यहोवा की आशीष धनी बनाती है
“यहोवा की आशीष धनी बनाती है, और वह उसके साथ दुःख नहीं मिलाता।”—नीतिवचन १०:२२, NW.
१-३. जबकि अनेक जन भौतिक चीज़ों के बारे में चिंतित हैं, भौतिक धन के बारे में कौनसा तथ्य सब को पहचानना चाहिए?
कई लोग पैसे या पैसे की अपनी कमी के बारे में बात करते रहते हैं। उनके लिए दुःख की बात यह है कि हाल के सालों में उनके पास चर्चा करने के लिए काफ़ी कुछ रहा है। उन्नीस सौ बानवे में धनवान पश्चिमी दुनिया ने भी व्यापार में मंदी का अनुभव किया, और अनेक प्रबन्धकों तथा सामान्य मज़दूरों की नौकरी नहीं रही। अनेक लोगों ने सोचा कि क्या वे फिर कभी स्थायी समृद्धि का समय देखेंगे या नहीं।
२ क्या अपनी भौतिक ख़ैरियत के विषय में चिंतित होना ग़लत है? जी नहीं, कुछ हद तक तो यह स्वाभाविक है। उसी समय, धन के बारे में एक बुनियादी सच्चाई है जिसे हम ने पहचानना चाहिए। आख़िर में, सभी भौतिक चीज़ें सृष्टिकर्ता से आती हैं। वह “ईश्वर . . . जो उपज सहित पृथ्वी का फैलानेवाला और उस पर के लोगों को सांस और उस पर के चलनेवालों को आत्मा देनेवाला यहोवा है।”—यशायाह ४२:५.
३ हालाँकि यहोवा यह पूर्व निर्धारित नहीं करता कि किसे अमीर और किसे ग़रीब होना चाहिए “उपज सहित पृथ्वी” के हमारे हिस्से का उपयोग हम जिस तरह करते हैं, उस के लिए हम सब जवाबदेह हैं। अगर हम अपने धन का उपयोग दूसरों पर प्रभुता चलाने के लिए करते हैं, तो यहोवा हमें उत्तरदायी ठहराएगा। यहोवा के बजाय धन की सेवा करनेवाला पाएगा कि “जो अपने धन पर भरोसा रखता है वह गिर जाता है।” (नीतिवचन ११:२८; मत्ती ६:२४; १ तीमुथियुस ६:९) भौतिक समृद्धि जिसके साथ यहोवा की तरफ़ आज्ञाकारी हृदय नहीं है, अंत में बेफ़ायदा होती है।—सभोपदेशक २:३-११, १८, १९; लूका १६:९.
सबसे महत्त्वपूर्ण समृद्धि
४. क्यों आध्यात्मिक समृद्धि भौतिक प्रचुरता से बेहतर है?
४ भौतिक समृद्धि के अलावा, बाइबल आध्यात्मिक समृद्धि के बारे में बोलती है। स्पष्ट रूप से यह बेहतर प्रकार की समृद्धि है। (मत्ती ६:१९-२१) आध्यात्मिक समृद्धि यहोवा के साथ एक संतोषजनक रिश्ता आवश्यक बनाती है, जो सर्वदा तक क़ायम रह सकता है। (सभोपदेशक ७:१२) इसके अलावा, परमेश्वर के आध्यात्मिक रीति से धनी सेवक हितकर भौतिक आशिषों में हानि नहीं उठाते हैं। नए संसार में, आध्यात्मिक धन भौतिक समृद्धि से जोड़ा जाएगा। वफ़ादार व्यक्ति एक ऐसी भौतिक सुरक्षा का आनन्द लेंगे जो कड़े मुकाबले या तंदुरुस्ती और आनन्द की बलि देकर भी नहीं पायी जाती है, और आज अक़सर ऐसा ही होता है। (भजन ७२:१६; नीतिवचन १०:२८; यशायाह २५:६-८) वे पाएँगे कि हर तरह से “यहोवा की आशीष धनी बनाती है, और वह उसके साथ दुःख नहीं मिलाता।”—नीतिवचन १०:२२, NW.
५. भौतिक चीज़ों के विषय में यीशु ने क्या वादा किया?
