरूशलेम को नाश किया जाए, उसी प्रकार मसीहीजगत का विनाश भी होना ही है। वस्तुतः सभी झूठे धर्मों का विनाश निकट है, और जो बचना चाहते हैं, उन्हें तुरन्त कार्य करना चाहिए। उन्हें ऐसा “इससे पहले” करना है, “कि वह दिन भूसी की नाईं निकले,” जो हवा के एक झोंके के आने से तुरन्त उड़ जाती है, जब खलिहान में अन्न के दानों को हवा में फेंके जाते हैं। इस से पहले कि यहोवा का भड़कता हुआ क्रोध हम पर आ पड़े, हमें परमेश्वर के क्रोध से बचने के लिए शुद्ध भाषा बोलनी चाहिए और परमेश्वर की चेतावनियों के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया दिखानी चाहिए। सपन्याह के समय में और आज भी, नम्र लोग धार्मिकता और नम्रता के साथ-साथ यहोवा परमेश्वर को ढूंढ़ते हैं। हमारा यहोवा को खोजने का मतलब उन्हें अपने सम्पूर्ण हृदय, प्राण, बुद्धि और शक्ति से प्रेम करना है। (मरकुस १२:२९, ३०) “संभव है [कि ऐसा करने वाले] यहोवा के क्रोध के दिन में शरण पायें।” लेकिन भविष्यवाणी क्यों कहती है, “संभव है”? इसलिए कि उद्धार वफ़ादारी और धीरज पर निर्भर है। (मत्ती २४:१३) वे ही जो परमेश्वर के धार्मिक स्तरों के अनुरूप होंगे और शुद्ध भाषा बोलते रहेंगे, यहोवा के क्रोध के दिन में शरण पा सकेंगे।
१७. कौन से प्रश्न हमारे विचार-विमर्श के लिए रह जाते हैं?
१७ चूँकि यहोवा के क्रोध का दिन निकट है और उद्धार शुद्ध भाषा सीखने और प्रयोग करने पर निर्भर है, इसे अध्ययन करने और बोलने में गंभीरता से लगे रहने का समय अभी है। लेकिन कोई व्यक्ति किस तरह शुद्ध भाषा सीख सकता है? और यह बोलने से किस तरह आपको लाभ होगा?
आप किस तरह उत्तर देंगे?
▫ मानवीय भाषा की उत्पत्ति कैसे हुई?
▫ शुद्ध भाषा क्या है?
▫ सपन्याह ३:८, ९ के वचनों का आज इतना अधिक महत्त्व क्यों है?
▫ “यहोवा के क्रोध के दिन में” शरण पाने के लिये हमें क्या करना है?
[पेज 16 पर तसवीर]
बाबुल में, परमेश्वर ने मानवजाति को उनकी भाषा में गड़बड़ी डाल कर फैला दिया।