५ आज भी जहाँ तक भौतिक चीज़ों का सवाल है, आध्यात्मिक चीज़ों की क़दर करनेवाले एक तरह की प्रशांति महसूस करते हैं। यह सच है कि वे अपने बिल चुकाने और अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए काम करते हैं। या मंदी के समय कई व्यक्ति शायद अपनी नौकरी भी खो बैठें। पर वे ऐसी चिन्ताओं से हार नहीं मानते। इसके बजाय, वे यीशु के वादे पर यक़ीन करते हैं जब उसने कहा: “चिन्ता करके यह न कहना, कि हम क्या खाएंगे, या क्या पीएंगे, या क्या पहिनेंगे? क्योंकि . . . तुम्हारा स्वर्गीय पिता जानता है, कि तुम्हें ये सब वस्तुएं चाहिए। इसलिये पहिले तुम उसके राज्य और धर्म की खोज करो तो ये सब वस्तुएं भी तुम्हें मिल जाएंगी।”—मत्ती ६:३१-३३.
आज आध्यात्मिक धन
६, ७. (क) परमेश्वर के लोगों की आध्यात्मिक समृद्धि के कुछ पहलुओं का वर्णन कीजिए। (ख) कौनसी भविष्यवाणी आज पूरी हो रही है, और इससे कौनसे सवाल उठते हैं?
६ इसलिए, यहोवा के लोगों ने अपनी ज़िंदगी में राज्य को पहले रखने का चुनाव किया है, और वे कितने धन्य हैं! चेले बनाने के उनके कार्य में वे प्रचुर सफ़लता का आनन्द लेते हैं। (यशायाह ६०:२२) “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिये प्रदान की गयी आध्यात्मिक अच्छी चीज़ों के निरन्तर प्रवाह का आनन्द लेते हुए, वे यहोवा द्वारा सिखाए जाते हैं। (मत्ती २४:४५-४७; यशायाह ५४:१३) इसके अतिरिक्त, यहोवा की आत्मा उन पर है, जो उन्हें एक आनन्दप्रद अंतरराष्ट्रीय भाईचारे में गढ़ती है।—भजन १३३:१; मरकुस १०:२९, ३०.
७ यह सचमुच आध्यात्मिक समृद्धि है, एक ऐसी चीज़ जिसे पैसा ख़रीद नहीं सकता। यह परमेश्वर के वादे की एक असाधारण पूर्ति है: “सारे दशमांस भण्डार में ले आओ कि मेरे भवन में भोजनवस्तु रहे; और सेनाओं का यहोवा यह कहता है, कि ऐसा करके मुझे परखो कि मैं आकाश के झरोखे तुम्हारे लिये खोलकर तुम्हारे ऊपर अपरम्पार आशीष की वर्षा करता हूं कि नहीं।” (मलाकी ३:१०) हम ने आज इस प्रतिज्ञा को पूरा होते हुए देखा है। तो भी यहोवा, सारे धन का स्रोत, अपने सेवकों से दशमांश लाने को क्यों कहता है? दशमांश से किसे लाभ होता है? इन सवालों का जवाब देने के लिए, इस बात पर ग़ौर कीजिए कि क्यों यहोवा ने सा.यु.पू. पाँचवी सदी में मलाकी के ज़रिये ये शब्द कहे।
दशमांश और भेंट
८. व्यवस्था वाचा के अनुसार, इस्राएल की भौतिक समृद्धि किस पर निर्भर करेगी?
८ मलाकी के दिनों में परमेश्वर के लोग समृद्ध नहीं हो रहे थे। क्यों नहीं? कुछ हद तक तो इसका कारण भेंट और दशमांश था। उस समय, इस्राएल मूसा की व्यवस्था वाचा के अधीन था। जब यहोवा ने वह वाचा बनायी, उसने वादा किया कि अगर इस्राएल ने इसका पालन किया तो वह उन्हें आध्यात्मिक और भौतिक रीति से आशीष देगा। वस्तुतः, इस्राएल की समृद्धि उनकी वफ़ादारी पर निर्भर करती थी।—निर्गमन २८:१-१९.
९. प्राचीन इस्राएल के दिनों में, क्यों यहोवा ने इस्राएल से दशमांश देने और भेंट लाने की मांग की?
९ व्यवस्था के अंतर्गत इस्राएल के दायित्व का एक भाग मंदिर में भेंट ले आना और दशमांश देना था। यहोवा की वेदी पर कुछ भेंट तो सारे-के-सारे जलाए जाते थे, जबकि अन्य भेंटों को याजक और भेंट चढ़ाने वालों के बीच विभाजित किया जाता था, और ख़ास हिस्से यहोवा को चढ़ाए जाते थे। (लैव्यव्यवस्था १:३-९; ७:१-१५) दशमांश के विषय में, मूसा ने इस्राएलियों से कहा: “भूमि की उपज का सारा दशमांश, चाहे वह भूमि का बीज हो चाहे वृक्ष का फल, वह यहोवा ही का है; वह यहोवा के लिये पवित्र ठहरे।” (लैव्यव्यवस्था २७:३०) निवासस्थान के और बाद में मंदिर के लेवियों को दशमांश दिया जाता था। बारी से, ग़ैर-याजकीय लेवी प्राप्त की हुई चीज़ों का दशमांश हारून के याजकों को दिया करते थे। (गिनती १८:२१-२९) यहोवा ने इस्राएल से दशमांश देने की माँग क्यों की? पहला, ताकि वे एक सुनिश्चित ढंग से परमेश्वर की भलाई के लिए अपनी क़दरदानी दिखा सकें। और दूसरा, ताकि वे लेवियों के भरण-पोषण की तरफ़ अपना योगदान दे सकें, जो फिर अपने दायित्व पर ध्यान केंद्रित कर सकते थे, जिस में व्यवस्था सिखाना सम्मिलित था। (२ इतिहास १७:७-९) इस प्रकार शुद्ध उपासना का समर्थन भी किया जाता था, और सभी को लाभ पहुँचता था।
१०. तब क्या हुआ जब इस्राएल दशमांश और भेंट लाने से रह गए?
१० हालाँकि दशमांश और भेंट बाद में लेवियों द्वारा उपयोग किए जाते थे, वे असल में परमेश्वर को तोहफ़े थे और इसलिए उन्हें उच्च कोटि का, उसके लायक़ होना चाहिए था। (लैव्यव्यवस्था २२:२१-२५) तब क्या हुआ जब इस्राएली लोग अपने दशमांश देने से चूके या जब वे घटिया भेंट लाए? व्यवस्था में कोई सज़ा निर्धारित नहीं की गयी, पर इसके परिणाम थे। यहोवा ने अपनी आशीष रोक ली, और लेवियों ने भौतिक सहायता से वंचित होने के कारण, अपना भरण-पोषण करने के लिए अपना मंदिर कार्य छोड़ दिया। इस प्रकार, सारे इस्राएल को क्षति पहुँची।
“अपने अपने चालचलन पर ध्यान करो”
११, १२. (क) जब इस्राएल ने व्यवस्था पालन करने में लापरवाही दिखायी, तब क्या परिणाम हुआ? (ख) इस्राएल को बाबुल से वापस लाने पर यहोवा ने उन्हें क्या कार्य-नियुक्ति दी?
११ इस्राएल के इतिहास के दौरान, व्यवस्था का पालन करने में, दशमांश देने में भी, कई जन अनुकरणीय थे। (२ इतिहास ३१:२-१६) आम तौर पर, तो, राष्ट्र लापरवाह था। बार-बार उन्होंने यहोवा के साथ की वाचा को तोड़ा, जब तक कि उसने आख़िरकार उन पर विजयी होने और, सा.यु.पू ६०७ में, उन्हें बाबुल में निर्वासित होने की अनुमति न दी।—२ इतिहास ३६:१५-२१.
१२ यह कड़ा अनुशासन था, पर ७० साल बाद यहोवा ने अपने लोगों को उनके स्वदेश लौटाया। उस वापसी के पश्चात् यशायाह में दी गयी अनेक परादीस-सम्बन्धी भविष्यवाणियों की प्रारंभिक पूर्ति होनेवाली थी। (यशायाह ३५:१, २; ५२:१-९; ६५:१७-१९) फिर भी, यहोवा का अपने लोगों को वापस लाने का मुख्य कारण पार्थिव परादीस बनाना नहीं बल्कि मंदिर का पुनर्निर्माण करना और सच्ची उपासना को पुनःस्थापित करना था। (एज्रा १:२, ३) यदि इस्राएल यहोवा की आज्ञा मानती, तो उन्हें भौतिक लाभ मिलते, और यहोवा की आशीष उन्हें दोनों आध्यात्मिक और भौतिक रीति से समृद्ध बनाती। तदनुसार, सा.यु.पू. ५३७ में स्वदेश लौटते ही, यहूदियों ने यरूशलेम में एक वेदी बनायी और मंदिर पर कार्य आरंभ किया। तथापि, उन्हें कड़े विरोध का सामना करना पड़ा और कार्य रुक गया। (एज्रा ४:१-४, २३) परिणामस्वरूप, इस्राएल को यहोवा की आशीष का आनन्द नहीं मिला।
१३, १४. (क) जब इस्राएल मन्दिर को पुनर्निर्माण नहीं कर सका, तब क्या हुआ? (ख) आख़िरकार मन्दिर का पुनर्निर्माण कैसे किया गया, पर इस्राएल की तरफ़ से कौनसी अतिरिक्त गलतियाँ रिपोर्ट की गयीं हैं?
१३ वर्ष सा.यु.पू. ५२० में, यहोवा ने भविष्यवक्ता हाग्गै और जकर्याह को खड़ा किया ताकि वे इस्राएल को उत्तेजित करें कि वे फिर से मंदिर-निर्माण कार्य में लग जाएँ। हाग्गै ने दिखाया कि राष्ट्र भौतिक कठिनाइयों का सामना कर रहा था और इसे यहोवा के घर के लिए जोश की कमी के साथ जोड़ा। उसने कहा: “सेनाओं का यहोवा यों कहता है, अपनी अपनी चालचलन पर ध्यान करो। तुम ने बहुत बोया परन्तु थोड़ा काटा; तुम खाते हो, परन्तु पेट नहीं भरता; तुम पीते हो, परन्तु प्यास नहीं बुझती; तुम कपड़े पहिनते हो, परन्तु गरमाते नहीं; और जो मज़दूरी कमाता है, वह अपनी मज़दूरी की कमाई को छेदवाली थैली में रखता है। सेनाओं का यहोवा तुम से यों कहता है, अपने अपने चालचलन पर सोचो। पहाड़ पर चढ़ जाओ और लकड़ी ले आओ और इस भवन को बनाओ; और मैं उसको देखकर प्रसन्न हूंगा, और मेरी महिमा होगी, यहोवा का यही वचन है।”—हाग्गै १:५-८.
१४ हाग्गै और जकर्याह द्वारा प्रोत्साहित होने पर, इस्राएलियों ने अपने अपने चालचलन पर ध्यान किया, और मंदिर का निर्माण हुआ। लेकिन, क़रीब ६० साल बाद, नहेमायाह ने यरूशलेम को भेंट दी और पाया कि इस्राएल फिर से परमेश्वर की व्यवस्था के विषय में लापरवाह बनी थी। उसने इसे ठीक किया। पर दूसरी भेंट पर उसने पाया कि परिस्थितियाँ फिर से बिगड़ गयी थीं। वह रिपोर्ट करता है: “फिर मुझे मालूम हुआ कि लेवियों का भाग उन्हें नहीं दिया गया है; और इस कारण काम करनेवाले लेवीय और गवैये अपने अपने खेत को भाग गए हैं।” (नहेमायाह १३:१०) यह समस्या सुलझायी गयी, और “सब यहूदी अनाज, नये दाखमधु और टटके तेल के दशमांश भण्डारों में लाने लगे।”—नहेमायाह १३:१२.
यहोवा को लूटना
१५, १६. मलाकी के ज़रिये, यहोवा कौनसी भूलों के लिए इस्राएल को फटकारता है?
१५ संभवतः, मलाकी द्वारा की गयी भविष्यवाणी इसी सामान्य कालावधि में की गयी, और भविष्यवक्ता हमें इस्राएल की बेवफ़ाई के बारे में अधिक बताता है। इस्राएल को दिए यहोवा के शब्दों को वह अभिलिखित करता है: “यदि मैं पिता हूं, तो मेरा आदर मानना कहां है? और यदि मैं स्वामी हूं, तो मेरा भय मानना कहां? सेनाओं का यहोवा, तुम याजकों से भी जो मेरे नाम का अपमान करते हो यही बात पूछता है।” क्या ग़लत था? यहोवा व्याख्या करता है: “जब तुम अन्धे पशु को बलि करने के लिये समीप ले आते हो, तो [कहते हो] . . . यह बुरा नहीं। और जब तुम लंगड़े वा रोगी पशु को ले आते हो, तो [कहते हो] . . . यह बुरा नहीं।”—मलाकी १:६-८, NW.
१६ इस सजीव तरीक़े से, मलाकी दिखाता है कि जबकि इस्राएली लोग भेंट ला रहे थे, इन भेंटो की घटिया कोटि ने घोर निरादर प्रकट किया। मलाकी ने यह भी लिखा: “अपने पुरखाओं के दिनों से तुम लोग मेरी विधियों से हटते आए हो, और उनका पालन नहीं करते। तुम मेरी ओर फिरो, तब मैं भी तुम्हारी ओर फिरूंगा, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है।” इस्राएलियों ने जानना चाहा कि उन्हें ख़ास तौर पर क्या करना है, इसलिए उन्होंने पूछा: “हम किस बात में फिरें?” यहोवा ने जवाब दिया: “क्या मनुष्य परमेश्वर को धोखा दे सकता है? देखो, तुम मुझ को धोखा देते हो।” सारे धन का स्रोत, यहोवा को इस्राएल कैसे लूट सकता था? यहोवा ने जवाब दिया: “दशमांश और उठाने की भेंटों में।” (मलाकी ३:७, ८) जी हाँ, दशमांश और भेंट नहीं देने से, इस्राएल यहोवा को लूट रहा था!
१७. इस्राएल में दशमांश और भेंट ने कौनसा मक़सद पूरा किया, और दशमांश के विषय में यहोवा क्या वादा करता है?
१७ इस्राएल में दशमांश और भेंट के महत्त्व को यह ऐतिहासिक पृष्ठभूमि दिखाती है। ये देनेवाले की तरफ़ से क़दरदानी का एक प्रदर्शन था। और ये भौतिक तरीक़े से सच्ची उपासना का समर्थन करने में सहायता करते थे। इस प्रकार, यहोवा ने आगे जाकर इस्राएल को प्रोत्साहित किया: “सारे दशमांश भण्डार में ले आओ।” ऐसा करने पर क्या होगा, यह समझाते हुए यहोवा ने वादा किया: ‘मैं . . . तुम्हारे ऊपर अपरम्पार आशीष की वर्षा करूंगा।’ (मलाकी ३:१०) यहोवा की आशीष उन्हें धनी बनाएगी।
“प्रभु” द्वारा न्याय किया गया
१८. (क) यहोवा किसके आगमन के बारे में चेतावनी देता है? (ख) मन्दिर में आगमन कब हुआ, कौन शामिल था, और इस्राएल के लिए क्या परिणाम था?
१८ यहोवा ने मलाकी के ज़रिये यह भी चेतावनी दी कि वह अपने लोगों का न्याय करने के लिए आएगा। “देखो, मैं अपने दूत को भेजता हूं, और वह मार्ग को मेरे आगे सुधारेगा, और प्रभु, जिसे तुम ढूंढ़ते हो, वह अचानक अपने मन्दिर में आ जाएगा; हां वाचा का वह दूत, जिसे तुम चाहते हो, सुनो, वह आता है।” (मलाकी ३:१) मन्दिर में प्रतिज्ञात आगमन कब हुआ? मत्ती ११:१० में, यीशु ने एक दूत के विषय में मलाकी की भविष्यवाणी को उद्धृत किया, जो मार्ग तैयार करेगा, और इसे यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले पर लागू किया। (मलाकी ४:५; मत्ती ११:१४) अतः सा.यु. २९ में, न्याय का समय आ गया था! दूसरा दूत कौन था, वाचा का वह दूत जो यहोवा, “प्रभु” के साथ मन्दिर जाएगा? स्वयं यीशु, और दो मौक़ों पर उसने यरूशलेम में मन्दिर आकर नाटकीय रूप से बेईमान सर्राफ़ों को बाहर निकालकर उसे साफ़ किया। (मरकुस ११:१५-१७; यूहन्ना २:१४-१७) पहली सदी के इस न्याय के समय के बारे में, यहोवा भविष्यसूचक रूप से पूछता है: “उसके आने के दिन की कौन सह सकेगा? और जब वह दिखाई दे, तब कौन खड़ा रह सकेगा?” (मलाकी ३:२) दरअसल, इस्राएल खड़ा नहीं रहा। उनकी जाँच की गयी, उन में कमी पायी गयी, और सा.यु. ३३ में, उन्हें यहोवा के चुने गए राष्ट्र की हैसियत से हटा दिया गया।—मत्ती २३:३७-३९.
१९. पहली सदी में किस तरह शेष जन यहोवा की ओर फिरे, और उन्हें क्या आशीष मिली?
१९ बहरहाल, मलाकी ने यह भी लिखा: “[यहोवा] रूपे का तानेवाला और शुद्ध करनेवाला बनेगा, और लेवियों को शुद्ध करेगा और उनको सोने रूपे की नाईं निर्मल करेगा, तब वे यहोवा की भेंट धर्म से चढ़ाएंगे।” (मलाकी ३:३) इसके अनुरूप, जबकि पहली सदी में यहोवा की सेवा करने का दावा करनेवाले अधिकांश जन निकाले गए, कई जन शुद्ध किए गए और वे स्वीकार्य बलिदान देते हुए यहोवा के पास आए। कौन? वे जन जिन्होंने वाचा के दूत, यीशु की तरफ़ प्रतिक्रिया दिखायी थी। पिन्तेकुस्त सा.यु. ३३ में, प्रतिक्रिया दिखानेवाले ऐसे १२० जन यरूशलेम में एक ऊपरी कमरे में एकत्रित थे। पवित्र आत्मा द्वारा बल प्रदान किए जाने पर, वे धर्म से भेंट चढ़ाने लगे, और शीघ्र ही उनकी संख्या बढ़ गयी। जल्द ही, वे सारे रोमी साम्राज्य में फैल गए। (प्रेरितों २:४१; ४:४; ५:१४) इस प्रकार, शेष जन यहोवा की ओर फिरे।—मलाकी ३:७.
२०. जब यरूशलेम और मन्दिर नाश किए गए, तब परमेश्वर के नए इस्राएल का क्या हुआ?
२० इस्राएल के ये शेष जन, जिस में अन्यजाति के लोग मानो, इस्राएल के प्रकन्द में कलम बाँधे गए शामिल हुए थे, “परमेश्वर के” एक नए “इस्राएल” थे, एक राष्ट्र जो आत्मा-अभिषिक्त मसीहियों से बना है। (गलतियों ६:१६; रोमियों ११:१७) सा.यु. ७० में, शारीरिक इस्राएल पर “धधकते भट्ठे का सा दिन” आया जब रोमी सेना द्वारा यरूशलेम और उसका मंदिर नाश किया गया। (मलाकी ४:१; लूका १९:४१-४४) परमेश्वर के आध्यात्मिक इस्राएल का क्या हुआ? यहोवा ने ‘उन से ऐसी कोमलता की, जैसी कोई अपने सेवा करनेवाले पुत्र से करता है।’ (मलाकी ३:१७) अभिषिक्त मसीही कलीसिया ने यीशु की भविष्यसूचक चेतावनी को माना। (मत्ती २४:१५, १६) वे बच गए, और यहोवा की आशीष उन्हें लगातार आध्यात्मिक रीति से धनी बनाती गयी।
२१. मलाकी ३:१ और १० के बारे में कौनसे सवाल बाक़ी हैं?
२१ यहोवा का क्या ही दोषनिवारण! लेकिन, मलाकी ३:१ आज कैसे पूरा हो रहा है? सारे दशमांश को भण्डार में लाने के मलाकी ३:१० में दिए प्रोत्साहन की तरफ़ एक मसीही को कैसी प्रतिक्रिया दिखानी चाहिए? इस पर अगले लेख में चर्चा की जाएगी।
क्या आप समझा सकते हैं?
▫ आख़िरकार, सारे धन का स्रोत कौन है?
▫ क्यों आध्यात्मिक समृद्धि भौतिक धन से बेहतर है?
▫ इस्राएल में दशमांश और भेंट ने क्या मक़सद पूरा किया?
▫ यहोवा, “प्रभु,” इस्राएल का न्याय करने के लिए कब मंदिर आया, और इसका परिणाम क्या हुआ?
▫ जब सा.यु. पहली सदी में यहोवा अपने मंदिर आया, तब उसके बाद कौन उसकी ओर फिरे?
[पेज 11 पर तसवीरें]
यहोवा का प्रतिनिधित्व करते हुए, वाचा का वह दूत, यीशु, सा.यु. पहली सदी में न्याय करने के लिए मंदिर आया